Bournvita के साथ हुई क्राइसिस से बदलेगी कंपनियों की चाल?

दरअसल एक आपत्तिजनक विडियो में कंपनी की ब्रैंडिंग दिखाई गयी थी और इसे कंपनी की ऐड के तौर पर आगे बढ़ा दिया गया था.

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Wednesday, 03 May, 2023
Bournvita BW

कैडबरी (Cadbury) ने जिस तरह से Bournvita विवाद को संभाला है उसके बाद यह तो बहुत अच्छे से साफ हो गया है कि आपको किसी भी समस्या को कैसे नहीं संभालना होता है. लोगों की राय से लेकर बाकी सबकुछ भी कंपनी के खिलाफ जाता नजर आ रहा है. इस मामले में हाल ही में एक नया ट्विस्ट देखने को मिला है. NCPCR (National Commission For  Protection Of Child Rights) ने ब्रैंड से अपने भ्रामक ऐड्स को हटाकर एक डिटेल्ड रिपोर्ट सबमिट करने को कहा है. 

इन ब्रैंड्स को भी हुई है परेशानी
Bournvita का संकट सोशल मीडिया से शुरू हुआ था. हाल ही में बैग बनाने वाली VIP इंडस्ट्रीज का ब्रैंड Skybags, बॉयकॉट गैंग का शिकार बन गया. दरअसल एक आपत्तिजनक विडियो में कंपनी की ब्रैंडिंग दिखाई गयी थी और इसे कंपनी की ऐड के तौर पर आगे बढ़ा दिया गया था. इसके बाद कंपनी को एक आधिकारिक बयान जारी करना पड़ा और इससे भी इन्टरनेट पर गुस्साए लोगों को कुछ खास तसल्ली नहीं मिली. इतना ही नहीं, Anheuser-Busch द्वारा ट्रांसजेंडर एक्टिविस्ट Dylan Mulvaney को अपने एक सोशल मीडिया कैंपेन में शामिल किया था जिसके बाद कंपनी के ब्रैंड Bud Light को संकट का सामना करना पड़ा था और अभी भी यह संकट पूरी तरह खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है. 

बॉयकॉट का संकट
कंपनी समाधान के तौर पर एक दूसरी ऐड भी लेकर आई ताकि वह इस विवाद से खुद को दूर कर सके लेकिन तब तक कंपनी को काफी ज्यादा नुक्सान हो चुका था. इस ऐड की वजह से कंपनी को अपनी मार्केटिंग वाईस प्रेजिडेंट Alissa Heinerscheid को छुट्टी पर भेजना पड़ा. 2019 से लेकर अभी तक कई ब्रैंड्स को धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने और अपनी टारगेट ऑडियंस को न समझ पाने जैसे कारणों की वजह से कई बार बॉयकॉट का शिकार बनना पड़ा. हालांकि कुछ ब्रैंड्स इस बॉयकॉट संकट से सफलतापूर्वक बाहर आ गए हैं लेकिन बहुत से ब्रैंड्स से ऐसे भी हैं जिनकी किस्मत इतनी अच्छी नहीं थी. 

कंपनियों को करने चाहिए ये बदलाव
सोशल मीडिया के इस दौर में ब्रैंड्स को क्राइसिस मैनेजमेंट के खर्चे को बढ़ाना होगा और ऐसी रणनीतियां बनानी होंगी जो ऐसे विवादों से उन्हें बचा सकें जिनकी बदौलत कंपनियों को नुकसान उठाना पड़ता है. लेकिन पिछले कुछ समय में कंपनियों को बॉयकॉट करने की मांग में इतनी ज्यादा वृद्धि देखने को मिली है कि अब लगता है कि बॉयकॉट के इस संकट से निपटने के लिए कंपनियों को अपनी रणनीतियों में बदलाव कर लेना चाहिए. और क्या पता, शायद कुछ पुरानी सीखों को भुलाना भी पड़े? इसीलिए हमने इंडस्ट्री पर ध्यान देने वाले एक्सपर्ट्स से बात की और यह जानने की कोशिश की कि क्या सच में इस वक्त ब्रैंड्स को सोशल मीडिया ड्रिल की जरुरत है?

कस्टमर्स की भावनाएं 
DENTSU CREATIVE इंडिया में अकाउंट मैनेजमेंट की वाईस प्रेजिडेंट उपासना नैथानी का मानना है कि इस वक्त ब्रैंड्स के लिए एक सोशल मीडिया ड्रिल बहुत जरूरी है. उन्होंने कहा – सोशल मीडिया एक बहुत ही डायनामिक जगह है. हालांकि हम ऐसे संभावित खतरों की एक लिस्ट तैयार कर सकते हैं जिनका सामना किसी ब्रैंड को सोशल मीडिया पर करना पड़ सकता है लेकिन हम कभी भी सुनिश्चित तौर ये नहीं बता सकते कि ये खतरे क्या हैं और इनकी शुरुआत कहां से होती है? कस्टमर्स की भावनाओं को समझने की जरूरत कि महत्ता को समझाते हुए उपासना नैथानी ने कहा – अगर किसी के चहेते ब्रैंड को सोशल मीडिया पर टारगेट किया जाता है तो ऐसे वक्त पर कस्टमर्स की भावनाएं मुख्य रूप से देखने को मिलती हैं. ब्रैंड्स को अपने कस्टमर्स की भावनाओं में इन्वेस्ट करना चाहिए और किसी भी तरह की रणनीति बनाते हुए कंपनी को इनका ध्यान रखना चाहिए. 

बार बार करनी होंगी ड्रिल्स
Infectious Advertising के चीफ डिजिटल ऑफिसर राशिद अहमद ने मॉक ड्रिल्स की बात करते हुए कहा कि एक सोशल और PR क्राइसिस मैनेजमेंट प्लान का फायदा तब तक नहीं है जब तक इन प्लान्स को लागू करने वाले लोग पूरी तरह से तैयार न हों. बार-बार विभिन्न संकटों को कवर करने वाली मॉक ड्रिल्स करने से जवाब में तेजी के साथ-साथ जवाब देने का सही तरीका भी सामने आएगा. ऐसी ड्रिल्स बार बार करनी चाहिए और साथ ही अगर क्राइसिस मैनेजमेंट टीम में से किसी व्यक्ति को बदला जाता है या जोड़ा जाता है तो भी ऐसी ड्रिल्स बार करनी चाहिए. सोशल पंगा की डिजिटल स्ट्रेटेजी की डायरेक्टर सुनीता नटराजन की राय इस बारे में कुछ और है. उनका मानना है कि ब्रैंड्स को अपनी टीमों को एक दुसरे से जोड़ना चाहिए और उनकी सोच को एक सामान लेवल पर लेकर आना चाहिए. 

मॉक ड्रिल में है ये परेशानी
सुनीता नटराजन कहती हैं - मुझे लगता है कि सोशल मीडिया क्राइसिस ड्रिल करने की बजाय कस्टमर्स की भावनाओं को बेहतर तरीके से समझने के लिए ज्यादा से ज्यादा रेगुलर वर्कशॉप करनी चाहिए और वह ज्यादा बेहतर है. सुनीता नटराजन जोर देते हुए कहती हैं कि कॉर्पोरेट, PR, और सोशल टीमों के लिए ब्रैंड की साख बढाने के लिए आपस में एक दुसरे का सहयोग करना चाहिए. क्योंकि अक्सर एक कंपनी में बड़ी-बड़ी टीमें, स्टेकहोल्डर्स और एजेंसियां शामिल होती हैं इसलिए एक सोशल मीडिया ड्रिल में इन्हें शामिल करना काफी थकाऊ और झंझट भरा काम हो सकता है. 

(यह खबर Exchange4Media द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट पर आधारित है.)
 

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न पैसा था, न बैंक अकाउंट फिर Ramdev ने कैसे खड़ी कर डाली Patanjali? बेहद दिलचस्प है कहानी

बाबा रामदेव के पास आज पैसों की कोई कमी नहीं है. वहीं, पतंजलि भी लगातार विस्तार करती जा रही है.

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Friday, 26 April, 2024
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पतंजलि आयुर्वेद के भ्रामक विज्ञापन को लेकर बाबा रामदेव (Baba Ramdev) और उनके सखा आचार्य बालकृष्ण (Acharya Balkrishna) को सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी का सामना करना पड़ा है. संभवतः यह पहली बार होगा जब रामदेव को अदालत से कितनी फटकार खानी पड़ी है. बाबा और बालकृष्ण कई बार माफी भी मांग चुके हैं. सोमवार को पतंजलि ने बड़े फॉन्ट साइज में अखबारों में माफीनामा प्रकाशित किया था. अब यह देखना है कि 30 अप्रैल को होने वाली सुनवाई में अदालत का क्या रुख रहता है. 

आज इतना है कंपनी का टर्नओवर  
पतंजलि (Patanjali) आज एक बहुत बड़ी कंपनी बन गई है और रामदेव की गिनती देश के दिग्गज कारोबारियों में होती है. कंपनी का मार्केट कैपिटलाइजेशन लगभग 55,490 करोड़ रुपए है. लेकिन एक समय ऐसा भी था जब बाबा के पास कंपनी शुरू करने के लिए पैसे नहीं थे. उन्होंने अपनी एक भक्त से आर्थिक सहायता लेकर पतंजलि की नींव रखी थी. चलिए आपको बताते हैं कि पतंजलि की शुरुआत कैसे हुई और इसमें सबसे पहले किसका पैसा लगा था.  

