मौसम सहरावत का आरोप है कि दिल्ली बॉक्सिंग एसोसिएशन में पिछले 16 सालों से रेलवे के 5 कर्मचारी शामिल हैं. ये कर्मचारी हर चुनाव में भी शामिल होते हैं.
दिल्ली एमेच्योर बॉक्सिंग एसोसिएशन के वाइस प्रेसिडेंट मौसम सहरावत बॉक्सिंग की बेहतरी के लिए काम कर रहे हैं. सहरावत को 2013 में बॉक्सिंग एसोसिएशन का वाइस प्रेसिडेंट चुना गया था, इस बार वह प्रेसिडेंट की पोजीशन के लिए लड़ रहे हैं. BW Hindi ने मौसम सहरावत से बॉक्सिंग और उससे जुड़ी उनकी योजनाओं को लेकर बातचीत की. पेश हैं उसके कुछ अंश:
एक बॉक्सर या एक्स बॉक्सर के तौर पर आपका अपना प्रोफाइल क्या है?
मैंने 1997 में बॉक्सिंग स्पोर्ट्स ऑस्ट्रेलिया में शुरू की. इंटर कॉलेज एंड यूनिवर्सिटी में पार्टिसिपेट किया है. भारत में मैं लगातार 3 बार 26 जनवरी की रिपब्लिक डे परेड में स्केटिंग करते हुए भाग लिया है. स्केटिंग, टेबल टेनिस और जवलीन में दिल्ली स्टेट पार्टिसिपेट किया और मेडल जीते. दिल्ली बॉक्सिंग फेडरेशन में मैंने साल 2011 में साउथ डिस्ट्रिक्ट के प्रेसिडेंट की पोस्ट पर ज्वाइन किया था. मेरी नियुक्ति विधायक चौधरी अभय सिंह चौटाला ने कराई थी, जो उस टाइम इण्डियन एमेच्योर बॉक्सिंग एसोसिएशन के प्रेसिडेंट थे.
बॉक्सिंग फेडरेशन से जुड़ने के बाद आपकी क्या उपलब्धियां हैं?
बॉक्सिंग फेडरेशन में हमारा पूरा फोकस बॉक्सिंग को आगे ले जाने पर है. हमारी कोशिश रहती है कि टैलेंटेड युवाओं को पूरा समर्थन मिले और यही हम कर रहे हैं. हमने 2014 से 2017 तक दिल्ली राज्य बॉक्सिंग चैंपियनशिप का सफल आयोजन किया था, जिसमें मैंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. 2019 में साउथ दिल्ली से सांसद रमेश बिधूड़ी के प्रयासों के चलते हमने ONGC से फंडिंग के लिए एसोसिएशन का एक कॉन्ट्रैक्ट करवाया था, लेकिन कोरोना की वजह से मामला आगे नहीं बढ़ पाया.
दिल्ली राज्य बॉक्सिंग चैंपियनशिप के आयोजन में आपने क्या महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी?
दिल्ली में कुल 12 डिस्ट्रिक्ट हैं, जो दिल्ली बॉक्सिंग एसोसिएशन के तहत आते हैं. मैंने अपनी डिस्ट्रिक्ट में दिल्ली स्टेट चैंपियनशिप शुरू करवाई और लोकल अकादमी को सपोर्ट किया, जिसके चलते साउथ दिल्ली डिस्ट्रिक्ट लगातार 4 साल नंबर 1 की पोजीशन पर रही. वाइस प्रेसिडेंट के चुनाव में बड़े मार्जिन से जीत के बाद मुझे दिल्ली एमेच्योर बॉक्सिंग एसोसिएशन की डिस्पूट कमेटी का चेयरमैन बनाया गया. इलेक्शन जीतने के बाद मैंने पूरी दिल्ली में लगातार 3 साल दिल्ली स्टेट चैंपियनशिप प्रोग्राम करवाए और दिल्ली को नेशनल लेवल पर मेडल जिताने में अहम भूमिका निभाई. इतना ही नहीं, खिलाड़ियों को किसी तरह की आर्थिक परेशानी न आए, इसलिए सभी खर्चे मैंने खुद उठाए. करप्शन की वजह से दिल्ली बॉक्सिंग एसोसिएशन के प्रेसिडेंट और जनरल सेक्रेटरी ने कभी भी दिल्ली के बच्चों को फाइनेंशियल सपोर्ट नहीं किया. ऊपर से दूसरे स्टेट के बच्चों को नकली ID से दिल्ली की तरफ से खिलाने का खेल जरूर खेला. मैंने इसका खुलकर विरोध किया और पासपोर्ट ID कंपलसरी की. हालांकि, बाद में मुझे उनके खिलाफ हाई कोर्ट का रुख करना पड़ा.
क्या आपने ऑफिशियली दिल्ली सरकार के सामने अपनी कोई मांग रखी है, जिसका कोई प्रूफ हो?
प्रूफ तो मैं आपको अभी नहीं दे सकता, लेकिन दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मेरी मुलाकात 2017 में उनके ऑफिस में हुई थी. उस समय उन्होंने पूरा सपोर्ट करने का वादा किया था, लेकिन किसी कारणवश बात आगे नहीं बढ़ पाई.
आपके बयान से लगता है कि बॉक्सिंग एसोसिएशन में कुछ भी नहीं हो रहा है, तो क्या मौजूदा प्रेसिडेंट ने कुछ भी नहीं किया?
दिल्ली बॉक्सिंग एसोसिएशन में पिछले 16 सालों से रेलवे के 5 कर्मचारी शामिल हैं. ये कर्मचारी हर चुनाव में भी शामिल होते हैं और अच्छी पोस्ट पर काबिज हैं. कानून के मुताबिक, स्पोर्ट्स बॉडी एसोसिएशन का इलेक्शन लड़ने के लिए इन कर्मचारियों को रेलवे से अनुमति और NOC लेना जरूरी है. यदि अनुमति मिल भी जाए तो अधिकतम 4 साल तक एसोसिएशन का हिस्सा रह सकते हैं. लेकिन ये लोग यहां 16 सालों से काबिज हैं, जो पूरी तरह से अवैध है. साल 2018 में मैंने इस बात पर ऑब्जेक्शन उठाया था, पर कोई कार्रवाई नहीं हुई, क्योंकि दिल्ली बॉक्सिंग एसोसिएशन के प्रेसिडेंट और जनरल सेक्रेटरी की इनसे मिलीभगत थी. इसलिए मैंने दिल्ली हाई कोर्ट का रुख किया और इन कर्मचारियों के खिलाफ केस दर्ज करवाया. 5 में से 3 कर्मचारी इस्तीफा दे चुके हैं, जबकि शेष 2 को बचाने की दिल्ली बॉक्सिंग एसोसिएशन और रेलवे पूरी कोशिश कर रहा है.
दिल्ली सरकार को क्या-क्या करना चाहिए, जिससे बॉक्सिंग में करियर बनाने वाले युवाओं को लाभ होगा, इस संबंध में थोड़ा विस्तार से बताएं?
इस साल फरवरी या मार्च में होने वाले दिल्ली एमेच्योर बॉक्सिंग एसोसिएशन के चुनाव में मैं प्रेसिडेंट के लिए फाइट कर रहा हूं. जीतने पर मैं दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और दिल्ली के सांसद से मुलाकात कर उन्हें दिल्ली की बॉक्सिंग को आगे बढ़ाने से जुड़ा के प्रपोजल सौंपूंगा. जितने भी दिल्ली में स्टेडियम हैं उन सब में बॉक्सिंग के प्रमोशन के बारे में सुझाव दूंगा. दिल्ली स्टेट बॉक्सिंग चैंपियनशिप में हर साल हजारों खिलाड़ी भाग लेते हैं, उन्हें वित्तीय सहायता मुहैया कराना और दिल्ली के स्टेडियम में उनकी फ्री एंट्री मेरी प्राथमिकता रहेगी. मेरा मानना है कि हर जिले में सरकारी बॉक्सिंग अकादमी खुलवाई जाएं. मैं दिल्ली को नेशनल लेवल पर टॉप 3 में लाने की कोशिश करूंगा. मैं करप्शन फ्री एसोसिएशन का वादा करता हूं.
बैंक का डिपॉजिट वित्त वर्ष 2024 में 2 लाख करोड़ रुपये के पार पहुंच चुका है. जबकि अगले पांच सालों में बैंक का लक्ष्य इसे 6 लाख करोड़ के पार पहुंचाने का है.
पिछले कुछ समय में बैंकों में लगने वाले हर तरह के चार्जेज ग्राहक के लिए चर्चा का विषय रहे हैं. लेकिन एक बैंक ऐसा भी है जिसने अपने ग्राहकों की डिमांड पर सभी तरह के चार्जेज को हटा दिया. बैंक के इस कदम से उसके रेवेन्यू पर असर पड़ा है लेकिन उसका विश्वास है कि ये कदम उसे एक लंबी रेस में आगे लेकर जाएगा. आखिर क्या है बैंक की तैयारियां इसे लेकर बिजनेस वर्ल्ड ने आईडीएफसी बैंक के एमडी और सीईओ वी वैद्नाथन से बात की है. जिन्होंने बैंक की तैयारियों को लेकर कई अहम बातें कही.
आपके बैंक को आईआईटी बॉम्बे के प्रोफेसर आशीष दास और मनीलाइफ फाउंडेशन द्वारा एक स्टडी में क्लास पार्ट नाम दिया गया है. आपके लिए इस तारीफ का क्या महत्व है?
जब हम आईडीएफसी के साथ विलय के बाद अपने बैंक का विजन तैयार कर रहे थे तब हमने एक साफ स्लेट से शुरुआत की. हमने अपने विजन स्टेटमेंट में यहां नैतिक बैंकिंग की पहचान की और लक्ष्यों को तय किया. लेकिन हम नहीं चाहते थे कि यह एक रटा-रटाया नारा बन जाए जिसे कर्मचारी पढ़ें और भूल जाएं. इसलिए, हमने अपने सभी उत्पादों, सेवाओं, शर्तों आदि को नया रूप दिया जिससे हम हमेशा इसमें रह सकें. इसका नतीजा ये हुआ कि हमारे उत्पाद अधिक से अधिक अनुकूल बन गए. हमारे विवरण और भी अधिक साफ और स्पष्ट हो गये. अब हम इससे खुश हैं. आईआईटी बॉम्बे और मनीलाइफ के प्रोफेसर आशीष दास द्वारा एक स्वतंत्र अध्ययन ने भी यही स्वीकार किया है. वे अत्यधिक विश्वसनीय लोग हैं, इसलिए हम खुश हैं इस रिपोर्ट में भारतीय बैंकों को ‘एक वर्ग से अलग’ कहा गया है.
बैंक जीरो फी बैंकिंग कैसे लेकर आया?
एक दिन हमारी वित्त टीम ने पाया कि हमारा बैंक डेबिट कार्ड शुल्क नहीं ले रहा है, जबकि अन्य सभी बैंक ऐसा कर रहे हैं, इसलिए,हमारे सीएफओ ने हमारे बिजनेस प्रमुखों को खुद को बेंचमार्क करने की सलाह दी और इसके लिए शुल्क लें. हमारी उत्पाद प्रबंधन टीम ने इस पर काम किया और ग्राहकों को यह कहते हुए पत्र भेजे और कहा कि हम जुलाई 2022 से सभी ग्राहकों से डेबिट कार्ड शुल्क के रुप में 500रु से 600 रु चार्ज करेंगे. कुछ ग्राहकों ने हमसे मेल करते हुए कहा कि हमने आपके बैंक का समर्थन तब से किया है जब आप छोटे थे, क्या आप इस पर पुनर्विचार कर सकते हैं? संयोग से उनमें से एक मेल मुझ तक पहुंचा और हमने इस अवसर का लाभ उठाते हुए अपनी सभी फीसों और विवरणों तथा अन्य पर फिर से विचार किया. कुछ चर्चाओं के बाद हमने इसे सरल बनाने का निर्णय किया. हमने सभी जगहों ग्रामीण, शहरी, छोटे, बड़े सभी ग्राहकों के लिए इसे जीरो कर दिया. अब हमारे ग्राहक इससे बहुत खुश हैं.
