विपरीत वैश्विक परिस्थितियां: भारत चिंतित है, आशंकित नहीं

दुनिया पहले से ही तमाम तरह की परेशानियों का सामना कर रही है. ऐसे में चीन में कोरोना के नए मामलों ने उसकी चिंताओं में केवल इजाफा किया है.  

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Saturday, 07 January, 2023
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चीन से निकली ताजा रिपोर्टें एक अजीबोगरीब तस्वीर पेश करती हैं. बीजिंग की सड़कें लोगों से भरी हुई हैं, एक जीरो टोलेरेंस-कोविड प्रणाली के बाद राहत मिली है. जबकि BF.7 कोविड स्ट्रेन देश में कहर बरपा रहा है, चीन के अस्पताल बीमार और बुजुर्गों से भरे हुए हैं, एक अपारदर्शी चीनी प्रणाली बाहरी दुनिया के लिए चीजों को आसान बनाने के लिए ज्यादा कुछ नहीं कर रही. अनौपचारिक अनुमान कहते हैं कि वहां मरने वालों की संख्या हजारों में हो सकती है, लेकिन आधिकारिक तौर पर चीन सुपर सेंसर की भूमिका निभाता है. क्रिसमस वाले दिन उसने कहा कि कोरोना से किसी की जान नहीं गई. हालांकि, दुनिया कोई चांस नहीं ले रही है. भारत ने अमेरिका, इटली, जापान, फ्रांस जैसे अन्य देशों के अलावा, चीन से आने वालों के लिए कोविड स्क्रीनिंग को अनिवार्य कर दिया है. 90 प्रतिशत दोहरे टीकाकरण (बूस्टर डोज कवरेज चिंता का विषय है) के साथ, भारत की कोरोना वायरस के किसी भी नए वैरिएंट से लड़ाई के लिए तैयारियां मजबूत हैं.

2023: अनिश्चितताओं का वर्ष
दुनिया पहले से ही तमाम तरह की परेशानियों का सामना कर रही है. उदाहरण के तौर पर रूस-यूक्रेन युद्ध, वैश्विक मंदी, विशेष रूप से यूरोप और चीन में, बढ़ती मुद्रास्फीति और जलवायु परिवर्तन ऐसे में चीन में कोरोना के नए मामलों ने उसकी चिंताओं में केवल इजाफा किया है.  
इस पर विचार करें: एक साल पहले अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) सहित तमाम वैश्विक अनुमानों में कहा गया था कि भारत कैलेंडर वर्ष 2023 में 10 प्रतिशत के करीब की दर से विकास करेगा. और फिर रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण कर दिया. हाल ही में 3.25 लाख करोड़ रुपये की अनुदान की पूरक मांग, बड़े पैमाने पर उर्वरक और खाद्य सब्सिडी के कारण थी, जो यूक्रेन युद्ध के कारण जरूरी हो गई थी. केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 21 दिसंबर को राज्यसभा में कहा था, "...अब हम जो लेकर आए हैं, उसकी जनवरी में बजट तैयार करते समय उम्मीद नहीं की जा सकती थी." वैश्विक अनिश्चितताओं और भू-राजनीतिक उथल-पुथल ने अर्थव्यवस्थाओं, जीवन और आजीविका को तहस-नहस कर दिया है. इस पर तत्काल कार्रवाई की जरूरत है. सबसे तेजी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था में भी, वे इंडिया इंक के लिए बड़ी चुनौतियां पैदा करते हैं.

इंडिया इंक को चिंता है, घबराहट नहीं
BW Businessworld के साथ बातचीत में, FICCI के अध्यक्ष सुभ्रकांत पांडा कहते हैं: "अल्पावधि में कुछ मुश्किल होगी... (लेकिन) हमें अपना ध्यान मध्यम अवधि और दीर्घकालिक क्षमता पर केंद्रित रखना चाहिए." मारुति सुजुकी इंडिया के चेयरमैन आरसी भार्गव कहते हैं, 'कोई भी देश गंभीर अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों से अछूता नहीं रह सकता. हालांकि, मजबूत घरेलू बाजार और प्रतिस्पर्धी तरीके से अपनी जरूरतों को पूरा करने की क्षमता इन विपरीत परिस्थितियों के प्रभाव को कम करने में मदद करती है. अच्छी नीतियों से प्रतिकूल प्रभावों को कम करने में भी मदद मिलती है. सौभाग्य से, भारत इन मामलों में अन्य देशों की तुलना में बेहतर स्थिति में है.”

ब्रिटानिया इंडस्ट्रीज के प्रबंध निदेशक वरुण बेरी कहते हैं: “विपरीत वैश्विक परिस्थितियों के बावजूद, मेरा मानना है कि भारत 2023 में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में बना रहेगा. हमारे पास एक मजबूत घरेलू बाजार है. उपभोक्ता मांग मजबूत रही है और कोरोना से पहले के स्तर को पार कर गई है. हम मुद्रास्फीति के दबावों में भी कमी देख रहे हैं जिससे खपत में और तेजी आनी चाहिए."

IndiaMART के संस्थापक और सीईओ दिनेश अग्रवाल कहते हैं: “चीन में COVID-19 मामलों में वृद्धि और दुनिया के विभिन्न हिस्सों में हाल के युद्ध संकट से दुनिया की फाइनेंशियल रिकवरी को खतरा है. लेकिन, पिछले दो वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था ने काफी लचीलापन दिखाया है, क्योंकि भारत सरकार ने अपनी विकास-प्रेरित नीतियों के माध्यम से अर्थव्यवस्था की रिकवरी में तेजी लाने पर ध्यान केंद्रित किया है. मेरा मानना है कि अगले कुछ साल भारत की आर्थिक वृद्धि के लिए आशाजनक हैं”.

भारत अच्छा कर रहा है
यदि 2022 वित्तीय वर्ष की अंतिम दो तिमाहियां 2023 में रुझानों का सूचक हैं, तो यह "रिकवरी, ग्रोथ और रिकैलिब्रेशन का साल" होगा. वर्ल्ड बैंक को उम्मीद है कि 2022-2023 के वित्तीय वर्ष में भारत की वास्तविक जीडीपी 6.9 फीसदी की दर से बढ़ेगी, जिसे इसने अपने पिछले अनुमान में 6.5 फीसदी बताया था, बाद में उसे संशोधित किया गया. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) भी भारत को एक निराशाजनक वैश्विक परिदृश्य, जिसमें विकास दर घटकर 2.7 फीसदी रहने की उम्मीद है, के बीच अपेक्षाकृत अच्छा प्रदर्शन करते हुए देखता है. आईएमएफ की डिप्टी मैनेजिंग डायरेक्टर गीता गोपीनाथ ने भारत की हाल की यात्रा में कहा था, "भारत अपेक्षाकृत अच्छा कर रहा है और इसकी कुछ तिमाहियों में 4-6 फीसदी की वृद्धि हुई है. यह 2020 में हुए संकुचन की वजह से आए गैप को तेजी से कम कर रहा है."

विश्व बैंक ने दिसंबर की शुरुआत में "नेविगेटिंग द स्टॉर्म" (Navigating the Storm) नामक एक रिपोर्ट में कहा था कि "भारतीय इकोनॉमी अधिकांश अन्य उभरते बाजारों की तुलना में ग्लोबल स्पिलओवर के मौसम में अपेक्षाकृत अच्छी स्थिति में है". गोखले इंस्टीट्यूट ऑफ पॉलिटिक्स एंड इकोनॉमिक्स के वाइस चांसलर और आदित्य बिड़ला ग्रुप के पूर्व चीफ इकोनॉमिस्ट अजीत रानाडे ने BW Businessworld से कहा: "चीन की मंदी सहित वैश्विक मंदी निस्संदेह भारत को प्रभावित करेगी, लेकिन हम अभी भी एक उचित घरेलू खपत और निवेश के साथ-साथ निर्यात प्रतिस्पर्धा पर ध्यान केंद्रित करने के साथ 6 से 6.5 फीसदी की वृद्धि हासिल कर सकते हैं. इंडिया इंक भारत की आर्थिक ताकत के लिए मीडियम से लॉन्ग टर्म स्ट्रक्चरल फीचर्स पर ध्यान केंद्रित करने और उसके अनुसार अपने निवेश और रणनीति की योजना बनाने के लिए अच्छा करेगा. भारत का एक बड़ा घरेलू बाजार है, जहां उपभोक्ता खर्च, सार्वजनिक और निजी क्षेत्र से नया निवेश विकास को बनाए रख सकता है."

बेरी कहते हैं: "इनपुट लागत में कमी, उच्च क्षमता उपयोग और डिलेवरेज्ड बैलेंस शीट (Deleveraged Balance Sheets) 2023 में बेहतर कॉर्पोरेट क्षेत्र के प्रदर्शन के लिए शुभ संकेत देते हैं." कॉर्पोरेट सेक्टर अपनी एसेट को बेचकर अपनी बैलेंस शीट से कर्ज को कम कर रहे हैं. यह जून 2022 में सकल घरेलू उत्पाद का 87.7 प्रतिशत हो गया है, जो मार्च 2016 में लगभग 97.4 प्रतिशत था. बेरी आगे कहते हैं, "मजबूत आर्थिक बुनियादी सिद्धांतों और विवेकपूर्ण मैक्रो प्रबंधन के साथ-साथ बुनियादी ढांचे में सरकार का बढ़ा हुआ खर्च वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं को कम करते हुए उच्च जीडीपी विकास की सुविधा प्रदान करेगा." आरिन कैपिटल के अध्यक्ष मोहनदास पई ने BW Businessworld से कहा: "भारत अच्छी स्थिति में है क्योंकि हमारी बैंकिंग प्रणाली मजबूत और स्वच्छ है, इंफ्रा में निवेश ने हमें और अधिक उत्पादक बना दिया है. हां, निर्यात को नुकसान होगा और हमें इससे निपटने की जरूरत है”.

