Weekend Special: बंटवारा, आजादी और तंगहाली से निकलकर एक 'Hero' के बनने की कहानी

आजादी के पहले का दौर एक ऐसा समय था, जब साइकिल को खरीदना हर किसी के बस की बात नहीं थी, साइकिलें विदेशों से इंपोर्ट की जाती थीं और आम आदमी की पहुंच से बाहर होती थीं.

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Saturday, 05 November, 2022
HERO

नई दिल्ली: लुधियाना में आम हड़ताल के चलते एक साइकिल फैक्ट्री के सारे वर्कर्स भी कामधाम छोड़कर जाने लगे, तभी उस साइकिल कंपनी के मालिक अपने केबिन से बाहर आते हैं, खुद ही साइकिल को असेंबल करने लगते हैं, कुछ सीनियर्स ने देखा तो मालिक ने कहा कि आप लोग चाहें तो घर जा सकते हैं, मैं तो काम करूंगा क्योंकि मेरे पास ऑर्डर्स हैं, ये कहकर वो मशीनें चालू करने लगे. वहां खड़े सीनियर्स ने उन्हें रोका तो मालिक ने कहा कि डीलर समझ सकते हैं कि हड़ताल के चलते काम नहीं हो रहा है, लेकिन वो बच्चा कैसे समझेगा जिसके माता-पिता ने जन्मदिन पर उसे साइकिल दिलाने का वादा किया है. इस हड़ताल से बच्चों का दिल टूट जाएगा, लेकिन मैं ऐसा नहीं होने दूंगा, मैं हर उस माता पिता का अपने बच्चों से साइकिल देने का किया गया वादा पूरा करूंगा. 

चार भाइयों की कहानी 
ये साइकिल कंपनी के मालिक कोई और नहीं बल्कि 'भारत के साइकिलमैन' ओम प्रकाश मुंजाल या ओपी मुंजाल थे और जिस कंपनी में हड़ताल हुई थी वो कोई और नहीं हीरो साइकिल थी. ये कहानी बताने के लिए काफी है कि अगर किसी काम को करने की शिद्दत हो तो वो काम हर हाल में पूरा होता है. आज हम वीकेंड स्पेशल में हीरो साइकिल की कहानी जानेंगे. 

ये कहानी शुरू होती है पाकिस्तान के टोबाटेक सिंह में कमालिया नाम के गांव से, जहां पर बहादुर चंद मुंजाल रहा करते थे. ये हिंदू पंजाबी परिवार ऊन का कारोबार कर था, बाद में उन्होंने थोक कारोबार करना शुरू किया. इनके चार बेटे थे, बृजमोहन लाल मुंजाल, दयानंद मुंजाल, सत्यानंद मुंजाल और ओम प्रकाश मुंजाल. सबकुछ ठीक चल रहा था, लेकिन भारत आजादी की लड़ाई लड़ रहा था. 1944 का वो साल जब देश में बंटवारे का खतरा मंडरा रहा था, मुंजाल परिवार पाकिस्तान से भारत आ गया और अमृतसर में बस गया. 

आजादी के पहले का दौर एक ऐसा समय था, जब साइकिल को खरीदना हर किसी के बस की बात नहीं थी, क्योंकि ज्यादातर साइकिलें विदेशों से इंपोर्ट की जाती थीं और आम आदमी की पहुंच से बाहर होती थीं. जो साइकिलें भारत में बनती थीं, वो विदेशी साइकिलों के मुकाबले कहीं नहीं टिकती थीं, न मजबूती में और न ही चलने में. देश के बंटवारे के बाद मुंजाल भाइयों ने देश में अपनी साइकिल का कारोबार करने का सपना देखा, लेकिन मुश्किल ये थी कि न तो उनके पास इसका कोई अनुभव था और न ही टेक्नोलॉजी मालूम थी और पैसों की भी दिक्कत थी. कारीगरों को पुर्जे बनाना सिखा भी दिया जाता तो इसके लिए औजार और डाई कहां से आते. सभी कुछ बिल्कुल शुरू से शुरू करना था. 

जब खुद पुर्जे बनाने की ठानी 
भाइयों ने ठाना कि वो पुर्जे बनाने की शुरुआत खुद करेंगे दयानंद और ओम प्रकाश ने लुधियाना जाने का फैसला किया, लेकिन तभी उन्हें पता चला कि उनका एक सप्लायर करीमदीन हमेशा के लिए पाकिस्तान जाने की तैयारी कर रहा है. करीमदीन ओम प्रकाश का दोस्त था. वो साइकिल की गद्दियां बनाता था, और उसका एक अपना ब्रैंड भी था. पाकिस्तान जाने से पहले करीमदीन अपने दोस्त ओम प्रकाश से मिलने गया. इसके बाद जो हुआ वो जिंदगी बदलने वाली घटना थी, ओम प्रकाश ने करीदीन से कहा कि वो तो पाकिस्तान जा रहे हैं, क्या वो भारत में उनके ब्रैंड नाम का इस्तेमाल कर सकते हैं. करीमदीन को कोई ऐतराज न था, उन्होंने इसके लिए हां कर दी. उस जमाने में ब्रैंड वैल्यू या पेटेंट जैसी चीजों का चलन नहीं था, इसलिए सिर्फ एक हां से ही करीमदीन का ब्रैंड मुंजाल भाइयों को मिल गया. जानते हैं उस ब्रैंड का नाम क्या था, वो था 'HERO'. यहीं से भारत में मुंजाल भाइयों के हीरो ब्रैंड की शुरुआत हुई. 

उस समय मुंजाल भाइयों के पास न तो इंजीनियरिंग डिजाइन थे और न ही, उत्पादन कैसे करना है इसका अता-पता था. मुंजाल भाइयों को अपना ही तरीका इजाद करना था. वो खुद ही आंगन में बैठकर कागजों पर साइकिल के डिजाइन बनाते और ये सोचते कि कैसे इसको बनाया जाए. 1954 में उन्होंने सबसे पहले जिस साइकिल के पुर्जे को बनाया था वो फोर्क (bicycle forks) थे, जिसे वो Atlas को सप्लाई कर रहे थे. इसे बनाने के लिए उन्होंने घर के पीछे ही एक भट्टी लगाई, कारीगरों को लगाया और काफी कोशिशों के बाद अंत में वो इसे बनाने में कामयाब रहे. उन्हें एक ऑर्डर भी मिला, डीलर को उन्होंने माल सप्लाई किया, लेकिन फोर्क के टूटने की शिकायतें आने के बाद डीलर ने सारा माल लौटा दिया, मुंजाल भाइयों ने कहीं से पैसों का इंतजाम करके डीलर को उसके सारे पैसे वापस कर दिए. पैसे लौटाने से उनका सम्मान तो बच गया लेकिन अब एक बार फिर मुंजाल भाई वहीं खड़े थे जहां से उन्होंने शुरुआत की थी, उनकी जेबें फिर खाली थीं. 

