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'पूर्ण रोजगार' के लिए भारत को क्या करना होगा, स्टडी में आया सामने
इस समय 21.8 करोड़ लोगों को तत्काल काम की आवश्यकता है, जिसमें ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना MGNREGA से लाभान्वित होने वाले व्यक्ति शामिल नहीं हैं.
बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 year ago
नई दिल्ली: देश में बेरोजगारी एक बड़ा मुद्दा है, इसे दूर करने के लिए भारत सरकार के प्रयासों की क्या सीमा होनी चाहिये. रोजगार और बेरोजगारी पर जन आयोग (People's Commission on Employment and Unemployment) की एक स्टडी में बताया गया है कि केंद्र सरकार को देश में पूर्ण रोजगार पैदा करने के लिए जीडीपी का 5 परसेंट यानी 13.52 लाख करोड़ रुपये खर्च करने की जरूरत होगी.
रोजगार और बेरोजगारी पर स्टडी
देश बचाओ अभियान द्वारा स्थापित रोजगार और बेरोजगारी पर जन आयोग ने मंगलवार, 11 अक्टूबर को अपनी स्टडी 'काम करने का अधिकार: भारत के लिए एक वास्तविक सभ्य और लोकतांत्रिक राष्ट्र बनने के लिए व्यावहारिक और अपरिहार्य' जारी किया. रिपोर्ट के मुताबिक कि पूर्ण रोजगार एक टुकड़े-टुकड़े दृष्टिकोण के माध्यम से प्राप्त नहीं किया जा सकता है क्योंकि इसके लिए कानूनी, सामाजिक-राजनीतिक और आर्थिक पहलुओं में भारी बदलाव की आवश्यकता होती है. रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि नागरिकों के लिए अच्छी आजीविका सुनिश्चित करने के लिए 'काम का अधिकार' कानून बनाने की जरूरत है.
हर साल 13.52 लाख करोड़ खर्च करने होंगे
स्टडी के मुताबिक 21.8 करोड़ लोगों के लिए रोजगार पैदा करने के लिए सालाना 13.52 लाख करोड़ रुपये के निवेश की जरूरत है जो कि जीडीपी का 5 परसेंट है. और "अगले पांच वर्षों के लिए इस खर्च को जीडीपी का 1 प्रतिशत बढ़ाना होगा. इस समय 21.8 करोड़ लोगों को तत्काल काम की आवश्यकता है, जिसमें ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना MGNREGA से लाभान्वित होने वाले व्यक्ति शामिल नहीं हैं. वर्तमान में लगभग 30.4 करोड़ श्रमिकों के पास उचित काम है, रोजगार बढ़ने से उत्पादन के साथ-साथ मांग भी बढ़ेगी. अगर भारत में अंतरराष्ट्रीय वित्त पूंजी द्वारा लागू की गई मौजूदा व्यवस्था के व्यावहारिक विकल्प पर काम किया जाता है, तो यह एक ऐसा मॉडल हो सकता है जिसका अन्य विकासशील देश भी अनुसरण कर सकते हैं.
टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कितना सही
रिपोर्ट में कहा गया है कि पूर्ण रोजगार की ओर बढ़ते हुए अधिक सभ्य और लोकतांत्रिक समाज को हासिल करने संभव हो सकता है. इस रिपोर्ट इस बात पर खेद भी जताया गया है कि बाजार न केवल पूर्ण रोजगार की गारंटी से दूर भागते हैं, खौसतौर पर छोटी अवधि में, बल्कि यह भी चाहते हैं कि बेरोजगारी बनी रहे ताकि श्रम को कमजोर रखा जा सके. रिपोर्ट में कहा गया है कि संपन्न देशों में विकसित की जा रही नई तकनीक उनकी जरूरतों के लिए उपयुक्त है, लेकिन जरूरी नहीं कि यह भारत जैसे विकासशील देश के लिए भी सही हो. इस रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि उच्च तकनीक से किसी कंपनी को ऊंचा मुनाफा हो सकता है, लेकिन यह रोजगार की संभावना में कमी आ सकती है. इसलिए, जो लोग टेक्नोलॉजी का इंपोर्ट करते हैं और रोजगार को कम करते हैं, उन्हें एक टैक्स चुकाने की जरूरत होनी चाहिए. जिसका इस्तेमाल रोजगार के लिये किया जा सकता है.
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