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विपरीत वैश्विक परिस्थितियां: भारत चिंतित है, आशंकित नहीं

दुनिया पहले से ही तमाम तरह की परेशानियों का सामना कर रही है. ऐसे में चीन में कोरोना के नए मामलों ने उसकी चिंताओं में केवल इजाफा किया है.  

बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 year ago

चीन से निकली ताजा रिपोर्टें एक अजीबोगरीब तस्वीर पेश करती हैं. बीजिंग की सड़कें लोगों से भरी हुई हैं, एक जीरो टोलेरेंस-कोविड प्रणाली के बाद राहत मिली है. जबकि BF.7 कोविड स्ट्रेन देश में कहर बरपा रहा है, चीन के अस्पताल बीमार और बुजुर्गों से भरे हुए हैं, एक अपारदर्शी चीनी प्रणाली बाहरी दुनिया के लिए चीजों को आसान बनाने के लिए ज्यादा कुछ नहीं कर रही. अनौपचारिक अनुमान कहते हैं कि वहां मरने वालों की संख्या हजारों में हो सकती है, लेकिन आधिकारिक तौर पर चीन सुपर सेंसर की भूमिका निभाता है. क्रिसमस वाले दिन उसने कहा कि कोरोना से किसी की जान नहीं गई. हालांकि, दुनिया कोई चांस नहीं ले रही है. भारत ने अमेरिका, इटली, जापान, फ्रांस जैसे अन्य देशों के अलावा, चीन से आने वालों के लिए कोविड स्क्रीनिंग को अनिवार्य कर दिया है. 90 प्रतिशत दोहरे टीकाकरण (बूस्टर डोज कवरेज चिंता का विषय है) के साथ, भारत की कोरोना वायरस के किसी भी नए वैरिएंट से लड़ाई के लिए तैयारियां मजबूत हैं.

2023: अनिश्चितताओं का वर्ष
दुनिया पहले से ही तमाम तरह की परेशानियों का सामना कर रही है. उदाहरण के तौर पर रूस-यूक्रेन युद्ध, वैश्विक मंदी, विशेष रूप से यूरोप और चीन में, बढ़ती मुद्रास्फीति और जलवायु परिवर्तन ऐसे में चीन में कोरोना के नए मामलों ने उसकी चिंताओं में केवल इजाफा किया है.  
इस पर विचार करें: एक साल पहले अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) सहित तमाम वैश्विक अनुमानों में कहा गया था कि भारत कैलेंडर वर्ष 2023 में 10 प्रतिशत के करीब की दर से विकास करेगा. और फिर रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण कर दिया. हाल ही में 3.25 लाख करोड़ रुपये की अनुदान की पूरक मांग, बड़े पैमाने पर उर्वरक और खाद्य सब्सिडी के कारण थी, जो यूक्रेन युद्ध के कारण जरूरी हो गई थी. केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 21 दिसंबर को राज्यसभा में कहा था, "...अब हम जो लेकर आए हैं, उसकी जनवरी में बजट तैयार करते समय उम्मीद नहीं की जा सकती थी." वैश्विक अनिश्चितताओं और भू-राजनीतिक उथल-पुथल ने अर्थव्यवस्थाओं, जीवन और आजीविका को तहस-नहस कर दिया है. इस पर तत्काल कार्रवाई की जरूरत है. सबसे तेजी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था में भी, वे इंडिया इंक के लिए बड़ी चुनौतियां पैदा करते हैं.

इंडिया इंक को चिंता है, घबराहट नहीं
BW Businessworld के साथ बातचीत में, FICCI के अध्यक्ष सुभ्रकांत पांडा कहते हैं: "अल्पावधि में कुछ मुश्किल होगी... (लेकिन) हमें अपना ध्यान मध्यम अवधि और दीर्घकालिक क्षमता पर केंद्रित रखना चाहिए." मारुति सुजुकी इंडिया के चेयरमैन आरसी भार्गव कहते हैं, 'कोई भी देश गंभीर अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों से अछूता नहीं रह सकता. हालांकि, मजबूत घरेलू बाजार और प्रतिस्पर्धी तरीके से अपनी जरूरतों को पूरा करने की क्षमता इन विपरीत परिस्थितियों के प्रभाव को कम करने में मदद करती है. अच्छी नीतियों से प्रतिकूल प्रभावों को कम करने में भी मदद मिलती है. सौभाग्य से, भारत इन मामलों में अन्य देशों की तुलना में बेहतर स्थिति में है.”

