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QCO के लिए अभी क्यों तैयार नहीं है फुटवियर इंडस्ट्री, क्या हैं उसकी चिंताएं?
सरकार एक जुलाई से फुटवियर इंडस्ट्री के लिए क्वालिटी कंट्रोल ऑर्डर यानी QCO लागू करने जा रही है. हालांकि, इंडस्ट्री इसके लिए अभी तैयार नहीं है.
बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 year ago
फुटवियर इंडस्ट्री इन दिनों चिंता में घिरी हुई है, वजह है केंद्र सरकार का एक आदेश. सरकार ने फुटवियर इंडस्ट्री के लिए क्वालिटी कंट्रोल ऑर्डर यानी QCO अनिवार्य किया है, जो एक जुलाई से अमल में आ जाएगा. सरकार का कहना है कि फुटवेयर इंडस्ट्री को बेहतर गुणवत्ता और बड़े उत्पादन के लिए BSI मानकों का पालन करना जरूरी है. एक जुलाई से लेदर और नॉन-लेदर फुटवेयर के लिए QCO लागू हो जाएगा.
स्पष्ट नहीं है आदेश
फुटवियर इंडस्ट्री का मानना है कि सरकार इस मामले में जल्दबाजी दिखा रही है. इंडस्ट्री में इससे पहले क्वालिटी कंट्रोल ऑर्डर (QCO) जैसी कोई व्यवस्था नहीं थी, लिहाजा इसे आनन-फानन में लागू नहीं किया जाना चाहिए. इंडस्ट्री लीडर्स का यह भी कहना है कि इसमें कई पेंच हैं, कई मामलों में सरकारी आदेश स्पष्ट नहीं है. इसलिए पहले सरकार को सभी बातों का बारीकी से अध्ययन करना चाहिए, उसके बाद ही इसे अनिवार्य किया जाना चाहिए. BW हिंदी के साथ बातचीत में फुटवियर इंडस्ट्री से जुड़े कुछ लीडर्स ने अपनी चिंता जाहिर की.
लकीर के फ
फुटवियर इंडस्ट्री के वेटरन माने जाने वाले Kothari Industrial Corporation Limited के डायरेक्टर एन. मोहन बिजनेस वर्ल्ड से बात करते हुए इस विषय पर खुलकर कहते हैं कि इंडस्ट्री QCO के खिलाफ नहीं है, लेकिन इसको लागू करने से पहले आपको ग्लोबल प्रोस्पेक्ट्स भी समझने होंगे. आज भारत में फुटवियर के कई इंटरनेशनल ब्रैंड्स अपना एक्सपेंशन कर मैक्यूफैक्चरिंग में उतर रहे हैं. ऐसे में हमें उन्हें Ease of doing Business को भी याद रखना चाहिए. दुनिया में कहीं भी फैशन फुटवियर्स को लेकर स्पेशिफाइड क्यूसीओ नहीं है. फुटवियर फैशन इंडस्ट्री निरंतर बदलाव से गुजरती है, ऐसे में हमें ये भी समझना होगा कि हम कहीं लकीर के फकीर न बन जाएं और दुनिया हमारे ऊपर हंसे. ये बहुत महत्वपूर्ण विषय है, क्योंकि आज भारत के पास मौका है जब उसकी फुटवियर इंडस्ट्री में बूम आने का समय है. ऐसे में जब घरेलु और अंतरराष्ट्रीय बाजार भारतीय फुटवियर इंडस्ट्री को नई उंचाइयों पर ले जाने वाला है तो हमें कोई भी कदम बहुत सोच समझकर बढ़ाना होगा. अगले 5 सालों में घरेलु मार्केट में दोगुनी वृद्धि होने की उम्मीद है, जिसकी बदौलत हम कह सकते हैं कि भारत के पास इस वक्त एक बहुत बड़ा मौका मौजूद है. इतना ही नहीं, आने वाले समय में भारत नॉन-लेदर फुटवियर सेक्टर के ग्लोबल ब्रैंड्स के लिए प्रमुख स्त्रोत के रूप में भी उभरेगा और हमें ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहिए जिसकी वजह से यह मौका हम गंवा दें. वे आगे कहते हैं कि इस ऑर्डर को लेकर इंडस्ट्री ने अपनी गहन चिंता ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड्स को बताई भी है, अब बीआईएस को इसकी इंपोर्टेस को समझना चाहिए.
