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स्पेशल स्टोरी: ‘बदलाव’ करने वाले संवर गए, जो नहीं बदले वो ‘घर’ गए 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने बीते कुछ वक्त में बदलाव की ज़रूरत को महसूस करते हुए कई परिवर्तन किए हैं.

बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 year ago

बदलाव जीवन का हिस्सा और ज़रूरत दोनों है. जो लोग इस 'ज़रूरत' को महसूस नहीं कर पाते, जिंदगी और तरक्की की दौड़ में पीछे छूट जाते हैं. यह बात हर व्यक्ति, संस्था, संगठन और उद्योग पर लागू होती है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) को इसके एक बड़े उदाहरण के तौर पर देखा जा सकता है. बीते कुछ वक्त में संघ ने बदलाव की ज़रूरत को महसूस करते हुए कई परिवर्तन किए हैं. मसलन, मोहन भागवत की मौलाना से मुलाकात,  मुख्यालय पर तिरंगा फहराने की शुरुआत, नया ड्रेस कोड, राष्ट्रीय मुस्लिम मंच को ज्यादा तवज्जो देना और विजयादशमी उत्सव में पहली बार किसी महिला अतिथि को बुलाना. वहीं, इसके उलट कांग्रेस न बदलाव की ज़रूरत को समझ पाई है और न समझना चाहती है. उसने खुद को गांधी परिवार के इर्द-गिर्द समेट लिया है. परिणामस्वरूप वह हर दिन कमजोर हो रही है.    

इन कंपनियों ने नहीं दिया बदलाव पर ध्यान
वैसे बात अकेले केवल RSS और कांग्रेस की नहीं है. उद्योग जगत पर नज़र डालें, तो ऐसे तमाम उदाहरण मौजूद हैं, जो दर्शाते हैं कि खुद को समय के अनुकूल न ढालने वाले कामयाबी के शिखर पर ज्यादा देर तक टिक नहीं पाते. एक जमाने में Kodak कंपनी की फोटोग्राफ़िक फिल्म मार्केट में तूती बोलती थी, लेकिन धीरे-धीरे कंपनी ‘कांग्रेस’ की तरह कमजोर होती गई. Kodak कुछ नया करने में, लोगों को आकर्षित करने में नाकाम रही और फोटोग्राफ़िक फिल्म मार्केट की दूसरी कंपनी से दौड़ में पिछड़ती चली गई. 

मोबाइल मेकर नोकिया
नोकिया सेलुलर नेटवर्क स्थापित करने वाली दुनिया की पहली कंपनी थी. 1990 के दशक के अंत और 2000 की शुरुआत में, नोकिया मोबाइल फोन सेक्टर में ग्लोबल लीडर थी. लेकिन उसने समय के अनुसार बदलाव नहीं किए, सही समय पर सही फैसले नहीं लिए और आज स्थिति सबके सामने है. नोकिया को लगता था कि वो स्मार्टफोन की दौड़ में देरी से शामिल होकर भी जीत सकती है. पहली आईफोन रिलीज के एक साल बाद यानी 2008 में नोकिया ने आखिरकार एंड्रॉइड के साथ प्रतिस्पर्धा करने का फैसला किया, मगर तब तक बहुत देर हो चुकी थी. आज इस फील्ड में कई कंपनियां नोकिया से बेहतर कारोबार कर रही हैं. 

पिछड़ता चला गया याहू 
2005 में Yahoo ऑनलाइन विज्ञापन बाजार के लीडिंग प्लेयर्स में शामिल था. लेकिन कंपनी ने पारंपरिक मीडिया आउटलेट्स में उपस्थिति बरकरार रखने के चक्कर में कुछ नया खोजने के महत्व को कम करके आंका और लगातार पिछड़ती चली गई. याहू ने कंज्यूमर ट्रेंड्स की उपेक्षा की और यूजर एक्सपीरियंस को बेहतर बनाने पर ध्यान नहीं दिया. याहू Google की तरह कंटेंट 'व्यूज' को मोनेटाइज करने का मॉडल विकसित करने में नाकाम रहा. कंपनी यह मानती रही कि सर्च इंजन से लेकर यूजर्स को ईमेल अकाउंट उपलब्ध कराने तक में कोई उसका मुकाबला नहीं कर सकता. इसलिए उसने इनोवेशन से फोकस हटा लिया.

पुरानी सोच में फंसी रही Xerox
Xerox ने पहली बार PC का आविष्कार किया था. कंपनी अपने इनोवेशन के लिए पहचानी जाती थी, लेकिन फिर उसने वक्त के अनुसार बदलाव नहीं किए. कंपनी के मैनेजमेंट ने सोचा कि डिजिटल होना खर्चीला काम है. प्रबंधन पूरी तरह आश्वस्त था कि ज़ेरॉक्स का भविष्य कॉपी मशीन में ही है, यही इसकी सबसे बड़ी भूल रही. कंपनी यह समझने में विफल रहा कि एक ही टेक्नोलॉजी पर बार-बार, लगातार मुनाफा नहीं कमाया जा सकता. कई बार टेक्नोलॉजी भी फेल हो जाती है.

