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खई के ‘पान बनारस’ वाला और आम की इस किस्म को मिला GI Tag, जानिए क्या होगा फायदा
कुछ दिनों में 9 और वस्तुओं को देश की इंटीलेक्चुअल प्रॉपर्टी में एड कर लिया जाएगा. इनमें बनारस का लाल पेड़ा, बनारसी ठंडाई, तिरंगी बर्फी, बनारस लाल भरवा मिर्च, और बनारस लाल पेड़ा जैसी चीजें शामिल हैं.
बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 year ago
अगर आपसे पूछा जाए बनारस की सबसे बड़ी पहचान के तौर पर आप क्या जानते हैं तो आप यही कहेंगें कि एक बनारस की साड़ी और दूसरा बनारस का पान. जी हां बिल्कुल लेकिन अब बनारसी पान को एक और उपलब्धि हासिल हो गई है. बनारसी पान को जीआई टैग मिल गया है. बनारसी पान के साथ-साथ आम की मशहूर किस्म लंगड़ा को भी जीआई टैग मिल गया है. इस टैग के मिलने के बाद दुनिया के किसी भी कोने में बैठा आदमी आसानी से इस प्रोडक्ट के बारे जान पाएगा और इससे इसे कमर्शियली भी बड़ा फायदा होगा.
किस-किस प्रोडक्ट को मिला जीआई टैग
यूपी सरकार की ओर से बनारसी पान और लंगड़ा आम सहित तकरीबन नौ वस्तुओं पर जीआई टैग के लिए आवेदन किया था. इस आवेदन के बाद अब इनमें से ज्यादातर वस्तुओं को जीआई टैग मिल चुका है. जिस-जिस को जीआई टैग मिला है उनमें बनारसी लंगड़ा आम, रामनगर भांता बैंगन और आदमचीनी चावल को भी जीआई टैग मिला है. इसी के साथ अब काशी से संबंध रखने वाली तकरीबन 22 ऐसी चीजें हो गई हैं जिन्हें अब तक जीआई टैग मिल चुका है.
छत्तीसगढ़ की दुबरी को भी मिला जीआई टैग
इस बार छत्तीसगढ़ के बासमती नाम से प्रसिद्ध नगरी दुबराज को भी जीआई टैग मिला है. ये छत्तीसगढ़ की दूसरी ऐसी फसल होगी जिसे जीआई टैग मिला है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार दुबराज एक छोटा चावल है जिसमें बहुत खुशबू आती है और ये खाने में बहुत नरम होता है. जीआई टैग मिलने का सबसे बड़ा फायदा ये होता है कि इससे प्रोडक्ट सर्टिफाइड तो होता ही है लेकिन उसकी कीमत भी बढ़ जाती है.
आखिर क्या होता है जीआई टैग
हमारे देश में अलग-अलग राज्यों में कई उत्पाद होते हैं इनमें से कई ऐसे होते हैं जो पूरे देश में मशहूर हो जाते हैं. ये उत्पाद उस इलाके की पहचान होते हैं. लेकिन जब ये उत्पाद देश दुनिया में फैलते हैं तो उसे मान्यता देने के लिए एक प्रक्रिया बनाई गई है. इसी का नाम जीआई टैग यानी जियोग्राफिकल इंडीकेटर कहते हैं इसे भौगोलिक संकेतक भी कहते हैं. इस अधिनियम को भारतीय संसद ने 1999 में पास किया था. इसे 2003 में लागू किया गया था.
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