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BW Class: डॉलर इंडेक्स क्या होता है? इसका क्या काम है, समझिए बिल्कुल आसान भाषा में
डॉलर इंडेक्स इतना जरूरी क्यों है, इसका जवाब है कि दुनिया में ज्यादातर कमोडिटीज का ट्रेड डॉलर में ही होता है. दुनिया भर के देश अपने आर्थिक आंकड़े डॉलर में ही जारी करते हैं
बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 year ago
डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर हो गया, रुपया आज डॉलर के मुकाबले मजबूत हो गया, ऐसी खबरों को जब आप पढ़ते हैं तो एक शब्द का जिक्र आता है Dollar Index. ये क्या होता है, आखिर इसका क्या काम है, आखिर इसकी जरूरत ही क्या है. आज हम इसी को समझेंगे और बेहद आसान भाषा में
डॉलर इंडेक्स क्या होता है?
US DOLLAR INDEX जिसे USDX लिखा जाता है. जैसा कि नाम से ही पता चल रहा है कि ये एक इंडेक्स के बारे में बात हो रही है. दरअसल, DOLLAR INDEX कुछ और नहीं बल्कि दुनिया की 6 करेंसीज का एक टोकरा या बास्केट है. इस इंडेक्स से ही पता चलता है कि डॉलर की वैल्यू इन सभी 6 करेंसीज के मुकाबले क्या है. वो करेंसी हैं, यूरोप का यूरो (EUR), स्विस फ्रैंक (CHF), जापान का येन (JPY), कनाडा का डॉलर (CAD), ब्रिटेन का पाउंड (GBP) और स्वीडन का क्रोना (SEK).
डॉलर इंडेक्स में वेटेज
अब इस इंडेक्स में यूरो का वर्चस्व है. क्योंकि इस बास्केट में सबसे ज्यादा यूरो की ही हिस्सेदारी है.
करेंसी वेटेज
यूरो 57.6%
येन 13.6%
पाउंड 11.9%
कनाडा डॉलर 9.1%
क्रोना 4.2%
फ्रैंक 3.6%
डॉलर इंडेक्स में 6 करेंसी ही क्यों?
अब सवाल उठता है कि बास्केट में यही 6 करेंसीज ही क्यों शामिल की गईं, आखिर क्या पैमाना था इनके चयन का. दरअसल इन करेंसीज का चयन अमेरिका के सबसे महत्वपूर्ण कारोबारी पार्टनर्स के आधार पर किया गया. हालांकि इस इंडेक्स की शुरुआत 1973 में Bretton Woods Agreement को खत्म करने के बाद की गई. तब उस समय के देशों ने अपना बैलेंस सेटलमेंट अमेरिकी डॉलर में किया था, जिसे पहले रिजर्व करेंसी के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था. उस वक्त इंडेक्स का बेस 100 था, तब से लेकर अबतक इसी बेस पर करेंसीज की वैल्यू निकाली जाती है. हालांकि तब बास्केट में यूरो नहीं था, 1999 में यूरो को इंडेक्स में शामिल किया गया और जर्मनी और दूसरी कई करेंसीज को हटाया गया. क्योंकि ये इंडेक्स अमेरिका के साथ ट्रेड को सही तरीके से पेश नहीं करते थे.
डॉलर इंडेक्स का इतिहास
डॉलर इंडेक्स ने अपने ट्रेडिंग इतिहास में बहुत उतार चढ़ाव देखे हैं. 1984 में ये अपने सबसे उच्चतम स्तर 165 के लेवल तक पहुंचा था, और 2007 में इसने 70 का सबसे निचला स्तर भी छुआ था. हालांकि कई सालों से डॉलर इंडेक्स 90-110 डॉलर के बीच ही झूल रहा है. आजकल भी ये 110 डॉलर के ऊपर नीचे ही ट्रेड करता दिख रहा है. अब इन सब आंकड़ों का क्या मतलब हुआ.
