होम / बिजनेस / पूर्व RBI गवर्नर ने अब मोदी सरकार की PLI स्कीम पर उठाया ये सवाल, जानिए क्या कहा?
पूर्व RBI गवर्नर ने अब मोदी सरकार की PLI स्कीम पर उठाया ये सवाल, जानिए क्या कहा?
रघुराम राजन ने इस बार मोदी सरकार की PLI स्कीम पर सवाल उठाया है. उन्होंने सवाल उठाते हुए पूछा है कि क्या PLI स्कीम ने हमें वास्तव में हमें मोबाइल निर्माण में बड़ा उत्पादक बनाया है.
ललित नारायण कांडपाल 11 months ago
आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन जब भी कोई कमेंट या बात करते हैं तो वो सरकार की योजनाओं का जिक्र उसमें जरूर करते हैं. इस बार उन्होंने सरकार की पीएलआई (प्रोडक्शन लिंक इंसेटिव) योजना को लेकर सवाल उठाया है. एक रिसर्च पेपर के जरिए अपनी बात रखते हुए उन्होंने कहा कि क्या पीएलआई स्कीम उस अनुपात में रोजगार पैदा करने में कामयाब रही है जितना उससे उम्मीद थी. अगर रोजगार पैदा हुआ भी है तो उसकी क्या कीमत रही है. उन्होंने ये भी पूछा है कि क्या ये योजना भारत को मोबाइल सेक्टर के उत्पादन बड़ा देश बनाने में सफल रही है.
क्या कहता है ये शोध पत्र
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार सोशल मीडिया पर पोस्ट किए गए रिसर्च पेपर में तर्क देकर ये कहने की कोशिश की गई है कि भारत वास्तव में मोबाइल मैन्यूफैक्चरिंग दिग्गज नहीं बन पाया है. इस रिसर्च नोट में रघुराम राजन, राहुल चौहान और रोहित लांबा ने अपने तर्क दिए हैं. सरकार ने मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र में प्रोत्साहन के लिए एक बड़े बजट 1.97 लाख करोड़ रुपये के साथ इस योजना को लॉन्च किया था. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा है कि केन्द्र सरकार को इसके आंकड़ों का बारीकी से अध्ययन करने की जरूरत है. इससे कितनी नौकरियां पैदा हुई है और प्रति नौकरी की कॉस्ट क्या रही है.
लेकिन क्या कहते हैं आंकड़े
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार एक रिपोर्ट से पता चलता है कि 2014 से पहले देश में सिर्फ दो मोबाइल निर्माण कारखाने थे लेकिन इस वक्त देश में 200 से अधिक विनिर्माण यूनिट काम कर रही हैं. भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग ने FY23 में अनुमानित 1,85,000 करोड़ रुपये के इलेक्ट्रॉनिक सामानों का रिकॉर्ड निर्यात किया है जबकि वित्त वर्ष 22 में इस क्षेत्र ने 1,16,936 करोड़ रुपये का निर्यात किया था. ये पिछले साल से 58 प्रतिशत ज्यादा है.
क्या रही योजना की कमी
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार केन्द्र सरकार ने 2016 में भारत में मोबाइल फोन उत्पादन बढ़ाने के लिए पूरे मोबाइल फोन के आयात पर शुल्क बढ़ा दिया. बाद में 2020 में, मोबाइल फोन के लिए पीएलआई योजना पेश की गई. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार रिपोर्ट कहती है कि मोबाइल के लिए पीएलआई योजनाओं की प्रमुख कमियों में से एक यह है कि सब्सिडी का भुगतान केवल भारत में फोन को खत्म करने के लिए किया जाता है, न कि भारत में विनिर्माण द्वारा कितना मूल्य जोड़ा जाता है इसे बढ़ाने के लिए. ये रिसर्च ये भी कहती है कि मोबाइल के अंदर जो भी लगता है उसमें से ज्यादातर को भारत को इंपोर्ट करना पड़ता है. राजन द्वारा साझा किए गए आंकड़े बताते हैं कि सेमीकंडक्टर, पीसीबीए, डिस्प्ले, कैमरा और बैटरी सहित मोबाइल निर्माण के प्रमुख घटकों में से भारत कुछ भी निर्यात नहीं करता है.
पीएलआई से हो गए ज्यादा निर्भर
ये रिपोर्ट ये भी कहती है कि फाइनल मोबाइल फोन और सेमीकंडक्टर्स, पीसीबीए और अन्य मोबाइल पुर्जों के निर्यात, आयात और शुद्ध निर्यात के डेटा से पता चलता है कि निर्यात वित्त वर्ष 17 में -12.7 बिलियन डॉलर से गिरकर वित्त वर्ष 23 में -21.3 बिलियन डॉलर हो गया है. रिपोर्ट ये भी कहती है इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि पीएलआई योजना के दौरान हम लोग आयात पर ज्यादा अधिक निर्भर हो गए हैं.
इस रिसर्च से जुड़े रघुराम राजन और अन्य लेखकों ने माना है कि अर्धचालक, पीसीबीए, डिस्प्ले, ली-आयन बैटरी, बैटरी चार्जर और कैमरे के 100% आयात मोबाइल निर्माण में इस्तेमाल होते हैं. इस रिपोर्ट में लेखक कहते हैं कि हम यह दावा नहीं कर सकते हैं कि तैयार सेल फोन के निर्यात में बढ़ोतरी भारत के निर्माण में कौशल का प्रमाण है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार यह संभावना है कि मोबाइल निर्माता केवल असेंबली में लगे हुए हैं, जो कि वे मोदी सरकार द्वारा टैरिफ पेश किए जाने से पहले भी करते रहे हैं. यह मोबाइल फोन के अंतिम मूल्य का एक छोटा सा हिस्सा है.
टैग्स