इन्होंने दिया था पर्सनल लोन
NRI सुनीता और उनके पति सरवन सैम पोद्दार (Sunita and Sarwan Sam Poddar) ने पतंजलि की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. दोनों रामदेव के फॉलोअर हैं. उन्होंने ही बाबा को 50 से 60 करोड़ रुपए का पर्सनल लोन दिया था, जिसकी बदौलत 2006 में रामदेव और आचार्य बालकृष्ण पतंजलि आयुर्वेद की स्थापना कर पाए. पोद्दार दंपत्ति ने बाबा को यह लोन बिजनेस (Personal Loan For Business) शुरू करने के लिए दिया था और उनकी पतंजलि आयुर्वेद में हिस्सेदारी भी थी. यह वो दौर था जब रामदेव के पास अपना बैंक खाता भी नहीं था.

उस समय थे दूसरे बड़े स्टेकहोल्डर
2011 की एक रिपोर्ट के अनुसार, सरवन 'सैम' पोद्दार और उनकी पत्नी सुनीता स्कॉटलैंड में रहते हैं. उन्होंने 20 लाख पाउंड में लिटिल कुम्ब्रे नामक एक द्वीप खरीदा था, जिसे उन्होंने 2009 में बाबा रामदेव को बतौर गिफ्ट दिया था. 2011 तक दोनों के पास पतंजलि आयुर्वेद में 24.92 लाख शेयर थे. इस तरह, उनकी कंपनी में 7.2 प्रतिशत हिस्सेदारी थी. पोद्दार दंपत्ति आचार्य बालकृष्ण के बाद पतंजलि आयुर्वेद में दूसरे सबसे बड़े हितधारक थे. बालकृष्ण के पास कंपनी में 92% से अधिक शेयर हैं. हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि वर्तमान में NRI पति-पत्नी की कंपनी में हिस्सेदारी है या नहीं.

एक DVD ने बनाया भक्त 
सुनीता बाबा रामदेव की भक्त थीं. बाबा के योग ज्ञान के चलते उन्होंने अपना काफी वजन कम किया था. वह स्वामी रामदेव से इतनी ज्यादा प्रभावित थीं कि उन्होंने बाबा को आइलैंड गिफ्ट करने के लिए अपने पति को राजी कर लिया. सुनीता बाद में यूके के पतंजलि पीठ ट्रस्ट की ट्रस्टी भी बन गईं. सुनीता के पति सरवन का जन्म बिहार के बेतिया में हुआ था. जबकि सुनीता मुंबई में पैदा हुईं और काठमांडू में पली-बढ़ीं. सुनीता को कहीं से बाबा रामदेव की योग क्लासेस की DVD मिली थी. इसके बाद जब रामदेव ग्लासगो गए तब वहां सुनीता ने उनसे मुलाकात की. इसके बाद वह बाबा की भक्त हो गईं.  

पंजीकरण के भी नहीं थे पैसे
सैम पोद्दार के पिता ग्लासगो में डॉक्टर थे. जब सैम सिर्फ 4 साल के थे, तब उनके पिता भारत छोड़कर ग्लासगो शिफ्ट हो गए थे. सैम इंजीनियर हैं उन्होंने 1980 के दशक में एक परिचित का होम-केयर व्यवसाय खरीदा था. 1982 में उन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया और बिजनेस में पूरी तरह से उतर गए. जबकि सुनीता गैस स्टेशन चलाती थीं, बाद में वह भी पति का बिजनेस में हाथ बंटाने लगीं. रामदेव ने एक बार कहा था कि 1995 में उनके पास दिव्य फार्मेसी के पंजीकरण तक के लिए पैसे नहीं थे. उस समय योग गुरु के तौर पर उन्हें इतनी पहचान नहीं मिली थी.

बाबा के पास है दौलत का पहाड़
बाद में जब रामदेव ने लोकप्रियता हासिल की, तो उन्होंने कुछ बड़ा करने का फैसला लिया. तब सरवन और सुनीता पोद्दार ने उन्हें काफी बड़ा कर्ज दिया था. उनके साथ ही गोविंद अग्रवाल नामक शख्स ने भी उनकी मदद की थी. सुनीता ओकमिनस्टर हेल्थकेयर (Oakminster Healthcare) की सीईओ और संस्थापक हैं. यह कंपनी स्कॉटलैंड की लीडिंग होम केयर प्रदान करने वाली कंपनी है. बाबा रामदेव आज योगगुरु के साथ-साथ बिजनेसमैन भी बन चुके हैं. साल 2022 में उनकी नेटवर्थ 190 मिलियन डॉलर यानी करीब 1400 करोड़ रुपए थी. जबकि आचार्य बालकृष्ण की कुल संपत्ति 29,680 करोड़ रुपए थी.

साधारण जीवन पर लग्जरी कारों का शौक
बाबा रामदेव ने एक बार कहा था कि उनकी कमाई चैरिटी में जाती है और वह साधारण जीवन जीना पसंद करते हैं. हालांकि, ये बात अलग है कि वह अक्सर लग्जरी कारों में घूमते नजर आ जाते हैं. पिछले साल उनकी लैंड रोवर डिफेंडर 130 (Land Rover Defender 130) को लेकर काफी चर्चा हुई थी, जिसकी कीमत 1.41 करोड़ रुपए के आसपास है. इससे पहले, उनके नई Mahindra XUV700 खरीदने की बात भी सामने आई थी. बताया जाता है कि इसके अलावा, बाबा रामदेव के पास लैंड रोवर डिस्कवरी, रेंज रोवर इवोक, महिंद्रा स्कॉर्पियो, और जगुआर एक्सजेएल भी है.
 


Ankiti Bose: खूब कमाई दौलत-शौहरत, सेलिब्रिटी CEO बनीं, फिर खुद लिख डाली बर्बादी की कहानी  

अंकिती बोस ने थोड़े से समय में ही काफी नाम कमा लिया था. 2018 में अंकिती का नाम फोर्ब्स एशिया की 30 अंडर 30 लिस्ट में आया था.

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Thursday, 25 April, 2024
Photo Credit: Bloomberg

सिंगापुर की फैशन कंपनी जिलिंगों (Zilingo) एक बार फिर सुर्खियों में है. वजह है कंपनी की पूर्व सीईओ और फाउंडर अंकिती बोस (Ankiti Bose) की FIR. बोस ने कंपनी के दो अधिकारियों के खिलाफ मुंबई में शिकायत दर्ज कराई है. उन्होंने ध्रुव कपूर और वैद्य पर ठगी, धोखाधड़ी, डराने-धमकाने के साथ-साथ यौन उत्पीड़न का भी आरोप लगाया है. अंकिती बोस ने महज थोड़े से समय में बेशुमार दौलत और शौहरत हासिल कर ली थी. उनके नेतृत्व में कंपनी सफलता के शिखर पर पहुंच गई थी, लेकिन उसकी बर्बादी की कहानी भी उन्होंने खुद ही अपने हाथों से लिख डाली. 

ऐसे शुरू हुई थी परेशानी 
साल 2020 में Zilingo की चर्चा तब हुई थी जब उसमें निवेश करने वालों ने अपने पैसे मांगने शुरू कर दिए हैं. दरअसल, जिलिंगो ने टेमसेक होल्डिंग्स और सिकोइया कैपिटल इंडिया जैसे कई बड़े निवेशकों से करीब 30 करोड़ डॉलर जुटाए थे. जैसे ही कंपनी ने वित्तीय गड़बड़ी के आरोपों के चलते अंकिती बोस की बर्खास्तगी का ऐलान किया, निवेशकों ने अपने पैसे मांगने शुरू कर दिया. कंपनी गंभीर आर्थिक संकट में घिर गई, उसके कर्मचारियों की नौकरियों पर तलवार लटकने लगी. इस अच्छी-खासी कंपनी को बर्बादी के कगार पर पहुंचाने के लिए उसकी पूर्व सेलिब्रिटी सीईओ रहीं अंकिती बोस ठहराया गया.

केवल खुद पर था फोकस 
अंकिती का काम करने का तरीका ऐसा हो गया था कि कंपनी लगातार नुकसान में जाने लगी थी. हालांकि, ये बात अलग है कि 2019 में जिलिंगों की वैल्युएशन जब 97 करोड़ डॉलर पर पहुंच गई, तब अंकिती के काम को खूब सराहा गया. यह भी कहा जाने लगा था कि जिलिंगों 1 अरब डॉलर की वैल्युएशन को हासिल कर यूनिकॉर्न क्लब में शामिल हो जाएगी. जिलिंगो के कई कर्मचारियों ने स्वीकार किया था कि अंकिती बोस के नेतृत्व में कंपनी कई सालों से खराब प्रदर्शन कर रही थी. बोस के काम करने का तरीका ऐसा था कि कंपनी के अधिकांश कर्मचारी खुद को अलग-थलग महसूस करने लगे थे. बोस ने बिजनेस को पूरी तरह से नजरंदाज कर दिया था और उनका पूरा फोकस केवल खुद पर था.

रिश्तों में आ गई थी खटास 
अंकिती का जन्म 1992 में भारत में हुआ. उन्होंने अपनी स्कूली पढ़ाई और ग्रेजुएशन मुंबई से की. बोस ने अपने करियर की शुरुआत मैकेन्जी एंड कंपनी से की. इसके बाद वह सिकोइया कैपिटल से जुड़ गईं. कहा यह गया कि जिलिंगो को बर्बादी के कगार पर लाने के पीछे अंकिती बोस और शैलेंद्र सिंह के बीच पनपा विवाद भी जिम्मेदार रहा. पहले इन दोनों के बीच अच्छा रिश्ता था, लेकिन बाद में संबंधों खटास आ गई. शैलेंद्र सिंह उस समय सिकोइया इंडिया (Sequoia India) के MD थे. हालांकि, दोनों ने कभी अपने रिश्ते पर खुलकर बात नहीं की. 