देश के लिए चिंता के विषय
निर्यात में गिरावट एक चिंता का विषय है. 2015-16 के बाद निर्यात 2022-23 की दूसरी तिमाही में, सबसे अधिक था. लगभग एक वर्ष तक स्थिरता के बाद, निर्यात में नरमी का रुख है, क्योंकि कई देशों में मंदी देखी गई. अक्टूबर में माल निर्यात में 17 फीसदी की गिरावट आई थी. जबकि नवंबर के महीने में इसमें 0.6 प्रतिशत की मामूली वृद्धि देखी गई थी. हालांकि, भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति पिछले दो वर्षों की तुलना में काफी बेहतर है. तिमाही दर तिमाही सरकार की कमाई में लगातार इजाफा हुआ है, टैक्स कलेक्शन बढ़ा है. रेलवे, व्यापार और वाणिज्य से आय सकारात्मक है. डायरेक्‍ट टैक्‍स संग्रह के आंकड़े भी उत्साहजनक हैं. हाल ही में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 550 अरब डॉलर को पार कर गया है. जबकि घरेलू खपत में वर्ष 2022 में सुधार देखा गया है, और कर राजस्व में वृद्धि हुई है, जीडीपी अनुपात में सार्वजनिक ऋण बहुत अधिक है. लेकिन निजी पूंजीगत व्यय में इजाफा नहीं हुआ है.  केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने पिछले बजट में पूंजीगत व्यय को 35 फीसदी बढ़ाकर 7.5 लाख करोड़ रुपये कर दिया था. हाल ही में उद्योग के प्रतिनिधियों के साथ बातचीत में, वित्त मंत्री ने संकेत दिया कि यह प्रवृत्ति उनके पांचवें बजट में जारी रहेगी, जिसकी घोषणा एक महीने के भीतर होने की उम्मीद है.

मुद्रास्फीति को वश में करना
यह कहा जाता है कि भारत में मुद्रास्फीति को अच्छी तरह से मैनेज किया गया है, लेकिन विश्व स्तर पर यह प्रमुख समस्याओं में से एक है. जेपी मॉर्गन के मुख्य भारतीय अर्थशास्त्री और प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद में अंशकालिक सदस्य, साजिद चिनॉय ने हाल ही में कहा: "...जरा सोचिए कि पिछले 12 महीनों में क्या हुआ: हमने दुनिया भर में पिछले 50 वर्षों में सबसे ज्‍यादा महंगाई दर देखी, हमारे पास 40 वर्षों में सबसे आक्रामक और समकालिक सख्त मौद्रिक नीति रही, हमारे पास कई वर्षों तक सबसे मजबूत अमेरिकी डॉलर रहा... हमने पिछले 46 वर्षों में चीन की सबसे कमजोर विकास दर देखी.” इनमें से कोई दो कारक भी वैश्विक अर्थव्यवस्था को मंदी में पहुंचा सकते हैं. 

भारत में मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने भी दरों में बढ़ोतरी की. FICCI के सुब्रकांत पांडा की तरह कई लोगों का मानना है कि कोविड के बाद के प्रोत्साहन पैकेजों ने काफी मदद की. राज्यसभा में अपने जवाब में केंद्रीय वित्त मंत्री ने कहा था: “प्रधानमंत्री ने जिस तरीके से कोविड के दौरान राहत देने और चिंताओं को दूर करने का फैसला किया, और अलग-अलग हितधारकों से सलाह-मशवरे ने हमें इस रिवाईवल में मदद की और हमें सुरक्षित रास्ते पर रखा, जिससे हम मंदी में नहीं फंसे”.

नौकरियां, मैन्युफैक्चरिंग और चीन
अनुदान की पूरक मांग पर राज्यसभा में चर्चा के दौरान, केंद्रीय वित्त मंत्री ने रोजगार सृजन यानी जॉब क्रिएशन से जुड़े सवालों के जवाब भी दिए. उन्होंने कहा कि नौकरियां उत्पन्न की जा रही हैं. ईपीएफओ रिकॉर्ड का हवाला देते हुए उन्होंने बताया कि सितंबर, 2022 में नेट पे-रोल में इजाफा 46 प्रतिशत अधिक है. उदाहरण के लिए, अन्य सरकारी प्रवक्ताओं ने भी तर्क दिया है कि अप्रैल, मई, जून, जुलाई और अगस्त के महीनों में देश में औसतन 15-16 लाख नौकरियां पैदा हुई हैं. दूसरी ओर, रघुराम राजन और अन्य का कहना है कि 2018-19 और 2019-20 की अवधि में उद्योग और सेवाओं के रोजगार में केवल 98 लाख की वृद्धि हुई. जबकि इसी अवधि में कृषि से जुड़े रोजगार में 3.4 करोड़ का इजाफा हुआ.

कई लोग इस बात से सहमत हैं कि भारत अतीत में जिस मौके से चूक गया था, अब उसका लाभ उठाने का अवसर है. चीन के हालातों ने उसे मैन्युफैक्चरिंग में अपनी भूमिका को बड़ा करने का मौका दिया है. कोरोना की वजह से चीन तमाम तरह की परेशानियों से गुजर रहा है और वैश्विक कंपनियां अब चीन का विकल्प तलाश रही हैं. फिक्की के पांडा कहते हैं: “चाइना प्लस वन वापस लौट आया है. चीन प्लस वन के लिए भारत पसंदीदा विकल्प होना चाहिए. चीन से निकलने वाला निवेश वियतनाम, मैक्सिको भी जा रहा है. भारत एक आकर्षक विकल्प हो सकता है, यदि वह विदेशी कंपनियों के लिए व्यवसाय करना आसान बनाता है. 
 
उदाहरण के तौर पर ऐसी वैश्विक कंपनियों के लिए रियायती वाली कर व्यवस्था बनाई जा सकती है, जो अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं को स्थानांतरित करना या आगे बढ़ाना चाहती हैं. इसमें PLI के तहत निर्यात में उच्च क्षमता वाले क्षेत्रों को भी शामिल किया जा सकता है. भारत को मैन्युफैक्चरिंग हब बनाना नरेंद्र मोदी सरकार की प्राथमिकता रही है. जीडीपी में मैन्युफैक्चरिंग की हिस्सेदारी करीब 16 फीसदी है, जो मॉर्गन स्टेनली के मुताबिक,  2031 तक 21 फीसदी तक बढ़ सकती है. कई पूर्वी एशियाई देशों में जीडीपी में मैन्युफैक्चरिंग की हिस्सेदारी 30 फीसदी से ज्यादा है.

17 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था वाले चीन को विस्थापित करना भले ही आसान न हो,  लेकिन भारत निश्चित रूप से एक व्यवहार्य वैकल्पिक केंद्र बन सकता है. एक हालिया पेपर में अरविंद सुब्रमण्यन और जोश फेलमैन ने कहा है, ‘दूसरा बड़ा चीन’ बनने की अपनी खोज में, भारत के सामने तीन प्रमुख बाधाएं हैं: निवेश का जोखिम बहुत बड़ा है, पॉलिसी इन्वर्ड्नेस बहुत मजबूत है, और मैक्रोइकॉनोमिक असंतुलन बहुत ज्यादा है. वैश्विक फर्मों के निवेश करने से पहले इन बाधाओं को दूर करने की जरूरत है. वे अपने संचालन को आसियान में वापस ला सकती हैं, जो चीन के मैन्युफैक्चरिंग हब बनने से पहले दुनिया के कारखाने के रूप में कार्य करता था... "  चीन के मौजूदा हालातों ने एक बड़ा अवसर प्रदान किया है. हालांकि, चीन के साथ भारत का सीमा तनाव केवल अनिश्चितता को बढ़ावा देता है. इसलिए, भारत को अपने उत्तरी पड़ोसी को मात देने के लिए हर चाल चलनी चाहिए.

इसलिए, जब मीडिया में यह अटकल लगाई जा रही थी कि "सरकार भारत आने की इच्छुक वैश्विक फर्मों की मदद करने के लिए चीनी निवेश पर अपने रुख की समीक्षा कर सकती है," नीति आयोग के सदस्य अरविंद विरमानी ने ट्वीट किया था: सैमसंग, ऐप्पल और अन्य एंकर कंपनियों की आपूर्ति श्रृंखला में शामिल चीनी कंपनियों को भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स इकोसिस्टम के विकास में तेजी लाने के लिए अपने प्रोडक्शन को चीन से भारत में स्थानांतरित करने की अनुमति देना भारत के हित में है. हालांकि, यह समय-समय पर सुरक्षा के अधीन रहना चाहिए. 
सीधे शब्दों में कहें तो मैन्युफैक्चरिंग इंडिया इंक के लिए न केवल नौकरियां उत्पन्न करने के लिहाज से बल्कि भारत को 2047 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था और विकसित राष्ट्र का दर्जा हासिल करने में मदद के लिए भी ध्यान का केंद्र होगी.

महामारी से मिली सीख
सबसे अच्छी तरह से तैयार की गई योजनाएं भी अनिश्चितताओं के सामने विफल हो जाती हैं. यूक्रेन युद्ध और वैश्विक मंदी के बाद कोविड महामारी ने यह साबित कर दिया है कि 2023 अनिश्चितताओं से भरा साल होगा. निश्चित रूप से, इंडिया इंक द्वारा कोविड महामारी के दौरान सीखे गए सबक इसे भविष्य के संकटों से निपटने में मददगार होंगे. मोहनदास पाई कहते हैं: “हमें ऐसे संस्थान तैयार करने होंगे जो इस तरह के मामलों (अनिश्चितताओं) से निपटने के लिए सभी क्षेत्रों में क्षमता का निर्माण करें. हमें और अधिक शोध, बेहतर प्रशिक्षित लोग, स्थानीय क्षमता आदि की आवश्यकता है. सभी महत्वपूर्ण/गंभीर क्षेत्रों में अधिक निवेश की जरूरत है. हमारे डिजास्टर रिकवरी संस्थानों ने प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए अच्छा काम किया है. उन्हें और बेहतर बनाने की जरूरत है".

भार्गव कहते हैं: “MSIL कोविड संकट को बेहतर ढंग से नेविगेट करने में सक्षम थी, क्योंकि हमने बुरे समय के लिए फाइनेंशियल रिजर्व बनाए थे और एक मजबूत एवं प्रतिस्पर्धी कंपनी बनाने पर ध्यान केंद्रित किया था. हमारे कर्मचारी और व्यवसाय सहयोगी सभी एक टीम के रूप में काम करते हैं और इससे हमें संकट की स्थितियों का सामना करने की शक्ति मिलती है.”