ब्रिटानिया इंडस्ट्रीज के प्रबंध निदेशक वरुण बेरी कहते हैं: “विपरीत वैश्विक परिस्थितियों के बावजूद, मेरा मानना है कि भारत 2023 में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में बना रहेगा. हमारे पास एक मजबूत घरेलू बाजार है. उपभोक्ता मांग मजबूत रही है और कोरोना से पहले के स्तर को पार कर गई है. हम मुद्रास्फीति के दबावों में भी कमी देख रहे हैं जिससे खपत में और तेजी आनी चाहिए."

IndiaMART के संस्थापक और सीईओ दिनेश अग्रवाल कहते हैं: “चीन में COVID-19 मामलों में वृद्धि और दुनिया के विभिन्न हिस्सों में हाल के युद्ध संकट से दुनिया की फाइनेंशियल रिकवरी को खतरा है. लेकिन, पिछले दो वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था ने काफी लचीलापन दिखाया है, क्योंकि भारत सरकार ने अपनी विकास-प्रेरित नीतियों के माध्यम से अर्थव्यवस्था की रिकवरी में तेजी लाने पर ध्यान केंद्रित किया है. मेरा मानना है कि अगले कुछ साल भारत की आर्थिक वृद्धि के लिए आशाजनक हैं”.

भारत अच्छा कर रहा है
यदि 2022 वित्तीय वर्ष की अंतिम दो तिमाहियां 2023 में रुझानों का सूचक हैं, तो यह "रिकवरी, ग्रोथ और रिकैलिब्रेशन का साल" होगा. वर्ल्ड बैंक को उम्मीद है कि 2022-2023 के वित्तीय वर्ष में भारत की वास्तविक जीडीपी 6.9 फीसदी की दर से बढ़ेगी, जिसे इसने अपने पिछले अनुमान में 6.5 फीसदी बताया था, बाद में उसे संशोधित किया गया. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) भी भारत को एक निराशाजनक वैश्विक परिदृश्य, जिसमें विकास दर घटकर 2.7 फीसदी रहने की उम्मीद है, के बीच अपेक्षाकृत अच्छा प्रदर्शन करते हुए देखता है. आईएमएफ की डिप्टी मैनेजिंग डायरेक्टर गीता गोपीनाथ ने भारत की हाल की यात्रा में कहा था, "भारत अपेक्षाकृत अच्छा कर रहा है और इसकी कुछ तिमाहियों में 4-6 फीसदी की वृद्धि हुई है. यह 2020 में हुए संकुचन की वजह से आए गैप को तेजी से कम कर रहा है."

विश्व बैंक ने दिसंबर की शुरुआत में "नेविगेटिंग द स्टॉर्म" (Navigating the Storm) नामक एक रिपोर्ट में कहा था कि "भारतीय इकोनॉमी अधिकांश अन्य उभरते बाजारों की तुलना में ग्लोबल स्पिलओवर के मौसम में अपेक्षाकृत अच्छी स्थिति में है". गोखले इंस्टीट्यूट ऑफ पॉलिटिक्स एंड इकोनॉमिक्स के वाइस चांसलर और आदित्य बिड़ला ग्रुप के पूर्व चीफ इकोनॉमिस्ट अजीत रानाडे ने BW Businessworld से कहा: "चीन की मंदी सहित वैश्विक मंदी निस्संदेह भारत को प्रभावित करेगी, लेकिन हम अभी भी एक उचित घरेलू खपत और निवेश के साथ-साथ निर्यात प्रतिस्पर्धा पर ध्यान केंद्रित करने के साथ 6 से 6.5 फीसदी की वृद्धि हासिल कर सकते हैं. इंडिया इंक भारत की आर्थिक ताकत के लिए मीडियम से लॉन्ग टर्म स्ट्रक्चरल फीचर्स पर ध्यान केंद्रित करने और उसके अनुसार अपने निवेश और रणनीति की योजना बनाने के लिए अच्छा करेगा. भारत का एक बड़ा घरेलू बाजार है, जहां उपभोक्ता खर्च, सार्वजनिक और निजी क्षेत्र से नया निवेश विकास को बनाए रख सकता है."

