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फिर महंगा होने वाला है डीजल-पेट्रोल, तेल उत्‍पादक देशों के इस कदम का होगा असर!

सऊदी अरब पहले अप्रैल में प्रति दिन 1.16 मिलियन बैरल की आश्चर्यजनक कटौती पर सहमत हुआ था, जिसमें उसका अपना हिस्सा 500,000 बैरल था. ये बढ़ोतरी जुलाई से शुरू हो सकती है.

ललित नारायण कांडपाल 10 months ago

अगर पिछले कु्छ दिनों से आपने तेल के दामों में इजाफे की खबर नहीं सुनी है तो ये खबर आपको जल्‍द ही सुनने को मिल सकती है. क्‍योंकि दुनिया भर में तेल की कीमत में हो रही कमी ने तेल उत्‍पादकों देशों को चिंता में डाल दिया है. इसके कारण उन्‍होंने अब तेल के उत्‍पादन में कमी करने का निर्णय लिया है. माना जा रहा है कि ये कदम कंपनियां इसलिए उठा रही हैं जिससे तेल के दामों में बढ़ोतरी हो सके. अगर ऐसा हुआ तो इससे जहां महंगाई बढ़ने की संभावना है वहीं दूसरी ओर ब्‍याज दरों में भी इजाफा हो सकता है.  

जुलाई से शुरू होगी कटौती 
सऊदी अरब की ये कटौती जुलाई में शुरू होगी, इसके तहत सऊदी प्रति दिन दस लाख बैरल तेल उत्पादन कम करना शामिल है. ओपेक+ के बाकी सदस्य उत्पादक 2024 के अंत तक अपनी पहले की आपूर्ति कटौती को बढ़ाने पर सहमत हुए. सउदी अरब ने जिस कटौती का ऐलान किया है वो जुलाई से शुरू होगी और उसके तहत हर रोज 1 मिलियन तेल का कम उत्‍पादन करेगा. वहीं दूसरी ओर ओपेक और उसके साथ इस साल के आखिरी तक तेल के उत्‍पादन में कमी लाने को लेकर सहमत हो गए हैं. 

क्‍या बोले सऊदी के ऊर्जा मंत्री 
सऊदी अरब के ऊर्जा मंत्री अब्दुलअज़ीज़ बिन सलमान ने एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान समझौते पर अपनी संतुष्टि व्यक्त की और इस समझौते की पारदर्शिता पर अपनी बात रखते हुए इसे निष्पक्ष बताया. तेल की कीमतों में गिरावट ने दुनिया भर के उपभोक्ताओं को लाभान्वित किया है, जिससे अमेरिकी ड्राइवरों को कम कीमत पर अपने टैंक भरने और मुद्रास्फीति से राहत देने की अनुमति मिली है. सऊदी अरब द्वारा उत्पादन में कटौती को लागू करने के कारण आने वाले दिनों में मांग में अनिश्‍चित बढ़ोतरी को दर्शा रहा है, अमेरिका और यूरोप में आर्थिक कमजोरी के साथ-साथ चीन की कोविड 19 को देखते हुए ओपेक तेल कार्टेल में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में, सऊदी अरब ने पहले अप्रैल में प्रति दिन 1.16 मिलियन बैरल की आश्चर्यजनक कटौती पर सहमति व्यक्त की थी, जिसमें उसका अपना हिस्सा 500,000 बैरल था. इसके बाद अक्टूबर में ओपेक+द्वारा उत्पादन को दो मिलियन बैरल प्रति दिन कम करने की घोषणा की गई, जिसकी अमेरिकी राष्‍ट्रपति ने ठीक मध्‍यावधि चुनावों से पहले गैसोलीन के महंगे होने के कारण आलोचना की थी. 

इस कटौती का नहीं हुआ स्‍थाई असर 
हालांकि, इन कटौतियों का तेल की कीमतों पर स्थायी प्रभाव नहीं पड़ा. हालांकि ब्रेंट क्रूड की कीमत अंतरराष्ट्रीय बेंचमार्क 87 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गयी थी, लेकिन तब से यह गिर गयी है और 75 डॉलर प्रति बैरल से नीचे बनी हुई है. अमेरिकी कच्चे तेल की कीमतें भी 70 डॉलर प्रति बैरल से नीचे आ गई हैं. अमेरिकी ऑटोमोबाइल एसोसिएशन (एएए) के अनुसार, गर्मियों में यात्रा के मौसम की शुरुआत में कम कीमतों से अमेरिकी चालकों को लाभ हुआ है, औसत पंप की कीमतें वर्तमान में 3.55 अमेरिकी डॉलर, एक साल पहले की तुलना में 1.02 अमेरिकी डॉलर कम हैं. गिरती ऊर्जा कीमतों ने भी यूरोज़ोन में महंगाई में कमी लाने में भी बड़ी भूमिका निभाई है. 

तेल के दामों में हो सकता है इजाफा 
वहीं अब तेल के उत्‍पादन में ताजा कमी तेल की कीमतों में वृद्धि कर सकती है, इस बारे में अस्थिरता है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में जो महंगाई और बढ़ती ब्‍याज दरों के कारण धीमी वृद्धि का सामना कर रहे हैं उसके यात्रा और उद्योग जैसे दोनों क्षेत्र ईंधन की अपनी मांग को पूरी तरह से कब तक ठीक कर पाएंगे. 

तेल उत्पादन को कम करने का निर्णय अब्दुलअज़ीज़ बिन सलमान की सटोरियों को दी गई उस चुनौती के बाद सामने आया है तेल की कम कीमतों पर दांव लगा रहे थे. सऊदी सरकार को अपनी कई बड़ी परियोजनाओं के लिए पैसों की जरूरत है. वो तेल के दामों में बढोतरी के जरिए अपनी अर्थव्‍यवस्‍था को दुरूस्‍त करने की तैयारी कर रही है, जिसमें 500 अरब अमेरिकी डॉलर की अनुमानित लागत के साथ रेगिस्‍तान में बनने वाला रेगिस्तानी शहर निओम परियोजना भी शामिल है.

तेल उत्पादक देशों को अपने राज्य के बजट के लिए राजस्व की आवश्यकता होती है, लेकिन उन्हें तेल की खपत करने वाले देशों पर उच्च कीमतों के प्रभाव को भी समझने की जरूरत है. अत्यधिक तेल की कीमतें महंगाई को बढ़ाने का काम करती हैं जबकि ग्राहक की खरीद शक्ति को भी कम कर सकती हैं और इससे ब्‍याज दरों में एक बार फिर बढ़ोतरी हो सकती है. इसके कारण आम लोगों और व्यवसायों के लिए खरीद और निवेश के लिए ऋण प्राप्त करना अधिक कठिन हो जाता है जिससे विकास बाधित हो जाता है.
 


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