फूड डिलीवरी कंपनी के शेयर शुक्रवार को गिरावट वाले बाजार में भी तेजी हासिल करने में कामयाब रहे थे.
आपके मुंह का स्वाद बढ़ाने वाली फूड डिलीवरी कंपनी जोमैटो का जायका बिगड़ गया है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, Zomato को 8.57 करोड़ रुपए से अधिक का GST ऑर्डर मिला है. गुजरात स्टेट टैक्स के डिप्टी कमिश्नर ने वित्त वर्ष 2018-19 के संबंध में कंपनी को यह ऑर्डर जारी किया है. जोमैटो को मिले इस GST ऑर्डर की खबर छुट्टी वाले दिन आई थी. लिहाजा इसका कंपनी के शेयरों का क्या असर होता है, आज पता चल जाएगा.
इस साल इतने चढ़े शेयर
जोमैटो ने रेगुलेटरी फाइलिंग में बताया कि GST ऑर्डर में कंपनी से 4,11,68,604 रुपए का भुगतान करने को कहा गया है. इसके साथ 4,04,42,232 रुपए का ब्याज और 41,66,860 रुपए का जुर्माना भरने को भी कहा गया है. इस तरह कुल राशि 8,57,77,696 रुपए हो गई है. यह आदेश GST रिटर्न और अकाउंट के ऑडिट के बाद आया है. कंपनी के शेयर की बात करें, तो Zomato के शेयर गिरावट वाले बाजार में भी 4.68% की बढ़त के साथ 159.90 रुपए पर बंद हुए थे. इस साल अब तक ये शेयर 28.43% का रिटर्न दे चुका है.
आदेश को देगी चुनौती
जोमैटो को GST ऑर्डर CGST एक्ट 2017 की धारा 73 और GGST एक्ट 2017 के तहत जारी हुआ है. आदेश में कहा गया कि ऑडिट में यह पाया गया है कि कंपनी ने एडिशनल इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ लिया और GST का कम भुगतान किया. फूड डिलीवरी कंपनी का कहना है कि उसने कारण बताओ नोटिस के जवाब में सभी तरह के दस्तावेज प्रदान किए थे, लेकिन लगता है कि अधिकारियों ने उन पर ध्यान दिए बिना ही ऑर्डर पास कर दिया. कंपनी इस आदेश को चुनौती देगी.
पिछले साल भी थी चर्चा
पिछले साल भी Zomato ऐसे ही एक मामले को लेकर चर्चा में रही थी. कंपनी को 400 करोड़ रुपए का टैक्स भरने को कहा गया था, लेकिन उसने इससे इनकार कर दिया था. डायरेक्टरेट जनरल ऑफ GST इंटेलिजेंस (DGGI) के डिमांड नोटिस के जवाब में Zomato ने कहा था कि वह डिलीवरी चार्ज पर कोई टैक्स देने के लिए उत्तरदायी नहीं है, क्योंकि डिलीवरी चार्ज, डिलीवरी पार्टनर्स की ओर से कलेक्ट किया जाता है. दरअसल, DGGI ने जोमैटो और स्विगी को एक डिमांड नोटिस भेजा था. इसमें Zomato को 400 करोड़ और Swiggy को 350 करोड़ रुपए के बकाया टैक्स का भुगतान करने के लिए कहा गया था. इस GST डिमांड की कैलकुलेशन दोनों कंपनियों की ओर से हर फूड ऑर्डर पर लिए गए डिलीवरी चार्ज के आधार पर की गई थी. DGGI का मानना था कि फूड डिलीवरी एक सर्विस है. इसलिए Zomato और Swiggy 18% की दर से सर्विसेज पर GST का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी हैं.
सरकार की ओर से प्याज की बर्बादी को कम करने के लिए जो कदम उठाए गए हैं उनमें गामा रे स्टोरेशन सबसे आधुनिक है. इससे प्याज की बर्बादी को 25 प्रतिशत से 10 प्रतिशत तक किया जा सकता है.
प्याज का ऐसा खाद्य पदार्थ है जो लगभग हर घर में इस्तेमाल होता है और हर सब्जी में पड़ता है. लेकिन हमारे देश में इसकी महंगाई आम आदमी के लिए साल में कई बार परेशानी का सबब बन जाती है. स्थिति ये होती है 20 रुपये किलो मिलने वाला प्याज 80 से 100 रुपये तक पहुंच जाता है. इसी महंगाई को रोकने के लिए सरकार अब प्याज के गामा किरण स्टोरेज को बढ़ाने की तैयारी कर रही है. सरकार की कोशिश है कि 5000 टन प्याज का स्टोरेज किया जाए जो नॉन सीजन में देश में मुहैया कराया जा सके.