नाकामी से हारे नहीं 
लेकिन इस असफलता से मुंजाल भाइयों ने हार नहीं मानी, उन्होंने फिर से अपनी कमर कसी, डिजाइन टेबल पर दोबारा बैठे और गलतियों को ठीक किया. अब चूंकि उनके किसी भी डीलर को कोई नुकसान नहीं हुआ था, उन्होंने फिर से ऑर्डर लिया और इस बार चमत्कार हो गया, साइकिल फोर्क में किसी तरह की शिकायत या गड़बड़ी नहीं आई.
फोर्क बनाने के बाद चारों भाइयों ने साइकिल के हैंडल बनाने की सोची. उस जमाने में साइकिल के हैंडल बनाने वाला एक ही सप्लायर था, वो इसकी बहुत ऊंची कीमत मांगता था, क्योंकि उसकी मोनोपॉली यानी वर्चस्व था. उसको पता था कि बिना हैंडल के कोई साइकिल नहीं बनाई जा सकती. मुंजाल भाई उसकी दया पर नहीं रहना चाहते थे. इसलिए उन्होंने रामढ़िया मिस्त्रियों से मुलाकात की, रामगढ़िया मिस्त्रियों को लोहे के ऐसे कामों में सिद्धहस्त माना जाता है. उन्होंने मिस्त्रियों से साइकिल के हैंडल बनाने का प्रस्ताव रखा, वो मान गए, कुछ ऊंच नीच के बाद जो हैंडल तैयार हुए वो कमाल के थे. फिर क्या था लुधियाना में साइकिल बनाए जाने लगे, बहादुरगढ़ से मडगार्ड मंगवाए गए. इसके बाद सत्यानंद और सदानंद ने 1950 में बहादुरगढ़ में साइकिल मैन्यूफैक्चरिंग के लिए एक फैक्ट्री डाली. 

ऐसी साइकिल जो भारत के लिए हो
उस जमाने में जो साइकिलें विदेशों से आती थीं, वो दिखने में काफी सुंदर थीं, लेकिन मुंजाल भाइयों ने की सोच अलग थी. उन्होंने भारतीय परिस्थितियों को ध्यान में रखकर साइकिलें बनाईं. उन्होंने मजबूती पर ज्यादा ध्यान दिया, जैसे कि साइकिल पर अगर दो से ज्यादा लोग भी बैठ जाएं तो वो सहन कर सके और इसकी कीमत भी ऐसी हो कि कोई आम आदमी खरीद सके और अपनी आवाजाही का साधन बना सके. साइकिल की मजबूती को परखने के लिए तीन भाई एक ही साइकिल पर बैठकर अपने मॉडल टाउन के घर से गिल रोड पर मौजूद अपना दुकान तक जाते थे. मुंजाल भाई चाहते थे कि दूध वाला अपनी दूध की बाल्टियां और सब्जी वाला अपनी टोकरी साइकिल के कैरियर पर आसानी से रखकर चले. मुंजाल भाई अब एक ऐसी साइकिल बनाने को तैयार थे, जो 100 परसेंट हीरो मेड साइकिल थी. हालांकि रिम Regent नाम की कंपनी से ली गई थी, जबकि टायर और ट्यूब Dunlop से खरीदे गए थे. बस कुछ घंटों की मेहनत के बाद सारे पुर्जों को एक साथ असेंबल करने के बाद सामने खड़ी थी, काले क्रोम रंग की हीरो साइकिल.

शुरू में मुंजाल भाइयों ने हर महीने 600 साइकिल बनाए, बाद में बैंक से 50,000 का लोन लेकर हीरो ने एक फैक्ट्री खोली, 1975 आते आते हीरो साइकिल भारत की सबसे बड़ी साइकिल बनाने वाली कंपनी बन गई. 1975 में हीरो रोजाना 7500 साइकिल बना रही थी, लेकिन 1986 में एक दिन में 18500 साइकिल बनाकर कंपनी ने अपना नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज करवा लिया. 1986 में हीरो ने एक साल में 22 लाख साइकिलें बनाईं. 1990 आते आते हीरो ने सभी साइकिल कंपनियों को काफी पीछे छोड़ दिया. 

1984 में हीरो ने जापान की टू-व्हीलर बनाने वाली कंपनी होंडा के साथ हाथ मिलाया और हीरो होंडा मोटर्स की शुरुआत की. कंपनी ने अपनी पहली बाइक CD 100 13 अप्रैल 1985 को लॉन्च की, जिसने बाजार में तहलका मचा दिया. 27 साल तक काम करने के बाद 2011 में हीरो और होंडा अलग हो गए. इसके बाद हीरो ने Hero MotoCorp नाम से कंपनी की शुरुआत की, जो बाइक और टू-व्हीलर बनाती है. साइकिल भी इसी कंपनी के तहत बनती है. हीरो की नींव रखने वाले मुंजाल बंधुओं की बात करें तो सबसे बड़े भाई दयानंद मुंजाल ने 2015 में इस दुनिया को अलविदा कह दिया. बाकी तीन भाइयों की एक साल के भीतर ही मौत हो गई. ओमप्रकाश मुंजाल का 13 अगस्त 2015 को, बृजमोहन लाल मुंजाल का 1 नवंबर 2015 को और सत्यानंद मुंजाल का 14 अप्रैल 2016 को निधन हो गया. 


पिता बस कंडक्टर, बेटे ने बनाया गेमिंग इंडस्ट्री में नाम; आज हैं करोड़ों के मालिक

इंस्टाग्राम पर 17 लाख फॉलोवर्स है. जबकि यूट्यूब पर उन्हें 57 लाख लोग फॉलो करते हैं और हाल ही में पीएम मोदी से मुलाकात के लिए भारत के टॉप 7 गेमर्स को आमंत्रित किया गया था.

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Friday, 12 April, 2024
Gamer Fleet

कहते हैं कि अगर टेक्नोलॉजी का सही इस्तेमाल जान लिया जाए तो ये आपकी जिंदगी संवारने का दम रखती है. इसी टेक्नोलॉजी के माध्यम से कई युवा आज नई बुलंदियों को हासिल कर रहे हैं. ऐसे ही एक युवा शख्स हैं हल्द्वानी के अंशु बिष्ट (Anshu Bisht), जिन्होंने तमाम मुश्किलों को पार करते हुए ना सिर्फ गेमिंग को फुलटाइम करियर की तरह अपनाया बल्कि आज वह भारत की गेमिंग इंडस्ट्री में एक बडा नाम हैं. गेमिंग को करियर की तरह अपनाकर सफलता हासिल करने वाले अंशु को गेमिंग की दुनिया में लोग गेमरफ्लीट (GamerFleet) के नाम से भी जानते हैं. गेमर होने के साथ ही अंशु कंटेन्ट क्रिएटर और लाइव स्ट्रीमर भी हैं. आइए आपको बताते हैं अंशु की अनसुनी कहानी

Jio ने बदली दुनिया 

आज लाखों फॉलोवर्स के साथ आगे बढ़ते जा रहे अंशु के पास महज कुछ साल पहले एक गेमिंग सेटअप खरीदने तक के पैसे नहीं थे. उनका गेमिंग का यह सफर तब शुरू हुआ जब वह अपनी ग्रैजुएशन के पहले साल में थे. उसी समय लॉन्च हुए Jio ने कम पैसे में असीमित इंटरनेट का प्लान ऑफर करना शुरू कर दिया था और यह अंशु के लिए किसी जैकपॉट से कम नहीं था. उस दौरान अंशु ने उन गेमर्स के वीडियो देखने शुरू कर दिये जो यूट्यूब पर अपने वीडियो डाल कर लोकप्रियता और पैसे दोनों कमा रहे थे. बस यहीं से अंशु के लिए करियर का एक नया रास्ता खुल गया.

