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मिस्टर मूर्ति सक्सेशन प्लानिंग पर आपने पहले जो कहा, वही सही था

इंफोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति का यह कहना कि इंफोसिस के प्रबंधन से परिवार को बाहर रखना गलत था, कई सवाल खड़े करता है.

बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 year ago

  • प्रबल बासु रॉय

इंफोसिस भारतीय कॉर्पोरेट क्षेत्र के लिए कई मायनों में निर्विवाद पथप्रदर्शक रही है. उसने बहुत कुछ ऐसा किया है, जिसने लोगों को चौंकाया है, उत्तराधिकारी योजना भी इससे अछूती नहीं है. नंदन नीलेकणी ने जिस प्रतिभा के साथ कंपनी को संभाला, वो कंपनी की उत्तराधिकारी योजना (Succession Planning) का ही परिणाम है. नीलेकणि दूसरी बार कंपनी की बागडोर संभाल रहे हैं और कंपनी को खड़ा कर इस मुकाम पर पहुंचाने वाले नामों में से एकमात्र ऐसे हैं, जो अभी भी सक्रिय हैं. हालांकि, अब वह किसी ऐसे व्यक्ति की तलाश में हैं, जो कंपनी की कमान संभालकर इसे नई ऊंचाइयों पर ले जा सके. कुछ वक्त पहले उन्होंने कहा था कि यदि आप किसी को जिम्मेदारी देते हैं और यह काम नहीं करता, तो फिर कोई Plan-B नहीं है, क्योंकि मैं 75 साल की उम्र में वापस नहीं आ सकता. 

दर्शाता है मूर्ति की पीड़ा 
इस बीच, इंफोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति का एक बयान कई सवाल खड़े करता है. उनका यह कहना कि इंफोसिस के प्रबंधन से परिवार को बाहर रखना गलत था, उनके विचारों की स्पष्टता के बजाय उनकी पीड़ा को अधिक दर्शाता है. यह उनकी उस छवि से एकदम जुदा बयान है, जिसका प्रदर्शन उन्होंने सालों तक कंपनी का नेतृत्व करते हुए किया. हमारे समाज में भाई-भतीजावाद, अपने ही लोगों को विरासत सौंपने के अनगिनत मामले हैं और ये काफी हद तक एक संस्कृति का रूप ले चुका है. हालांकि, इंफोसिस इस मामले में एक पथप्रदर्शक रही है. उसने भाई-भतीजावाद के कलंक से मुक्त एक कंपनी के निर्माण की इच्छा रखते हुए पेशेवरों की एक पूरी नई पीढ़ी को जन्म दिया है. भाई-भतीजावाद संगठनों को हर ओर से नुकसान पहुंचाता है, और इसके कई उदाहरण हम देख चुके हैं.

मूल्यों को स्पष्ट करना महत्वपूर्ण
जब संगठनों का निर्माण किया जाता है, तो उसके मूल मूल्यों को स्पष्ट करना महत्वपूर्ण है, और साथ ही यह भी कि प्रमोटर कैसी संस्कृति विकसित करना चाहते हैं, क्योंकि कंपनी स्केलिंग करते समय पेशेवरों के साथ जुड़ती है. यह एक 'सामाजिक अनुबंध' है, जो अन्य बातों के साथ-साथ, प्रतिभा को आकर्षित करने, संभावित करियर विकल्प प्रदान करने और कंपनी के भीतर फोस्टर करने की इच्छा रखने वाले सामान्य निर्णय के सिद्धांतों को निर्धारित करने के लिए प्रतिबद्ध है. यह कोई छोटा मामला नहीं है और, कई मामलों में, कंपनी के मूलभूत लोकाचार - की आत्मा को प्रस्तुत करता है.

प्रदर्शन प्रभावित होने लाजमी
इसलिए, यह थोड़ा आश्चर्यजनक है कि मूर्ति ने इस तरह के एक मौलिक सिद्धांत के बारे में सार्वजनिक रूप से जाने का फैसला किया है, जिस पर इंफोसिस का निर्माण किया गया है. भाई-भतीजावाद से व्यक्तिगत तौर पर निश्चित रूप से बड़े निगमों का प्रबंधन करने की ताकत मिल सकती है, लेकिन यह कंपनी के लिए कितना लाभकारी होगा, ये सटीक रूप से नहीं कहा जा सकता. क्योंकि ज्यादातर मामलों में कथित क्षमता और आकी गई क्षमता के बीच की बारीक रेखा स्थापित करना अक्सर बहुत मुश्किल होता है. योग्य पेशेवरों के बजाए परिवार के सदस्यों को कारोबार की बागडोर सौंपने से उसका प्रदर्शन प्रभावित होना लाजमी है और आईटी सेक्टर सहित हमारे आसपास के कॉरपोरेट्स में ऐसे तमाम उदाहरण मौजूद हैं.  

मौजूद हैं कई उदाहरण  
शायद एकमात्र पहलू जो परिवार द्वारा प्रबंधन को अपने हाथों में लेने का समर्थन करता है वो यह कि कंपनी में उनकी उच्च हिस्सेदारी शेयरधारक मूल्य में स्थिरता के हित में अधिक सोचा-समझा निर्णय लेने को प्रेरित करती है. हालांकि यह बहस का मुद्दा है. जेपी इंडस्ट्री से लेकर रिलायंस एडीएजी और जीवीके समूह तक कॉर्पोरेट क्षेत्र ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है, जहां यह ऐसा नहीं हुआ. इंफोसिस के पास लीडरशिप पोजीशन संभालने के लिए प्रतिभा की कभी कमी नहीं रही. 2000 के दशक के मध्य में नंदन ने पद छोड़ दिया था. नंदन के सामने कई बेहतरीन साल थे, लेकिन उन्होंने कंपनी चलाने में अन्य संस्थापकों के लिए रास्ता बनाने के लिए अपने कदम पीछे खींच लिए. यहां से वह जिस रास्ते पर आगे बढ़े, उससे देश का जरूर फायदा हुआ, लेकिन इंफोसिस को नेतृत्व हानि का सामना करना पड़ा. 

नहीं होना चाहिए पछतावा
हममें से कोई इसका पता नहीं लगा सकता कि मिस्टर मूर्ति ने ऐसा बयान क्यों दिया? क्या यह ट्रायल बैलून था? या यह पछतावे की वास्तविक भावना थी? क्या हमें प्लान B न होने वाली नंदन नीलेकणी की टिप्पणी के साथ इसकी तुलना करनी चाहिए? भविष्य में चाहे जो भी हो, लेकिन अभी मुझे लगता है कि मूर्ति संस्थापकों के परिवारों को प्रबंधन से बाहर रखने के अपने पूर्व के फैसलों में बिलकुल सही थे...और उन्हें इस निर्णय पर पछतावा नहीं होना चाहिए.
 


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