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आतंकवाद, अर्थव्यवस्था और ब्लैक मनी पर फेल रही नोटबंदी - प्रो अरुण कुमार
नोटबंदी के छ: साल पूरे होने पर एक बार फिर ये आंकलन किया जा रहा है कि आखिर जो नोटबंदी हुई क्या वो कामयाब है या नहीं. इसके उद्देश्यों का आंकलन किया जाए तो ये हर मोर्च पर नाकाम ही नजर आती है.
बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 year ago
इस साल आठ नवंबर को हमारे देश में हुई नोटबंदी को छ: साल पूरे हो गए. छ: साल पूरे होने पर एक बार फिर ये आंकलन किया जा रहा है कि आखिर जो नोटबंदी हुई जिसके चलते लोगों ने इतनी परेशानी झेली क्या वो कामयाब है या नहीं. इसी मसले को लेकर जाने माने अर्थशास्त्री प्रोफेसर अरुण कुमार ने भी अपनी एक रिपोर्ट जारी की है. जो बताती है कि नोटबंदी के बाद हमारे देश में अगर इसके फायदों और इसके उद्देश्यों का आंकलन किया जाए तो उसमें ये हर मोर्च पर नाकाम ही नजर आती है. न तो अर्थव्यवस्था न ही आतंकवाद और ना ही ब्लैक मनी के मोर्चे पर ये अर्थव्यवस्था कामयाब हुई है.
क्या कहती है ये रिपोर्ट
प्रो. अरुण कमार की ये रिपोर्ट कहती है कि छ: साल पहले आठ नवंबर को हमारे देश को एक पॉलिसी के आने के कारण झटका लग गया था. जो अर्थव्यव्सथा एक सही दिशा में जा रही थी वो अचानक रूक गई थी. अरूण कुमार के अनुसार इसके कारण देश के उन बहुत सारे अलग-अलग तरह के लोगों पर इसका बुरा प्रभाव पड़ा जिनके लिए दो जून की रोटी जुटाना भी मुश्किल होता है. ये देश का वो असंगठित क्षेत्र था जो देश में वर्कर के रूप में 94 प्रतिशत के रूप में मौजूद है. इस पूरी नोटबंदी के कारण उसके लिए कई तरह की परेशानियां पैदा हो गई.
कालेधन को नहीं हुआ कोई नुकसान
प्रो अरूण कुमार की ये रिपोर्ट बताती है कि इस रिपोर्ट को लेकर हमारे देश में ये गलत धारणा है कि ब्लैक का मतलब कैश. वो कहते हैं हमारे देश में कैश ब्लैक मनी का एक प्रतिशत है. इस बात से इत्तेफाक न रखते हुए कहते हैं कि अगर ऐसा होता तो नोटबंदी के बाद जिस तरह से कैश वापस आया वो ये बताता है कि हमारी नोटबंदी कालेधन को किसी भी तरह से नुकसान पहंचाने में नाकाम रही. अगर ब्लैक मनी से कमाने के तरीके जारी रहेंगे तो ब्लैक मनी बनती रहेगी. अगर सरकार चाहती थी कि बाजार में लेस कैश हो तो उसका 2000 रुपये का नोट जारी करना आश्चर्यजनक है.
इकोनॉमी को लगा बड़ा झटका
प्रो अरूण कुमार की ये रिपोर्ट बताती है कि नोटबंदी ने हमारे देश की अर्थव्यव्स्था को भी बड़ा नुकसान पहुंचाया. वो कहते हैं कि हमारे देश में जीडीपी की काउंटिंग में असंगठित क्षेत्र को शामिल नहीं किया जाता है. यहां तक की कृषि क्षेत्र में काम करने वाले असंगठित सेक्टर को भी इसमे काउंट नहीं किया जाता है. वो कहते हैं कि एक तो पहले ही नोटबंदी को पूरी तैयारी के साथ नहीं किया गया दूसरा जीएसटी और उसके बाद आई कोरोना की महामारी ने इसके लिए हालातों को और कठिन बना दिया.जिसका असर हमारी अर्थव्यवस्था पर देखने को मिला.
अब क्या करे सरकार
प्रो अरूण कुमार के अनुसार मौजूदा समय में हमारे देश की अर्थव्यवस्था को लेकर भले ही आंकड़े सकारात्मक तरीके से दिखाए जाते हों लेकिन हालात नेगेटिव मे है. वो कहते हैं कि मौजूदा समय में सबसे ज्यादा संकट स्मॉल और माइक्रो सेक्टर में है. सरकार को इन दो सेक्टरों में कैश को लेकर काम करना चाहिए. सरकार को इनकी मदद कोऑपरेटिव के जरिए करनी चाहिए.जिससे इन्हें नई तकनीक और मदद दी जा सके.
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