अग्रवाल का कहना है: 9/11 के हमले से लेकर डॉट कॉम बर्स्ट तक, वैश्विक मंदी और रूसी-यूक्रेन युद्ध से लेकर महामारी तक, एक चीज जो मेरी यात्रा में स्थिर रही है, वह है 'परिवर्तन'. मैं भविष्य के बारे में आशावादी हूं, लेकिन मैं यह भी मानता हूं कि बेहतर परिणाम केवल सभी के लिए व्यवसाय करना आसान बनाकर, बेहतर और सुचारू सार्वजनिक प्रणालियों के माध्यम से प्राप्त किए जा सकते हैं. बड़े निगमों के साथ-साथ सबसे छोटे व्यवसायों को भी आर्थिक सुधार को बढ़ावा देने के लिए मिलकर काम करना चाहिए. MSMEs की आसान क्रेडिट पहुंच और संवितरण पर लक्षित एक अलग बैंकिंग नीति के साथ मदद की जानी चाहिए. इसके अलावा, प्रौद्योगिकी और सूचना के लोकतांत्रीकरण पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है, ताकि व्यवसाय भविष्य की अनिश्चितताओं से निपटने के लिए अच्छी तरह से तैयार हो सकें.

बेरी कहते हैं: “महामारी ने ब्रैंड और व्यवसायों को सभी हितधारकों के लिए मूल्य निर्माण करते हुए स्थिरता के प्रयासों को फिर से प्राथमिकता देने और आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित किया. ब्रिटानिया में हम, महामारी के प्रभाव का सफलतापूर्वक सामना करने में सक्षम थे, क्योंकि हम अपनी रणनीति पर कायम रहे. हमने अपनी पांच रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित करना जारी रखा - डिस्ट्रीब्यूशन एवं मार्केटिंग, इनोवेशन, कॉस्ट फोकस, साथ के व्यवसायों को बढ़ावा देना और एम्बेडिंग सस्टेनेबिलिटी. स्पष्ट रूप से 2023 में उतार-चढ़ाव देखने को मिल सकते हैं, लेकिन 2047 का रास्ता अच्छी तरह से निर्धारित और परिभाषित है. मजबूत बुनियादी सिद्धांतों के साथ, भारत 2023 में अपने सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के टैग को बरकरार रख सकता है.


 


अगले कई वर्षों में 6.5 प्रतिशत या उससे अधिक की वृद्धि दर हासिल कर सकता है भारत: IMF

इंटरनेशनल मॉनेट्री फंड (IMF) में एशिया पैसिफिक विभाग के निदेशक कृष्णा श्रीनिवासन (Krishna Srinivasan) ने वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए 6.8 प्रतिशत विकास दर के आंकड़े को बहुत प्रभावी बताया है.  

Last Modified:
Saturday, 20 April, 2024
IMF

इंटरनेशनल मॉनेट्री फंड (IMF) एशिया पैसिफिक विभाग के निदेशक कृष्णा श्रीनिवासन (Krishna Srinivasan) ने भारत में शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, श्रम कानूनों और कारोबारी माहौल में महत्वपूर्ण निवेश पर जोर दिया है. आईएमएफ ने कहा है कि केंद्र और राज्यों को मिलकर सामूहिक प्रयास करने की जरूरत है, ताकि देश अपनी आर्थिक क्षमताओं को साकार कर सके.   

भारत Sustainable Development की राह में बढ़ रहा आगे  
आम लोगों के खर्च में इजाफा होने और पब्लिक सेक्टर में इनवेस्टमेंट बढ़ाने से भारत सतत विकास (Sustainable Development) की राह में आगे बढ़ रहा है. तमाम वैश्विक अनिश्चितताओं के बावजूद भारत की यह प्रगति बनी हुई है. यह दावा किया है. उन्होंने वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए 6.8 प्रतिशत विकास दर का आंकड़ा बहुत प्रभावी है और यह आम लोगों के बीच उपभोग और सार्वजनिक संपत्ति में सरकार की ओर से निवेश बढ़ाने के कारण है.     

इन क्षेत्रों में निवेश की जरूरत 
आईएमएफ के अधिकारी ने भारत में शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, श्रम कानूनों और कारोबारी माहौल में महत्वपूर्ण निवेश पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि केंद्र और राज्यों को मिलकर सामूहिक प्रयास करने की जरूरत है, ताकि देश अपनी आर्थिक क्षमताओं को साकार कर सके. उन्होंने कहा है कि वह अब इस बात पर जोर देना चाहेंगे कि भारत युवाओं की बढ़ती आबादी वाला एक देश है. यहां  हर साल लगभग 1.5 करोड़ लोग श्रम बल में जुड़ सकते हैं. उन्होंने कहा कि भारत को अपनी व्यापार व्यवस्था को भी उदार बनाने की जरूरत है, ताकि पाबंदियां हटाई जा सकें ताकि कंपनियां आपस में प्रतिस्पर्धा कर सकें. आपको एफडीआई के लिए माहौल को और आकर्षक बनाना होगा.   

चीन की जीडीपी को पीछे छोड़ सकता है भारत 
श्रीनिवासन ने  कहा कि चीन को पीछे छोड़ते हुए सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप में भारत की स्थिति को स्वीकार किया. भारत अगले कई वर्षों में 6.5% या उससे अधिक की वृद्धि दर हासिल कर सकता है. श्रीनिवास ने कहा है कि चीन भारत से चार गुना बड़ा देश है. भारत अपनी क्षमताओं का इस्तेमाल कर सुधारों को शुरू करता है, तो अगले कई वर्षों में 6.5 प्रतिशत या उससे अधिक की जीडीपी हासिल कर सकता है.   

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रेल, सड़क, हवाई अड्डे हर क्षेत्र में बढ़ा निवेश 
भारत सरकार ने पूंजीगत व्यय के मामले में काफी निवेश किया है. इंफ्रास्ट्रक्चर की जरूरतों को पूरा करने के लिए रेल, सड़क, हवाई अड्डे और अन्य सभी क्षेत्रों में निवेश बढ़ा है. भारत सरकार ने इस पर जितनी राशि खर्च की है, उससे इंफ्रास्ट्रक्चर का अंतर घटा है.  उन्होंने कहा है कि पिछले कई साल में खराब बैलेंस शीट साफ हुई है और कॉरपोरेट अब अपने स्वयं के निवेश और वित्तपोषण के मामले में बेहतर हुए हैं. आने वाले समय में निजी निवेश भी तेजी से बढ़ने की उम्मीद है.  

डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर की पहल सराहनीय 
श्रीनिवासन ने डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर में भारत की उपलब्धियों, विशेष रूप से डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (डीपीआई) जैसी पहलों को अनुकरणीय माना है. श्रीनिवासन ने वैश्विक लाभ के लिए अपनी तकनीकी प्रगति का लाभ उठाने के लिए भारत की क्षमता पर भी प्रकाश डाला. उन्होंने कहा है कि  यह डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर इनोवेशन और कॉम्पीटिशन को बढ़ावा देगा. इससे देश की उत्पादकता भी बढ़ेगी. श्रीनिवासन ने कहा कि आईएमएफ सिंगापुर में एक व्यापक रिपोर्ट जारी करेगा, जिसमें वैश्विक आर्थिक घटनाक्रमों और भारत जैसे देशों पर उसके प्रभाव के बारे में जानकारी दी जाएगी.  
 


एलन मस्क भारतीय start-up में लगाएंगे पैसा, UN में भारत की स्‍थाई सदस्‍यता पर भी साथ

हालांकि इस मामले को लेकर जानकारों की राय बंटी हुई है. कुछ का मानना है कि उनकी राय का कुछ असर हो सकता है जबकि कुछ मानते हैं कि कोई असर नहीं होगा. 

Last Modified:
Thursday, 18 April, 2024
UNSC

संयुक्‍त राष्‍ट्र संघ में भारत की स्‍थाई सदस्‍यता का मामला लंबे समय से चल रहा है. अब तक दुनिया के कई देश इस मामले में भारत को स्‍थाई सदस्‍यता देने का समर्थन कर चुके हैं. लेकिन अब इस मामले में दुनिया के प्रभावशाली कारोबारी और अमीर शख्‍स एलेन मस्‍क ने इसे लेकर भारत का समर्थन किया है. एलेन मस्‍क ने कहा है कि यूएन में भारत को स्‍थाई सदस्‍यता न मिलना बेतुका है. उन्‍होंने कहा कि जिनके पास एक्‍सेस पॉवर है वो उसे छोड़ना नहीं चाहते हैं. 

एलन मस्‍क ने कही क्‍या बात? 
संयुक्‍त राष्‍ट्र संघ में स्‍थाई सदस्‍यता को लेकर एलन मस्‍क ने ट्वीट करते हुए कहा कि, , संयुक्त राष्ट्र निकायों में संशोधन की आवश्यकता है. समस्या यह है कि जिनके पास अधिक शक्ति है वे इसे छोड़ना नहीं चाहते. धरती पर सबसे अधिक आबादी वाला देश होने के बावजूद भारत को सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट न मिलना बेतुका है. अफ़्रीका को सामूहिक रूप से आईएमओ की एक स्थायी सीट भी मिलनी चाहिए.  

वहीं एलन मस्‍क के इस ट्वीट पर अपनी बात कहते हुए यूएन सिक्‍योरिटी काउंसिल के सेक्रेट्री जनरल हम यह कैसे स्वीकार कर सकते हैं कि अफ़्रीका के पास अभी भी सुरक्षा परिषद में एक भी स्थायी सदस्य का अभाव है? संस्थानों को आज की दुनिया को प्रतिबिंबित करना चाहिए, न कि 80 साल पहले की दुनिया को. सितंबर का भविष्य शिखर सम्मेलन वैश्विक शासन सुधारों पर विचार करने और विश्वास के पुनर्निर्माण का अवसर होगा.

क्‍या वास्‍तव में होगा एलन मस्‍क की बात का असर 
सबसे अहम बात ये है कि भारत में कारोबार करने की इच्‍छा रखने वाले एलन मस्‍क की बात का कोई असर भी होगा या उन्‍होंने ये बयान बिजनेस महत्‍वाकांक्षाओं के चलते दिया है. क्‍योंकि भारत के पक्ष में इससे पहले कई देश इस तरह का बयान दे चुके हैं. मौजूदा समय में यूएनएससी (संयुक्‍त राष्‍ट्र सुरक्षा परिषद) में पांच देश ऐसे हैं जिनके पास स्‍थाई सदस्‍यता है और वीटो पावर का अधिकार है. इनमें अमेरिका, फ्रांस, रसिया, चाइना और यूनाइटेड किंगडम शामिल हैं. लेकिन पूरी दुनिया में लंबे समय से इसमें बदलाव की वकालत हो रही है. 