क्या आप इसके कुछ उदाहरण साझा कर सकते हैं?
यह आमतौर पर जटिल है, अलग-अलग मामलों बहुत सारे किंतु-परंतु के साथ इसे कैलकुलेट करना कठिन है, लेकिन हमने दूर कर दिया है, सभी जटिल विवरणों के साथ, और बस इसे शून्य बना दिया. यहां तक की हमारे ग्रामीण बैंकिंग ग्राहक जो मिनिमम बैलेंस सिर्फ 5,000 रुपये रखें, अब इसका आनंद लें.
क्या आप हमें इस तरह के आरोपों के कुछ उदाहरण दे सकते हैं जिन पर दूसरे बैंक चार्ज करते हैं लेकिन आप नहीं करते हैं.
वी वैद्यनाथन कहते हैं कि उनके बारे में बताने में तो बहुत समय लगेगा. इतना कहना पर्याप्त होगा कि एक लंबी सूची है जैसे आईएमपीएस, एनईएफटी, आरटीजीएस के लिए शुल्क नकद जमा, नकद निकासी, तीसरे पक्ष के लेनदेन, गैर-घरेलू, शाखा लेनदेन, विदेशी एटीएम, निकासी, एसएमएस...के बारे में हैं
ऐसे 35 चार्ज हैं जिन्हें हमने हटा दिया है.
क्या इसका आपके खाते पर कोई गंभीर प्रभाव पड़ा?
वी वैद्यनाथन कहते हैं कि हाँ, वास्तव में. जब हमने इसे लागू किया तो इसका, हम पर प्रभाव पड़ा. लेकिन सकारात्मक बात ये है कि हमने पिछले कुछ समय में अपने ग्राहकों से गुडविल हासिल की है. एक बैंक बना रहे हैं लंबे समय तक, हम इंतजार करने को तैयार हैं.
क्या आपका मौजूदा और भविष्य का ग्राहक उन फायदों के बारे में जानता है जिन्हें आप दे रहे हैं?
उन्हें शिक्षित करना और इसका प्रचार करना बहुत कठिन है. लेकिन इसे अगले 4 से 5 सालों तक अवश्य होना चाहिए.
जीरो फी बैंकिंग के अलावा आपका बैंक और क्या यूनीक सुविधाएं ऑफर कर रहा है?
हमारे पास मौजूद हर उत्पाद के लिए हमने ग्राहक फर्स्ट की थीम का पालन किया है. उदाहरण के लिए, क्रेडिट कार्ड में, रिवॉर्ड अंक समाप्त नहीं होते हैं. हम एकमात्र बैंक हैं जो ग्राहकों को अगली ऑनलाइन खरीद के लिए रिवॉर्ड भुनाने की अनुमति देते हैं. इस तरह, हमारे पास इसके लिए कई सुविधाएं हैं
प्रोफेसर आशीष दास और मनीलाइफ की तो रिपोर्ट का कौन सा भाग आपके लिए उपयोगी है?
यह आशीष दास-मनीलाइफ रिपोर्ट व्यापक है, यह विभिन्न मामलों की तर्कसंगतता प्रणाली में तुलना करता है. हर बैंक का अपने उत्पाद के नाम और उनके प्रत्येक उत्पाद के अंतर्गत फीस के बारे में बताने का अपना तरीका है. तो आप कैसे दो बैंकों की फीस की तुलना करते हैं? इसे निकालना, तुलना करना और रखना एक कठिन और श्रमसाध्य कार्य है, यह सब ,एक साथ है.
आप अपने प्रोडक्ट को कैसे प्रमोट करने की योजना बनाते हैं?
यह रिपोर्ट हमारे कर्मचारियों ने बनाई है और मैं इससे बहुत खुश हूँ क्योंकि यह आसान है. वे अब हमारा प्रतिनिधित्व करेंगे. अब ये साफ है कि हमारे उत्पाद अत्यधिक ग्राहक अनुकूल हैं,ताकि वे हमारे उत्पादों का अधिक आत्मविश्वास के साथ प्रचार कर सकें.
क्या पिछले 5 वर्षों में आपके बैंक की जमापूंजी ने आपको जीरो फीस बैंकिंग की ओर आगे बढ़ने में बड़ी भूमिका निभाई?
खैर, कोई एक कारण चुनना बहुत कठिन है. ऐसी बहुत सी चीज़ें हैं जिन्हें हमने किया है, हमने ब्रैंड जागरूकता, ब्रैंड चरित्र का मजबूत निर्माण किया है इसके अतिरिक्त हमारा संस्थागत अनुभव भी इसके पीछे है. हम बेहतरीन ग्राहक सेवा देने को लेकर भी प्रतिबद्ध हैं, तीसरा, हमने प्रौद्योगिकी का उपयोग किया और ग्राहक बढ़ाने के लिए पूरा जोर लगा दिया गया है. हमने अपने ग्राहकों को कई समाधानों से युक्त एक विश्व स्तरीय ऐप दिया. हमारे मोबाइल ऐप की Google रेटिंग 5 में से 4.9 है, जो काफी शानदार है. तो, ये सब चीजें जमा प्राप्त करने में भूमिका निभाती हैं.
भविष्य के बैंक डिपॉजिट के लक्ष्यों के लिए आपका क्या दृष्टिकोण है?
हमारी जमा राशि FY24 में 2 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच चुकी है. हमारा अनुमान है कि अगले 5 वर्षों में यह आसानी से 6 लाख करोड़ रुपये पार कर जाएगा. गाइडेंस 1.0 में 18 से 19 प्वॉइंट हैं, जिन्हें हमने अचीव किया है. अब हम गाइडेंस 2.0 के लिए तैयार हैं.
ऋचा सिंह ने कई अहम मसलों पर अपनी बात कहते हुए कहा कि अगर एआई मेरे काम के 30 मिनट को बचाता है तो मैं उसे क्यों नहीं करना चाहूंगी.
BW Businessworld के मार्केटिंग वर्ल्ड के मुंबई में हो रहे इवेंट में बिजनेस वर्ल्ड के चेयरमैन, एडिटर इन चीफ और समाचार4मीडिया के संस्थापक डॉ. अनुराग बत्रा ने सीईओ सेशन में नैचुरल डायमेंड काउंसिल की मैनेजिंग डॉयरेक्टर इंडिया एंड मीडिल ईस्ट ऋचा सिंह से कई अहम विषयों पर बात की. ऋचा सिंह ने दो दशक में इस क्षेत्र में आए बदलावों से लेकर एआई की भूमिका को लेकर अपनी बात कही. उन्होंने कहा कि एआई आज सभी की जिंदगी का अहम हिंस्सा बन चुका है. पेश है डॉ. अनुराग बत्रा की ऋचा सिंह से हुई दिलचस्प बातचीत के कुछ अंश-
डॉ. अनुराग बत्रा: मैं सबसे पहले आपसे पूछना चाहूंगा कि आप बीते लंबे समय से मार्केटिंग के क्षेत्र में काम कर रही हैं. आपने कई ब्रैंडस के साथ काम करने के दौरान पिछले दो दशक में मार्केटिंग में किस तरह का बदलाव देखा है?
ऋचा सिंह: मैने अपनी पहला कैंपेन एसीटेट पर बनाई थी. उसके लिए हमें एक स्टूडियो में भी जाना पड़ा था. उस वक्त डिजिटल रेवोल्यूशन मेरे लिए बड़ा सरप्राइज करने वाला था. यही नहीं मैंने अपनी पहली सैलरी से सबसे बड़ा निवेश अपने मोबाइल फोन पर किया था. डॉ बत्रा ने अपने संबोधन में यहां पर काइंडनेस का जिक्र किया था, उन्होंने कहा कि एक कंज्यूमर की पल्स को समझ पाने का हुनर हर किसी के पास नहीं होता है.
डेटा क्रंचिंग आज की तारीख में एक साइंस बन चुका है. डॉ. बत्रा ने यहां पर 9 घंटे सोने की बात कही थी लेकिन मुझे याद नहीं है कि मैं प्रेग्नेंसी के बाद से अब तक 9 घंटे सो पाई होंगी. अगर मुझे पांच घंटे की भी नींद मिल जाती है तो वो मेरे लिए पर्याप्त होती है. आज रिसर्च बहुत आसान हो गई है. पिछले दो दशक में हुए बदलाव के बारे में अगर आप पूछेंगे तो मैं यही कहूंगा कि मार्केटिंग की अप्रोच का तरीका बदल गया है लेकिन आपके अंदर का पैशन आज भी वैसा ही है.
डॉ. अनुराग बत्रा: मैं आपसे पूछना चाहता हूं कि पिछले दो दशक में विज्ञापन में पोट्रीयल ऑफ वुमन में क्या बदलाव आया है? क्या हम आज भी इस मामले में स्टीरियो टाइप बने हुए हैं.
ऋचा सिंह: मै अभी भी सोचती हूं कि एडवरटाइजिंग में अभी भी बहुत कुछ स्टीरियो टाइप चल रहा है. अब वो भले ही महिलाओं के ड्रेस अप का मामला हो या महिलाओं की बात करने का तरीका हो, लेकिन मुझे बहुत खुशी हो रही है कि आज न्यू एज की अच्छी कंपनियां महिलाओं को एक सशक्त महिला के तौर पर दिखा रही हैं. अब वो सिर्फ उन महिलाओं की बात नहीं है जो काम कर रही हैं अब वो घर पर रहने वाली महिलाओं की बात हो. मैं मानती हूं कि घर पर रहकर परिवार की जिम्मेदारी को संभालना अपने आप में सबसे कठिन काम है. कई फिल्में भी ऐसी आई हैं जिन्होंने महिलाओं के एमपॉवरमेंट को दिखाया है. लेकिन मुझे लगता है कि हमे अभी एक लंबा सफर तय करना है.
डॉ. अनुराग बत्रा: बिजनेस लीडर को गाइड करने में आप एआई की भूमिका को कैसे देखते हैं? क्या आप मानते हैं कि ये एक तरह से एआई इंडस्ट्री को गाइड करने की भूमिका में है या इंडस्ट्री के साथ एक कलीग तौर पर काम करने को तैयार है.
ऋचा सिंह: मैं मानती हूं कि एआई अब हमारे जीवन का एक हिस्सा बन चुका है. मैं मानता हूं कि हर मार्केटियर जो कि समय की कमी की समस्या से जूझता है एआई उस समय को बचाने में बड़ी भूमिका निभा रहा है. अगर आज मुझे किसी तरह का डेटा एनालिसिस करना हो तो आज वो तीन सेकेंड में हो जाता है. उसने मेरा 30 मिनट का समय बचा दिया है. अब मैं उस टाइम में ज्यादा एनालिसिस कर सकती हूं, अब आपके ज्यादा और कुछ सोचने के लिए और ज्यादा समय है.आज बहुत से लोग कहते हैं कि कॉपी राइटिंग में कोई करियर नहीं है, लेकिन मैं कहना चाहती हूं कि ये पूरी तरह से गलत है. अच्छा लिखने वालों की आज भी कैंपेन में जरूरत होती है.
डॉ. अनुराग बत्रा: अगर आप ऑटो सेक्टर की बात करें तो वो आज बहुत सी कारें बेच रहे हैं. इसमें सिडान कारों की संख्या ज्यादा मौजूद है. आज भारत के बाजार में गोल्ड डायमंड से लेकर कई दूसरी चीजों की बड़ी डिमांड देखी जा सकती है. या ये भी कह सकते हैं कि आज भारत के बाजार का प्रीमियराइजेशन हो रहा है. आप इसे लेकर क्या कहना चाहेंगे?
