अश्नीर ग्रोवर ने ट्वीट में ऐसा क्या लिख दिया कि नाराज हो गया High Court, दे डाला ये आदेश

अश्नीर ग्रोवर अमूमन कुछ न कुछ ऐसा करते रहते हैं, जिस पर विवाद खड़ा हो जाता है.

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Friday, 15 March, 2024
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भारतपे (BharatPe) के पूर्व प्रबंध निदेशक अश्नीर ग्रोवर के एक ट्वीट पर दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने नाराजगी जताई है. साथ ही कोर्ट ने 48 घंटे के भीतर इस ट्वीट को हटाने का निर्देश दिया है. अश्नीर ने अपने इस ट्वीट में BharatPe और SBI के चेयरमैन का भी जिक्र किया था. अपने आदेश में दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि अश्नीर ग्रोवर BharatPe की प्रतिष्ठा को नुकसान नहीं पहुंचा सकते और एसबीआई चेयरमैन पर उनका ट्वीट पूरी तरह से टाला जाने योग्य था.

कुछ और नहीं बल्कि कटाक्ष
अश्नीर ग्रोवर ने हाल ही में किए एक ट्वीट में अपनी पूर्व कंपनी BharatPe और एसबीआई चेयरमैन को छोटे लोग कहा था. उन्होंने चेयरमैन की स्पेलिंग भी गलत लिखी थी, जिस पर एक यूजर ने पूछा था कि क्या इसके पीछे भी कोई खास वजह है. हाई कोर्ट अश्नीर के इस ट्वीट से नाराज हो गया है. कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि ग्रोवर BharatPe की प्रतिष्ठा को नुकसान नहीं पहुंचा सकते. अदालत ने यह भी कहा कि अश्नीर का ट्वीट और कुछ नहीं बल्कि भारतपे के चेयरपर्सन, जो कि एसबीआई के पूर्व चेयरमैन हैं, पर एक कटाक्ष है.  

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ऐसे मिला अश्नीर को मौका
दरअसल, इलेक्टोरल बॉन्ड मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई के खिलाफ सख्त रुख अख्तियार किया है. कोर्ट ने बैंक को कड़ी फटकार भी लगाई थी. बस इसी को आधार बनाते हुए अश्नीर ग्रोवर को एसबीआई चेयरमैन के खिलाफ अपनी भड़ास निकाल ली. अश्नीर ने 12 मार्च के अपने ट्वीट में कहा-  एसबीआई के चेयरमैन छोटे लोग होते हैं. उनकी सोच में बड़ी समस्या है. मैंने इसे महसूस किया है और अब सुप्रीम कोर्ट को भी यह समझ में आ गया है. अश्नीर को शायद आभास नहीं होगा कि उनका ये ट्वीट अदालत को नाराज कर सकता है. खबर लिखे जाने तक अश्नीर ग्रोवर ने अपना यह ट्वीट डिलीट नहीं किया था. 

पहले भी साधा था निशाना
इससे पहले, अश्नीर ग्रोवर ने भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) को पत्र लिखकर BharatPe की शेयरहोल्डिंग की जांच की मांग की थी. RBI गवर्नर शक्तिकांत दास को पत्र में उन्होंने कहा था कि भारतपे ने भाविक कोलाडिया को कंपनी में वापस लाकर जानबूझकर केंद्रीय बैंक को धोखा दिया है. ग्रोवर ने इस बात की जांच की मांग भी की कि क्या कंपनी के बोर्ड और निवेशकों ने कोलाडिया को वापस लाने के लिए उनके शेयरों को एक निश्चित अवधि के लिए स्टोरेज किया था. गौरतलब है कि एसबीआई के पूर्व चेयरमैन रजनीश कुमार और अश्नीर ग्रोवर के बीच 2022 से विवाद चल रहा है. अश्नीर ने उनके खिलाफ अपने एक ट्वीट में कहा था कि रजनीश कुमार की भारतपे में हायरिंग सबसे बड़ी गलती थी. रजनीश कुमार भारतपे के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर के चेयरमैन रहे हैं. 
 


Supreme Court का DMRC फैसला: भोपाल गैस त्रासदी से भी बड़ा?

Supreme Court ने एक व्यावसायिक विवाद में सुधारात्मक याचिका को बरकरार रखा और अपनी ही दो बेंच के आदेश को पलट दिया.

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Saturday, 27 April, 2024
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पलक शाह

"Justice By The Chancellor's Foot" ये पुरानी कहावत है जो दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (डीएमआरसी) की सुधारात्मक याचिका (Curative Petition) को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के फैसले पर सटीक बैठती है. दरअसल, डीएमआरसी बनाम डीएएमईपीएल (दिल्ली एयरपोर्ट मेट्रो एक्सप्रेस प्राइवेट लिमिटेड) के बीच कमर्शियल विवाद में चीफ जस्चिस ऑफ इंडिया (CJI) डीवाई चंद्रचूड़  (DY Chandrachud) के नेतृत्व में तीन सीनियर न्यायाधीशों वाली बेंच का एक फैसला आया है. जिसमें डीएमआसी बनाम डीएएमईपीएल के एक कमर्शियल विवाद को लेकर एक मध्यस्थता मामले में न्यायिक हस्तक्षेप के अंतिम फैसले को पलटने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा ‘Review Petition’ की खारिज करने, मध्यस्ता अवॉर्ड (Arbitration Award) के बाद  अपील की ‘Fifth layer’ की अनुमति दी गई थी. 

SC की अधिकार क्षेत्र की 'मर्यादा' (सीमा): यूनियन ऑफ इंडिया बनाम यूनियन कार्बाइड

हिरोशिमा और नागासाकी पर हुआ परमाणु बम विस्फोट, आधुनिक इतिहास में भारत की भोपाल गैस त्रासदी जैसी एक मात्र घटना है. फिर भी भारत के सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने प्रलयकारी गैस रिसाव के अपराधी यूनियन कार्बाइड के खिलाफ उच्च मुआवजे के लिए एक सुधारात्मक याचिका खारिज कर दी. लेकिन उसी सुप्रीम कोर्ट ने महज एक व्यावसायिक विवाद में सुधारात्मक याचिका को बरकरार रखा और अपनी ही दो बेंच के आदेश को पलट दिया, जिससे भारत के मध्यस्थता कानूनों के खिलाफ एक गलत मिसाल कायम हुई है.  