आखिर क्या है गामा रे स्टोरेज?
सरकार की ओर से प्याज की बर्बादी को लेकर गामा रे स्टोरेज का प्रयोग मुंबई की लासलगांव मंडी में किया गया था. सरकार के लिए इस प्रोजेक्ट को भाभा एटोमैटिक सेंटर ने विकसित किया था. इस प्रोजेक्ट में होता ये है कि प्याज को गामा रे स्टोरेज में सुरक्षित रखा जाता है जिससे उसकी लाइफ बढ़ जाती और बबार्दी कम हो जाती है. उससे भी खास बात ये है कि इससे प्याज की लाइफ को 7.5 महीने तक बढ़ाया जा सकता है. मौजूदा समय में 1200 टन प्याज पर ये प्रयोग किया जा रहा है. जो काफी हद तक सफल भी रहा है.
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अब सरकार बढ़ाने जा रही है ये क्षमता
अब केन्द्र सरकार इस क्षमता को बढ़ाने की तैयारी कर रही है. अब सरकार इस केन्द्र की क्षमता को 1200 टन से 5000 टन तक ले जाने की तैयारी कर रही है. सरकार की योजना ये भी है कि वो वहां प्याज को प्रीजर्व करके जरूरत पढ़ने पर देश के अलग-अलग हिस्सों में ट्रांसपोर्ट किया जा सके. विकिरण का एक फायदा ये भी है कि उससे प्याज को अंकुरण से बचाया जा सकता है. क्योकि अंकुरण होने से प्याज की बर्बादी बढ़ जाती है.
पिछले महीने सरकार की ओर से की गई थी ये खरीद
पिछले महीने सरकार की ओर से बाजार में प्याज के भाव को स्थिर रखने के लिए 0.5 मिलियन टन प्याज की खरीद की गई थी. सरकार ने ये कदम इसलिए उठाया था क्योंकि रबी की फसल बाजार में आनी शुरू हो गई थी. पिछले साल भी एनसीसीएफ ने प्याज के बफर स्टॉक के लिए किसानों से 0.64 मीट्रिक टन प्याज खरीदा था. सरकार इस बार से बफर स्टॉक के लिए नामित एजेंसियों द्वारा बाजार दर पर प्याज की खरीद के एक सप्ताह के भीतर किसानों को भुगतान सुनिश्चित करने के लिए डॉयरेक्ट टू टांसफर व्यवस्था को लागू करने की तैयारी कर रही है.
वित्त मंत्रालय (Ministry Of Finance ) ने कहा है कि सरकार को उम्मीद है कि बारिश के बाद खाद्य पदार्थों की कीमतों में कमी आएगी, क्योंकि मौसम विभाग ने सामान्य से अधिक मानसून की भविष्यवाणी की है.
खाने पीने की चीजें बहुत महंगी हो गई है. सब्जियों की कीमतें आसमान छू रही हैं.इस बीच वित्त मंत्रालय ने लोगों के लिए एक खुशखबरी दी है. वित्त मंत्रालय ने कहा है कि ज्यादा बारिश होने के कारण जून के बाद खाद्य पदार्थों की कीमतों में कमी आएगी,यानी महंगाई घटेगी. आपको बता दें, खाद्य महंगाई मुख्य रूप से सब्जियों और दालों की ऊंची कीमतों के कारण होती है.
क्या कम होंगे सब्जियों के दाम?
एक रिपोर्ट के अनुसार जून के बाद सब्जियों की कीमतें कम हो जाएंगी. रिपोर्ट में कहा गया है कि मौसम विभाग ने 2024 में सामान्य से अधिक मानसून की भविष्यवाणी की है.जिससे फसलों का उत्पादन बढ़ेगा.
मौसम के झटके से RBI चिंतित
आरबीआई ने भी खाद्य कीमतों में बढ़ोतरी पर चिंता जताई है, इसमें कहा गया है कि रबी की रिकॉर्ड फसल अनाज की कीमतों को कम करने में मदद करेगी, लेकिन मौसम के झटके बढ़ने से खाद्य कीमतों में बढ़ोतरी का खतरा पैदा हो गया है. हालांकि, अब IMD के इस साल सामान्य से अधिक मॉनसून रहने की भविष्यवाणी के साथ, खरीफ फसल की संभावनाएं बढ़ गई हैं.
खराब मौसम के कारण सब्जियों की कीमतें बढ़ी
इस वर्ष टमाटर और प्याज की कीमतें लगातार बढ़ती रहीं. लहसुन, अदरक, बैंगन, परवल और बीन्स सहित दूसरी सब्जियों कीमतें बहुत बढ़ गईं. अनियमित मौसम की वजह से सब्जियों की कीमतें बढ़ गईं.