ट्यूशन पढ़ाकर बचाए पैसे 

अंशु एक लोअर मिडिल क्लास परिवार से आते हैं और उनके पिता बस कंडक्टर की नौकरी करते हैं. अंशु के अनुसार उनके पिता की मासिक आय 5 से 6 हजार रुपये के बीच थी. परिस्थितियों को देखते हुए अंशु के पिता उनके लिए एक कम्यूटर सेटअप खरीदने के इच्छुक नहीं थे, लेकिन अंशु ने इसके लिए एक अलग रास्ता चुन लिया था. अंशु ने अपने घर पर ही बच्चों को गणित (Math) का ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया और उससे मिलने वाले पैसों को वो अपने लिए गेमिंग कम्यूटर खरीदने के जोड़ने लगे. पूरा एक साल पैसे जोड़ने के बाद आखिरकार अंशु ने एक सेकंड हैंड कम्यूटर खरीद लिया.

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परिवार के दबाव में की नौकरी 

कम्यूटर सेटअप मिल जाने के बाद अब अंशु के लिए संभावनाओं के सभी द्वार खुल चुके थे. अंशु ने गेम खेलते हुए वीडियो रिकॉर्ड कर उन्हें यूट्यूब पर अपलोड करना शुरू कर दिया. बतौर नए गेमर अंशु के लिए यूट्यूब पर सब्सक्राइबर जुटा पाना आसान नहीं था, हालांकि अंशु इस दिशा में लगातार डटे रहे और बेहतर गेमिंग वीडियो अपलोड करते रहे. कुछ समय के बाद अंशु ने अपने चैनल के जरिये थोड़ी कमाई भी करनी शुरू कर दी जो उनके वीडियो पर आए व्यूज पर निर्भर करती थी. यूट्यूब के जरिये कमाई होने के बावजूद अंशु के परिवारजन उनकी इस करियर चॉइस को लेकर संतुष्ट नहीं थे. इस बीच परिवार के दबाव के चलते उन्हें दिल्ली जाकर एक नौकरी भी करनी पड़ी.

Covid लॉकडाउन ने बदले हालात 

नौकरी करते हुए गेमिंग कर पाना अंशु के लिए कठिन साबित हो रहा था. कोरोना महामारी के चलते लगे पहले लॉकडाउन के दौरान अंशु अपने घर हल्द्वानी वापस आ गए और तब उन्होंने वापस से गेमिंग को अधिक समय देना शुरू कर दिया, जिससे उन्हें चैनल पर व्यूवर्स की संख्या भी बढ़ने लगी. इस बीच अंशु ने अपनी नौकरी छोड़ दी और गेमिंग को फुलटाइम अपना लिया. अंशु बीते 7 साल से लगातार गेमिंग कर रहे हैं और यूट्यूब व्यूज के साथ ही उनके चैनल पर मेम्बरशिप के जरिये उन्हें अच्छी कमाई भी हो रही है. 

पीएम मोदी से कर चुके हैं मुलाकात

अंशु बिष्ट के इंस्टाग्राम पर 17 लाख फॉलोवर्स है. जबकि यूट्यूब पर उन्हें 57 लाख लोग फॉलो करते हैं. अंशु ज्यादातर Minecraft गेम्स पर वीडियो बनाते हैं. इस से पहले पीएम मोदी की उपस्थिति में अंशु बिष्ट नेशनल क्रिएटर्स अवार्ड में भी शिरकत कर चुके हैं और हाल ही में पीएम मोदी से मुलाकात के लिए भारत के टॉप 7 गेमर्स को आमंत्रित किया गया था. इन में उत्तराखंड के प्रसिद्ध गेमर क्रिएटर अंशु बिष्ट यानि गेमर फ्लीट (GamerFleet) भी शामिल थे. 

अंशु बिष्ट की नेटवर्थ

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक अंशु बिष्ट की अनुमानित कुल संपत्ति 1 मिलियन डॉलर है. गेमरफ्लीट (GamerFleet) अपने चार चैनलों पर YouTube एड से अपना अधिकांश पैसा कमाता है. इसलिए, वह अपनी आय के सभी स्रोतों से सालाना 1 मिलियन डॉलर तक कमाते हैं, अंशु को बाइक और कार पसंद हैं. उनके पास पोर्श कैरेरा 911 (Porche 911 Carrera Super Sports, एक टाटा हैरियर (Tata Harrier), महिंद्रा थार (Mahindra Thar) और एक केटीएम ड्यूक 350 (KTM Duke 350) बाइक है.


किसान के बेटे ने खड़ी कर दी करोड़ों की कंपनी, बिजनेस से नहीं था नाता, जानें सक्सेस स्टोरी

खास बात है कि इस कारोबारी को कुछ भी विरासत में नहीं मिला. साधारण से किसान परिवार जन्मे इस कारोबारी की सफलता और संघर्ष की कहानी लाखों युवाओं को प्रेरणा देने वाली है.

Last Modified:
Saturday, 06 April, 2024
PP Reddy

आपने आज तक बहुत सफलता की कहानी सुनी होंगी. लेकिन आज हम आपको एक ऐसे सख्स की सक्सेस स्टोरी बताएंगे, जिसके बारे में जानकर आप यकीनन अपने होश खो बैठेंगे. जी हां, हम बात कर रहे है, पी.पी रेड्डी की, जिन्होंने किसान परिवार से होते हुए अपने बलबूते पर भी करोड़ो की कंपनी को खड़ा कर दिया. लेकिन आपको लगता होगा कि पीपी रेड्डी को उनका कारोबार विरासत में मिला है, तो आप बिल्कुल गलत हैं. साधारण किसान परिवार में जन्में रेड्डी अपने माता-पिता के वह पांचवीं संतान हैं.

दूर-दूर तक नहीं था बिजनेस से नाता

पीपी रेड्डी से पहले उनके परिवार में किसी ने बिजनेस नहीं किया था. साल 1989 में रेड्डी ने अपने बूते एक बड़ी छलांग लगाई. सिर्फ दो कर्मचारियों के साथ उन्‍होंने मेघा इंजीनियरिंग एंटरप्राइजेज की नींव रखी. पिछले 34 साल में उनकी कंपनी ने आसमान की ऊंचाइयां छुई हैं. इसके कारण पीपी रेड्डी अब देश के सबसे अमीर बिजनेस टाइकून में गिने जाते हैं. 13 फरवरी, 2024 तक मेघा इंजीनियरिंग एंड इंफ्रास्ट्रक्चर (MEIL) की मार्केट वैल्‍यू 67,500 करोड़ रुपये थी. इसने 2023 में 22.1% ग्रोथ दर्ज की.