Hitachi के अच्छे दिन चले गए 
जापान की 'Hitachi' इलेक्ट्रॉनिक सेक्टर की दिग्गज कंपनी हुआ करती थी. सोनी, पैनासोनिक और शार्प जैसी कंपनियों के साथ उसकी टक्कर थी. लेकिन आज वो इनसे दौड़ में पीछे हो गई है. समय के साथ इलेक्ट्रॉनिक इंडस्ट्री बदली. कंपनियों ने अपनी टेक्नोलॉजी, प्रोडक्ट से लेकर प्राइज रेंज सब में बदलाव किया. कंज्यूमर्स की ज़रूरत के अनुसार प्रोडक्ट बनाए जाने लगे. Hitachi ने भी बदलाव की कोशिश की, लेकिन ये कोशिश दूसरी कंपनियों जितनी दमदार नहीं रही.

इन कंपनियों ने समझी बदलाव की ज़रूरत
अब बात करते हैं कुछ ऐसी भारतीय कंपनियों के बारे में जिन्होंने बदलाव की ज़रूरत को महसूस किया और तुरंत बड़े बदलाव कर डाले. 'फेयर एंड लवली'  से 'ग्लो एंड लवली' बना ब्रांड इसका एक उदाहरण है. Hindustan Unilever के फ्लैगशिप ब्रांड फेयर एंड लवली का नाम 2020 में बदलकर ग्लो एंड लवली किया गया. कंपनी के इस फैसले के पीछे की वजह 'फेयर' शब्द के नकारात्मक प्रभाव को खत्म करना था. दरअसल, बड़े पैमाने पर लोगों को लगने लगा था कि कंपनी गोरेपन को ब्यूटी का पैमाना बताकर भेदभाव को बढ़ावा दे रही है. यदि Hindustan Unilever यह कदम नहीं उठता तो शायद उसे नुकसान भी उठाना पड़ता, इसलिए कंपनी ने बदलाव की ज़रूरत को महसूस करते हुए ब्रांड का नाम बदल दिया.

Foodiebay से Zomato
Zomato - फेमस फूड डायरेक्टरी और रेस्टोरेंट गाइड की स्थापना 2008 में Foodiebay के नाम से हुई थी. 18 जनवरी, 2010 को इसका नाम बदलकर Zomato किया गया. कंपनी का केवल नाम ही नहीं बदला, बल्कि उसकी सर्विस से लेकर काम करने तक के तरीके में बदलाव किया गया. क्योंकि कंपनी के मैनेजमेंट को समझ आ गया था कि बड़ी छलांग के लिए दो कदम पीछे हटने में कोई हर्ज नहीं.

UTI से एक्सिस बैंक लिमिटेड 
एक्सिस बैंक लिमिटेड को पहले यूटीआई बैंक के नाम से जाना जाता था. 1993 में इसकी स्थापना बैंकिंग और वित्तीय सेवा संगठन के रूप में हुई थी. 2007 में इस प्राइवेट बैंक के नाम यूटीआई बैंक से बदलकर एक्सिस बैंक लिमिटेड कर दिया गया. नाम बदलने की ज़रूरत इसलिए महसूस हुई, ताकि उस भ्रम को खत्म किया जा सके और कई असंबंधित संस्थाओं द्वारा यूटीआई ब्रांड के इस्तेमाल से उत्पन्न होता है.

अर्बनक्लैप से अर्बन कंपनी
अर्बनक्लैप की स्थापना 2014 में हुई थी. बाद में इसका नाम बदलकर अर्बन कंपनी कर दिया गया. महज थोड़े से समय में इस कंपनी ने अपनी एक अलग पहचान बना ली है. यह घर पर सैलून के साथ-साथ कई तरह की सर्विस उपलब्ध करा रही है. जनवरी 2020 में अर्बनक्लैप से अर्बन कंपनी किया गया. इस रीब्रांडिंग का प्राथमिक लक्ष्य सब-ब्रांडों का विस्तार करना था.

वोडाफोन से Vodafone Idea
टेलीकॉम सेक्टर में भी कुछ कंपनियों ने बदलाव की ज़रूरत को महसूस किया और उस पर बिना देर किए अमल भी किया. 2007 में, Hutchison Essar की 67 प्रतिशत वोडाफोन ने अधिग्रहित की थी. अधिग्रहण की प्रक्रिया पूरी होने के बाद, वोडाफोन ने हच को वोडाफोन एस्सार के रूप में रीब्रांड करने का निर्णय लिया. 2018 में Vodafone और Idea का विलय हो गया और 2020 में वोडाफोन, Vodafone Idea में बदल गया.


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