पड़ोसी के साथ की थी शुरुआत
अंकिती को फैशन कंपनी शुरू करने का आइडिया बैंकॉक में छुट्टियां बिताते समय आया था. इसके बाद उन्होंने 2015 में अपने पड़ोसी ध्रुव कपूर से इस बारे में चर्चा की. उस समय ध्रुव कपूर गेमिंग स्टूडियो 'कीवी इंक' में सॉफ्टवेयर इंजीनियर थे. कुछ महीनों की चर्चा के बाद दोनों ने नौकरी छोड़कर जिलिंगो की शुरुआत की. इसके लिए उन्होंने अपनी 30000 डॉलर की सेविंग्स लगाई. जिलिंगो का मकसद दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया के छोटे व्यवसायों को अपना सामान ऑनलाइन बेचने में मदद करना था. इस कंपनी का हेडक्वॉर्टर सिंगापुर में है और इसकी एक टीम बेंगलुरु में बैठती है.

कई पुरस्कार भी मिले थे
2016 में बोस सिंगापुर चली गईं, जहां उन्होंने जिलिंगो सॉफ्टवेयर और सप्लाई चेन सॉल्युशंस को शुरू किया. अंकिती बोस ने थोड़े से समय में ही काफी नाम कमा लिया था. 2018 में अंकिती का नाम फोर्ब्स एशिया की 30 अंडर 30 लिस्ट में आया. 2019 में उन्हें फॉर्च्यून की 30 अंडर 30 और ब्लूमबर्ग 50 में जगह मिली. इतना ही नहीं, 2019 में ही उन्हें बिजनेस वर्ल्डवाइड मैगजीन मोस्ट इनोवेटिव सीईओ ऑफ द ईयर-सिंगापुर का अवॉर्ड मिला. 2020 में उन्हें सिंगापुर 100 वुमन में जगह मिली. लेकिन बाद में उनका नाम दूसरी वजहों से चर्चा में रहा. आज अपने पूर्व सहकर्मियों पर गंभीर आरोप लगाकर वह फिर से खबरों में बनी हुई हैं.
 


मौका भी था और दस्तूर भी, फिर ख्वाब पूरा करने क्यों नहीं आए Musk, क्या चीन की है चालबाजी? 

भारत में टेस्ला की एंट्री एलन मस्क के लिए सपना पूरा होने जैसा है, ऐसे में उनका सपने के बेहद करीब पहुंचने के बाद खुद उससे दूरी बनाना, सामान्य नहीं है.

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Monday, 22 April, 2024
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दुनिया के चौथे सबसे अमीर कारोबारी एलन मस्क (Elon Musk) की इलेक्ट्रिक कार कंपनी टेस्ला (Tesla) की भारत में एंट्री कब होगी? इस सवाल का जवाब देना फिलहाल मुश्किल हो गया है. मस्क की 21-22 अप्रैल की प्रस्तावित भारत यात्रा में इस संबंध में ऐलान की पूरी उम्मीद थी, लेकिन ऐन वक्त पर मस्क ने भारत आने का इरादा टाल दिया. हालांकि, वह इस साल के अंत में भारत आने की बात कह रहे हैं पर उसमें अभी बहुत समय है और इसकी भी कोई गारंटी नहीं है कि तब इस बार की तरह दौरा न टले. लिहाजा, ऐसे में यह सवाल बेहद अहम हो गया है कि क्या एलन मस्क की भारत यात्रा टलने के पीछे चीन का हाथ है?

चुनौतियों का दिया था हवाला
एलन मस्क ने अपनी भारत यात्रा टालने का ऐलान चीनी सरकार के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स (Global Times) में छपी उस रिपोर्ट के बाद किया, जिसमें टेस्ला की भारत में सफलता पर शंका जाहिर की गई थी. ग्लोबल टाइम्स ने टेस्ला के भारत में मैन्युफैक्चरिंग प्लांट लगाना के फैसले पर सवाल उठाते हुए एक तरह से यह साफ कर दिया था कि चीनी सरकार इससे खुश नहीं है. रिपोर्ट में कहा गया था कि टेस्ला के भारत में EV प्लांट लगाने से भारत को जरूर फायदा होगा, लेकिन यह टेस्ला के लिए फायदे का सौदा नहीं रहने वाला. तमाम चुनौतियों के बीच, टेस्ला के लिए भारत के अपरिपक्व बाजार में मुनाफा कमाना कठिन होगा.

पूरी तस्वीर बदलने की है शंका
अमेरिका के बाद चीन टेस्ला का दूसरा सबसे बड़ा बाजार है. ऐसे में कंपनी का चीन के बजाए भारत पर फोकस करना बीजिंग को बिल्कुल भी रास नहीं आएगा. मस्क पहले चाहते थे कि वह चीन में निर्मित अपनी कारों को भारतीय बाजार में उतारें और संभावनाओं का पता लगाने के बाद यहां प्लांट लगाने का फैसला लें. लेकिन भारत सरकार के इंकार के बाद उनके लिए प्लांट लगाने के अलावा कोई चारा नहीं बचा. चीनी सरकार को मस्क की पहली वाली चाहत से कोई परेशानी नहीं थी, क्योंकि उससे चीन में टेस्ला के उत्पादन में ही इजाफा होता. मगर प्लांट लगाने से तस्वीर पूरी तरह पलट सकती है. 

चीन को सता रहा नुकसान का डर
भारत में बिजनेस के लिए अनुकूल स्थितियां मस्क को बीजिंग के बजाए नई दिल्ली पर फोकस करने के लिए प्रेरित कर सकती हैं. और यदि ऐसा होता है, तो चीन को बड़े पैमाने पर नुकसान उठाना होगा. लिहाजा, इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि मस्क की प्रस्तावित भारत यात्रा टलने के पीछे चीन का हाथ हो. बता दें कि टेस्ला वैश्विक स्तर पर कैलिफोर्निया, चीन, टेक्सास और जर्मनी में इलेक्ट्रिक कार कारखाने संचालित करती है. चीन स्थित फैक्ट्री टेस्ला के ग्लोबल प्रोडक्शन नेटवर्क में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. हाल के वर्षों में यहां टेस्ला की EV कारों के कुल उत्पादन का आधे से अधिक तैयार हुआ है.

परेशान करने में माहिर है China
चीन की कम्युनिस्ट सरकार भारत के प्रति प्यार दर्शाने वाली कंपनियों को परेशान करने की कला में माहिर है. आईफोन बनाने वाली Apple से चीनी सरकार काफी नाराज है, क्योंकि वह भारत के काफी करीब आ गई है. कुछ समय पहले कम्युनिस्ट सरकार ने अपने अधिकारियों को iPhone इस्तेमाल न करने का अघोषित फरमान सुनाया था. इसे Apple की भारत से करीबी के परिणाम के तौर पर ही देखा गया था. इसी तरह, जब ताइवान की दिग्गज कॉन्ट्रैक्ट मैन्युफैक्चरिंग कंपनी फॉक्सकॉन (Foxconn) ने भारत में बड़े निवेश की इच्छा जाहिर की, तो चीन इसे पचा नहीं पाया. उसने फॉक्सकॉन के खिलाफ जांच शुरू कर दी. स्थानीय टैक्स विभाग ने फॉक्सकॉन की सहयोगी कंपनियों का ऑडिट किया. इसके अलावा, नेचुरल रिसोर्सेज मिनिस्ट्री ने हेनान और हुबेई प्रांतों में कंपनी के लैंड यूज की जांच के भी आदेश दिए.  

Luxshare ने बदल लिया था रास्ता  
चीनी सरकार की बदले की इस कार्रवाई के चलते उन कंपनियों में भय व्याप्त हो गया है, जो Apple और Foxconn की तरह भारत में संभावनाएं तलाशना चाहती हैं. शायद यही वजह रही कि लक्सशेयर (Luxshare) ने भारत का रुख करने के बजाए वियतनाम में पिछले साल 330 मिलियन डॉलर का निवेश कर दिया. इस चीनी कंपनी ने पहले भारत में निवेश का फैसला किया था, लेकिन अचानक योजना में बदलाव करते हुए उसने वियतनाम में निवेश कर डाला. Luxshare भी Foxconn की तरह Apple के लिए कंपोनेंट बनाती है. Foxconn जहां कॉन्ट्रैक्ट पर इलेक्ट्रॉनिक्स सामान बनाने वाली दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी है. वहीं, Luxshare बड़ी कंपोनेंट मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों में शुमार है.

क्या मस्क को किया गया विवश?
भारत में टेस्ला की एंट्री एलन मस्क के लिए सपना पूरा होने जैसा है, ऐसे में उनका सपने के बेहद करीब पहुंचने के बाद खुद उससे दूरी बनाना, सामान्य नहीं है. इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता कि शी जिनपिंग की सरकार ने टेस्ला के खिलाफ इतनी प्रतिकूल परिस्थितियां निर्मित कर दी हों कि मस्क को फिलहाल भारत से दूरी बनाने को विवश होना पड़ा हो. ग्लोबल टाइम्स के माध्यम से चीनी सरकार ने अपनी नाखुशी तो जाहिर कर ही दी थी. मस्क के लिए चीन टेस्ला का जमा हुआ बाजार है और भारत में अभी उन्हें पैर जमाने हैं. ऐसे में उनके लिए चीन को नाराज करना मुश्किल है. चलिए यह भी जान लेते हैं कि ग्लोबल टाइम्स ने किस तरह मस्क को डराने की कोशिश की.

