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BW Class: EPS और PE रेश्यो का क्या मतलब होता है? समझिए आसान भाषा में

निवेशक PE रेश्यो देखकर ये तय करते हैं ये शेयर महंगा है या सस्ता, फिर उसके बाद खरीदते हैं या उससे दूर रहते हैं.

बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 year ago

शेयर बजार में EPS (Earning Per Share) और PE रेश्यो (Price to Earning) काफी इस्तेमाल किया जाने वाला टर्म है. जब ये देखना होता है कि कोई शेयर महंगा है या सस्ता, तो EPS और PE का सहारा लिया जाता है. हालांकि सुनने में ये काफी टेक्निकल लगता है लेकिन समझना बहुत आसान है. ठीक वैसे ही जब आप बाजार में सब्जी लेने जाते हैं तो आप मोलभाव करते हैं ताकि आप कहीं महंगी सब्जी न खरीद लाएं. लेकिन आप किसी सब्जी की ज्यादा कीमत भी देने को राजी हो जाते हैं, अगर उसकी क्वालिटी बढ़िया है और सब्जी ताजी है. बस इसी को बाजार की भाषा में EPS और PE कहा जाता है. 

EPS क्या होता है?
मान लीजिए कोई कंपनी है XYZ
शेयरों की संख्या   =       100
सालाना कमाई    =        ₹500
EPS        =  कमाई / कुल शेयर = 500 / 100 = ₹5     

यानी  XYZ अपने एक शेयर से सालाना 5 रुपये कमाती है इसको ही EPS कहते हैं. जब किसी कंपनी का EPS ज्यादा होता है तो निवेशक शेयर के ज्यादा पैसे देने को भी राजी होता है. लेकिन जब EPS कम होता है तो निवेशक शेयर के लिए ज्यादा पैसे खर्च करना नहीं चाहेगा. 

PE रेश्यो क्या होता है  
PE रेश्यो भी EPS से ही निकलता है. PE से ये पता चलता है कि कंपनी का शेयर महंगा है या सस्ता, बाजार की भाषा में कहें कि कंपनी का शेयर ओवर वैल्यूड है या अंडर वैल्यूड ये इसी PE रेश्यो से ही पता चलता है. मान लीजिए XYZ कंपनी का शेयर प्राइस है 100 रुपये और कंपनी का EPS है 5 रुपये

शेयर प्राइस        =  ₹100
EPS       = ₹5
PE        = शेयर प्राइस / EPS = 100 / ₹5 = 20 

इसका मतलब ये हुआ कि XYZ कंपनी का शेयर प्राइस तो 100 रुपये है और साल में एक शेयर से कमाई 5 रुपये है, लेकिन आप इसके लिए 20 गुना ज्यादा कीमत चुका रहे हैं. ज्यादा आसानी से ये समझें कि आप साल में 5 रुपये कमाने के लिए 20 गुना यानी 100 रुपये दे रहे हैं या 1 रुपये कमाने के लिए 20 रुपये दे रहे हैं. 

वैल्यूड और ओवर वैल्यूड शेयर 
निवेशक PE रेश्यो देखकर ये तय करते हैं ये शेयर महंगा है या सस्ता, फिर उसके बाद खरीदते हैं या उससे दूर रहते हैं. आमतौर पर ऊंची PE रेश्यो वाली कंपनियां हाई ग्रोथ कंपनियां होती है, लेकिन जब किसी वजह से हाई ग्रोथ वाली कंपनियों का PE रेश्यो कम हो जाता है तो ऐसी कंपनियों को वैल्यू शेयर कहा जाता है. आमतौर पर ऐसी कंपनियों के शेयरों में निवेश की सलाह दी जाती है

दूसरी तरफ, कम PE रेश्यो वाली कंपनियों को कम ग्रोथ वाली कंपनियां कहा जाता है. लेकिन जब किसी वजह से ऐसी औसत और कम ग्रोथ वाली कंपनियों का PE रेश्यो ऊंचा हो जाता है तो ऐसी कंपनियों को ओवर वैल्यूड स्टॉक कहा जाता है. आमतौर पर ऐसी कंपनियों से दूर रहने की सलाह दी जाती है. 

PE रेश्यो को समझने का एक और तरीका होता है कि उसके ऐतिहासिक PE रेश्यो से उसकी तुलना की जाए. मान लीजिए XYZ कंपनी का 10 साल का PE रेश्यो का औसत 25 रुपये है, लेकिन मौजूदा PE रेश्यो 15 रुपये है तो इसका मतलब ये हुआ कि अगर कंपनी आज भी अच्छा परफॉर्म कर रही है, वित्तीय सेहत अच्छी है और शेयर सस्ता है तो ये निवेश के लिए अच्छा विकल्प हो सकता है. मान लीजिए मौजूदा PE रेश्यो 30 रुपये है, यानी ये 10 साल के औसत से कहीं ज्यादा है, यानी शेयर काफी महंगा है तो ऐसे निवेश से बचा जा सकता है. 

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