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'सुख और खुशी के अंतर को समझ गए, तो समझो सब अच्छा है' 

खुश रहना सीखा भी जा सकता है. आप कोई कठिन या नापसंद काम पूरा कर लें तो खुशी होती है.

बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 year ago

  • पीके. खुराना, हैपीनेस गुरु 

आध्यात्मिक रूप से सर्वाधिक उन्नत होते हुए भी आज भारतवर्ष में ऐसे लोगों की संख्या बहुत ज्यादा है जो दुखी हैं, उदास हैं, निराश हैं और अकेलेपन की समस्या से जूझ रहे हैं. दरअसल लोग दो अलग-अलग चीजों को एक-दूसरे से कन्फ्यूज कर रहे हैं. उन्नत तकनीक, परिवहन के साधन और धन-संपत्ति से सुख मिल सकता है, खुशी नहीं. आप आरामदायक सोफे पर बैठे हों तो यह सुख है, लेकिन उस सोफे पर बैठा व्यक्ति भी उदास हो सकता है, हताश हो सकता है, चिंता में हो सकता है, गुस्से में हो सकता है. सुख अलग चीज है और खुशी बिलकुल अलग. भौतिक जीवन में सफलता आपको सुख दे सकती है, पर यह खुशी भी दे, यह जरूरी नहीं है. 

कन्फ्यूजन ही समस्या की जड़
कृपया भौतिक जीवन की सफलता को और उससे मिलने वाले सुख को खुशी से कन्फ्यूज मत कीजिए. ये कन्फ्यूजन ही समस्या की जड़ है. हम खुशी को भुलाकर सफलता के पीछे भागते हैं और जब सफलता मिल जाती है तो पता चलता है कि यहां तो खुशी है ही नहीं. समाज में ज्यादातर लोगों के दुखी होने का कारण ही यह है कि हम खुशी को सुख में ढूंढ़ रहे हैं, गलत जगह ढूंढ़ रहे हैं. खुशी वहां है ही नहीं तो मिलेगी कैसे? हार्वर्ड विश्वविद्यालय में पिछले 75 साल से एक शोध चल रहा है. इस रिसर्च का विषय है कि किस तरह का व्यक्ति खुश रहता है. 

ये दो बातें रहीं कॉमन
शोध में हार्वर्ड विश्वविद्यालय के उन पूर्व छात्रों को ट्रैक किया गया जो क्लास में अव्वल रहते थे. इन छात्रों में दो लोग अमेरिका के राष्ट्रपति बने, कई लोग सांइटिस्ट बने, उद्यमी बने और कुछ ऐसे भी थे जो अपराध की दुनिया में जा धंसे और जेल गये. इनमें जो लोग खुश रहे, उनमें सिर्फ दो ही बातें कॉमन थीं कि इन सब लोगों ने अपने रिश्ते बरकरार रखे. सफल रहे या कम सफल हुए पर रिश्तों पर ध्यान दिया, जिससे जीवन भर उन्हें ऐसे लोगों का साथ मिला जो उनकी खुशी में खुश होते थे. दूसरा कॉमन फैक्टर यह था कि वे हर रोज कोई न कोई ऐसा काम जरूर करते थे जिससे खुशी मिलती हो. किसी दूसरे व्यक्ति की खुशी में शामिल होना, किसी की सहायता कर देना, प्रकृति के सानिध्य में समय बिताना, बच्चों के साथ रहना, हल्का व्यायाम करना, प्रेरक साहित्य पढ़ना आदि में से कुछ न कुछ ऐसा जरूर होता था जो उन्हें मोटिवेटिड और खुश रखे.

सफलताओं का जश्न मनाएं
खुश रहना सीखा भी जा सकता है. आप कोई कठिन या नापसंद काम पूरा कर लें तो खुशी होती है. आप अपनी देखभाल करें, मनपसंद भोजन करें, छोटी-बड़ी सफलताओं का जश्न मनाएं तो आपको खुशी मिलती है. ऐसी हर स्थिति में हमारा दिमाग डोपामाइन नाम का एक कैमिकल रिलीज करता है जिसे विज्ञान "रिवार्ड कैमिकल" कहता है. इसी तरह अगर आप ध्यान करें, हल्की दौड़ लगाएं, तैराकी करें, साइकिल चलाएं, हल्की धूप में बैठें, प्रकृति के सानिध्य में जाएं, पेड़-पौधों, फूलों के बीच जाएं तो आपका दिमाग सीरोटोनिन नाम का कैमिकल रिलीज करता है, जो आपका मूड सैट कर देता है. 

रिलीज होते हैं ये कैमिकल 
अगर आप घरेलू पालतू पशु के साथ खेलें, छोटे बच्चे के साथ खेलें, किसी प्रिय व्यक्ति का हाथ पकड़ें, किसी को गले लगाएं और किसी की सच्ची प्रशंसा करें या शाबासी दें तो भी आप खुश हो जाते हैं क्योंकि तब हमारा दिमाग "लव कैमिकल" औक्सीटोसिन रिलीज करता है. अगर आप कोई व्यायाम करें, हंसें, कोई कामेडी देखें या गहरे रंग की चाकलेट खाएं तो हमारा दिमाग एंडॉरफिन नाम का कैमिकल रिलीज करता है. यह एक पेन किलर का काम करता है. अकेलापन महसूस होने की स्थिति में या उदासी की हालत में इनमें से कुछ भी करें, यानी सैर करें, व्यायाम करें, तैराकी करें, प्रकृति का आनंद लें, बच्चों के साथ खेलें, किसी से गले मिलें तो आपका मूड बदल जाएगा और आपको खुशी मिलेगी.


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