Tesla चीफ को इस तरह डराया गया      
ग्लोबल टाइम्स (Global Times) में हाल ही में एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी, जिसमें ऐसे कई कारणों का हवाला दिया गया है जिसकी वजह से भारत में टेस्ला का सफर अच्छा नहीं रहेगा. रिपोर्ट में कहा गया कि टेस्ला मिड एवं हाई-एंड सेक्टर और परिपक्व बाजारों पर ध्यान केंद्रित करती है. ऐसे में भारत के बेहद कम तैयारी वाले और अपरिपक्व बाजार में उसे सफलता मिलेगी या नहीं, कहना मुश्किल है. चीन के मुताबिक, भारत का ईवी बाजार बढ़ रहा है, लेकिन इसका आकार अभी काफी छोटा है. भारत में EV के लिए बुनियाद ढांचे का अभाव है. यहां पर्याप्त संख्या में पब्लिक चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर नहीं है. ऐसे में तमाम चुनौतियों के बीच, टेस्ला के लिए भारत के अपरिपक्व बाजार में मुनाफा कमाना कठिन होगा. 


क्या वाकई TATA और महिंद्रा का खेल बिगाड़ सकती है Tesla? समझिए पूरा गणित

अलग-अलग टारगेट ऑडियंस होने के चलते टेस्ला, टाटा और महिंद्रा का खेल बिगाड़ेगी, इसकी कोई संभावना फिलहाल नजर नहीं आती.

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Saturday, 20 April, 2024
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इलेक्ट्रिक कार कंपनी टेस्ला (Tesla) के चीफ एलन मस्क (Elon Musk) का भारत दौरा टल गया है. मस्क 2 दिवसीय यात्रा पर कल भारत आने वाले थे, लेकिन अब उनकी यात्रा इस साल के अंत तक के लिए टल गई है. माना जा रहा था कि मस्क भारत यात्रा के दौरान टेस्ला के मैन्युफैक्चरिंग प्लांट को लेकर घोषणा कर सकते हैं. अब यह देखने वाली बात होगी कि क्या इस घोषणा के लिए भी साल के अंत तक इंतजार करना होगा. 

टाटा और महिंद्रा को थी ये आपत्ति
एलन मस्क लंबे समय से टेस्ला की कारों को भारत में दौड़ते देखना चाहते हैं. हाल ही में मोदी सरकार द्वारा पेश की गई नई EV नीति से वह बेहद खुश हैं. हालांकि, टाटा मोटर्स (Tata Motors) और महिंद्रा (Mahindra) जैसी भारतीय कंपनियों को इस नीति से खास खुशी नहीं हुई होगी. क्योंकि उन्होंने इम्पोर्ट ड्यूटी में जिस छूट पर आपत्ति जताई थी, उसका जिक्र इस नीति में है. दरअसल, यह माना जा रहा है कि टेस्ला की एंट्री से घरेलू कंपनियों के लिए प्रतियोगिता बढ़ जाएगी. साथ ही EV बाजार में उनकी हिस्सेदारी पर भी असर पड़ेगा. लेकिन क्या वास्तव में Tesla, टाटा मोटर्स या महिंद्रा के लिए चुनौती बन सकती है? क्या वाकई इन कंपनियों को परेशान होने की जरूरत है? चलिए इस सवाल का जवाब खोजने की कोशिश करते हैं. 

इस समय TATA का है दबदबा
मौजूदा समय में भारत के EV मार्केट में टाटा मोटर्स का दबदबा है. टाटा पैसेंजर इलेक्ट्रिक मोबिलिटी लिमिटेड (TPEML) की देश के EV मार्केट में 73 प्रतिशत की हिस्सेदारी है. पिछले वित्त वर्ष में कंपनी 53,000 से अधिक EV बेच चुकी है. वैसे, टाटा मोटर्स के पोर्टफोलियो में ईवी की हिस्सेदारी केवल 12 फीसदी है, लेकिन इसमें तेजी से विस्तार हो रहा है. वहीं, महिंद्रा भी अपने EV पोर्टफोलियो को मजबूत करने की योजना पर काम कर रही है. आने वाले समय में कंपनी कुछ नई EV कारें बाजार में उतार सकती है. टाटा के EV पोर्टफोलियो में इस समय चार कारें हैं - Tata Nexon EV, टाटा टियागो EV, टाटा टिगॉर EV और टाटा पंच EV. टाटा ने 2019 में अपना इलेक्ट्रिक व्हीकल्स बिजनेस शुरू किया था. निजी इक्विटी फर्म TPG और अबू धाबी की होल्डिंग कंपनी एडीक्यू ने 2021 में टाटा की इस कंपनी में 1 बिलियन डॉलर का निवेश किया था.  

दोनों के अलग-अलग हैं Target 
वहीं, अगर टेस्ला की बात करें, तो इसमें पोर्टफोलियो में मुख्यतौर पर मॉडल 3, मॉडल Y, मॉडल X और मॉडल S शामिल हैं. कीमत के मामले में टेस्ला के ये सभी मॉडल टाटा और महिंद्रा की देश में बिकने वालीं इलेक्ट्रिक कारों से काफी महंगे हैं. टाटा पंच ईवी की दिल्ली में एक्स शोरूम कीमत 10.99 से  15.49 लाख रुपए है. टाटा नेक्सन ईवी की 14.74 से 19.99 लाख, टाटा टियागो ईवी की 7.99 से 11.89 लाख और टिगॉर इलेक्ट्रिक की 12.49 से 13.75 लाख रुपए है. महिंद्रा एक्सयूवी400 ईवी की कीमत 15.49-19.39 लाख रुपए है. जबकि टेस्ला मॉडल 3 की शुरुआती कीमत 40,240 डॉलर है और भारत में इसकी अनुमानित कीमत 39 से 40 लाख रुपए तक रह सकती है. इसी तरह, मॉडल Y की 49 लाख, मॉडल S की 85 लाख और मॉडल X की भारत में अनुमानित कीमत 95 लाख रुपए हो सकती है. इस लिहाज से देखें तो टाटा और टेस्ला की टारगेट ऑडियंस अलग है. टाटा जहां मिडिल क्लास के लिए EV कार बनाती है. वहीं, टेस्ला का फोकस अमीरों पर होगा. 

इन कंपनियों को मिलेगी चुनौती
अलग-अलग टारगेट ऑडियंस होने के चलते टेस्ला, टाटा और महिंद्रा का खेल बिगाड़ेगी, इसकी कोई संभावना फिलहाल नजर नहीं आती. हां, यदि भारत में लॉन्च के अगले कुछ सालों में टेस्ला मिडिल क्लास पर फोकस करती है, तब टाटा को चुनौती मिल सकती है. लेकिन इसकी संभावना भी कम है. भारत में टेस्ला के आने से उन लग्जरी कार निर्माताओं को परेशानी हो सकती है, जो पहले से भारत में मौजूद हैं. चीन की कंपनी BYD (Build Your Dreams भारत में तीन कारें लॉन्च कर चुकी है. इसकी नई नवेली EV कार Seal की शुरुआती एक्स-शोरूम कीमत 41 लाख और टॉप वैरिएंट की कीमत 53 लाख रुपए तक है. साउथ कोरियाई ऑटोमोबाइल कंपनी Hyundai को भी टक्कर मिल सकती है. कंपनी के मौजूदा EV पोर्टफोलियो में Kona और IONIQ 5 शामिल हैं. Kona की शुरुआती एक्स-शोरूम कीमत करीब 24 लाख रुपए है. जबकि IONIQ 5 की 45 लाख. इसी तरह, Kia की EV6 प्रीमियम इलेक्ट्रिक कार की शुरुआती एक्स-शोरूम कीमत 60 लाख रुपए है. इसके अलावा, BMW और स्वीडन का कार मेकर Volvo को भी टेस्ला से प्रतियोगिता मिल सकती है. वोल्वो की इलेक्ट्रिक कार की शुरुआती कीमत 55 लाख रुपए है.
 


जिस घोटाले में फंसे Shilpa Shetty के पति राज कुंद्रा, क्या है उसकी पूरी कहानी?

कुछ साल पहले शिल्पा शेट्टी के पति राज कुंद्रा खबरों में आए थे और अब फिर से उनकी चर्चा हो रही है.

Last Modified:
Friday, 19 April, 2024
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बिजनेसमैन और बॉलीवुड एक्ट्रेस शिल्पा शेट्टी (Shilpa Shetty) के पति राज कुंद्रा (Raj Kundra) एक बार फिर खबरों में हैं. कुछ साल पहले उन पर अश्लील फिल्में बनाने का आरोप लगा था और उन्हें जेल भी जाना पड़ा था. अब एक बार फिर से वह चर्चा में आ गए हैं. दरअसल, प्रवर्तन निदेशालय ने कुंद्रा और उनकी वाइफ शिल्पा शेट्टी की 97.79 करोड़ की प्रॉपर्टी कुर्क की है. ED ने यह कार्रवाई 2002 के बिटकॉइन पॉन्जी स्कीम घोटाले (Bitcoin Ponzi Scam) में मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े मामले (Money Laundering Case) में की है. चलिए जानते हैं कि आखिर ये पूरा मामला है क्या.

2001 में जाना पड़ा था जेल
ED की कार्रवाई के बारे में विस्तार से बात करने से पहले थोड़ा पीछे चलते हैं और जानते हैं कि 2001 में क्यों हर नजर राज कुंद्रा पर आकर ठहर गई थी. जुलाई 2021 में, राज कुंद्रा को मुंबई पुलिस ने चार महिलाओं की शिकायत पर गिरफ्तार किया था. महिलाओं ने आरोप लगाया था कि एक वेब सीरीज में काम का वादा करके उन्हें अश्लील कंटेंट मामले (Pornographic Content) शूट करने के लिए मजबूर किया गया. इस मामले को लेकर कुंद्रा परिवार को शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा था. दो महीने की कैद के बाद सितंबर 2021 में कुंद्रा को आर्थर रोड जेल से रिहा कर दिया गया था.

