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BW Class: कमजोर रुपये और कच्चे तेल की गिरावट के कई फायदे हैं, जानिए आसान भाषा में

चीन एक ऐसा देश है जिसने अपनी करेंसी को सालों तक जानबूझकर डी-वैल्यू यानी कमजोर करके रखा, लेकिन चीन ने ऐसा किया क्यों.

बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 year ago

नई दिल्ली: कच्चा तेल 90 डॉलर के नीचे है, रुपया भी डॉलर के मुकाबले थोड़ा पतला हो गया है, कई बार रुपया 80 के पार भी जा चुका है. लेकिन अब सवाल उठता है कि इसका मेरी, आपकी और देश की सेहत पर क्या फर्क पड़ेता है, तो जान लीजिए कि फर्क पड़ता है. चलिए समझते हैं.

रुपये की गिरावट से क्या फायदा 
जब रुपया गिरता है तो इसके फायदे और नुकसान दोनों ही होते हैं. आपको जानकर हैरानी होगी कि कुछ अर्थव्यवस्थाएं जानबूझकर अपनी करेंसीज को कमजोर रखती हैं, ताकि इकोनॉमी में ग्रोथ लाई जा सके, जैसे की चीन काफी लंबे समय तक अपनी करेंसी को कमजोर करता रहा है. 

अब समझते हैं कि रुपये की कमजोरी का क्या मतलब होता है. देखिए फिलहाल रुपया 79.60 के आस-पास है, यानी अभी आपको 1 डॉलर के लिए 79.60 रुपये देने होंगे, अगर यही रुपया गिरकर 85 पर आ जाए, तो अब आपको 1 डॉलर के लिए 85 रुपये देने होंगे. इससे तो यही लगता है कि किसी करेंसी के कमजोर होने पर किसी भी देश को नुकसान होता है. लेकिन ये आधा सच है. चलिए इसको जरा एक वास्तविक उदाहरण से समझते हैं.

चीन के उदाहरण से समझिए 
चीन एक ऐसा देश है जिसने अपनी करेंसी को सालों तक जानबूझकर डी-वैल्यू यानी कमजोर करके रखा, लेकिन चीन ने ऐसा किया क्यों. चीन की करेंसी युआन साल 2005 से लेकर 2015 तक डॉलर के मुकाबले काफी तेजी से बढ़ी. इन 10 सालों के दौरान युआन डॉलर के मुकाबले 33 परसेंट के करीब मजबूत हुआ. लेकिन इसके बाद अचानक ही चीन के केंद्रीय बैंक ने लगातार तीन बार युआन को डी-वैल्यू किया और युआन डॉलर के मुकाबले 4 परसेंट तक कमजोर हो गया. चीन के इस कदम से निवेशकों के बीच हड़कंप मच गया, चीन के साथ साथ अमेरिका और यूरोप के बाजारों पर भी इसका असर दिखा. तो आखिर चीन ने ऐसा किया क्यों, चलिए इसको समझते हैं. 

चीन दुनिया का मैन्यूफैक्चरिंग हब है, पूरी दुनिया की मैन्यूफैक्चरिंग का करीब 25 परसेंट चीन में होता है और यहीं से दुनिया भर को माल एक्सपोर्ट किया जाता है. लेकिन बावजूद इसके चीन की GDP ग्रोथ में लगातार गिरावट आ रही थी. इसलिए चीन ने अपने एक्सपोर्ट को बढ़ावा देने के लिए अपनी करेंसी को डी-वैल्यू करने का फैसला किया. अब सवाल उठता है कि युआन को डी-वैल्यू करने से GDP ग्रोथ कैसे बढ़ेगी और एक्सपोर्ट कैसे बढ़ेगा. 

देखिए साल 2015 में 1 डॉलर की वैल्यू थी 6 युआन थी. अब मान लीजिए कि अमेरिका की कोई कंपनी XYZ चीन से 100 मिलियन युआन का कच्चा माल खरीदती है. तो डॉलर टर्म में कंपनी XYZ चीन को 16.6 मिलियन डॉलर देगी. अब चीन ने अगर युआन को डी-वैल्यू करके 6.25 कर दिया. तो डॉलर टर्म में XYZ को 16 मिलियन डॉलर देने होंगे. यानी XYZ को चीन में एक कंपटीटिव प्राइस मिलेगा, जिससे चीन का एक्सपोर्ट बढ़ेगा और GDP ग्रोथ में तेजी देखने को मिलती है. 

