कोविशील्ड बनाने वाली कंपनी ने वापस मंगवाई अपनी वैक्सीन, फैसले के पीछे ये वजह

कोविशील्ड वैक्सीन को लेकर पिछले इसे बनाने वाली कंपनी पर कई गंभीर आरोप लगे थे. लोगों में साइड इफेक्ट के आरोपों के बीच कंपनी ने मार्केट से सभी वैक्सीन वापस मंगाने का फैसला लिया है.

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Wednesday, 08 May, 2024
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एस्ट्राजेनेका की कोविड वैक्सीन को लेकर उठ रही सुरक्षा चिंताओं के बीच कंपनी ने दुनिया भर से अपने टीकों को वापस लेने का फैसला कर लिया है. इसमें भारत में बनाई गई कोविशील्ड (Covishield) वैक्सीन भी है. कुछ दिनों पहले ही इस फार्मास्यूटिकल कंपनी ने एक कोर्ट में वैक्सीन के खतरनाक साइड इफेक्ट्स की बात स्वीकार की थी. बता दें कि एस्ट्राजेनिका वैक्सीन को भारत में कोविशील्ड के नाम से इस्तेमाल किया गया था. हालांकि, कंपनी ने वैक्सीन को बाजार से हटाने के पीछे की कुछ और वजह बताई है.

वैक्सीन से हो रहे थे गंभीर साइड इफेक्ट्स

एस्ट्राजेनेका द्वारा बनाई कोरोना वैक्सीन भारत में कोविशील्ड के नाम से लगाई गई थी. अब कंपनी ने खुद से बनाई कोविड-19 वैक्सीन को वैश्विक स्तर पर वापस ले लिया है. इससे पहले कंपनी ने अदालती दस्तावेजों में स्वीकार किया था कि उसके द्वारा बनाई कोरोना वैक्सीन लगने से खून के थक्के जमना जैसे गंभीर साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं. हालांकि, फार्मा दिग्गज ने कहा कि वैक्सीन को व्यावसायिक कारणों से बाजारों से हटाया जा रहा है. 

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कंपनी ने क्या दी जानकारी?

एस्ट्राजेनेका ने मंगलवार को यह कहा था कि बाजार में जरूरत से ज्यादा मात्रा में वैक्सीन उपलब्ध है इसलिए कंपनी ने बाजार से सभी टीके वापस लेने का फैसला किया है. गौरतलब है कि कुछ दिनों पहले कंपनी ने इस बात को भी स्वीकार किया था कि वैक्सीन के कुछ साइड इफेक्ट भी हैं. जैसे वैक्सीन की वजह से खून का जम जाना और ब्लड प्लेटलेट्स की संख्या गिर जाना. बता दें कि स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार, भारत में अब तक 220 करोड़ से ज्यादा खुराक दी जा चुकी है.

कैसे सामने आया था मामला

ये पूरा मामला तब सामने आया था, जब एस्ट्राजेनेका ने ब्रिटेन की हाईकोर्ट में माना था कि उसकी कोविड-19 वैक्सीन से थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम (TTS) जैसे साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं. थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम से शरीर में खून के थक्के जमने लगते हैं या फिर शरीर में प्लेटलेट्स तेजी से गिरने लगते हैं. बॉडी में ब्लड क्लॉट की वजह से ब्रेन स्ट्रोक की भी आशंका बढ़ जाती है. एस्ट्राज़ेनेका के ये स्वीकार करने के बाद कि उनकी वैक्सीन की वजह से कई लोगों की जान गई और कई बीमार हुए, यूके में उनको 100 मिलियन पाउंड के मुकदमे का सामना करना पड़ रहा है.

भारत में कोवीशिल्ड के नाम से हुआ वैक्सीन का इस्तेमाल

वैक्सीन को बाजार से वापसी के लिए आवेदन 5 मार्च को किया गया था जो 7 मई तक प्रभावी हुआ. एस्ट्राजेनेका ने साल 2020 में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर कोरोना वैक्सीन बनाई थी. भारत में इस AstraZeneca की इस वैक्सीन का प्रोडक्शन अदार पूनावाला की कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने किया था.  कंपनी ने इस वैक्सीन को कोविशील्ड के नाम से बाजार में लॉन्च किया था. भारत में ये वैक्सीन करोड़ों लोगों को लगाई गई थी.
 