इसलिए खारिज हुई थी याचिका

2023 में न्यायमूर्ति एस.के कौल के नेतृत्व वाली 5 न्यायाधीशों की बेंच ने न केवल सरकार की याचिका खारिज कर दी, बल्कि Curative Jurisdiction के क्षेत्राधिकार का दायरा भी सीमित कर दिया. पीठ ने कहा कि सुधारात्मक याचिका पर तब विचार किया जा सकता है जब 'न्याय में घोर लापरवाही', धोखाधड़ी या भौतिक तथ्यों को दबाया गया हो. भारत संघ (Union Of India) ने इनमें से किसी भी आधार पर याचिका को उचित नहीं ठहराया. इसके बजाय, बेंच ने माना कि इस सुधारात्मक याचिका को अनुमति देने से एक भानुमति का पिटारा ( Pandora’s box) खुल जाएगा. 
भोपाल गैस त्रासदी की तुलना में, जहां अपराध की भयावहता इतनी अकल्पनीय थी कि मृतकों और घायलों की गिनती करना मुश्किल था, क्या डीएमआरसी बनाम डीएएमईएल के बीच वाणिज्यिक विवाद को देश के सबसे दुर्लभ मामलों की श्रेणी में रखा जा सकता है? भोपाल गैस त्रासदी का मामला काफी पुराना था, लेकिन इस सरकार को जब इस त्रासदी की भयावहता का एहसास हुआ तो उसने क्यूरेटिव पिटीशन के जरिए पिछली सरकारों की एक और ऐतिहासिक गलती को सुधारने के लिए मजबूर कर दिया. लेकिन न्यायाधीशों की अंतरात्मा इतनी नहीं हिली और सुप्रीम कोर्ट अंतिम सिद्धांत के सिद्धांतों से पीछे नहीं हटा.

सुधारात्मक याचिका की अवधारणा कब आई?
सुधारात्मक याचिका की अवधारणा का जन्म 2002 में हुआ था, जब रूपा अशोक हुर्रा बनाम अशोक हुर्रा के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा इसे नियंत्रित करने वाले सिद्धांत स्थापित किए गए थे. सुधारात्मक याचिका से पहले, सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पेटिशन अपील की अंतिम परत थी, जैसा कि विश्व स्तर पर प्रथा है. लेकिन हुर्रा मामले में अदालत (न्यायाधीशों) की अंतरात्मा - इतनी हिल गई कि उन्होंने सुधारात्मक याचिका के रूप में अपील की एक और परत को जन्म दिया. उस दिन से भारत में प्रत्येक सुधारात्मक याचिका का निर्णय 2002 के हुर्रा मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित सिद्धांतों के आधार पर किया जाता है. यह एक वैवाहिक कलह का मामला था, जहां तलाक की वैधता का सवाल सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया था. महिला ने आपसी सहमति से तलाक के लिए दी गई सहमति वापस ले ली थी. 

डीएमआरसी ने कब दायक की सुधारात्मक याचिका
क्या डीएमआरसी बनाम Arbitration (मध्यस्थता) मामला महज एक व्यावसायिक विवाद था, जिसमें एक पब्लिक लिमिटेड कंपनी और एक निजी कंपनी शामिल थी, जिसका आकलन धारणाओं के आधार पर नहीं किया जा सकता. डीएमआरसी मामले में रिव्यू पेटीशन खारिज होने के बाद क्यूरेटिव पेटीशन को बरकरार रखने वाला सुप्रीम कोर्ट का फैसला न्यायिक प्रक्रिया के दुरुपयोग का कारण नहीं बनता है और न ही इसे दुर्लभ मामला माना जा सकता है. डीएमआरसी ने नवंबर 2021 में न्यायमूर्ति एल नागेश्वरराव और न्यायमूर्ति एसआर भट द्वारा रिव्यू पेटीशन खारिज किए जाने के लगभग 8 महीने बाद जून 2022 में सुप्रीम कोर्ट में अपनी सुधारात्मक याचिका दायर की, जिसके माध्यम से राहत पाने से पहले डीएमआरसी एक मध्यस्थता खो चुकी थी, जो 4.5 वर्ष तक चली और मई 2017 में DAMEPL के पक्ष में निष्कर्ष निकाला गया. हुर्रा मामले की तरह, नियम कहता है कि समीक्षा याचिका की सुनवाई करने वाले न्यायाधीश को क्यूरेचिव याचिका की सुनवाई करने वाली पीठ में होना चाहिए. 

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Curative Petition (सुधारात्मक याचिका) के सिद्धांत
सुधारात्मक याचिका कोई अधिकार का मामला नहीं है, यानी हर पीड़ित इसका हकदार नहीं है और इस पर केवल वहीं विचार किया जाता है जहां प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ हो. यह दूसरी बार की याचिका है-आरोपी को दिया गया अंतिम विकल्प और वे दुर्लभ होने चाहिए और उन्हें पूर्ण विवेक के साथ देखा जाना चाहिए. केवल वास्तविक मामलों में सुधारात्मक याचिकाएं दाखिल करने को प्रतिबंधित करने के लिए, हुर्रा मामले में प्रावधान किया गया कि इसमें फैसले में प्रदान की गई सभी आवश्यकताओं की पूर्ति के संबंध में एक वरिष्ठ वकील द्वारा प्रमाणीकरण शामिल है. 

किससे जुड़ा है मध्यस्थका विवाद
मध्यस्थता विवाद दिल्ली एयरपोर्ट मेट्रो एक्सप्रेस रेल परियोजना के निर्माण, संचालन और रखरखाव से जुड़ी सार्वजनिक-निजी भागीदारी परियोजना में सिविल कार्य से संबंधित है. क्या सुप्रीम कोर्ट ने अब सुधारात्मक याचिका को इस हद तक हथियार बना दिया है कि इसका इस्तेमाल पीड़ित पक्ष कमर्शियल विवादों में अपील के अंतिम उपाय के रूप में कर सकते हैं? ऐसा लग रहा है जैसे इस मामले के बाद भारत को अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता का केंद्र बनाने का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सपना हवा में उड़ गया है.
 


पत्नी के गोल्ड, पैसे और संपत्ति पर पति का कोई हक नहीं, आया Supreme Court का ऐतिहासिक फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने महिला अधिकारों से जुड़ा एक अहम फैसला सुनाया है. कोर्ट के अनुसार पत्नी के 'स्त्रीधन' पर पति का कोई अधिकार नहीं होता है. 

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Friday, 26 April, 2024
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पत्नी की संपत्ति पर पति का कोई अधिकार नहीं है. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अपने इस ऐतिहासिक फैसले में कहा कि एक पति का अपनी पत्नी के 'स्त्रीधन' (महिला की संपत्ति) पर कोई अधिकार नहीं है. हालांकि, वह संकट के समय इसका इस्तेमाल कर सकता है, लेकिन उसका नैतिक दायित्व है कि वह इसे अपनी पत्नी को लौटा दे. तो चलिए जानते हैं क्या है ये पूरा मामला?

ये है पूरा मामला
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच ने कहा कि 'स्त्रीधन' प्रॉपर्टी शादी के बाद पति और पत्नी की साझा संपत्ति नहीं बन जाती. पति का उस संपत्ति पर किसी तरह का मालिकाना हक नहीं बनता. यह मामला 2011 का है. महिला ने अनुसार शादी के वक्त उसे अपने परिवार से सोने के 89 सिक्के गिफ्ट में मिले थे. शादी की पहली रात को ही पति ने पत्नी की सारी ज्वेलरी ले ली. गहने सुरक्षित रखने के नाम पर अपनी मां को सौंप  दिए. महिला का आरोप है कि उसके पति और सास ने गहनों में हेरफेर किया. अपना कर्ज चुकाने के लिए उन्होंने महिला के गहने बेच दिए थे. शादी के बाद, महिला के पिता ने उसके पिता को 2 लाख रुपये का चेक भी दिया था.