खाद्य महंगाई रोकने के लिए उठाए ये कदम
सरकार ने जमाखोरी को रोकने के लिए स्टॉक सीमा लगाने, आवश्यक खाद्य पदार्थों के भंडार को बढ़ाने और समय-समय पर उन्हें खुले बाजार में जारी करने जैसे उपाय लागू किए हैं. इसने जरूरी खाद्य पदार्थों के आयात को भी आसान बनाया है
30 अप्रैल से लेकर 3 मई तक 3 कंपनियों के आईपीओ बाजार में आ रहे हैं. हालांकि कंपनियां बाजार से कोई बड़ा अमाउंट नहीं जुटा रही हैं, लेकिन कंपनी के लक्ष्य बड़े हैं.
आईपीओ के जरिए पैसा बनाने वालों को इंतजार इस बात का रहता है कि आखिर इस हफ्ते किस कंपनी का आईपीओ आ रहा है. क्योंकि पिछले कुछ सालों में आईपीओ पैसा कमाने का एक ऐसा इंस्टेंट तरीका रहे हैं जिससे पांच से 6 दिनों में अच्छा पैसा कमाया जा सकता है. इस हफ्ते बाजार में 3 आईपीओ आने जा रहे हैं. इनमें जहां एक मेटल इंडस्ट्री की कंपनी लेकर आ रही है वहीं दूसरी ओर दूसरा आईपीओ हेल्थकेयर सेक्टर में अलग-अलग सर्विसेज देने वाली कंपनी का आ रहा है. जबकि तीसरी कंपनी वेयरहाउस ऑपरेशन में काम करती है. आइए जानते हैं क्या है इन आईपीओ की पूरी जानकारी
30 अप्रैल को खुल रहा है ये आईपीओ
मेटल सेक्टर की कंपनी साईं स्वामी मेटल्स एंड अलॉयज आईपीओ 30 अप्रैल को सब्सिक्रिप्शन के लिए खुल रहा है और 3 मई को बंद हो जाएगा. कंपनी इस इश्यू से 15 करोड़ रुपये जुटाने की तैयारी कर रही है. कंपनी ने एक शेयर की कीमत 60 रुपये तय की है और इसके एक लॉट में 2000 शेयर के लिए बोली लगा सकते हैं. अब शेयर अलॉटमेंट की बात करें तो खुदरा निवेशकों के लिए इस आईपीओ के 50 प्रतिशत शेयर रखे गए हैं जबकि 50 प्रतिशत शेयर अन्य निवेशकों के लिए आरक्षित रखे गए हैं.
ये काम करती है कंपनी
साईं स्वामी मेटल्स एंड अलॉयज लंबे समय से मेटल के क्षेत्र में काम कर रही है. कंपनी कई तरह के प्रोडक्ट को लेकर काम करती है जिसमें एसएस कैसरोल्स, डिनर सेट, एसएस मल्टी कढ़ाई, एसएस पानी की बोतलें, स्टेनलेस स्टील शीट, स्टेनलेस स्टील सर्कल और विभिन्न प्रकार के बर्तन इसमें शामिल हैं. कंपनी बाजार में इससे भी ज्यादा रेंज के प्रोडक्ट के साथ अपने ग्राहकों के बीच अपनी पहचान रखती है.
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ये कंपनी भी ला रही है अपना आईपीओ
हेल्थकेयर सेक्टर में कई तरह के प्रोडक्ट को सप्लाई करने वाली एमके प्रोडक्ट का आईपीओ भी आ रहा है. कंपनी का आईपीओ 30 अप्रैल को खुलेगा और 3 मई को बंद हो जाएगा. कंपनी अपने इस आईपीओ के जरिए 12.61 करोड़ रुपये जुटाने की तैयारी कर रही है. कंपनी ने अपने एक शेयर की कीमत 52 रुपये से 55 रुपये तय की है. निवेशक एक लॉट में 2000 शेयरों के लिए बोली लगा सकते हैं. कंपनी ने इसके 50 प्रतिशत शेयर इंस्टीट्यूशनल बॉयर्स के लिए आरक्षित किए हैं जबकि 35 प्रतिशत खुदरा निवेशकों के लिए और 15 प्रतिशत गैर संस्थागत निवेशकों के लिए आरक्षित किए हैं. कंपनी अस्पतालों/क्लिनिकों, नेब्युलाइजर, पल्स ऑक्सीमीटर, स्वास्थ्य देखभाल केंद्रों, नर्सिंग होम, फेस मास्क, अल्कोहल स्वैब, लैंसेट सुई, आदि जैसे हेल्थकेयर में इस्तेमाल होने वाले सामानों को लेकर काम करती है. कंपनी इन प्रोडक्ट को बनाती भी है और असेंबल भी करती है और मार्केटिंग करती है.
