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अब लोन पर लगने वाले सभी चार्जेज का ग्राहक की भाषा में देना होगा जवाब, बतानी होगी हर बात
आरबीआई की ओर से इस जानकारी को देने के लिए जिस दस्तावेज की व्यवस्था बनाई जा रही है उसकी अवधि भी निर्धारित की गई है.
बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 4 weeks ago
मौजूदा दौर में भले ही लोन लेना बेहद आसान हो गया हो लेकिन ग्राहक के सामने सबसे बड़ी समस्या बैंक के द्वारा पीछे से लगाए जाने वाले चार्जेस (हिडन चार्जेज) के चलते आती है. कई बार ग्राहक के सामने वो बड़ी परेशानी बन जाते हैं. ग्राहक की इन्हीं परेशानियों को दूर करते हुए अब आरबीआई(रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया) ने सभी बैंकों से लेकर दूसरी वित्तीय संस्थाओं को निर्देश जारी किया है कि वो लोन देते वक्त एक बार तय होने वाली Key Fact Statement (KFS) से परे कोई चार्ज नहीं लगा सकते हैं.
आखिर क्या है ये पूरा मामला?
आरबीआई की ओर से KFS की जो व्यवस्था लागू की जा रही है उससे जहां लोन देने के मामलों में पारदर्शिता बढ़ेगी वहीं दूसरी ओर ग्राहको को लोन लेने से लगने वाले सभी चार्जेस की जानकारी मिल पाएगी. इस व्यवस्था से कर्ज लेने वाले रिटेल उपभोक्ता, कर्ज लेने वाले एमएसएमई को किसी भी लोन को लेकर एक सही दृष्टिकोण मिल पाएगा. जबकि आरबीआई ने इस गाइडलाइन में क्रेडिट कार्ड से कर्ज को शामिल नहीं किया है. आरबीआई की ओर से इन नियमों को बैंकिंग रेग्यूलेशन 1949 की धारा 21, 35ए और 56 के तहत बनाया गया है.
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RE’s बनाएंगे इसे लेकर नियम
आरबीआई(RBI) ने नियमों को समय पर लागू करने के लिए आरई के द्वारा जल्द से जल्द इसे लेकर नियम कायदे बनाने को कहा है. आरबीआई की ओर से कहा गया है कि 1 अक्टूबर 2024 से इस व्यवस्था को किसी भी स्थिति में लागू कर दिया जाएगा. 1 अक्टूबर 2024 के बाद स्वीकृत होने वाले लोग के KFS के नियमों का पालन करना बेहद जरूरी है. आरबीआई की ओर से कहा गया है कि सभी संस्थाओं को इन नियमों का अक्षरश: पालन करना होगा.
आखिर ये क्या है Key Fact Statement?
अब आपको बताते हैं कि आखिर ये Key Fact Statement क्या है जिसे आरबीआई 1 अक्टूबर से लागू करने जा रहा है. KFS वो दस्तावेज होगा जो लोन देने वाले और लोन लेने वाले कर्जदाता के बीच होगा जिसमें लोन की सभी अहम जानकारियों और चार्जेज की जानकारी दी गई होगी. इस एग्रीमेंट को अगर आसान भाषा में समझें तो लोन लेने वाले ग्राहक को बैंक या लोन देने वाली संस्था की ओर से एक डॉक्यूमेंट दिया जाएगा जिसमें उस लोन पर लगने वाले चार्जेज से लेकर नियम और शर्तें लिखी हुई होंगी.
सालाना ब्याज दर क्या होती है?
सालाना ब्याज दर वो होगी जो जिसमें उसकी कर्ज की सालाना लागत और लगने वाले सभी चार्जेज की जानकारी शामिल होगी. इस केएफएस को लेकर और जो अहम बात कही गई है वो ये है कि इस केएफएस को ग्राहक की समझने वाली भाषा में तैयार किया जाएगा. यही नहीं अगर लोन सात दिन या उससे ज्यादा का है तो उसके लिए इस केएफएस की अवधि तीन दिन होगी जबकि सात दिन से कम वाले के लिए अवधि एक दिन होगी.
आखिर इस टाइमलाइन का क्या है मतलब?
केएफएस के लिए दी जाने वाली अवधि का मतलब ये है कि अगर ग्राहक उस पर राजी हो जाता है तो फिर बैंक उससे पीछे नहीं हट सकता है. यही नहीं इसमें सालाना ब्याज दर का भी आंकलन किया जाएगा. बैंक के द्वारा लोन दिए जाने से पहले लिए जाने वाले चार्जेज जैसे थर्ड पार्टी सर्विस प्रोवाइडर चार्ज, लीगल चार्ज, इंश्योरेंस चार्ज ये भी एपीआर का हिस्सा होंगे.
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