बेरी कहते हैं: "इनपुट लागत में कमी, उच्च क्षमता उपयोग और डिलेवरेज्ड बैलेंस शीट (Deleveraged Balance Sheets) 2023 में बेहतर कॉर्पोरेट क्षेत्र के प्रदर्शन के लिए शुभ संकेत देते हैं." कॉर्पोरेट सेक्टर अपनी एसेट को बेचकर अपनी बैलेंस शीट से कर्ज को कम कर रहे हैं. यह जून 2022 में सकल घरेलू उत्पाद का 87.7 प्रतिशत हो गया है, जो मार्च 2016 में लगभग 97.4 प्रतिशत था. बेरी आगे कहते हैं, "मजबूत आर्थिक बुनियादी सिद्धांतों और विवेकपूर्ण मैक्रो प्रबंधन के साथ-साथ बुनियादी ढांचे में सरकार का बढ़ा हुआ खर्च वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं को कम करते हुए उच्च जीडीपी विकास की सुविधा प्रदान करेगा." आरिन कैपिटल के अध्यक्ष मोहनदास पई ने BW Businessworld से कहा: "भारत अच्छी स्थिति में है क्योंकि हमारी बैंकिंग प्रणाली मजबूत और स्वच्छ है, इंफ्रा में निवेश ने हमें और अधिक उत्पादक बना दिया है. हां, निर्यात को नुकसान होगा और हमें इससे निपटने की जरूरत है”.

देश के लिए चिंता के विषय
निर्यात में गिरावट एक चिंता का विषय है. 2015-16 के बाद निर्यात 2022-23 की दूसरी तिमाही में, सबसे अधिक था. लगभग एक वर्ष तक स्थिरता के बाद, निर्यात में नरमी का रुख है, क्योंकि कई देशों में मंदी देखी गई. अक्टूबर में माल निर्यात में 17 फीसदी की गिरावट आई थी. जबकि नवंबर के महीने में इसमें 0.6 प्रतिशत की मामूली वृद्धि देखी गई थी. हालांकि, भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति पिछले दो वर्षों की तुलना में काफी बेहतर है. तिमाही दर तिमाही सरकार की कमाई में लगातार इजाफा हुआ है, टैक्स कलेक्शन बढ़ा है. रेलवे, व्यापार और वाणिज्य से आय सकारात्मक है. डायरेक्‍ट टैक्‍स संग्रह के आंकड़े भी उत्साहजनक हैं. हाल ही में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 550 अरब डॉलर को पार कर गया है. जबकि घरेलू खपत में वर्ष 2022 में सुधार देखा गया है, और कर राजस्व में वृद्धि हुई है, जीडीपी अनुपात में सार्वजनिक ऋण बहुत अधिक है. लेकिन निजी पूंजीगत व्यय में इजाफा नहीं हुआ है.  केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने पिछले बजट में पूंजीगत व्यय को 35 फीसदी बढ़ाकर 7.5 लाख करोड़ रुपये कर दिया था. हाल ही में उद्योग के प्रतिनिधियों के साथ बातचीत में, वित्त मंत्री ने संकेत दिया कि यह प्रवृत्ति उनके पांचवें बजट में जारी रहेगी, जिसकी घोषणा एक महीने के भीतर होने की उम्मीद है.

मुद्रास्फीति को वश में करना
यह कहा जाता है कि भारत में मुद्रास्फीति को अच्छी तरह से मैनेज किया गया है, लेकिन विश्व स्तर पर यह प्रमुख समस्याओं में से एक है. जेपी मॉर्गन के मुख्य भारतीय अर्थशास्त्री और प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद में अंशकालिक सदस्य, साजिद चिनॉय ने हाल ही में कहा: "...जरा सोचिए कि पिछले 12 महीनों में क्या हुआ: हमने दुनिया भर में पिछले 50 वर्षों में सबसे ज्‍यादा महंगाई दर देखी, हमारे पास 40 वर्षों में सबसे आक्रामक और समकालिक सख्त मौद्रिक नीति रही, हमारे पास कई वर्षों तक सबसे मजबूत अमेरिकी डॉलर रहा... हमने पिछले 46 वर्षों में चीन की सबसे कमजोर विकास दर देखी.” इनमें से कोई दो कारक भी वैश्विक अर्थव्यवस्था को मंदी में पहुंचा सकते हैं. 

भारत में मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने भी दरों में बढ़ोतरी की. FICCI के सुब्रकांत पांडा की तरह कई लोगों का मानना है कि कोविड के बाद के प्रोत्साहन पैकेजों ने काफी मदद की. राज्यसभा में अपने जवाब में केंद्रीय वित्त मंत्री ने कहा था: “प्रधानमंत्री ने जिस तरीके से कोविड के दौरान राहत देने और चिंताओं को दूर करने का फैसला किया, और अलग-अलग हितधारकों से सलाह-मशवरे ने हमें इस रिवाईवल में मदद की और हमें सुरक्षित रास्ते पर रखा, जिससे हम मंदी में नहीं फंसे”.