Cannes Film Festival में पद्मश्री डॉ. मुकेश बत्रा की किताब 'फील गुड, हील गुड' लॉन्च

यह पुस्तक अपनी रिलीज़ से पहले ही अमेज़ॉन पर हेल्थ, फिटनेस और न्यूट्रीशन कैटेगरी के अंतर्गत टॉप 10 पुस्तकों में शामिल हो चुकी है

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Saturday, 18 May, 2024
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पद्मश्री से सम्मानित एवं होमियोपैथी क्लिनिक्स की सबसे बड़ी श्रृंखला डॉ. बत्राज हेल्थकेयर के संस्थापक डॉ. मुकेश बत्रा की 10वीं किताब ‘फील गुड, हील गुड. स्टेइंग हैप्पी विद होमियोपैथी’ 77वें कान्स फिल्म फेस्टिवल 2024 में लॉन्च हुई. ब्लूम्सबरी द्वारा प्रकाशित 'स्टेइंग हैप्पी विद होम्योपैथी' को हॉलीवुड निर्माता और पूर्व टेनिस चैंपियन अशोक अमृतराज ने लॉन्च किया. यह लॉन्च कार्यक्रम कान्स के भारत पवेलियन में आयोजित किया गया, जिसमें हॉलीवुड के दिग्गज हैल सैडॉफ़, विलियम फिफर के साथ-साथ सरकारी अधिकारी, भारतीय फिल्म निर्माता और वैश्विक फिल्म उद्योग सहित अन्य लोग उपस्थित थे.

पाठकों के लिए उपयोगी होगी किताब

पद्मश्री डॉ. मुकेश बत्रा ने इस अवसर पर बोलते हुए कहा कि मैं दुनिया के सबसे प्रसिद्ध फिल्म फेस्टिवल कान्स में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी 10वीं पुस्तक लॉन्च करते हुए बहुत खुश हूं. भावनात्मक और मानसिक स्वास्थ्य से पीड़ित लोगों को बीमारी से निपटने में मेरे 50 वर्षों के चिकित्सा अनुभव पर आधारित मेरी पुस्तक विश्व स्तर पर पाठकों के लिए उपयोगी होगी. यह पुस्तक चिंता, डिप्रेशन, एडीएचडी, तनाव और अकेलापन जैसी समस्याओं की रोकथाम, गैर-नशे की लत और सुरक्षित होम्योपैथिक उपचार और स्वयं-सहायता के बारे में है. ‘स्टेइंग हैप्पी विद होम्योपैथी' जागरूकता पैदा करती है और मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य की बढ़ती समस्याओं का समाधान प्रदान करती है.

6 देशों में है होम्योपैथी क्लीनिक

डॉ. मुकेश बत्रा पद्मश्री से सम्मानित एवं होमियोपैथी क्लिनिक्स की सबसे बड़ी श्रृंखला डॉ. बत्राज़ हेल्थकेयर के संस्थापक है. इनकी 6 देशों में 225 से अधिक होम्योपैथी क्लीनिकों की दुनिया की सबसे बड़ी श्रृंखला है. उन्होंने जागरूकता पैदा करने और भावनात्मक और मानसिक विकारों के समाधान प्रदान करने के लिए पुस्तक लिखी है. यह पुस्तक अपनी रिलीज़ से पहले ही अमेज़ॉन पर हेल्थ, फिटनेस और न्यूट्रीशन कैटेगरी के अंतर्गत टॉप 10 पुस्तकों में शामिल हो चुकी है.

कौन हैं अमृतराज?