कोर्ट पहुंचा मामला
2011 में यह मामला फैमिली कोर्ट पहुंचा. कोर्ट ने पाया कि पति और उसकी मां ने महिला के सोने का गबन किया था. कोर्ट ने कहा कि महिला को जो नुकसान हुआ, वह उसकी भरपाई की हकदार है. पति ने फैमिली कोर्ट के फैसले के खिलाफ केरल हाई कोर्ट में अपील दायर की. होई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के फैसले को पलट दिया था, क्योंकि महिला यह साबित नहीं कर पाई कि उसके पति और सास ने गहनों से छेड़छाड़ की थी. इसके बाद महिला सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. 

सुप्रीम कोर्ट ने महिला के हक में सुनाया फैसला
सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस खन्ना और जस्टिस दत्ता की बेंच ने साफ कहा है कि स्त्रीधन' पति-पत्नी की साझा संपत्ति नहीं है. पत्नी की संपत्ति पर पति का कोई अधिकार नहीं है. अदालत ने कहा है कि पति का पत्नी के स्त्रीधन पर कोई नियंत्रण नहीं है. वह मुसीबत के समय इसका इस्तेमाल कर सकता है लेकिन उसे वापस करना पति का नैतिक दायित्व है.
शीर्ष अदालत ने कहा कि महिला ने 89 सोने के सिक्कों के बदले में रुपयों की वसूली के लिए सफलतापूर्वक कार्रवाई शुरू की है. साल 2009 में इनका मूल्य 8.90 लाख रुपये था. बेंच ने कहा है कि समय बीतने, जीवन-यापन की बढ़ती लागत, समानता और न्याय के हित को ध्यान में रखते हुए संविधान के अनुच्छेद 142 द्वारा दी गई शक्ति का प्रयोग करते हुए कोर्ट अपीलकर्ता को 25,00,000 रुपये की राशि प्रदान की जानी चाहिए. 

क्या होता है स्त्रीधन
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि शादी से पहले, शादी के दौरान और विदाई या उसके बाद महिला को उपहार में मिली संपत्तियां उसका 'स्त्रीधन' होती हैं. यह उसकी पूर्ण संपत्ति है और वह अपनी इच्छानुसार इसका जो चाहे कर सकती है. इस पर न ही उसके पति या किसी अन्य का कोई हक नहीं होता है. 


Kejriwal का iPhone बन गया ED की परेशानी, नहीं मिल रहा कोई हल

ED ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि केजरीवाल की गिरफ्तारी में कुछ भी गलत नहीं है. केजरीवाल जांच में सहयोग नहीं कर रहे हैं.

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Friday, 26 April, 2024
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दिल्ली शराब घोटाले में फंसे अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) के जल्द तिहाड़ जेल से बाहर आने की कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही है. प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने उन्हें मुख्य साजिशकर्ता करार दिया है. ED ने सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे में केजरीवाल पर कई आरोप लगाए हैं. इसमें एक आरोप यह भी है कि वह जांच में सहयोग नहीं कर रहे हैं. बार-बार मांगने पर भी उन्होंने अपने फोन का पासवर्ड नहीं बताया है. ED ने यह भी कहा है कि शराब घोटाले से जुड़े आरोपियों ने 170 मोबाइल फोन या तो बदले या उन्हें नष्ट कर दिया.

क्या चाहती है ED? 
आम आदमी पार्टी (AAP) प्रमुख और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का iPhone इस्तेमाल करते हैं. ED केजरीवाल का आईफोन खंगालना चाहती है, लेकिन ये फोन उसके लिए के पहेली बन गया है. दरअसल, दिल्ली के CM केजरीवाल फोन का पासवर्ड बताने को तैयार नहीं है. आईफोन अपनी हाई सिक्योरिटी के लिए पहचाना जाता है. ऐसे में ED के लिए बिना पासवर्ड फोन का डेटा एक्सेस करना संभव नहीं. बता दें कि केजरीवाल ने ED की गिरफ्तारी को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. इसके जवाब में ED ने कल एक हलफनामा दाखिल किया है. 

हाई सिक्योरिटी वाला Phone
बताया जा रहा है कि अरेस्ट के बाद ही अरविंद केजरीवाल ने अपना iPhone बंद कर दिया था और उसका पासवर्ड बताने को तैयार नहीं हैं. ED को मामले की जांच के सिलसिले में केजरीवाल का फोन खंगालना है, लेकिन पासवर्ड न मिलने से उसके सामने नई परेशानी खड़ी हो गई है. Apple अपने आईफोन यूजर्स को हाई सिक्योरिटी प्रदान करती है. इस वजह से Android स्मार्टफोन की तुलना में iPhone में मौजूद डेटा ज्यादा सुरक्षित रहता है. बिना पासवर्ड के iPhone का डेटा एक्सेस नहीं किया जा सकता.

यहां से भी नहीं मिली मदद
ED ने इस मामले में आईफोन निर्माता Apple से मदद मांगी थी, लेकिन उसने भी हाथ खड़े कर दिए हैं. मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया है कि ED ने गिरफ़्तारी के बाद अरविंद केजरीवाल का फोन अनलॉक करके के लिए Apple से संपर्क किया था, मगर कोई फायदा नहीं हुआ. कंपनी ने स्पष्ट कर दिया है कि डेटा हासिल करने के लिए पासवर्ड जरूरी है. प्रवर्तन निदेशालय को दिल्ली CM के चार फोन मिले थे, जिन्हें जब्त कर लिया गया है. केजरीवाल लगातार यह कह रहे हैं कि उनका इस मामले से कोई लेनादेना नहीं है, लेकिन ED का दावा है कि केजरीवाल को घोटाले की पूरी खबर थी. उन्होंने इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.


Ramdev की माफी को अब आसानी से पढ़ सकेगी आम जनता, लेकिन क्या अदालत होगी खुश?  

पतंजलि की तरफ से अखबारों में पहले की तुलना में बड़े साइज में माफीनामा प्रकाशित करवाया गया है.

बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो by
Published - Wednesday, 24 April, 2024
Last Modified:
Wednesday, 24 April, 2024
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पतंजलि आयुर्वेद (Patanjali Ayurveda) के भ्रामक विज्ञापन को लेकर सुप्रीम कोर्ट की फटकार का सामना कर बाबा रामदेव (Baba Ramdev) ने फिर से माफीनामा प्रकाशित कराया है. खास बात यह है कि आज यानी 24 अप्रैल को देश के कई अखबारों में प्रकाशित सार्वजनिक माफीनामे का आकार पहले की तुलना में बड़ा है. माफीनामे के साइज को लेकर मंगलवार की सुनवाई ने अदालत ने रामदेव और आचार्य बालकृष्ण (Balkrishna) को जमकर लताड़ लगाई थी. कोर्ट ने पूछा था कि क्या अखबारों में छपे माफीनामे का साइज पतंजलि के विज्ञापनों जितना ही बड़ा था? इसी को ध्यान में रखते हुए रामदेव और बालकृष्ण ने नया सार्वजनिक माफीनाम जारी किया है. 