इनके खिलाफ हुई FIR
अब राज कुंद्रा बिटकॉइन पॉन्जी स्कीम घोटाले में फंस गए हैं. यह घोटाला तब सुर्खियों में आया जब महाराष्ट्र और दिल्ली पुलिस द्वारा 2017 में 'गेन बिटकॉइन' नामक योजना में पैसा लगाने वाले निवेशकों की शिकायत पर FIR दर्ज की गईं. बिटकॉइन पॉन्जी स्कीम के प्रमोटर अजय और महेंद्र भारद्वाज ने निवेशकों को बिटकॉइन के रूप में प्रति माह 10 प्रतिशत रिटर्न का वादा किया था, लेकिन ये वादा कभी पूरा नहीं हुआ. इस मामले में वेरिएबल टेक पीटीई लिमिटेड नामक कंपनी के खिलाफ FIR दर्ज की गई थीं. इस कंपनी के प्रमोटर्स अमित भारद्वाज, अजय भारद्वाज, विवेक भारद्वाज, सिम्पी भारद्वाज और महेंद्र भारद्वाज का भी नाम एफआईआर में शामिल था.

6,600 करोड़ रुपए जुटाए
FIR के मुताबिक, आरोपियों ने 2017 में अपने निवेशकों से 6,600 करोड़ रुपए जुटाए थे. कथित तौर पर निवेशकों को शुरुआत में नए निवेश से भुगतान किया गया था. लेकिन, पेमेंट तब रुक गया जब भारद्वाज समूह नए निवेशकों को स्कीम में पैसा लगाने के लिए आकर्षित नहीं कर पाया. इसके बाद आरोपियों ने बचे हुए पैसे से बिटकॉइन खरीदे और उन्हें ऑनलाइन वॉलेट में छिपा दिया. दरअसल, इन बिटकॉइन का इस्तेमाल बिटकॉइन माइनिंग में होना था, लेकिन प्रमोटरों ने निवेशकों को धोखा दिया, उन्होंने गलत तरीके से अर्जित बिटकॉइन को ऑनलाइन वॉलेट में छिपा दिया. 

ऐसे हुई राज कुंद्रा की एंट्री
ED का कहना है कि राज कुंद्रा को यूक्रेन में बिटकॉइन माइनिंग फर्म स्थापित करने के लिए बिटकॉइन पॉन्जी स्कीम घोटाले के मास्टरमाइंड और प्रमोटर अमित भारद्वाज से 285 बिटकॉइन मिले थे. ईडी के अनुसार, कुंद्रा के पास अभी भी 285 बिटकॉइन हैं, जिनकी कीमत वर्तमान में 150 करोड़ रुपए से अधिक है. हालांकि, राज कुंद्रा इस मामले में मुख्य आरोपी नहीं हैं. ED ने इस मामले में शिल्पा शेट्टी और राज कुंद्रा की 97.79 करोड़ की प्रॉपर्टी कुर्क की है. जिसमें शिल्पा का जुहू वाला फ्लैट, राज के नाम पर पुणे में रजिस्टर्ड बंगला और इक्विटी शेयर शामिल हैं. वहीं, राज के वकील प्रशांत पाटिल का कहना है कि ED की जांच में राज और शिल्पा पूरा सहयोग करेंगे. हमें निष्पक्ष जांच पर भी पूरा भरोसा है.


क्या सुप्रीम कोर्ट का DRMC फैसला कानून को प्रभावित कर रहा है? जानिए कैसे

DRMC की 'क्यूरेटिव पिटीशन' पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद जो विवाद खड़ा हुआ है. BW आपके लिए मध्यस्थता पुरस्कारों के इतिहास में अब तक के 'ऐतिहासिक मामले' का सबसे गहन 'विश्लेषण' लेकर आया है.

Last Modified:
Thursday, 18 April, 2024
Judicial

पलक शाह

भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) द्वारा हाल ही में 'Arbitration Award' में 'क्यूरेटिव पिटीशन' को अनुमति देने और उन्हें बरकरार रखने का निर्णय विश्व स्तर पर कानूनी इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाएगा, क्योंकि यह देश की छवि को एक व्यापारिक केंद्र के रूप में प्रभावित करता है, जहां वाणिज्यिक मध्यस्थता एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. 'क्यूरेटिव पिटीशन' न्यायशास्त्र की एक अत्यंत संकीर्ण गली है जो 'Doctrine of Finality' या Res Judicata को चुनौती देती है, इसे केवल 'दुर्लभतम मामलों' में ही लागू किया जा सकता है, लेकिन यह 'Arbitration Award' के मामले में न्यायालयों का हस्तक्षेप के बिल में फिट नहीं हो सकता है.

सच यह है कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कानूनी बिरादरी को भी झकझोर देने की क्षमता थी, इसका अंदाजा भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) जे. डीवाई चंद्रचूड़ और बेंच के दो अन्य न्यायाधीशों जे. बीआर गवई और जे. सूर्यकांत द्वारा 'क्यूरेटिव याचिका' पर जारी चेतावनी से लगाया जा सकता है. फैसला सुनाने से पहले, तीनों न्यायाधीशों ने चेतावनी दी कि हम स्पष्ट करते हैं कि इस न्यायालय के क्यूरेटिव क्षेत्राधिकार का प्रयोग सामान्य तौर पर नहीं किया जाना चाहिए. 

DMRC बनाम DAMEL केस है स्टडी का विषय 

DMRC बनाम DAMEL मध्यस्थता निर्णय पहले से ही कोलंबिया लॉ स्कूल में केस स्टडी का विषय है और इसे अमेरिकन रिव्यू ऑफ इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन में व्यापक रूप से प्रकाशित किया गया है, जो दर्शाता है कि दुनिया की नजर भारत में मध्यस्थता निर्णयों से संबंधित प्रक्रियाओं पर है. एक ओर, सुप्रीम कोर्ट ने DMRC के आदेश में 'क्यूरेटिव पिटीशन' के लिए दरवाजे खोलने पर रोक लगा दी है, वहीं फरवरी में शीर्ष अदालत के न्यायाधीशों ने नागपुर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर GMR's के अधिकारों को बरकरार रखने वाले फैसले के खिलाफ एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया की एक और क्यूरेटिव पिटीशन पर सुनवाई करने पर सहमति जताई. अगर क्यूरेटिव पिटीशन पर फैसला GMR's के खिलाफ जाता है, तो भारत में अन्य एयरपोर्ट संचालकों के लिए नागपुर हवाई अड्डे के लिए बोली लगाने का रास्ता खुल जाएगा.

कानूनी दांवपेंच का मामला है DMRC बनाम DAMEL

DMRC ने नवंबर 2021 में जे.एल. नागेश्वरराव और जे.एस.आर. भट द्वारा अपनी समीक्षा याचिका खारिज किए जाने के लगभग 8 महीने बाद जून 2022 में सुप्रीम कोर्ट में अपनी क्यूरेटिव याचिका दायर की. क्यूरेटिव याचिका के माध्यम से राहत पाने से पहले, DMRC ने 4.5 साल तक चली एक मध्यस्थता खो दी थी जो मई 2017 में DAMEL के पक्ष में समाप्त हुई थी. क्यूरेटिव याचिका पर सुनवाई, इसके दायर होने के लगभग 18 महीने बाद हुई और DMRC को क्यूरेटिव याचिका दायर करने के बाद जे. नागेश्वरराव और जे.एस.आर. भट दोनों के सेवानिवृत्त होने तक 'टाइम शॉपिंग' का लाभ मिला. अगर क्यूरेटिव याचिका पर सुनवाई पहले हुई होती, तो पूरी संभावना थी कि जे.एस.आर. भट उसी पर सुनवाई करने वाली बेंच में हो सकते थे, क्योंकि वह DMRC द्वारा क्यूरेटिव याचिका दायर करने के एक साल बाद अक्टूबर 2023 में सेवानिवृत्त हुए थे.

कुल मिलाकर, डिवीजन बेंच ने 15 जनवरी 2019 को अपना फैसला सुनाया, जो 11 मई 2017 को दिए गए फैसले के 1.5 साल बाद आया. लेकिन जस्टिस खन्ना का आदेश और DMRC को मिली राहत कुछ ही समय के लिए रही, क्योंकि J. नागेश्वरराव और J. भट की अगुवाई वाली SC की डिवीजन बेंच ने जस्टिस खन्ना के आदेश को इस आधार पर खारिज कर दिया कि इसने मध्यस्थता के मामलों में अदालतों के हस्तक्षेप के सिद्धांत को प्रभावित किया है. DMRC की समीक्षा याचिका को भी J. नागेश्वरराव और J. भट ने SC में खारिज कर दिया, जिससे 'Doctrine of Finality’ को मजबूती मिली, जो न्यायिक प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने, पक्षों को बार-बार होने वाले मुकदमों और कार्रवाइयों से उत्पीड़न से बचाने और न्यायिक संसाधनों के कुशल उपयोग को बढ़ावा देने के लिए सार्वजनिक नीति विचारों पर आधारित सिद्धांत है. 

क्यूरेटिव पिटीशन जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन के फैसलों को खराब करती है?

सुप्रीम कोर्ट ने अक्सर मध्यस्थ पुरस्कारों की वैधता की जांच में न्यायिक संयम की आवश्यकता पर जोर दिया है और आम तौर पर न्यूनतम न्यायिक जांच की वकालत की है. सरकार द्वारा गठित मध्यस्थता पर न्यायमूर्ति सराफ समिति का विचार था कि प्रस्तावित संशोधन (2015) न्यायालय द्वारा पर्याप्त हस्तक्षेप की गुंजाइश देते हैं और विवादास्पद भी हैं. इसके बाद विधि आयोग ने संशोधनों का व्यापक अध्ययन किया और दोषों को दूर करने के लिए आगे की सिफारिशें कीं. इससे पता चलता है कि इरादा हमेशा स्पष्ट था: यानी मध्यस्थता के मामलों में अदालतों की खोज को न्यूनतम रखना. 