नौकरियां, मैन्युफैक्चरिंग और चीन
अनुदान की पूरक मांग पर राज्यसभा में चर्चा के दौरान, केंद्रीय वित्त मंत्री ने रोजगार सृजन यानी जॉब क्रिएशन से जुड़े सवालों के जवाब भी दिए. उन्होंने कहा कि नौकरियां उत्पन्न की जा रही हैं. ईपीएफओ रिकॉर्ड का हवाला देते हुए उन्होंने बताया कि सितंबर, 2022 में नेट पे-रोल में इजाफा 46 प्रतिशत अधिक है. उदाहरण के लिए, अन्य सरकारी प्रवक्ताओं ने भी तर्क दिया है कि अप्रैल, मई, जून, जुलाई और अगस्त के महीनों में देश में औसतन 15-16 लाख नौकरियां पैदा हुई हैं. दूसरी ओर, रघुराम राजन और अन्य का कहना है कि 2018-19 और 2019-20 की अवधि में उद्योग और सेवाओं के रोजगार में केवल 98 लाख की वृद्धि हुई. जबकि इसी अवधि में कृषि से जुड़े रोजगार में 3.4 करोड़ का इजाफा हुआ.

कई लोग इस बात से सहमत हैं कि भारत अतीत में जिस मौके से चूक गया था, अब उसका लाभ उठाने का अवसर है. चीन के हालातों ने उसे मैन्युफैक्चरिंग में अपनी भूमिका को बड़ा करने का मौका दिया है. कोरोना की वजह से चीन तमाम तरह की परेशानियों से गुजर रहा है और वैश्विक कंपनियां अब चीन का विकल्प तलाश रही हैं. फिक्की के पांडा कहते हैं: “चाइना प्लस वन वापस लौट आया है. चीन प्लस वन के लिए भारत पसंदीदा विकल्प होना चाहिए. चीन से निकलने वाला निवेश वियतनाम, मैक्सिको भी जा रहा है. भारत एक आकर्षक विकल्प हो सकता है, यदि वह विदेशी कंपनियों के लिए व्यवसाय करना आसान बनाता है. 
 
उदाहरण के तौर पर ऐसी वैश्विक कंपनियों के लिए रियायती वाली कर व्यवस्था बनाई जा सकती है, जो अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं को स्थानांतरित करना या आगे बढ़ाना चाहती हैं. इसमें PLI के तहत निर्यात में उच्च क्षमता वाले क्षेत्रों को भी शामिल किया जा सकता है. भारत को मैन्युफैक्चरिंग हब बनाना नरेंद्र मोदी सरकार की प्राथमिकता रही है. जीडीपी में मैन्युफैक्चरिंग की हिस्सेदारी करीब 16 फीसदी है, जो मॉर्गन स्टेनली के मुताबिक,  2031 तक 21 फीसदी तक बढ़ सकती है. कई पूर्वी एशियाई देशों में जीडीपी में मैन्युफैक्चरिंग की हिस्सेदारी 30 फीसदी से ज्यादा है.

17 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था वाले चीन को विस्थापित करना भले ही आसान न हो,  लेकिन भारत निश्चित रूप से एक व्यवहार्य वैकल्पिक केंद्र बन सकता है. एक हालिया पेपर में अरविंद सुब्रमण्यन और जोश फेलमैन ने कहा है, ‘दूसरा बड़ा चीन’ बनने की अपनी खोज में, भारत के सामने तीन प्रमुख बाधाएं हैं: निवेश का जोखिम बहुत बड़ा है, पॉलिसी इन्वर्ड्नेस बहुत मजबूत है, और मैक्रोइकॉनोमिक असंतुलन बहुत ज्यादा है. वैश्विक फर्मों के निवेश करने से पहले इन बाधाओं को दूर करने की जरूरत है. वे अपने संचालन को आसियान में वापस ला सकती हैं, जो चीन के मैन्युफैक्चरिंग हब बनने से पहले दुनिया के कारखाने के रूप में कार्य करता था... "  चीन के मौजूदा हालातों ने एक बड़ा अवसर प्रदान किया है. हालांकि, चीन के साथ भारत का सीमा तनाव केवल अनिश्चितता को बढ़ावा देता है. इसलिए, भारत को अपने उत्तरी पड़ोसी को मात देने के लिए हर चाल चलनी चाहिए.

