महाराष्ट्र के लिए समृद्धि हाईवे कई मायनों में महत्वपूर्ण होने जा रहा है। इससे जहां रिमोट क्षेत्रों में इंडस्ट्री पहुंचने जा रही है, वहीं दूसरी ओर सौर उर्जा का भी विकास होने जा रहा है.
मौजूदा समय में देश के इंफ्रास्ट्रक्चर में बड़े काम हो रहे हैं. इसी कड़ी में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे भी प्रदेश में नए हाईवे से लेकर इंफ्रास्ट्रक्चर के कई बड़े प्रोजेक्ट पर लगातार जुटे हुए हैं. महाराष्ट्र में इकोनॉमी से लेकर इंडस्ट्री के लिए क्या हो रहा है इसे लेकर महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे से बिजनेस वर्ल्ड हिंदी के एडिटर अभिषेक मेहरोत्रा, बिजनेस वर्ल्ड के सीनियर एडिटर रूहेल अमीन और बिजनेस वर्ल्ड के कॉरस्पॉडेंट अर्जुन यादव ने विस्तार से बातचीत की. जानिए महाराष्ट्र सीएम ने इस पर क्या जवाब दिया.
आप समृद्धि हाइवे को प्रदेश का गेमचेंजर प्रोजेक्क बता रहे हैं, ये दावा कितना सही है?
मैं आपको इसके बारे में विस्तार से बताऊंगा। मुंबई से लेकर नागपुर तक हम एक हाईवे बना रहे हैं जिसे समृद्धि हाइवे कहा जा रहा है, ये हाइवे लगभग 700 किलोमीटर लंबा है, जिसका 11 जनवरी को पीएम नरेन्द्र मोदी उद्घाटन करने जा रहे हैं. ये बहुत बड़ा प्रोजेक्ट है. मैं इसे महाराष्ट्र का एक गेमचेंजर प्रोजेक्ट मान रहा हूं. ये सिर्फ हमारे लिए ही नहीं बल्कि ये हमारे देश के लिए भी गेमचेंजर होने जा रहा है. अभी इस यात्रा में 18 घंटे का सफर लगता है लेकिन इस हाइवे के बनने के बाद इसमें 7 घंटे तक का समय कम हो जाएगा. हम लोगों ने और डिप्टी सीएम देवेन्द्र फड़नवीस ने नागपुर से शिरडी तक उसमें ट्रेवल किया, जिसमें नागपुर से शिरडी 4 घंटे में पहुंचे. अभी मौजूदा समय में लोग यहां प्राइवेट कार लेकर जाते हैं लेकिन जब ये हाईवे शुरु हो जाएगा तो यहां पब्लिक ट्रांसपोर्ट भी शुरू हो जाएगा, जिससे लोग उसके बाद पब्लिक ट्रांसपोर्ट से उसके जरिए जा सकेंगें. ये देश का सबसे लंबा हाईवे है और इसकी बड़ी विशेषता ये भी है ये पूरी तरह से इकोफ्रेंडली भी है.
इन दिनों इस तरह के हाईवे में सरकार कई ऐसे क्षेत्रों का भी विकास करती है, जिससे इन्हें दिलचस्प भी बनाया जा सके. क्या इससे गुजरने वालों को ऐसा कुछ इंटरेस्टिंग मिल सकेगा ?
इस हाईवे में हंड्रेड स्ट्रक्चर ऐसे हैं, जहां वाइल्ड लाइफ भी है और इस पर 326 करोड़ रुपये स्ट्रक्चर पर खर्च हुए हैं. उस वाइल्ड लाइफ के लिए अंडरपास भी हैं और ओवरपास भी हैं. इस पूरी परियोजना में 1 ओवरपास है, 92 अंडरपास हैं और जो वाइल्ड लाइफ में जानवर हैं, उन्हें पूरी तरह से जंगल का ही फील आएगा. जब लोग उसे क्रास करेंगें तो उनको ऐसा लगेगा कि कोई वे किसी रोड पर या शहर में नहीं जा रहे, जंगल में घूम रहे हैं.
लगभग सभी राज्यों में नए ऊर्जा क्षेत्रों का विकास हो रहा है जिसमें सोलर एनर्जी महत्एवपूर्ण है. आपकी सरकार इस दिशा में क्या कर रही है?
इस समृद्धि हाईवे में कम से कम 500 मेगावैट सोलर एनर्जी जनरेट करने की हमारी प्लानिंग है. फर्स्ट फेज में 138 मेगावॉट सोलर एनर्जी जनरेट करेंगे. हाईवे के बीच में और हाईवे के किनारे में इसे लगाया जाएगा. समृद्धि हाईवे ग्रीन हाईवे है. इसमें 11 लाख बड़े ट्री प्लांटेशन किए गए हैं,और छोटे-बड़े मिलाकर 33 लाख हैं. सरकार का प्लान है कि ये हाईवे पूरी तरह से ग्रीन हाईवे ही हो, इसलिए ग्रीन कॉरिडोर भी बन रहा है ताकि ये इको फ्रेंडली बना रहे।
इस हाईवे के निर्माण से राज्य में किस तरह की इंडस्ट्री को फायदा मिलने की उम्मीद है?
यहां हम लोग आगे ऐसा वैल्यू एडिशन कर रहे हैं कि वहां पर जो 18 नोडल सेंटर हैं, जैसे वहाँ पर कॉटन है, वहाँ पर ऑरेंज है, टूरिज्म है औरंगाबाद में और अमरावती में कॉटन है, नागपुर में ऑरेंज है, तो वहाँ पर टेक्सटाइल इंडस्ट्री होगी, इंडस्ट्रियल हब होगा, लॉजिस्टिक पार्क होगा, और एग्रो इंडस्ट्री होगी, फ़ूड प्रोसेसिंग यूनिट होगी और ये कोल्ड स्टोरेज चेन होगी, टाऊनशिप होगी, इंडस्ट्रियल टाऊनशिप और रेसिडेंशल टाऊनशिप. वहाँ हमने लैंडपूलिंग करने की भी तैयारी की है, जिसके लिए स्थानीय लोग भी तैयार हैं. हम लोगों को डेवलप्ड लैंड देंगे, जिसमें इंफ्रास्ट्रक्चर भी शामिल होगा, इससे वो लोग वहां पर कम से कम 5 लाख से ज्यादा एम्प्लॉयमेंट जनरेट करके देंगे इस रोड पर. इस तरह राज्य के लिए गेमचेंजर हाईवे होगा.
महाराष्ट्र में अन-ईवन रीजनल डेवलपमेंट है, डिस्पैरिटी है, मुंबई कहीं ज्यादा डेवलप है, पुणे डेवलप है लेकिन रिमोट इलाके विकास से वंचित है. ये जो आपका विजन है, इससे इस पर क्या असर पड़ेगा?
पहले क्या होता था कि हमारे राज्य के जो कुछ रिमोट इलाके हैं वहां पर इंडस्ट्री नहीं जाती थी. जिन इलाकों में इंडस्ट्री है जैसे कि मुंबई, पुणे, नासिक, वहां ही बड़ी इंडस्ट्री के लोग जा रहे हैं, पर अब समृद्धि हाईवे बन रहा है तो इससे पूरे राज्य का विकास होगा. इस हाईवे के बनने के बाद अब उन इलाकों में भी तेजी से विकास हो पाएगा जहां अभी तक विकास नहीं हो पाया है. इसके बनने के बाद उन इलाकों तक भी इंडस्ट्री पहुंच पाएगी जहां अभी तक नहीं पहुंच पाई है.
इस हाईवे के बनने के बाद किन-किन इलाकों की कनेक्टिविटी सुधर जाएगी?
इस हाइवे के बनने के बाद मुंबई-नागपुर, नजदीक आ जाएंगे. नागपुर-JNPT, जालना ड्राईपोर्ट नजदीक आएगा, जहां 15 से 16 घंटे लगते हैं। इसके बनने के बाद 6-7 घंटे में पहुंच जाएंगे. ट्रेवल टाइन कम होने से वहां इंडस्ट्री भी जाएगी. नागपुर, बुलढाणा, अमरावती, वाशी, औरंगाबाद, जालना जैसे इलाकों में भी अब इंडस्ट्रीज पहुंचेगी, क्योंकि समृद्धि हाईवे बन रहा है. इस हाईवे से कनेक्टिविटी काफी सुधर जाएगी.
सरकार इंडस्ट्री को वहां ले जाने के लिए सरकार किस तरह की योजना बना रही है? क्या सरकार का किसी तरह की सब्सिडी देने का कोई प्लान है?
इस हाईवे के पहुंचने के बाद हम लोग इंडस्ट्री को वहां ले जाने के लिए कई तरह की योजनाओं पर काम कर रहे हैं. हम लोग उनको सब्सिडी देने की भी योजना बना रहे हैं. इंडस्ट्री वालों को हम लोग वहां इंफ्रास्ट्रक्चर हेल्प भी देंगे. वहां पर इंडस्ट्री के लिए बड़ी संभावनाएं भी हैं. उसके लिए हमारे पास स्किल्ड मैनपावर है और अच्छा इंफ्रास्ट्रक्चर भी है. हमारे पास उनके लिए अच्छा एटमोस्फेयर भी है, जो इंडस्ट्री के लिए और इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट के लिए बहुत ही फायदेमंद होगा.
दिल्ली, नोएडा, हैदराबाद, बेंगलुरु, मुंबई, पुणे, चेन्नई, जमशेदपुर, वड़ोदरा, लखनऊ और कोलकाता जैसे शहरों में Taneira के 25 स्टोर्स मौजूद हैं.
Taneira, टाटा ग्रुप (Tata Group) द्वारा पेश किए गए सबसे नए ब्रैंड्स में से एक है और यह टाइटन (Titan) द्वारा पेश किया गया एक ‘एथनिक वियर’ ब्रैंड है. इस ब्रैंड को 2017 में लॉन्च किया गया था और वित्त वर्ष 2027 तक यह कंपनी 1000 करोड़ के स्तर पर पहुंचना चाहती है. इसी साल के दौरान Taneira टियर 1 और टियर 2 शहरों में कम से कम 80 स्टोर्स खोलने की कोशिश कर रहा है. Taneira के CEO, Ambuj Narayan ने बिजनेस को बड़ा करने के लिए कंपनी के प्लान्स और भारतीय हथकरघे से बने कपड़ों को पसंद करने वाले नौजवानों के दिल जीतने को लेकर BW Businessworld के साथ खास बातचीत की.
Taneira के स्टोर्स
एक ही छत के नीचे भारतीय हथकरघे से बने कपड़ों के सर्वश्रेष्ठ कलेक्शन के साथ इस वक्त दिल्ली, नोएडा, हैदराबाद, बेंगलुरु, मुंबई, पुणे, चेन्नई, जमशेदपुर, वड़ोदरा, लखनऊ और कोलकाता जैसे 25 शहरों में Taneira के 45 स्टोर्स मौजूद हैं. इन स्टोर्स में लगभग 50% कंपनी के अपने स्टोर्स हैं और बाकी के 50% स्टोर्स, फ्रेंचाइजी आउटलेट्स हैं. Ambuj Narayan ने कहा ‘हम सच में राज्य एम्पोरियम्स के बहुत आभारी हैं, जिन्होंने हथकरघों की परंपरा को जीवित रखा है. लेकिन नौजवान भारतीय लोगों को पारंपरिक बुनाई के साथ-साथ आधुनिक डिजाईन भी चाहिए और यहीं Taneira ने अपनी मौजूदगी बनाई है.