अपने शानदार करियर के दौरान, सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जे. रोहिंटन फली नरीमन ने मध्यस्थता कानून पर कई फैसले सुनाए लेकिन उनके 25 ऐतिहासिक फैसलों ने भारत में मध्यस्थता कार्यवाही को आकार दिया है। 25 में से, नरीमन के दो फैसलों, "सैंगयोंग इंजीनियरिंग एंड कंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड बनाम भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण" और "एसोसिएट बिल्डर्स बनाम दिल्ली विकास प्राधिकरण" ने "मध्यस्थता पुरस्कारों में न्यायालयों के हस्तक्षेप के दायरे" को अच्छी तरह से परिभाषित किया था. हालांकि, अब क्यूरेटिव याचिका के बाद, जिसने HC की डिवीजन बेंच के आदेश को बरकरार रखा है, मध्यस्थता पुरस्कारों को अदालतों में चुनौती देने का क्षेत्र खुला है, जो DMRC मामले में दिल्ली HC की डिवीजन बेंच के आदेश के अनुरूप इसकी जांच कर सकते हैं, भले ही वे J. नरीमन और J. MB शाह के निर्णयों की कसौटी पर खरे न उतरते हों.

एक पुरस्कार पेटेंट अवैध कब होता है?

मध्यस्थ पुरस्कार भारत की सार्वजनिक नीति के साथ तभी संघर्ष में होता है जब (i) पुरस्कार का निर्माण धोखाधड़ी या भ्रष्टाचार से प्रेरित या प्रभावित था या धारा 75 या धारा 81 का उल्लंघन था. या (ii) यह भारतीय कानून की मूल नीति का उल्लंघन करता है. या (iii) यह नैतिकता या न्याय की सबसे बुनियादी धारणाओं के साथ संघर्ष में है. 
 


आखिर इजरायल-ईरान की टेंशन से Gold का क्या है नाता, क्यों चढ़ सकते हैं दाम?

दुनियाभर में चल रही उथल-पुथल से सोना और भी ज्यादा मजबूत हो सकता है. पहले से ही इसकी कीमत काफी ज्यादा है.

Last Modified:
Thursday, 18 April, 2024
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इजरायल और ईरान के बीच तनाव (Israel-Iran Tension) बना हुआ है. ईरान के हमले के बाद अब इजरायल जवाबी कार्रवाई की तैयारी कर रहा है. यदि ऐसा होता है, तो स्थिति काफी खतरनाक हो जाएगी. दो देशों के बीच की इस लड़ाई से पूरी दुनिया के बाजार प्रभावित होंगे. हालांकि, सोने की कीमतें (Gold Price) जंग के माहौल में और चढ़ सकती हैं. भारत में पहले से ही सोना और चांदी के भाव रिकॉर्ड ऊंचाई पर हैं. आज भले ही इसमें मामूली गिरावट आई है, लेकिन आने वाले दिनों में इसके रॉकेट की रफ्तार से दौड़ने की संभावना है. 

इतनी चढ़ सकती हैं कीमतें
पिछले कुछ समय से सोने-चांदी के भाव लगातार बढ़ रहे हैं. युद्ध के हालातों ने इसे हवा दे दी है. ग्लोबल फर्म गोल्डमैन सैक्स को लगता है कि इस साल के अंत तक सोना 2,700 डॉलर प्रति औंस के पार जा सकता है, जबकि पहले यह अनुमान 2,300 डॉलर का था. जबकि, कुछ विशेषज्ञ इसके 3000 डॉलर तक पहुंचने का अनुमान लगा रहे हैं. अब सवाल यह उठता है कि आखिर सोने का इजरायल-ईरान से ऐसा क्या कनेक्शन है, जो वहां हालात बिगड़ते ही इसकी कीमतों में आग लगने की बात कही जा रही है. 

कुछ न कुछ रिटर्न मिलना ही है
इजरायल-ईरान संघर्ष से सोने की कीमतों में आग लगने की आशंका इसलिए जताई जा रही है क्योंकि भविष्य की अस्थिरता को देखते हुए Gold में निवेश बढ़ेगा. जब डिमांड ज्यादा हो और सप्लाई लिमिटेड, तो कीमतों में उछाल आना स्वभाविक है. दरअसल, Gold यानी सोने को निवेश का बेहतरीन विकल्प माना जाता है, इसलिए जब भी युद्ध या किसी अन्य संकट की स्थिति उत्पन्न होती है, तो लोग बड़े पैमाने पर सोने में निवेश करने लगते हैं. वह जानते हैं कि स्टॉक मार्केट भले ही क्रैश हो जाए, लेकिन गोल्ड में किया हुआ निवेश कुछ न कुछ देकर ही जाएगा. 

इंश्योरेंस की तरह करता है काम
मुश्किल समय में लोग सोने में सबसे ज्यादा निवेश इसलिए करते हैं, क्योंकि यह उनके लिए इंश्योरेंस की तरह काम करता है. इजरायल-ईरान तनाव से पहले इजरायल-हमास और रूस-यूक्रेन के वक्त भी यही स्थिति थी. एक्सपर्ट्स का कहना है कि मौजूदा परिस्थितियों के चलते जियो पॉलिटिकल तनाव लंबे समय तक देखने को मिल सकता है. इस वजह से ग्लोबल सप्लाई चेन और वित्तीय बाजार प्रभावित हो सकते हैं. ऐसी स्थिति में लोग अपना जोखिम कम करने के लिए सोने में निवेश सकते हैं. जब सोने की डिमांड बढ़ेगी, तो इसके दाम बढ़ना लाजमी है. 

सोना सबसे अच्छा विकल्प
अमेरिकी फर्म स्पार्टन कैपिटल सिक्योरिटीज के चीफ मार्केट इकोनॉमिस्ट पीटर कार्डिलो इजरायल-हमास युद्ध के समय कहा था कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उथल-पुथल के दौरान इन्वेस्टमेंट पोर्टफोलियो की सुरक्षा के लिए सोना अच्छा विकल्प है. तब से अब तक सोने के भाव काफी बढ़ चुके हैं. आज यानी 18 अप्रैल को सोने के दाम की बात करें, तो राजधानी दिल्ली में 24 कैरेट वाले 10 ग्राम सोने के दाम करीब 74,120 रुपए हैं. वहीं, चांदी 86,400 रुपए प्रति किलोग्राम के भाव पर मिल रही है.   

कौन तय करता है Gold Price?
जब सोने की बात निकली है, तो यह भी जान लेते हैं कि इसकी कीमत कैसे तय होती है. दुनियाभर में लंदन बुलियन मार्केट एसोसिएशन (LBMA) द्वारा सोने की कीमत तय की जाती है. वह यूएस डॉलर में सोने की कीमत प्रकाशित करता है। यह कीमत बैंकरों और बुलियन व्यापारियों के लिए एक वैश्विक बेंचमार्क के रूप में कार्य करती है. भारत में, इंडियन बुलियन ज्वैलर्स एसोसिएशन (IBJA) सोने की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में आयात शुल्क और अन्य लागू टैक्स को जोड़कर यह तय करता है कि रिटेल विक्रेताओं को सोना किस दर पर दिया जाएगा. 

Bharat यहां से करता है इम्पोर्ट
भारत के लिए स्विट्जरलैंड सोने के आयात का सबसे बड़ा स्रोत है. यहां से हमारे कुल गोल्ड आयात की हिस्सेदारी करीब 41 प्रतिशत है. इसके बाद संयुक्त अरब अमीरात से भारत लगभग 13 फीसदी और दक्षिण अफ्रीका से करीब 10 प्रतिशत सोना आयात करता है. भारत, चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा Gold कंज्यूमर है. देश में सोने का आयात मुख्य रूप से ज्वैलरी इंडस्ट्री की मांग पूरी करने के लिए किया जाता है. देश के कुल आयात में सोने की हिस्सेदारी पांच प्रतिशत से ज्यादा की है.


Dubai: बारिश कराने चले थे बाढ़ आ गई, जानें Artificial Rain से जुड़ी हर बात 

क्लाउड सीडिंग वह तकनीक है, जिसके जरिए कृत्रिम बारिश कराई जाती है. दुबई में यही कोशिश हो रही थी.

बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो by
Published - Wednesday, 17 April, 2024
Last Modified:
Wednesday, 17 April, 2024
Photo Credit: Al Jazeera

दुबई (Dubai) इस वक्त बाढ़ का सामना कर रहा है. इस बाढ़ की वजह प्रकृति नहीं बल्कि इंसान खुद है. दरअसल, दुबई में कृत्रिम बारिश (Artificial Rain) करवाई जा रही थी, लेकिन इस कोशिश के दौरान बदल फट गया और पूरा शहर पानी-पानी हो गया. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, दुबई शॉपिंग मॉल्स में पानी भर गया है. सड़कें तालाब बन गई हैं और पार्किंग में गाड़ियां तैर रहीं हैं. इतना ही नहीं, एयरपोर्ट भी बाढ़ के पानी में डूब गया है. हवाई पट्टी नजर नहीं आ रही है. इस वजह से विमानों के संचालन में परेशानी हो रही है. 