ऋचा सिंह: आज आप किसी भी 23 साल के युवा से पूछिए तो वो यही कहेगा कि मुझे कार नहीं खरीदनी है मैं ट्रैवल करना चाहूंगा. आज सभी की पसंद FNB है. अब वो भले ही खाना खा रहे हैं या कोई दूसरा काम कर रहे हैं. मेरा मानना है कि आज हर इंडियन की एक आशा बड़ी होती है, वो भले ही 100 रुपये कमाए या 1000 रुपये कमाए लेकिन उसकी तमन्ना बहुत बड़ी होती है. हम लोग जब बड़े हो रहे थे तो हमें कहा गया था कि आपको कुछ बड़ा करना है. आज मैं जो कुछ करना चाहती हूं मैं वो कर सकती हूं.
पलक शाह के साथ एक साक्षात्कार में, समीर अरोड़ा ने बताया कि Helios MF कैसे बाजार में लगातार आगे बढ़ता रहेगा.
पलक शाह
सिंगापुर आधारित फंड मैनेजर समीर अरोड़ा India फोकस्ड Helios Capital के लिए जाने जाते हैं. समीर अरोड़ा एक रिसर्च एनालिस्ट, वैश्विक निवेशक समीर अरोड़ा की शेयर चुनने और नए जमाने की कंपनियों की पहचान करने में उनकी बड़ी महारत है, विशेषतौर पर उनकी शेयर सलेक्ट करने की क्षमता बेमिसाल है. 1993 में न्यूयॉर्क से मुंबई आने के बाद, ये वो दौर था जब हर्षद मेहता के लगातार बढ़ते कद के बीच उन्होंने Alliance Capital के लिए म्यूचुअल फंड (MF) व्यापार की स्थापना करने में मुख्य भूमिका निभाई. तब, अरोड़ा द्वारा प्रबंधित किये जाने वाले India-dedicated MF ने 15 पुरस्कार जीते थे. इसके बाद सिंगापुर में शिफ्ट होने के बाद 2002 में The Asset मैगजीन द्वारा कराए गए एक पोल में उन्हें प्रतिभाशाली इक्विटी निवेशक के रूप में चुना गया. उनके Helios Strategic Fund को 2006 से 2020 तक लगातार Best India Fund श्रेणी में Eurekehedge द्वारा नामित किया गया और इसे उन्होंने 4 बार जीता. वो 2018 से लगातार पांच साल तक अपने बेहतरीन प्रदर्शन के लिए AsiaHedge पुरस्कार भी जीत चुके हैं.
विदेशी निवेशकों के मुकाबले घरेलू निवेशकों की बढ़ती प्रतिस्पर्धा ने अरोड़ा को मुंबई वापस आने पर मजबूर कर दिया.
Helios Capital पहली बार फ्लेक्सी-कैप योजना लॉन्च कर रहा है. सवाल ये है कि आखिर फ्लेक्सी-कैप क्यों? अरोड़ा की निवेश शैली के अनुरूप ये फंड स्मॉल कैप, मिड कैप और लार्ज-कैप कंपनियों में कहीं भी स्टॉक खरीद सकता है. पलक शाह के साथ एक साक्षात्कार में, समीर अरोड़ा ने कहा कि Helios एमएफ कैसे बाजार को प्रहार करने के रूप में आगे बढ़ेगा.
क्या आप म्यूचुअल फंड उद्योग में देर से जा रहे हैं? Helios नए निवेशकों को क्या नयी पेशकश कर रहा है?
संयुक्त राज्य अमेरिका में कई सैकड़ों म्यूचुअल फंड हैं, लेकिन भारत में अब तक केवल 50 ही हैं. हम म्यूचुअल फंड उद्योग में किसी भी प्रकार से देर से नहीं जा रहे हैं. Helios एक नई कंपनी नहीं है और इसके पास 18 साल से अधिक का अनुभव है, एक यूनिक और मजबूत निवेश प्रक्रिया है जिसका बेहतर प्रदर्शन करने का लंबा इतिहास रहा है. इसके अलावा, किसी भी विशेष उत्पाद श्रेणी में, शायद 5 सफल और अच्छी प्रदर्शन कर रही योजनाएं होती हैं. हमारी प्रतिस्पर्धा केवल 5 से 7 म्यूचुअल फंड्स के साथ है और पूरे उद्योग या हर योजना के साथ नहीं है.
सिंगापुर में हेज फंड प्रबंधक के रूप में, आपकी पसंदीदा रणनीति 'लॉन्ग और शॉर्ट' थी. ताकि निवेशकों के लाभ को अधिकतम स्तर तक पहुंचाया जा सके. देखा जाए तो एमएफ एक वनिला गेम है और आप शॉर्ट नहीं खेल सकते हैं. आप आकांक्षी निवेशकों के लिए 'अल्फा' कैसे उत्पन्न करेंगे?
Helios में, हम इस पर ध्यान केंद्रित करते हैं कि हमें क्या नहीं खरीदना है. हमारी रणनीति उन स्टॉक्स को दूर करने की है जिनमें हम नहीं निवेश कर सकते हैं, और ये हमें हम आठ मानकों के आधार पर तय करते हैं. उद्योग की Industry Dynamics, मैनेजमेंट क्वॉलिटी मूल्यांकन इत्यादि. हम उन कंपनियों से भी बचते हैं जिनमें फ्रॉड निवेश हो सकता है. हमारे मानदंडों में से अगर किसी भी सूची में वो स्टॉक मेल नहीं खाता है, तो स्टॉक हमारे लिए निवेश के लायक नहीं है. बुरे उपयोगी उपकरणों को हटाने के बाद, हम सबसे अच्छे खरीददारों की सूची पर पहुंचते हैं.
बुरी कंपनियों को सूची से हटाने का मतलब हमें हमेशा मिल जाता है कि हमने सबसे अच्छा निवेश खेल ढूंढ लिया है, लेकिन यह जोखिम प्रबंधन है. एक एमएफ के रूप में, हम चाहते हैं कि हम बुरी कंपनियों में ना निवेश करें और हमारा पोर्टफोलियो आमतौर पर अच्छी कंपनियों का हो. हालांकि, यह बहुत कम ही होता है, सभी निवेश अच्छे होते हैं और सभी आठ कारकों के साथ मेल खाते हैं. Helios और हमारे बीच में अंतर ये है कि ज्यादातर लोग 'गुणवत्ता' वाली कंपनियां खरीदेंगे, चाहे वो महंगी हों, या कम लागत में उपलब्ध हों या फिर चाहे वो बुरी तरह से क्यों न प्रबंधित हों.
हमारे मानकों में, 'वीटो' कुछ ऐसा होता है, जिसका मतलब है कि अगर कंपनी प्रबंधन बुरा हो, तो हम स्टॉक को खारिज कर देते हैं. ये एक तरह से खराब एप्पल हटाने जैसा है जो आपके मार्जिन को कम कर देता है. इससे Helios की लागत कम हो जाती है और रिटर्न में स्थिरता बढ़ जाती है.
क्या Helios ने एमएफ प्ले के लिए एक नई संरचना और टीम तैयार की है क्या?
Helios म्यूचुअल फंड के तहत, मैं फंड का बतौर संस्थापक,प्रायोजक और असेट मैनेजमेंट कंपनी में बतौर चेयरमैन रहूंगा. सीनियर मैनेजमेंट टीम उन लोगों से मिलेगी जो करीब 18 साल से सिंगापुर में मेरे साथ काम कर चुके हैं. जैसे उदाहरण के लिए, Helios एमएफ के CIO (मुख्य निवेश अधिकारी) अलोक बहल हैं, जो वहां मेरे दूसरे प्रमुख व्यक्ति थे. Helios के लॉन्ग और संगत प्रदर्शन के लिए श्रेय उन्हें भी जाता है. Helios के रिसर्च प्रमुख अभय मोदी जो अब तक हमारे साथ जुड़े हुए हैं, और इसके लिए उनका 16 साल से अधिक समय से संबंध है.
शुरुआत में, Helios पहली बार एक 'फ्लेक्सी कैप फंड' लॉन्च कर रहा है (जिसमें कंपनियों में निवेश किया जा सकता है, जैसे कि लार्ज-कैप, मिड-कैप, और स्मॉल-कैप स्टॉक्स) अगले 18 से 24 महीनों में, हम 4 से 5 योजनाएं और करेंगे. उसके परे, हम अब भी रणनीतिकरण कर रहे हैं और हम एक दिन ब्रिज जरूर पार करेंगे. वो कहते हैं कि एक बात तो निश्चित है कि हेलियोस एक सक्रिय रूप से मैनेज्ड फंड होगा.
क्या आपको लगता है कि एमएफ निवेशक स्टॉक की पूरी रैली से चूक जाते हैं क्योंकि नियामक आवश्यकताओं के अनुसार पोर्टफोलियो वेटेज को बैलेंस करने के लिए एम-कैप बढ़ने पर उन्हें स्टॉक बेचना जारी रखना पड़ता है? क्या यह एमएफ निवेशकों के लिए कमी या अभिशाप है?
ये बिल्कुल भी सही नहीं है. एमएफ को किसी भी स्टॉक में 10 प्रतिशत भार रखने की अनुमति है और यह उन 99 प्रतिशत शेयरों के लिए पर्याप्त है जिन्हें कोई भी रखना चाहेगा. ऐसा बहुत कम होता है कि एक या दो शेयरों में गलतफहमी होने लगे और उनके पास अधिकतम सीमा तक स्वामित्व न होने से पूरे पोर्टफोलियो पर असर पड़ने लगे.
एमएफ को अक्सर दुविधा के दो पहलुओं का सामना करना पड़ता है : उसे कभी बबल तरह की स्थिति या यहां तक कि 2008 जैसी मंदी के बाजार में भी पूरी तरह से बाहर नहीं निकल सकते हैं. एमएफ किसी भी परिदृश्य में अधिकतम 10 से 15 प्रतिशत नकदी रख सकते हैं. यहां निवेशकों के लिए क्या विकल्प हैं?
यह हमारा अनुभव रहा है कि उच्च नकदी स्तर पर उन ऐसे कदमों को उठाना कभी आसान नहीं होता है. वे प्रदर्शन पर बहुत अधिक सहायता नहीं करते हैं. सिर्फ एमएफ ही नहीं, निवेशकों के लिए भी बाजार से पूरी तरह बाहर निकलने का फैसला लेना उतना ही मुश्किल है. अंततः बाजारों में हर चीज सापेक्ष प्रदर्शन है. बड़ी तस्वीर यह है कि बाजार में लंबे समय तक निवेशित रहने से फायदा होता है और कभी-कभी पूरी तरह से नकदी पर निर्भर रहना बुरी तरह नुकसान भी पहुंचा सकता है. कौन सोच सकता था कि नोटबंदी के बाद निवेश से सबसे अच्छा रिटर्न मिला और यूक्रेन/रूस युद्ध से बाजार को कोई नुकसान नहीं होगा?
वर्तमान में भारत विश्व उच्च विकास दर वाली एकमात्र सर्वोत्तम अर्थव्यवस्था है. क्या हम उस बिंदु पर पहुंच गए हैं जहां दुनिया के किसी भी हिस्से में समस्याओं के बावजूद भारत अच्छा प्रदर्शन करेगा?
पिछले पांच से पच्चीस वर्षों के पैमाने पर, भारत लगातार अमेरिकी डॉलर के मामले में दुनिया में शीर्ष प्रदर्शन करने वाला बाजार रहा है. पिछले 25 वर्षों में, भारतीय बाजारों ने वॉरेन बफेट के रिटर्न (अमेरिकी डॉलर के संदर्भ में) को पीछे छोड़ दिया है. इसलिए मैं बड़े निवेशकों को सुझाव देता हूं कि हर गर्मियों में ओमाहा जाने के बजाय (वॉरेन बफेट से मिलने के लिए) उन्हें मुंबई जाना चाहिए और एनएसई या बीएसई भवन के बाहर एक सेल्फी लेनी चाहिए. बड़े निवेशक चीन से निराश हैं (क्योंकि बाजार ने कई वर्षों से उच्च रिटर्न नहीं दिया है) और इससे भारत में लगातार और वृद्धि होगी.
