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इस चीनी कंपनी ने ED की कार्रवाई पर उठाए सवाल, बचाव में दिया ये तर्क
सस्ते मोबाइल के लिए पहचानी जाने वाली चीनी कंपनी शाओमी ने ED की कार्रवाई पर बयान जारी किया है.
बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 year ago
प्रवर्तन निदेशालय (ED) की कार्रवाई पर चीनी स्मार्टफोन कंपनी शाओमी का बयान आ गया है. कंपनी ने उसकी 68.2 करोड़ डॉलर (5551 करोड़ रुपए से अधिक) की राशि को फ्रीज करने के फैसले को सही ठहराए जाने पर निराशा जाहिर की है. ED ने विदेशी मुद्रा कानूनों (फेमा) के उल्लंघन के आरोप में यह कार्रवाई की है, जिसे फेमा के तहत नियुक्त अथॉरिटी ने भी सही ठहराया है. अब शाओमी ने बयान जारी कर कहा है कि उसके साथ गलत हुआ.
आरोप और तर्क
दरअसल, ED का कहना है कि चीनी कंपनी ने रॉयल्टी के नाम पर करोड़ों रुपए भारत से बाहर भेजे हैं. रॉयल्टी तीन कंपनियों को भेजी गई है. इसमें एक चीन स्थित मूल कंपनी शाओमी और अमेरिका स्थित दो अन्य कंपनियां शामिल हैं. जबकि अमेरिका स्थिति दोनों कंपनियों का भारत में शाओमी के कामकाज से कोई संबंध नहीं है. अब शाओमी का कहना है कि उसका रॉयल्टी के रूप में अमेरिकी कंपनी क्वॉलकॉम को भुगतान करना पूरी तरह से वैध है. शाओमी ने कहा कि उसके द्वारा पूछे गए कानूनी व तथ्यामक सवालों का अब तक कोई जवाब नहीं दिया गया है. वह अपने हितों की रक्षा के लिए हर जरूरी कदम उठाएगी.
करार का दिया हवाला
शाओमी का कहना है कि 'शाओमी इंडिया' उसके समूह की कंपनी है, जिसने मोबाइल फोन बनाने के उद्देश्य से लाइसेंस IP के लिए अमेरिका की चिप सेट कंपनी क्वालकॉम के साथ एक कानूनी समझौता किया था. शाओमी ने कहा कि वह और क्वॉलकॉम दोनों मानते हैं कि यह वैध वाणिज्यिक समझौता है. चीनी कंपनी के मुताबिक, यूएस कंपनी को भुगतान उसके फोन के इंडियन वर्जन में इस्तेमाल किए जा रहे स्टैंडर्ड एसेंशियल पेटेंट्स और आईपी के लिए किया गया है. यह भुगतान केवल भारत में हुई फोन बिक्री के लिए किया गया था और कंपनी ने सभी नियमों का पालन किया है.
बाजार में 18% हिस्सेदारी
वहीं, ED का आरोप है कि शाओमी इंडिया ने जिन तीन विदेशी कंपनियों को पैसा भेजा है उनसे कोई सेवा नहीं ली गई है. ईडी का कहना है कि कंपनी ने रॉयल्टी की आड़ में ये राशि अनधिकृत रूप से विदेश भेजी है, जो फेमा कानून का उल्लंघन है. बता दें कि भारतीय स्मार्टफोन बाजार में शाओमी की अच्छी-खासी पकड़ है. एक रिपोर्ट बताती है कि इस बाजार में शाओमी और सैमसंग का शेयर 18-18 प्रतिशत है. 2020 में चीन के साथ सीमा विवाद के बाद से भारत सरकार चीनी कंपनियों को लेकर सख्त हो गई है.
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