क्या लिखा है माफीनामे में?
पतंजलि की नए माफीनामे में कहा गया है - भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन प्रकरण के संदर्भ में न्यायालय के निर्देशों/आदेशों का पालन न करने के लिए के हम व्यक्तिगत रूप से, साथ ही कंपनी की ओर से बिना शर्त माफी मांगते हैं. हम विगत 22 नवंबर 2023 को बैठक/संवाददाता सम्मेलन करने के लिए भी क्षमाप्रार्थी हैं. हम अपने विज्ञापनों के प्रकाशन में हुई गलती के लिए ईमानदारी से क्षमा चाहते हैं और प्रतिबद्धता व्यक्त करते हैं कि ऐसी त्रुटियों को दोहराया नहीं जाएगा. हम पूरी सावधानी और निष्ठा के साथ माननीय न्यायालय के निर्देशों का पालन करने के लिए प्रतिबद्ध हैं.  

30 अप्रैल को होगी सुनवाई
इस मामले में अगली सुनवाई 30 अप्रैल को होगी. अदालत ने बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण को फिर से सुनवाई में उपस्थित होने को कहा है. अब यह देखने वाली बात होगी कि सुप्रीम कोर्ट इस बार दोनों की माफी स्वीकार करता है या नहीं. 23 अप्रैल को हुई सुनवाई के दौरान अदालत ने पतंजलि और रामदेव के माफीनामे स्वीकार करने से इनकार कर दिया था. बेंच ने यह पूछा था कि पतंजलि ने अखबारों में जो माफीनामा छपवाया है, क्या उसका साइज उसके विज्ञापनों के बराबर था. अदालत ने केंद्र सरकार को लेकर कहा था कि सरकार को इस पर जागना चाहिए और कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए.

आखिर क्या है पूरा मामला?
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने पतंजलि के खिलाफ याचिका दायर की है. IMA का आरोप है कि पतंजलि ने COVID वैक्सीनेशन को लेकर एक कैंपेन चलाया था और आधुनिक चिकित्सा प्रणालियों पर सवाल उठाया था. कंपनी द्वारा आधुनिक चिकित्सा प्रणालियों के खिलाफ भ्रामक दावे और विज्ञापन प्राकशित किए गए. इसके बाद अदालत ने पतंजलि को हिदायत देते हुए कहा था कि वो विज्ञापन प्रकाशित न करवाए, लेकिन इसके बावजूद कंपनी की तरफ से विज्ञापन प्रकाशित करवाए गए. IMA का कहना था कि बाबा रामदेव ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी प्रेस कांफ्रेंस करके डॉक्टरों पर दुष्प्रचार का आरोप लगाया था. इसके अलावा, रोक के बावजूद विज्ञापन प्रकाशित करवाए गए, जो सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन है. 

पतंजलि ने कौनसा कानून तोड़ा?
आईएमए का कहना है कि पतंजलि के दावे ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज एक्ट 1954 और कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट 2019 जैसे कानूनों का सीधा उल्लंघन है. बता दें कि पतंजलि आयुर्वेद ने दावा किया था कि उसके उत्पाद कोरोनिल और स्वसारी से कोरोना का इलाज संभव है. इस दावे के बाद कंपनी को आयुष मंत्रालय ने फटकार लगाई थी और इसके प्रमोशन को तुरंत रोकने को कहा था. इस पूरे मामले में रामदेव एक तस्वीर के चलते फंस गए. दरअसल, पतंजलि के विज्ञापनों में बाबा रामदेव की तस्वीर भी लगी थी. लिहाजा अदालत ने उन्हें भी पार्टी बनाया और पूछा कि उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही क्यों न की जाए?


HC का महत्वपूर्ण फैसला, डिफॉल्टर्स के खिलाफ लुक आउट सर्कुलर जारी नहीं कर सकते बैंक

लुक आउट सर्कुलर जिस व्यक्ति के खिलाफ जारी किया जाता है, उसे देश छोड़ने से रोका जा सकता है.

Last Modified:
Tuesday, 23 April, 2024
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बॉम्बे हाई कोर्ट Bombay High Court) ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSU Banks) को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा है कि पीएसयू बैंक किसी भी डिफ़ॉल्टर के खिलाफ लुक आउट सर्कुलर (LoC) जारी नहीं कर सकते. कानून उन्हें इसकी इजाजत नहीं देता है. एक मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस जीएस पटेल और जस्टिस माधव जामदार की बेंच ने केंद्र सरकार द्वारा जारी एक कार्यालय ज्ञापन (OM) के उस खंड को असंवैधानिक करार दिया, जिसमें सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के अध्यक्षों को बकायदारों के खिलाफ LoC जारी करने का अधिकार दिया गया था.

ये अधिकार मनमाना है
हाई कोर्ट ने कहा कि सार्वजनिक बैंकों के पास भारतीय नागरिकों या विदेशियों के खिलाफ लुक आउट सर्कुलर जारी करने की शक्ति नहीं है. बेंच ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा कर्जदारों/बकाएदारों को विदेश यात्रा से रोकने के लिए जारी किए गए लुक आउट सर्कुलर्स को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर यह फैसला सुनाया है. सुनवाई के दौरान, खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि केंद्र सरकार के कार्यालय ज्ञापन संविधान के दायरे से बाहर नहीं हैं, लेकिन PSU बैंकों के प्रबंधकों को एलओसी जारी करने की शक्ति देने का अधिकार मनमाना है.

सभी सर्कुलर किए गए रद्द 
अदालत ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के अनुरोध पर जारी किए गए सभी लुक आउट सर्कुलर रद्द कर दिए हैं. साथ ही खंडपीठ ने यह भी कहा कि इस बेंच का आदेश ट्रिब्यूनल या आपराधिक अदालत द्वारा जारी किए गए ऐसे किसी भी आदेश को प्रभावित नहीं करेगा, जो संबंधित व्यक्तियों को विदेश यात्रा से रोकता है. बता दें कि ऐसा लुक आउट सर्कुलर जिस व्यक्ति के खिलाफ जारी किया जाता है, उसे एयरपोर्ट या बंदरगाह पर आव्रजन अधिकारियों द्वारा रोका जा सकता है. दूसरे शब्दों में कहें तो उसे भारत छोड़ने की इजाजत नहीं होगी. 

2018 में हुआ था संशोधन
केंद्र के कार्यालय ज्ञापन ने 2018 में किए गए एक संशोधन में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को भारत के आर्थिक हित में एलओसी जारी करने का अधिकार दिया. इसके तहत ऐसे किसी भी शख्स को विदेश यात्रा करने से रोकने का प्रावधान है, जिसके भारत छोड़ने से देश के आर्थिक हितों पर बुरा असर पड़ सकता है. याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि देश के आर्थिक हित शब्द की तुलना किसी भी बैंक के वित्तीय हित से नहीं की जा सकती. 