बुनकरों से है करीबी संबंध
ब्रैंड द्वारा ऑफर किए जाने वाले कपड़ों को लेकर Ambuj कहते हैं कि वह भारत में मौजूद 100 से ज्यादा बुनकरों से साड़ियां ले रहे हैं. इसके साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि ये बुनकर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, बंगाल, गुजरात, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, बिहार और अन्य राज्यों से संबंध रखते हैं. ‘हम असम में मौजूद बुनकरों से भी बातचीत कर रहे हैं ताकि वह राज्य के पारंपरिक सिल्क से बने कपड़े प्रदान कर सकें. टाटा की लेगेसी वाले एक ब्रैंड के तौर पर हम न सिर्फ शुद्ध फैब्रिक प्रदान कर रहे हैं बल्कि मॉडर्न डिजाईन के साथ हाथों से बनाई हुई पारंपरिक बुनाई वाली साड़ियां भी प्रदान कर रहे हैं.’ Businessworld से बातचीत के दौरान Ambuj, लखनऊ में मौजूद थे जहां वह अपने नए ऑफलाइन स्टोर की ओपनिंग के लिए पहुंचे थे.
प्रोडक्ट्स से मिलेगी सारी जानकारी
हालांकि कंपनी ऑनलाइन भी रिटेल में बिजनेस कर रही है लेकिन अपने बिजनेस को बड़ा करने के लिए यह कंपनी ऑफलाइन बिक्री पर भी ध्यान दे रही है. Ambuj का कहना है कि अपने D2C मॉडल में कंपनी अपने कंज्यूमर्स को साड़ियों से कहीं ज्यादा चीजें ऑफर कर रही है. Ambuj कहते हैं ‘हमारे सभी प्रोडक्ट्स पर क्राफ्ट, बुनकर और हेरिटेज के बारे में साड़ी जानकारी मौजूद होती है. इतना ही नहीं, हम पूरे देश में हथकरघे से बने कपड़ों को एक स्टोर में प्रदान कर रहे हैं जिसकी बदौलत कंज्यूमर को पूरा अनुभवव प्राप्त होता है.
बिजनेस को लेकर क्या है कंपनी का प्लान?
बिजनेस को बढ़ाने के बारे में बात करते हुए Ambuj कहते हैं कि हालांकि कंपनी महिलाओं के लिए एथनिक वियर पर ही ध्यान देने के बारे में प्लान कर रही है लेकिन हमने अपने पोर्टफोलियो में कुर्ते भी जोड़े हैं और हमारी कोशिश है कि हम रोजाना पहने जाने वाले कपड़े और ऑफिस में पहने जाने वाले कपड़ों की रेंज भी प्रदान करें. इस बारे में बात करते हुए आगे Ambuj कहते हैं कि ‘हम बुनकर समुदायों के साथ बहुत ही करीबी रूप से काम कर रहे हैं ताकि हम उनकी स्किल्स को बढ़ा सकें और उनके लाइफस्टाइल को भी अपग्रेड कर सकें. हम विभिन्न राज्यों की सरकारों के साथ बुनकरों के साथ काम करने के लिए भी बातचीत कर रहे हैं.
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इससे पहले भी एक बार Amul डेयरी प्रोडक्ट्स के अलावा अन्य क्षेत्रों में अपनी मौजूदगी को बढ़ाने की कोशिश कर चुका है.
साल दर साल अपने डेयरी प्रोडक्ट्स की बदौलत टर्नओवर में होती बढ़त के साथ Amul अब भारतीय FMCG (फास्ट मूविंग कंज्यूमर्स गुड्स) मार्केट में कदम रखना चाहता है. Amul का मानना है कि FMCG क्षेत्र में कदम रखने के लिए यह एकदम सही वक्त है और कंपनी को डेयरी के अलावा अन्य फ़ूड कैटेगरिज में भी अपने प्रोडक्ट्स लॉन्च करने चाहिए.
Amul और ऑर्गेनिक फूड सेगमेंट
Amul के मैनेजिंग डायरेक्टर जयंत मेहता (MD Jayen Mehta) ने इस बारे में बिजनेसवर्ल्ड (BusinessWorld) से खास बातचीत की और आने वाले समय में डेयरी के अलावा अन्य फ़ूड कैटेगरिज में कदम रखने के कंपनी के प्लान के बारे में भी जानकारी दी है. FMCG क्षेत्र की तरफ कंपनी द्वारा बढ़ाए जा रहे कदमों के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा – इस क्षेत्र में शुरुआत करने के लिए यह वक्त बिलकुल ठीक है और हम विभिन्न सेग्मेंट्स में शुरुआत करने के बारे में सोच रहे हैं और ऑर्गनिक फूड सेगमेंट भी ऐसा ही एक सेगमेंट है. आजकल के समय में लोग ऐसा खाना खोजते हैं जिसमें केमिकल्स, कीड़े मारने की दवा आदि न हों. ऑर्गेनिक्स को प्रजातंत्रीय बनाना जरूरी है क्योंकि फिलहाल कंज्यूमर्स को इसके लिए काफी भारी भरकम खर्चा करना पड़ता है.
जल्द हर ब्रैंड पर होगा Amul का नाम
हम विभिन्न राज्यों में ऑर्गेनिक फूड से संबंध रखने वाले को-ओपरेटिव्स को प्रमोट करने वाली कंपनियों में से एक हैं. हमने ऐसे किसानों के साथ काम करना शुरू किया है जिन्हें ऑर्गेनिक्स में इंटरेस्ट है. हमने बहुत सी लैब्स भी स्थापित की हैं जिनमें हम ये जांचते हैं कि क्या हमारे कृषि संबंधित प्रोडक्ट्स, केमिकल्स और कीड़े मारने की दवाओं से मुक्त हैं या नहीं. इस कैटेगरी में हमने विभिन्न दालों, बासमती चावल और आटे जैसे 8 से 10 प्रोडक्ट्स को लॉन्च भी कर दिया है. Jayen Mehta ने बताया कि Amul जल्द ही ऑर्गेनिक चीनी, चायपत्ती और गुड़ भी लॉन्च करने वाले हैं. आसान शब्दों में कहें तो आपके किचन में इस्तेमाल होने वाले सभी प्रोडक्ट्स पर आपको बहुत जल्द Amul की ब्रैंडिंग देखने को मिल सकती है फिर चाहे वह ऑर्गेनिक प्रोडक्ट हो या फिर कोई डेयरी प्रोडक्ट.
तेल के क्षेत्र में भी Amul
Jayen Mehta ने बताया कि Janmay ब्रैंड के साथ उन्होंने तेल के सेगमेंट में भी कदम रख लिया है. आपको बता दें कि उत्तरी गुजरात में Amul का एक ऑयल-क्रशिंग प्लांट भी मौजूद है. कंपनी के पास विभिन्न प्रोडक्ट्स का अच्छा-खासा पोर्टफोलियो मौजूद है और साथ ही कंपनी के पास किसानों का समर्थन भी है. माना जा रहा है कि तेल के इस सेगमेंट में भी Amul जल्द ही एक बड़ा स्तर प्राप्त कर सकता है.
बेवरेज के क्षेत्र में भी Amul?
रिलायंस (Reliance) द्वारा कैम्पा कोला (Campa Cola) का अधिग्रहण किये जाने के बाद से ही भारत में बेवरेज के क्षेत्र में मुकाबला काफी ज्यादा बढ़ गया है. जब Jayen Mehta से इस क्षेत्र में Amul की मौजूदगी और फ्यूचर प्लान्स के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि बेवरेज के क्षेत्र में कंपनी के पास 120 से ज्यादा SKU (स्टॉक कीपिंग यूनिट्स) मौजूद हैं. फ्लेवर्ड मिल्क, कॉफी, कार्बोनेटेड ड्रिंक्स, प्राकृतिक प्रोटीन प्रोडक्ट्स, लस्सी से लेकर छाछ तक Amul की मौजूदगी हर जगह है. ‘Amul Kool’ बेवरेज के क्षेत्र का एक सबसे बड़ा और प्रमुख ब्रैंड है. हर कैटेगरी में कंपनी की मौजूदगी को बड़ा करने के लिए हमारे पास शानदार प्लान्स उपलब्ध हैं. दूध के सेगमेंट के लिए हमारे पास 98 डेयरी प्लांट्स मौजूद हैं. इसके साथ ही इस क्षेत्र में प्रोटीन और प्रोबायोटिक से लेकर ऊंट और भैंस के दूध जैसे प्रोडक्ट्स भी उपलब्ध हैं.
Amul ने पहले भी किया था ट्राई पर मार्केट ने नकारा
इससे पहले भी एक बार Amul डेयरी प्रोडक्ट्स के अलावा अन्य क्षेत्रों में अपनी मौजूदगी को बढ़ाने की कोशिश कर चुका है और तब Amul को मार्केट का बहुत बड़ा हिस्सा प्राप्त करने में असफलता का सामना करना पड़ा था. इस बारे में जब जयन मेहता से पूछा गया तो उन्होंने कहा, विविध प्रोडक्ट्स के क्षेत्र में खुद को आगे बढ़ाने के हमारे प्लान के पीछे की प्रमुख वजह किसानों का कल्याण था. उदाहरण के लिए अंतरराष्ट्रीय चॉकलेट कंपनियां दक्षिणी भारत के कोको बीन (Cocoa Bean) निकालने वाले किसानों का शोषण करती थीं. जब Amul ने इस क्षेत्र में कदम रखा तो दक्षिणी भारत में CAMPCO की शुरुआत हुई और हमने उनसे चॉकलेट बनाने के लिए कोको बीन्स खरीदने की शुरुआत की. हमारी कामयाबी का पता सिर्फ मार्केट में मौजूद हमारे हिस्से और प्रोडक्ट्स की सेल्स से नहीं लगाया जा सकता.
Amul ने किया किसानों का कल्याण
Jayen Mehta ने आगे बताते हुए कहा कि चॉकलेट के क्षेत्र में कंपनी द्वारा किये गए हस्तक्षेप की वजह से कोको बीन उगाने वाले किसानों को उनके प्रोडक्ट्स की उचित कीमत मिली और यही वो जगह है जहां सच में रिजल्ट्स दिखने चाहिए. आज हम भारत में डार्क चॉकलेट बनाने वाले सबसे बड़े ब्रैंड हैं और 2018 में हमने अपनी क्षमता को लगभग 5 गुना बढ़ाया था. फिलहाल हम पूरी 100% क्षमता पर काम कर रहे हैं और हम इसे दोगुना करने के बारे में भी विचार कर रहे हैं. बेवरेज के क्षेत्र की बात करें तो हमने देश में सबसे पहले ‘Seltzer’ लॉन्च किया था. इसके साथ ही, असली फलों से बने प्रोडक्ट्स, डेयरी आधारित प्रोडक्ट और सबसे जरूरी, हमने एक ऐसा कोला ड्रिंक भी पेश की थी जिसमें कैफीन या फॉस्फोरिक एसिड नहीं था. ये वो आईडिया हैं जिनकी शुरुआत हमने देश में की थी. हम अपने आपको सीधा कोक या पेप्सी के बराबर नहीं बता रहे क्योंकि हमारे और उनके प्रोडक्ट्स में अंतर है.
फ्रोजन फ़ूड पोर्टफोलियो
Jayen Mehta ने कहा कि फ्रोजन फूड पोर्टफोलियो में पिज्जा की मदद से Amul को समझ आया कि कंज्यूमर्स को रेडी-टू-ईट प्रोडक्ट्स चाहिए. अब हमारे पास फ्रोजन पराठा और फ्रेंच फ्राइज जैसे प्रोडक्ट्स उपलब्ध हैं. हमने फ्रोजन फ्रेंच फ्राइज बनाने के लिए एक फैक्ट्री भी लगायी है और इस फैक्ट्री में सभी आलू सीधा किसानों से खरीदे जाते हैं. इस प्लांट की शुरुआत 6 महीने पहले हुई थी और इस वक्त यह अपनी पूरी क्षमता से काम कर रहा है. इसके साथ ही उन्होंने बताया कि कंपनी अपनी इस फैक्ट्री की क्षमता में 4 गुना की बढ़ोत्तरी करने के बारे में सोच रही है.