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लगातार बढ़ रही है भारत की ताकत 
विदेश मामलों के जानकार संजीव श्रीवास्‍तव कहते हैं कि आज के मौजूदा हालात में भारत का पूरी दुनिया में एक अलग स्‍थान हो चुका है पूरी दुनिया में भारत का प्रभाव तेजी से बढ़ रहा है. अगर इंडो पैसिफिक रीजन की बात करें तो वहां और भी ज्‍यादा भारत का प्रभाव है. इस वक्‍त दुनिया के जिन क्षेत्रों में तनाव चल रहा है वहां भी भारत का बड़ा प्रभाव है. हर जगह भारत को एक महत्‍व के साथ देखा जाता है. मीडिल ईस्‍ट के देश भी भारत के साथ मित्रता बढ़ाना चाहते हैं. पाकिस्‍तान और चाइना के द्वारा किए जाने वाले प्रोपेगेंडा के बावजूद भारत का प्रभाव बढ़ रहा है. ऐसी भूमिकाओं के बीच अगर भारत की भूमिका यूएनएससी में न हो तो वो भी अपनी भूमिका को सही से नहीं निभा सकता है. देखिए एलन मस्‍क एक विजनरी उद्योगपति हैं. उनके विचारों को गंभीरता से लिया जाता है, अब वो भले ही कारोबार की बात हो या दुनिया से जुड़े मामलों की बात हो.ये बात जरूर है कि उनके भारत में अपने हित हैं उन्‍हें वो आगे बढ़ाना चाहते हैं. मैं मानता हूं कि जो उन्‍होंने कहा है वो सच्‍चाई है. लेकिन वो दुनिया के हर मामले में अपनी राय रखते हैं जो कि बेहद अहम है. 

ये दुर्भाग्‍यपूण है लेकिन सच है
The ImageIndia Institute के अध्‍यक्ष और विदेश मामलों के जानकार रोबिन्‍द्र सचदेव कहते हैं कि देखिए मेरा मानना है कि ये महत्‍वपूर्ण तो बहुत है लेकिन मेरा मानना है कि इसका कोई ज्‍यादा असर नहीं होगा. उनका कहना है मौजूदा समय में उनका जो एक्जिस्टिंग सिस्‍टम है इतना जटिल है अपने सिस्‍टम को लेकर कोई भी मेंबर अपने वीटो को नहीं छोड़ेगा और न ही वीटो के लिए किसी और देश को साथ में लाएगा. उनका कहना है कि यूएन की दूसरी एजेंसियों की बात अलग है लेकिन यूएन सिक्‍योरिटी काउंसिल में बदलाव करना अपने आप में बड़ी बात है. मुझे ये असंभव सा दिखाई देता है. पांच में से कोई भी अपनी पावर को छोड़ना नहीं चाहेगा. ये दुर्भाग्‍यपूण है लेकिन सच है. इंडिया एक आकर्षक बाजार है वो इंडिया के साथ गुडविल भी बनाना चाहता है, उनका मानना है कि वो जिस देश में कारोबार करने जा रहे हैं वहां की स्थितियां उनके अनुकूल हों.  


मौजूदा कठिन होती वैश्विक परिस्थितियों में प्राइवेट कंपनियों के लिए क्‍या हैं चुनौतियां?

संकट के समय ही आविष्कार का जन्म होता है और महान रणनीतियां सामने आती हैं. जो संकट पर विजय प्राप्त कर लेता है, वह स्वयं पर विजय प्राप्त कर लेता है वो भी बिना पराजित हुए- अल्बर्ट आइंस्टीन

Last Modified:
Friday, 12 April, 2024
world trade

हाल ही में ऐसी घटनाएं घटी हैं जिनका प्रभाव पूरी दुनिया पर पड़ा है. इन अंतरराष्ट्रीय घटनाओं में यूक्रेन में चल रहा युद्ध भी शामिल है, जो दो साल से चल रहा है; इजरायल-हमास संघर्ष और अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध और अधिक तीव्र होता जा रहा है. इन सभी चीजों से अस्थिरता बढ़ी है, जो इस बात पर जोर देती है कि नेताओं के लिए राजनीतिक और जियोपॉलिटिकल खतरों को पहचानना और उन पर प्रतिक्रिया देना कितना महत्वपूर्ण है. यह प्राइवेट सेक्टर के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण हो जाता है जो अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और निवेश में संलग्न है.

ग्लोबल रिस्क का एक हिस्सा है जियोपॉलिटिक्स

वैश्विक कामकाज और स्थिरता की धारणाओं को अक्सर पूर्वानुमानित और अचनाक होने वाली घटनाओं द्वारा परीक्षण में रखा जाता है जो जल्दी से घटित होती हैं. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि जियोपॉलिटिकल, ग्लोबल रिस्क का एक हिस्सा है जो संकट को वैश्विक व्यवस्था के सिस्टेमैटिक ब्रेकडाउन में बदल सकता है.

विवादों को लेकर चौकन्ना रहना चाहिए

व्यवसायों और डिसीजन मेकर्स के लिए जियोपॉलिटिकल डेटा को उपयोगी परिणामों में परिवर्तित करना एक महत्वपूर्ण कार्य है. कंपनी के अधिकारी अपने दैनिक कार्यों के प्रति अनावश्यक रूप से जुनूनी हो सकते हैं और परिणामस्वरूप अपने आंकलन में विफल भी हो सकते हैं. न तो इज़राइल-हमास युद्ध और न ही यूक्रेन में युद्ध रातोरात हुआ. हम इस बात से अनजान थे कि विवाद कैसे पनप रहे थे, जिसने हमें चौकन्ना कर दिया.

रूस और यूक्रेन के बीच संघर्ष

रूस और यूक्रेन के बीच संघर्ष तब शुरू हुआ जब यूक्रेन ने 1991 में नाटो में शामिल होने का फैसला किया. रूस ने इसे अपनी सीमाओं को घेरने और नाटो के साथ सैन्य गठबंधन के प्रयास के रूप में माना. स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद यूक्रेन ने पहले सैन्य गुटों के साथ दूरी बनाए रखने की घोषणा की थी. लेकिन जब पश्चिमी समर्थक जेलेंस्की राष्ट्रपति बने और उन्होंने नाटो में शामिल होने में रुचि दिखाई तो यूक्रेन को रूस की आलोचना का सामना करना पड़ा.

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75 वर्ष पुराना है फिलिस्तीन का मामला

फिलिस्तीन को राज्य का दर्जा देने का मामला कम से कम 75 वर्ष पुराना है जो इज़रायल और फिलिस्तीन के बीच संघर्ष का मुख्य कारण भी है. यह धारणा बन गई है कि इजराइल फिलिस्तीनियों को उनके घरों से जबरन निकालना चाहता है ताकि यहूदी उनके जमीन पर कब्जा कर सकें जो इस संघर्ष की मूल जड़ है. इसके अलावा हमास को एहसास हुआ कि सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जैसे प्रमुख अरब देश इज़राइल के पक्ष में जा रहे हैं, जिससे उनके उद्देश्य को नुकसान पहुंचेगा. इस संघर्ष का निर्णायक मोड़ वह था जब अल अक्सा मस्जिद को ध्वस्त कर दिया गया. लेकिन अब जब लड़ाई लेबनान और यमन तक फैल गई है, तो स्थिति पहले से और अधिक जटिल और चुनौतीपूर्ण हो गई है.

दबंग नौकरशाही के खिलाफ हुआ ब्रेक्सिट

ब्रेक्सिट का होना यूरोपीय संघ की दबंग नौकरशाही के खिलाफ ब्रिटेन के हालिया विद्रोह का परिणाम है. इन दिनों पोलैंड, हंगरी और इटली अपने राष्ट्रीय हितों के चलते यूरोपीय संघ की नीतियों से खुले तौर पर असहमत हैं. ये घटनाएं अंत में एक संकट का कारण बन सकती हैं जो अंतर्राष्ट्रीय कॉर्पोरेट हितों को प्रभावित करती हैं.

धीरे-धीरे बढ़ रही है जियोपॉलिटिकल टेंशन

दुनिया में बढ़ती जियोपॉलिटिकल टेंशन यह दर्शाती हैं कि अधिकांश घटनाएं धीरे-धीरे आगे बढ़ती हैं लेकिन चरम सीमा तक पहुंचने में वर्षों लग जाते हैं. हालाँकि, यदि कोई ऑर्गेनाइजेशन प्रोसिड्योर सेट अप करता है और इन डेवलपमेंट्स की निगरानी के लिए सीनियर मैनेजमेंट को प्रशिक्षित करता है, साथ ही उनके बारे में जागरूकता को भी बढ़ाता है तो वे इन डेवलपमेंट्स की निगरानी कर विश्लेषण कर सकते हैं और कुछ गलत होने की स्थिति में C और B सहित बैकअप योजनाएं बनाए रख सकते हैं. इसका तात्पर्य यह है कि कंपनियों को यह सुनिश्चित करने के लिए अपनी प्रक्रियाओं और दक्षताओं को रीसेट करने की आवश्यकता है:

•लीडरशिप उस स्ट्रेटेजिक जियोपॉलिटिक्स संदर्भ को समझे जिसमें निर्णय लिए जाते हैं.
•जियोपॉलिटिक्स से आने वाले व्यावसायिक जोखिमों और अवसरों का मूल्यांकन करे.
•अप्रत्याशित और महत्वपूर्ण विकास की संभावना को ध्यान में रखते हुए, विश्व पर्यावरण में होने वाले परिवर्तनों पर नजर रखें
•एक लॉन्ग टर्म, सही रणनीति और दृष्टिकोण बनाएं जो संगठन के दिन-प्रतिदिन के कार्यों से परे हो.
•संगठन की अंतरराष्ट्रीय और जोखिम पूर्ण रणनीतियों में से जियोपॉलिटिकल विश्लेषण को अलग करें.

रिस्क फैक्टर्स को समझना व्यापार का हिस्सा

निश्चित रूप से रुझानों का अनुमान लगाने, संकटों से निपटने और एक्सटर्नल फैक्टर्स का प्रबंधन करने की क्षमता रखना अब अंतरराष्ट्रीय व्यापार के क्षेत्र में एक आवश्यक कौशल बना गया है. हालाँकि इन्हें सीखा जा सकता है. यह तब मददगार होगा जब इसे बिजनेस स्कूल अपने एमबीए पाठ्यक्रम में शामिल करें और विदेशी मामलों के पेशेवरों की सहायता से ट्रेनिंग प्रोग्राम भी आयोजित करें, यह देखते हुए कि हम वर्तमान में तेजी से आगे बढ़ने वाले अनसर्टेन UVCA वातावरण में काम कर रहे हैं. निस्संदेह, रुझानों की पहचान करने, अप्रत्याशित बाहरी प्रभावों को संभालने और संकटों से निपटने में सक्षम होना अब अंतरराष्ट्रीय व्यापार की दुनिया में एक महत्वपूर्ण कौशल है.
 

