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ई-कॉमर्स: आखिर क्या है Dark Pattern और क्यों सरकार को लगाना पड़ा बैन, जानें सबकुछ
ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा डार्क पैटर्न के बढ़ते इस्तेमाल पर चिंता जताई जा रही थी. अब सरकार ने इस पर बैन लगा दिया है.
बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 5 months ago
ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म अब ग्राहकों को लुभाने के लिए ‘डार्क पैटर्न’ (Dark Pattern) का इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे. सरकार ने उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के मद्देनजर ‘डार्क पैटर्न’ के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया है. कंपनियां या कारोबारी ‘डार्क पैटर्न’ के जरिए अलग-अलग तरीके से ग्राहकों को अपने जाल में फंसाते हैं, लेकिन अब उनके लिए यह संभव नहीं हो पाएगा. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, सेंट्रल कंज्यूमर प्रोटेक्शन ऑथोरिटी (CCPA) ने ‘डार्क पैटर्न रोकथाम एवं विनियमन दिशानिर्देश’ के लिए अधिसूचना जारी कर दी है. यह अधिसूचना वस्तुओं और सेवाओं की पेशकश करने वाले सभी प्लेटफॉर्म्स, विज्ञापनदाताओं और विक्रेताओं पर भी लागू होगी.
ऐसे समझें डार्क पैटर्न
नए दिशानिर्देशों में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि डार्क पैटर्न (Dark Pattern) का सहारा लेना उपभोक्ता अधिकारों का उल्लंघन और भ्रामक विज्ञापन या अनुचित व्यापार व्यवहार माना जाएगा. ऐसा करने वालों पर उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों के तहत करवाई होगी. चलिए अब जानते हैं कि आखिर Dark Patterns होता क्या है. वैसे इसकी परिभाषा बेहद व्यापक है, लेकिन सीधे शब्दों में कहें तो इसका इस्तेमाल ग्राहकों को गुमराह करने के लिए किया जाता है. उदाहरण के तौर पर, कई बार आप ई-कॉमर्स मंचों पर कोई प्रोडक्ट सर्च करते हैं, तो उसकी जो कीमत नजर आती है, वो अकाउंट में लॉग इन करते ही अलग हो जाती है. इसी तरह, कई बार दो प्रोडक्ट खरीदने पर तीसरा फ्री मिलता है, लेकिन इस तरह के ऑफर में अमूमन कीमत को बढ़ा दिया जाता है. इससे अनजान ग्राहक को लगता है कि उसे 2 की कीमत में 3 प्रोडक्ट मिल गए.
इन डार्क पैटर्न की हुई पहचान
सरकार ने नौ तरह के डार्क पैटर्न की पहचान की है. इनमें अर्जेंसी, बास्केट स्नीकिंग, कंफर्म शेमिंग, फोर्स्ड एक्शन, नैगिंग, इंटरफेस इंटरफेरेंस, बेट एंड स्विच, हिडेन कॉस्ट और डिस्गस्ड एड्स शामिल हैं. अर्जेंसी पैटर्न में अक्सर भय दिखाया जाता है. जैसे कि आपसे कहा जाता है कि फलां आइटम खत्म होने वाला है, केवल कुछ प्रोडक्ट ही स्टॉक में हैं. बास्केट स्नीकिंग में ग्राहक की सहमति के बिना उसे एक्स्ट्रा प्रोडक्ट दे दिया जाता है और मूल बिल में उसे जोड़ दिया जाता है. कंफर्म शेमिंग में किसी भी साइट में एंट्री करने के बाद एग्जिट करना काफी मुश्किल होता है. जैसे आप किसी चैनल आदि को सब्सक्राइब कर लेते हैं, लेकिन उसे अनसब्सक्राइब करने का ऑप्शन नहीं मिलता. फोर्स्ड एक्शन में ग्राहकों को कोई न कोई प्रोडक्ट सिलेक्ट के लिए मजबूर किया जाता है. नैनिंग में ग्राहक पर बार-बार प्रोडक्ट खरीदने पर पर जोर डाला जाता है. बेट एंड स्विच पैटर्न के तहत जिस वस्तु की खरीदारी की जाती है, उसके बदले दूसरी वस्तु बेच दी जाती है. कंपनियां तर्क देती हैं कि स्टॉक खत्म होने के चलते वैकल्पिक वस्तु भेजी गई है. वहीं हिडेन कॉस्ट का मतलब है कि फाइनल बिल में पहले बताई गई कीमत से ज्यादा जोड़ देना. डिस्गस्ड एड्स पैटर्न में गलत या भ्रामक दावे वाले विज्ञापनों में उलझाकर ग्राहकों को खराब उत्पाद बेचना शामिल है.
यहां भी होता है इस्तेमाल
केवल ई-कॉमर्स कंपनियां ही नहीं, एयरलाइन और सिनेमाहॉल भी इस पैटर्न का इस्तेमाल करते हैं. यदि आप फ्लाइट से सफर करते रहते हैं, तो आपने गौर किया होगा कि कई बार जब आप फ्लाइट टिकट सर्च करते हैं तो आपको सभी सीटें लगभग फुल दिखती हैं, जबकि हकीकत में ऐसा नहीं होता. सीटें खाली रहती हैं, मगर ग्राहकों को दिखाया जाता है कि सीटें तेजी से भर रही हैं. ऐसे में ग्राहक अधिक कीमत के बावजूद तुरंत टिकट बुक कर देता है. ऐसे ही कई बार फिल्म की टिकट ऑनलाइन बुक कराते समय दिखता जाता है कि केवल चंद सीटें ही खाली हैं, लेकिन जब हम सिनेमा हॉल पहुंचते हैं, तो पता चलता है कि कुछ ही सीटें भरी हैं और अधिकतर खाली हैं.
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