इंजीनियरिंग ग्रेजुएट हैं रेड्डी

पीपी रेड्डी का जन्म 1953 में तेलंगाना के एक किसान परिवार में हुआ था. उन्होंने 1976 में इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री प्राप्त की. इसके बाद उन्‍होंने एक कंस्‍ट्रक्‍शन कंपनी में काम करना शुरू कर दिया. 1989 में उन्होंने एमईआईएल की स्थापना की. कंपनी ने तब से तेजी से विकास किया है. अब यह भारत की सबसे बड़ी इंजीनियरिंग और निर्माण कंपनियों में से एक बन गई है.

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कहां से की शुरुआत?

छोटे पाइपों से शुरुआत करके, कंपनी भारत की सबसे बड़ी लिफ्ट सिंचाई परियोजना बनाने के लिए आगे बढ़ी. कंपनी, जो मूल रूप से छोटे पाइप बनाती थी, सड़कों, बांधों और प्राकृतिक गैस वितरण नेटवर्क के साथ-साथ लिफ्ट सिंचाई परियोजनाओं के निर्माण के लिए आगे बढ़ी. तब से कंपनी ने खुद को बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के निर्माण में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में स्थापित कर लिया है. पीपी रेड्डी की कंपनी ने भारत की सबसे बड़ी लिफ्ट सिंचाई परियोजना का निर्माण किया है. 

आलीशान हवेली में रहते हैं रेड्डी

पीपी रेड्डी की कंपनी ने तेलंगाना में कलेश्वरम लिफ्ट सिंचाई परियोजना को सफलतापूर्वक पूरा किया. इसका मूल्य 14 अरब डॉलर है. 'नदी का विस्तार' के रूप में जानी जाने वाली यह परियोजना गोदावरी नदी पर स्थित है. इससे 13 जिलों में 18.26 लाख एकड़ भूमि की सिंचाई होती है. रेड्डी हैदराबाद में डायमंड हाउस नाम की एक आलीशान हवेली में रहते हैं. इसमें ऐशो आराम की हर वस्‍तु है. उनके पास एक निजी गोल्फ कोर्स भी है.
 


भारत के अरबपतियों में शामिल हुआ नया नाम, क्या आपको पता है कौन हैं Lalit Khaitan?

कंपनी के शेयरों में 50% की वृद्धि देखने को मिली है जिससे ललित खेतान का नाम भी भारतीय अरबपतियों में शामिल हो गया है.

बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो by
Published - Thursday, 14 December, 2023
Last Modified:
Thursday, 14 December, 2023
Lalit khaitan

पिछले कुछ सालों के दौरान भारत में कारोबारों और कारिबारियों को वह महत्ता मिली है जिसकी उन्हें अकांक्षा थी. शायद यही वजह है कि भारत में एक के बाद एक कई शानदार स्टार्टअप्स सामने आ रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ कारोबारी भी नई-नई उपलब्धियों को अपने नाम कर रहे हैं. इस सबके साथ ही भारत के अरबपतियों की संख्या भी बढ़ रही है और अब इस लिस्ट में एक नया नाम जुड़ चुका है. 

कौन हैं Lalit Khaitan?
ये नया नाम ललित खेतान (Lalit Khaitan) का है और 80 साल की उम्र में ललित ने अपनी जगह भारत के जाने-माने अरबपतियों के बीच बना ली है. फोर्ब्स (Forbes) के अनुसार ललित खेतान, दिल्ली स्थित कंपनी रेडिको खेतान (Radico Khaitan) के चेयरमैन हैं और यह कंपनी पब्लिक लिस्टेड भी है. इस साल इस कंपनी के शेयरों में लगभग 50% की वृद्धि देखने को मिली है जिसकी बदौलत ललित खेतान का नाम भी भारत के चुनिंदा अरबपतियों की लिस्ट में शामिल हो गया है और इस लिस्ट में वह भारत के सबसे नए अरबपति हैं. 

क्या करती है Radico Khaitan?
रेडिको खेतान (Radico Khaitan) में ललित की हिस्सेदारी 40% की है और इस वक्त उनकी नेटवर्थ लगभग 1 बिलियन डॉलर्स है. रेडिको खेतान, मैजिक मोमेंट्स (Magic Moments Vodka), 8 PM व्हिस्की (8PM Whiskey), ओल्ड एडमिरल ब्रैंडी (Old Admiral Brandy) और रामपुर सिंगल माल्ट (Rampur Single Malt) जैसे अल्कोहल पेय पदार्थ बनाती है. आपने रामपुर डिस्टिलरी एवं केमिकल (Rampur Distillery & Chemical Company) का नाम तो जरूर सुना होगा और रेडिको खेतान कोई और कंपनी नहीं बल्कि यही रामपुर डिस्टिलरी एवं केमिकल कंपनी है. 

GN खेतान से ललित खेतान तक
ललित खेतान के पिता का नाम GN खेतान था और उन्होंने 1970 की शुरुआत में इस कंपनी को खरीदा था. उस वक्त यह कंपनी, यानी रामपुर डिस्टिलरी, नुक्सान में थी और 1995 में इस कंपनी की बागडोर पिता से बेटे यानी ललित खेतान के हाथ में आ गई. GN खेतान के चार बेटे थे और जब सभी में संपत्ति बांटी गई तो ये कंपनी ललित खेतान के हिस्से आ गई. ललित खेतान ने एक इंटरव्यू के दौरान बताया था कि 9वीं कक्षा से ही वह लिक्वर यानी शराब के कारोबार में आना चाहते थे. 
 

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मुज्जफरनगर के अजीत का सिलीकॉन वैली में बजता है डंका, ऐसे बनाई अपनी अलग पहचान

जिन दो कंपनियों के बारे में हम बात कर रहे हैं, उनमें से एक ने 2016 में NASDAQ पर सबसे शानदार टेक IPO निकाला था.

बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो by
Published - Monday, 27 November, 2023
Last Modified:
Monday, 27 November, 2023
Ajeet Singh

सफलता की कहानियां अक्सर हमें जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं. आज की सफलता की कहानी कई मायनों में बहुत आम भी है और खास भी. ये कहानी एक ऐसे शख्स की है जिनका जन्म पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में किसानी करने वाले एक परिवार में हुआ. उन्होंने IIT से शिक्षा प्राप्त की और आज अमेरिका की जानी मानी सिलिकॉन वैली में उनकी अपनी दो यूनिकॉर्न कंपनियां हैं और इनकी कीमत बिलियन डॉलर्स में है. ये कहानी अजीत सिंह (Ajeet SIngh) की है.

Ajeet Singh की दो कंपनियां
अजीत सिंह (Ajeet Singh) की जिन दो कंपनियों के बारे में हम बात कर रहे हैं, उनमें से एक ने 2016 में NASDAQ पर सबसे शानदार टेक IPO (इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग) निकाला था. अजीत सिंह की दो कंपनियों में से एक का नाम Nutanix है और यह एक क्लाउड कंप्यूटिंग (Cloud Computing) कंपनी है. Nutanix की कीमत आज 6 बिलियन डॉलर्स से ज्यादा बताई जाती है. इसके साथ ही अजीत सिंह की दूसरी कंपनी का नाम थॉटस्पॉट (ThoughtSpot) है और यह एक टेक कंपनी है जो बिजनेस इंटेलिजेंस से संबंधित सुविधाएं प्रदान करती है और इसकी कीमत 4 बिलियन डॉलर्स से ज्यादा बताई जाती है. अगर इन दोनों ही कंपनियों की कीमतों को जोड़ दें तो हम यह कह सकते हैं कि अजीत सिंह के पास आज 10 बिलियन डॉलर्स की कीमत वाली दो टेक कंपनियां मौजूद हैं. 