स्टोरेज टेक्नोलॉजी और ऑटोमेशन आईपीओ
ऑटोमेटेड वेयरहाउस के क्षेत्र में काम करने वाली कंपनी स्टोरेज टेक्नोलॉजी और ऑटोमेशन कंपनी का आईपीओ भी 30 अप्रैल को आएगा और 3 मई को बंद हो जाएगा. कंपनी ने इसकी प्रति शेयर कीमत 73 से 78 रुपये तक तय की है. एक लॉट में 1600 शेयरों के लिए बोली लगाई जा सकती है. ऑफर के डिस्ट्रीब्यूशन पर नजर डालें तो 50 प्रतिशत क्वॉलीफाइड इंस्टीट्यूशनल बॉयर्स के लिए, 35 प्रतिशत खुदरा निवेशकों के लिए, 15 प्रतिशत गैर संस्थागत निवेशकों के लिए आरक्षित हैं. कंपनी मैटर स्टोरेज रैक, ऑटोमेटेड वेयरहाउस और अन्य स्टोरेज सॉल्यूशन की डिजाइन, निर्माण, इंस्टालेशन सेवाओं में माहिर हैं.
भारतीय रेलवे अब वेटिंग और आरएसी टिकट कैंसिल कराने पर अलग-अलग चार्ज नहीं लेगा.
रेलवे यात्रियों के लिए एक बड़ी खुशखबरी आई है. भारतीय रेलवे दुनिया का चौथा सबसे बड़े रेल नेटवर्क है, जिसमें प्रतिदिन 3 करोड़ से अधिक लोग सफर करते हैं. भारतीय रेलवे जनता की सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए लगातार बदलाव करता है. इसी के साथ अब रेलवे ने इसी बीच रेलवे ने टिकट कैंसिल करने के नियमों में बड़ा बदलाव किया है. तो चलिए आपको बताते हैं क्या है ये बदलाव और इससे आपको क्या फायदा होगा?
टिकट कैंसिलेशन नहीं लगेगा अतिरिक्त चार्ज
अब रेलवे अपने यात्रियों से वेटिंग या आरएसी टिकट को कैंसिल करने पर कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं लेगा. वेटिंग लिस्ट के टिकट को कैंसिल करने पर अब यात्रियों पहले के मुकाबले बेहद कम चार्ज देना होगा. रेलवे की इस सुविधा से लाखों यात्रियों को लाभ मिलेगा, जिसमें स्लीपर, एसी फर्स्ट, एसी द्वितीय और एसी तृतीय क्षेणी के यात्री शामिल हैं.
अब कितना कटेगा चार्ज?
भारतीय रेलवे के नए नियमों के अनुसार अब यात्रियों से टिकट कैंसिल कराने पर 60 रुपये चार्ज लिया जाएगा. ऐसे में स्लीपर क्लास के यात्रियों के लिए 120 रुपये, थर्ड एसी टिकट रद्द करने पर 180 रुपये, सेकेंड एसी टिकट रद्द करने पर 200 रुपये और फर्स्ट एसी टिकट रद्द करने पर 240 रुपये का शुल्क काटा जाएगा.
आखिर क्यों लिया रेलवे ने ये फैसला?
आपको बता दें, झारखंड के गिरिडीह में रहने वाले एक सोशल वर्कर और आरटीआई एक्टिविस्ट सुनील कुमार खंडेलवाल ने आरटीआई लगाकर रेलवे से टिकट कैंसिलेशन चार्ज के बारे में जानकारी मांगी थी. जानकारी मिलने के बाद खंडेलवाल ने शिकायत की थी कि रेलवे सिर्फ टिकट कैंसिल करने के चार्ज से ही करोड़ों की मोटी कमाई कर रहा है और इससे यात्रियों को भारी नुकसान हो रहा है. एक यात्री ने 190 रुपये का टिकट खरीदा. कन्फर्म सीट नहीं मिली और जब उन्होंने टिकट कैंसिल किया तो उन्हें सिर्फ 95 रुपए मिले. इसके बाद रेलवे ने वेटिंग और आरएसी टिकट को कैंसिल चार्ज को कम कर दिया.
भारत की मसाला कारोबार में हिस्सेदारी पर नजर डालें तो साल दर साल के अनुसार उसमें बढ़ोतरी हो रही है. ग्लोबल हिस्सेदारी जहां 43 प्रतिशत जा पहुंची है वहीं उत्पादन 7 प्रतिशत तक बढ़ चुका है.
