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कस्टमर्स की प्रॉब्लम का हल क्यों नहीं मिल पाता? कंपनियों को इसके लिए क्या करना चाहिए?
कई बार किसी प्रोडक्ट को लेकर आपको भी ऐसी किसी न किसी समस्या का सामना करना पड़ा होगा, जिसका सॉल्यूशन अब तक नहीं मिला होगा.
बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 year ago
- गौतम महाजन
(Customer Value Starvation के लेखक)
नई दिल्ली: कंपनियों में शिकायतों को कम करने के लिए कोई विशेष प्रयास नहीं किया जा रहा है. शिकायतों और ग्राहकों की समस्याओं को कभी भी प्राथमिकता नहीं दी जाती है. कस्टमर एफर्ट अधिकांश कंपनियों द्वारा ग्राहकों को सिर्फ प्रसन्न करने पर ही आधारित है.
ग्राहकों के सामने अधिकांश समस्याएं छोटी-छोटी और दिमाग खराब करने वाली होती हैं. इसे और अच्छी तरह से समझने के लिए Customer Value Starvation किताब जरूर पढ़ें जिसे मैंने वाल्टर विएरा के साथ मिलकर लिखा है.
शिकायतों की संख्या शून्य भी हो सकती है
सही दिशा में किए गए प्रयास से शिकायतों की संख्या शून्य भी हो सकती हैं और इन्हीं प्रयासों को सार्थक प्रयास कहा जाएगा. शून्य दोष तक पहुंचने के लिए अधिकांश कंपनियों के पास प्रक्रियाएं और सोच भी हैं, पर उन्होंने इनपर काम नहीं किया. कस्टमर्स को रिलीफ देने की दिशा में उन्हें एक और कदम बढ़ाने की जरूरत है. कोई भी दोष आखिरकार शिकायतों को ही जन्म देती है. शून्य दोष का मतलब सामान्य रूप से यह होता है कि किसी भी प्रोडक्ट में कोई खामी न पाई जाए. लेकिन यह सर्विस, वेबसाइट इंफॉर्मेशन, कॉल वेटिंग, कस्टमर्स इश्यू और अन्य आसानी से सॉल्व होने वाली समस्याओं पर लागू नहीं होता है. कस्टमर वैल्यू बढ़ाने का यह एक आसान और अच्छा तरीका है.
Epson प्रिंटर का उदाहरण
उदाहरण के लिए, मेरा Epson प्रिंटर कभी-कभी स्याही के लेवल की जांच करता है. जब-जब ऐसा होता है, तो यह प्रिंट और स्कैन कमांड को ओवरराइड कर देता है. मुझे इस अलर्ट को प्रिंटर पर मैन्युअली बंद करना पड़ता है. Epson सर्विसमैन अपना कंधा सिकोड़कर इस शिकायत के बारे में कहता है कि आपको इसके साथ ही रहना होगा. (मतलब इसकी शिकायत न करें. शिकायतों को कभी शून्य न करने का यह एक निश्चित तरीका है.)
CEO से सवाल
क्या अधिकारी और CEO वास्तव में ग्राहकों की समस्याओं को समझते हैं? क्या वे वास्तव में परवाह करते हैं या Epson की ही तरह इसे दूसरी तरह देखते हैं? क्या उनके पास समस्या का समाधान करने वाला कोई ऐसा है, जिसका पहला काम समस्याओं को देखना और उसे पहचानकर उसका समाधान निकालना है?
वे इनके बारे में क्या कर रहे हैं? उन्हें क्या करना चाहिए?
ग्राहकों की समस्याएं, उनके संभावित समाधानों और भविष्य में ऐसा दोबारा न हो, यह सुनिश्चित करने के लिए क्या CEO कोई सेशन करते हैं? यदि वे ऐसा करते हैं तो मैंने ऐसी मीटिंग्स के बारे में कभी नहीं सुना है.
समस्याएं दो तरह की होती हैं: कंपनियों के अंदर और बाहर
कंपनियों के अंदर: ये वे समस्याएं होती हैं, जिसमें कर्मचारियों को एक-दूसरे से और बाहरी दुनिया से निपटने में परेशानी आती है. जैसे- जवाब न होना, गलत जानकारी होना, जवाब न दे पाना या निर्णय न ले पाना या निर्णय लेने वालों तक न पहुंच पाना, वादा करने के बाद भी कॉल वापस न कर पाना, समस्या को हल करने में सक्षम न होना. कभी-कभी वे सशक्त तो हो सकते हैं, लेकिन उसे सॉल्व करने में सक्षम नहीं होते. (जिसका अर्थ है कि उनके पास ग्राहकों की समस्याओं को हल करने की शक्ति तो है लेकिन उन्हें हल करने के साधन और उपकरण नहीं हैं)
एक कर्मचारी उस वक्त क्या करता है जब वह सुनता है कि लोकपाल ग्राहक की शिकायतों का जवाब नहीं देता है या शिकायत प्रकोष्ठ काम नहीं करता है. इसका एक उदाहरण भी है मेरे पास. मुझे सिटी बैंक के साथ यह समस्या तब हुई जब मुझे लोकपाल के पास समस्या को आगे बढ़ाने के लिए कहा गया, जिन्होंने मुझे कभी जवाब नहीं दिया.