पिता का प्रभाव और शिक्षा
हाल ही में एक पॉडकास्ट में अजीत सिंह ने इन कंपनियों की शुरुआत करने से पहले के अपने दिनों के बारे में बातचीत की है. वह कहते हैं कि उन्होंने कभी यह नहीं सोचा था कि वो कारोबार की दुनिया में कदम रखेंगे. पॉडकास्ट के दौरान अजीत ने कहा ‘मेरा संबंध किसानी करने वाले एक परिवार से है और मेरे दादा-दादी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुज्जफरनगर में किसान थे. मेरे पिता जी कृषि विभाग में रिसर्च वैज्ञानिक थे और वह एक केमिस्ट भी थे. मेरी परवरिश उत्तर प्रदेश में ही हुई है’. इसके साथ ही अजीत ने यह भी बताया कि वह अपने पिता कि लैब में आते-जाते रहते थे और लैब का उनपर काफी प्रभाव पड़ा. आपको बता दें IIT-कानपुर (IIT Kanpur) में अजीत सिंह केमिस्ट्री के टॉपर थे. IIT से अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने कोलकाता से अपनी MBA की पढ़ाई भी पूरी की. 

शुरू किया अपना स्टार्टअप
अपनी MBA पूरी करने के बाद अजीत सिंह ने मैनेजमेंट कंसल्टिंग के बारे में विचार किया लेकिन उन्हें यह पसंद नहीं आया. इसके बाद अजीत सिंह ने हनीवेल (Honeywell) नामक कंपनी को जॉइन कर लिया लेकिन प्रोडक्ट तैयार किये जाने के बाद वह बहुत बड़ी कंपनी में नहीं रहना चाहते थे. उन्होंने खुद बताया है कि अजीत को टेक्नोलॉजी के करीब रहना ज्यादा अच्छा लगता था और वह टेक्नोलॉजी के करीब रहना चाहते थे. इसीलिए उन्होंने ओरेकल (Oracle) में काम करना शुरू किया और उसके बाद उन्होंने अपना स्टार्टअप शुरू कर लिया क्योंकि वह अन्य स्टार्टअप्स के लिए काम नहीं करना चाहते थे.
 

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कौन हैं Poonam Gupta? जिन्होंने पेपर की रद्दी से खड़ी कर दी 800 करोड़ की कंपनी!

वह इंटरव्यू देने जातीं तो पेपर की रद्दी उनका ध्यान अपनी तरफ खींचती और कुछ समय बाद वह इस पर रिसर्च करने लगीं.

बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो by
Published - Monday, 06 November, 2023
Last Modified:
Monday, 06 November, 2023
Poonam gupta pg paper

भारत में पिछले कुछ समय के दौरान ही स्टार्टअप्स की संख्या काफी तेजी से बढ़ी हैं और इन स्टार्टअप्स से संबंधित लोगों की सफलता की कहानियां भी अब हमें आमतौर पर सुनने को मिल जाती हैं. पेपर की रद्दी देखकर हमें अक्सर कबाड़ वाले भैया ही याद आते हैं, लेकिन अगर हम आपसे कहें कि पेपर की रद्दी से 800 करोड़ की कंपनी भी खड़ी की जा सकती है, तो क्या आपको विश्वास होगा? आज की कहानी पूनम गुप्ता (Poonam Gupta) की है जिन्होंने पेपर की रद्दी से 800 करोड़ की कंपनी खड़ी की है.

पूनम ने शुरू किया ये बिजनेस
ज्यादातर लोग अपनी उच्च शिक्षा पूरी करने के बाद विदेशों में नौकरी ढूंढने का प्रयास करते हैं और पूनम गुप्ता ने भी यही किया. अपनी पढ़ाई पूरी करके वह स्कॉटलैंड चली गयीं, लेकिन वहां नौकरी तलाशने में उन्हें काफी ज्यादा वक्त लग गया और वह परेशान होने लगीं. लेकिन जब भी वह इंटरव्यू देने जातीं तो पेपर की रद्दी का ढेर उनका ध्यान अपनी तरफ खींचता और कुछ समय बाद वह पेपर की रद्दी पर रिसर्च करने लगीं. इसके बाद उन्हें पेपर रीसाइक्लिंग (Paper Recycling) के बारे में पता चला और उन्होंने पेपर रीसाइक्लिंग का बिजनेस शुरू करने का विचार किया. 

मात्र एक लाख रुपए में शुरू की कंपनी 
आज से लगभग 20 साल पहले पूनम गुप्ता ने यह बिजनेस मात्र 1 लाख रुपए की लागत से शुरू किया था और आज इसे पीजी पेपर (PG Paper) के नाम से जाना जाता है. 20 सालों पहले मात्र 1 लाख रुपए की लागत से शुरू की गई ये कंपनी आज 800 करोड़ से ज्यादा की कंपनी बन चुकी है. पूनम गुप्ता शादी के बाद ब्रिटेन गईं थीं और उसके बाद उन्होंने वहीँ नौकरी की तलाश शुरू कर दी थी. पूनम के पास ब्रिटेन में काम करने का कोई अनुभव नहीं था और इसीलिए कोई भी कंपनी उन्हें नौकरी देने के लिए तैयार नहीं थी और इसके बाद स्कॉटलैंड सरकार के प्लान के तहत पूनम गुप्ता को 1 लाख रुपयों का फंड मिला था और इसी फंड की मदद से पूनम गुप्ता (Poonam Gupta) ने अपने बिजनेस की शुरुआत की थी. 

पूनम गुप्ता की शिक्षा
पूनम गुप्ता ने दिल्ली के लेडी श्री राम कॉलेज से इकॉनोमिक ऑनर्स की शिक्षा प्राप्त की है और इसके बाद उन्होंने MBA भी किया है. साल 2002 में पूनम गुप्ता की शादी पुनीत गुप्ता से हुई थी. फिलहाल पूनम गुप्ता स्कॉटलैंड में ही रहती हैं और पीजी पेपर (PG Paper) की शुरुआत पूनम गुप्ता ने साल 2003 में की थी और फिलहाल इस कंपनी की कीमत 800 करोड़ से ज्यादा बताई जाती है.
 

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2022 में 16 साल की लड़की ने शुरू की ये AI कंपनी, आज 100 करोड़ से ज्यादा है कीमत!

‘मायामी टेक वीक (Miami Tech Week)’ में 16 साल की प्रांजलि अवस्थी के AI स्टार्टअप Delv.AI ने काफी तारीफें बटोरी हैं.

बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो by
Published - Tuesday, 10 October, 2023
Last Modified:
Tuesday, 10 October, 2023
Pranjali Awasthi

कम से कम उम्र में एक सफल कारोबारी बनकर ढेर सारे पैसे कमाने का सपना हम सभी ने कभी न कभी जरूर देखा होगा. लेकिन बहुत कम बार ही ऐसा होता है जब किसी का यह सपना सच होता है. दूसरी तरफ टेक्नोलॉजी की दुनिया है जो बहुत ही तेज रफ्तार से बदल रही है. 16 साल की प्रांजलि अवस्थी के लिए लगातार तेजी से बढ़ते टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में अपना AI स्टार्टअप लेकर आगे आना आसान तो बिलकुल नहीं था. 

पिता से मिली प्रेरणा
हाल ही में आयोजित हुए ‘मायामी टेक वीक (Miami Tech Week)’ में 16 साल की प्रांजलि अवस्थी के AI स्टार्टअप Delv.AI ने काफी तारीफें बटोरी हैं. प्रांजलि ने अपने स्टार्टअप के बारे में बताते हुए जानकारी दी कि उन्होंने इसकी शुरुआत जनवरी 2022 में की थी और उसके बाद उन्हें फंडिंग के रूप में 4 लाख 50 हजार डॉलर्स यानी लगभग 3.7 करोड़ रुपए प्राप्त हुए थे. प्रांजलि ने अपनी उद्यमी यात्रा के लिए अपने पिता को ही प्रेरणा का प्रमुख स्त्रोत बताया है. Delv.AI. के लिंक्डइन (LinkedIn) प्रोफाइल पर 10 प्रोफेशनल्स की एक टीम के बारे में भी जिक्र किया गया है. आइये Delv.AI और प्रांजलि की यात्रा के बारे में जानते हैं. 

प्रांजलि की यात्रा
प्रांजलि को बचपन से ही टेक्नोलॉजी में काफी रूचि थी और इस रूचि की वजह थे उनके पिता जो खुद एक इंजिनियर हैं और वह स्कूलों में कंप्यूटर साइंस की शिक्षा को बढ़ावा देना चाहते हैं. पिता द्वारा टेक्नोलॉजी को बढ़ावा देने की बदौलत प्रांजलि ने अपनी कोडिंग की यात्रा सिर्फ 7 साल की उम्र में शुरू की और अपनी आगे की यात्रा के लिए तैयारी शुरू कर दी. जब प्रांजलि सिर्फ 11 साल की थीं, तब उनके परिवार को नए मौकों की तलाश में अमेरिका के फ्लोरिडा (Florida) शहर जाना पड़ा. फ्लोरिडा में प्रांजलि को कंप्यूटर साइंस और प्रतियोगी गणित की क्लासेज में पढने का मौका मिला. 13 साल की उम्र में प्रांजलि को फ्लोरिडा अंतर्राष्ट्रीय यूनिवर्सिटी की रिसर्च लैब्स में इंटर्नशिप का मौका मिला और यहीं से प्रांजलि ने उद्यम की दिशा में कदम बढ़ाने शुरू कर दिए. 

क्या करता है Delv.AI?
Delv.AI के काम के बारे में बात करते हुए प्रांजलि अवस्थी बताती हैं कि इस प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल रिसर्चर्स द्वारा किया जा सकता है. Delv.AI की मदद से रिसर्चर्स ऑनलाइन मौजूद कंटेंट में से अपनी जरूरत का कंटेंट आसानी से ढूंढकर निकाल सकते हैं. ऑन-डेक (On Deck) और विलेज ग्लोबल (Village Global) जैसे प्लेटफॉर्म्स से प्रांजलि के इस स्टार्टअप को लगभग 3.7 करोड़ रुपयों की फंडिंग प्राप्त हो चुकी है और फिलहाल Delv.AI की कीमत 12 मिलियन डॉलर्स यानी लगभग 100 करोड़ रुपए बतायी जा रही है. 
 

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कौन हैं Tesla के नए CFO Vaibhav Taneja? DU से है संबध!

हाल ही में Zachary ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया जिसके बाद फैसला लिया गया कि वैभव तनेजा को CFO पद का कार्यभार सौंपा जाएगा.

Last Modified:
Tuesday, 08 August, 2023
Vaibhav Taneja and Elon Musk

वैभव तनेजा (Vaibhav Taneja), Elon Musk की इलेक्ट्रिक कार निर्माता कंपनी टेस्ला (Tesla) के CAO यानी चीफ अकाउंटिंग ऑफिसर हैं. वैभव इस वक्त कंपनी के CAO के तौर पर काम कर रहे हैं लेकिन अब वह कंपनी के CFO यानी चीफ फाइनेंशियल ऑफिसर का कार्यभार भी संभालेंगे. 

Master Of Coin
पिछले चार सालों से Zachary Kirkhorn टेस्ला के CFO के पद पर काम कर रहे थे. लेकिन हाल ही में Zachary ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया जिसके बाद यह फैसला लिया गया कि वैभव तनेजा को CFO पद का कार्यभार सौंपा जाएगा. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो Zachary Kirkhorn को टेस्ला के ‘Master Of Coin’ की उपाधी भी दी गई थी. आपको बता दें कि पुराने समय में शाही खजाने का ध्यान रखने वाले को ‘Master Of Coin’ की उपाधि दी जाती थी. 

टेस्ला से पहले वैभव
वैभव तनेजा ने दिल्ली विश्वविद्यालय (Delhi University) से कॉमर्स के क्षेत्र में अपनी ग्रेजुएशन की डिग्री पूरी की है. टेस्ला के साथ वैभव साल 2017 से जुड़े हुए हैं. वैभव ने साल 2017 में SolarCity नाम की सोलर एनर्जी वाली एक कंपनी से इस्तीफा दिया था जिसके बाद उन्होंने टेस्ला के साथ अपना करियर की शुरुआत की थी. SolarCity में वह शुरूआती तौर पर वेज प्रेजिडेंट के तौर पर कम कर रहे थे लेकिन बाद में उनकी भूमिका कॉर्पोरेट कंट्रोलर में बदल गई थी. 

Zachary का इस्तीफा
वैभव को दोनों ही कंपनियों की अकाउंटिंग टीमों में अहम भूमिका निभाने के लिए जाना जाता है. SolarCity से पहले वैभव, PricewaterhouseCoopers नामक एक कंपनी में काम किया करते थे. वैभव ने 17 सालों तक इस कंपनी के लिए काम किया था और वह साल 2016 तक इसी कंपनी के लिए काम कर रहे थे. वैभव के साथ-साथ Zachary kirkoff का नाम भी इस वक्त चर्चा का विषय बना हुआ है. ऐसे में यह जान लेना काफी आवश्यक है कि टेस्ला के ‘Master Of Coin’ कहे जाने वाले ज़चारी ने अपने पद से इस्तीफा क्यों दिया? फिलहाल Zachary के इस्तीफे को लेकर टेस्ला की तरफ से कुछ भी नहीं कहा गया है. लेकिन माना जा रहा है कि जब तक वैभव CFO का कार्यभार नहीं संभाल लेते तब तक यानी इस साल के अंत तक Zachary टेस्ला के साथ ही काम करेंगे.
 