क्या नए जमाने की कंपनियां ही एकमात्र बड़ा दांव हैं?
कई नए जमाने की कंपनियां निवेश के लायक हैं. लेकिन पुरानी अर्थव्यवस्था वाली कई कंपनियां ऐसी ही हैं. निवेश में नए जमाने और उभरती कंपनियों का अनुपात कभी तय नहीं होता.
Disclaimer : उपरोक्त लेख में व्यक्त विचार लेखकों के हैं और आवश्यक रूप से इस प्रकाशन गृह के विचारों का प्रतिनिधित्व या प्रतिबिंबित नहीं करते हैं. जब तक अन्यथा उल्लेख न किया गया हो, लेखक अपनी व्यक्तिगत क्षमता में लिख रहा है. उन्हें किसी एजेंसी या संस्थान के आधिकारिक विचारों, दृष्टिकोण या नीतियों का प्रतिनिधित्व करने के बारे में नहीं सोचा जाना चाहिए.
CEO ONDC टी कोशी कहते हैं कि जनवरी में हमारे पास लगभग 800 व्यापारी थे, जबकि आज ये संख्या 2,00,000 से अधिक जा चुकी है और ये लगातार बढ़ रही है.
पिछले कुछ सालों में ई-कॉमर्स बाजार में एक नाम तेजी से सफलता की ओर आगे बढ़ा है. अब भले ही बिजनेस हो या ग्राहक हो इसने सभी को समाहित करने का जो अवसर पैदा किया है उसने सभी को फायदा पहुंचाया है. जिस नाम ने सभी को प्रभावित किया है वो है ONDC (Open Network for Digital Commerce). आज से सात साल पहले शुरू हुए सरकार के इस वेंचर को लेकर कई तरह की आशंकाएं जताई जा रही थी लेकिन आज इसने बाजार में अपनी सफलता से सभी को हैरान कर दिया है. ONDC को इस मुकाम पर पहुंचाने वाले इसके सीईओ टी कोशी के साथ हमारे प्रिंसिपल कॉरेसपोंडेंट ललित नारायण कांडपाल ने कई मामलों को लेकर बात की है. इसमें टी कोशी बताते हैं कि आखिर उन्होंने ONDC के लिए क्या सपना देखा है?
सवाल: ONDC के साथ ई-कॉमर्स बाजार को पूरी तरह से बदलने के लिए आपने अब तक कितना लंबा सफर तय किया है?
जवाब : टी कोशी कहते हैं कि UPI की शुरुआत 7 साल पहले हुई थी. इस प्रोजेक्ट को लाने के पीछे विचार ये था कि भारत के ई-कॉमर्स बाजार को पूरी तरह से बदल दिया जाए, इसके लिए कुछ सालों तक फाउंडेशन तैयार करने के बाद आज ये हमारे सामने दिख रहा है. ONDC के लिए हमने पिछले कैलेंडर वर्ष में जनवरी के महीने से बेंगलुरु के लोगों के लिए व्यापक रूप से सेवाओं को देने की शुरुआत की थी, और यह तब से लगातार आगे बढ़ रहा है.
देखिए किसी भी चीज में बदलाव आने में समय लगता है. कोई भी चीज अब वो भले ही खरीददार के लिए हो या विक्रेता के लिए हो उनकी आदतों को बदलने में समय लगता है. ONDC में एक बड़ी चुनौती इस बारे में है कि यह व्यापार के बारे में है जबकि UPI धन के बारे में था. जोकि पूरी तरह से डिजिटल था और जो बैंक्स और फिनटेक कंपनियों के माध्यम से हो रहा था. लेकिन ONDC में यहां हम एक लेन-देन के साथ एक डिजिटल समझौता होने और इसमें भाग लेने वाली कई कंपनियों जैसे यूनिलीवर (Unilever), पेप्सी (Pepsi), कोका-कोला (Coca-Cola.) और दूसरी कई कंपनियों सहित, विभिन्न प्रकार के गारमेंट कंपनियों के डिस्ट्रीब्यूशन की बात कर रहे हैं.
टी कोशी कहते हैं कि जनवरी में हमारे पास लगभग 800 व्यापारी थे, जबकि आज ये संख्या 2,00,000 से अधिक जा चुकी है और ये लगातार बढ़ रही है. अगले साल इस समय तक, मैं उम्मीद करता हूं कि इसमें 2,00,000 व्यापारी और जुड़ जाएंगे और ये दो मिलियन तक पहुंच सकते हैं. हमें आईटीसी जैसे बड़े एंटिटीज़ से महत्वपूर्ण स्वीकृति मिल रही है. उसी तरह, आप देखेंगे कि हमारे पास लगभग 1,00,000 टैक्सी ड्राइवर्स और ऑटो ड्राइवर्स हैं, जो पहले से ही 2000 फार्मर्स प्रोड्यूसिंग आर्गेनाइजेशन्स (FPOs) से जुड़ चुके हैं.
सवाल: ONDC पर आप किस सेक्टर की बड़ी भागीदारी को देख रहे हैं?
जवाब: अगर हम किसी व्यापारिक लेन-देन को समझें तो उसमें होता ये है कि खरीददार विक्रेता को पैसे देता है, दूसरी ओर, विक्रेता सामान या सेवाएँ देता है. यूपीआई ने वही काम किया. चाहे आप कुछ भी खरीद रहे हों, पैसे पैसे होते हैं. लेकिन जब सेलर की बात आती है तो ये प्रोडक्ट हो सकता है, सर्विस हो सकती है, B2B हो सकता है, B2C हो सकता है, इसलिए यदि आप ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्मों की ओर देखते हैं, तो कुछ उपभोक्ता सामान के लिए हैं, कुछ खाने-पीने के लिए हो सकता है, क्योंकि यह उनके लिए सब कुछ है साथ ही कई अन्य क्षेत्रों के साथ कैसे निपट सकते हैं.
लेकिन हमने सबसे मुश्किल पर काम करने का तय किया, जो ग्रोसरी और फूड है, हम सोचते थे कि अगर हम इन दो क्षेत्रों की जरूरत को सीखने में कामयाब हो गए तो हम दूसरों में भी आसानी से बेहतर कर लेंगे. हमने तुरंत मोबाइलिटी की ओर बढ़ना शुरू किया. हमारे पास लगभग 1,00,000 टैक्सी चालक पहले से ही पंजीकृत हैं, औसतन दिन में लगभग 1,00,000 लेन-देन कर रहे हैं. ग्रोसरी के मामले में शायद सबसे बड़ी चुनौती थी, जहां छोटे व्यापारी द्वारा ऑनलाइन लेन-देन पर पहले एक जीएसटी में रजिस्टर्ड होना जरूरी था लेकिन सरकार ने इस महीने से उस प्रतिबंध को हटा दिया है. हमने प्रयोग के तौर पर इलेक्ट्रॉनिक्स, फैशन, सौंदर्य और व्यक्तिगत हर क्षेत्र में काम करना शुरू किया. B2B में लाइव होने के बाद हमने पिछले महीने 30,000 लेन-देन देखे. हमें इस व्यवसाय में विभिन्न उद्यमों को इस तरीके से समझाना होगा कि यह ई-कॉमर्स कैसे बदल रहा है. कुछ लोग जल्दी अपनाने वाले होते हैं, और कुछ देरी से अपनाते हैं.
सवाल: आपने ONDC के लिए कौन सा सपना देखा है? आप इसे कहां लेकर जाना चाहते हैं?
जवाब: मेरा ONDC को लेकर एक विजन है. हम चाहते हैं कि 4 या 5 साल में, हिंदुस्तान में कोई भी व्यापारी, जिसमें कोई उत्पाद या सेवा है, उसका कैटलॉग बना सकता है. कैटलॉग का मतलब है कि ज्यादा लोग इसमें रुचि ले सकते हैं. प्रत्येक व्यापारी अपना कैटलॉग डिजिटल रूप से ONDC नेटवर्क पर दिखा सकता है. वे एक ऑर्डर के बारे में जान सकते हैं, एक समझौता कर सकते हैं और सामान पहुंचा सकते हैं. एक खरीदी एप्लिकेशन आएगा, जो हर नागरिक के लिए मौजूद सामान को खरीदने में मदद करेगा. हम इस नेटवर्क में सभी व्यापार और सभी खरीददारों से संभावित भागीदारी की उम्मीद करते हैं, जिसमें आज की तरह बहुत सी सीमा होती है.
इसका मतलब यह नहीं है कि यह 100 प्रतिशत डिजिटल होगा, लेकिन डिजिटल व्यापार का स्तर 4 गुना हो जाएगा. आने वाले 5-7 साल में, लगभग 20-30 प्रतिशत सभी लेन-देन डिजिटल होंगे. हमारे पास भारत में पहले स्तर की भागीदारी देखने के लिए बहुत सारे अंतरराष्ट्रीय निवेशक भी हैं और संभावना है कि वे इसे वैश्विक रूप से कैसे ले जा सकते हैं. हमारी कोशिश ये है कि भारतीय उपभोक्ताओं के लिए मददगार हो और सार्थक हो. हमारे व्यापारियों को इसके जरिए एक बड़ा बाजार मिले और जिसमें यह स्वाभाविक रूप से आकर्षित हो.
सवाल: व्यापारियों को इस प्लेटफार्म पर लाने में आप किस प्रकार की चुनौतियों का सामना कर रहे हैं?
जवाब: ONDC के सीईओ टी कोशी कहते हैं कि इसमें लाभ यह है कि सभी की भागीदारी संभव है. बड़े लोग, छोटे लोग, सभी डिजिटल वाणिज्य में आ सकते हैं. चुनौती दो पहलुओं में है. पहली बाजार में पहले से मौजूद खिलाडि़यों से चुनौती है और दूसरी ये है कि लोगों को बताना है कि ONDC क्या है और कैसे काम करता है, और उन्हें इसका पूरी तरह से उपयोग करना कैसे सिखाना है, ताकि वे ONDC के लाभ को सही तरीके से समझ सकें. हम मंत्रालयों के साथ संयुक्त अभियान भी चला रहे हैं.
सवाल: आपने डिजिटल अर्थव्यवस्था के बारे में बात की है। क्या आपने इसका अनुमान लगाया है कि एक बार लागू करने के बाद ये कैसे हमारी अर्थव्यवस्था पर असर डाल सकता है?
जवाब: सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आप किसी भी व्यापार को एक बड़े किस्म के बाजार में और अंतराष्ट्रीय रूप से अपने बाजार को बढ़ाने के अवसर प्रदान कर रहे हैं. हम ऐसा कह सकते हैं कि उत्तर भारत के लोगों को दक्षिण भारत के लोग नहीं जानते हैं. अब जब यह आसानी से उपलब्ध हो रहा है, ये एक सेतू का काम कर रहा है. इससे सामान की स्वीकार्यता में और ज्यादा इजाफा होगा और शायद अंतरराष्ट्रीय रुचि भी पैदा होगी क्योंकि विक्रेता इंटरफ़ेस, लॉजिस्टिक्स, वेयरहाउसिंग, प्रमाणन जैसे विभिन्न बिल्डिंग ब्लॉक डिजिटल रूप से प्रासंगिक हो गए हैं.
दिल्ली, नोएडा, हैदराबाद, बेंगलुरु, मुंबई, पुणे, चेन्नई, जमशेदपुर, वड़ोदरा, लखनऊ और कोलकाता जैसे शहरों में Taneira के 25 स्टोर्स मौजूद हैं.