दिल्ली पुलिस द्वारा हथियारों के स्मार्ट लाइसेंसों के उपयोग ने हरियाणा पुलिस को भी प्रेरणा दी है और वह भी एक ऐसे सिस्टम को अपनाना चाहते हैं
देश में पहली बार स्मार्ट कार्ड लाइसेंसों का इस्तेमाल करके दिल्ली पुलिस ने हथियारों के लाइसेंसिंग की प्रक्रिया को ज्यादा आधुनिक बना दिया है. दिल्ली पुलिस द्वारा हथियारों के स्मार्ट लाइसेंसों के उपयोग ने हरियाणा पुलिस को भी प्रेरणा दी है और वह भी एक ऐसे सिस्टम को अपनाना चाहते हैं. फरवरी में दिल्ली पुलिस स्थापना दिवस के मौके पर केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने हथियारों की स्मार्ट लाइसेंसिंग प्रक्रिया की सराहना की थी.
BW पुलिस-वर्ल्ड के साथ अपने इंटरव्यू के दौरान दिल्ली पुलिस में लाइसेंसिंग और लीगल विभाग के विशेष आयुक्त संजय सिंह ने हथियारों के स्मार्ट लाइसेंस और दिल्ली में हथियारों की लाइसेंसिंग की प्रक्रिया को डिजिटल बनाने के बारे में विशेष बातचीत की है. संजय सिंह ने साल 1990 में भारतीय पुलिस सेवा के AGMUT कैडर को एक IPS अधिकारी के रूप में जॉइन किया था. संजय सिंह दिल्ली पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों में से एक हैं और उन्हें पुलिस फोर्स में अलग अलग भूमिकाओं द्वारा किये गए उनके महत्त्वपूर्ण योगदान के लिए जाना जाता है.
दिल्ली पुलिस ने हथियारों की स्मार्ट लाइसेंसिंग शुरू की है और ऐसा करने वाली यह देश की पहली पुलिस फोर्स भी है. इस स्मार्ट कार्ड और स्मार्ट लाइसेंसिंग प्रक्रिया के बारे में हमें और बताइए.
निस्संदेह दिल्ली पुलिस देश की पहली पुलिस फोर्स है जिसने हथियारों के लिए स्मार्ट लाइसेंस जारी किये हैं और साथ ही, पूरी प्रक्रिया को भी डिजिटल बना दिया है. यह फैसला भारत सरकार की ‘डिजिटल भारत’ पॉलिसी को ध्यान में रखकर लिया गया है और ऐसा इसलिए किया गया है ताकि हम नागरिकों को बेहतर सुविधा प्रदान कर सकें. हथियारों के लाइसेंस के आवेदन केवल ऑनलाइन स्वीकार किये जाते हैं और इसके साथ ही ई-ऑफिस के माध्यम से आंतरिक प्रक्रिया को पूरा किया जाता है. हमारे पास इस वक्त हथियारों के लगभग 43,000 लाइसेंस रजिस्टर्ड हैं. स्टाफ और सुपरवाइजरी अधिकारियों के सहयोग से हम जल्द ही लाइसेंसिंग की बाकी सुविधाओं को भी ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध करवा देंगे.
दिल्ली पुलिस ने एक कदम आगे बढ़कर हथियारों के लिए स्मार्ट कार्ड भी जारी किये हैं. यह हथियार के लाइसेंस होल्डर्स की किस प्रकार से सहायता करेगा?
दिल्ली पुलिस ने पिछले साल फरवरी में हथियारों के लिए स्मार्ट कार्ड लाइसेंस लॉन्च किये थे. इसके बाद स्मार्ट लाइसेंस रखने के लिए हमें लाइसेंस होल्डरों से बहुत ही जबरदस्त रिस्पॉन्स मिला था. अब तक 10,000 से ज्यादा स्मार्ट कार्ड जारी किये जा चुके हैं. स्मार्ट कार्ड को अपने साथ रखना तो आसान है ही, इसके साथ ही इस स्मार्ट कार्ड में बहुत से सिक्योरिटी फीचर्स भी मौजूद हैं.
दिल्ली पुलिस ने हथियार के लाइसेंसों को जांचने के लिए ‘शस्त्र ऐप’ की भी शुरुआत की है. हमें बताइए की यह कैसे काम करता है?
‘शस्त्र ऐप’ दिल्ली पुलिस की लाइसेंसिंग यूनिट द्वारा विकसित किया गया एक ऐप है जो ई-बीट बुक के साथ जुड़ा होता है. बीट पर मौजूद पुलिस अधिकारी अब लाइसेंस होल्डर के स्मार्ट कार्ड को स्कैन करके अथवा कार्ड के UID (यूनिक आइडेंटिफिकेशन नम्बर) के माध्यमक से हथियार से जुड़ी सारी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं. शस्त्र ऐप जल्द ही हथियार के लाइसेंस की डाइनेमिक और रियल टाइम चेकिंग की सुविधा भी प्रदान करेगा. यह कदम अपराधियों द्वारा जाली लाइसेंस लेकर चलने की हिम्मत को तोड़ देगा.
आपके इस कदम ने बहुत से राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों की पुलिस को हथियारों की स्मार्ट कार्ड लाइसेंसिंग प्रक्रिया अपनाने के लिए प्रेरित किया है. ऐसी और कौन सी पुलिस फोर्स हैं जो लाइसेंसिंग के इस आधुनिक तरीके का इस्तेमाल करती हैं?
पड़ोसी राज्यों की पुलिस के कई बड़े अधिकारी दिल्ली पुलिस की लाइसेंसिंग यूनिट का दौरा कर चुके हैं. हरियाणा, गुजरात, मध्य प्रदेश और बहुत से अन्य सरकारी अधिकारी हमारी यूनिट का दौरा करके स्मार्ट कार्ड बनाने की इस डिजिटल प्रक्रिया को समझ चुके हैं. मुझे बताते हुए खुशी हो रही है कि, सभी अधिकारियों ने हमारे इस विजन और प्रयास की सराहना की है. साथ ही, उन्होंने अपने विभागों में भी ऐसी ही प्रक्रिया को अपनाने की रुचि दिखाई है. हरियाणा पुलिस ने लाइसेंसिंग की डिजिटल प्रक्रिया को शुरू भी कर दिया है.
क्या हम कह सकते हैं कि स्मार्ट लाइसेंसिंग से देश की राजधानी में लाइसेंसिंग की प्रक्रिया को कानूनी बनाने में मदद मिलेगी?
इस फैसले के पीछे लाइसेंसिंग की प्रक्रिया को आसान, तेज और प्रोफेशनल बनाने की कोशिश है. प्रक्रिया को डिजिटल बनाने की वजह से किसी के पास भी गैर-कानूनी तरीके से लाइसेंस बनवाने के लिए कोई जगह नहीं बची है. साथ ही ऐसे लोग जिनके पास गैर कानूनी रूप से हथियार मौजूद हैं, अब किसी हालत में पुलिस से नहीं बच सकते.
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मौसम सहरावत का आरोप है कि दिल्ली बॉक्सिंग एसोसिएशन में पिछले 16 सालों से रेलवे के 5 कर्मचारी शामिल हैं. ये कर्मचारी हर चुनाव में भी शामिल होते हैं.
दिल्ली एमेच्योर बॉक्सिंग एसोसिएशन के वाइस प्रेसिडेंट मौसम सहरावत बॉक्सिंग की बेहतरी के लिए काम कर रहे हैं. सहरावत को 2013 में बॉक्सिंग एसोसिएशन का वाइस प्रेसिडेंट चुना गया था, इस बार वह प्रेसिडेंट की पोजीशन के लिए लड़ रहे हैं. BW Hindi ने मौसम सहरावत से बॉक्सिंग और उससे जुड़ी उनकी योजनाओं को लेकर बातचीत की. पेश हैं उसके कुछ अंश:
एक बॉक्सर या एक्स बॉक्सर के तौर पर आपका अपना प्रोफाइल क्या है?
मैंने 1997 में बॉक्सिंग स्पोर्ट्स ऑस्ट्रेलिया में शुरू की. इंटर कॉलेज एंड यूनिवर्सिटी में पार्टिसिपेट किया है. भारत में मैं लगातार 3 बार 26 जनवरी की रिपब्लिक डे परेड में स्केटिंग करते हुए भाग लिया है. स्केटिंग, टेबल टेनिस और जवलीन में दिल्ली स्टेट पार्टिसिपेट किया और मेडल जीते. दिल्ली बॉक्सिंग फेडरेशन में मैंने साल 2011 में साउथ डिस्ट्रिक्ट के प्रेसिडेंट की पोस्ट पर ज्वाइन किया था. मेरी नियुक्ति विधायक चौधरी अभय सिंह चौटाला ने कराई थी, जो उस टाइम इण्डियन एमेच्योर बॉक्सिंग एसोसिएशन के प्रेसिडेंट थे.
बॉक्सिंग फेडरेशन से जुड़ने के बाद आपकी क्या उपलब्धियां हैं?
बॉक्सिंग फेडरेशन में हमारा पूरा फोकस बॉक्सिंग को आगे ले जाने पर है. हमारी कोशिश रहती है कि टैलेंटेड युवाओं को पूरा समर्थन मिले और यही हम कर रहे हैं. हमने 2014 से 2017 तक दिल्ली राज्य बॉक्सिंग चैंपियनशिप का सफल आयोजन किया था, जिसमें मैंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. 2019 में साउथ दिल्ली से सांसद रमेश बिधूड़ी के प्रयासों के चलते हमने ONGC से फंडिंग के लिए एसोसिएशन का एक कॉन्ट्रैक्ट करवाया था, लेकिन कोरोना की वजह से मामला आगे नहीं बढ़ पाया.
दिल्ली राज्य बॉक्सिंग चैंपियनशिप के आयोजन में आपने क्या महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी?
दिल्ली में कुल 12 डिस्ट्रिक्ट हैं, जो दिल्ली बॉक्सिंग एसोसिएशन के तहत आते हैं. मैंने अपनी डिस्ट्रिक्ट में दिल्ली स्टेट चैंपियनशिप शुरू करवाई और लोकल अकादमी को सपोर्ट किया, जिसके चलते साउथ दिल्ली डिस्ट्रिक्ट लगातार 4 साल नंबर 1 की पोजीशन पर रही. वाइस प्रेसिडेंट के चुनाव में बड़े मार्जिन से जीत के बाद मुझे दिल्ली एमेच्योर बॉक्सिंग एसोसिएशन की डिस्पूट कमेटी का चेयरमैन बनाया गया. इलेक्शन जीतने के बाद मैंने पूरी दिल्ली में लगातार 3 साल दिल्ली स्टेट चैंपियनशिप प्रोग्राम करवाए और दिल्ली को नेशनल लेवल पर मेडल जिताने में अहम भूमिका निभाई. इतना ही नहीं, खिलाड़ियों को किसी तरह की आर्थिक परेशानी न आए, इसलिए सभी खर्चे मैंने खुद उठाए. करप्शन की वजह से दिल्ली बॉक्सिंग एसोसिएशन के प्रेसिडेंट और जनरल सेक्रेटरी ने कभी भी दिल्ली के बच्चों को फाइनेंशियल सपोर्ट नहीं किया. ऊपर से दूसरे स्टेट के बच्चों को नकली ID से दिल्ली की तरफ से खिलाने का खेल जरूर खेला. मैंने इसका खुलकर विरोध किया और पासपोर्ट ID कंपलसरी की. हालांकि, बाद में मुझे उनके खिलाफ हाई कोर्ट का रुख करना पड़ा.