व्यावहारिक रूप से असंभव
बिना अध्ययन बनाए पैरामीटर
वी नौशाद के मुताबिक, जिस तरह के ग्लोबल स्टैण्डर्ड BIS द्वारा निर्धारित किए जा रहे हैं, उन पर अमल के लिए अभी भारत में इतनी टेक्नोलॉजी और मशीनें भी उपलब्ध नहीं हैं. पहले सरकार की तरफ से कहा गया था कि नए मापदंड केवल सेफ्टी और स्पेशल फुटवियर पर ही लागू किए जाएंगे, लेकिन अब इसे पूरी इंडस्ट्री के लिए अनिवार्य किया जा रहा है. पिछले दो महीनों में कमेटी ने स्लीपर, सैंडल और हवाई चप्पल को भी फुटवियर की उस लिस्ट में शामिल कर दिया है, जिनके लिए नए मापदंडों का पालन किया जाना है. नौशाद का कहना है कि BSI में बैठे स्टैण्डर्ड बनाने वाले अधिकारियों ने फुटवेयर इंडस्ट्री का ढंग से अध्ययन ही नहीं किया है. इसलिए उन्होंने अव्यावहारिक मापदंड तैयार कर दिए हैं. उन्होंने आगे कहा कि हमें पैरामीटर्स से आपत्ति नहीं हैं, लेकिन ऐसा इंडस्ट्री को समझकर, उसके अनुरूप किया जाना चाहिए.
15-20 साल पुराने हैं पैरामीटर्स
BIS से कई बार हुई बात
उन्होंने आगे कहा कि इस मसले पर इंडस्ट्री ने ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड यानी BIS से कई बार बात भी की है, पर कोई ठोस हल नहीं निकल पाया है. BIS ने कई बार कहा है कि उनके 27 स्टैंडर्ड के अंतर्गत जो भी हमारे फुटवियर आते हैं, हम उनका लाइसेंस ले लें पर वहीं दूसरी तरफ वो ये भी कह रहे हैं कि क्यूसीओ के बिना कोई भी फुटवियर नहीं बिक सकेगा. तो ऐसे में दोनों बातें खुद ही एक दूसरे के विपरीत दिख रही हैं. आखिर स्टैंडर्ड, इंडस्ट्री के अनुरूप क्यों नहीं है? इस पर गोविंदाराजू कहते हैं कि बीआईएस कमेटी के मेंबर्स सेफ्टी पर्पज फुटवियर की बारिकियों पर तो फोकस कर रहे हैं, पर पूरी इंडस्ट्री के ट्रेंड से अनभिज्ञ हैं. भारत में तो अभी जूतों का साइज भी स्टैंडर्डराइज नहीं हो पाया है, ऐसे में इन पैरामीटर्स को मोडिफाई ही करना होगा. वैसे भी जब लघु और मध्यम इकाइयों को इस ऑर्डर से छूट दी जा रहा है, जिनका टर्नओवर 50 करोड़ से कम है तो इस क्यूसीओ को लागू करने का मूल उद्देश्य की पूरा नहीं होगा. हमें उम्मीद है कि बीआईएस फुटवियर इंडस्ट्री की समस्या को समझकर कुछ हल निकालेगा. इंडस्ट्री लगातार उनके साथ इसे लेकर मीटिंग्स कर रही है.
क्वालिटी जरूरी है, लेकिन जल्दबाजी नहीं
फिलहाल अमल संभव नहीं
पूरन डावर ने आगे कहा कि QCO में स्पष्टता की कमी है. इसलिए इंडस्ट्री चाहती है कि इसे तब तक लागू न किया जाए जब तक कि सबकुछ स्पष्ट नहीं हो जाता. जो स्टैण्डर्ड BIS द्वारा तैयार किए जा रहे हैं, वो फैशन इंडस्ट्री में चलते नहीं हैं. उदाहरण के तौर पर सोल की मोटाई कितनी होनी चाहिए, सोल कितना हार्ड होना चाहिए आदि. जूते की ही बात करें, तो यह लोगों की पसंद के हिसाब से अलग-अलग तरीके से तैयार किए जाते हैं. लिहाजा, इन स्टैण्डर्ड को अमल में लाना संभव नहीं हो पाएगा. इस संबंध में छह अप्रैल को हमने आगरा में एक वर्कशॉप आयोजित की थी, जिसमें बताया गया था कि क्या जरूरी होना चाहिए और क्या नहीं.
इंडस्ट्री को विश्वास में ले सरकार
पूरन डावर के मुताबिक, जब भी इस तरह का कुछ नया होता है तो इंडस्ट्री को लगता है कि सरकार उस पर अपना नियंत्रण बढ़ा रही है. ऐसे में यह सरकारी एजेंसियों की जिम्मेदारी बनती है कि स्थिति को स्पष्ट करे. अभी ये भी साफ नहीं है कि मार्केट में जो पहले से स्टॉक है उसका क्या होगा. हम QCO का स्वागत करते हैं, इसे लागू होना चाहिए, लेकिन पहले इस बारे में स्पष्टता जरूरी है. सरकार को इंडस्ट्री के लोगों को विश्वास में लेकर ऐसा करना चाहिए. जुलाई की डेडलाइन जल्दबाजी होगी, इसे कुछ महीने और आगे बढ़ाया जाना चाहिए.
पैरामीटर्स को प्रैक्टिकल बनाएं
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