लेखक:

1. सुहैल आबिदी
2. डॉ.मनोज जोशी
3. डॉ. अशोक कुमार


जानिए कब तक मिलेगी आपको सस्ती ईएमआई की सौगात, क्या कह रहे हैं एक्सपर्ट्स?

शुक्रवार को आरबीआई ने वित्त वर्ष 2024-25 की बैठक में रेपो रेट में कोई भई बदलाव न करने का फैसला लिया गया, ऐसे में अब ईएमआई की दरें भी स्थिर रहेंगी.

Last Modified:
Friday, 05 April, 2024
EMI

शुक्रवार को आरबीआई (RBI) ने वित्त वर्ष (Financial Year) 2024-2025 की पहली बैठक की. ऐसे में हर कोई ये जानना चाहता है ईएमआई सस्ती होगी या उन पर महंगाई का बोझ बढ़ेगा? तो चलिए आपको बताते हैं एक्सपर्ट्स की इसमें क्या राय है.

ईएमआई कम होने का करना पड़ेगा इंतजार

आरबीआई ने एक बार फिर से रेपो रेट को स्थिर रखने का फैसला किया है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि अभी लोगों की होम लोन की ईएमआई कम नहीं होगी. लोगों को सस्ते लोन के लिए इंतजार करना पड़ेगा. मौद्रिक नीति समिति ने रेपो रेट को 6.50 फीसदी पर स्थिर रखने का फैसला लिया है. पहले से ही उम्मीद जताई जा रही थी, कि पैनल इस बार भी रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं करेगा. इससे पहले वित्त वर्ष 24 की अंतिम बैठक में एमपीसी ने रेपो रेट में लगातार छठी बार कोई बदलाव नहीं किया था. इसे 6.50 फीसदी पर स्थिर रखने का फैसला किया था. 

एक साल से स्थिर हैं दरें
एक्सरपर्ट्स ने कहा है कि आरबीआई करीब एक साल से रेपो रेट 6.50 फीसदी पर स्थिर रखा हुआ है. आरबीआई ने रेपो रेट आखिरी बार पिछले साल फरवरी 2023 में 0.25 फीसदी की बढ़ोतरी कर 6.25 फीसदी से 6.50 फीसदी कर दिया था. वहीं, दिसंबर, 2023 में रीटेल महंगाई दर 5.69 फीसदी के स्तर पर थी. ऐसे में इस बार भी रेपो रेट में बदलाव की संभावना कम थी. रियल एस्टेट के दिग्गजों ने भी यह उम्मीद जताई थी कि डेवलपर्स और होम बॉयर्स को ध्यान में रखते हुए आरबीआई रेपो रेट को स्थिर रखेगा. 

इस स्थिति में कम हो सकती है ईएमआई
एक्सपर्ट्स के अनुसार वित्त वर्ष 2025 में जमा राशि और क्रेडिट क्रमशः 14.5-15 प्रतिशत और 16.0-16.5 प्रतिशत तक बढ़ सकते हैं. आरबीआई ब्याज रों में कटौती केवल वित्त वर्ष 2025 की तीसरी तिमाही में ही कर सकता है. एक्सपर्ट्स ने कहा कि आरबीआई महंगाई के आंकड़ों पर सख्ती से अमल करेगा. आरबीआई ने अनुमान लगाया है कि महंगाई केवल दूसरी तिमाही में 5 फीसदी से कम होगी. ऐसे में कोई भी ब्याज दरों के कम होने की उम्मीद कर सकती है, बशर्ते कि मानसून की स्थिति ठीक हो. उन्होंने कहा कि महंगाई मानसून के झटकों और ऊंची खाद्य कीमतों से अधिक निर्देशित होगी.


 


टियर 2 व 3 शहरों में क्या है रिटेल सेक्टर का भविष्य, जानें रिटेलर्स की जुबानी?

BW Retail World Summit में रिटेल की दुनिया से जुड़ी हस्तियों ने पैनल चर्चा में भाग लेकर रिटेल इंडस्ट्री के भविष्य और कंज्यूमर्स की आवश्कताओं जैसे बिंदुओं पर चर्चा की.

Last Modified:
Thursday, 28 March, 2024
Pannel Discussion

BW Retail World Summit में रिटेल की दुनिया से जुड़ी कई हस्तियां शामिल हुई. दिल्‍ली में आयोजित हुए बिजनेस वर्ल्‍ड के इस समिट के दौरान Retail Infra 101- How are retailers looking at the cities for tomorrow? विषय पर आयोजित हुई पैनल चर्चा में Trehan Iris के लीजिंग वाइस प्रेजिडेंट आकाश नागपाल, Meena Bazar के पार्टनर समीर मंगलानी, Pansari Group के डायरेक्टर शम्मी अग्रवाल और Campus Sutra की को-फाउंडर और सीओओ खुशबू अग्रवाल ने अपने विचार रखे. उन्होंने टियर 2 और टियर 3 के शहरों में रिटेलर सेक्टर के भविष्य और कंज्यूमर सेंटिमेंट जैसे  बिदुओं पर चर्चा की.   

कंज्यूमर्स को मॉल कल्चर आ रहा पसंद
त्रेहन इरीज के वाइस प्रेजीडेंट आकाश नागपाल ने कहा कि टियर 2 और टियर 3 शहरों में भी मॉल की जरूरत है. भारत का फलता-फूलता और बढ़ती रिटेल इंडस्ट्री काफी हद तक उच्च प्रयोज्य आय, शहरीकरण और मध्यम वर्ग की जीवनशैली में बदलाव से प्रेरित है. खरीदार आज हलचल भरे केंद्रों जैसे मल्टी स्टोर, बड़े काम्प्लेक्स और बहुमंजिला मॉल को पसंद करते हैं, जो एक ही छत के नीचे खरीदारी, मनोरंजन और भोजन की पेशकश करते हैं. छोटे शहरों में कई उपभोक्ता ब्रांडेड प्रोडक्ट खरीदने की आकांक्षा रखते हैं और उन्हें खरीदने की उनकी क्षमता बढ़ रही है. ऐसे शहरों में अगर रिटेलर मॉल बनाते हैं, तो वह एक गेम चेंजर होगा. हमें ऐसे शहरों में निवेश करने की आवश्यकता है. 

रोड कनेक्टिविटी ने खोले विकास के रास्ते

मीना बाजार के पार्टनर समीर मंगलानी ने कहा कि कई रिटेल उद्योग लखनऊ, पुणे, जयपुर सहित टियर 2  और टियर 3 शहरों में स्थानांतरित या विस्तारित हो गए हैं. इन क्षेत्रों में हाउसिंग हब के विकास के परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में मॉल की वृद्धि हुई है, जो निवेशकों को रिटेल स्थान की अनुमति देते हैं. उन्होंने कहा कि वह खुद भी अयोध्या में राम मंदिर शुरू होने से पहले वहां अपना एक स्टोर खोलने जा रहे हैं. इन शहरों में रोड कनेक्टिविटी बढ़ेगी, तो रिटेल इंडस्ड्री भी बढ़ेगी और नए स्टोर खुलेंगे, जिससे ग्राहकों को बहुत सुविधा मिलेगी.   

सस्ता किराया और जमीन 

पंसारी ग्रुप के डायरेक्टर शम्मी अगवाल ने कहा कि सरकार बुनियादी ढांचे, ग्रामीण विकास और सार्वजनिक स्वास्थ्य में निवेश कर रही है, अधिक मजबूत खुदरा वातावरण सुनिश्चित कर रही है और नीतियों को सरल बना रही है. पारंपरिक मेट्रो क्षेत्रों के बाहर खुदरा विकास तेजी से बढ़ रहा है. महानगरों की तुलना में इन शहरों में जमीन के बड़े हिस्से भी उपलब्ध हैं और कीमत भी कम है. वहीं, रिटेलर को हाइपरलोकल ब्रांड भी बनना होगा, तभी महानगर के साथ टियर 2,3 के शहरों में भी ये तेजी से बढ़ेंगे.  

टियर 2 व टियर 3 शहरों में एक आशाजनक भविष्य

कैंपस सूत्र की को-फाउंडर और सीओओ खुशबू अग्रवाल ने कहा कि भारत की आर्थिक क्षमता छोटे शहरों के विकास में निहित है जो सभी मोर्चों पर परिवर्तन देख रहे हैं. शहरी आवास, बुनियादी ढांचे, कार्यालय और रिटेल अचल संपत्ति, इस विकास का एक प्रमुख घटक होने के नाते, टियर 2 और टियर 3 शहर देश में मॉल के भविष्य में आशाजनक विकास दिखा रहे हैं. पैसे का मूल्य, धारणा, ग्राहक को समझना और आपकी ऑफ लाइन और ऑनलाइन दोनों जगह उपस्थिति होनी चाहिए. रिटेलर को माइक्रो इन्फ्लुएंसर बनने की जरूरत है और अब तो कंज्यूमर भी एक्सपेरिमेंटल हो गए हैं. उन्हें कपड़े से लेकर खाने पीने कीहर चीज में वैरायटी चाहिए. ऐसे में रिटेलर को कंज्यूमर की जरूरत के हिसाब में इन शहरों में बढ़ने की जरूरत है.


BW Retail: टेक्नोलॉजी से Retail के Ecosystems में आया है क्रांतिकारी बदलाव, जानिए कैसे?

रिटेल सेक्टर के ईकोसिस्टम में काफी बड़ा बदलाव हुआ है. ये ग्राहकों के व्यवहार, बाजार की गतिशीलता और तकनीकी प्रगति के कारण फलीभूत हो रहा है.

Last Modified:
Thursday, 28 March, 2024
RETAIL

BW Business world के Building Blocks of Retail Summit में रिटेल सेक्टर की दिग्गज हस्तियों ने शिरकत की. किस तरह रिटेल के इकोसिस्टम में बदलाव आया है इस विषय पर उन्होंने अपने विचार व्यक्त किए. पैनल में रिटेल सेक्टर की दिग्गज हस्तियों ने अपने अनुभवों को साझा किया. इस पैनल में DLF Malla के वाइस प्रेसिडेंट और हेड ऑफ ऑपरेशन मनीष मेहरोत्रा, Raymond के हेड ऑफ स्टोर डेवलपमेंट आकाश श्रीवास्तव, Aqualite Industries के प्रेसिडेंट अतुल जैन, ReneuSleep India के फाउंडर और CEO प्रांजल बरुआ मौजूद रहे.

