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BW Marketing World: 73% ब्रैंड्स बंद हो गए लेकिन लोगों को कोई फर्क नहीं पड़ा : मोहित जोशी
बिजनेस वर्ल्ड के फेस्टिवल ऑफ मार्केटिंग में ये जानकारी निकलकर सामने आई कि ग्राहक उस ब्रैंड्स को परचेज करना पसंद नहीं करते हैं जो देश या क्लाइमेट के लिए कुछ नहीं करते हैं.
बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 9 months ago
BW Marketing World के दिल्ली में हो रहे इवेंट में हवास मीडिया नेटवर्क इंडिया के सीईओ मोहित जोशी ने मीनिंगफुल ब्रैंड्स को लेकर कई अहम बात कही. उन्होंने अपनी कंपनी के द्वारा हाल ही में 90 हजार से ज्यादा लोगों के बातचीत के आधार पर किए सर्वे को लेकर अपनी बात कही कि आज 73 प्रतिशत बैंड्स गायब हो चुके हैं लेकिन कंज्यूमर को कोई फर्क नहीं पड़ता. उन्होंने ये भी कहा कि आज कंज्यूमर को इस बात से भी बहुत असर पड़ता है कि आखिर ब्रैंड्स समाज और क्लाइमेट के लिए क्या करता है.
आखिर क्या है इस रिसर्च में खास?
मोहित जोशी ने कहा कि पिछले 15 सालों का इतिहास हमें बता रहा है कि ब्रैंड्स और कंज्यूमर एक दूसरे से बात क्यों नहीं कर रहे हैं. पिछले कई सालों में कई ब्रैंड्स बंद हो गए लेकिन कंज्यूमर को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है. किसी भी ब्रैंड की मार्केटिंग के पीछे करोड़ों रुपये खर्च करने के बावजूद वो अपने कंज्यूमर तक नहीं पहुंच पाता है. हमारी एक रिसर्च में इसे और आसानी से समझा जा सकता है. इस रिसर्च को 2022 के अंत में किया गया है. इसमें 91 हजार लोगों से बात की गई है, जिसमें 7000 लोग भारतीय हैं. पूरी दुनिया में मौजूदा समय में 1300 से ज्यादा ब्रैंड हैं जबकि इंडिया में 150 ब्रैंड काम कर रहे हैं. 42 तरह के ब्रैंड हैं जबकि इंडिया में ये 15 तरह की कैटेगिरी है.
ब्रैंड के संबंध में क्या होती Meaningfulness
किसी भी ब्रैंड के लिए फंक्शनल इक्विटी सबसे अहम होती है, इसका मतलब ये है कि अगर कोई कार है तो उसके फंक्शन कैसे हैं. इसके बाद आता है पर्सनल इक्विटी, इसका मतलब है कि ये हमें किस तरह की खुशी देता है, कितना गर्व मुझे उस पर होता, कितना संतोष देता है, इसके बाद आखिरी में आता है कलेक्टिव इक्विटी, इसमें देखा जाता है कि कंपनी कितनी ट्रांसपेरेंस है, कितनी ईमानदार है, क्या कंपनी सही तरीकों को इस्तेमाल कर रही है. अगर किसी ब्रैंड में कलेक्टिव इक्विटी है तो उसके लिए बॉयर ज्यादा पैसा भी खर्च करने को तैयार रहता है. जोशी ने कहा कि हम पिछले कई सालों से इस रिसर्च को कर रहे हैं लेकिन कोविड के कारण पिछले साल नहीं कर पाए.
क्या निकलकर आया रिसर्च में?
मोहित जोशी ने बताया कि उनकी रिसर्च में ये बात भी निकलकर सामने आई कि 43 प्रतिशत लोगों का मानना है दुनिया ग्लोबल लेवल पर गलत दिशा में जा रही है. इसके कई कारण हैं इनमें कोविड समस्या, क्लॉइमेट समस्या, यूक्रेन वॉर और महंगाई जैसे कारण प्रमुख तौर पर हैं. अब सवाल ये है कि आखिर ये क्यों अहम है. ये अहम इसलिए है क्योकि इससे एक ब्रैंड की परचेज जुड़ी हुई है. इनमें सबसे ज्यादा लोग क्लॉइमेट चेंज की समस्या को गंभीरता से लेते हैं, जबकि उसके बाद दूसरे नंबर पर सबसे ज्यादा इस समस्या के बारे में सोच रहे हैं कि उनकी निजी जिंदगी में क्या हो रहा है. जबकि 62 प्रतिशत लोग ऐसे हैं जिन्हें कई तरह की परेशानियों ने घेर रखा है. साथ ही हेल्थ का इश्यू सबसे अहम है.
ब्रैंड्स को लेकर क्या सोचते हैं लोग?
ब्रैंड्स को लेकर 58 प्रतिशत लोग सोचते हैं कि वो अपने वादों को पूरा नहीं करते हैं. ज्यादातर लोग ये सोचते हैं कि ये आप वास्तव में कुछ कर भी रहे हैं या केवल वादा कर रहे हैं. जबकि 65 प्रतिशत लोगों का मानना है कि ब्रैंड्स केवल मुनाफा कमा रहे हैं. वो समाज या देश के लिए कुछ नहीं कर रहे हैं. सर्वे ये भी बताता है 67 प्रतिशत लोग ऐसे हैं जो कंपनी की रेप्यूटेशन देखकर उसके ब्रैंड को खरीदते हैं. जबकि अगला जो आंकड़ा है वो और भी चौंकाने वाला है. वो ये है कि 68 प्रतिशत लोग उस ब्रैंड्स को खरीदना पसंद नहीं करते हैं जो कंपनी क्लाइमेट या समाज के लिए कुछ नहीं करते हैं. हमारा डेटा ये भी कहता है कि 73 प्रतिशत ब्रैंड्स के गायब होने के बाद भी लोगों को कोई फर्क नहीं पड़ता है. मीनिंगफुल ब्रैंड शेयर बाजार में नॉन मीनिंगफुल ब्रैंड से ज्यादा असर रखते हैं.
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