लेकिन दूसरी तरफ करेंसी को डीवैल्यू करने से इंपोर्ट पर असर पड़ता है, तो चलिए समझते हैं कि डॉलर के बदले अगर भारत की करेंसी की वैल्यू गिरेगी तो इंपोर्ट पर क्या असर पड़ेगा. देखिए जब कोई इंपोर्टर किसी बाहरी देश से कोई सामान मंगवाता है और उसकी घरेलू करेंसी मजबूत रहती है तो उसे उस सामान की कम कीमत चुकानी होती है. मान लीजिए कि आपने कोई मोबाइल फोन इंपोर्ट किया जिसकी कीमत 700 डॉलर है तो आपको इसके लिए रुपये का भाव अगर 79.60 लें तो 55720 रुपये चुकाने होंगे. अब यहीं पर अगर मान लीजिए कि रुपये की वैल्यूएशन गिर गई और ये 80 पर आ गया तो आपको 56,000 रुपये देने होंगे. यही ऑर्डर अगर बल्क में है तो सोचिए आपको कितनी ज्यादा रकम मोबाइल के इंपोर्ट पर खर्च करनी होगी. ऐसे में एक तस्वीर उभरती है कि सरकार की ओर से घरेलू प्रोडक्शन को बढ़ावा दिया जाएगा, घरेलू कंपनियां देश में ही मोबाइल बनाएंगी और बेचेंगी जिससे घरेलू मैन्यूफैक्चरिंग को बढ़ावा मिलेगा. हालांकि ये इस बात पर निर्भर करता है कि घरेलू कंपनियां डिमांड को पूरा कर पाती हैं या नहीं, वरना रुपये की कमजोरी से इंपोर्ट बिल बढ़ता है. 

एक्सपोर्ट और आईटी इंडस्ट्री को फायदा
रुपये में गिरावट का फायदा एक्सपोर्ट इंडस्ट्री और आईटी इंडस्ट्री को सबसे ज्यादा होता है. आईटी इंडस्ट्री की कमाई का एक बड़ा हिस्सा अमेरिका से आता है और ये डॉलर में होता है, मान लीजिए कि आईटी इंडस्ट्री हर महीने 100 डॉलर कमाती है, अगर रुपये 70 के लेवल पर है तो उसे रुपये के टर्म में 7000 रुपये मिलेंगे, अगर रुपया कमजोर होकर 80 के स्तर पर आ गया तो कंपनी को 8000 रुपये मिलेंगे. इसी तरह एक्सपोर्ट इंडस्ट्री को भी रुपये की कमजोरी का फायदा मिला है, क्योंकि इनको पेमेंट डॉलर में होती है, जब वो इसे रुपये में कनवर्ट करते हैं तो रकम ज्यादा मिलती है. 

कच्चे तेल में गिरावट से क्या फायदा
अब बात करते हैं कि कच्चा तेल अगर गिरता है तो कैसे मार्केट और इकोनॉमी को फायदा पहुंचता है. देखिए सबसे पहले फायदा तो यही है कि भारत अपनी जरूरत का 80 परसेंट क्रूड ऑयल इंपोर्ट करता है, यानी अगर कच्चा तेल सस्ता होगा तो उसका इंपोर्ट बिल कम हो जाएगा इससे वित्तीय घाटे में भी कमी आती है. आपको बता दें कि भारत के इंपोर्ट बिल में 20 परसेंट हिस्सा सिर्फ कच्चे तेल के इंपोर्ट का है. इसलिए अगर बिल में कमी आएगी तो इकोनॉमी की सेहत सुधरेगी. 

वित्तीय घाटा कम होता है 
रूस यूक्रेन की जंग जब शुरू हुई तो कच्चा तेल मार्च में 125 डॉलर प्रति बैरल तक चला गया था, लेकिन अब ब्रेंट क्रूड 90 डॉलर के करीब आ चुका है. एक अनुमान के मुताबिक कच्चे तेल की कीमतों में अगर 10 डॉलर प्रति बैलर की कमी आती है तो भारत करेंट अकाउंट डेफिसिट यानी वित्तीय घाटा 15 बिलियन डॉलर कम होता है. अगर कच्चा तेल 10 डॉलर भी कम होता है तो GDP पर 0.5%-0.6% का असर पड़ता है. कच्चा तेल अगर गिरता है तो इसका फायदा आम उपभोक्ताओं को भी होता है, जैसे 3 महीने से तेल मार्केटिंग कंपनियों ने पेट्रोल-डीजल के दाम नहीं बढ़ाए हैं. 

रुपये को मजबूती मिलती है 
चूंकि कच्चा तेल पूरी तरह से डॉलर में ट्रेड होता है, अगर कच्चा तेल सस्ता होता है तो इसका असर डॉलर पर भी आता है, डॉलर कमजोर होता है और रुपये को सपोर्ट मिलता है. इस वक्त डॉलर इंडेक्स काफी बढ़ा हुआ है, इसलिए रुपया हल्का कमजोर है, अगर डॉलर इंडेक्स 100 के आस-पास रहता तो रुपया आज काफी मजबूत स्थिति में होता. फिर भी दुनिया भर की करेंसीज के मुकाबले रुपया बेहतर स्थिति में है. 

शेयर बाजार पर भी असर होता है 
कच्चा तेल कमजोर होने का फायदा शेयर बाजार पर भी पड़ता है, कच्चे तेल पर निर्भर कंपनियों को इससे फायदा पहुंचता है. जैसे पेंट बनाने वाली कंपनियां, एविएशन कंपनियां, सिरेमिक कंपनियां, प्लास्टिक कंपनियां और पैकेजिंग कंपनियां कच्चे तेल का प्रोडक्शन में इस्तेमाल करती हैं. हालांकि कच्चे तेल की गिरावट से ऑयल एंड गैस क्षेत्र की कंपनियों को नुकसान पहुंचता है. क्योंकि उनकी कमाई घट जाती है. 


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