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कैसे China और George Soros ने मिलकर किया Adani Group पर हमला!
केंद्रीय बैंक ढहाना हो या करेंसी संकट में फंसे देश को डुबोना हो, जॉर्ज सोरोस वित्तीय मार्केटों की शॉर्ट-सेलिंग के लिए प्रख्यात है.
बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 8 months ago
Palak Shah
The writer is author of the book: The Market Mafia - Chronicle of India’s High-Tech Stock Market Scandal & The Cabal That Went Scot-Free.
जॉर्ज सोरोस (George Soros) आधुनिक जमाने का शकुनी है. जॉर्ज सोरोस मार्केट का बहुत ही चालाक सट्टेबाज है जिसने विश्व भर में अपनी पहचान एक सामाजिक कार्यकर्ता की बना रखी है लेकिन इस नकाब के पीछे वह चालाक शकुनी ही है. जॉर्ज सोर्स द्वारा खोजी गई NGO संस्थाएं अक्सर राज्य सरकारों या फिर देश की सरकारों के साथ लड़ाई मोल लेती हैं ताकि वह इन सरकारों या फिर इन देशों की कमजोरी को सामने लेकर आएं जिससे इन्वेस्टर का विश्वास इकॉनमी में कम होता है. अरबपति सोरोस या फिर Rockefeller एवं Rothschild’s जैसे उसके अन्य साथी एक दुर्भाग्यशाली देश पर सट्टा लगाकर अपने फायदे के अनुसार काम करते हैं.
जितना दुर्भाग्य उतना फायदा
जितना बड़ा दुर्भाग्य होता है इन्हें उतना ही ज्यादा फायदा होता है. चाहे किसी देश के केंद्रीय बैंक को ढहाना हो या फिर करेंसी के संकट में फंसे किसी देश को डुबोना हो, जॉर्ज सोरोस वित्तीय मार्केटों के शॉर्ट-सेलिंग ओपरेशन या फिर छुपकर स्थिति से फायदा उठाने के लिए प्रख्यात है. जिन NGOs को वह फंड करता है, वे संस्थाएं दुनिया भर में राजनैतिक गुटबंदी एवं अस्थिरता के लिए जानी जाती हैं.
जॉर्ज सोरोस का लोकतंत्र
जब हिंडनबर्ग द्वारा अडानी-ग्रुप के खिलाफ रिपोर्ट प्राकाशित कर आक्रमण किया गया तो जॉर्ज सोरोस को बहुत ही ज्यादा खुशी हुई थी. इसी दौरान उन पर बहुत सी उंगलियां भी उठाई गई थीं. आपको बता दें कि हिंडनबर्ग द्वारा अडानी ग्रुप पर एक ऐसे समय पर आक्रमण किया गया था जब अडानी ग्रुप अपना 20,000 करोड़ से ज्यादा कीमत वाला FPO (फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफरिंग) जारी करने वाला था. कुछ ही समय बाद जॉर्ज सोरोस ने सार्वजनिक तौर पर कबूल कर लिया था कि अडानी ग्रुप पर हिंडनबर्ग के हमले से भारत पर मोदी सरकार की पकड़ कमजोर होगी और लोकतंत्र फिर से स्थापित होगा. ये बात सोरोस ही जाने कि वह कौन से लोकतंत्र की बात कर रहा था, शायद एक ऐसे लोकतंत्र की जिसे वह अमेरिका के अलावा सभी देशों पर स्थापित करना चाहता है और इस लोकतंत्र में उसका फायदा निश्चित है.