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कलेक्टर ऐसा भाई जैसा: जनता के विश्वास को यूं मजबूत कर रहे नरेंद्र कुमार सूर्यवंशी

कलेक्टर ने पिछले करीब 14 महीनों में रतलाम जिले की सीमा में 500 करोड़ रुपए से ज्यादा की भूमि को भू-माफिया से चंगुल से आजाद करवाया है.

नीरज नैयर by
Published - Tuesday, 11 July, 2023
Last Modified:
Tuesday, 11 July, 2023
Ratlam Collector

कलेक्टर कौन होता है? आप कहेंगे जिले का मुखिया. वो मुखिया जिसकी आवाज पर पूरा सिस्टम कांप उठता है, वो मुखिया जिसके एक इशारे पर हवा का रुख मुड़ सकता है और वो मुखिया जिसकी ठसक किसी राजा से कम नहीं होती....लेकिन नरेंद्र कुमार सूर्यवंशी जैसे आईएएस अधिकारी कलेक्टर शब्द की इस अघोषित परिभाषा को पूरी शिद्दत के साथ बदलने में लगे हैं. वह न केवल कलेक्टर और आम जनता के बीच के फासले को कम कर रहे हैं. बल्कि जनता को यह विश्वास दिला रहे हैं कि कलेक्टर उनकी सेवा के लिए कुर्सी पर बैठाया गया एक अधिकारी है, न कि कोई राजा. 

यही अंदाज बनाता है अलग
नरेंद्र कुमार सूर्यवंशी उन अधिकारियों में शुमार हैं, जिन्होंने हमेशा खुद को जिले का मुखिया समझने के बजाए जनता का सेवक समझा और जनता के हाथों को मजबूत बनाने के लिए काम किया. सूर्यवंशी के हाथों में इन दिनों मध्य प्रदेश के रतलाम जिले की कमान है और उनके कामकाज की चर्चा पूरे प्रदेश में होती है. कभी उन्हें बेजुबानों के लिए पानी की व्यवस्था करते हुए देखा जा सकता है, तो कभी ग्रामीणों के साथ जमीन पर बैठकर बातचीत करते हुए. सूर्यवंशी का यही अंदाज उन्हें दूसरों से अलग बनाता है और यही वजह है कि सिस्टम से नाराज लोग भी उनकी बातों को अनसुना नहीं कर पाते. 

सादगी के लिए लोकप्रिय
करीब एक महीने पहले रतलाम में जमीन के पट्टे को लेकर प्रदर्शन हुआ. लोगों की भारी भीड़ जुटी. बतौर कलेक्टर नरेंद्र कुमार सूर्यवंशी भी बातचीत के लिए पहुंचे और यहां उनका जो रूप देखने को मिला, उसने जनता और प्रशासन के बीच विश्वास की डोर को और मजबूत करने का काम किया. सूर्यवंशी प्रदर्शनकारियों के बीच जाकर बैठे, खुद को उनका भाई बताया और यहां तक कह आए कि कलेक्टर पर नहीं तो अपने भाई पर भरोसा रखो. जनता से जुड़ाव का उनका ये अंदाज जिसने भी देखा, तारीफ करे बिना नहीं रह सका. रतलाम से पहले नरेंद्र कुमार सूर्यवंशी महाकाल की नगरी उज्जैन में ADM और प्रशासक महाकाल मंदिर थे, और वहां भी वह अपनी सादगी के लिए लोकप्रिय थे. 

500 करोड़ की भूमि छुड़ाई
सूर्यवंशी मानते हैं कि रुतबे का रुबाब आम जनता नहीं बल्कि अपराधियों पर दिखाया जाता है. और वह बाकायदा ऐसा करते भी रहे हैं. पिछले करीब 14 महीनों में उन्होंने रतलाम जिले की सीमा में 500 करोड़ रुपए से ज्यादा की भूमि को भू-माफिया से चंगुल से आजाद करवाया है. इस कार्रवाई से उन दर्जनों लोगों को भी बड़ी राहत मिली है, जो अपने हक की जमीन के लिए सालों से संघर्ष कर रहे थे.  भू-माफिया के कब्जे से मुक्त कराई गई भूमि में निजी और सरकारी दोनों जमीन शामिल हैं. रतलाम ग्रामीण में 2.25 करोड़, रतलाम शहर में 4.70, जावरा में 2.70 और सैलाना में 0.20 करोड़, इस तरह कुल 9.85 करोड़ मूल्य की निजी भूमि मुक्त कराई गई है. 

सुनने वाला कोई तो है
वहीं, सरकारी भूमि की बात करें, तो रतलाम ग्रामीण में 0.2 करोड़, रतलाम शहर में 404.86, जावरा में 22.20, आलोट में 18.87, सैलाना में 2 करोड़, इस तरह कुल 448.13 करोड़ रुपए की अनुमानित बाजार कीमत वाली सरकारी भूमि अपराधियों के चंगुल से आजाद करवाई गई है. इसी तरह, 3 करोड़ कीमत के निजी मकान और 57.51 करोड़ के निजी प्लाट पर कब्जा जमाए बैठे असामाजिक तत्वों को भी कलेक्टर सूर्यवंशी ने 9,2,11 होने के लिए मजबूर कर दिया है. इस कार्रवाई ने जहां अपराधियों के जहन में सूर्यवंशी की छवि सख्त, कठोर और निडर कलेक्टर की बनाई. वहीं, आम जनता को यह विश्वास हो गया कि जिला कलेक्ट्रेट में उनकी सुनने वाला भी कोई बैठा है. 
 


सुपरस्टार पति से ज्यादा रईस हैं ये महिला, 70,000 करोड़ की हैं मालकिन!

इनके पति एक सुपरस्टार हैं लेकिन शायद आपको यह जानकार हैरानी होगी कि पैसों के मामले में वह अपने पति से कहीं ज्यादा आगे हैं.

Last Modified:
Thursday, 22 June, 2023
Couple

हमने महिला उद्यमियों की सफलता की बहुत सी कहानियां सुनी हैं और बहुत सी कहानियां ऐसी भी सुनी हैं जिनमें महिलाएं अपने पार्टनर से कहीं ज्यादा रईस होती हैं. आज भी हम ऐसी ही एक महिला के बारे में जानने वाले हैं, जिनके पति खुद सुपरस्टार हैं लेकिन फिर भी वह अपने पति से कहीं ज्यादा रईस हैं. हम बात कर रहे हैं उपासना कोमिनेनी (Upasana Kamineni) के बारे में. 

राम चरण के घर लक्ष्मी ने लिया जन्म
उपासना कोमिनेनी, दक्षिण भारतीय सिनेमा के सुपरस्टार राम चरण (Ram Charan) की पत्नी हैं. हाल ही में राम चरण और उपासना कोमिनेनी के जीवन में वह पल आया है जिसका इंतजार वह काफी लंबे समय से कर रहे थे. दरअसल हाल ही में उपासना कोमिनेनी और राम चरण एक बेटी के माता-पिता बने हैं और इस बात से उनका पूरा परिवार बहुत ज्यादा खुश है. परिवार की खुशी का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि बेटी जा जन्म होने के बाद उन्होंने पूरे अस्पताल को गुलाबी रंग की लाइटों से सजा दिया था. 

