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कलेक्टर साहिबा की क्लास: पढ़ना-लिखना ही नहीं सिखाया, Fraud से बचना भी बताया
मंडला की कलेक्टर हर्षिका सिंह अब इंदौर नगर निगम की कमिश्नर बन गई हैं, हालांकि, मंडला में शिक्षा का जो दीपक वह जलाकर आईं हैं, वो सदा ही ज्ञान का उजाला फैलाता रहेगा.
नीरज नैयर 11 months ago
'कहीं के कलेक्टर हो क्या'? ये सवाल तंज भरे लहजे में पूछा जाता था, क्योंकि किसी जमाने में कलेक्टरी का मतलब होता था ऐशोआराम भरी जिंदगी. वैसे, कलेक्टर का रुतबा आज भी उतना ही 'कड़क' है, लेकिन अब कलेक्टर AC केबिन से निकलकर उन आम लोगों की सुध लेने लगे हैं, जिनके लिए उन्हें कुर्सी पर बैठाया जाता है. कलेक्टर के किरदार में यह बदलाव आया है हर्षिका सिंह जैसे आईएस अधिकारियों की बदौलत. जिन्होंने हमेशा खुद को जिले का मुखिया समझने के बजाए जनता का सेवक समझा और जनता के हाथों को मजबूत बनाने के लिए काम किया. फिर ये मजबूती शिक्षा के रूप में हो, रोजगार के रूप में या फिर किसी और रूप में.
'निरक्षरता से आजादी' अभियान
बतौर मंडला कलेक्टर हर्षिका सिंह ने कुछ ऐसा कर दिखाया है, जिसे जिले का बाशिंदा हमेशा याद रखेगा. उन्होंने सालों से अपना नाम सुनकर जी रहे लोगों को, उस नाम को महसूस करना सिखाया है. हालांकि, हर्षिका अब नई जिम्मेदारी संभालने इंदौर आ गई हैं, लेकिन उनके द्वारा जलाया गया शिक्षा का दीपक अब भी ज्ञान का प्रकाश फैला रहा है. हर्षिका सिंह को मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर में नगर निगम कमिश्नर नियुक्त किया गया है. मंडला में अपने कार्यकाल के दौरान, उन्होंने 'निरक्षरता से आजादी' अभियान चलाया, जिसे प्रदेश से लेकर दिल्ली तक सराहा गया. हर्षिका की बदौलत इस आदिवासी बहुल जिले के ग्रामीणों ने न केवल क, ख, घ को मिलाकर शब्द बनाना सीखा, बल्कि यह भी जाना कि OTP, बैंक फ्रॉड आदि से कैसे बचना है.
खुद उठाया पढ़ाने का बीड़ा
लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से पढ़ाई करने वालीं हर्षिका सिंह को जब मंडला में पोस्टिंग मिली, तो जमीनी स्तर पर काम के दौरान उन्होंने महसूस किया कि यहां के आदिवासियों, खासकर महिलाओं को बड़े पैमाने पर शिक्षित करने की जरूरत है. क्योंकि शिक्षा के अभाव में वह न केवल अपने अधिकारों से वंचित हो रहे थे, बल्कि जालसाजों के जाल में फंसकर अपनी मेहनत की कमाई भी गंवा रहे थे. ज़्यादातर को तो यह भी नहीं पता था कि 500-500 के दो नोट हजार रुपए हो जाते हैं. हर्षिका यदि चाहतीं तो कलेक्टर की शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए ग्रामीणों को शिक्षित और जागरुक करने का आदेश जारी कर देतीं, गांवों की दीवारों पर शिक्षा के महत्व को समझाने वाले संदेश लिखवा देतीं, लेकिन वह समझती थीं कि निरक्षरता के अंधेरे में ऐसे संदेश 'उजाले' का नाम नहीं कर सकते. इसलिए उन्होंने खुद लोगों को शिक्षित करने के अभियान का बीड़ा उठाया.
ऐसे तैयार की अभियान की नींव
हर्षिका सिंह ने गांवों के अनगिनत दौरे किए, लोगों से जिले का मुखिया नहीं, आम आदमी बनकर बातचीत की. उन्हें पढ़ाई का महत्व बताया, उन्हें पढ़ने के लिए तैयार किया. इस तरह, उन्होंने अपने इस सोशल अभियान की नींव तैयार की. इसके बाद ज्ञान की मजबूत 'बिल्डिंग' बनाने के लिए उन्होंने ऐसे लोगों की तलाश शुरू की, जो इस बात में यकीन करते हैं कि 'ज्ञान बांटने से बढ़ता है'. धीरे-धीरे उनकी तलाश पूरी होती गई और आदिवासियों को साक्षर बनाने की उनकी योजना फुल स्पीड से दौड़ने लगी. इस दौड़ में उन्होंने खुद को भी बराबर से शामिल रखा. हर्षिका सिंह के मुताबिक, उनके इस अभियान का सबसे खूबसूरत पल वो था, जब एक बुजुर्ग महिला ने उनसे कहा – मैं पिछले 80 सालों से केवल अपना नाम सुन रही थी, लेकिन आज मैं इसे महसूस कर पा रही हूं, क्योंकि अब मैं अपना नाम लिख सकती हूं.
तैयार किया कोर्स मोड्यूल
कलेक्टर हर्षिका सिंह ने साक्षर यानी पढ़े-लिखे वॉलेंटियर्स की एक टीम बनाई और उसके हर सदस्य को कम से कम 5 लोगों को पढ़ाने की जिम्मेदारी सौंपी गई. इतना ही नहीं, एक कोर्स मोड्यूल भी तैयार किया कि क्या-क्या पढ़ाना है. इसमें सामान्य लिखने-पढ़ने के साथ OTP से होने वाले फ्रॉड से बचने के महत्वपूर्ण पाठ भी शामिल किए गए. हर्षिका के प्रयासों की बदौलत आज मंडला में 25 हजार से ज्यादा वॉलेंटियर्स की टीम लोगों को पढ़ाने-जागरुक करने के काम में लगी है. हर्षिका सिंह के मुताबिक, पिछले साल जुलाई तक 95% लोग अपना नाम लिखने-पढ़ने की स्थिति में आ गए थे. मोबाइल पर सरकारी योजनाओं से जुड़े संदेशों का मतलब समझने के लिए अब उन्हें यहां-वहां भटकने की जरूरत नहीं है. वह अब जानते हैं कि OTP क्या है, उसका इस्तेमाल कैसे होता है, कैसे OTP से होने वाली धोखाधड़ी से बचना है. बता दें कि OTP फ्रॉड के चलते हर साल अनगिनत लोगों को अपनी खून-पसीने की कमाई से हाथ धोना पड़ता है.
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