SEBI नहीं कर पाया न्यायिक कार्यवाही
हिंडनबर्ग –अडानी मामले की जांच के दौरान भारतीय स्टॉक मार्केट के रेगुलेटर SEBI (सिक्योरिटीज एवं एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया) ने अडानी ग्रुप के शेयरों में 12 विभिन्न इकाइयों द्वारा विशाल मात्रा में शॉर्ट-सेलिंग करने की बात भी पाई थी. आपको बता दें कि अडानी ग्रुप में इन 12 इकाइयों द्वारा शॉर्ट सेलिंग करने का मामला, हिंडनबर्ग रिपोर्ट के प्रकाशित होने से भी पहले का है. हालांकि हिंडनबर्ग ने भी अडानी के शेयरों में शॉर्ट-सेलिंग करने की बात कबूल कर ली थी, लेकिन हिंडनबर्ग द्वारा यह शॉर्ट-सेलिंग, एक्सचेंज से संबंध न रखने वाले डेरीवेटिव उपकरणों की मदद से की गई थी और भारतीय कानून के हिसाब से इसे गैर-कानूनी माना जाता है. इतना सब होने के बाद भी SEBI न्यायिक रूप से इसके खिलाफ कोई फैसला नहीं कर पाई है. अब हाल ही में एक बार फिर सोरोस से समर्थन प्राप्त इकाइयों ने अडानी ग्रुप पर G20 समिट से ऐन पहले हमला बोला है.
अडानी बने आसान टारगेट
Rockefeller फंड, ओपन सोसायटी फाउंडेशन और CIA के समर्थन वाली फोर्ड फाउंडेशन से फंड प्राप्त करने वाली एक NGO, जिसका नाम OCCRPहै, ने अडानी ग्रुप पर हिंडनबर्ग 2.0 के प्लान के तहत हमला बोल दिया है. जहां एक तरफ अडानी ग्रुप राष्ट्रीय जांच संस्थाओं, सरकार, मीडिया, अदालतों एवं रेगुलेटरी संस्थाओं की निगरानी में है, वहीँ दूसरी तरफ सोरोस और उसके साथी असभ्य ढंग से अपना ‘शॉर्ट इंडिया’ गेमप्लान पूरा करने में लगे हुए हैं. इन हालातों में भारत के दूसरे सबसे अमीर व्यक्ति अडानी ऐसे लोगों के लिए एक आसन टारगेट बन गए हैं जो नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली सरकार के बारे में लोगों की राय खराब चाहते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विपक्षी दल अडानी से संबंधित मुद्दों को 2024 में होने वाले भारत के सामान्य चुनावों तक ज्वलंत बनाए रखेंगे.
चीन से क्या है संबंध?
ये तो सब ही जानते हैं कि भारत के दुश्मन को चीन अपना दोस्त मानता है. भारत की विदेश निति के एक्सपर्ट्स का मानना है कि अडानी ग्रुप पर हमला करने के जॉर्ज सोरोस के प्लान में उसे चीन से भी समर्थन प्राप्त है. क्योंकि अडानी ग्रुप के अध्यक्ष गौतम अडानी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काफी करीबी माने जाते हैं. सबसे अमीर भारतीय के रूप में अडानी की यात्रा, आमतौर पर भारत के सबसे अमीर राज्य गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी की यात्रा के समकालीन ही है.
गौतम अडानी क्यों बने चीन का टारगेट?
अब एक बार फिर गौतम अडानी भारत के विकास में केंद्रीय भूमिका निभाते हुए नजर आ रहे हैं और इस वृद्धि की बदौलत भारत, चीन के आर्थिक अत्याचार का मुकाबला करने में सक्षम हो पाएगा. श्रीलंका, इजराइल, म्यांमार और ग्रीस जैसे देशों में एयरपोर्ट्स और पत्तकों जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर और ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका जैसे क्षेत्रों में कोयले की खुदाई जैसे प्रोजेक्टों की बदौलत चीन को नुकसान हो सकता है. अडानी ने ऐसे कुछ प्रोजेक्टों को चीनी राष्ट्रपति शी जिन पिंग की नाक के नीचे से चुराया है, जिनके लिए चीन काफी सकारात्मक रूप से बोली लगा रहा था. इनमें से कुछ प्रोजेक्ट श्रीलंका, इजराइल और मिस्त्र जैसे देशों से संबंधित प्रोजेक्ट शामिल हैं.
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