Taneira, टाटा ग्रुप (Tata Group) द्वारा पेश किए गए सबसे नए ब्रैंड्स में से एक है और यह टाइटन (Titan) द्वारा पेश किया गया एक ‘एथनिक वियर’ ब्रैंड है. इस ब्रैंड को 2017 में लॉन्च किया गया था और वित्त वर्ष 2027 तक यह कंपनी 1000 करोड़ के स्तर पर पहुंचना चाहती है. इसी साल के दौरान Taneira टियर 1 और टियर 2 शहरों में कम से कम 80 स्टोर्स खोलने की कोशिश कर रहा है. Taneira के CEO, Ambuj Narayan ने बिजनेस को बड़ा करने के लिए कंपनी के प्लान्स और भारतीय हथकरघे से बने कपड़ों को पसंद करने वाले नौजवानों के दिल जीतने को लेकर BW Businessworld के साथ खास बातचीत की.
Taneira के स्टोर्स
एक ही छत के नीचे भारतीय हथकरघे से बने कपड़ों के सर्वश्रेष्ठ कलेक्शन के साथ इस वक्त दिल्ली, नोएडा, हैदराबाद, बेंगलुरु, मुंबई, पुणे, चेन्नई, जमशेदपुर, वड़ोदरा, लखनऊ और कोलकाता जैसे 25 शहरों में Taneira के 45 स्टोर्स मौजूद हैं. इन स्टोर्स में लगभग 50% कंपनी के अपने स्टोर्स हैं और बाकी के 50% स्टोर्स, फ्रेंचाइजी आउटलेट्स हैं. Ambuj Narayan ने कहा ‘हम सच में राज्य एम्पोरियम्स के बहुत आभारी हैं, जिन्होंने हथकरघों की परंपरा को जीवित रखा है. लेकिन नौजवान भारतीय लोगों को पारंपरिक बुनाई के साथ-साथ आधुनिक डिजाईन भी चाहिए और यहीं Taneira ने अपनी मौजूदगी बनाई है.
बुनकरों से है करीबी संबंध
ब्रैंड द्वारा ऑफर किए जाने वाले कपड़ों को लेकर Ambuj कहते हैं कि वह भारत में मौजूद 100 से ज्यादा बुनकरों से साड़ियां ले रहे हैं. इसके साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि ये बुनकर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, बंगाल, गुजरात, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, बिहार और अन्य राज्यों से संबंध रखते हैं. ‘हम असम में मौजूद बुनकरों से भी बातचीत कर रहे हैं ताकि वह राज्य के पारंपरिक सिल्क से बने कपड़े प्रदान कर सकें. टाटा की लेगेसी वाले एक ब्रैंड के तौर पर हम न सिर्फ शुद्ध फैब्रिक प्रदान कर रहे हैं बल्कि मॉडर्न डिजाईन के साथ हाथों से बनाई हुई पारंपरिक बुनाई वाली साड़ियां भी प्रदान कर रहे हैं.’ Businessworld से बातचीत के दौरान Ambuj, लखनऊ में मौजूद थे जहां वह अपने नए ऑफलाइन स्टोर की ओपनिंग के लिए पहुंचे थे.
प्रोडक्ट्स से मिलेगी सारी जानकारी
हालांकि कंपनी ऑनलाइन भी रिटेल में बिजनेस कर रही है लेकिन अपने बिजनेस को बड़ा करने के लिए यह कंपनी ऑफलाइन बिक्री पर भी ध्यान दे रही है. Ambuj का कहना है कि अपने D2C मॉडल में कंपनी अपने कंज्यूमर्स को साड़ियों से कहीं ज्यादा चीजें ऑफर कर रही है. Ambuj कहते हैं ‘हमारे सभी प्रोडक्ट्स पर क्राफ्ट, बुनकर और हेरिटेज के बारे में साड़ी जानकारी मौजूद होती है. इतना ही नहीं, हम पूरे देश में हथकरघे से बने कपड़ों को एक स्टोर में प्रदान कर रहे हैं जिसकी बदौलत कंज्यूमर को पूरा अनुभवव प्राप्त होता है.
बिजनेस को लेकर क्या है कंपनी का प्लान?
बिजनेस को बढ़ाने के बारे में बात करते हुए Ambuj कहते हैं कि हालांकि कंपनी महिलाओं के लिए एथनिक वियर पर ही ध्यान देने के बारे में प्लान कर रही है लेकिन हमने अपने पोर्टफोलियो में कुर्ते भी जोड़े हैं और हमारी कोशिश है कि हम रोजाना पहने जाने वाले कपड़े और ऑफिस में पहने जाने वाले कपड़ों की रेंज भी प्रदान करें. इस बारे में बात करते हुए आगे Ambuj कहते हैं कि ‘हम बुनकर समुदायों के साथ बहुत ही करीबी रूप से काम कर रहे हैं ताकि हम उनकी स्किल्स को बढ़ा सकें और उनके लाइफस्टाइल को भी अपग्रेड कर सकें. हम विभिन्न राज्यों की सरकारों के साथ बुनकरों के साथ काम करने के लिए भी बातचीत कर रहे हैं.
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इससे पहले भी एक बार Amul डेयरी प्रोडक्ट्स के अलावा अन्य क्षेत्रों में अपनी मौजूदगी को बढ़ाने की कोशिश कर चुका है.
साल दर साल अपने डेयरी प्रोडक्ट्स की बदौलत टर्नओवर में होती बढ़त के साथ Amul अब भारतीय FMCG (फास्ट मूविंग कंज्यूमर्स गुड्स) मार्केट में कदम रखना चाहता है. Amul का मानना है कि FMCG क्षेत्र में कदम रखने के लिए यह एकदम सही वक्त है और कंपनी को डेयरी के अलावा अन्य फ़ूड कैटेगरिज में भी अपने प्रोडक्ट्स लॉन्च करने चाहिए.
Amul और ऑर्गेनिक फूड सेगमेंट
Amul के मैनेजिंग डायरेक्टर जयंत मेहता (MD Jayen Mehta) ने इस बारे में बिजनेसवर्ल्ड (BusinessWorld) से खास बातचीत की और आने वाले समय में डेयरी के अलावा अन्य फ़ूड कैटेगरिज में कदम रखने के कंपनी के प्लान के बारे में भी जानकारी दी है. FMCG क्षेत्र की तरफ कंपनी द्वारा बढ़ाए जा रहे कदमों के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा – इस क्षेत्र में शुरुआत करने के लिए यह वक्त बिलकुल ठीक है और हम विभिन्न सेग्मेंट्स में शुरुआत करने के बारे में सोच रहे हैं और ऑर्गनिक फूड सेगमेंट भी ऐसा ही एक सेगमेंट है. आजकल के समय में लोग ऐसा खाना खोजते हैं जिसमें केमिकल्स, कीड़े मारने की दवा आदि न हों. ऑर्गेनिक्स को प्रजातंत्रीय बनाना जरूरी है क्योंकि फिलहाल कंज्यूमर्स को इसके लिए काफी भारी भरकम खर्चा करना पड़ता है.
जल्द हर ब्रैंड पर होगा Amul का नाम
हम विभिन्न राज्यों में ऑर्गेनिक फूड से संबंध रखने वाले को-ओपरेटिव्स को प्रमोट करने वाली कंपनियों में से एक हैं. हमने ऐसे किसानों के साथ काम करना शुरू किया है जिन्हें ऑर्गेनिक्स में इंटरेस्ट है. हमने बहुत सी लैब्स भी स्थापित की हैं जिनमें हम ये जांचते हैं कि क्या हमारे कृषि संबंधित प्रोडक्ट्स, केमिकल्स और कीड़े मारने की दवाओं से मुक्त हैं या नहीं. इस कैटेगरी में हमने विभिन्न दालों, बासमती चावल और आटे जैसे 8 से 10 प्रोडक्ट्स को लॉन्च भी कर दिया है. Jayen Mehta ने बताया कि Amul जल्द ही ऑर्गेनिक चीनी, चायपत्ती और गुड़ भी लॉन्च करने वाले हैं. आसान शब्दों में कहें तो आपके किचन में इस्तेमाल होने वाले सभी प्रोडक्ट्स पर आपको बहुत जल्द Amul की ब्रैंडिंग देखने को मिल सकती है फिर चाहे वह ऑर्गेनिक प्रोडक्ट हो या फिर कोई डेयरी प्रोडक्ट.
तेल के क्षेत्र में भी Amul
Jayen Mehta ने बताया कि Janmay ब्रैंड के साथ उन्होंने तेल के सेगमेंट में भी कदम रख लिया है. आपको बता दें कि उत्तरी गुजरात में Amul का एक ऑयल-क्रशिंग प्लांट भी मौजूद है. कंपनी के पास विभिन्न प्रोडक्ट्स का अच्छा-खासा पोर्टफोलियो मौजूद है और साथ ही कंपनी के पास किसानों का समर्थन भी है. माना जा रहा है कि तेल के इस सेगमेंट में भी Amul जल्द ही एक बड़ा स्तर प्राप्त कर सकता है.
बेवरेज के क्षेत्र में भी Amul?
रिलायंस (Reliance) द्वारा कैम्पा कोला (Campa Cola) का अधिग्रहण किये जाने के बाद से ही भारत में बेवरेज के क्षेत्र में मुकाबला काफी ज्यादा बढ़ गया है. जब Jayen Mehta से इस क्षेत्र में Amul की मौजूदगी और फ्यूचर प्लान्स के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि बेवरेज के क्षेत्र में कंपनी के पास 120 से ज्यादा SKU (स्टॉक कीपिंग यूनिट्स) मौजूद हैं. फ्लेवर्ड मिल्क, कॉफी, कार्बोनेटेड ड्रिंक्स, प्राकृतिक प्रोटीन प्रोडक्ट्स, लस्सी से लेकर छाछ तक Amul की मौजूदगी हर जगह है. ‘Amul Kool’ बेवरेज के क्षेत्र का एक सबसे बड़ा और प्रमुख ब्रैंड है. हर कैटेगरी में कंपनी की मौजूदगी को बड़ा करने के लिए हमारे पास शानदार प्लान्स उपलब्ध हैं. दूध के सेगमेंट के लिए हमारे पास 98 डेयरी प्लांट्स मौजूद हैं. इसके साथ ही इस क्षेत्र में प्रोटीन और प्रोबायोटिक से लेकर ऊंट और भैंस के दूध जैसे प्रोडक्ट्स भी उपलब्ध हैं.
Amul ने पहले भी किया था ट्राई पर मार्केट ने नकारा
इससे पहले भी एक बार Amul डेयरी प्रोडक्ट्स के अलावा अन्य क्षेत्रों में अपनी मौजूदगी को बढ़ाने की कोशिश कर चुका है और तब Amul को मार्केट का बहुत बड़ा हिस्सा प्राप्त करने में असफलता का सामना करना पड़ा था. इस बारे में जब जयन मेहता से पूछा गया तो उन्होंने कहा, विविध प्रोडक्ट्स के क्षेत्र में खुद को आगे बढ़ाने के हमारे प्लान के पीछे की प्रमुख वजह किसानों का कल्याण था. उदाहरण के लिए अंतरराष्ट्रीय चॉकलेट कंपनियां दक्षिणी भारत के कोको बीन (Cocoa Bean) निकालने वाले किसानों का शोषण करती थीं. जब Amul ने इस क्षेत्र में कदम रखा तो दक्षिणी भारत में CAMPCO की शुरुआत हुई और हमने उनसे चॉकलेट बनाने के लिए कोको बीन्स खरीदने की शुरुआत की. हमारी कामयाबी का पता सिर्फ मार्केट में मौजूद हमारे हिस्से और प्रोडक्ट्स की सेल्स से नहीं लगाया जा सकता.
