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BW Class: कारों को रेटिंग देने वाले ग्लोबल NCAP के बारे में जानते हैं आप?
ग्लोबल NCAP कारों का क्रैश टेस्ट करता है और फिर उसके परिणाम के आधार पर उन्हें रेटिंग दी जाती है.
बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 year ago
यदि आप कारों के शौकीन हैं, तो आपने यह भी सुना होगा कि क्रैश टेस्ट में मारुति सुजुकी की दो कारों को काफी कम नंबर मिले है. Maruti Wagon R और Alto K10 पैसेंजर सेफ्टी में फिसड्डी साबित हुई हैं. ग्लोबल NCAP ने इन दोनों कारों को खराब रेटिंग देते हुए साफ किया है कि चाइल्ड और एडल्ट दोनों की सेफ्टी के लिहाज से ये बाकी कारों से काफी पीछे हैं. क्या आपको पता है कि आखिर ग्लोबल NCAP कौन है और इसका क्रैश टेस्ट से क्या लेनादेना है?
इस संस्था का प्रोजेक्ट
ग्लोबल एनकैप या NCAP का मतलब ग्लोबल न्यू कार असेसमेंट प्रोग्राम (Global New Car Assessment Program) है. यह UK में रजिस्टर्ड चैरिटी संस्था Towards Zero Foundation का एक मेजर प्रोजेक्ट है, जिसके तहत स्वतंत्र रूप से कारों की सुरक्षा की जांच की जाती है. ग्लोबल NCAP में कई मापदंडों पर कारों की क्रैश टेस्टिंग की जाती है, फिर उसके आधार पर उन्हें सेफ्टी रेटिंग मिलती है. दुनियाभर में इस संस्था ने अपनी एक अलग पहचान स्थापित की है. ग्लोबल NCAP के क्रैश टेस्ट परिणाम लोगों के कार खरीदने के फैसले को बदलने की ताकत रखते हैं, इसलिए कार निर्माता कंपनियां भी इस संस्था को गंभीरता से लेती हैं.
टेस्ट के कई मापदंड
ग्लोबल NCAP टेस्ट के दौरान कारों को कई मापदंडों पर परखा जाता है. इस दौरान, कार 64 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार पर दौड़ाया जाता है और क्रैश किया जाता है. ताकि यह पता लगाया जा सके कि कंपनियां सेफ्टी को लेकर जो दावे कर रही हैं, उनमें कितनी सच्चाई है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, ग्लोबल NCAP द्वारा टेस्ट की गई कारों को 0 से 5 स्टार के बीच रेटिंग दी जाती है. 5 स्टार रेटिंग का मतलब है कि कार सबसे ज्यादा सेफ है. जबकि 0 रेटिंग का मतलब है कि सेफ्टी के मामले में कार काफी खराब है.
2011 में हुई थी स्थापना
ग्लोबल न्यू कार असेसमेंट प्रोग्राम यानी ग्लोबल NCAP की स्थापना 2011 में हुई थी, इसे वाहन दुर्घटना-टेस्टिंग और रिपोर्टिंग को बढ़ावा देने के लिए अमल में लाया गया था. ये संस्था 'सेफर कार्स फॉर इंडिया' प्रोग्राम के तहत भारत में भारत में निर्मित वाहनों का क्रैश टेस्ट करती है. अब यह भी जानते हैं कि आखिर क्रैश टेस्ट होते कैसे हैं. क्रैश टेस्ट के लिए कार के अंदर एक डमी रखी जाती है. इस डमी को इंसान की तरह बैठाया जाता है. इसके बाद गाड़ी को 64 किलोमीटर प्रति घंटा की स्पीड से दौड़ाया जाता है और सामने की तरफ एक बैरियर से टकराया जाता है. बिल्कुल, वैसे जैसे दो कारें आमने-सामने टकराती हैं.
कई तरीके से होते हैं टेस्ट
क्रैश टेस्ट कई तरीके से किए जाते हैं. इसमें फ्रंटल, साइडल, रियर, और पोल टेस्ट शामिल हैं. जैसा ही नाम से ही स्पष्ट है, फ्रंटल टेस्ट में कार की टक्कर सामने से कराई जाती है. साइडल टेस्ट में साइड से, रियर टेस्ट में कार को पिछले भाग की टक्कर होती है और पोल टेस्ट में कार को ऊपर से गिराया जाता है. ग्लोबल NCAP रेटिंग केवल फ्रंट ऑफसेट क्रैश टेस्ट पर आधारित होती है. बता दें कि और भी कई संस्थाएं हैं, जो क्रैश टेस्टिंग करती हैं. जैसे कि ऑस्ट्रेलियन न्यू कार असेसमेंट प्रोग्राम (ANCAP), ऑटो रिव्यू कार असेसमेंट प्रोग्राम (ARCAP), चीन न्यू कार असेसमेंट प्रोग्राम (C-NCAP), यूरोपीय न्यू कार असेसमेंट प्रोग्राम (Euro NCAP), अलजाइमाइनर डॉयचर ऑटोमोबाइल-क्लब जर्मनी (ADAC), जापान न्यू कार असेसमेंट प्रोग्राम (JNCAP) और
लैटिन न्यू कार असेसमेंट प्रोग्राम- लैटिन अमेरिका (लैटिन NCAP).
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