कंपनियों के बाहर: आपको लगता है कि कर्मचारी ग्राहकों की समस्याओं पर ध्यान नहीं देते हैं? ज्यादातर ऐसा ही करते हैं, क्योंकि वे ग्राहकों से सिर्फ बात ही करते हैं. अधिकांश समय, उनके पास उन्हें ठीक करने या उन्हें आगे बढ़ाने का कोई तरीका नहीं होता है. ऐसी समस्याएं कंपनियों के बाहर की श्रेणी में आती हैं, क्योंकि उसका कोई सॉल्यूशन ही मौजूद नहीं होता.
क्या है इस समस्या का परमानेंट समाधान?
इसका समाधान तभी हो सकता है, जब कंपनियां किसी प्रॉब्लम सॉल्वर की हायरिंग करें और सभी कर्मचारियों के लिए यह जरूरी हो कि वे उसे ग्राहक की समस्या या कंपनी के सिस्टम में दोष के कारण हो रही समस्या से अवगत कराएं. एक चीफ प्रॉब्लम सॉल्वर और शून्य शिकायतों के बारे में सोचें. यदि आप इसमें कामयाब हो जाएंगे तो फिर अपनी सभी प्रतिस्पर्धाओं की तुलना में आगे निकल जाएंगे.
समस्या का यह एक उदाहरण है, जिन्हें चीफ प्रॉब्लम सॉल्वर होने पर आसानी से हल किया जा सकता है:
Tata Play: मैं अपने एनुअल कॉन्ट्रैक्ट को रिन्यू करना चाहता था, पर उसे रिन्यू करने का कोई ऑप्शन ही नहीं है. इसका एकमात्र विकल्प रिचार्ज करना ही है और वो भी उतनी राशि के लिए जिसका मैं चुनाव करूंगा. लेकिन एनुअल पेमेंट क्या है? क्या एकमुश्त भुगतान के लिए कोई छूट है? इसलिए, मैंने नेट से बाहर निकलने का फैसला किया और WhatsApp के जरिए कोशिश की. WhastApp के इस्तेमाल के बीच में सूचना वाले पेज की जगह क्रिकेट का विज्ञापन आ गया. आखिरकार पेमेंट करने के लिए मुझे फोन करना पड़ा. यह इतना मुश्किल क्यों है? भुगतान करने में एक घंटा लग गया. क्या Tata Play इस बात की केयर करता है? Tata Paly तो शायद यह भी नहीं जानता कि ये समस्याएं मौजूद हैं और यदि वे इसके बारे में जानते हैं, तो उन्हें इससे कोई परेशानी नहीं है.
एक चीफ प्रॉब्लम सॉल्वर होता तो वह इसे सॉल्व करने की पूरी कोशिश करता. असली समस्या का पता लगाने के लिए वह भुगतान करने के लिए एक मोक एक्सरसाइज भी कर लेता, जिससे उसे असली समस्या का पता चल जाता और फिर वह संभवत: इसका कोई न कोई समाधान भी निकाल लेता.
समस्या का पता लगाने के लिए डेटा का भी कर सकते हैं उपयोग
कुछ लोग कहते हैं कि समस्याओं का पता लगाने के लिए डेटा का उपयोग करना चाहिए. इससे समस्या सामने भी आ सकती है या नहीं भी आ सकती है. डेटा का उपयोग करने के लिए, किसी को पता होना चाहिए कि उसे कौन सा डेटा देखना है. जैसे- वेटिंग टाइम का डेटा, रिपीट कॉल का डेटा, लॉन्ग कॉल का डेटा और कॉल इतने लंबे समय तक क्यों चलती हैं? क्या ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि ग्राहक अपनी बात बार-बार दोहराते हैं या सर्विस पर्सन के पास ग्राहकों के प्रॉब्लम का कोई सॉल्यूशन ही नहीं होता और वे उन्हें उलझाने के लिए यह बताते रहते हैं कि क्या आपने यह प्रॉसेस किया, क्या आपने वह प्रॉसेस किया?
चीफ प्रॉब्लम ऑफिसर का काम
चीफ प्रॉब्लम ऑफिसर का काम ग्राहकों से बात करके, कंपनी के भीतर के लोगों और फ्रंट-लाइन लोगों से बात करके समस्याओं का पता लगाना है. उसका काम समस्याओं का हल करना है. उसे सिर्फ एक कॉल सेंटर बनकर नहीं रहना चाहिए, बल्कि उन्हें सभी समस्याओं को इकट्ठा करना चाहिए और उसे सामान्य तरीके से हल करना चाहिए.
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