सुप्रीम कोर्ट को फिर संतुष्ट नहीं कर पाई बाबा रामदेव की माफी, सरकार की भी लगी क्लास

बाबा रामदेव और पतंजलि आयुर्वेद के प्रबंध निदेशक आचार्य बालकृष्ण को कोर्ट से राहत नहीं मिली है.

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Tuesday, 23 April, 2024
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पतंजलि के भ्रामक विज्ञापन के मामले में बाबा रामदेव की मुश्किलें खत्म होने का नाम नहीं ले रही हैं. सुप्रीम कोर्ट में आज यानी मंगलवार को फिर इस मुद्दे को लेकर सुनवाई हुई. पहले की तरह इस बार भी अदालत ने रामदेव और पतंजलि आयुर्वेद के प्रबंध निदेशक आचार्य बालकृष्ण को जमकर फटकार लगाई. जस्टिस हिमा कोहली और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की बेंच ने रामदेव और आचार्य बालकृष्ण पर कई सवाल दागे, लेकिन दोनों एक भी संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाए. इस मामले में अब अगली सुनवाई 30 अप्रैल को होगी और रामदेव और आचार्य बालकृष्ण को उपस्थित रहना होगा.  

ऐसी माफी काफी नहीं
सुनवाई के दौरान बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण ने अदालत को बताया कि पतंजलि ने अखबार में माफीनामा प्रकाशित कर माफी मांगी है. सोमवार को यह माफीनामा प्रकाशित किया गया था. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि आपने किस साइज में माफीनामा प्रकाशित कराया है, क्या इसका साइज पतंजलि के विज्ञापन जितना ही बड़ा है? रामदेव और आचार्य बालकृष्ण इस पर कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाए. बता दें कि इससे पहले की सुनवाई में भी अदालत ने रामदेव और बालकृष्ण को कड़ी फटकार लगाई थी. कोर्ट पहले भी दोनों की माफी को अस्वीकार कर चुका है और एक बार फिर अदालत ने स्पष्ट कर दिया है कि ऐसी माफी से काम नहीं चलेगा.   

इतना समय क्यों लगा? 
जस्टिस हिमा कोहली और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की बेंच ने रामदेव से पूछा कि आपने अब तक क्या किया? इस पर उनके वकील मुकुल रोहतगी ने बताया कि 67 अखबारों में माफीनामे का विज्ञापन दिया गया है, जिसमें दस लाख रुपए का खर्चा आया है. बेंच ने इस पर नाराजगी जाहिर करते हुए पूछा कि आपने अपना विज्ञापन कहां प्रकाशित कराया और इसमें इतना वक्त क्यों लगा? क्या माफीनामा उतने ही साइज का था, जिस साइज का विज्ञापन आप हमेशा प्रकाशित करवाते हैं? इसके बाद कोर्ट ने रामदेव और आचार्य बालकृष्ण से स्पष्ट शब्दों में कहा कि अखबार में छपी आपकी माफी अयोग्य है. साथ ही अदालत ने अतिरिक्त विज्ञापन जारी करने का आदेश दिया है.

जानना चाहते हैं वो कौन है
मामले की सुनवाई के दौरान, जस्टिस हिमा कोहली ने कहा कि हमें एक आवेदन मिला है, जिसमें मांग है कि पतंजलि के खिलाफ ऐसी याचिका दायर करने के लिए इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) के खिलाफ 1000 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया जाए. हमें ऐसा लगता है, ये आपकी ओर से एक प्रॉक्सी याचिका है. इस पर रामदेव के वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि हमारा इससे कोई लेना-देना नहीं है. अदालत ने आगे कहा कि हमें इस याचिका के आवेदक की बात सुनने दें, हम जानना चाहते हैं कि वो कौन है.   

सरकार से भी पूछे सवाल
अदालत ने सूचना प्रसारण मंत्रालय का जिक्र करते हुए कहा - पतंजलि मामले में टीवी चैनलों पर दिखाया जा रहा है कि अदालत क्या कह रही है और ठीक उसी समय एक हिस्से में पतंजलि का विज्ञापन भी प्रदर्शित किया जा रहा है. यह मामला केवल पतंजलि तक ही सीमित नहीं है, बल्कि दूसरे कंपनियों के भ्रामक विज्ञापनों को लेकर भी है. क्या आप प्रकाशित होने वाली सामग्री से ज्यादा राजस्व को लेकर चिंतित नहीं हैं? कोर्ट ने सरकार से पूछा कि आयुष मंत्रालय ने नियम 170 को वापस लेने का निर्णय क्यों किया?. क्या आपको प्रकाशित होने वाली सामग्री के बजाए राजस्व की अधिक चिंता है?. क्या यह एक मनमाना अभ्यास नहीं है?. अदालत ने सरकार से यह भी पूछा कि उसने भ्रामक विज्ञापन के मामले में क्या कदम उठाया है? गौरतलब है कि नियम 170 राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण की मंजूरी के बिना आयुर्वेदिक, सिद्ध और यूनानी दवाओं के विज्ञापन पर रोक से जुड़ा हुआ है.


पश्चिम बंगाल में एक झटके में गई 24 हजार लोगों की सरकारी नौकरी, क्या है पूरा मामला

लोकसभा चुनाव 2024 के दौरान पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी की सरकार को कलकत्ता हाई कोर्ट से बड़ा झटका मिला है.

Last Modified:
Monday, 22 April, 2024
Mamta Banrjee

लोकसभा चुनाव के बीच पश्चिम बंगाल की ममता सरकार को शिक्षक भर्ती घोटाला मामले बड़ा झटका लगा है. कलकत्ता हाई कोर्ट ने पूरे पैनल को अमान्य करने का आदेश दिया है. हाईकोर्ट ने पश्चिम बंगाल स्कूल सेवा आयोग पैनल द्वारा की गई स्कूल शिक्षक भर्ती को रद्द कर दिया है जिसके बाद करीब 24,000 शिक्षकों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा. इस भर्ती में 5 से 15 लाख रुपये की घूस लेने तक का आरोप हैं. 

हाईकोर्ट ने रद्द किया जॉब पैनल

कलकत्ता हाईकोर्ट ने 2016 का पूरा जॉब पैनल रद्द कर दिया है. कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कक्षा 9वीं से 12वीं और समूह सी और डी तक की उन सभी नियुक्तियों को रद्द कर दिया गया जिनमें अनियमितताएं पाई गईं. इसके साथ ही करीब 24 हजार नौकरियों को रद्द कर दिया है. इस भर्ती में पैनल पर करीब 5 से 15 लाख रुपये की घूस लेने आरोप हैं. कलकत्ता हाईकोर्ट के जस्टिस देवांशु बसाक की बेंच ने यह फैसला सुनाया है. इसके अलावा कोर्ट ने शिक्षकों को जो वेतन दिया गया था उसे भी लौटाने का आदेश दिया है. हाईकोर्ट ने स्कूल सेवा आयोग को दोबारा से नई नियुक्ति शुरू करने का निर्देश भी दिया है.