क्या आपने ऑफिशियली दिल्ली सरकार के सामने अपनी कोई मांग रखी है, जिसका कोई प्रूफ हो?
प्रूफ तो मैं आपको अभी नहीं दे सकता, लेकिन दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मेरी मुलाकात 2017 में उनके ऑफिस में हुई थी. उस समय उन्होंने पूरा सपोर्ट करने का वादा किया था, लेकिन किसी कारणवश बात आगे नहीं बढ़ पाई.
आपके बयान से लगता है कि बॉक्सिंग एसोसिएशन में कुछ भी नहीं हो रहा है, तो क्या मौजूदा प्रेसिडेंट ने कुछ भी नहीं किया?
दिल्ली बॉक्सिंग एसोसिएशन में पिछले 16 सालों से रेलवे के 5 कर्मचारी शामिल हैं. ये कर्मचारी हर चुनाव में भी शामिल होते हैं और अच्छी पोस्ट पर काबिज हैं. कानून के मुताबिक, स्पोर्ट्स बॉडी एसोसिएशन का इलेक्शन लड़ने के लिए इन कर्मचारियों को रेलवे से अनुमति और NOC लेना जरूरी है. यदि अनुमति मिल भी जाए तो अधिकतम 4 साल तक एसोसिएशन का हिस्सा रह सकते हैं. लेकिन ये लोग यहां 16 सालों से काबिज हैं, जो पूरी तरह से अवैध है. साल 2018 में मैंने इस बात पर ऑब्जेक्शन उठाया था, पर कोई कार्रवाई नहीं हुई, क्योंकि दिल्ली बॉक्सिंग एसोसिएशन के प्रेसिडेंट और जनरल सेक्रेटरी की इनसे मिलीभगत थी. इसलिए मैंने दिल्ली हाई कोर्ट का रुख किया और इन कर्मचारियों के खिलाफ केस दर्ज करवाया. 5 में से 3 कर्मचारी इस्तीफा दे चुके हैं, जबकि शेष 2 को बचाने की दिल्ली बॉक्सिंग एसोसिएशन और रेलवे पूरी कोशिश कर रहा है.
दिल्ली सरकार को क्या-क्या करना चाहिए, जिससे बॉक्सिंग में करियर बनाने वाले युवाओं को लाभ होगा, इस संबंध में थोड़ा विस्तार से बताएं?
इस साल फरवरी या मार्च में होने वाले दिल्ली एमेच्योर बॉक्सिंग एसोसिएशन के चुनाव में मैं प्रेसिडेंट के लिए फाइट कर रहा हूं. जीतने पर मैं दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और दिल्ली के सांसद से मुलाकात कर उन्हें दिल्ली की बॉक्सिंग को आगे बढ़ाने से जुड़ा के प्रपोजल सौंपूंगा. जितने भी दिल्ली में स्टेडियम हैं उन सब में बॉक्सिंग के प्रमोशन के बारे में सुझाव दूंगा. दिल्ली स्टेट बॉक्सिंग चैंपियनशिप में हर साल हजारों खिलाड़ी भाग लेते हैं, उन्हें वित्तीय सहायता मुहैया कराना और दिल्ली के स्टेडियम में उनकी फ्री एंट्री मेरी प्राथमिकता रहेगी. मेरा मानना है कि हर जिले में सरकारी बॉक्सिंग अकादमी खुलवाई जाएं. मैं दिल्ली को नेशनल लेवल पर टॉप 3 में लाने की कोशिश करूंगा. मैं करप्शन फ्री एसोसिएशन का वादा करता हूं.
भारत में इंफ्रास्ट्रक्चर बहुत तेजी से बढ़ रहा है. जब मैं एक्सप्रेस वे से आ रहा था, तब मुझे लगा कि बहुत अच्छी सड़कें बनी हैं ऐसा लग रहा था जैसे लंदन में गाड़ी चल रही है.
दुनियाभर में चल रही अलग-अलग परेशानियों के बीच भारत के लिए किस तरह की चुनौतियां पैदा हो रही हैं, भारत मार्केटिंग के क्षेत्र में कैसा काम कर रहा है, दुनिया में उसकी स्थिति पहले से सुधरी है या नहीं, कुछ ऐसे ही सवालों को लेकर BWHINDI ने आज ब्रिटेन में रहकर पिछले लंबे समय से मार्केटिंग सेक्टर में काम करने वाले और IKMG के फाउंडर राज खन्ना से बातचीत की है. जानिए क्या कहते हैं राज खन्ना
सवाल: क्या आपको लगता है कि ऋषि सुनक भारत के लिए फायदेमंद साबित हो सकते हैं?
जवाब: देखिए मुझे लगता है कि ऋषि सुनक पीएम बनने के बाद भारत के लिए एक अच्छे पीएम साबित होंगे. उन्होंने बोला है कि वो भारत से अच्छे संबंध बनाना चाहते हैं. वो कई क्षेत्रों में भारत के लिए फायदेमंद साबित हो सकते हैं. अब वो भले ही एजुकेशन हो या इंफ्रास्ट्रक्चर हो या ब्रिटेन में पढ़ाई करने के लिए जाने वाले भारतीय स्टूडेंट का मामला हो, उनकी सुविधाओं में कैसे इजाफा किया जा सकता है और पढ़ने के साथ-साथ उन्हें मौका भी दिया जाएगा, जिससे वो वहां जॉब कर सकें. बिल्कुल सबसे बड़ी बात ये है कि ब्रिटेन के अंदर पारदर्शिता ज्यादा होती है और अगर कुछ गलत होता है तो वो सामने आ जाता है. इसके पीछे की वजह वहां की मीडिया है क्योंकि वहां का मीडिया बहुत ओपन है. मुझे लगता है कि वो भारत के लिए ज्यादा फायदेमंद हो सकते हैं.
सवाल आप मार्केटिंग बैकग्राउंड से आते हैं तो आप मौजूदा सरकार को ग्लोबल लेवल पर कैसे देखते हैं?
जवाब: मुझे लगता कि भारत सरकार अच्छा कर रही है, काफी अच्छा कर रही है. मुझे लगता है कि ये प्लानिंग बहुत पहले से हुई है. जो भी चीजें आज हमें होती दिख रही हैं वो बहुत अच्छी हैं. जहां तक बात है मार्केटिंग के अनुसार भारत की इमेज की तो वो इस वक्त दुनिया में बेहतर बनी हुई है. इसका पूरा श्रेय मैं आज की यंगर जनरेशन को देता हूं. आज की युवा पीढ़ी बहुत प्रैक्टिकल है और उसके अंदर जोश बहुत है. वो किसी भी तरह के काम को करने से घबराती नहीं है. वो अपना एक स्टेटस खुद बनाना चाहते हैं वो शार्टकर्ट नहीं देखते हैं. इसलिए भारत का नाम आगे है. बिल्कुल भारत की इमेज पिछले कुछ समय में बदली है. पिछले 6 महीने के अंदर उसमें थोड़ा कमी दिख रही है. उसकी वजह ये है कि मीडिया की ट्रांसपेरेंसी सामने नहीं आ रही है. मैं उस पर ज्यादा नहीं कहना चाहूंगा मैं कोई राजनीतिज्ञ नहीं हूं, मैं एक समाजसेवक हूं.
सवाल : आपके भारत आने का क्या मकसद रहा आपका
जवाब: देखिए मैने एक संस्था IKMG (International Khatri mahasabha Group) शुरू की थी. इंटरनेशनल खत्री महासभा ग्रुप वो मैने इसलिए शुरू की क्योंकि हमारे खत्री समाज का ऐसा कोई प्लेटफॉर्म नहीं है. हम लोग कोई होली दिवाली में मिल लेते थे. खाना खा लेते हैं बस वो वहीं तक सीमित थी. साल में एक बार जनरल इलेक्शन हुआ तो कुछ लोग चुन लिए गए. लेकिन अब वो सेल्फ सेंट्रिक हो गए हैं कि वो कुछ कर नहीं रहे थे. जब चार साल पहले मैने ये सब देखा तो मुझसे रहा नहीं गया. वहां से मैने इसकी शुरुआत की और अपनी इस संस्था को बनाया. पहले ही तीन महीने के अंदर इसके साथ तीन हजार लोग जुड़ गए. आज स्थिति ये है कि 40 देशों के 100 शहरों में इसके 10500 सदस्य इस संस्था से जुड़ चुके हैं .
हमें किसी का सपोर्ट नहीं है ना तो हमें सरकार का सपोर्ट है और न ही हमें किसी और का सहयोग है. IKMG जो भी कुछ कर रहा है, वो इसके एक्टिव सदस्य कर रहे हैं. आज हमारी संस्था कई शहरों में काम कर रही है, जिसमें कन्नौज, आगरा मुरादाबाद, कानपुर जैसे शहर शामिल हैं जहां ये संस्था काम कर रही है, जहां हमारे लोग काम कर रहे हैं. हम किसी को किसी भी चीज के लिए दबाव नहीं डालते हैं. हमारा साफ कहना है कि जो भी करना है आपस में फंड इक्टठे करिए और काम करिए, इसका श्रेय सभी को जाता है. हम हर सदस्य की छोटी से छोटी कोशिश का सम्मान करते हैं. अभी हमारी पहली ग्लोबल मीट हुई थी, पहली ग्लोबल मीट हमारी 28 जनवरी को हुई थी. हमने एक रेडियो भी शुरू किया है जो 24 घंटे रन करता है. इसमें देश और दुनिया से अलग-अलग लोग जुड़े हुए हैं. हम लोग एजुकेशन से लेकर हेल्थ और दूसरे सेक्टर के लिए काम कर रहे हैं.
सवाल : IKMG एक अच्छा प्रयास है लेकिन भारत में खत्री समाज एकजुट नहीं है. उन्हें पॉलिटिक्स में प्रायोरिटी नहीं मिल रही है, इसे आप कैसे देखते हैं?
जवाब : हम पॉलिटिक्स को बीच में नहीं लाएंगें क्योंकि एक बार ये आ जाती है तो फिर इसके कारण डिविजन होने लगता है. हम सपोर्ट करेंगें लेकिन उसके पीछे कोई कॉमन कारण होना चाहिए. देखिए कल मैं कन्नौज में था, वहां के मेंबर इक्टठा होते हैं और आप लोगों को खाना दे देते हैं, सबने पैसे जमा करके लोगों की मदद करते हैं. मैने उनसे कहा कि आप इससे आगे क्या कर रहे हैं. आप जब शहर से निकलते हैं तो खुद मैने देखा कि शहर कितना गंदा है. क्या हमारे वॉलंटियर मिलकर इसे साफ नहीं कर सकते हैं? स्वीपर को हॉयर करिए कुछ पैसा लगेगा, हमें मंजूर है लेकिन हम चार संडे को इस काम को कर सकते हैं, उसे साफ करना है. गंदगी न हो इसके लिए वहां डिब्बे रखे जाने चाहिए. जैसे इंदौर में किया गया है वैसे ही आप भी करिए.
सवाल- आपने कई शहरों में विजिट किया आपने एक दशक के बाद विजिट किया क्या आपको लग भारत का इंफ्रास्ट्रक्चर बदल रहा है?
जवाब: बिल्कुल हो रहा है इसमें कोई शक नहीं है. कल जब मैं एक्सप्रेस वे से आ रहा था, तब मुझे लगा कि बहुत अच्छी सड़कें बनी हैं ऐसा लग रहा था जैसे लंदन में गाड़ी चल रही है. लेकिन जब हम सवर्सिेज पर रूके तो देखा कि स्वीपर है वो सफाई कर रहा था. यही नहीं टॉयलेट बहुत साफ सुथरे थे. इंटरनेशनल स्टैंडर्ड का नहीं था लेकिन फिर भी साफ था. उसके बाद मैं जैसे ही खाने के स्टॉल की तरफ बढ़ा तो देखा कि वहां सब कागज बिखरे पड़े हैं. अब वो कागज के बारे में जनता को सोचना चाहिए. उसे सोचना चाहिए कि वहां कागज नहीं फेंकना चाहिए.