रिटेल सेक्टर के इकोसिस्टम में आया बदलाव

DLF Malla के वाइस प्रेसिडेंट और हेड ऑफ ऑपरेशन मनीष मेहरोत्रा ने कहा कि पिछले दशक में रिटेल सेक्टर के ईकोसिस्टम में काफी बड़ा बदलाव हुआ है. ये ग्राहकों के व्यवहार, बाज़ार की गतिशीलता और तकनीकी प्रगति के कारण फलीभूत हुआ है. ऑनलाइन और ऑफलाइन शॉपिंग के बीच का अंतर धुंधला हो गया है. उपभोक्ता सहजता से डिजिटल और इन-स्टोर अनुभवों के बीच बदलाव कर रहे हैं. चाहे स्मार्टफोन के माध्यम से ब्राउज़ करना हो, स्थानीय बाजार में घूमना हो, या शॉपिंग मॉल की खोज करना हो, अब यह सब शॉपिंग का हिस्सा माना जाता है.

पिछले कुछ सालों में कितना बदल गया है रिटेल वर्ल्ड? BW इवेंट में मिला जवाब

ज्यादा सुलभ हो गया है रिटेल सेक्टर

Raymond के हेड ऑफ स्टोर डेवलपमेंट आकाश श्रीवास्तव ने अपनी बात रखते हुए कहा कि कोविड महामारी के बाद देश भर में रिटेल कारोबार की बिक्री में भी शानदार उछाल आया है. डिजीटल टेक्नोलॉजी और ई-कॉमर्स को लोगों ने बहुत तेजी से अपनाया है. महामारी से सबक लेते हुए यह खरीदारी करने के लिए सुरक्षित, आसान व सुविधाजनक तरीका बनकर उभरा है. इससे बी2बी रिटेल इकोसिस्टम में भी परिवर्तन आया, जिसका लाभ सभी स्टेकहोल्डर्स को निश्चित रूप से मिल रहा है. रिटेल इकोसिस्टम में पहले से ज्यादा पारदर्शिता, ज्यादा बचत, कम स्टॉक-आउट्स, ज्यादा फिल-रेश्यो के साथ विभिन्न प्रकार के उत्पादों की उपलब्धता और वह भी एक ही प्लेटफॉर्म पर मिल रही है.

अब कंज्यूमर हो गए है जागरूक

Aqualite Industries के प्रेसिडेंट अतुल जैन ने कहा कि रिटेल के ईकोसिस्टम में सबसे बड़ा बदलाव आया है कि अब कंज्यूमर जागरूक हो गए है. कंज्यूमर ने डिजिटल टेक्नोलॉजी और ई-कॉमर्स को लोगों ने बहुत तेजी से अपनाया है. डिजिटलीकरण और भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है, ग्राहकों के बर्ताव में बहुत बदलाव आया है और ई-कॉमर्स को अपनाने वालों की तादाद तेजी से बढ़ी है. हम क्या खरीदते हैं, कैसे खरीदते हैं, कहां खरीदते हैं, क्यों खरीदते हैं, इन सभी पहलुओं पर ग्राहकों की आदतों में तेजी से परिवर्तन हो रहा है. एक आधुनिक, डिजिटली सक्षम कंज्यूमर कुछ ही समय में मार्केट इंटेलीजेंस और रुझानों पर अहम जानकारी प्राप्त कर सकता है जिसके चलते सही उत्पादों की खरीद व बिक्री से पूरा ईकोसिस्टम मजबूत हो गया है.

AI से रिटेल सेक्टर में हो रही है वृद्धि

ReneuSleep India के फाउंडर और CEO प्रांजल बरुआ ने अपनी बात रखते हुए कहा कि रिटेलर्स को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से कई लाभ मिल रहे हैं. यदि रिटेलर्स AI का रुख अपनाते हैं तो वे नए ग्राहक जुटाने में भी सक्षम हो सकते हैं. यह महत्वपूर्ण है, खासकर जब ई-कॉमर्स उद्योग तेजी से बढ़ रहा है और प्रतिस्पर्धा भयंकर हो गई है. AI से कंज्यूमर अपनी पसंद खरीददारी कर रहे हैं. रिटेल सेक्टर में AI एक कारगर हथियार बनता जा रहा है. AI ने रिटेल सेक्टर को एक नई पहचान दी है.


BW Retail: रिटेल सेक्‍टर में हमेशा सेंटर में रहता है कंज्‍यूमर,ये है सबसे बड़ी चुनौती 

रिटेल वर्ल्‍ड में हमेशा से ही कस्‍टमर सेंटर में रहा है और आगे भी रहेगा. अगर दुकान में आने वाले कस्‍टमर को एक स्‍माइल दी जाए तो उसका असर अलग पड़ता है

Last Modified:
Thursday, 28 March, 2024
Retail World

BW Retail World Summit में रिटेल की दुनिया से जुड़े हुए कई लोग मौजूद रहे. दिल्‍ली में आयोजित हुए बिजनेस वर्ल्‍ड के इस समिट में कई अहम मुद्दों पर एक्‍सपर्ट ने अपनी बात रखी. उन्‍होंने बताया कि कैसे नए जमाने में कंज्‍यूमर तक पहुंचने के तरीकों में बदलाव आया है जबकि कुछ लोगों ने बताया कि कुछ पारंपरिक तरीके आज भी कायम हैं जो रामबाण बने हुए हैं. इस कार्यक्रम में बिजनेस वर्ल्‍ड समूह के चेयरमैन, एडिटर-इन-चीफ और एक्‍सचेंज4मीडिया समूह के डॉ. अनुराग बत्रा भी मौजूद रहे.  

कंज्‍यूमर हमेशा से ही रिटेल के सेंटर में रहा है
Avit Digital के Managing Director, राजेश दीवानी ने कहा कि जहां तक रिटेल की बात है तो कंज्‍यूमर हमेशा ही उसके कोर में रहा है और वो हमेशा कोर में रहेगा. इसकी कोई संभावना नहीं है कि कंज्‍यूमर कोर में ना रहे.  अभी हो क्‍या रहा है हम कंज्‍यूमर के कोर में पहुंचना चाह रहे हैं. ये पहले नहीं होता था ये अभी हो रहा है. उसके लिए जो रास्‍ता अपना रहे हैं वो भी पहले के मुकाबले काफी तेज है. अगर आप कंज्‍यूमर के कोर में नहीं पहुंचेंगे तो वो आपसे दूर चला जाएगा. इसको हम दो हिस्‍सों में बांट सकते हैं. पहला वो है जिसमें हम कंज्‍यूमर के कोर सेट में पहुंचने का प्रयास करते हैं और दूसरा वो है जिसमें हम उसके हार्ट में पहुंचने की कोशिश करते हैं. जब हम कोर सेट में पहुंचने की कोशिश करते हैं तो हमारे लिए ये बहुत खुशी की बात है कि हमारे 63 प्रतिशत ग्राहक वो हैं जो हमारे रिपीट कस्‍टमर हैं. दूसरा ये है कि अपने कुछ खास प्रोग्राम के जरिए टारगेट ग्राहक तक पहुंचने की कोशिश करते हैं. 

कस्‍टमर के दिल तक पहुंचना सबसे अहम 
Mohanlal Sons के CEO, मयंक मोहन ने कहा कि अगर कस्‍टमर तक पहुंचना है तो उसके दिल तक पहुंचना सीखना चाहिए. जब कस्‍टमर आता है तो उसका स्‍वागत एक स्‍माइल के साथ करना चाहिए. कस्‍टमर सर्विस एक बेहद अहम रोल निभाती है. अब वो भले ही उसके आने पर स्‍माइल करना हो या उससे आने पर चाय या काफी को लेकर पूछना हो. हमारे बिजनेस में कंज्‍यूमर के कोर में पहुंचने का तरीका जो मुझे समझ में आता है वो है पर्सनलाइजेशन. हम अपनी शॉप पर टेलरिंग को भी ऑफर करते हैं. जब कोई कस्‍टमर हमारी शॉप पर आता है और उसे लगता है कि ये कपड़ा या ड्रेस उसकी साइज का है उसकी आउटफिट का है, तो और कोई दूसरा इसे नहीं पहन सकता है तो इसे पर्सनलाइजेशन से समझा जा सकता है.

अपने कस्‍टमर को वापस लाना सबसे बड़ी चुनौती  
Beanly Coffee के Co-Founder, Rahul Jain ने कहा कि 
मुझे लगता है कि अपने कस्‍टमर तक पहुंचना एक सबसे अहम काम है. जैसा कि सर ने कहा कि कस्‍टरम की लॉयल्‍टी पहचानना एक अहम बात है. कई कस्‍टमर जो हमारे वहां पहले आते हैं, लोग वो जो कुछ नया खोजते हैं, अगर वो हमारा प्रोडक्‍ट ट्राई करते हैं तो उसी तरह से वो किसी और का भी प्रोडक्‍ट ट्राई करते होंगें. उस कस्‍टमर को अपने वहां वापस लाना और ये अपने आप में एक बड़ा चैलेंज है. या तो अपने इंस्‍टाग्राम अकाउंट के जरिए उसे इंगेज रखने की बात हो या कस्‍टमर तक किसी दूसरे तरीके से पहुंचने की बात हो उसे हम अग्रेसिवली करते हैं. हमारे लिए हमारे कस्‍टमर का फीडबैक भी सबसे अहम होता है. 

कंज्‍यूमर से जुड़े 4 प्‍वाइंट सबसे अहम हैं
Barista Coffee के CEO, Rajat Agrawal ने कहा कि हम एक कैफे कैटेगिरी से संबंध रखते हैं. कैफे को हम चार पिलर में देखते हैं. कंज्‍यूमर, अडॉपटेबिलिटी, फ्रीक्‍वेंसी एंड इंगेजमेंट में रखते हैं. इनमें कंज्‍यूमर के साथ इंगेज रहना, कंज्‍यूमर की जरूरत को देखना जिससे उसकी फ्रीक्‍वेंसी बनी रहे. कज्‍यूमर हमेशा से ही कोर में रहता है. जैसा कि अनुराग जी ने कहा कि प्रीमियमाइजेशन काफी तेजी से हो रहा है. अगर देखें तो आज मीडिल क्‍लास भी इंगेज करने की कोशिश कर रहा है. आज जिस तरह की भी जानकारी मौजूद है उसमें कंज्‍यूमर बहुत अच्‍छी तरह से शिक्षित है. आपको प्रोडक्‍ट प्रीफरेंसेज से लेकर, प्रोडक्‍ट प्रोफाइल, को लेकर भी काम कने की जरूरत पड़ती है. आज हम देश में 100 से ज्‍यादा शहरों में काम कर रहे हैं. 