इसलिए, जब मीडिया में यह अटकल लगाई जा रही थी कि "सरकार भारत आने की इच्छुक वैश्विक फर्मों की मदद करने के लिए चीनी निवेश पर अपने रुख की समीक्षा कर सकती है," नीति आयोग के सदस्य अरविंद विरमानी ने ट्वीट किया था: सैमसंग, ऐप्पल और अन्य एंकर कंपनियों की आपूर्ति श्रृंखला में शामिल चीनी कंपनियों को भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स इकोसिस्टम के विकास में तेजी लाने के लिए अपने प्रोडक्शन को चीन से भारत में स्थानांतरित करने की अनुमति देना भारत के हित में है. हालांकि, यह समय-समय पर सुरक्षा के अधीन रहना चाहिए. 
सीधे शब्दों में कहें तो मैन्युफैक्चरिंग इंडिया इंक के लिए न केवल नौकरियां उत्पन्न करने के लिहाज से बल्कि भारत को 2047 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था और विकसित राष्ट्र का दर्जा हासिल करने में मदद के लिए भी ध्यान का केंद्र होगी.

महामारी से मिली सीख
सबसे अच्छी तरह से तैयार की गई योजनाएं भी अनिश्चितताओं के सामने विफल हो जाती हैं. यूक्रेन युद्ध और वैश्विक मंदी के बाद कोविड महामारी ने यह साबित कर दिया है कि 2023 अनिश्चितताओं से भरा साल होगा. निश्चित रूप से, इंडिया इंक द्वारा कोविड महामारी के दौरान सीखे गए सबक इसे भविष्य के संकटों से निपटने में मददगार होंगे. मोहनदास पाई कहते हैं: “हमें ऐसे संस्थान तैयार करने होंगे जो इस तरह के मामलों (अनिश्चितताओं) से निपटने के लिए सभी क्षेत्रों में क्षमता का निर्माण करें. हमें और अधिक शोध, बेहतर प्रशिक्षित लोग, स्थानीय क्षमता आदि की आवश्यकता है. सभी महत्वपूर्ण/गंभीर क्षेत्रों में अधिक निवेश की जरूरत है. हमारे डिजास्टर रिकवरी संस्थानों ने प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए अच्छा काम किया है. उन्हें और बेहतर बनाने की जरूरत है".

भार्गव कहते हैं: “MSIL कोविड संकट को बेहतर ढंग से नेविगेट करने में सक्षम थी, क्योंकि हमने बुरे समय के लिए फाइनेंशियल रिजर्व बनाए थे और एक मजबूत एवं प्रतिस्पर्धी कंपनी बनाने पर ध्यान केंद्रित किया था. हमारे कर्मचारी और व्यवसाय सहयोगी सभी एक टीम के रूप में काम करते हैं और इससे हमें संकट की स्थितियों का सामना करने की शक्ति मिलती है.”

अग्रवाल का कहना है: 9/11 के हमले से लेकर डॉट कॉम बर्स्ट तक, वैश्विक मंदी और रूसी-यूक्रेन युद्ध से लेकर महामारी तक, एक चीज जो मेरी यात्रा में स्थिर रही है, वह है 'परिवर्तन'. मैं भविष्य के बारे में आशावादी हूं, लेकिन मैं यह भी मानता हूं कि बेहतर परिणाम केवल सभी के लिए व्यवसाय करना आसान बनाकर, बेहतर और सुचारू सार्वजनिक प्रणालियों के माध्यम से प्राप्त किए जा सकते हैं. बड़े निगमों के साथ-साथ सबसे छोटे व्यवसायों को भी आर्थिक सुधार को बढ़ावा देने के लिए मिलकर काम करना चाहिए. MSMEs की आसान क्रेडिट पहुंच और संवितरण पर लक्षित एक अलग बैंकिंग नीति के साथ मदद की जानी चाहिए. इसके अलावा, प्रौद्योगिकी और सूचना के लोकतांत्रीकरण पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है, ताकि व्यवसाय भविष्य की अनिश्चितताओं से निपटने के लिए अच्छी तरह से तैयार हो सकें.

बेरी कहते हैं: “महामारी ने ब्रैंड और व्यवसायों को सभी हितधारकों के लिए मूल्य निर्माण करते हुए स्थिरता के प्रयासों को फिर से प्राथमिकता देने और आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित किया. ब्रिटानिया में हम, महामारी के प्रभाव का सफलतापूर्वक सामना करने में सक्षम थे, क्योंकि हम अपनी रणनीति पर कायम रहे. हमने अपनी पांच रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित करना जारी रखा - डिस्ट्रीब्यूशन एवं मार्केटिंग, इनोवेशन, कॉस्ट फोकस, साथ के व्यवसायों को बढ़ावा देना और एम्बेडिंग सस्टेनेबिलिटी. स्पष्ट रूप से 2023 में उतार-चढ़ाव देखने को मिल सकते हैं, लेकिन 2047 का रास्ता अच्छी तरह से निर्धारित और परिभाषित है. मजबूत बुनियादी सिद्धांतों के साथ, भारत 2023 में अपने सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के टैग को बरकरार रख सकता है.


 


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