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BW Class: क्या होता है MSF, बैंकों के लिए इसके क्या मायने हैं, जानिए आसान भाषा में
बैंकिंग सिस्टम में लिक्विडिटी मैनेजमेंट के लिए रिजर्व बैंक के पास कई तरह के टूल होते हैं. इसमें से एक टूल MSF भी है
बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 year ago
RBI मॉनिटरी पॉलिसी की सीरीज में हमने रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट को समझा था, जिसमें हमने बताया था कि ये लिक्विडिटी मैनेजमेंट फैसिलिटी होती है मतलब ये कि अर्थव्यवस्था में कितनी लिक्विडिटी या पूंजी डालनी है वो रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट से तय होती है. इसी कड़ी में हम आज आपको बताएँगे कि MSF क्या होता है.
MSF क्या होता है
MSF को रिजर्व बैंक ने 2011 में शुरू किया था. MSF यानी मार्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी रेट, ये भी काफी हद तक रेपो रेट की ही तरह काम करता है, लेकिन थोड़ा सा अंतर भी है. ऐसे में सवाल उठता है कि जब रेपो रेट मौजूद ही था तो फिर MSF की क्या जरूरत पड़ी.
हमने आपको पिछले आर्टिकल में समझाया था कि बैंकों के पास NDTL (Net Demand and Time Liabilities) होता है. सेविंग अकाउंट्स, करंट अकाउंट्स और फिक्स्ड डिपॉजिट के जरिए बैंकों के पास जो पैसा मिलता है उसी में से वो लोन देते हैं. लेकिन वो पूरा लोन नहीं देते हैं, उसमें से CRR, SLR निकाल दिया जाता है. बाकी बचे पैसे को बैंक लोन के तौर पर देते हैं. जैसे अभी CRR 4.5% है और SLR 18% है, अगर इनको निकाल दें तो बैंकों के पास लोन देने के लिए 77.5% पैसा ही बचता है.
हमने आपको बताया था कि रेपो रेट में बैंक रिजर्व बैंक से पैसा उधार लेता है और उसके बदले ब्याज देता है. लेकिन दिक्कत यहां आती है जब बैंक रेपो रेट से जितना पैसा उधार ले सकता है वो ले लिया, अब अगर बैंक को और पैसों की जरूरत पड़ेगी तो वो कहां से इंतजाम करेगा. ऐसे में बैंकों के पास एक रास्ता होता है कि वो दूसरे बैंकों से कर्ज लें, जो कि उन्हें थोड़ा महंगा पड़ेगा, इससे इंटर बैंकिंग लेंडिंग रेट में तेज उतार चढ़ाव देखने को मिलता है. इसलिए रिजर्व बैंक ने एक रास्ता निकाला जिसे MSF यानी मार्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी कहते हैं जो रेपो लेंडिंग के ऊपर बैंकिंग सिस्टम को पैसा उधार देने का एक सिस्टम है. मतलब ये कि अगर मान लीजिए रेपो लेंडिंग में कोई बैंक रिजर्व बैंक से 10 रुपये ही उधार ले सकता है, लेकिन उसे 5 रुपये की और जरूरत पड़ती है तो वो MSF का इस्तेमाल करते हुए और पैसा रिजर्व बैंक से ले सकता है.
चलिए इसको समझते हैं
मान लीजिए मौजूदा समय में रेपो बॉरोइंग लिमिट NDTL का 1% है. यानी पूरे बैंकिंग सिस्टम का जितना पैसा है उसका 1% रेपो लेंडिंग के लिए है. इसको भी रिजर्व बैंक दो हिस्सों में देता है.
जैसे - किसी एक बैंक के NDTL का 0.25% पैसा ओवरनाइट रेपो यानी एक दिन के लिए दिया जाता है, बाकी 0.75% पैसे की गणना पूरे बैंकिंग सिस्टम के NDTL पर होती है. इस पैसे को टर्म रेपो रेट पर बोली लगाई जाती है. मान लीजिए पूरे बैंकिंग सिस्टम का कुल NDTL 50 लाख करोड़ रुपये है तो इसका 1% हुआ 50,000 करोड़. तो बैंकों को इतना पैसा उधार मिलता है टर्म रेपो रेट पर. MSF की दर रेपो रेट से थोड़ी सी ज्यादा होती है. जैसे इस वक्त रेपो रेट 5.40% है, और MSF रेट 5.65% है. इसलिए अगर बैंकों को पैसों की जरूरत है तो सबसे पहले वो रेपो लेंडिंग के जरिए ही पैसा उठाएंगे, इसके बाद भी अगर उन्हें पैसों की जरूरत पड़ती है तो वो MSF लेंडिंग से पैसा उठाएँगे.
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