कौन हैं उपासना कोमिनेनी?
राम चरण और उपासना कोमिनेनी की शादी साल 2012 में हुई थी और राम चरण मेगास्टार चिरंजीवी के बेटे हैं. उपासना कोमिनेनी और राम चरण की नेटवर्थ लगभग 2500 करोड़ रुपए है. उपासना कोमिनेनी एक सफल बिजनेसवुमन हैं और उनकी अपनी नेटवर्थ 1130 करोड़ रुपए है जबकि उनके पति यानी राम चरण की नेटवर्थ 1,370 करोड़ रुपए है. आपकी जानकारी के लिए बता दें की उपासना कोमिनेनी का संबंध एक बहुत बड़ी कारोबारी फैमिली से है. 

Apollo Hospitals और उपासना का रिश्ता
उपासना कोमिनेनी की माता के पिता का नाम प्रताप सी रेड्डी है और वह Apollo Hospitals के चेयरमैन हैं. प्रताप रेड्डी की नेटवर्थ 21,000 करोड़ रुपए है और भारत के 100 अरबपतियों की लिस्ट में भी शामिल हैं. आपको बता दें कि Apollo Hospitals की मार्केट कैपिटल ल्लाग्भाग 70,000 करोड़ रुपए है. उपासना कोमिनेनी Apollo Hospitals की वाईस प्रेजिडेंट हैं और उनकी मां शोभना, Apollo Hospitals की एग्जीक्यूटिव वाईस-चेयरपर्सन हैं. 

उपासना कोमिनेनी की शिक्षा
उपासना ने ‘इंटरनेशनल बिजनेस मार्केटिंग और मैनेजमेंट’ के क्षेत्र में अपनी ग्रेजुएशन की डिग्री प्राप्त की है और पढ़ाई पूरी करने के बाद ही उन्होंने फैमिली बिजनेस जॉइन कर लिया था. Apollo Hospitals में काफी महत्त्वपूर्ण पद पर कार्यरत होने के अलवा वह एक मैगजिन की एडिटर-इन-चीफ भी हैं जिसका नाम ‘B Positive’ है. इसके अलावा उपासना कोमिनेनी TPA की मैनेजिंग डायरेक्टर भी हैं. यह कंपनी एक फैमिली हेल्थ प्लान इंश्योरेंस कंपनी है. उपासना के पिता का नाम अनिल कोमिनेनी है और वह KEI ग्रुप के फाउंडर हैं. 
 

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IIT छोड़कर किया B.SC करने का फैसला, सिर्फ 150 दिनों में कमाए 286 करोड़!

ये कहानी राहुल राय की है, जिन्होंने IIT JEE का एग्जाम क्लियर करके IIT बॉम्बे में एडमिशन तो ले लिया लेकिन उनका ध्यान कहीं और ही था.

Last Modified:
Monday, 19 June, 2023
Rahul Rai

भारत में IIT (भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान) को सफलता प्रदान करने वाले सबसे सर्वश्रेष्ठ संस्थानों में से एक माना जाता है. हमारे सामने सफलता की ऐसी बहुत सी कहानियां आती हैं जिनमें सफल हो चुका व्यक्ति किसी न किसी तरह IIT से जुड़ा हुआ होता है. लेकिन ऐसी कहानियां भी हैं जिनमें लोग IIT छोड़कर दूसरा रास्ता चुनते हैं और सफलता प्राप्त करते हैं. आज की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. 

IIT Bombay से अमेरिका तक का सफर
ये कहानी राहुल राय की है, जिन्होंने IIT JEE का एग्जाम क्लियर करके IIT बॉम्बे में एडमिशन तो ले लिया लेकिन उनका ध्यान कहीं और ही था. दरअसल राहुल राय को इकोनॉमिक्स यानी अर्थशास्त्र बहुत पसंद था और इसीलिए 2015 में उन्होंने IIT की इंजीनियरिंग की पढ़ाई को बीच में छोड़कर इकोनॉमिक्स के हाथ को थाम लिया. राहुल राय ने अमेरिका के प्रसिद्ध व्हार्टन स्कूल (Wharton School) से इकोनॉमिक्स में B.Sc की शिक्षा प्राप्त की.

बिजनेस की शुरुआत
2019 में उन्होंने अपनी ग्रेजुएशन की शिक्षा पूरी कर ली और उसके बाद अगले एक साल तक उन्होंने अमेरिका में ही रहकर मॉर्गन स्टैनले (Morgan Stanley) के लिए काम किया. साल 2020 में राहुल भारत वापस आए और अपने दो दोस्तों के साथ मिलकर उन्होंने अपने बिजनेस के करियर की शुरुआत कर दी. उनका बिजनेस क्रिप्टो से संबंधित था और उनकी कंपनी एक क्रिप्टो फंड चलाती थी. उन्होंने अपने दोस्तों के साथ मिलकर एक क्रिप्टो हेज फंड बनाया (Crypto Hedge Fund) और इस फंड को बनाकर राहुल, वॉल स्ट्रीट (Wall Street) और मॉर्गन स्टैनले से ली हुई सीख का इस्तेमाल क्रिप्टो के क्षेत्र में करना चाहते थे.

कमाल की रणनीति
इस हेज फंड का नाम गामा पॉइंट कैपिटल (Gamma Point Capital) था और यह कंपनी डिजिटल एसेट्स के साथ-साथ ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी में भी इन्वेस्ट करती थी. राहुल राय और उनके दोस्तों की इन्वेस्टमेंट की रणनीति बिलकुल साफ थी और वह यह थी कि जब भी मार्केट में उछाल आएगा या फिर गिरावट आएगी तो वह इसका फायदा उठाएंगे. राहुल राय की इस रणनीति ने असर दिखाना शुरू किया और जल्द ही यह फंड प्रॉफिट कमाने लगा. 

ऐसा ऑफर कि ठुकरा नहीं पाए
अगले पांच महीनों के अन्दर ही उन्हें एक ऐसा ऑफर मिला जिसे वह ठुकरा नहीं सकते थे. BlockTower Capital ने 286 करोड़ रुपयों की लागत से राहुल राय और उनके दोस्तों के द्वारा शुरू की गई कंपनी, गामा पॉइंट कैपिटल का अधिग्रहण पूरा कर लिया. इस स्टार्टअप को बेचने का फैसला काफी मुश्किल था लेकीन फिर तीनों दोस्तों ने तय किया कि उन्हें इतने पैसे कमाने में सालों लग जाएंगे और इसीलिए उन्होंने इस हेज फंड को बेचने का फैसला किया. 

150 दिनों में 286 करोड़ रुपए
राहुल राय ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर सिर्फ 150 दिनों के अन्दर ही 286 करोड़ रूपए कमा लिए. करोड़पति बनने के बाद राहुल राय, BlockTower Capital में मार्केट न्यूट्रल (Market Neutral) की सह-अध्यक्षता कर रहे हैं. वह एक क्रिप्टो फंड को मैनेज कर रहे हैं जिसकी कीमत लगभग 150 मिलियन डॉलर्स है. 2022 में यह सबसे शानदार प्रदर्शन करने वाला क्रिप्टो हेज फंड था. 
 

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