हांगकांग और सिंगापुर के बाद अब एमडीएच (MDH) और एवरेस्ट (Everest) पर अमेरिका में भी संकट गहराता हुआ नजर आ रहा है. अब अमेरिका के फूड विभाग ने भी इस मामले में जांच करने की तैयारी कर ली है. सिंगापुर और हांगकांग में सामने आए मामले के बाद अब वहां भी इस मामले की जांच शुरू हो सकती है. सबसे दिलचस्प बात ये है कि भारत दुनिया के कई देशों में अपने मसालों को सप्लाई करता है. उनकी अमेरिका ये लेकर नॉर्थ अमेरिका और यूरोप के कई देशों में मांग है.
आखिर क्या है ये पूरा मामला?
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका का फूड विभाग भारत की इन दो कंपनियों के मसालों के बारे में जानकारी जुटा रहा है. सिंगापुर और हांगकांग में इन दो कंपनियों के मसालों में हाई लेवल पेस्टिसाइड मौजूद था. वहां रिपोर्ट के आने के बाद इन मसालों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. वहीं इस पूरे मामले के सामने आने के बाद एमडीएच और एवरेस्ट की ओर से कोई जवाब तो नहीं दिया गया है लेकिन उनका कहना है कि इनमें कोई खराबी वाला तत्व मौजूद नहीं है. वहीं भारत में भी मसाला बोर्ड ने एवरेस्ट और एमडीएच मसालों की जांच शुरू कर दी है. बोर्ड उस लॉट की जांच कर रहा है जो सिंगापुर और अमेरिका भेजी गई थी.
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भारत के मसाला एक्सपोर्ट में हुई थी इतनी ग्रोथ
अगर पिछले साल दिसंबर में सामने आए आंकड़ों की मानें तो मसालों के एक्सपोर्ट में 30 प्रतिशत का इजाफा देखने को मिला था. पिछले साल दिसंबर तक के आंकड़ों पर नजर डालें तो मसालों के उत्पादन में 7 प्रतिशत का इजाफा हुआ है. भारत के मसाला बोर्ड के आंकड़े बता रहे हैं कि 2005 से लेकर 2021 तक मसालों का निर्यात 30 फीसदी तक बढ़ा है. आज पूरी दुनिया में मसाला कारोबार में भारत की हिस्सेदारी 43 प्रतिशत से ज्यादा हो चुकी है. भारत ने 2021-22 में 4.1 अरब डॉलर के 15 लाख टन मसालों का निर्यात किया.
सरकार इससे पहले 2018 में इन कानूनों में पहले ही एक सुधार कर चुकी है. उसमें सरकारी बैंक के सीईओ को लुक आउट नोटिस के लिए अनुरोध करने वालों की सूची में डाल चुकी है.
बैंकों का करोड़ों रुपये लेकर देश से अब तक कई कारोबारी बाहर जा चुके हैं. हालिया सालों में इनमें नीरव मोदी और विजय माल्या जैसे कारोबारियों के नाम इसमें प्रमुखता से शामिल हैं. लेकिन अब सरकार कुछ ऐसा काम करने जा रही है जिसके होने पर न तो भविष्य में कोई नीरव मोदी बन पाएगा और न ही कोई विजय माल्या बन पाएगा. सरकार में इस बात को लेकर विमर्श चल रहा है कि इस परेशानी से बचने के लिए सरकारी बैंकों को लुक आउट नोटिस जारी किया जा सकता है. सरकार इस मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट के एक फैसले के बाद आगे बढ़ रही है.
क्या है ये पूरा मामला?
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, दरअसल कुछ दिन पहले बॉम्बे हाईकोर्ट का एक निर्णय सामने आया था. इस निर्णय में कहा गया था कि सरकारी बैंकों के पास किसी भी डिफॉल्टर के खिलाफ केन्द्रीय एजेंसियों से लुक आउट नोटिस जारी करने का अधिकार नहीं है. इस मामले के बाद सरकार का संबंधित मंत्रालय इसे लेकर काम करना शुरू कर चुका है. सरकार इस ऑफिस मेमोरेंडम को कानूनी रूप देने की तैयारी कर रही है, जिसके बाद सरकारी बैंकों को लुकआउट नोटिस जारी करने की अनुमति मिल सकती है.