हाईकोर्ट ने पूरे मामले पर क्या कहा? 

कलकत्ता हाईकोर्ट ने 2016 एसएससी भर्ती के पूरे पैनल को अमान्य घोषित कर दिया. 9वीं से 12वीं और ग्रुप C और D तक की सभी नियुक्तियां जहां अनियमितताएं पाई गईं, उन्हें भी शून्य घोषित कर दिया गया है. कोर्ट ने प्रशासन को अगले 15 दिनों में नई नियुक्तियों पर कार्रवाई करने का निर्देश दिया है. इस मामले में कैंसर से पीड़ित सोमा दास की नौकरी बस सुरक्षित रहेगी. हाई कोर्ट ने सोमा दास की नौकरी सुरक्षित रखने का आदेश दिया है.

क्या है बंगाल का SSC घोटाला?

पश्चिम बंगाल में साल 2016 में राज्य के माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के तहत 13 हजार शिक्षण और ग़ैर-शिक्षण कर्मचारियों की भर्ती के लिए स्कूल सेवा आयोग (SSC) की ओर से परीक्षा आयोजित हुई थी. 27 नवंबर 2017 को नतीजे आने के बाद मेरिट लिस्ट बनाई गई. इसमें सिलीगुड़ी की बबीता सरकार 77 अंक के साथ टॉप 20 में शामिल थी. बाद में आयोग ने इस मेरिट लिस्ट को रद्द कर दूसरी सूची बनाई. इसमें बबीता का नाम वेटिंग में डाल दिया गया. कम अंक पाने वाली एक टीएमसी के मंत्री की बेटी अंकिता का नाम लिस्ट में पहले नंबर पर आ गया और उसे नौकरी भी मिल गई. इसके बाद घोटाले का धीरे-धीरे खुलासा होने लगा. बबीता ने इस मेरिट लिस्ट को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी.

करोड़ों की प्रॉपर्टी अटैच कर चुकी है ED

पश्चिमी बंगाल के शिक्षक भर्ती घोटाले में ED ने बड़ी कार्रवाई करते हुए 230.6 करोड़ रुपये की प्रॉपर्टी अटैच की है. प्रवर्तन निदेशालय ने 230.6 करोड़ रुपये कीमत की जमीन और फ्लैट को जब्त किया है. जब्त की गई प्रॉपर्टी आरोपी प्रसन्ना कुमार रॉय, शांति प्रसाद सिन्हा और कुछ अन्य कंपनियों के नाम पर थी. प्रसन्ना रॉय के नाम पर 96 कट्ठा पथरघाटा, 117 कट्ठा सुल्तानपुर, 282 कट्ठा महेशतला और 136 कट्ठा न्यू टाउन में मौजूद है, जिन्हें ED ने जब्त किया है. वहीं शांति प्रसाद सिन्हा की कपशती इलाके में स्थित जमीन और पूरब जादाबपुर में स्थित फ्लैट जब्त किया गया है. ईडी इस घोटाले में पहले ही प्रसन्ना रॉय और शांति प्रसाद को गिरफ्तार कर चुकी है.
 


बड़े चालबाज हैं कुंद्रा, 80 करोड़ का फ्लैट Shilpa को इसलिए 38 करोड़ में बेचा!

ED का कहना है कि राज कुंद्रा के पास अभी भी 285 बिटकॉइन हैं, जिनकी कीमत वर्तमान में 150 करोड़ रुपए से अधिक है.

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Saturday, 20 April, 2024
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बिटकॉइन पॉन्जी स्कीम घोटाले (Bitcoin Ponzi Scam) से जुड़े एक मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने हाल ही में राज कुंद्रा और उनकी एक्ट्रेस वाइफ शिल्पा शेट्टी की 97.79 करोड़ की प्रॉपर्टी अटैच की थी. इसमें शिल्पा का जुहू वाला फ्लैट, राज के नाम पर पुणे में रजिस्टर्ड बंगला और इक्विटी शेयर शामिल हैं. अब इस पूरे मामले में राज कुंद्रा की एक नई चालबाजी भी सामने आई है. हालांकि, इसके पुख्ता सबूत नहीं है, लेकिन ED को पूरा शक है कि राज ने ऐसा किया होगा. 

शिल्पा को बुलाएगी ED
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, बिटकॉइन पॉन्जी स्कीम घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग के मामले (Money Laundering Case) में ED की जांच शुरू होते ही बिजनेसमैन राज कुंद्रा ने 2022 में अपना जुहू वाला फ्लैट पत्नी शिल्पा शेट्टी को बेच दिया था. फ्लैट की वैल्यू करीब 80 करोड़ रुपए थी, लेकिन राज ने शिल्पा इसे केवल 38 करोड़ रुपए में बेच दिया. ED को शक है कि पति-पत्नी ने सोची-समझी रणनीति के तहत ऐसा किया होगा, ताकि फ्लैट को कुर्की की कार्रवाई से बचाया जा सके. प्रवर्तन निदेशालय को यह भी लगता है कि राज अभी भी इस फ्लैट के असली मालिक हैं. ईडी शिल्पा शेट्टी को उनका बयान दर्ज करने के लिए जल्द बुला सकती है. 

इनके खिलाफ हुई FIR
बिटकॉइन पॉन्जी स्कीम घोटाला तब सामने आया जब महाराष्ट्र और दिल्ली पुलिस द्वारा 2017 में 'गेन बिटकॉइन' नामक योजना में पैसा लगाने वाले निवेशकों की शिकायत पर FIR दर्ज की गईं. बिटकॉइन पॉन्जी स्कीम के प्रमोटर अजय और महेंद्र भारद्वाज ने निवेशकों को बिटकॉइन के रूप में प्रति माह 10 प्रतिशत रिटर्न का वादा किया था, लेकिन ये वादा कभी पूरा नहीं हुआ. इस मामले में वेरिएबल टेक पीटीई लिमिटेड नामक कंपनी के खिलाफ FIR दर्ज की गई थीं. इस कंपनी के प्रमोटर्स अमित भारद्वाज, अजय भारद्वाज, विवेक भारद्वाज, सिम्पी भारद्वाज और महेंद्र भारद्वाज का भी नाम एफआईआर में शामिल था.

ऑनलाइन वॉलेट में छिपाई बिटकॉइन
FIR के मुताबिक, आरोपियों ने 2017 में अपने निवेशकों से 6,600 करोड़ रुपए जुटाए थे. कथित तौर पर निवेशकों को शुरुआत में नए निवेश से भुगतान किया गया था. लेकिन, पेमेंट तब रुक गया जब भारद्वाज समूह नए निवेशकों को स्कीम में पैसा लगाने के लिए आकर्षित नहीं कर पाया. इसके बाद आरोपियों ने बचे हुए पैसे से बिटकॉइन खरीदे और उन्हें ऑनलाइन वॉलेट में छिपा दिया. दरअसल, इन बिटकॉइन का इस्तेमाल बिटकॉइन माइनिंग में होना था, लेकिन प्रमोटरों ने निवेशकों को धोखा दिया, उन्होंने गलत तरीके से अर्जित बिटकॉइन को ऑनलाइन वॉलेट में छिपा दिया.