सवाल- भारत को जी20 की प्रेसीडेंसी मिली है क्या आपको लगता है कि भारत के पास ये बहुत अच्छा मौका है?
जवाब- भारत ने अपनी मार्केटिंग पहले ही शुरू कर दी है. देखिए मार्केटिंग मीडिया से बहुत अच्छी होती है, और वो भी टू द प्वाइंट होनी चाहिए. बताया जाना चाहिए कि हमारे वहां किसी तरह का पक्षपात नहीं होता है. जी20 के अंदर भारत के लिए आगे बढ़ने का बहुत अच्छा मौका है. ये भारत ने खुद से मुकाम बनाया है. भारत इस वक्त जोखिम भी ले रहा है.
सवाल : बजट को लेकर आपकी क्या राय है?
जवाब: जनता से जो मैने इसे लेकर बात की तो उनका कहना था कि ये बहुत अच्छा बजट रहा है, ये उनका कैसा ओपिनियन कैसा है ये मैं नहीं कह सकता. लेकिन तीन महीने में पता चल जाएगा कि बजट कैसा है. आम आदमी को सिर्फ इस बात से फर्क पड़ता है कि उसके पास कितना पैसा बच रहा है. बिजली के दाम बढ़ रहे हैं, उसे कैसे कम किया जा सकता है. इंडिया को इस वक्त रसिया से डिस्काउंटेड रेट पर सस्ते में एनर्जी मिल रही है. भारत इस फील्ड में अच्छा कर रहा है. ये मेरी रॉय है.
सवाल : क्या ये बजट मार्केटिंग सेक्टर के लिहाज से सही है?
जवाब: मुझे लगता है कि मार्केटिंग के लिहाज से और इंसेंटिव दिए जाने की जरूरत है. मार्केटिंग किसी भी कंट्री के लिए बैकबोन होती है. जब भी आप अपना प्रोडक्ट लेकर जाते हैं तो आपको एंट्री मिल जाती है, वो जब आपको एंट्री मिल जाती है तो आप आधी लड़ाई जीत जाते हैं. अब उसके बाद अगर आपका प्रोडक्ट सही नहीं है तो आपको फिर देखना पड़ता है कि आखिर कमी कहां रह गई है. इसमें क्या सुधार लाना है आप ऐसा कर सकते हैं.
उन्होंने नोएडा-ग्रेटर नोएडा में रजिस्ट्री की समस्या पर बोलते हुए कहा कि इसके समाधान के लिए कई विकल्प दिए हैं. उनकी कोशिश है बॉयरों को ज्यादा परेशानी का सामना न करना पड़े.
यूपी में होने वाले ग्लोबल इंवेस्टर मीट को लेकर इन दिनों तैयारी जोरों पर हैं. राज्य के मुख्यमंत्री से लेकर उपमुख्यमंत्री और दूसरे मंत्री लगातार कोशिश कर रहे हैं कि राज्य में ज्यादा से ज्यादा निवेश जुटाया जा सके. इसी विषय और दूसरे कई अहम मसलों को लेकर BW HINDI के एडिटर अभिषेक मेहरोत्रा ने नोएडा-ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी की सीईओ ऋतु माहेश्वरी से बात की है. सुनिए उन्होंने इस मामले को लेकर क्या अहम बात कही है
सवाल: इन दिनों ग्लोबल इंवेस्टर समिट की चर्चा जोरों पर है, इसे लेकर आप नोएडा की क्या भूमिका देखती हैं?
जवाब: देखिए हमारे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यूपी के लिए अगले पांच सालों में 1 ट्रिलियन इकॉनमी का लक्ष्य निर्धारित किया हुआ है. ये हम सभी जानते हैं कि यूपी एक रिसोर्सफुल स्टेट है. यहां की जो जनसंख्या है, संसाधन हैं, उसके अनुसार ये लक्ष्य निर्धारित किया गया है. जहां सभी तरह की सुविधाएं मौजूद हैं. जहां तक बात नोएडा की तो ये उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख द्वार भी रहा है. यूपी का सबसे ज्यादा रेवेन्यू भी इसी बेल्ट से आता है. इसमें अभी तक सवा लाख करोड़ का निवेश कमिट हो चुका है. इनमे से कई प्रोजेक्ट के इंटेंस भी आ चुके हैं. कई निवेशक ऐसे हैं जिन्हें जमीन भी आवंटित की जा चुकी है. इसे लेकर हमारा अगला लक्ष्य 20 लाख करोड़ रुपये का है. ग्लोबर इंवेस्टर समिट में टाईअप कराएंगें उसे अगले पांच साल में एक्जीक्यूट कराएंगें.
सवाल: जेवर एयरपोर्ट और यूपी डिफेंस कॉरिडोर के जरिए नोएडा सरकार की प्राथमिकता में दिखता है. इन सभी से नोएडा को कैसे मदद मिलेगी ?
जवाब: देखिए नोएडा में इंटरनेशनल निवेशक भी आना चाहते हैं, हमारे यहां जो पहले से इंफ्रास्ट्रक्चर था उसे लेकर भी मुख्यमंत्री ने बहुत काम किया है. हमारे यहां जेवर एयरपोर्ट बन रहा है जिसका पहला फेज 2024 तक शुरू करने का प्रयास करेंगे. एयरपोर्ट के यहां आने से निवेश भी बढ़ा है. नोएडा के लिए दोनों फ्रेट कॉरिडोर जो ईस्टर्न और वेस्टर्न फ्रेट कॉरिडोर हैं ये महत्वपूर्ण हैं. सबसे दिलचस्प बात ये है कि ये दोनों कॉरिडोर दादरी से होकर जा रहे हैं. ऐसें में यहां लॉजिस्टिक और दूसरे वेयर हाउस से संबंधित निवेश आएगा. हम वहां मल्टी मॉडल लॉजिस्टिक हब भी बनाने का प्लान कर रहे हैं. यहां की डेटा कनेक्टिविटी, फाइबर कनेक्टिविटी और इलेक्ट्रिक इंफ्रास्ट्रक्चर है उसे देखेते हुए ज्यादातर लोग डेटा रखने में और उस क्षेत्र में निवेश करने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं. हीरानंदानी ग्रुप द्वारा नॉर्थ इंडिया का सबसे बड़ा डेटा सेंटर लगाया गया है. जबकि 7 से 8 अन्य डेटासेंटरों पर काम चल रहा है. इससे इस क्षेत्र में बड़े स्तर पर भी निवेश देखने को मिलेगा.
सवाल: नोएडा में अर्बन इलाकों का तो विकास हो गया लेकिन गांवों का विकास होना अभी भी बाकी है. उसे लेकर आप किस तरह से योजना बना रही हैं?
जवाब: देखिए जैसा कि हम सभी जानते हैं कि नोएडा को बसाने में गांवों की बड़ी भूमिका है. ऐसे में हमारी कोशिश है उन्हें ज्यादा से ज्यादा इंफ्रास्ट्रक्चर दिया जाए. हम लगातार गांवों में बुनियादी सुविधाओं में इजाफा कर रहे हैं. बिजली, सड़क, पानी, टॉयलेट पर हम पहले ही काफी काम कर चुके हैं. ज्यादा इश्यू मेंटीनेंस के हैं. क्योंकि गांवों में जो आबादी थी वो और बढ़ रही है. देखिए हमेशा से ही जमीन का अधिग्रहण करना बड़ा चैलेंज होता है ।जिन्हें नोटिफाई जमीन नहीं मिली, वो बाहर के गांवों में बस गए. ऐसे में उन गांवों में रहने वाले लोगों की उम्मीद रहती है कि सरकार और अथॉरिटी उनके वहां भी विकास करें. ऐसे में उस समस्या को कैसे टैकल किया जाए, इस पर भी हम लोग काम कर रहे हैं. उन्हें कम्यूनिटी सेंटर से लेकर दूसरे इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट की बात है, हम उन्हें वो सब मुहैया करा रहे हैं. मुख्यमंत्री ने हेल्थ एटीएम की योजना शुरू की है, जिसमें हर जिले में उनके गांवों में सभी पीएससी पर मोबाइल यूनिट रहेगी जो एक तरह से पूरी पीएससी का काम करती है. हर पीएससी में मोबाइल टेस्टिंग यूनिट लगाने की तैयारी कर रहे हैं. गांवों में जो कम्यूनिटी सेंटर बने हैं उन्हें और अपग्रेड किया जा रहा है. कोशिश कर रहे हैं उन्हें हर सुविधा मिले चाहे वो स्वच्छ पानी हो या स्वास्थ्य सेवा या दूसरी कोई और सेवा हो, वो उसी स्तर की मिले जो शहरों के लोगों को मिल रही है.
सवाल: अब कुछ न्यू नोएडा के बसने की बात सुनने में आ रही है, ये क्या मसला है?
जवाब: देखिए जैसा कि हम जानते हैं कि नोएडा और ग्रेटर नोएडा लगभग विकसित हो चुके हैं. सभी लोग यहां की जैसी सुविधाओं में रहना चाहते हैं. लेकिन इसके आसपास के क्षेत्र अभी विकसित हो रहे हैं. हम मानते हैं कि सभी को ऐसे विकसित शहरों में रहने का अवसर मिलना चाहिए. इसीलिए हमने नोएडा के आसपास के क्षेत्रों में जिनमें गौतबुद्ध नगर और बुलंदशहर के 80 गांवों को नोटिफॉई किया जा रहा है. हमें पूरी उम्मीद है कि इस साल इसका मास्टरप्लान भी बनकर तैयार हो जाएगा. इन क्षेत्रों को भी प्लान तरीके से विकसित कर पाएं और वहां भी ये सुविधाएं दे पाएं. यही नहीं हम लोग ग्रेटर नोएडा में फेस टू की तरफ भी आगे बढ़ रहे हैं.
सवाल: ये सवाल नोएडा के 35000 यूनिट से जुड़ा हुआ है कि आखिर फ्लैटों की रजिस्ट्री कब तक होगी? क्योंकि इसमें सरकार की ओर से भी अक्सर सिर्फ बयान ही आता है. इस समस्या को आप कैसे टैकल कर रही हैं?
जवाब: देखिए ये यहां के अलग-अलग प्रोजेक्ट्स के 35000 यूनिट से जुड़ा हुआ मामला है. कुछ प्रोजेक्ट ऐसे हैं जो बन रहे हैं और बॉयर को पजेशन दे दिया, लेकिन रजिस्ट्री नहीं है. कुछ ऐसे हैं जो बने हैं लेकिन लोग वहां रह नहीं रहे हैं. इसका कारण ये रहा है कि दरअसल कई बिल्डर ऐसे हैं जिन्होंने अभी तक अथॉरिटी के ड्यूज को जमा नहीं किया गया है. कोई प्रोजेक्ट अगर बिल्डर लाता है तो उसकी जिम्मेदारी होती है कि अपनी देनदारी पूरी तरह से दे. क्योंकि ये सरकार का राजस्व है और ये विकास से जुड़ा मामला है. ये वो ड्यूज हैं जो उन्होंने नहीं दिए और ब्याज लगते-लगते बढ़ गए हैं. एक शहर को तभी आगे बढ़ाया जा सकता है जब वो सेल्फ सस्टेनेबल मॉडल पर काम करता है. जो बिल्डर अथॉरिटी के ड्यूज दे रहे हैं उनकी रजिस्ट्री हो रही है. जो लोग नहीं देते हैं उनकी रजिस्ट्री पेंडिंग हैं. हमने ड्यूज क्लियर करने के लिए बिल्डरों को कई तरह की सुविधाएं भी दी हैं. इसमें उन्हें किस्तों की सुविधा भी दी गई है. यही नहीं अगर वो एकमुश्त पैसा नहीं दे रहे हैं तो वो प्रति टॉवर के अनुसार भी पैसा दे सकते हैं. यही नहीं हमने उन्हें प्रति फ्लैट पर भुगतान देने की भी सुविधा दी है जिससे वो प्रति फ्लैट के अनुसार भी भुगतान कर सकते हैं. हमारी ये भी कोशिश है कि सरकार का पैसा आ जाए और हमारे बॉयर को परेशानी का सामना न करना पड़े. हम लोग बॉयर के दृष्टिकोण से पॉलिसी लाते हैं. जो मामले ऐसे हैं जो डिफॉल्टर हो गए हैं और जो लिटिगेशन में चले गए हैं उन्हें थोड़ा मैनेज करना मुश्किल होता है.