अमृतराज ने अपने 35 साल के करियर के दौरान 100 से ज़्यादा फ़िल्में बनाई हैं, जिनका कुल वर्ल्डवाइड रेवेन्यू 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर से ज़्यादा है. उन्होंने हॉलीवुड के हर बड़े स्टूडियो के साथ साझेदारी की और ड्वेन "द रॉक" जॉनसन, रॉबर्ट डी नीरो, ब्रूस विलिस, सैंड्रा बुलॉक, सिल्वेस्टर स्टेलोन, एंजेलिना जोली, कैट ब्लैंचेट, डस्टिन हॉफमैन, एंड्रयू गारफील्ड, स्टीव मार्टिन, रजनीकांत, एंटोनियो बैंडेरस, जेनिफर एनिस्टन, निकोलस केज और कई अन्य लोगों की फिल्में बनाई हैं.
 


अगर आप भी रहना चाहते हैं हेल्दी, तो ICMR की इन कुकिंग गाइडलाइन्स को अपनाएं

अच्छा खान-पान ही अच्छे स्वास्थ्य का मूल मंत्र है. ऐसे में हर किसी को अपने डाइट का विशेष ध्यान रखना जरूरी है. ICMR ने इस संबंध में अहम गाइडलाइंस जारी किए हैं.

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Tuesday, 14 May, 2024
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आजकल की भागती दौड़ती जिंदगी में लोगों के पास खुद की हेल्थ पर ध्यान देने तक का समय नहीं होता. अच्छा खानपान हो या वर्कआउट लोग अपनी बिजी लाइफ के चलते अपने शरीर का ध्यान रखना भूल गए हैं. आपका खानपान आपको हेल्दी बनाने में मदद करता है. अगर आप हेल्दी डाइट लेते हैं तो आप खुद को फिट और हेल्दी बनाए रख सकते हैं. अब इसी को लेकर इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) एक गाइडलाइन्स जारी की है. ICMR के मुताबिक, स्वस्थ भोजन तैयार करने के लिए कुकिंग और प्रीकुकिंग तकनीक सही होना सबसे आवश्यक है. ऐसे में ICMR की कुकिंग गाइलाइन फॉलो कर कुकिंग को सेफ रख सकते हैं. 

प्री-कुकिंग तकनीकों का करें इस्तेमाल

भोजन की न्यूट्रीशन क्वालिटी बढ़े, इसके लिए ICMR ने प्री-कुकिंग मेथड जैसे सोकिंग, ब्लैंचिंग और मैरिनेटिंग पर काफी जोर दिया है. सोकिंग की प्रकिया के दौरान अनाज को तकरीबन 3 से 6 घंटे के लिए भिगोया जाता है. इससे अनाज में मौजूद फाइटिक एसिड कम होता है. यह एसिड बॉडी को मिनरल्स एब्जार्व करने से रोकता है. वहीं, सब्जियों को ब्लांच करने से उसका माइक्रोबियल लोड कम होता है और पेस्टिसाइड हटता है. साथ ही सब्जी के रंग, बनावट और पोषक तत्व में कोई बदलाव नहीं आता है. ये प्रोसेस उन एंग्जाइम को खत्म करने के काम आता है जो सब्जी से पोषण तत्वों को कम करते हैं. 

ICMR के मुताबिक आधी से ज्यादा बीमारियों की वजह आपका खानपान हो सकता है. भारत में 57 प्रतिशत बीमारियों का कारण अनहेल्दी डाइट है. ICMR के मुताबिक खराब खानपान के कारण शरीर में पोषण की कमी, एनीमिया, मोटापा, डायबिटीज, कैंसर जैसी बीमारियों का जोखिम बढ़ सकता है. आइए जानते हैं ICMR ने अपने गाइडलाइन में कुकिंग के किन तरीकों को शामिल किया है. 

