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अर्थव्यवस्था में तेजी के लिए सबसे पहले मूल समस्याओं को खत्म करना होगा!

उम्मीद से काफी खराब हालात में जीडीपी की एक वजह जीएसटी का बढ़ना भी है. जीएसटी वसूली बढ़ने से तमाम उत्पाद महंगे हो गए. रोटी से लेकर दूध तक सब काफी महंगे होने से उनकी खरीद कम हुई है.

बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 year ago

  • अजय शुक्ला, वरिष्ठ पत्रकार 

भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर जो चिंताएं हमने वित्तवर्ष के शुरुआती दिनों में व्यक्त की थीं, वो स्पष्ट नजर आने लगी हैं. राष्ट्रीय सांख्यिकी मंत्रालय की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही (अक्टूबर-दिसंबर) में देश की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर (GDP) 4.4 फीसदी रही. जो पूर्व के अनुमानों से की जा रही उम्मीद से कम है. पहले के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आंकड़ों में संशोधन, विनिर्माण क्षेत्र के उत्पादन में लगातार दूसरी तिमाही में कमी आने तथा उपभोक्ता मांग नरम रहने से दिसंबर तिमाही में अर्थव्यवस्था पटरी से नीचे आ गई है. इस तिमाही के विश्व बैंक के आंकड़े बताते हैं कि भारत में बेरोज़गारी और भुखमरी की हालत भी बदतर हुई है. इसको लेकर पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुरमन राजन ने भी चिंता व्यक्त की थी. भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने फरवरी के शुरुआती दिनों में 41 पेशेवशरों के साथ सर्वेक्षण कराया था, जिसके बाद बताया गया था कि दिसंबर तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर औसतन 4.6 फीसदी रहेगी.

RBI का जीडीपी वृद्धि अनुमान
पेशेवरों की रिपोर्ट के बाद भी आरबीआई ने जीडीपी की वृद्धि दर अनुमान 4.4 फीसदी रहने की बात ही कही थी. हालांकि राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने मार्च तिमाही में 5.1 फीसदी वृद्धि का अनुमान लगाते हुए वित्त वर्ष 2023 के वृद्धि अनुमान को 7 फीसदी पर बरकरार रखा है. पिछले वर्ष इसी अवधि में 11.2 फीसदी की विकास दर दर्ज की गई थी. सितंबर 2022 की तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 6.3 फीसदी दर्ज की गई थी. इससे पहले जनवरी 2023 में जारी किए गए अग्रिम आंकड़ों में वर्ष 2022-23 के लिए सात प्रतिशत की वृद्ध दर का अनुमान लगाया गया था. दोनों अनुमानों के बीच महत्वपूर्ण अंतर यह है कि एसएई (दूसरे अग्रिम अनुमान) की गणना तीसरी तिमाही (अक्टूबर से दिसंबर) के जीडीपी आंकड़ों को शामिल करके की जाती है. बुनियादी कीमतों पर सकल मूल्य वर्धन (GVA) चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में 4.6 फीसदी बढ़ा है, जो जीडीपी वृद्धि 4.4 फीसदी से अधिक है. इससे शुद्ध प्रत्यक्ष कर में कमी का भी संकेत मिलता है. दूसरे अग्रिम अनुमान के मुताबिक वित्त वर्ष 2023 में नॉमिनल जीडीपी 272 लाख करोड़ रुपए रह सकती है. पहले अग्रिम अनुमान में इसके 273 लाख करोड़ रुपए रहने की उम्मीद जताई गई थी.

असामान्य सुधार का संकेत
कोरोना महामारी से पहले के स्तर से वृद्धि में अपेक्षाकृत इजाफा हुआ था. तब, दिसंबर तिमाही में यह बढ़कर 11.6 फीसदी हो गई, जो सितंबर तिमाही में 9.4 फीसदी थी, जो एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में असामान्य सुधार का संकेत भी देता है. ग्लोबल रेटिंग एजेंसी फिच ने वित्त वर्ष 2022-23 के लिए भारत की आर्थिक विकास दर अनुमान घटाकर 7 फीसदी कर दिया था. इससे पहले जून में 7.8 फीसदी का अनुमान जताया गया था. वहीं वित्त वर्ष 2023-24 के लिए ग्रोथ अनुमान घटाकर 6.7% कर दिया है, जबकि पहले यह 7.4% था. तो सवाल उठता है कि फिर गिरावट क्यों है? जब यह सवाल आता है तो जवाब में उपभोक्ता मांग का कमजोर पड़ना, जिसके चलते उत्पादन का गिरना है. इन दोनों के साथ ही निर्यात का लगातार घटते जाना है. व्यापार घाटा भी लगातार बढ़ा है. सवाल यह भी है कि आखिर ऐसी स्थिति क्यों आई, तो जवाब आता है कि जीएसटी की बढ़ोत्तरी, एमएसएमई सेक्टर का कमजोर होते जाना. नौकरियों के साथ ही अन्य रोजगार में कमी होना. इसके कारण भी मांग कमजोर पड़ी, जिसने उत्पादन को कमजोर किया और नतीजतन जीडीपी गिरती गई.