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सरकार कर रही है आदेश की समीक्षा
केन्द्र सरकार इससे संबंधित आदेश की समीक्षा कर रही है. इस आदेश की समीक्षा में संबंधित सभी मंत्रालय अपनी राय दे रहे हैं. अगर बैंकों को ये अधिकार देना है तो उसके लिए कानून में संशोधन करना होगा. इसके लिए जिन कानूनों में बदलाव करना होगा उनमें बैंकिंग रेग्यूलेशन एक्ट और भगोड़ा आर्थिक अपराधी नियम में बदलाव करना होगा. हालांकि इससे पहले गृह मंत्रालय 2018 में एक संशोधन पहले ही कर चुका है. आरबीआई सरकारी बैंक के सीईओ को ये अधिकार पहले ही दे चुका है जिसमें वो किसी व्यक्ति के खिलाफ ऐसी मांग कर सकते हैं. बॉम्बे हाईकोर्ट ने ये भी कहा कि केन्द्र सरकार के ऑफिस मेमोरेंडम अधिकार क्षेत्र से बाहर नहीं थे. लेकिन बाद में जिस तरह से सरकारी बैंक के मैनजरों को ये अधिकार दिया गया वो गलत था.
अब जानिए कैसे हो सकेगा ये काम संभव
दरअसल सरकार के संबंधित मंत्रालय इस मामले में दिशानिर्देश जारी करेंगे. इस मामले में संबंधित सभी मंत्रालयों के बीच शुरुआत विचार विमर्श चल रहा है जिसमें कुछ नियमों को पूरा करने पर ही सरकारी बैंक डिफॉल्टर के खिलाफ लुकआउट सर्कुलर कर सकते हैं. इसमें बाकायदा एक पूरी चेकलिस्ट बनाने की भी बात कही जा रही है जिसमें डिफॉल्टर्स को नोटिस भेजना, उसकी ओर से आने वाले रिस्पांस का डॉक्यूमेंटेशन करना, और केन्द्रीय आर्थिक खूफिया ब्यूरो जैसी अन्य एजेंसियों के साथ मिलकर फ्लाइट असेसमेंट करना जैसे कदम उठाना शामिल हो सकता है. इनके होने के बाद ही लुक आउट नोटिस जारी किया जा सकता है.
RBI ने स्मॉल फाइनेंस बैंकों को यूनिवर्सल बनने के लिए जो गाइडलाइन जारी की है उससे साफ है कि रिजर्व बैंक हर क्षेत्र में नियमों को सख्त कर रहा है, जिससे फाइनेंशियल सेक्टर को स्थिरता मिल सके.
आरबीआई फाइनेंशियल सेक्टर में जहां अनियमित्ताओं को दूर करने को लेकर तेजी से काम कर रहा है वहीं दूसरी ओर आम आदमी से लेकर इंस्टीट्यूशन के लिए भी गाइडलाइन जारी कर रहा है. इसी कड़ी में अब आरबीआई ने स्मॉल फाइनेंस बैंक को यूनिवर्सल बैंक बनने के लिए उन दिशानिर्देशों की जानकारी दी है जिसे उसे पूरा करना होगा.
आखिर क्या कहते हैं आरबीआई के नियम?
आरबीआई की ओर से स्मॉल फाइनेंस बैंक को यूनिवर्सल बैंक बनने के लिए जो दिशानिर्देश जारी किए गए हैं, उनमें पिछली तिमाही में बैंक की शुद्ध संपत्ति 1000 करोड़ रुपये होनी चाहिए और तय किया गया सीआरएआर पूरा करना चाहिए. यही नहीं स्मॉल फाइनेंस बैंक का पिछले पांच सालों का प्रदर्शन का संतोषजनक ट्रैक रिकॉर्ड होना चाहिए, यही नहीं स्मॉल फाइनेंस बैंक के शेयर स्टॉक मार्केट में सूचीबद्ध होने चाहिए.
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आरबीआई ने एनपीए को लेकर भी जारी किए निर्देश
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने किसी स्मॉल फाइनेंस बैंक को यूनिवर्सल बैंक बनने के लिए जो नार्म्स जारी किए हैं उनके अनुसार बैंक ने एनपीए को लेकर भी साफ तथ्य दिए हैं. आरबीआई ने कहा है कि बैंक का एनपीए 3 प्रतिशत या उससे कम तक होना चाहिए. यही नहीं आरबीआई की ओर से ये भी कहा गया है कि पिछले दो वित्तीय वर्षों में शुद्ध एनपीए 1 प्रतिशत या उससे कम होना चाहिए. इससे पहले आरबीआई 5 दिसंबर 2019 को निजी क्षेत्र में स्मॉल फाइनेंस बैंक के ऑन टैप लाइसेंसिंग के लिए दिशानिर्देश जारी कर चुका है.