चंद मिनटों में रिकॉर्ड बारिश
दुबई में सोमवार और मंगलवार को क्लाउड सीडिंग के लिए विमान उड़ाए गए थे. क्लाउड सीडिंग वह तकनीक है, जिसके जरिए कृत्रिम बारिश कराई जाती है. हालांकि, ये पूरा प्लान उस वक्त फेल हो गया जब आर्टिफिशियल रेन की कोशिश में बादल फट गया. बताया जा रहा है कि महज कुछ ही देर में दुबई में इतनी बारिश रिकॉर्ड हो गई, जिसके लिए डेढ़ साल का इंतजार करना पड़ता था. जाहिर है जब इतनी ज्यादा बारिश होगी, तो व्यवस्थाएं बिगड़ेंगी ही. देखते ही देखते पूरा शहर जलमग्न हो गया.

75 सालों में ऐसा मंजर नहीं देखा
दुबई के अलावा फुजैराह में भी ऐसे ही हालात बने हुए हैं. यहां 5.7 इंच तक बारिश हुई है. इस बाढ़ में अब तक एक व्यक्ति के मरने की खबर है. वहीं, दुनिया के सबसे बड़े शॉपिंग सेंटर्स में शुमार मॉल ऑफ अमीरात में कई दुकानों की छत गिर गई हैं. दुबई के जानकारों का कहना है कि बीते 75 सालों के इतिहास में कभी इतनी बारिश नहीं हुई. बादल फटने से शारजाह सिटी सेंटर और दिएरा सिटी सेंटर को भी नुकसान पहुंचा है. दुबई प्रशासन पंप के जरिए पानी निकाल रहा है. 

खाड़ी देशों में कम होती है बारिश
दुबई में महज 24 घंटे के अंदर ही 142 मिलीमीटर बारिश हुई है. जबकि आमतौर पर यहां एक साल में 94.7 मिलियन बारिश होती है. बता दें कि संयुक्त अरब अमीरात (UAE) में बारिश काफी कम होती है. पूरा साल एक तरह से सूखा ही गुजरता है. सर्दी के मौसम में जरूर कुछ समय तक हल्की बारिश होती है. यूएई के अलावा सऊदी अरब, बहरीन, कतर जैसे खाड़ी देशों में बारिश कम होती है. वैसे, कृत्रिम बारिश कोई नई चीज नहीं है. अब तक कई देशों में ऐसा हो चुका है. भारत की राजधानी दिल्ली में भी इस तरह के प्रयास की कोशिश हुई थी. 

Delhi में भी होनी थी ऐसी बारिश
दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण से लोगों को कुछ राहत देने के लिए आर्टिफिशियल बारिश की योजना तैयार की गई थी. आईआईटी कानपुर के साथ मिलकर दिल्ली सरकार कृत्रिम बारिश करवाने वाली थी, लेकिन बाद में इस योजना को टाल दिया गया. 20 और 21 नवंबर 2023 को दिल्ली सरकार ने आर्टिफिशियल बारिश करवाने की बात कही थी. मगर प्रदूषण में कमी आने के बाद ऐसा नहीं किया गया. इसकी एक वजह यह भी थी कि मौसम विभाग की तरफ से बादलों की संभावना से इनकार किया गया था. विभाग ने कहा था कि 21 नवंबर को बादल छाए रह सकते हैं, लेकिन ये कृत्रिम बारिश करवाने के लिए काफी नहीं है. कृत्रिम बारिश तभी हो सकती है जब आसमान में बदल छाए हों. 

कैसे होती है कृत्रिम बारिश?
कृत्रिम बारिश के लिए केमिकल एजेंट्स जैसे कि सिल्वर आयोडाइड, ड्राई आइस और साधारण नमक को बादलों में छोड़ा जाता है. इसके लिए विमानों को बादलों के बीच से गुजारा जाता है और वो इन केमिकल एजेंट्स को छोड़ते हैं. इससे बादलों में पानी की बूंदें जम जाती हैं, जो बाद में बारिश बनकर जमीन पर गिरती हैं. इसे टेक्निकल भाषा में इसे क्लाउड सीडिंग कहते हैं. वैज्ञानिकों के अनुसार, इस प्रक्रिया के लिए प्राकृतिक बादलों का होना सबसे जरूरी है. वैसे, 2023 से पहले 2019 में भी दिल्ली में कृत्रिम बारिश की तैयारियां की गई थीं. 

कितना आता है खर्चा?
कृत्रिम बारिश काफी महंगी पड़ती है. दिल्ली में 2 दिनों की इस बारिश पर करीब 13 करोड़ रुपए खर्च के का अनुमान लगाया गया था. एक इंटरव्यू में IIT-Kanpur के प्रोफेसर Maninder Agarwal ने बताया था कि प्रत्येक वर्ग किमी क्लाउड सीडिंग की लागत लगभग 1,00,000 रुपए आती है. भारत में क्लाउड सीडिंग का पहला प्रयास 1951 में वेस्टर्न घाट में बारिश के लिए हुआ था. इसके बाद 1973 में आंध्र प्रदेश में सूखे से निपटने के लिए कृत्रिम बारिश करवाई गई. 1993 में भी तमिलनाडु में ऐसी बारिश करवाई गई थी. भारत ही नहीं, 50 से ज्यादा देशों में इस तरह का प्रयोग हो चुका है. 


Lok Sabha Election: नेताओं की अग्निपरीक्षा में कारोबारियों के चमक रहे चेहरे

लोकसभा चुनाव में बड़े पैमाने पर पैसा खर्च हो रहा है. प्रत्याशी और पार्टी जनता को लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते.

Last Modified:
Tuesday, 16 April, 2024
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लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2024) को लेकर पार्टियों से लेकर प्रत्याशी तक हर कोई जोश में है. जनता को लुभाने के लिए तरह-तरह के जतन किए जा रहे हैं. वैसे, तो चुनावी माहौल में पैसा पानी की तरह बहाया जाता है. लेकिन इस बार इस 'बहाव' की रफ्तार पहले से ज्यादा रहने का अनुमान है. सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2024 के आम चुनाव में 2019 की तुलना में दोगुना से अधिक खर्च होगा. पिछले चुनाव में कुल उम्मीदवारों ने जहां करीब 60 हजार करोड़ रुपए खर्च किए थे. वहीं, इस बार यह राशि 1.20 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा रह सकती है. जाहिर है, जब इतने बड़े पैमाने पर खर्चा होगा, तो इससे कहीं न कहीं अर्थव्यवस्था की रफ्तार बढ़ेगी और कारोबारियों के चेहरे भी चमक जाएंगे.  

प्रचार पर जमकर हो रहा खर्चा 
चुनाव के मौसम में कई तरह के रोजगार उत्पन्न होते हैं और कई सेक्टर्स के कारोबार को बूस्ट मिलता है. उदाहरण के तौर पर चुनावी रैलियों में भीड़ जुटाने, प्रचार अभियान का हिस्सा बनने के लिए बड़े पैमाने पर युवाओं को रोजगार मिलता है. भले ही यह मौसमी रोजगार हो, लेकिन इससे कुछ न कुछ आमदनी तो हो ही जाती है. प्रचार के लिए जिस बैनर, झंडे, पैम्पलेट आदि की जरूरत होती है, उससे जुड़े कारोबारियों के लिए चुनावी सीजन मानसून जैसी राहत लेकर आता है. इस बार का लोकसभा चुनाव बीजेपी के साथ-साथ संपूर्ण विपक्ष के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, इसलिए प्रचार में पूरी ताकत झोंकी जा रही है. इस वजह से फ्लैक्स-बैनर का रोजगार भी चमक रहा है. इस सेक्टर को कम से कम 15 हजार करोड़ रुपए की कमाई होने का अनुमान है.

इन सेक्टर्स को सबसे ज्यादा फायदा
ढाई महीनों के इस चुनावी मौसम में सबसे ज्यादा फायदा, हॉस्पिटैलिटी, ट्रैवल, सर्विस प्रोवाइडर, फूड इंडस्ट्री, टेंट-कैटरर्स कारोबारियों को होगा. साथ ही इस दौरान, कम से कम डेढ़ लाख ऐसे लोगों को नया रोजगार भी मिलेगा. चुनावी मौसम में नेताओं को कार्यकर्ताओं की खुशी का पूरा ख्याल रखना पड़ता है. उनके खाने-पीने की जिम्मेदारी भी प्रत्याशी उठाता है. ऐसे में बड़ी मात्र में फूड पैकेट तैयार करवाए जाते हैं, जिसके चलते क्लाउड किचन से जुड़े व्यापारियों की अच्छी-खासी आमदनी हो जाती है. इन क्लाउड किचन को लंच और डिनर संबंधित केंद्रों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी सौप दी जाती है. उत्तर होटल-रेस्टोरेंट-कैटरर्स एसोसिएशन का मानना है कि इस चुनावी सीजन में सेक्टर के पास कम से कम 2000 करोड़ के अतिरिक्त ऑर्डर होंगे.

पानी के कारोबार में लगी आग
फेडरेशन ऑफ एमपी टेंट एसोसिएशन के वरिष्ठ उपाध्यक्ष और मीडिया प्रभारी रिंकू भटेजा का कहना है कि विधानसभा चुनाव के मुकाबले लोकसभा चुनाव में कारोबार अपेक्षाकृत कुछ कम रहता है. मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में कारोबार का आंकड़ा मोटे तौर पर 50 करोड़ रुपए को पार कर गया था. लोकसभा चुनाव में यह कुछ कम रह सकता है. वहीं, लोकसभा चुनाव में इवेंट मैनेजमेंट कंपनियों की भी मोटी कमाई हो रही है. ये कंपनियां प्रत्याशियों के लिए हर तरह का इंतजाम करती हैं. इसमें नुक्कड़ नाटक से लेकर डोर-टू-डोर कैंपेन, स्टार प्रचारकों की व्यवस्था आदि. इसके साथ ही नेताओं के भाषण लिखने के लिए कंटेंट राइटर की व्यवस्था का जिम्मा भी अक्सर इन्हीं के पास रहता है. चुनावी मौसम में आसमान से बरस रही आग के मद्देनजर ठंडे का बाजार भी उफान पर है. पानी के साथ-साथ सॉफ्ट ड्रिंक की मांग भी बढ़ गई है. पिछले दो महीने में यूपी और एनसीआर में 176 वॉटर बोटलिंग प्लांट पंजीकृत हुए हैं.