Amul ने किया किसानों का कल्याण
Jayen Mehta ने आगे बताते हुए कहा कि चॉकलेट के क्षेत्र में कंपनी द्वारा किये गए हस्तक्षेप की वजह से कोको बीन उगाने वाले किसानों को उनके प्रोडक्ट्स की उचित कीमत मिली और यही वो जगह है जहां सच में रिजल्ट्स दिखने चाहिए. आज हम भारत में डार्क चॉकलेट बनाने वाले सबसे बड़े ब्रैंड हैं और 2018 में हमने अपनी क्षमता को लगभग 5 गुना बढ़ाया था. फिलहाल हम पूरी 100% क्षमता पर काम कर रहे हैं और हम इसे दोगुना करने के बारे में भी विचार कर रहे हैं. बेवरेज के क्षेत्र की बात करें तो हमने देश में सबसे पहले ‘Seltzer’ लॉन्च किया था. इसके साथ ही, असली फलों से बने प्रोडक्ट्स, डेयरी आधारित प्रोडक्ट और सबसे जरूरी, हमने एक ऐसा कोला ड्रिंक भी पेश की थी जिसमें कैफीन या फॉस्फोरिक एसिड नहीं था. ये वो आईडिया हैं जिनकी शुरुआत हमने देश में की थी. हम अपने आपको सीधा कोक या पेप्सी के बराबर नहीं बता रहे क्योंकि हमारे और उनके प्रोडक्ट्स में अंतर है.
फ्रोजन फ़ूड पोर्टफोलियो
Jayen Mehta ने कहा कि फ्रोजन फूड पोर्टफोलियो में पिज्जा की मदद से Amul को समझ आया कि कंज्यूमर्स को रेडी-टू-ईट प्रोडक्ट्स चाहिए. अब हमारे पास फ्रोजन पराठा और फ्रेंच फ्राइज जैसे प्रोडक्ट्स उपलब्ध हैं. हमने फ्रोजन फ्रेंच फ्राइज बनाने के लिए एक फैक्ट्री भी लगायी है और इस फैक्ट्री में सभी आलू सीधा किसानों से खरीदे जाते हैं. इस प्लांट की शुरुआत 6 महीने पहले हुई थी और इस वक्त यह अपनी पूरी क्षमता से काम कर रहा है. इसके साथ ही उन्होंने बताया कि कंपनी अपनी इस फैक्ट्री की क्षमता में 4 गुना की बढ़ोत्तरी करने के बारे में सोच रही है.
दिल्ली पुलिस द्वारा हथियारों के स्मार्ट लाइसेंसों के उपयोग ने हरियाणा पुलिस को भी प्रेरणा दी है और वह भी एक ऐसे सिस्टम को अपनाना चाहते हैं
देश में पहली बार स्मार्ट कार्ड लाइसेंसों का इस्तेमाल करके दिल्ली पुलिस ने हथियारों के लाइसेंसिंग की प्रक्रिया को ज्यादा आधुनिक बना दिया है. दिल्ली पुलिस द्वारा हथियारों के स्मार्ट लाइसेंसों के उपयोग ने हरियाणा पुलिस को भी प्रेरणा दी है और वह भी एक ऐसे सिस्टम को अपनाना चाहते हैं. फरवरी में दिल्ली पुलिस स्थापना दिवस के मौके पर केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने हथियारों की स्मार्ट लाइसेंसिंग प्रक्रिया की सराहना की थी.
BW पुलिस-वर्ल्ड के साथ अपने इंटरव्यू के दौरान दिल्ली पुलिस में लाइसेंसिंग और लीगल विभाग के विशेष आयुक्त संजय सिंह ने हथियारों के स्मार्ट लाइसेंस और दिल्ली में हथियारों की लाइसेंसिंग की प्रक्रिया को डिजिटल बनाने के बारे में विशेष बातचीत की है. संजय सिंह ने साल 1990 में भारतीय पुलिस सेवा के AGMUT कैडर को एक IPS अधिकारी के रूप में जॉइन किया था. संजय सिंह दिल्ली पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों में से एक हैं और उन्हें पुलिस फोर्स में अलग अलग भूमिकाओं द्वारा किये गए उनके महत्त्वपूर्ण योगदान के लिए जाना जाता है.
दिल्ली पुलिस ने हथियारों की स्मार्ट लाइसेंसिंग शुरू की है और ऐसा करने वाली यह देश की पहली पुलिस फोर्स भी है. इस स्मार्ट कार्ड और स्मार्ट लाइसेंसिंग प्रक्रिया के बारे में हमें और बताइए.
निस्संदेह दिल्ली पुलिस देश की पहली पुलिस फोर्स है जिसने हथियारों के लिए स्मार्ट लाइसेंस जारी किये हैं और साथ ही, पूरी प्रक्रिया को भी डिजिटल बना दिया है. यह फैसला भारत सरकार की ‘डिजिटल भारत’ पॉलिसी को ध्यान में रखकर लिया गया है और ऐसा इसलिए किया गया है ताकि हम नागरिकों को बेहतर सुविधा प्रदान कर सकें. हथियारों के लाइसेंस के आवेदन केवल ऑनलाइन स्वीकार किये जाते हैं और इसके साथ ही ई-ऑफिस के माध्यम से आंतरिक प्रक्रिया को पूरा किया जाता है. हमारे पास इस वक्त हथियारों के लगभग 43,000 लाइसेंस रजिस्टर्ड हैं. स्टाफ और सुपरवाइजरी अधिकारियों के सहयोग से हम जल्द ही लाइसेंसिंग की बाकी सुविधाओं को भी ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध करवा देंगे.
दिल्ली पुलिस ने एक कदम आगे बढ़कर हथियारों के लिए स्मार्ट कार्ड भी जारी किये हैं. यह हथियार के लाइसेंस होल्डर्स की किस प्रकार से सहायता करेगा?
दिल्ली पुलिस ने पिछले साल फरवरी में हथियारों के लिए स्मार्ट कार्ड लाइसेंस लॉन्च किये थे. इसके बाद स्मार्ट लाइसेंस रखने के लिए हमें लाइसेंस होल्डरों से बहुत ही जबरदस्त रिस्पॉन्स मिला था. अब तक 10,000 से ज्यादा स्मार्ट कार्ड जारी किये जा चुके हैं. स्मार्ट कार्ड को अपने साथ रखना तो आसान है ही, इसके साथ ही इस स्मार्ट कार्ड में बहुत से सिक्योरिटी फीचर्स भी मौजूद हैं.
दिल्ली पुलिस ने हथियार के लाइसेंसों को जांचने के लिए ‘शस्त्र ऐप’ की भी शुरुआत की है. हमें बताइए की यह कैसे काम करता है?
‘शस्त्र ऐप’ दिल्ली पुलिस की लाइसेंसिंग यूनिट द्वारा विकसित किया गया एक ऐप है जो ई-बीट बुक के साथ जुड़ा होता है. बीट पर मौजूद पुलिस अधिकारी अब लाइसेंस होल्डर के स्मार्ट कार्ड को स्कैन करके अथवा कार्ड के UID (यूनिक आइडेंटिफिकेशन नम्बर) के माध्यमक से हथियार से जुड़ी सारी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं. शस्त्र ऐप जल्द ही हथियार के लाइसेंस की डाइनेमिक और रियल टाइम चेकिंग की सुविधा भी प्रदान करेगा. यह कदम अपराधियों द्वारा जाली लाइसेंस लेकर चलने की हिम्मत को तोड़ देगा.
आपके इस कदम ने बहुत से राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों की पुलिस को हथियारों की स्मार्ट कार्ड लाइसेंसिंग प्रक्रिया अपनाने के लिए प्रेरित किया है. ऐसी और कौन सी पुलिस फोर्स हैं जो लाइसेंसिंग के इस आधुनिक तरीके का इस्तेमाल करती हैं?
पड़ोसी राज्यों की पुलिस के कई बड़े अधिकारी दिल्ली पुलिस की लाइसेंसिंग यूनिट का दौरा कर चुके हैं. हरियाणा, गुजरात, मध्य प्रदेश और बहुत से अन्य सरकारी अधिकारी हमारी यूनिट का दौरा करके स्मार्ट कार्ड बनाने की इस डिजिटल प्रक्रिया को समझ चुके हैं. मुझे बताते हुए खुशी हो रही है कि, सभी अधिकारियों ने हमारे इस विजन और प्रयास की सराहना की है. साथ ही, उन्होंने अपने विभागों में भी ऐसी ही प्रक्रिया को अपनाने की रुचि दिखाई है. हरियाणा पुलिस ने लाइसेंसिंग की डिजिटल प्रक्रिया को शुरू भी कर दिया है.
क्या हम कह सकते हैं कि स्मार्ट लाइसेंसिंग से देश की राजधानी में लाइसेंसिंग की प्रक्रिया को कानूनी बनाने में मदद मिलेगी?
इस फैसले के पीछे लाइसेंसिंग की प्रक्रिया को आसान, तेज और प्रोफेशनल बनाने की कोशिश है. प्रक्रिया को डिजिटल बनाने की वजह से किसी के पास भी गैर-कानूनी तरीके से लाइसेंस बनवाने के लिए कोई जगह नहीं बची है. साथ ही ऐसे लोग जिनके पास गैर कानूनी रूप से हथियार मौजूद हैं, अब किसी हालत में पुलिस से नहीं बच सकते.
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भारत में इंफ्रास्ट्रक्चर बहुत तेजी से बढ़ रहा है. जब मैं एक्सप्रेस वे से आ रहा था, तब मुझे लगा कि बहुत अच्छी सड़कें बनी हैं ऐसा लग रहा था जैसे लंदन में गाड़ी चल रही है.
दुनियाभर में चल रही अलग-अलग परेशानियों के बीच भारत के लिए किस तरह की चुनौतियां पैदा हो रही हैं, भारत मार्केटिंग के क्षेत्र में कैसा काम कर रहा है, दुनिया में उसकी स्थिति पहले से सुधरी है या नहीं, कुछ ऐसे ही सवालों को लेकर BWHINDI ने आज ब्रिटेन में रहकर पिछले लंबे समय से मार्केटिंग सेक्टर में काम करने वाले और IKMG के फाउंडर राज खन्ना से बातचीत की है. जानिए क्या कहते हैं राज खन्ना
सवाल: क्या आपको लगता है कि ऋषि सुनक भारत के लिए फायदेमंद साबित हो सकते हैं?
जवाब: देखिए मुझे लगता है कि ऋषि सुनक पीएम बनने के बाद भारत के लिए एक अच्छे पीएम साबित होंगे. उन्होंने बोला है कि वो भारत से अच्छे संबंध बनाना चाहते हैं. वो कई क्षेत्रों में भारत के लिए फायदेमंद साबित हो सकते हैं. अब वो भले ही एजुकेशन हो या इंफ्रास्ट्रक्चर हो या ब्रिटेन में पढ़ाई करने के लिए जाने वाले भारतीय स्टूडेंट का मामला हो, उनकी सुविधाओं में कैसे इजाफा किया जा सकता है और पढ़ने के साथ-साथ उन्हें मौका भी दिया जाएगा, जिससे वो वहां जॉब कर सकें. बिल्कुल सबसे बड़ी बात ये है कि ब्रिटेन के अंदर पारदर्शिता ज्यादा होती है और अगर कुछ गलत होता है तो वो सामने आ जाता है. इसके पीछे की वजह वहां की मीडिया है क्योंकि वहां का मीडिया बहुत ओपन है. मुझे लगता है कि वो भारत के लिए ज्यादा फायदेमंद हो सकते हैं.
सवाल आप मार्केटिंग बैकग्राउंड से आते हैं तो आप मौजूदा सरकार को ग्लोबल लेवल पर कैसे देखते हैं?
जवाब: मुझे लगता कि भारत सरकार अच्छा कर रही है, काफी अच्छा कर रही है. मुझे लगता है कि ये प्लानिंग बहुत पहले से हुई है. जो भी चीजें आज हमें होती दिख रही हैं वो बहुत अच्छी हैं. जहां तक बात है मार्केटिंग के अनुसार भारत की इमेज की तो वो इस वक्त दुनिया में बेहतर बनी हुई है. इसका पूरा श्रेय मैं आज की यंगर जनरेशन को देता हूं. आज की युवा पीढ़ी बहुत प्रैक्टिकल है और उसके अंदर जोश बहुत है. वो किसी भी तरह के काम को करने से घबराती नहीं है. वो अपना एक स्टेटस खुद बनाना चाहते हैं वो शार्टकर्ट नहीं देखते हैं. इसलिए भारत का नाम आगे है. बिल्कुल भारत की इमेज पिछले कुछ समय में बदली है. पिछले 6 महीने के अंदर उसमें थोड़ा कमी दिख रही है. उसकी वजह ये है कि मीडिया की ट्रांसपेरेंसी सामने नहीं आ रही है. मैं उस पर ज्यादा नहीं कहना चाहूंगा मैं कोई राजनीतिज्ञ नहीं हूं, मैं एक समाजसेवक हूं.