सबसे बड़ा चैलेंज ह्यूमन रिसोर्स का है 
Lacoste India के MD & CEO Rajesh Jain ने कहा कि मुझे लगता है कि ज्‍यादातर रिटेलर जिस चीज का चैलेंज सबसे ज्‍यादा फेस करते हैं उसमें सबसे बड़ा चैलेंज ह्यूमन रिसोर्स का है. CEO ने क्‍या किया और बोर्ड में क्‍या हुआ ये सब स्‍टोर के लेवल पर नहीं जा पाता है. सबसे बड़ी समझने वाली बात ये है कि दु‍कान पर कस्‍टमर के साथ केवल वो शॉप वाला ही जानता है. क्‍या हम उन्‍हें प्रशिक्षण देने में सक्षम हैं, अगर आप कस्‍टमर के कोर में जाना चाहते हैं तो आप फीडबैक जरूर दीजिए. आप अपने ह्यूमन रिसोर्स का आंकलन कैसे करते हैं आप उसकी सेल पर ध्‍यान देते हैं या आप उसकी क्‍वॉलिटी सेल पर ध्‍यान देते हैं. ये सबसे अहम है.क्‍वॉलिटी को मेंटेन करना अपने आप में सबसे बड़ा चैलेंज है. 

इस इंडस्‍ट्री में आज भी बहुत कम है पेनीट्रेशन लेवल 
संजय भूटानी मैनेजिंग डॉयरेक्‍टर वॉचलाम इंडिया ने कहा कि  
कॉनटेक्‍ट लेंस के क्षेत्र में आज भी कारोबार नहीं बदला है. अभी में किसी से मिला तो उन्‍होंने बताया कि हम कस्‍टमर को ट्रायल के लिए इन्‍हें देते हैं. पेनीट्रेशन लेवल आज भी इस इंडस्‍ट्री में काफी कम बना हुआ है. ये सिर्फ इंडिया में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में कम बना हुआ है. जब आप मार्केट लीडर हैं तो ऐसे में आपकी जिम्‍मेदारियां और भी बढ़ जाती हैं. सवाल ये है कि आप ज्‍यादा कस्‍टमर को इस कैटेगिरी में कैसे लाते हैं. अभी देश में 7 प्रतिशत लोग कॉटेक्‍ट लेंसेज का इस्‍तेमाल कर रहे हैं. हमारे वहां कोई भी कंज्‍यूमर हो सकता है. अगर आपकी नजर कम है तो आप हमारे पोटेंशियल कंज्‍यूमर हो सकते हैं. 

ये भी पढ़ें: पिछले कुछ सालों में कितना बदल गया है रिटेल वर्ल्ड? BW इवेंट में मिला जवाब


 
 


पिछले कुछ सालों में कितना बदल गया है रिटेल वर्ल्ड? BW इवेंट में मिला जवाब 

'आज के समय में अधिकांश लोग अपनी जरूरत का सामान Amazon जैसे मार्केटप्लेस से खरीदना पसंद करते हैं'.

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Thursday, 28 March, 2024
BW Event

BW Businessworld द्वारा दिल्ली में आयोजित Building Blocks of Retail Summit में रिटेल सेक्टर की दिग्गज हस्तियों ने शिरकत की. इस दौरान उन्होंने अपने विचार भी व्यक्त किए. उन्होंने बताया कि पिछले कुछ वक्त में रिटेल में किस तरह से बदलाव आए हैं और भविष्य में इसमें क्या संभावनाएं हैं. इस दौरान अलग-अलग विषयों पर पैनल डिस्कशन भी हुआ. 

डिस्कशन में इन्होंने लिया भाग 
'Diversity In Retail: Navigating The New Formats Of Retail Spaces' विषय पर आयोजित पैनल डिस्कशन में QueueBuster के CEO एवं फाउंडर Varun Tangri, VM Retail ID, Landmark Group, Max Retail के नेशनल हेड Lalit Kumar Jha, Amazon में Emerging FBA, IN Marketplace के निदेशक Ramaswami Lakshman और Capgemini में Consumer Products and Retail –India की इंडस्ट्री प्लेटफॉर्म लीडर Sharmila Senthilraja ने भाग लिया. सेशन चेयर के तौर पर BW Businessworld की सीनियर एसोसिएट एडिटर Jyotsna Sharma मौजूद रहीं.

बदल गई है लाला की दुकान
पैनल डिस्कशन की शुरुआत ज्योत्स्ना ने इस सवाल के साथ की कि 2020 से लेकर अब तक रिटेल फॉर्मेट में किस तरह के बदलाव आए हैं. इसके जवाब में Varun Tangri ने कहा कि पिछले कुछ साल, खासकर कोरोना के बाद से रिटेल स्पेस ने कई उल्लेखनीय बदलाव देखे हैं. रिटेल स्पेस आज ग्राहकों के लिए बाइंग प्लेस से कहीं आगे बढ़ गया है. ये एक्सपीरियंशल स्टोर में तब्दील हो गया है. उदाहरण के लिए आप Hamleys जाते हैं, तो केवल बच्चों के खिलौने खरीदने के लिए ही नहीं जाते, बल्कि कई नई चीजों को देखने भी जाते हैं, जो ब्रैंड ऑफर करता है. पारंपरिक रूप से पिछले कुछ सालों में रिटेल स्पेस में काफी बदलाव आया है. अब ये महज एक बाइंग प्लेस से कहीं ज्यादा है. उन्होंने आगे कहा कि स्टोर्स में टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल में भी इजाफा हुआ है. पेन-पेपर की जगह आज स्टोर में बहुत सारी टेक लेवल गतिविधियां होती हैं. लोकल नेबरहुड स्टोर भी बेहतर हो रहे हैं. विजुअल क्वालिटी, प्रोडक्ट असोर्टमेंट, टेक्नोलॉजी एडॉप्शन पर उन्होंने काम किया है. उदाहरण के लिए ग्रोसरी, पुरानी लाला की दुकान का रूप अब पूरी तरह से बदल गया है. वहां शेल्फ हैं, सुपरमार्केट जैसी फीलिंग है. वो विजुएल अपील को अपग्रेड कर रहे हैं और आने वाले समय में इसमें तेजी आएगी.  

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बाइंग पैटर्न में आया है बदलाव
Ramaswami Lakshman ने कहा कि कोरोना के बाद से डिजिटाइजेशन में काफी तेजी आई है. आज के समय में अधिकांश लोग अपनी जरूरत का सामान Amazon जैसे मार्केटप्लेस से खरीदना पसंद करते हैं. गार्डनिंग के साजोसामान से लेकर फैशन एक्सेसरीज तक सबकुछ ऑनलाइन उपलब्ध है.  यहां तक कि अब फार्मेसी भी ऑनलाइन हो गई है. जबकि कोरोना से पहले स्थिति अलग थी. कोरोना की वजह से लोगों के व्यवहार में बदलाव आया है. कोरोना से पहले तक ई-कॉमर्स को केवल मेट्रो शहरों तक ही सीमित माना जाता था, लेकिन हमने देखा है कि कोरोना के बाद टियर-2 टियर-3 शहरों से काफी बिजनेस आया है. देश के जनरल बाइंग पैटर्न में बदलाव आया है और ये महज एक शुरुआत है. डिजिटाइजेशन भी एक महत्वपूर्ण बदलाव है. UPI ने सबकुछ बेहद आसान कर दिया है. अब छुट्टे की कोई टेंशन नहीं होती. 

ग्राहकों तक पहले से ज्यादा एक्सेस 
Sharmila Senthilraja ने कहा कि वो दिन लद गए जब रिटेल केवल हाई कैपेक्स, स्टोर, लोकेशन के बारे में था. आज कोई भी जिसके पास बेचने के लिए अच्छा उत्पाद या सेवा है, उसके पास ग्राहकों तक एक्सेस है. रिटेल पहले की तुलना में काफी बदला है, उसका फॉर्मेट बदला है. ग्राहकों, कंज्यूमर तक एक्सेस बढ़ा है, जो पहले नहीं था. हमारे पास आज केवल ग्राहक ही नहीं, बल्कि उसके टाइम का भी एक्सेस है. लॉकडाउन के समय ट्रेवल जैसे कैटेगरी, जहां सबसे ज्यादा टाइम स्पेंड किया जाता है, उनका समय दूसरी जगह खर्च हुआ. उस समय रिटेल मनोरंजन का साधन बन गया था. लोग ऑनलाइन शॉपिंग कर रहे थे. जहां कई कैटेगरी में होने वाले खर्च में कमी आई. वहीं,  अपेरल, मनोरंजन, गेमिंग, आदि में खर्च में बढ़ोत्तरी हुई. इससे डायरेक्ट टू कंज्यूमर ट्रेंड में तेजी आई. मेरे ख्याल से ओमनी चैनल के साथ डायरेक्ट टू कंज्यूमर कुछ ऐसा है, जो पिछले पांच सालों में एक्सलरेट हुआ है.

कोरोना ने काफी कुछ सिखाया
Lalit Kumar Jha ने कहा कि कोरोना के दौरान और उसके बाद के समय ने हमें काफी कुछ नया सिखाया है. Gen G, Gen Alpha जैसी टर्म्स से आज सभी परिचित हैं. हर कोई टेक फ्रेंडली बन गया है. रिटेल भी काफी विकसित हुआ है. कोरोना के बाद खुले स्टोर और उससे पहले संचालित स्टोर में काफी बदलाव आया है. आज लगभग सभी स्टोर्स में क्योस्क है. आज ग्राहक के पास कई ऑप्शन हैं, आज ग्राहक लॉयल्टी पर नहीं जाता, लुक्स पर जाता है. वॉर्डरोब चंजिंग स्टाइल में बदलाव आया है. पहले लोग अमूमन छह महीने में वॉर्डरोब बदलते थे, लेकिन अब वो हर महीने कपड़े खरीद रहे हैं. टेक्नोलॉजी ने उनके काम को काफी आसान बना दिया है. 
 


महिलाओं में निवेश प्रतिशत क्यों है कम? जानें क्या है महिला आंत्रप्रेन्योर के विचार?

BW Business world के Women Entrepreneur Intrapreneurs Summit and Awards में महिला आंत्रप्रेन्योरर्स ने भाग लेकर ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को आंत्रप्रेन्योर बनने के लिए प्रेरित किया.