एयू स्मॉल फाइनेंस बैंक भी कर रहा है कोशिश
स्मॉल फाइनेंस बैंक से यूनिवर्सल बैंक बनने की राह में सबसे आगे एयू स्मॉल फाइनेंस बैंक है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, एयू स्मॉल फाइनेंस बैंक के अधिकारी इस संबंध में आरबीआई के अधिकारियों से मिलने वाले हैं. अगर एयू स्मॉल फाइनेंस बैंक की स्थिमि पर नजर डालें तो बैंक 10 जुलाई 2017 को स्टॉक मार्केट में सूचीबद्ध हो चुका है. मार्च 2024 में अगर बैंक की नेटवर्थ पर नजर डालें तो वो 12560 करोड़ रुपये है. अगर फिनकेयर बैंक के विलय के बाद इसकी नेटवर्थ देखें तो वो 14981 करोड़ रुपये हो चुकी है. बैंक का एनपीए भी आरबीआई के नियमों के अनुरूप ही है. मार्च 2024 में बैंक का एनपीए 1.67 प्रतिशत रहा है जबकि 2023 में ये 1.66 प्रतिशत रहा था.
पिछले 5 सालों में ऑनलाइन विज्ञापन देने के मामले में भाजपा सबसे आगे निकल गई है. उसने रिकॉर्डतोड़ खर्चा किया है.
चुनावी मौसम में सियासी दल प्रचार पर पानी की तरह पैसा बहाते हैं. पारंपरिक प्रचार के साथ-साथ डिजिटल मंचों पर भी प्रचार को तरजीह दी जाती है. सोशल मीडिया के जमाने में नेताओं के लिए जनता, खासकर युवाओं तक पहुंचना बेहद आसान हो गया है. इसलिए यूट्यूब, फेसबुक जैसे सोशल प्लेटफॉर्म पर दिए जाने वाले विज्ञापनों में इजाफा हुआ है. एक रिपोर्ट बताती है गूगल और यूट्यूब पर विज्ञापन देने के मामले में भाजपा सबसे आगे है.
इतनी रही भाजपा की हिस्सेदारी
रिपोर्ट के अनुसार, भाजपा अब तक गूगल और यूट्यूब पर विज्ञापन के लिए 100 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च कर चुकी है और ऐसा करने वाली देश की पहली पॉलिटिकल पार्टी बन गई है. गूगल की विज्ञापन टांसपेरेंसी रिपोर्ट बताती है कि 31 मई 2018 से 25 अप्रैल 2024 तक भाजपा ने विज्ञापन पर 102 करोड़ रुपए खर्च किए हैं. पिछले पांच सालों में Google पर प्रकाशित विज्ञापनों में भाजपा की हिस्सेदारी लगभग 26% है. इस अवधि में कुल 390 करोड़ रुपए के राजनीतिक विज्ञापन प्रकाशित हुए हैं.
कर्नाटक पर रहा BJP का फोकस
बीते 5 सालों में कुल 2.17 लाख ऑनलाइन विज्ञापन दिए गए हैं, जिसमें से कुल 1.61 लाख भाजपा के थे. BJP ने कर्नाटक में सबसे ज्यादा 10.8 करोड़ रुपए के विज्ञापन दिए. इसके बाद उत्तर प्रदेश के लिए 10.3 करोड़, राजस्थान के लिए 8.5 करोड़ और दिल्ली के लिए 7.6 करोड़ रुपए के विज्ञापन पार्टी ने दिए. हालांकि, इस बार के लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण के दौरान (19 से 25 अप्रैल तक) विज्ञापन पर खर्च के मामले में कांग्रेस आगे निकल गई है. कांग्रेस ने 5.7 करोड़ रुपए के विज्ञापन प्रकाशित करवाए हैं. जबकि भाजपा ने 5.3 करोड़ के विज्ञापन दिए हैं.
इस मामले में Congress दूसरे नंबर पर
रिपोर्ट के अनुसार, 5 सालों की अवधि में कांग्रेस ऑनलाइन विज्ञापन देने के मामले में दूसरे नंबर पर है. उसने कुल 5992 विज्ञापनों पर 45 करोड़ रुपए खर्च किए हैं. पार्टी का ऐड कैंपेन मुख्य रूप से कर्नाटक, तेलंगाना और मध्य प्रदेश पर केंद्रित था. कर्नाटक और तेलंगाना, प्रत्येक के लिए पार्टी ने 9.6 करोड़ रुपए से अधिक के विज्ञापन दिए. जबकि मध्य प्रदेश पर उसका खर्चा 6.3 करोड़ रुपए था. इस मामले में तीसरे स्थान पर तमिलनाडु की सत्ताधारी पार्टी DMK है. उसने 2018 से अब तक ऑनलाइन विज्ञापनों पर 42 करोड़ रुपए खर्च किए हैं.