सवाल : जैसा कि हम जानते हैं नोएडा में बड़े स्तर पर पॉलिटिकल प्रेशर रहता है इतने बड़े पद रहते हुए उसे आप कैसे मैनेज करती हैं?
जवाब: ऐसा नहीं है. जब आप क्षेत्र में काम करते हैं तो नियम और कायदे जितने हमारे लिए हैं उतनी ही पॉलिटिकल मशीनरी के लिए भी हैं. वह सरकार का हिस्सा है और सरकार की पॉलिसी बनी उनके द्वारा है और एक्जिक्यूट हमारे द्वारा की जाती है. कोई भी काम होता है वह बाहर देखने से जरूर लगता होगा कि कि पॉलिटिकल प्रेशर रहता है. लेकिन कोई भी जो काम होता है, वो आपसी समन्वय से ही होता है और जनसामान्य की अपनी जो समस्याएं रहती हैं वो उसे अपने अपने जनप्रतिनिधि के पास पहले लेकर जाते हैं और उसकी सुनना और उसे ऊपर तक पहुंचाना उसकी जिम्मेदारी रहती है. जो सेकंड लेवल हम लोगों तक आता है जो हमारे पास कुछ डायरेक्ट लोग आते हैं. लेकिन हम लोग यह भी देखते हैं कि वह सरकारी नियम और कायदे से हो और ऐसा ही पॉलिटिकल मशीनरी का रहता है आवाज सबकी पहुंचाई जाती है. लेकिन दोंनो के लिए यही रहता है कि काम वह हो जो नियम और कायदे में है, जिससे पूरे क्षेत्र का विकास हो. ऐसा नहीं है कि कहीं किसी तरह का कोई फ्रिक्शन रहता है. हमारी वर्किंग में बाहर से लगता होगा लेकिन सामान्यतः कार्यप्रणाली हर जगह की रहती है वह एक आपसी समन्वय से ही क्षेत्र का विकास होता है.
पूरा इंटरव्यू यहां देखें:
ये जो कैपिटेलिस्ट फोर्सेज हैं ये वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में जाती हैं और उनके अनुसार ये अपनी समझ को विकसित करने का मंच है.
स्विट्जरलैंड के दावोस में चल रहे विश्व इकोनॉमिक फोरम में दुनियाभर के कारोबारियों से लेकर विश्व स्तर के नेता पहुंचे हुए हैं. भारत की ओर से भी कई केन्द्रीय मंत्री इसमें भाग लेने पहुंचे हुए हैं जबकि कई और जा सकते हैं. लेकिन भारत के सबसे बड़े सामाजिक और सांस्कृतिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की आर्थिक शाखा का इस पर क्या कहना है ये जानने के लिए हमने स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय सह-संयोजक अश्विनी महाजन से बात की और जानना चाहा कि आखिर उनका इस महत्वपूर्ण विषय को लेकर क्या मानना है. उनका कहना है कि ये भारत के लिए ज्यादा उपयोगी हो ऐसी समझ हमारी नहीं है हां ये फोरम अपनी समझ विकसित करने का एक माध्यम है जिसे हम गलत नहीं मानते हैं.
दुनियाभर की फोर्सेज का प्वाइंट ऑफ व्यू समझना जरूरी
स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय सह-संयोजक अश्विनी महाजन बताते हैं कि ये जो फोरम है ये बिजनेस का ग्लोबल फोरम है, इसमे अधिकांश कॉरपोरेट, एमएनसी, भाग लेते हैं. उनका कहना है कि कैपिटल रिसोर्स और एमएनसी अपने बारे में विचार करें तो उनके लिए ये ठीक हो सकता है लेकिन भारत के लिए ये ज्यादा उपयोगी हो ऐसी समझ हमारी नहीं है. वो आगे कहते हैं कि फिर भी दुनिया में जो कंफीग्रेशन होती हैं उसमें भागीदारी करना उसमें गलत नहीं है. दुनिया में जो फोर्सेंज हैं वो क्या कर रही हैं, उनके बारे में जानकारी लेना और वहां अपनी समझ को विकसित करना उस दृष्टि से ये भारत के इंगेजमेंट के बारे में हो सकता है. लेकिन इसमें जो फोर्सेज काम कर रही होती हैं उनके पाइंट ऑफ व्यू को समझना जरूरी है.
क्या इससे भारत को कुछ हासिल होता है
अश्विनी महाजन कहते हैं कि देखिए इसमें हासिल होने जैसा कुछ नहीं होता है. आप अपनी समझ विकसित कर सकते, क्योंकि इसमें समझौते नहीं होते हैं. इसमें कुल मिलाकर आप ट्रेड या इकोनॉमी से जुड़े मामलों को लेकर अपनी समझ विकसित कर सकते हैं. आप जान सकते हैं कि इस वक्त दुनिया में किस बारे में विचार चल रहा है.
क्या कभी हमें इसका निवेश के तौर पर फायदा होता है
देखिए जो भी निवेश होते हैं आंतरिक और बाहरी वो आर्थिक मुददों के आधार पर होते हैं. अफ्रिका जैसे देश हैं या बनाना रिपब्लिक हैं जहां लॉ एंड ऑर्डर की स्थिति ठीक नहीं है जहां निवेशक बहुत आकर्षित नहीं होते हैं, अगर वो भी वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम मे चले जाएंगे तो उन्हें कोई निवेश नहीं मिलने वाला है. जैसे मेला होता है और वहां सबलोग जाते हैं ये एक अंतरराष्ट्रीय मेला है, एक दूसरा मेला भी लगता है दुनिया में जिसे वर्ल्ड सोशल फोरम कहा जाता है. ये जो सारी कैपिटेलिस्ट फोर्सेज हैं ये वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में जाती हैं और जो सोशलिस्ट जो लेफटिस्ट फोर्सेंस हैं या कई बार वो लोग जो रोजगार, बेरोजगारी जैसे विषयों को लेकर सामाजिक सरोकार रखते हैं वो भी वर्ल्ड सोशल फोरम में जाती हैं. ये केवल समझ विकसित करने का मंच हैं.
शिल्पा शेट्टी एक्टिंग की दुनिया के साथ-साथ बिजनेस की दुनिया में भी नाम कमा रही हैं. BW Businessworld के साथ बातचीत में उन्होंने कई मुद्दों पर बात की.
लीवुड एक्ट्रेस अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी बिजनेस की दुनिया में भी पैर जमा रही हैं. हाल ही में उन्होंने अपना फिटनेस और हेल्थ ऐप Simple Soulful लॉन्च किया है. BW Businessworld से एक्सक्लूसिव बातचीत में उन्होंने इसके ग्रोथ प्लान के बारे में बताया. साथ ही स्टार्टअप स्पेस में अपने निवेश और स्ट्रेस दूर भगाने के बारे में भी बात की. पेश हैं इस बातचीत के कुछ अंश:
पिछले दो वर्षों में आपकी सबसे बड़ी सीख क्या रही है?
मैंने महसूस किया है कि जब आप स्टार्टअप होते हैं तो आपको अधिक प्रयास करने और ज्यादा संसाधन इस्तेमाल करने होते हैं. शुरुआत हमेशा बिजनेस का सबसे महत्वपूर्ण और महत्वपूर्ण चरण होता है. जब मैंने Mamaearth के ब्रैंड एंबेसडर के रूप में शुरुआत की, तो मुझे यह नहीं पता था, लेकिन मुझे Varun और Ghazal Alagh के विजन पर भरोसा था. साथ मिलकर, हमने अपने स्टार्टअप की नींव रखने के लिए काफी काम किया है. पिछले दो साल हर बिजनेस के लिए कठिन रहे हैं. हमने गलतियां की हैं, उनसे सीखा है, सुधार किया है और तूफान का सामना भी किया है. इसलिए, मैं कहूंगी कि मेरी सबसे बड़ी सीख है कि दृढ़ संकल्प, परिश्रम और स्वीकृति एक सफल वेंचुर की कुंजी है.
एक्ट्रेस से बिजनेस वुमन बनने तक का सफर कैसा रहा है?
एक्टिंग में हम आर्ट क्रिएट करने के लिए हमेशा दूसरों के विजन को फॉलो करते हैं. किसी दूसरे की कहानी को जीते हैं, लेकिन बिजनेस में हमें सबकुछ खुद करना होता है. मुझे हमेशा से ही अपना खुद का कुछ करने की ललक थी. जिसकी वजह से मैंने निवेश का रास्ता चुना और अपना बिजनेस खड़ा किया. Simple Soulful App, Fast & Up और रेस्टोरेंट चेन Bastian जैसे ब्रैंड मेरे बिजनेस पोर्टफोलियो में शामिल हैं. मेरा मानना है कि जब आपका निवेश केवल पैसे पर केंद्रित नहीं होता, बल्कि इसमें जुनून (Passion) भी शामिल होता है, तो यह हमेशा लंबे समय तक काम करता है. पैशन और विजन मेरी जर्नी में ड्राइविंग फोर्स रहे हैं.
अपने फिटनेस ऐप और उसके पीछे की प्रेरणा के बारे में बताएं?
अधिकांश योग ऐप और चैनल गैर-भारतीयों द्वारा चलाए जा रहे हैं और प्राउड इंडियन होने के नाते मुझे यह अजीब लगा. जब मैंने पाया कि लोग अपनी व्यक्तिगत फिटनेस यात्रा में आगे बढ़ने के लिए मेरी तरफ देखते हैं, तो मैंने अपना YouTube चैनल शुरू करने का सोचा और वहीं से सिंपल सोलफुल ऐप का विचार मन में आया. यह पहला अखिल भारतीय योग ऐप बन गया - लोगों के फिटनेस लक्ष्यों के लिए वन-स्टॉप शॉप की तरह. आज, शिल्पा शेट्टी का Simple Soulful ऐप एक होलिस्टिक हेल्थ ऐप है जो योग, फिटनेस, डांस, मैडिटेशन और डाइट प्रोग्राम के साथ समाधान प्रदान करता है, जिन्हें विशेषज्ञों द्वारा डिजाइन किया गया है. मैंने होलिस्टिक हेल्थ के बारे में जागरुकता फैलाने और सभी को स्वस्थ जीवन शैली जीने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए यह ऐप शुरू किया है. इसमें 70+ लक्ष्य-आधारित प्रोग्राम हैं, जिनमें मोटापा कम करने, मधुमेह को नियंत्रित करने और प्रतिरक्षा को बढ़ावा देने के प्रोग्राम शामिल हैं. मासिक धर्म के दर्द से राहत से लेकर गर्भावस्था के बाद वजन घटाने जैसे महिलाओं पर केंद्रित प्रोग्राम भी हैं.
