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रिलायंस को मिली सबमरीन केबल बिछाने की मंजूरी, जानें क्या होगा फायदा
सबमरीन डेटा केबल से इंटरनेट यूजर्स को हाई कैपेसिटी, हाई-स्पीड सिस्टम की सुविधा मिलेगी. इस डेटा केबल सिस्टम को सबमरीन कम्युनिकेशन केबल भी कहा जाता है.
बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 year ago
रिलायंस को आखिरकार सरकार से दुनिया के सबसे बड़े सबमरीन केबल सिस्टम लगाने की मंजूरी मिल गई है. ये केबल मुंबई से यूरोप और एशिया तक जाएगी, और इसे इंडिया-यूरोप-एक्सप्रेस (IEX) और इंडिया-एशिया-एक्सप्रेस (IAX) कहा जाएगा. इसके 2023 और 2024 के बीच चालू होने की उम्मीद है. IAX के पास 5 देशों में 12 केबल हैं, जिनमें मुख्य ट्रंक सिंगापुर से मुंबई तक है, जबकि IEX की मेन ब्रांच मुंबई से मिलान तक होगी.
क्या है प्रोजेक्ट का उद्देश्य?
इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य ग्लोबल इंटरनेट कैपिसिटी को बढ़ाते हुए भारत को केंद्र में रखना है. बता दें कि इस तरह के प्रोजेक्ट के लिए पर्यावरण मंत्रालय से मंजूरी आवश्यक होती है, क्योंकि इससे भारत के तटीय क्षेत्रों पर प्रभाव पड़ सकता है. इसी को ध्यान में रखते हुए Expert Appraisal Committee (EAC) को परियोजना के लिए विशेष मंजूरी देनी होगी. रिलायंस SubCom जैसे कई प्रमुख वैश्विक सेवा प्रदाताओं के साथ काम कर रही है, जो पूरे क्षेत्र में डेटा की तेज से बढ़ती डिमांड को पूरा करने के लिए नेक्स्ट जनरेशन केबल बिछाएंगे.
यह होगा फायदा
सबमरीन डेटा केबल से इंटरनेट यूजर्स को हाई कैपेसिटी, हाई-स्पीड सिस्टम की सुविधा मिलेगी. इस डेटा केबल सिस्टम को सबमरीन कम्युनिकेशन केबल भी कहा जाता है. इस केबल के जरिए दुनिया के एक छोर से दूसरे छोर तक सेकंड्स में जानकारी पहुंचाई जा सकती है. इस सिस्टम के सहारे भारत पूर्व में सिंगापुर, थाईलैंड, मलेशिया से जुड़ सकेगा और पश्चिम में मिस्र और सऊदी अरब जैसे देशों से जुड़कर इटली से कनेक्ट हो सकेगा. इससे इंटरनेट यूजर्स को कंटेंट और क्लाउड जैसी सुविधाएं आसानी से मुहैया कराई जा सकेंगी.
क्या होती हैं फाइबर ऑप्टिक केबल?
यह मूलरूप से एक डायरेक्ट लिंक है, जो डेटा और वॉयस ट्रांसमिशन के लिए एक देश को बाकी दुनिया से जोड़ सकता है. केबलों का यह सिस्टम बेहद तेज गति से काम करता है. जब इन केबलों को कठोर वातावरण में बिछाया जाता है, तो उन्हें प्लास्टिक की परतों और प्रोटेक्टिव ब्लैंकेट से ढंका जाता है. सबमरीन फाइबर ऑप्टिक केबल समुद्र तल पर बिछाई जाती हैं, लेकिन वे जमीन पर मौजूद स्टेशनों को जोड़ती हैं. इनमें पानी के नीचे भी सिग्नल ले जाने की क्षमता होती है. कुछ अनुमानों के अनुसार, कम्युनिकेशन का ये माध्यम सैटेलाइट कनेक्शन से भी अधिक लागत प्रभावी है. उल्लेखनीय है कि रिलायंस के अलावा, भारती एयरटेल भी इस दिशा में काम कर रही है.
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