अभी और होगी कार्रवाई 
ED का कहना है कि राज कुंद्रा को यूक्रेन में बिटकॉइन माइनिंग फर्म स्थापित करने के लिए बिटकॉइन पॉन्जी स्कीम घोटाले के मास्टरमाइंड और प्रमोटर अमित भारद्वाज से 285 बिटकॉइन मिले थे. ईडी के अनुसार, कुंद्रा के पास अभी भी 285 बिटकॉइन हैं, जिनकी कीमत वर्तमान में 150 करोड़ रुपए से अधिक है. हालांकि, राज कुंद्रा इस मामले में मुख्य आरोपी नहीं हैं. प्रवर्तन निदेशालय का कहना है कि कुंद्रा बिटकॉइन के बारे में कोई जानकारी नहीं दे रहे हैं. इसलिए उसे बिजनेसमैन की प्रॉपर्टी को अटैच करना पड़ा है. ED कुंद्रा की अन्य संपत्तियों के बारे में भी जानकारी हासिल कर रही है, ताकि बिटकॉइन के मूल्य की प्रॉपर्टी अटैच की जा सके. 

प्रापर्टी अटैचमेंट क्या होता है?
प्रवर्तन निदेशालय (ED) किसी संपत्ति को प्रिवेंशन ऑफ मनी लांड्रिंग एक्ट (PMLA) के तहत अटैच करता है. प्रापर्टी अटैच करने के बाद ED को पर्याप्त सबूतों के साथ मामले को अदालत में पेश करना पड़ता है. कोर्ट का फैसला होने तक प्रापर्टी ईडी के पास अटैच ही रहती है. हालांकि, ED की इस कार्रवाई को कोर्ट में चुनौती भी दी जा सकती है. यदि अदालत को लगता है कि ई़डी अपनी कार्रवाई के पक्ष में उचित दस्तावेज नहीं दे पा रही है, तो अटैच की गई प्रापर्टी उसके मालिक को वापस लौटा दी जाती है.  


Patanjali Case: नाराज कोर्ट से बोले रामदेव - मैं सार्वजनिक रूप से माफी मांगने को तैयार

पतंजलि के भ्रामक विज्ञापन मामले में बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण फिर से सुप्रीम कोर्ट में हाजिर हुए.

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Tuesday, 16 April, 2024
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भ्रामक विज्ञापन मामले में सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी का सामना कर रहे बाबा रामदेव (Baba Ramdev) और पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के प्रबंध निदेशक आचार्य बालकृष्ण ने सार्वजनिक माफी मांगने की बात कही है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, मामले की सुनवाई के लिए आज सुप्रीम कोर्ट पहुंचे रामदेव और आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि वे पतंजलि आयुर्वेद के भ्रामक विज्ञापन को लेकर सार्वजनिक रूप से माफी मांगने को भी तैयार हैं.

मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं था
जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अमानतुल्लाह की बेंच पतंजलि के भ्रामक विज्ञापन मामले में आज यानी मंगलवार को फिर से सुनवाई की. इस दौरान, बाबा रामदेव के वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि हम कोर्ट से एक बार फिर माफी मांगते हैं. हमें पछतावा है, हम जनता में भी माफी मांगने को तैयार हैं. सुनवाई के दौरान अदालत ने रामदेव और आचार्य बालकृष्ण से बातचीत की. रामदेव ने कोर्ट से कहा कि मैं आगे से जागरुक रहूंगा. मेरा कोर्ट के आदेश का अनादर करने का कोई इरादा नहीं था.  

उत्साह में ऐसा कर दिया
अदालत ने रामदेव और आचार्य बालकृष्ण से कहा कि हमारे आदेश के बावजूद आपने विज्ञापन प्रकाशित किया. इस पर आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि ये भूल अज्ञानता में हुई है, हमारे पास सबूत हैं. वहीं, स्वामी रामदेव ने कहा कि हमने उत्साह में आकर ऐसा कर दिया. हम आगे से सजग रहेंगे. हम एलोपैथी के बारे में कुछ नहीं बोलेंगे. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने आगे कहा - क्या आपको पता है कि आप लाइलाज बीमारियों का विज्ञापन नहीं कर सकते हैं. कानून सबके लिए समान है. इस पर स्वामी रामदेव ने अपना बचाव करते हुए कहा कि हमने बहुत टेस्ट किए हैं, जिस पर जस्टिस कोहली ने उन्हें टोकते हुए कहा कि आपकी तरफ से ये गैर जिम्मेदार रवैया है.

दिल से माफी नहीं मांग रहे
बेंच ने रामदेव से कहा कि ऐसा नहीं लग रहा है कि आपका कोई हृदय परिवर्तन हुआ हो. अभी भी आप अपनी बात पर अड़े हैं. हम इस मामले को 23 अप्रैल को देखेंगे. जस्टिस कोहली ने कहा कि आपका पिछला इतिहास खराब है, लिहाजा हम इस पर विचार करेंगे कि आपकी माफी स्वीकार की जाए या नहीं. वहीं जस्टिस अमानुल्ला ने कहा कि आप दिल से माफी नहीं मांग रहे, ये ठीक बात नहीं है. बता दें कि बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण पहले भी दो बार अदालत से माफी मांग चुके हैं, लेकिन कोर्ट ने उनका माफीनामा खारिज कर दिया था. 

आखिर क्या है पूरा मामला?
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने पतंजलि के खिलाफ याचिका दायर की है. IMA का आरोप है कि पतंजलि ने COVID वैक्सीनेशन को लेकर एक कैंपेन चलाया था और आधुनिक चिकित्सा प्रणालियों पर सवाल उठाया था. कंपनी द्वारा आधुनिक चिकित्सा प्रणालियों के खिलाफ भ्रामक दावे और विज्ञापन प्राकशित किए गए. इसके बाद अदालत ने पतंजलि को हिदायत देते हुए कहा था कि वो विज्ञापन प्रकाशित न करवाए, लेकिन इसके बावजूद कंपनी की तरफ से विज्ञापन प्रकाशित करवाए गए. IMA का कहना था कि बाबा रामदेव ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी प्रेस कांफ्रेंस करके डॉक्टरों पर दुष्प्रचार का आरोप लगाया था. इसके अलावा, रोक के बावजूद विज्ञापन प्रकाशित करवाए गए, जो सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन है. 