हम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीक भी लॉन्च कर रहे हैं, जो यूजर्स को फॉर्म और पोस्चर ट्रैक करने, स्कोर देने और कैलोरी काउंट पर नजर रखने में मदद करेगी. इस ऐप की सबसे अच्छी बात यह है कि आपकी गोपनीयता हमारे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है. हम कुछ भी रिकॉर्ड नहीं करते हैं और इस तरह डेटा उल्लंघन का सवाल ही नहीं है. अब तक ऐप डाउनलोड 6.4 मिलियन (एंड्रॉइड: 2.9 मिलियन, आईओएस: 1 मिलियन, जियो एसटीबी/एमआई टीवी/एंड्रॉइड टीवी: 2.5 मिलियन), एमएयू: 3,50,000 (एप्पल + एंड्रॉइड मोबाइल + एंड्रॉइड टीवी) हैं.
अपने फिटनेस ऐप के लिए आपने क्या ग्रोथ सेट किया है?
विकास निवेश के क्षेत्र के अधीन है. कुछ लंबी अवधि के होते हैं, और कुछ मध्यम से लंबी अवधि के होते हैं, मैं छोटी अवधि के निवेश में विश्वास नहीं करती. बिजनेस एक बच्चे की तरह है, जिसका सही ढंग से पालन-पोषण होना चाहिए और उसे फलने-फूलने के लिए सही संसाधन दिए जाने चाहिए. मैं लोगों और उनके विजन में निवेश करती हूं, मैं ऐसे क्षेत्रों में निवेश करती हूं जो एक अंतर ला सकें, मैं दीर्घकालिक टिकाऊ व्यवसायों में निवेश करती हूं.
भारत में स्टार्ट-अप स्पेस पर आपके क्या विचार हैं?
भारत अवसरों का देश है. हम जिस ब्रेन ड्रेन का सामना कर रहे थे, वह धीमा हो गया है क्योंकि अधिकांश फाउंडर्स को यह अहसास हो गया है कि भारत क्या ऑफर कर सकता है, विशेष रूप से स्टार्ट-अप स्पेस में. हमारे पास बुनियादी ढांचा है और विभिन्न स्किल्स सेट तक पहुंच है. हमारा देश एक अरब से अधिक लोगों वाला देश है. यदि 50 प्रतिशत को ही संभावित ग्राहकों के तौर पर गिना जाए, तो भी यह बहुत बड़ी बात है. आज उत्पादों और सेवाओं को लॉन्च करने के लिए भारत से बेहतर कोई स्थान नहीं हो सकता. हम एडटेक, फिनटेक और ई-कॉमर्स स्पेस में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं. यह देखकर बहुत अच्छा लगता है कि हाल के वर्षों में भारत में सबसे अधिक स्टार्ट-अप सामने आए हैं. मुझे "मेक इन इंडिया" और हमारे देश के स्टार्ट-अप ईकोसिस्टम में पूरा विश्वास है.
आप निवेश के लिए कंपनियों का चुनाव कैसे करती हैं?
मुख्य रूप से, मैं लोगों और उनके विजन में इन्वेस्ट करती हूं. फिर, मैं अपनी सूझबूझ के आधार पर फैसले लेती हूं. अंत में, मुझे उत्पाद या उसके पीछे की सोच पर विश्वास करना होता है. चेकलिस्ट में पैसा हमेशा आखिरी चीज होता है. यदि विचार काम करता है और दृष्टि उसका समर्थन करती है, तो उत्पाद भी काम करेगा. Mamaearth इसका उदाहरण है.
आपके अपकमिंग फिल्म प्रोजेक्ट्स कौन से हैं?
मेरी अगली फिल्म है Sukhee. इसमें मैंने टाइटल रोल किया है और फिल्म सोनल जोशी द्वारा निर्देशित और अबुंदंतिया प्रोडक्शंस द्वारा निर्मित है. मैं 'इंडियन पुलिस फोर्स' की शूटिंग भी कर रही हूं. यह अमेजन पर रिलीज होने वाली एक वेब सीरीज है, जिसे रोहित शेट्टी ने निर्देशित किया है.
आप तनाव को कैसे मात देती हैं?
प्राणायाम करके और अपनी सांस पर ध्यान केंद्रित करके. इसके अलावा, जागरुक रहकर और यह जानकर कि समाधान आपके भीतर है.
कोई एक किताब जिसने आपको प्रेरित किया है?
ऐसे कई किताबें हैं, जिसमें Ikigai: The Japanese Secret to A Long Happy Life, सबसे हालिया है.
किसी भी राज्य के लिए लैंड, लेबर, टेक्नोलॉजी और कैपिटल ये चार चीजें जरूरी होती हैं जो निवेश की धुरी होती हैं. केन्द्र और राज्य का जो सामंजस्य है उससे प्रदेश को बहुत फायदा हो रहा है.
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ लगातार प्रदेश की अर्थव्यवस्था को 1 ट्रिलियन बनाने को लेकर अपना संकल्प दोहरा रहे हैं. इसी को लेकर राज्य सरकार कई स्तर पर प्रयास कर रही है, लेकिन सवाल ये है कि आखिर कैसे प्रदेश की अर्थव्यवस्था 1 ट्रिलियन बनेगी? इसे लेकर यूपीसीडा (UPSIDA) के सीईओ मयूर माहेश्वरी से बात की BW Hindi के एडिटर अभिषेक मेहरोत्रा ने. पेश है उस बातचीत के कुछ अंश:
सवाल: बड़ा प्रश्न ये है कि देश बदल रहा है की तर्ज पर 2023 में प्रदेश में क्या बदलाव देखने को मिलेंगे?
जवाब: देखिए आप खुद इस प्रदेश के निवासी हैं और आप बदलाव देख रहे हैं. बुंदेलखंड एक्सप्रेस वे हो, यूपी डिफेंस कॉरिडोर हो, ओडीओपी (ODOP) योजना हो या ग्लोबल इन्वेस्टमेंट समिट. ये सब काम एक रणनीति के तहत हो रहा है, जिससे हम अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकें. इसकी एक बानगी के तौर पर बताता हूं कि पहले जनता को अपनी समस्याओं को सुलझाने के लिए सरकार के पास जाना पड़ता था, लेकिन आज सरकार जनता के पास जा रही है. हमारा मकसद ये है कि लोगों को सरकारी ऑफिसों के चक्कर लगाने ही न पड़ें. हमने कोविड काल का सदुपयोग करते हुए सभी सेवाओं को ऑनलाइन कर दिया. हमारी अभी 32 सेवाएं ऑनलाइन हो चुकी हैं और 15000 लोग उसका इस्तेमाल करते हुए 95 प्रतिशत संतुष्टि भी दिखा चुके हैं. हम आगे भी यूजर का फीडबैक लेते हुए इसमें और आगे बढ़ना चाहेंगे.
सवाल: पहले ये कॉरपोरेशन (UPSIDC) था, और अब अथॉरिटी (UPSIDA) में बदल चुका है. इससे इसके काम करने के तरीके में क्या बदलाव आया है?
जवाब: देखिए पहले यह निगम था और जैसा कि आप जानते हैं कि इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी इंडस्ट्रियल एक्ट 1976 के तहत गठित हुआ था. इसके तहत नोएडा, ग्रेटर नोएडा यमुना यह सभी इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी है. जबकि यूपीएसआईडीसी इन सबसे पुरानी थी. इसका सफर 1961 में शुरू हुआ था. उस वक्त कॉरपोरेशन के तहत चला करती थी, लेकिन बदलते समय के साथ सरकारों ने सभी के लिए जवाबदेही और काम करने के तरीके में बदलाव किए और सभी को अथॉरिटीज में बदल दिया गया. सभी के लिए पॉलिसी फ्रेमवर्क बना दिया गया. जो कि सभी इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी पर लागू होता है. इनके तहत काम करने वाले लोगों को एक से दूसरे में ट्रांसफर किया जाता है. आज इनमें काम करने वालों का स्किल सेट पहले से ज्यादा है और वह हर स्तर पर है. यह निवेशकों को भी मदद करता है. उसके चलते निवेशक को अलग-अलग तरह के नियम-कायदों में नहीं उलझना पड़ता. राज्य के अलग-अलग हिस्सों में एक जैसी ही व्यवस्था चलती है.
पूरी बातचीत यहां देखें
सवाल: जब हम विकास की बात करते हैं तो हमें नोएडा से बनारस तक तो विकास दिखता है, लेकिन बुंदेलखंड पर आकर ये रुक जाता है. आप लोग बुंदेलखंड को लेकर किस तरह से ध्यान दे रहे हैं और निवेशक उसमें कितनी रुचि दिखा रहे हैं?
जवाब: देखिए बुंदेलखंड पर विकास रुक नहीं जाता, बल्कि इस सरकार में वहां से विकास शुरू हो रहा है. उदाहरण के तौर पर बुंदेलखंड एक्सप्रेस, जिसका काम पूरा हो चुका है. महत्वकांक्षी योजना यूपी डिफेंस कॉरिडोर भी बुंदेलखंड से शुरू हो रही है और अलीगढ़ तक आ रही है. आज बुंदेलखंड विकास की धुरी बन चुका है. आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि बांदा, चित्रकूट जैसे इलाकों में जहां लोग पहले जाने से डरते थे आज वहां ये स्थिति हो गई है कि हमें निवेशकों के लिए और जमीन इकट्ठा करनी पड़ रही है. आज जमीनों की नीलामी हो रही है, बड़े-बड़े निवेशक आ रहे हैं. बुंदेलखंड में हमारा सोलर कॉरिडोर विकसित हो रहा है. बुंदेलखंड में हर घर में जल देने की योजना आगे बढ़ रही है. आप जल्द ही देखेंगे कि टूरिज्म सेक्टर भी वहां ग्रो करेगा, जब किसी इलाके में इंडस्ट्री पनपती है तो वहां सर्विस सेक्टर भी आता तो ऐसे में आप देखेंगे कि रोजगार भी वहां बढ़ेगा.
सवाल: यूपी डिफेंस कॉरिडोर में जमीन अधिग्रहण किस तरीके से हो रहा है और ये कहां तक पहुंचा है?
जवाब: देखिए इसकी शुरुआती परिकल्पना ये है कि देश डिफेंस के उत्पादों में आत्मनिर्भर बनेगा. इसी को लेकर ये प्रोजेक्ट यूपी को मिला था. इसमें बुंदेलखंड से अलीगढ़ तक 6 नोड हैं, जिसमें जमीन अधिग्रहण हो चुका है. अलीगढ़ नोड में तो लैंड बिक भी चुकी है. आपने सुना भी होगा कि ब्रह्मोस ने अपनी एक यूनिट शुरू भी कर दी है. इसी तरीके से ड्रोन तकनीक, डिफेंस ऑफसेट, डिफेंस टेक्सटाइल, डिफेंस मैन्यूफैक्चरिंग का इकोसिस्टम यूपी में तेजी से विकसित हो रहा है. इनके जरिए हम डिफेंस के इक्विपमेंट बनाएंगे और यूपी को डिफेंस कैपिटल बनाएंगे.
सवाल: यूपी ग्लोबल समिट को लेकर हम देख रहे हैं कि सरकार के कई मंत्री कई राज्यों में जा रहे हैं और तेजी से काम चल रहा है. इसे लेकर इंडस्ट्री से किस तरह का फीडबैक आपको मिल रहा है?