सवाल : आपके भारत आने का क्या मकसद रहा आपका
जवाब: देखिए मैने एक संस्था IKMG (International Khatri mahasabha Group) शुरू की थी. इंटरनेशनल खत्री महासभा ग्रुप वो मैने इसलिए शुरू की क्योंकि हमारे खत्री समाज का ऐसा कोई प्लेटफॉर्म नहीं है. हम लोग कोई होली दिवाली में मिल लेते थे. खाना खा लेते हैं बस वो वहीं तक सीमित थी. साल में एक बार जनरल इलेक्शन हुआ तो कुछ लोग चुन लिए गए. लेकिन अब वो सेल्फ सेंट्रिक हो गए हैं कि वो कुछ कर नहीं रहे थे. जब चार साल पहले मैने ये सब देखा तो मुझसे रहा नहीं गया. वहां से मैने इसकी शुरुआत की और अपनी इस संस्था को बनाया. पहले ही तीन महीने के अंदर इसके साथ तीन हजार लोग जुड़ गए. आज स्थिति ये है कि 40 देशों के 100 शहरों में इसके 10500 सदस्य इस संस्था से जुड़ चुके हैं .
हमें किसी का सपोर्ट नहीं है ना तो हमें सरकार का सपोर्ट है और न ही हमें किसी और का सहयोग है. IKMG जो भी कुछ कर रहा है, वो इसके एक्टिव सदस्य कर रहे हैं. आज हमारी संस्था कई शहरों में काम कर रही है, जिसमें कन्नौज, आगरा मुरादाबाद, कानपुर जैसे शहर शामिल हैं जहां ये संस्था काम कर रही है, जहां हमारे लोग काम कर रहे हैं. हम किसी को किसी भी चीज के लिए दबाव नहीं डालते हैं. हमारा साफ कहना है कि जो भी करना है आपस में फंड इक्टठे करिए और काम करिए, इसका श्रेय सभी को जाता है. हम हर सदस्य की छोटी से छोटी कोशिश का सम्मान करते हैं. अभी हमारी पहली ग्लोबल मीट हुई थी, पहली ग्लोबल मीट हमारी 28 जनवरी को हुई थी. हमने एक रेडियो भी शुरू किया है जो 24 घंटे रन करता है. इसमें देश और दुनिया से अलग-अलग लोग जुड़े हुए हैं. हम लोग एजुकेशन से लेकर हेल्थ और दूसरे सेक्टर के लिए काम कर रहे हैं.
सवाल : IKMG एक अच्छा प्रयास है लेकिन भारत में खत्री समाज एकजुट नहीं है. उन्हें पॉलिटिक्स में प्रायोरिटी नहीं मिल रही है, इसे आप कैसे देखते हैं?
जवाब : हम पॉलिटिक्स को बीच में नहीं लाएंगें क्योंकि एक बार ये आ जाती है तो फिर इसके कारण डिविजन होने लगता है. हम सपोर्ट करेंगें लेकिन उसके पीछे कोई कॉमन कारण होना चाहिए. देखिए कल मैं कन्नौज में था, वहां के मेंबर इक्टठा होते हैं और आप लोगों को खाना दे देते हैं, सबने पैसे जमा करके लोगों की मदद करते हैं. मैने उनसे कहा कि आप इससे आगे क्या कर रहे हैं. आप जब शहर से निकलते हैं तो खुद मैने देखा कि शहर कितना गंदा है. क्या हमारे वॉलंटियर मिलकर इसे साफ नहीं कर सकते हैं? स्वीपर को हॉयर करिए कुछ पैसा लगेगा, हमें मंजूर है लेकिन हम चार संडे को इस काम को कर सकते हैं, उसे साफ करना है. गंदगी न हो इसके लिए वहां डिब्बे रखे जाने चाहिए. जैसे इंदौर में किया गया है वैसे ही आप भी करिए.
सवाल- आपने कई शहरों में विजिट किया आपने एक दशक के बाद विजिट किया क्या आपको लग भारत का इंफ्रास्ट्रक्चर बदल रहा है?
जवाब: बिल्कुल हो रहा है इसमें कोई शक नहीं है. कल जब मैं एक्सप्रेस वे से आ रहा था, तब मुझे लगा कि बहुत अच्छी सड़कें बनी हैं ऐसा लग रहा था जैसे लंदन में गाड़ी चल रही है. लेकिन जब हम सवर्सिेज पर रूके तो देखा कि स्वीपर है वो सफाई कर रहा था. यही नहीं टॉयलेट बहुत साफ सुथरे थे. इंटरनेशनल स्टैंडर्ड का नहीं था लेकिन फिर भी साफ था. उसके बाद मैं जैसे ही खाने के स्टॉल की तरफ बढ़ा तो देखा कि वहां सब कागज बिखरे पड़े हैं. अब वो कागज के बारे में जनता को सोचना चाहिए. उसे सोचना चाहिए कि वहां कागज नहीं फेंकना चाहिए.
सवाल- भारत को जी20 की प्रेसीडेंसी मिली है क्या आपको लगता है कि भारत के पास ये बहुत अच्छा मौका है?
जवाब- भारत ने अपनी मार्केटिंग पहले ही शुरू कर दी है. देखिए मार्केटिंग मीडिया से बहुत अच्छी होती है, और वो भी टू द प्वाइंट होनी चाहिए. बताया जाना चाहिए कि हमारे वहां किसी तरह का पक्षपात नहीं होता है. जी20 के अंदर भारत के लिए आगे बढ़ने का बहुत अच्छा मौका है. ये भारत ने खुद से मुकाम बनाया है. भारत इस वक्त जोखिम भी ले रहा है.
सवाल : बजट को लेकर आपकी क्या राय है?
जवाब: जनता से जो मैने इसे लेकर बात की तो उनका कहना था कि ये बहुत अच्छा बजट रहा है, ये उनका कैसा ओपिनियन कैसा है ये मैं नहीं कह सकता. लेकिन तीन महीने में पता चल जाएगा कि बजट कैसा है. आम आदमी को सिर्फ इस बात से फर्क पड़ता है कि उसके पास कितना पैसा बच रहा है. बिजली के दाम बढ़ रहे हैं, उसे कैसे कम किया जा सकता है. इंडिया को इस वक्त रसिया से डिस्काउंटेड रेट पर सस्ते में एनर्जी मिल रही है. भारत इस फील्ड में अच्छा कर रहा है. ये मेरी रॉय है.
सवाल : क्या ये बजट मार्केटिंग सेक्टर के लिहाज से सही है?
जवाब: मुझे लगता है कि मार्केटिंग के लिहाज से और इंसेंटिव दिए जाने की जरूरत है. मार्केटिंग किसी भी कंट्री के लिए बैकबोन होती है. जब भी आप अपना प्रोडक्ट लेकर जाते हैं तो आपको एंट्री मिल जाती है, वो जब आपको एंट्री मिल जाती है तो आप आधी लड़ाई जीत जाते हैं. अब उसके बाद अगर आपका प्रोडक्ट सही नहीं है तो आपको फिर देखना पड़ता है कि आखिर कमी कहां रह गई है. इसमें क्या सुधार लाना है आप ऐसा कर सकते हैं.
उन्होंने नोएडा-ग्रेटर नोएडा में रजिस्ट्री की समस्या पर बोलते हुए कहा कि इसके समाधान के लिए कई विकल्प दिए हैं. उनकी कोशिश है बॉयरों को ज्यादा परेशानी का सामना न करना पड़े.
यूपी में होने वाले ग्लोबल इंवेस्टर मीट को लेकर इन दिनों तैयारी जोरों पर हैं. राज्य के मुख्यमंत्री से लेकर उपमुख्यमंत्री और दूसरे मंत्री लगातार कोशिश कर रहे हैं कि राज्य में ज्यादा से ज्यादा निवेश जुटाया जा सके. इसी विषय और दूसरे कई अहम मसलों को लेकर BW HINDI के एडिटर अभिषेक मेहरोत्रा ने नोएडा-ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी की सीईओ ऋतु माहेश्वरी से बात की है. सुनिए उन्होंने इस मामले को लेकर क्या अहम बात कही है
सवाल: इन दिनों ग्लोबल इंवेस्टर समिट की चर्चा जोरों पर है, इसे लेकर आप नोएडा की क्या भूमिका देखती हैं?
जवाब: देखिए हमारे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यूपी के लिए अगले पांच सालों में 1 ट्रिलियन इकॉनमी का लक्ष्य निर्धारित किया हुआ है. ये हम सभी जानते हैं कि यूपी एक रिसोर्सफुल स्टेट है. यहां की जो जनसंख्या है, संसाधन हैं, उसके अनुसार ये लक्ष्य निर्धारित किया गया है. जहां सभी तरह की सुविधाएं मौजूद हैं. जहां तक बात नोएडा की तो ये उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख द्वार भी रहा है. यूपी का सबसे ज्यादा रेवेन्यू भी इसी बेल्ट से आता है. इसमें अभी तक सवा लाख करोड़ का निवेश कमिट हो चुका है. इनमे से कई प्रोजेक्ट के इंटेंस भी आ चुके हैं. कई निवेशक ऐसे हैं जिन्हें जमीन भी आवंटित की जा चुकी है. इसे लेकर हमारा अगला लक्ष्य 20 लाख करोड़ रुपये का है. ग्लोबर इंवेस्टर समिट में टाईअप कराएंगें उसे अगले पांच साल में एक्जीक्यूट कराएंगें.
सवाल: जेवर एयरपोर्ट और यूपी डिफेंस कॉरिडोर के जरिए नोएडा सरकार की प्राथमिकता में दिखता है. इन सभी से नोएडा को कैसे मदद मिलेगी ?
जवाब: देखिए नोएडा में इंटरनेशनल निवेशक भी आना चाहते हैं, हमारे यहां जो पहले से इंफ्रास्ट्रक्चर था उसे लेकर भी मुख्यमंत्री ने बहुत काम किया है. हमारे यहां जेवर एयरपोर्ट बन रहा है जिसका पहला फेज 2024 तक शुरू करने का प्रयास करेंगे. एयरपोर्ट के यहां आने से निवेश भी बढ़ा है. नोएडा के लिए दोनों फ्रेट कॉरिडोर जो ईस्टर्न और वेस्टर्न फ्रेट कॉरिडोर हैं ये महत्वपूर्ण हैं. सबसे दिलचस्प बात ये है कि ये दोनों कॉरिडोर दादरी से होकर जा रहे हैं. ऐसें में यहां लॉजिस्टिक और दूसरे वेयर हाउस से संबंधित निवेश आएगा. हम वहां मल्टी मॉडल लॉजिस्टिक हब भी बनाने का प्लान कर रहे हैं. यहां की डेटा कनेक्टिविटी, फाइबर कनेक्टिविटी और इलेक्ट्रिक इंफ्रास्ट्रक्चर है उसे देखेते हुए ज्यादातर लोग डेटा रखने में और उस क्षेत्र में निवेश करने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं. हीरानंदानी ग्रुप द्वारा नॉर्थ इंडिया का सबसे बड़ा डेटा सेंटर लगाया गया है. जबकि 7 से 8 अन्य डेटासेंटरों पर काम चल रहा है. इससे इस क्षेत्र में बड़े स्तर पर भी निवेश देखने को मिलेगा.