कार से विमान तक की भारी डिमांड 
इस लोकसभा चुनाव में ट्रैवल इंडस्ट्री को भी अच्छे दोनों का अहसास हो रहा है. गर्मी के कारण इस बार कार्यकर्ताओं में चार पहिया वाहनों की डिमांड ज्यादा है. ऐसे में कई बड़े ट्रैवल ऑपरेटरों ने खास चुनावी सीजन के लिए नई कारें खरीदी हैं. कुछ का तो कहना है कि डिमांड इतनी ज्यादा है कि मुंहमांगा पैसा मिल रहा है. ऐसे में महज तीन महीने में अगले एक साल की किश्त का इंतजाम हो जाएगा. वहीं, बड़े नेता चुनावी रैलियों के लिए हेलिकॉप्‍टर और चार्टर्ड विमान से पहुंच रहे हैं, तो इनकी डिमांड पर 40% ज्यादा हो गई है. इसके चलते निजी विमान और हेलीकॉप्टर संचालकों को 15-20 प्रतिशत अधिक कमाई होने की उम्मीद है. मौके का फायदा उठाने के लिए चार्टर्ड सेवाओं के लिए प्रति घंटा दरें भी बढ़ गई हैं. एक रिपोर्ट बताती है कि एक विमान के लिए शुल्क करीब 4.5 – 5.25 लाख रुपए और दो इंजन वाले हेलीकॉप्टर के लिए करीब 1.5- 1.7 लाख रुपए प्रति घंटा लिया जा रहा है. 

इससे लगाइए कमाई का अंदाजा 
जिन राज्यों में मतदान की तारीख करीब आ रही है, वहां प्रचार काफी तेज हो गया है और कारोबारियों की कमाई में भी तेजी आई है. उदाहण के तौर पर राजस्थान की 25 लोकसभा सीटों में से 12 सीटों पर वोटिंग 19 अप्रैल को होगी. इसके मद्देनजर पार्टियों के स्टार प्रचारक राजस्थान में सभा और रैलियों के लिए पहुंच रहे हैं. एक मीडिया रिपोर्ट में चुनाव आयोग के समक्ष प्रत्याशियों की ओर से पेश किए गए खर्चे की जानकारी दी गई है. उसके अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दो सभा और रोड-शो पर ही 76 लाख रुपए से ज्यादा खर्च हुए हैं. 5 अप्रैल को चूरू में प्रधानमंत्री मोदी के रोड-शो और जनसभा में 11 लाख रुपए कारपेट बिछाने पर खर्च हुए थे. 18.90 लाख रुपए का वॉटर प्रूफ टेंट लगा था और 72 हजार रुपए का विशेष पांडाल बनाया गया था. सभा में बैठने के लिए 30 हजार कुर्सियां पर 2.10 लाख रुपए खर्च हुए थे. इससे चुनाव में कारोबारियों की आमदनी का अंदाजा लगाया जा सकता है. जब काम बढ़ता है, तो कर्मचारी भी बढ़ाने पड़ते हैं. यानी रोजगार में भी इजाफा होता है.


 


मौसम विभाग से आई इस खबर से आप तो खुश होंगे ही, RBI का भी खिल जाएगा चेहरा; ये है पूरा गणित

रिजर्व बैंक को पिछले कुछ समय से महंगाई के मोर्चे पर काफी परेशानी का सामना करना पड़ा है.

Last Modified:
Monday, 15 April, 2024
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भारतीय मौसम विभाग (IMD) ने सोमवार को ऐसी खबर सुनाई है, जिससे आम आदमी के साथ-साथ सरकार और RBI के चेहरे पर भी सुकून भरी मुस्कान खिल जाएगी. दरअसल, मौसम विभाग का कहना है कि इस बार जून से सितंबर तक मानसून सामान्य से बेहतर रहेगा. बता दें कि 104 से 110% के बीच बारिश को सामान्य से बेहतर माना जाता है. मानसून का सामान्य से बेहतर रहने का मतलब है कि फसलों के लिए किसानों को पानी की किल्लत का सामना नहीं करना पड़ेगा.  

1 जून को देता है दस्तक 
मौसम विभाग के मुताबिक, इस साल 106% यानी करीब 87 सेंटीमीटर बारिश हो सकती है. जबकि 4 महीने के मानसून सीजन के लिए लॉन्ग पीरियड एवरेज (LPA) 86.86 सेंटीमीटर होता है. इसका मतलब है कि इस बार के मानसून सीजन में 86.86 सेंटीमीटर बारिश होगी. देश में आमतौर पर मानसून 1 जून के आसपास केरल के रास्ते प्रवेश करता है और सितंबर के अंत में राजस्थान के रास्ते वापस चला जाता है.

ऐसा रहेगा राज्यों का हाल
IMD ने जिन 25 राज्यों में सामान्य से ज्यादा बारिश का अनुमान जताया है, उसमें केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, तेलंगाना, महाराष्ट्र, गुजरात, मध्यप्रदेश, आंध्रप्रदेश, राजस्थान, पंजाब, चंडीगढ़, दिल्ली, हरियाणा, उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखंड, सिक्किम, मेघालय, बंगाल, अरुणाचल प्रदेश, पुड्डुचेरी, अंडमान निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप, दमन-दीव, दादरा और नगर हवेली शामिल हैं. जबकि छत्तीसगढ़, हिमाचल, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में सामान्य बारिश का अनुमान है. 

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Repo Rate में कटौती संभव!
मानसून के सामान्य रहने का अनुमान सरकार और RBI के लिए बड़ी राहत के समान है, जिन्हें महंगाई को नियंत्रित करने को लेकर काफी मशक्कत करनी पड़ी है. मानसून की बेरुखी से खेती प्रभावित होती है. ऐसे में मांग और आपूर्ति के बीच का अंतर बढ़ता जाता है. नतीजतन महंगाई का चक्का तेजी से घूमने लगता है. IMD की इस भविष्यवाणी के बाद यह उम्मीद भी बढ़ गई है कि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) नीतिगत ब्याज दरों में कुछ कटौती करे. पिछले ने पिछले कई बार से नीतिगत ब्याज दर यानी रेपो रेट (Repo Rate) में कोई बदलाव नहीं किया है. रेपो रेट 6.50% पर यथावत है. हाल ही में कुछ अर्थशास्त्रियों ने कहा था कि RBI ब्याज दरों में कटौती से पहले मानसून की तस्वीर साफ होने का इंतजार करेगा, क्योंकि मानसून की चाल पर महंगाई की चाल निर्भर करती है.  अब जब तस्वीर साफ हो गई है, तो इस मोर्चे पर कुछ राहत मिल सकती है.

RBI के लिए इसलिए है राहत
महंगाई पिछले कुछ समय से सरकार और रिजर्व बैंक की परेशानी की वजह रही है. ऐसे में यदि मानसून सामान्य से कम रहता है, तो इस परेशानी में इजाफा हो सकता है. आरबीआई को केंद्र की तरफ से खुदरा महंगाई दो प्रतिशत घट-बढ़ के साथ चार प्रतिशत पर बनाए रखने की जिम्मेदारी मिली हुई है. रिजर्व बैंक अधिनियम के तहत यदि महंगाई के लिए तय लक्ष्य को लगातार तीन तिमाहियों तक हासिल नहीं किया जाता, तो RBI को केंद्र सरकार के समक्ष स्पष्टीकरण देना होता है. कुछ वक्त पहले रिजर्व बैंक को बाकायदा ऐसा करना पड़ा था. मौद्रिक नीति रूपरेखा के 2016 में प्रभाव में आने के बाद यह पहली बार था कि RBI को महंगाई नियंत्रित न कर पाने को लेकर केंद्र को सफाई देनी पड़ी. इस लिहाज से मानसून के सामान्य रहने की खबर RBI से RBI ने राहत की सांस ली होगी.

इसलिए जरूरी है अच्छी बारिश 
एक रिपोर्ट बताती है कि देश में सालभर होने वाली कुल बारिश का 70% पानी मानसून में ही बरसता है. हमारे देश में में 70 से 80 प्रतिशत किसान फसलों की सिंचाई के लिए बारिश पर निर्भर हैं. इसका सीधा मतलब है कि मानसून के अच्छा न रहने की स्थिति में पैदावार प्रभावित हो सकती है और महंगाई बढ़ सकती है. भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी लगभग 20 प्रतिशत है. ऐसे में मानसून का अच्छा रहना अर्थव्यवस्था के लिए भी बेहद जरूरी है.

ऐसा है मानसून का गणित
अब यह भी समझ लेते हैं कि मानसून का सामान्य से कम या ज्यादा होने का क्या मतलब है. यदि बारिश के 90% से कम होने का अनुमान हो, तो इसका मतलब है कि देश में काफी कम बरसात होगी. 90-95% का अर्थ है कि मानसून सामान्य से कम रहेगा. 96 से 104% का मतलब है मानसून सामान्य रहेगा. जबकि 104-110% का मतलब है कि सामान्य से ज्यादा बारिश होगी. इसी तरह, 110% से ऊपर का अर्थ है कि देश में बहुत ज्यादा बारिश की संभावना है.