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जिन अस्पतालों को DRDO ने महज 20 दिनों में कर दिया था खड़ा, अब हो रहे बंद; जानें क्या है वजह
इन अस्पतालों में 200 से अधिक स्वास्थ्य देखभाल कर्मचारियों, वरिष्ठ सलाहकारों और सहायक कर्मचारियों ने कोरोना काल में मरीजों को ठीक करने के लिए चौबीसों घंटे काम किया था.
बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 year ago
कोरोना महामारी के समय डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन (DRDO) द्वारा रिकॉर्ड समय में घाटी में तैयार किए गए दोनों अस्पताल बंद हो गए हैं. 500 बिस्तर वाले इन अस्पतालों में दर्जनों कोरोना पीड़ित परिजनों का इलाज किया गया था. एक रिपोर्ट के मुताबिक DRDO ने 30 करोड़ की लागत से महज दो दिनों में ये अस्थायी अस्पताल खड़े कर दिए थे. डीआरडीओ और जम्मू-कश्मीर सरकार के बीच बातचीत नहीं बन पाने की वजह से अब इन अस्पतालों को बंद कर दिया गया है.
यहां बने थे अस्पताल
कोरोना की दूसरी लहर के समय डीआरडीओ ने जम्मू के भगवती नगर में पहला और श्रीनगर में दूसरा अस्पताल बनाया था. दोनों अस्पतालों में 125-125 बेड आइसीयू के थे. एक साल के लिए अस्पताल के फंड की व्यवस्था PM केयर से की गई थी. डीआरडीओ चाहता था कि यूनियन टेरिटरी एडमिनिस्ट्रेशन दोनों अस्पतालों का नियंत्रण पूरी तरह से अपने हाथों में ले ले. इसके लिए दोनों पक्षों के बीच बातचीत भी हुई, लेकिन ठोस परिणाम नहीं निकल पाया.
खर्च के भुगतान पर अटकी बात
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, DRDP ने प्रशासन को ऑफर दिया था कि अस्पतालों के निर्माण और उनमें उपकरणों पर आए खर्चे का भुगतान करके वो अस्पतालों को अपने नियंत्रण में ले सकता है. प्रशासन ने इसके बाद अपने स्तर पर मूल्यांकन के लिए समिति का गठन किया और समिति ने अस्पतालों में लगे उपकरणों व अन्य सामान का मूल्यांकन किया. टीम ने जम्मू के अस्पताल में लगे उपकरणों व अन्य सामान की कीमत 5 करोड़ रुपए आंकी जबकि श्रीनगर के अस्पताल की साढ़े छह करोड़ रुपए. लेकिन डीआरडीओ अपनी मूल लागत मांग रहा था. इसी वजह से बात फाइनल नहीं हो पाई.
सामान का क्या होगा?
इसके अलावा, जम्मू के अस्पताल का मासिक किराया भी एक मुद्दा था. इसके चलते प्रशासन ने दोनों ही अस्पताल को चलाने से मना कर दिया. अब दोनो ही अस्पतालों को तोड़ा जा रहा है. अस्पतालों के आधुनिक चिकित्सा उपकरण वेंटिलेटर, मॉनिटर, ऑक्सीजन जनरेशन प्लांट, सीटी स्कैन प्लांट, सक्शन यूनिट, 500 बेड, सीसीटीवी कैमरे, वाईफाई गैजेट्स और अन्य सामग्री का कहां और कैसे इस्तेमाल किया जाएगा ये देखने वाली बात होगी. बता दें कि इन अस्पतालों में 200 से अधिक स्वास्थ्य देखभाल कर्मचारियों, वरिष्ठ सलाहकारों और सहायक कर्मचारियों ने कोरोना काल में मरीजों को ठीक करने के लिए चौबीसों घंटे काम किया था.
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