देखिए जब डॉलर बढ़ता है तो डॉलर इंडेक्स भी बढ़ता है, जब डॉलर गिरता है तो डॉलर इंडेक्स भी गिरता है. जैसा कि ऊपर जिक्र किया गया है कि इसका बेस 100 है. तो इसमें 90 का मतलब हुआ कि बास्केट की करेंसीज के मुकाबले डॉलर 10 परसेंट गिरा है, और 110 का मतलब हुआ कि बास्केट की करेंसीज के मुकाबले डॉलर 10 परसेंट मजबूत हुआ है. मतलब इस वक्त डॉलर इंडेक्स अगर 110 है तो इसका मतलब ये हुआ कि बास्केट की सभी 6 करेंसीज के मुकाबले डॉलर 10 परसेंट मजबूत है.
डॉलर इंडेक्स का गोल्ड कीमतों पर असर
अब डॉलर इंडेक्स इतना जरूरी क्यों है, इसका सीधा सरल सा जवाब है कि दुनिया में ज्यादातर कमोडिटीज का ट्रेड डॉलर में ही होता है. दुनिया भर के देश अपने आर्थिक आंकड़े डॉलर में ही जारी करते हैं, जैसे जीडीपी, फॉरेक्स रिजर्व, वित्तीय घाटा, ट्रेड घाटा, एक्सपोर्ट, इंपोर्ट वगैरह. यानी डॉलर एक ऐसी करेंसी है जिसके बिना दुनिया का कारोबार चलाना मुश्किल है और इसीलिए डॉलर इंडेक्स का असर भी इन पर देखा जा सकता है. डॉलर इंडेक्स का दुनिया भर की कमोडिटीज पर असर होता है. जैसे - हमने देखा था कि जब डॉलर इंडेक्स बढ़ा था तो गोल्ड की कीमतों में गिरावट देखने को मिली थी, लेकिन जब डॉलर इंडेक्स घटता है तो गोल्ड की कीमतें बढ़ती हैं.
डॉलर इंडेक्स का भारतीय शेयर बाजार पर असर
डॉलर इंडेक्स में जिन 6 करेंसीज को शामिल किया गया है, उसमें भारत की करेंसी शामिल नहीं है, तो क्या इसका मतलब ये निकाला जाए कि भारत की करेंसी रुपया डॉलर के प्रभाव से अछूता है, जवाब आप सभी को पता है, नहीं. जब डॉलर मजबूत होगा यानी डॉलर इंडेक्स बढ़ेगा तो भारतीय रुपया कमजोर होगा, अगर डॉलर इंडेक्स गिरता है तो भारतीय रुपया मजबूत होता है. डॉलर इंडेक्स का भारतीय शेयर बाजार पर भी शॉर्ट टर्म में असर देखने को मिलता है. जब डॉलर इंडेक्स बढ़ता है तो शेयर बाजार में गिरावट आ सकती है, जबकि घटने पर तेजी देखने को मिल सकती है. अब ये कैसे होता है जरा इसको समझिए
देखिए जब डॉलर इंडेक्स में तेजी आती है तो ग्लोबल निवेशकों के लिए इकोनॉमी के लेकर निगेटिव संदेश जाता है, उन्हें लगता है कि शेयर मार्केट गिरेगा, तब वो अपने पैसों को शेयर बाजार से निकालकर डॉलर में लगा देते हैं, जिसे अमेरिका में ट्रेजरी बॉन्ड कहते हैं. निवेशक यहां अपने पैसे को लेकर सुरक्षित महसूस करते हैं. जब डॉलर इंडेक्स घटता है, तो ये संदेश जाता है कि इकोनॉमी आगे बेहतर परफॉर्म करेगी और निवेशक अपना पैसा ट्रेजरी बॉन्ड्स से निकालकर शेयर बाजार में लगा देते हैं, जिससे शेयर बाजार में तेजी आती है. हालांकि ये असर काफी कम समय के लिये रहता है. शेयर बाजार के दूसरे कई फैक्टर्स हैं जो लॉन्ग टर्म के लिए असर डालते हैं. उम्मीद करते हैं कि डॉलर इंडेक्स और उसके असर को लेकर तस्वीर कुछ साफ जरूर हुई होगी.
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