मैन्युफैक्चरिंग की रफ्तार घटी
अनुमानों से काफी कमजोर जीडीपी की वजह एसऐंडपी ग्लोबल के ताजा सर्वे की रिपोर्ट से स्पष्ट हो गई. भारत के मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र की रफ्तार फरवरी में मामूली घटकर 4 माह के निचले स्तर 55.3 पर पहुंच गई, जो जनवरी में 55.4 थी. भारत पर्चेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआई) में यह गिरावट के मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र के इनपुट लागत में बढ़ोतरी और विदेश से नए ऑर्डर में छिटपुट बढ़ोतरी की वजह से हुई है. एसऐंडपी ग्लोबल के सर्वे में बताया गया है, ‘मैन्युफैक्चरिंग उद्योग की इनपुट लागत बढ़ी है. फर्मों ने इलेक्ट्रॉनिक सामान, ऊर्जा, खाद्य, धातु और टेक्सटाइल की कीमतों में बढ़ोतरी का उल्लेख किया है.’ पीएमआई की भाषा में 50 से अधिक अंक का अर्थ है कि गतिविधियों में विस्तार हो रहा है, जबकि 50 से कम अंक संकुचन को दर्शाता है. 

ग्राहकों पर डाला लागत का बोझ
सर्वे में कहा गया है कि इनपुट लागत में बढ़ोतरी के बाद सिर्फ कुछ फर्मों ने ही बढ़ी लागत का बोझ ग्राहकों पर डाला है. विक्रय मूल्य बढ़ाया, जबकि 94 फीसदी ने कीमतों में कोई बदलाव नहीं किया है, जिससे बिक्री को समर्थन मिल सके. इसके बाद भी उपभोक्ताओं का रुझान उम्मीद के मुताबिक नहीं रहा. जिससे उत्पादन में गिरावट आई. हालांकि सरकार का दावा है कि, वित्त वर्ष 2022-23 की तीसरी तिमाही में रियल जीडीपी 40.19 लाख करोड़ रुपए पर पहुंच गई, जो पिछले साल की समान तिमाही में 38.51 लाख करोड़ रुपए थी. यह 4.4 फीसदी की विकास दर है. वहीं 2022-23 में नॉमिनल जीडीपी 69.38 लाख करोड़ पर पहुंच गई, जो पिछले साल की समान तिमाही में 62.39 लाख करोड़ थी. इसकी भी वृद्धि की रफ्तार 11.2 फीसदी की रही.

अमीरों के दान में आई कमी
दासरा ऐंड बेन ऐंड कंपनी की इंडिया फिलैंथ्रॉपी रिपोर्ट 2023 के अनुसार, देश के अति धनाढ्य लोगों द्वारा परोपकार के मकसद से दी गई दान राशि में काफी कमी आई है. अजीम प्रेमजी फाउंडेशन को छोड़कर अन्य सभी धनाढ्यों का योगदान वित्त वर्ष 2021 के 4,041 करोड़ की तुलना में वित्त वर्ष 2022 में घटकर 3,843 करोड़ रुपए रह गया. परोपकार से जुड़ी दान राशि में गिरावट इस दिलचस्प तथ्य के बावजूद आई है कि वित्त वर्ष 2022 में भारत में अति धनाढ्य लोगों की शुद्ध संपत्ति में 9.2 फीसदी की वृद्धि हुई. देश के 50,000 करोड़ रुपए की संपत्ति वाले शीर्ष स्तर पर मौजूद लोगों की संपत्ति में तो 19 फीसदी  की वृद्धि देखी गई. यह रिपोर्ट भी यही दर्शाती है कि गरीब और लोवर मिडिल क्लास बेहाल है. उसे मदद नहीं मिल रही कि वो बाजार भागे. जब तक गरीब उपभोक्ता बाजार नहीं पहुंचता, तब तक उत्पादन भी नहीं बढ़ता है.

GST वसूली से महंगे हुए उत्पाद
उम्मीद से काफी खराब हालात में जीडीपी की एक वजह जीएसटी का बढ़ना भी है. जीएसटी की वसूली बढ़ने से तमाम उत्पाद महंगे हो गए. रोटी से लेकर दूध तक सब काफी महंगे होने से उनकी खरीद कम हुई है. सरकार भले ही इस बात पर अपनी ही पीठ थपथपाये कि जीएसटी कलेक्शन बहुत अच्छा हुआ है. फरवरी 2023 में गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (GST) से 1.49 लाख करोड़ रुपए जुटाए हैं. सालाना आधार पर इसमें लगभग 12 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. फरवरी 2022 में 1,33,026 करोड़ रुपए का GST कलेक्शन हुआ था. वहीं जनवरी 2023 में ये 1,55,922 करोड़ रुपए था. वित्त मत्रांलय के अनुसार, इसमें CGST के रूप में 28,963 करोड़ रुपए, SGST से 36,730 करोड़ रुपए और IGST के रूप में 79,599 करोड़ रुपए का कलेक्शन हुआ है. IGST की राशि में 37,118 करोड़ रुपए वस्तुओं के आयात पर लगने वाले टैक्स के रूप में वसूला गया है. ऐसा इसलिए है कि तमाम जरूरी उत्पादों पर भी टैक्स थोप दिया गया, जिससे आमजन को अपनी रोजमर्रा की जिंदगी चलाना ही दूभर है ऐसे में वो खरीददारी कैसे करेगा? यदि सरकार को अर्थव्यवस्था सुधारनी है, तो चंद पूंजीपतियों की समृद्धि नहीं बल्कि आमजन की सेहत सुधारने की जरूरत है.


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