Last Modified:
Thursday, 28 March, 2024
Pannel Discussion

BW Business world के Women Entrepreneur Intrapreneurs Summit and Awards कार्यक्रम में कई महिला आंत्रप्रेन्योरर्स ने भाग लिया. समिट के 5वें सेशन में आयोजित पैनल चर्चा में इनवेस्ट की वूमन, एक्सेलारेट प्रोग्रेस (Invest In Women, Accelerate Progress) विषय पर तीन आंत्रप्रेन्योर महिलाओं ने अपने विचार रखे. इस पैनल में Orios Venture Partner की पार्टनर सुखमन बेदी, Ankurit Capital की को-फाउंडर और मैनेजिंग पार्टनर नताशा और WinPe की फाउंडर और मैनेजिंग पार्टनर नुपुर गर्ग ने भाग लिया. 

महिलाओं में निवेश के लिए सोच बदलने की जरूरत

ओरियोस वेंचर (Orios Venture Partner) की पार्टनर सुखमन बेदी ने कहा महिला और पुरुष फाउंडर्स में कोई अंतर नहीं है, जबकि महिलाएं पुरुषों से बेहतर समझती हैं. महिलाओं में सहानुभूति का स्तर भी अधिक होता है, जो पुरुषों में कम देखा जाता है. ऐसे में हमें महिलाओं को भी आगे बढ़ने के अवसर देने चाहिए, जबकि हम देखते हैं कि निवेशक पुरुषों के उद्योग में अधिक निवेश करते हैं. महिलाएं शिक्षित हैं, उन्हें आगे बढ़ना चाहिए और ऐसे कई निवेशक हैं जो बायस्ड नहीं हैं. पुरुषों की तुलना में महिलाओं में निवेश का प्रतिशत निश्चित रूप से कम है, लेकिन इसके बाद भी अब महिलाएं आंत्रप्रेन्योर आगे बढ़कर उद्योग कर रही हैं. हमें अन्य महिलाओं को भी प्रेरित करनी चाहिए. महिला संस्थापक के लिए निवेशक बहुत ज्यादा बायस्ड हो गए हैं, उनकी शादी और फिर  मां बनने के बाद उनके साथ बहुत भेदभाव किया जाता है. लोगों को सोच बदलनी होगी और महिलाओं को भी आगे बढ़ाना होगा. महिलाएं गेम चेंजर हैं, उन्हें सावधानी से चलते हुए अपने लक्ष्य को पाना होगा. 

महिलाओं को बाहर निकलने और नेटवर्क बनाने की जरूरत

अंकुरित कैपिटल (Ankurit Capital) की को-फाउंडर और मैनेजिंग पार्टनर नताशा ने कहा कि हमें हमेशा महिला उद्यमियों को प्रोत्साहित करना चाहिए.  सिडबी महिला उद्यमियों को आगे बढ़ने के लिए निवेश में मदद करता है. सिडबी की महिला उद्यम निधि महिला उद्यमियों को नया व्यवसाय स्थापित करने के लिए इक्विटी फंड की आवश्यकता को पूरा करने में मदद करती है. पहले महिलाओं को निवेश नहीं मिलता था लेकिन अब पुरुष और महिला के प्रति निवेशक निष्पक्ष होकर सोचने लगे हैं और महिलाओं को भी निवेश दे रहे हैं. उन्होंने कहा है वह महिलाओं को एक नेशनल लीडर के रूप में देखती हैं. महिलाओं को घर से बाहर निलकर और लोगों से नेटवर्किंग बनाने की जरूरत है. उन्हें साहस के साथ आगे बढ़ना है और फिर उन्हें एक सफल आंत्रप्रेन्योर बनने से कोई नहीं रोक सकता है. 

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महिलाओं को जागरूकता और समर्थन की जरूरत

विनपी (WinPe) की फाउंडर और मैनेजिंग पार्टनर नुपुर गर्ग ने कहा कि मल्टीपल रिपोर्ट से संकेत मिले हैं कि महिलाओं को पक्षपात का सामना करना पड़ता है. एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले 3 सालों में वीसी फंडिंग में महिलाओं के स्टार्ट-अप को 75 प्रतिशत नकारा गया है. कुल मिलाकर फंडिंग का माहौल महिलाओं के लिए इतना उत्साहजनक नहीं था, लेकिन 2024 में हम इसमें तेजी आने की उम्मीद कर रहे हैं.  एक महिला को आंत्रप्रेन्योर बनने का सपना देखने दें और उसका पूरा सहयोग करें. महिलाएं भी अपनी शिक्षा बर्बाद न करें, जागरूक बनें और अपना खुद का काम शुरू करें. महिलाओं के लिए वन टू वन सेशन, मेंटरशिप प्रोग्राम, नेटवर्किंग, राउंड टेबल जैसे कार्यक्रम आयोजित करने चाहिए, जिससे उनके अंदर आंत्रप्रेन्योर बनने का साहस पैदा हो और वो भी बाजार में उतरने की हिम्मत ला पाएं. महिलाएं भी पुरुषों की तरह उद्योग कर सकती हैं, उन्हें केवल जागरूकता और समर्थन की जरूरत है. 
 


BW WEISA: बिजनेस की ग्रोथ के लिए Scalability है जरूरी, जानिए कैसे?

बिजनेस शुरू करना जितना आसान हो सकता है उतना ही कठिन उसे स्केल अप करना होता है, किसी भी बड़ी कंपनी के पीछे का सबसे बड़ा रहस्य यही होता है कि वो अपना एक मॉडल और फ्रेमवर्क लेकर चलती है.

Last Modified:
Thursday, 28 March, 2024
Women Entrepreneur

BW Business world के Women Entrepreneur Intrapreneurs Summit and Awards कार्यक्रम में कई महिला आंत्रप्रेन्योरर्स ने भाग लिया. समिट में बिजनेस स्केल अप को लेकर बातचीत हुई. पैनल में कई आंत्रप्रेन्योर महिलाओं ने अपने अनुभवों को साझा किया. इस पैनल में Kanika Sethi Weddings and Events की फाउंडर और CEO कनिका सेठी, Wizikey की को-फाउंडर आकृति भार्गव, B77 की फाउंडर और CEO रचना रचना सरूप, Core and Pure की फाउंडर प्रियंका सचदेवा और FITPASS की को-फाउंडर आरुषि वर्मा मौजूद रहीं.

ग्रोथ के लिए स्केल अप जरूरी

Kanika Sethi Weddings and Events की फाउंडर और CEO कनिका सेठी ने WEISA में कहा कि बिजनेस में बने रहना और स्केलअप करना दोनों अलग चीज है. बिजनेस को स्केल अप करने के लिए कई पहलुओं पर ध्यान देना होता है. जैसे, अपने बिजनेस की ग्रोथ के लिए ह्यूमन कैपिटल का ध्यान रखना. आप अपने बिजनेस को कैसे फाइनेंस करते हैं. बिजनेस-टू-बिजनेस मार्केटिंग पर भी ध्यान देना चाहिए. इसके साथ ही आप अपने बिजनेस को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर किस तरीके से प्रेजेंट करते है. इन सब पहलुओं को ध्यान में रखते हुए आप बिजनेस को स्केलअप कर सकते हैं. 

Learn and Grow पर दें ध्यान

Wizikey की को-फाउंडर आकृति भार्गव ने समिट में अपनी बात रखते हुए कहा कि हर आंत्रप्रेन्योर सोचता है कि वह कुंए का मेढ़क है, क्योंकि वह सोचता है कि इस कुंए हम पार करके आगे बढ़ जाएंगे लेकिन ऐसा नहीं होता है. आपको आगे बढ़ने के लिए किसी मेंटर की जरूरत होती है जो आपको आपके कम्फर्ट जोन से निकाले. हर आंत्रप्रेन्योर को समय के साथ चलना चाहिए और सीखना चाहिए जिससे उसे अपने बिजनेस को आगे बढ़ने में मदद मिलेगी.

Employment Scalability सबसे अहम

B77 की फाउंडर और CEO रचना रचना सरूप ने समिट को संबोधित करते हुए कहा कि बिजनेस के स्केलअप के लिए सबसे अहम चीज है एंप्लॉयमेंट स्केलेबिलिटी. पूंजी भी बिजनेस के लिए जरुरी है लेकिन उससे भी ज्यादा जरूरी है प्रॉडक्ट वेलिडेशन. स्केल अप के लिए आपको अपने क्ज्यूमर को जानना समझना जरूरी है इसके साथ ही उनको जेनुइन प्रॉडक्ट डिलीवर करना जरुरी है. मेरा मानना है कि स्केल अप के लिए हमें बैक टू बैसिक की तरफ जाना पड़ेगा और कुछ बदलाव करके कंज्यूमर को डिलीवर करना पड़ेगा.

बिजनेस की जरूरत है Scalability

Core and Pure की फाउंडर प्रियंका सचदेवा ने कहा कि जब आप कोई बिजनेस की शुरू करते हैं तो आपके दिमाग में एक विजन होना चाहिए कि आप ये क्यों स्टार्ट कर रहे हैं और आपको किन समस्याओं का सामना करना पड़ेगा. आपको क्ज्यूमर बिहेवियर के हिसाब से अपने बिजनेस आगे बढ़ाना चाहिए. मेरा मानना है कि बिजनेस की जरूरत है स्केलेबलिटी, अगर आपके पास स्केलेबलिटी नहीं है तो वो बिजनेस आप नहीं कर सकते हैं. वहीं दूसरी तरफ बिजनेस की ग्रोथ के लिए इन्वेस्टमेंट की जरूरत है लेकिन इससे भी जरूरी है कि आप उस इन्वेस्टमेंट को कैसे इन्वेस्ट कर रहे हैं.

समय पर करें फंड रेजिंग

FITPASS की को-फाउंडर आरुषि वर्मा ने समिट में अपनी बात रखते हुए कहा कि बिजनेस की ग्रोथ के लिए काम करने की जरूरत होती है. इसके लिए फंड रेजिंग को बढ़ाना बहुत आवश्यक है. आपको अपनी फंड रेजिंग बढ़ाने के लिए सबसे पहले अपने बिज़नेस के लिए लीगल स्ट्रक्चर को बनाने की जरुरत होती है. इसके बाद मार्किट रिसर्च जरुर करें. इसमें आपको पता चलेगा कि मार्किट में कौन सा ब्रांड है जिससे आपका कॉम्पिटिशन है. मार्किट का साईज क्या है. कस्टमर कितने हैं. रिवेन्यू क्या है. मार्किट की पॉजीशनिंग क्या है. जिससे फंड रेजिंग को समझने में काफी मदद मिलेगी.