सवाल: नोएडा में अर्बन इलाकों का तो विकास हो गया लेकिन गांवों का विकास होना अभी भी बाकी है. उसे लेकर आप किस तरह से योजना बना रही हैं?
जवाब: देखिए जैसा कि हम सभी जानते हैं कि नोएडा को बसाने में गांवों की बड़ी भूमिका है. ऐसे में हमारी कोशिश है उन्हें ज्यादा से ज्यादा इंफ्रास्ट्रक्चर दिया जाए. हम लगातार गांवों में बुनियादी सुविधाओं में इजाफा कर रहे हैं. बिजली, सड़क, पानी, टॉयलेट पर हम पहले ही काफी काम कर चुके हैं. ज्यादा इश्यू मेंटीनेंस के हैं. क्योंकि गांवों में जो आबादी थी वो और बढ़ रही है. देखिए हमेशा से ही जमीन का अधिग्रहण करना बड़ा चैलेंज होता है ।जिन्हें नोटिफाई जमीन नहीं मिली, वो बाहर के गांवों में बस गए. ऐसे में उन गांवों में रहने वाले लोगों की उम्मीद रहती है कि सरकार और अथॉरिटी उनके वहां भी विकास करें. ऐसे में उस समस्या को कैसे टैकल किया जाए, इस पर भी हम लोग काम कर रहे हैं. उन्हें कम्यूनिटी सेंटर से लेकर दूसरे इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट की बात है, हम उन्हें वो सब मुहैया करा रहे हैं. मुख्यमंत्री ने हेल्थ एटीएम की योजना शुरू की है, जिसमें हर जिले में उनके गांवों में सभी पीएससी पर मोबाइल यूनिट रहेगी जो एक तरह से पूरी पीएससी का काम करती है. हर पीएससी में मोबाइल टेस्टिंग यूनिट लगाने की तैयारी कर रहे हैं. गांवों में जो कम्यूनिटी सेंटर बने हैं उन्हें और अपग्रेड किया जा रहा है. कोशिश कर रहे हैं उन्हें हर सुविधा मिले चाहे वो स्वच्छ पानी हो या स्वास्थ्य सेवा या दूसरी कोई और सेवा हो, वो उसी स्तर की मिले जो शहरों के लोगों को मिल रही है.
सवाल: अब कुछ न्यू नोएडा के बसने की बात सुनने में आ रही है, ये क्या मसला है?
जवाब: देखिए जैसा कि हम जानते हैं कि नोएडा और ग्रेटर नोएडा लगभग विकसित हो चुके हैं. सभी लोग यहां की जैसी सुविधाओं में रहना चाहते हैं. लेकिन इसके आसपास के क्षेत्र अभी विकसित हो रहे हैं. हम मानते हैं कि सभी को ऐसे विकसित शहरों में रहने का अवसर मिलना चाहिए. इसीलिए हमने नोएडा के आसपास के क्षेत्रों में जिनमें गौतबुद्ध नगर और बुलंदशहर के 80 गांवों को नोटिफॉई किया जा रहा है. हमें पूरी उम्मीद है कि इस साल इसका मास्टरप्लान भी बनकर तैयार हो जाएगा. इन क्षेत्रों को भी प्लान तरीके से विकसित कर पाएं और वहां भी ये सुविधाएं दे पाएं. यही नहीं हम लोग ग्रेटर नोएडा में फेस टू की तरफ भी आगे बढ़ रहे हैं.
सवाल: ये सवाल नोएडा के 35000 यूनिट से जुड़ा हुआ है कि आखिर फ्लैटों की रजिस्ट्री कब तक होगी? क्योंकि इसमें सरकार की ओर से भी अक्सर सिर्फ बयान ही आता है. इस समस्या को आप कैसे टैकल कर रही हैं?
जवाब: देखिए ये यहां के अलग-अलग प्रोजेक्ट्स के 35000 यूनिट से जुड़ा हुआ मामला है. कुछ प्रोजेक्ट ऐसे हैं जो बन रहे हैं और बॉयर को पजेशन दे दिया, लेकिन रजिस्ट्री नहीं है. कुछ ऐसे हैं जो बने हैं लेकिन लोग वहां रह नहीं रहे हैं. इसका कारण ये रहा है कि दरअसल कई बिल्डर ऐसे हैं जिन्होंने अभी तक अथॉरिटी के ड्यूज को जमा नहीं किया गया है. कोई प्रोजेक्ट अगर बिल्डर लाता है तो उसकी जिम्मेदारी होती है कि अपनी देनदारी पूरी तरह से दे. क्योंकि ये सरकार का राजस्व है और ये विकास से जुड़ा मामला है. ये वो ड्यूज हैं जो उन्होंने नहीं दिए और ब्याज लगते-लगते बढ़ गए हैं. एक शहर को तभी आगे बढ़ाया जा सकता है जब वो सेल्फ सस्टेनेबल मॉडल पर काम करता है. जो बिल्डर अथॉरिटी के ड्यूज दे रहे हैं उनकी रजिस्ट्री हो रही है. जो लोग नहीं देते हैं उनकी रजिस्ट्री पेंडिंग हैं. हमने ड्यूज क्लियर करने के लिए बिल्डरों को कई तरह की सुविधाएं भी दी हैं. इसमें उन्हें किस्तों की सुविधा भी दी गई है. यही नहीं अगर वो एकमुश्त पैसा नहीं दे रहे हैं तो वो प्रति टॉवर के अनुसार भी पैसा दे सकते हैं. यही नहीं हमने उन्हें प्रति फ्लैट पर भुगतान देने की भी सुविधा दी है जिससे वो प्रति फ्लैट के अनुसार भी भुगतान कर सकते हैं. हमारी ये भी कोशिश है कि सरकार का पैसा आ जाए और हमारे बॉयर को परेशानी का सामना न करना पड़े. हम लोग बॉयर के दृष्टिकोण से पॉलिसी लाते हैं. जो मामले ऐसे हैं जो डिफॉल्टर हो गए हैं और जो लिटिगेशन में चले गए हैं उन्हें थोड़ा मैनेज करना मुश्किल होता है.
सवाल : जैसा कि हम जानते हैं नोएडा में बड़े स्तर पर पॉलिटिकल प्रेशर रहता है इतने बड़े पद रहते हुए उसे आप कैसे मैनेज करती हैं?
जवाब: ऐसा नहीं है. जब आप क्षेत्र में काम करते हैं तो नियम और कायदे जितने हमारे लिए हैं उतनी ही पॉलिटिकल मशीनरी के लिए भी हैं. वह सरकार का हिस्सा है और सरकार की पॉलिसी बनी उनके द्वारा है और एक्जिक्यूट हमारे द्वारा की जाती है. कोई भी काम होता है वह बाहर देखने से जरूर लगता होगा कि कि पॉलिटिकल प्रेशर रहता है. लेकिन कोई भी जो काम होता है, वो आपसी समन्वय से ही होता है और जनसामान्य की अपनी जो समस्याएं रहती हैं वो उसे अपने अपने जनप्रतिनिधि के पास पहले लेकर जाते हैं और उसकी सुनना और उसे ऊपर तक पहुंचाना उसकी जिम्मेदारी रहती है. जो सेकंड लेवल हम लोगों तक आता है जो हमारे पास कुछ डायरेक्ट लोग आते हैं. लेकिन हम लोग यह भी देखते हैं कि वह सरकारी नियम और कायदे से हो और ऐसा ही पॉलिटिकल मशीनरी का रहता है आवाज सबकी पहुंचाई जाती है. लेकिन दोंनो के लिए यही रहता है कि काम वह हो जो नियम और कायदे में है, जिससे पूरे क्षेत्र का विकास हो. ऐसा नहीं है कि कहीं किसी तरह का कोई फ्रिक्शन रहता है. हमारी वर्किंग में बाहर से लगता होगा लेकिन सामान्यतः कार्यप्रणाली हर जगह की रहती है वह एक आपसी समन्वय से ही क्षेत्र का विकास होता है.
पूरा इंटरव्यू यहां देखें:
ये जो कैपिटेलिस्ट फोर्सेज हैं ये वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में जाती हैं और उनके अनुसार ये अपनी समझ को विकसित करने का मंच है.
स्विट्जरलैंड के दावोस में चल रहे विश्व इकोनॉमिक फोरम में दुनियाभर के कारोबारियों से लेकर विश्व स्तर के नेता पहुंचे हुए हैं. भारत की ओर से भी कई केन्द्रीय मंत्री इसमें भाग लेने पहुंचे हुए हैं जबकि कई और जा सकते हैं. लेकिन भारत के सबसे बड़े सामाजिक और सांस्कृतिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की आर्थिक शाखा का इस पर क्या कहना है ये जानने के लिए हमने स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय सह-संयोजक अश्विनी महाजन से बात की और जानना चाहा कि आखिर उनका इस महत्वपूर्ण विषय को लेकर क्या मानना है. उनका कहना है कि ये भारत के लिए ज्यादा उपयोगी हो ऐसी समझ हमारी नहीं है हां ये फोरम अपनी समझ विकसित करने का एक माध्यम है जिसे हम गलत नहीं मानते हैं.
दुनियाभर की फोर्सेज का प्वाइंट ऑफ व्यू समझना जरूरी
स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय सह-संयोजक अश्विनी महाजन बताते हैं कि ये जो फोरम है ये बिजनेस का ग्लोबल फोरम है, इसमे अधिकांश कॉरपोरेट, एमएनसी, भाग लेते हैं. उनका कहना है कि कैपिटल रिसोर्स और एमएनसी अपने बारे में विचार करें तो उनके लिए ये ठीक हो सकता है लेकिन भारत के लिए ये ज्यादा उपयोगी हो ऐसी समझ हमारी नहीं है. वो आगे कहते हैं कि फिर भी दुनिया में जो कंफीग्रेशन होती हैं उसमें भागीदारी करना उसमें गलत नहीं है. दुनिया में जो फोर्सेंज हैं वो क्या कर रही हैं, उनके बारे में जानकारी लेना और वहां अपनी समझ को विकसित करना उस दृष्टि से ये भारत के इंगेजमेंट के बारे में हो सकता है. लेकिन इसमें जो फोर्सेज काम कर रही होती हैं उनके पाइंट ऑफ व्यू को समझना जरूरी है.
क्या इससे भारत को कुछ हासिल होता है
अश्विनी महाजन कहते हैं कि देखिए इसमें हासिल होने जैसा कुछ नहीं होता है. आप अपनी समझ विकसित कर सकते, क्योंकि इसमें समझौते नहीं होते हैं. इसमें कुल मिलाकर आप ट्रेड या इकोनॉमी से जुड़े मामलों को लेकर अपनी समझ विकसित कर सकते हैं. आप जान सकते हैं कि इस वक्त दुनिया में किस बारे में विचार चल रहा है.
क्या कभी हमें इसका निवेश के तौर पर फायदा होता है
देखिए जो भी निवेश होते हैं आंतरिक और बाहरी वो आर्थिक मुददों के आधार पर होते हैं. अफ्रिका जैसे देश हैं या बनाना रिपब्लिक हैं जहां लॉ एंड ऑर्डर की स्थिति ठीक नहीं है जहां निवेशक बहुत आकर्षित नहीं होते हैं, अगर वो भी वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम मे चले जाएंगे तो उन्हें कोई निवेश नहीं मिलने वाला है. जैसे मेला होता है और वहां सबलोग जाते हैं ये एक अंतरराष्ट्रीय मेला है, एक दूसरा मेला भी लगता है दुनिया में जिसे वर्ल्ड सोशल फोरम कहा जाता है. ये जो सारी कैपिटेलिस्ट फोर्सेज हैं ये वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में जाती हैं और जो सोशलिस्ट जो लेफटिस्ट फोर्सेंस हैं या कई बार वो लोग जो रोजगार, बेरोजगारी जैसे विषयों को लेकर सामाजिक सरोकार रखते हैं वो भी वर्ल्ड सोशल फोरम में जाती हैं. ये केवल समझ विकसित करने का मंच हैं.