केजरीवाल की AAP ने किया इतना खर्चा
DMK ने तमिलनाडु के बाहर कर्नाटक और केरल में डिजिटल विज्ञापनों पर 14 लाख रुपए खर्च किए. इसी तरह, आम आदमी पार्टी ने 1 करोड़ खर्च किए हैं. वहीं, भाजपा के 2023-23 के चुनावी खर्चे की बात करें, तो एक रिपोर्ट बताती है कि यह 1092 करोड़ था. इसमें विज्ञापनों पर 432.14 करोड़ रुपए की लागत आई. जबकि प्रचार के लिए 78.2 करोड़ रुपए प्लेन, हेलिकोप्टर आदि पर खर्च किए गए. गौरतलब है कि BJP को इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए 2022-23 में कुल 1300 करोड़ रुपए की फंडिंग मिली है. जबकि कांग्रेस के खाते में 171 करोड़ रुपए आए हैं.
शेयर बाजार में पिछले 5 सत्रों से लगातार जारी तेजी पर शुक्रवार को दूसरे चरण की वोटिंग के बीच ब्रेक लग गया.
लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election) के दूसरे चरण के लिए कल यानी शुक्रवार को वोट डाले गए. हालांकि, मतदान प्रतिशत उत्साह वाला नहीं रहा. दूसरे चरण में पहले चरण से भी कम वोटिंग हुई. सात चरणों में होने वाले चुनाव के दूसरे चरण में 13 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की 88 सीटों पर मतदान हुआ. इस चरण में महज 63% मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया. 2019 में इन्हीं सीटों पर 70% से अधिक वोटिंग हुई थी. पहले चरण में 64 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने अधिकार का प्रयोग किया था. कम वोटिंग ने जहां राजनीतिक दलों का गणित बिगाड़ दिया है, वहीं शेयर बाजार (Stock Market) का भी गणित बिगड़ गया.
कम वोटिंग के बीच हाहाकार
सप्ताह के आखिरी कारोबारी दिन शुक्रवार को शेयर बाजार में पिछले 5 सत्रों से चली आ रही तेजी पर ब्रेक लग गया. इस दौरान, मुंबई स्टॉक एक्सचेंज (BSE) का सूचकांक Sensex 609 अंक टूटकर 73,730.16 पर बंद हुआ. इसी तरह, नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) का निफ्टी भी 150.30 अंक या 0.67 फीसदी नीचे आकर 22,420 पर पहुंच गया. मिलेजुले वैश्विक संकेतों के बावजूद, बाजार की शुरुआत पॉजिटिव रही. लेकिन बाजार बढ़त को बरकरार नहीं रख पाया. कारोबार की समाप्ति पर कम वोटिंग की खबरों के बीच बाजार में भी हाहाकार की खबर सामने आ गई.
इन स्टॉक्स ने लगाया बड़ा गोता
बाजार में आई गिरावट में Bajaj Finance, Bajaj Finserv, Nestle India, Indusind Bank और Mahindra And Mahindra जैसे दिग्गज शेयर लाल निशान पर कारोबार करते दिखाई दिए. बजाज फाइनेंस सबसे ज्यादा 7.73% की गिरावट के साथ बंद हुआ. 6,730.80 के भाव पर मिल रहे इस शेयर के लिए पिछले 5 कारोबारी सत्र भी अच्छे नहीं रहे हैं. इस दौरान, इसमें करीब 7 प्रतिशत की गिरावट आई है. इस शेयर का 52 वीक का हाई लेवल 8,192 रुपए है. इसी तरह, Bajaj Finserv में भी 3.66% की नरमी देखने को मिली. 1,595 रुपए मूल्य का ये शेयर पिछले 5 दिनों में भी लाल निशान पर कारोबार करता नजर आया है. नेस्ले इंडिया में 2.64%, Indusind Bank में 3.08% और Mahindra And Mahindra में 2.00% की गिरावट आई है.
अगले हफ्ते कैसी रहेगी चाल?
वहीं, अगले हफ्ते बाजार की चाल की बात करें, तो एक्सपर्ट्स का मानना है कि सोमवार को मार्केट में मिलीजुली प्रतिक्रिया देखने को मिल सकती है. उनका कहना है कि निफ्टी के डेली चार्ट पर एक ब्लैक क्लाउड कवर पैटर्न दिखाई दिया है, जो मंदी की वापसी का संकेत है. निफ्टी के लिए तत्काल सपोर्ट 22300 पर मौजूद है. इसके नीचे जाने पर गिरावट बढ़ सकती है और निफ्टी 22000 तक जा सकता है. बता दें कि इससे पहले मार्केट लगातार पांच कारोबारी सत्रों से ग्रीन लाइन पकड़कर कारोबार कर रहा था.
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