जवाब: देखिए मुख्यमंत्री ने हमको एक ट्रिलियन इकोनॉमी का लक्ष्य दिया है. मुख्यमंत्री का साफ कहना है कि इसमें उद्योगों की महत्वपूर्ण भूमिका होगी. वरिष्ठ कैबिनेट मंत्रियों के नेतृत्व में हमारे 8 डेलीगेशन 16 देशों में गए. अभी मुख्यमंत्री भी मुंबई गए थे, जहां उन्हें जबरदस्त रिस्पॉस मिला. पहले निवेश के लिए हमारा टॉरगेट 10 लाख करोड़ था, लेकिन उत्साह को देखते हुए उसे 17 लाख करोड़ कर दिया गया है. मुझे पूरा विश्वास है कि हम 20 लाख करोड़ तक का निवेश लाने में कामयाब रहेंगे. ये ऐतिहासिक होगा और किसी भी प्रदेश के लिए ये अब तक का श्रेष्ठ होगा.
सवाल: इंवेस्टमेंट मीट में एमओयू तो बहुत साइन होते हैं, लेकिन वो जमीन पर नहीं उतर पाते.
जवाब: आपने बिल्कुल सही कहा, लेकिन मैं आपके इस सवाल का जवाब तथ्यात्मक तौर पर देना चाहूंगा. हमने 2018 में इनवेस्टर समिट किया था, उसका हमने एक रिव्यू किया था तो उसमें ये निकलकर सामने आया कि अकेले यूपीसीडा वाले इलाके में 700 से ज्यादा इंडस्ट्री ग्राउंड पर आई हैं. 15000 करोड़ रुपये का निवेश आया था. हमने वहां जमीनों का लैंड ऑडिट किया और जो जमीन खाली थीं, उनको कैंसिल करके नए निवेशकों को जमीन दी. आज हमारी अथॉरिटी रेवेन्यू सरप्लस है. हमने उन्हें वो इकोसिस्टम दिया जिसमें वो हमारे पास आए बिना जमीन ले सकते थे. कोविड में जहां एक ओर बिजनेस बंद हो रहे थे वहीं हमारे यूपी में हमने तिगुने से ज्यादा लैंड अलॉट किए. वो सारी यूनिट आज संचालित हो चुकी हैं. हमारे पास सरप्लस पावर है और 20 हजार एकड़ पर्याप्त लैंडबैंक है. हम 25 सेक्टोरल पॉलिसी के साथ नए बिजनेस समिट में जा रहे हैं. आप जानते हैं यूपी में बेहतर ह्यूमन रिसोर्स मौजूद है.
सवाल: वन डिस्ट्रिक्ट, वन प्रोडक्ट योजना कितने जिलों तक पहुंच पाई है और उसका क्या फायदा आप देख रहे हैं?
जवाब: जनवरी 2018 में यूपी के हुनरमंद लोगों को विश्व पटल पर ले जाने के लिए एक योजना शुरू की गई. एक जिला, एक उत्पाद. PM मोदी ने जी20 के सभी बड़े लीडर्स को जो उत्पाद बतौर गिफ्ट दिए थे, उन्हें हमारे लोकल हुनरमंद लोगों द्वारा तैयार किया गया था. उन्हें विश्व स्तर पर ये पहचान मिलना अपने आप दर्शाता है कि ये योजना कितनी सफल हुई है. हमने इसमें सोर्सिंग, टेस्टिंग, ट्रेसिंग, ब्रैंडिंग और मार्केटिंग हर लेवल पर मदद की है. हम चाहते हैं कि इसमें जो 62 प्रोडक्ट हैं उनमें इन सभी के साथ वैल्यू एडिशन हो. हमने कॉमन फैसिलिटी सेंटर के जरिए उन्हें ट्रेनिंग दी है जिसका नतीजा आज हम देख रहे हैं.
सवाल: अयोध्या को लेकर आप किस तरह से प्लानिंग कर रहे हैं?
जवाब: देखिए सरकार का मकसद है अपनी परंपराओं को आधुनिकता के साथ आगे बढ़ाना. हम सभी जानते हैं कि अयोध्या एक आध्यात्मिक शहर है और वह हम सभी के लिए है. अब वहां नया राम मंदिर बन रहा है. यह हर सेक्टर के लिए अवसर पैदा करेगा. अब वह होटल हॉस्पिटैलिटी सेक्टर हो, टूरिज्म हो, या उद्योग, सभी इस डेवलपमेंट का इंतजार कर रहे हैं. सभी इस बदलाव के साक्षी बनेंगे और सरकार वहां एक नई मॉडल सिटी बनाना चाहती है. क्योंकि इन सभी चीजों को इंफ्रास्ट्रक्चर की जरूरत होगी जो कि विश्वस्तरीय होना चाहिए. मुख्यमंत्री का इसे लेकर एक विजन भी है. उन्होंने सोलर सिटी की भी परिकल्पना की है, जो कि पूरी तरह से ग्रीन टाउनशिप होगी और ग्रीनफील्ड के तरीके से विकसित की जाएगी. उसमें दुनिया की बेहतरीन तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा, जिससे आध्यात्मिक शहर सभी बेहतरीन चीजों को अपनी ओर आकर्षित करे.
मेरा प्रयास हमेशा अपने व्यक्तित्व को बनाए रखते हुए दूसरों के साथ ढेर सारी सकारात्मक ऊर्जा साझा करने का होता.
नई दिल्लीः क्रिकेटर शिखर धवन भी साथी खिलाड़ियों की देखा-देखी अब बिजनेस की दुनिया में भी परचम लहराने के लिए कूद पड़े हैं. धवन ने 75 मिलियन अमेरीकी डॉलर के शुरुआती कॉर्पस और 25 मिलियन अमेरीकी डॉलर के ग्रीनशो विकल्प के साथ स्पोर्ट्सटेक स्टार्टअप्स में निवेश करने के लिए 75 मिलियन अमेरीकी डॉलर के वैश्विक निवेश कोष की घोषणा की है.
BW Businessworld के साथ एक विशेष बातचीत में, शिखर धवन ने उद्यमियों से स्मार्ट जोखिम लेने का आग्रह किया. "मैं एक नई पारी शुरू करने और उद्यम पूंजी की दुनिया में इस यात्रा को शुरू करने के लिए उत्साहित हूं. मैं ऊर्जा में विश्वास करता हूं. मेरा प्रयास हमेशा अपने व्यक्तित्व को बनाए रखते हुए दूसरों के साथ ढेर सारी सकारात्मक ऊर्जा साझा करने का होता. सही कदम उठाने के लिए सही लोगों के साथ सहयोग और साझेदारी महत्वपूर्ण है."
स्पोर्ट्सटेक फंड: जानिए क्या और क्यों?
यह प्रस्ताव एक मल्टी-स्टेज फंड है जो स्पोर्ट्स स्पेक्ट्रम में इनोवेशन पर केंद्रित है. एशियाई खिलाड़ी द्वारा यह पहला संगठित वेंचर कैपिटल फंड है. शिखर धवन एक भारतीय क्रिकेटर, बाएं हाथ के सलामी बल्लेबाज और कभी-कभी भारतीय राष्ट्रीय क्रिकेट टीम के कप्तान के रूप में जाने जाते हैं. धवन इंडियन प्रीमियर लीग में पंजाब किंग्स और प्रथम श्रेणी क्रिकेट में दिल्ली की कप्तानी करते हैं.
इस कंपनी के साथ की है साझेदारी
धवन ने अपनी फंडिंग के बारे में विवरण शेयर करते हुए कहा, “DaOne ग्लोबल वेंचर्स (डीओजीवी) के तहत हमारे स्पोर्टस्टेक फंड के साथ, हम शुरुआती चरण के साथ-साथ ग्रोथ स्टेज स्टार्टअप दोनों पर ध्यान केंद्रित करेंगे. एंजेल निवेशकों के साथ कम जोखिम और उच्च रिटर्न के लिए, हम शुरुआती चरणों में और अधिक निवेश करेंगे.
धन का इस्तेमाल ग्लोबल लेवल पर होगा, जैसा कि एलपी कंपनियों में होता है. फंड में दुनिया भर की अन्य प्रमुख खेल हस्तियां भी होंगी जो राजदूत के रूप में कई खेलों का प्रतिनिधित्व करेंगी. इस अनूठे नेटवर्क के माध्यम से, दा वन ग्लोबल वेंचर्स दुनिया भर में एक इकोसिस्टम तक पहुंच प्रदान करेगा जो स्पोर्टटेक क्षेत्र में नए प्रस्तावों को गति देगा और जुटाएगा।
एक उद्यमी को तीन बातों का ध्यान रखना चाहिए
जैसा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोहराते रहते हैं कि भारत रोजगार सृजकों की अर्थव्यवस्था है. एक प्रभावशाली शख्सियत के रूप में, धवन उत्साहित हैं और प्रभाव बनाने और मूल्य निर्माण पर नजर रखने वाले युवा स्टार्टअप को फंड और पोषण देने की उम्मीद कर रहे हैं.
शिखर धवन के लिए, एक आदर्श उद्यमी के लिए एक ब्रैंड बनाने के लिए शीर्ष तीन पहलू हैं. उन्होंने कहा कि एक जुनूनी संस्थापक, एक अच्छी टीम और वृद्धि और विकास के सामूहिक मिशन की दिशा में काम करने का उनका उत्साह सबसे महत्वपूर्ण चीजें हैं.
"मैं असफलताओं से कभी नहीं डरता था. असफल हों, खड़े हों और उनसे सीखें, लेकिन करते रहें. प्रेरणा की एक पंक्ति है जिसे मैं कभी नहीं भूलता. मेरी मां मुझसे कहा करती थी, "कोई बात नहीं", वह विफल होने पर वापसी करने के तरीके पर युवा उद्यमियों को अपनी सलाह साझा करते हुए कहते हैं.
DaOne की योजनाओं पर धवन
एक खिलाड़ी के रूप में, उन्हें लगता है कि यह एक छोटी अवधि का करियर है और इसलिए एक समानांतर पेशेवर धारा में प्रवेश करना और स्थापित करना बहुत महत्वपूर्ण था. "मैं इस फंड विचार पर चर्चा करने के लिए एक साथ आए स्मार्ट और बौद्धिक लोगों की एक बहुत ही अद्भुत टीम का आभारी हूं. ऐसा करने के लिए, मेरी टीम ने गहन अनुसंधान और विकास के लिए पूरे एक साल का निवेश किया" धवन ने जोर दिया.
निवेशक बनने पर धवन को अपनी दोनों भूमिकाओं में काफी समानताएं नजर आती हैं। उन्होंने कहा, “मैं ऊर्जा में विश्वास करता हूं. मेरा प्रयास हमेशा अपने व्यक्तित्व को बनाए रखते हुए दूसरों को ढेर सारी सकारात्मक ऊर्जा देने का होता. इस कदम को उठाने के लिए सही लोगों के समूह के साथ सहयोग और साझेदारी महत्वपूर्ण है."
दा वन ग्लोबल वेंचर्स पारंपरिक निवेश मॉडल से परे जाएगा और दुनिया भर में स्पोर्ट्स इकोसिस्टम प्रणालियों के लिए डोमेन ज्ञान और अभूतपूर्व पहुंच प्रदान करेगा. धवन ने जोर देकर कहा, "हम एक विनम्र शुरुआत कर रहे हैं, लेकिन इसका उद्देश्य इसे और अधिक ऊंचाइयों तक ले जाना है और उद्यम पूंजी, खेल और प्रौद्योगिकी में अग्रणी होने के लिए नए मानक स्थापित करना है."
डीए वन ग्लोबल वेंचर्स दुनिया भर में विभिन्न प्रासंगिक स्टेकहोल्डर्स के साथ सक्रिय चर्चा में है और आगे के विकास की घोषणा उचित समय पर की जाएगी. डीए वन ग्लोबल वेंचर्स अपने प्लेटफॉर्म के भीतर विशिष्ट वर्टिकल के रूप में स्पोर्ट्सटेक एक्सेलेरेटर और ईस्पोर्ट्स वेंचर स्टूडियो को भी इनक्यूबेट करेगा.