पतंजलि ने कौनसा कानून तोड़ा?
आईएमए का कहना है कि पतंजलि के दावे ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज एक्ट 1954 और कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट 2019 जैसे कानूनों का सीधा उल्लंघन है. बता दें कि पतंजलि आयुर्वेद ने दावा किया था कि उसके उत्पाद कोरोनिल और स्वसारी से कोरोना का इलाज संभव है. इस दावे के बाद कंपनी को आयुष मंत्रालय ने फटकार लगाई थी और इसके प्रमोशन को तुरंत रोकने को कहा था. इस पूरे मामले में रामदेव एक तस्वीर के चलते फंस गए. दरअसल, पतंजलि के विज्ञापनों में बाबा रामदेव की तस्वीर भी लगी थी. लिहाजा अदालत ने उन्हें भी पार्टी बनाया और पूछा कि उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही क्यों न की जाए?


केजरीवाल को राहत के लिए करना होगा और इंतजार, SC का जल्द सुनवाई से इंकार 

दिल्ली हाई कोर्ट से मिले झटके के बाद अरविंद केजरीवाल ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है.

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Monday, 15 April, 2024
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शराब नीति घोटाले में तिहाड़ जेल में बंद दिल्ली से मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) को सुप्रीम कोर्ट से त्वरित राहत नहीं मिली है. हालांकि, अदालत ने इस मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) को नोटिस जारी कर 24 अप्रैल तक जवाब देने को कहा है. इस मामले में अगली सुनवाई अब 29 अप्रैल को होगी. अरविंद केजरीवाल की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने दावा किया कि केजरीवाल को लोकसभा चुनाव में प्रचार से रोकने के लिए गिरफ्तार किया गया है. उन्होंने मामले को सुनवाई के लिए 19 अप्रैल को ही सूचीबद्ध करने की मांग की थी, लेकिन अदालत ने जल्द सुनवाई से इंकार करते हुए 29 अप्रैल का दिन तय कर दिया.

'अपनी दलील बचाकर रखें'
अरविंद केजरीवाल ने शराब नीति घोटाले में अपनी गिरफ्तारी को चुनौती देते हुए पहले दिल्ली हाई कोर्ट का रुख किया था, लेकिन वहां से उन्हें कोई राहत नहीं मिली. इसके बाद केजरीवाल ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ केजरीवाल की याचिका पर सुनवाई कर रही है. केजरीवाल के वकील और वरिष्ठ कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने सुनवाई के दौरान कहा कि केजरीवाल को लोकसभा चुनाव में अपने प्रत्याशियों के लिए प्रचार करना है. साथ ही पार्टी के लिए प्रत्याशी चयन में भी उनकी सलाह चाहिए. इस पर कोर्ट ने कहा कि वह अपनी दलील 29 अप्रैल को होने वाली सुनवाई के लिए बचाकर रखें. 

High Court ने दिया था झटका
अभिषेक मनु सिंघवी लोकसभा चुनाव को देखते हुए इस मामले की सुनवाई में तेजी लाने की अपील भी की, लेकिन अदालत ने इससे इंकार करते हुए स्पष्ट कर दिया कि 29 अप्रैल से पहले का समय नहीं दिया जा सकता. इससे पहले, दिल्ली हाई कोर्ट ने केजरीवाल की उस याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें उन्होंने ED की गिरफ्तारी पर सवाल उठाया था. याचिका पर सुनवाई के दौरान जस्टिस स्वर्णकांता शर्मा ने कहा था कि इस कोर्ट के समक्ष ED ने जो दस्तावेज पेश किए हैं, उसमें कानून का पालन किया गया है. ईडी ने गिरफ्तारी में PMLA एक्ट और सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पालन किया है. साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा था कि ED के तथ्यों से लगता है कि कथित घोटाले में सीएम की संलिप्तता है.

के. कविता को भी लगा झटका
इधर, इसी मामले में बीआरएस लीडर के कविता को भी झटका लगा है. सोमवार को दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट ने उन्हें 23 अप्रैल तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया है. अब सीबीआई उनसे पूछताछ कर रही है. इससे पहले ED ने उन्हें गिरफ्तार किया था. ईडी का दावा है कि के. कविता शराब कारोबारियों की 'साउथ ग्रुप' लॉबी से कनेक्टेड हैं. इस ग्रुप ने दिल्ली सरकार की 2021-22 की शराब नीति (एक्साइज पॉलिसी) में बड़ी भूमिका निभाई थी. बताया जा रहा है कि शराब घोटाले के आरोपी विजय नायर को कथित रूप से 100 करोड़ रुपए की रिश्वत साउथ ग्रुप से ही मिली थी, जिसे संबंधित लोगों उपलब्ध कराया गया था. ईडी हैदराबाद के कारोबारी अरुण रामचंद्रन पिल्लई और कविता का आमना-सामना भी करवा चुकी है. पिल्लई को कविता का करीबी माना जाता है. उसने पूछताछ में बताया था कि कविता और आम आदमी पार्टी के बीच एक समझौता हुआ था, जिसके तहत 100 करोड़ रुपए का लेन-देन हुआ और कविता की कंपनी 'इंडोस्पिरिट्स' को दिल्ली के शराब कारोबार में एंट्री मिली. पिछले साल फरवरी में CBI ने बुचीबाबू गोरंतला नामक व्यक्ति को इस मामले में गिरफ्तार किया था. ED ने भी बुचीबाबू से का बयान दर्ज किया था. माना जाता है कि बुचीबाबू कविता का अकाउंट संभाला करता था.

आखिर क्या है South Group?
ED के मुताबिक, 'साउथ ग्रुप' दक्षिण के राजनेताओं, कारोबारियों और नौकरशाहों का समूह है. इसमें सरथ रेड्डी, एम. श्रीनिवासुलु रेड्डी, उनके बेटे राघव मगुंटा और कविता शामिल हैं. जबकि इस ग्रुप का प्रतिनिधित्व अरुण पिल्लई, अभिषेक बोइनपल्ली और बुचीबाबू ने किया था, तीनों को ही शराब घोटाले में गिरफ्तार किया जा चुका है. प्रवर्तन निदेशालय ने दिल्ली के पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया और आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह को भी इस मामले में गिरफ्तार किया था. संजय सिंह को अदालत से जमानत मिल चुकी है.

क्या है शराब घोटाला?
दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने 17 नवंबर 2021 को एक्साइज पॉलिसी 2021-22 लागू की थी. नई नीति के तहत, सरकार शराब कारोबार से बाहर आ गई और पूरी दुकानें निजी हाथों में सौंप दी गईं. सरकार का दावा था कि नई शराब नीति से माफिया राज पूरी तरह खत्म हो जाएगा और उसके रिवेन्यु में बढ़ोतरी होगी. हालांकि, ये नीति शुरू से ही विवादों में रही. जब बवाल ज्यादा बढ़ गया तो 28 जुलाई 2022 को केजरीवाल सरकार ने इसे रद्द करने का फैसला लिया. इस कथित शराब घोटाले का खुलासा 8 जुलाई 2022 को दिल्ली के तत्कालीन मुख्य सचिव नरेश कुमार की रिपोर्ट से हुआ था. तब से अब तक ED इस मामले में कार्रवाई कर रही है.