•    बॉइलिंग और स्टीमिंग- ये तरीका भोजन में मौजूद वॉटर सॉल्यूबल विटामिन्स और मिनरल्स को बचाकर रखता है. साथ ही पकवान तैयार करने में समय भी कम लगता है.
•    प्रेशर कुकिंग- भोजन को स्टीम के दबाव में जल्दी पकाने के लिए प्रेशर कुकर का इस्तेमाल किया जाता है. इस कुकवेयर में खाना तैयार करने से भोजन में विटामिन और मिनरल्स बने रहते हैं.
•    फ्राइंग और शैलो फ्राइंग- ये तरीका फूड में फैट को बढ़ा सकता है, जो दिल की बीमारियां होने की एक वजह बन सकता है. हालांकि, खाने का स्वाद बढ़ाने में ये तरीका कारगर साबित हो सकता है.
•    माइक्रोवेव में खाना पकाना- खाना बनाने के इस तरीके में समय कम लगता है. साथ ही पोषक तत्व भी भोजन में बने रहते हैं. भोजन तैयार करने के लिए बर्तनों का चुनाव भी काफी महत्वपूर्ण है. इसमें भी हल्की सी लापरवाही आपकी सेहत के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है.
•    मिट्टी के बर्तन- खाना पकाने का ये तरीका भोजन का स्वाद और उसके मिनरल्स कंटेट को बढ़ा सकता है. हालांकि, इन्हें इस्तेमाल करने से पहले इनकी साफ-सफाई पर विशेष ध्यान रखें,  वर्ना इस बर्तन में खाना बनाना जोखिम भी साबित हो सकता है. 
•    मेटल और स्टेनलेस स्टील के कुकवेयर- खाना पकाने का टिकाऊ और सुरक्षित तरीका है लेकिन भोजन में मेटल्स के रिसाव से बचने के लिए इसका सही तरीके से उपयोग किया जाना चाहिए.
•    टेफ्लॉन से लेपित नॉन-स्टिक पैन- कम वसा वाले खाना पकाने के लिए उपयोगी है. हालांकि, भोजन पकाते वक्त निकलने वाले जहरीले धुएं को रोकने के लिए इसे ज़्यादा गरम नहीं किया जाना चाहिए.
•    ग्रेनाइट पत्थर के कुकवेयर- पारंपरिक नॉन-स्टिक की तुलना में अधिक सुरक्षित और टिकाऊ माने जाते हैं. ध्यान रखें इसमें कोई हानिकारक रसायन न हों.  
 


झोलाछाप डॉक्‍टरों की खैर नहीं, सरकार करने जा रही है ऐसा इलाज नहीं हो सकेगा फर्जीवाड़ा

सरकार जो उपाय करने जा रही है उसका मकसद सिर्फ झोलाछाप पर नियंत्रण पाना नहीं बल्कि डॉक्‍टरों का डेटा जुटाकर उसका इस्‍तेमाल पॉलिसी मेकिंग में करना है. 

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Monday, 13 May, 2024
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हमारे देश में झोलाछाप डॉक्‍टरों की समस्‍या और उनके इलाज के कारण होने वाली मौतों का मामला अक्‍सर सामने आता रहता है. ये समस्‍या तो बहुत पुरानी है लेकिन आज तक इसका कोई इलाज नहीं निकल पाया. लेकिन अब सरकार ने इसके लिए एक उपाय निकाल लिया है. मरीज अपने डॉक्‍टर को पहचान सकें इसके लिए नेशनल हेल्‍थ अथॉरिटी डॉक्‍टरों को डिजिटल डॉक्‍टर सर्टिफिकेट दे रही है. इसके जरिए मरीज डॉक्‍टर को पहचान पाएगा कि वो असली है या नहीं. 

अब कैसे सुलझेगी फर्जी डॉक्‍टरों की समस्‍या 
केन्‍द्र सरकार की ओर से जारी किए जाने वाले इस डिजिटल डॉक्‍टर सर्टिफिकेट को सभी वेरिफाइड डॉक्‍टरों को अपने क्लिनिक के आगे लगाना होगा. उस सर्टिफिकेट में एक क्‍यूआर कोड होगा जिसे स्‍कैन करते ही आपको उस डॉक्‍टर से जुड़ी वो जानकारियां मिल जाएंगी जो किसी भी डॉक्‍टर को पहचानने में मददगार होती है. इस योजना को आयुष्‍मान भारत डिजिटल मिशन के अंतर्गत लाया जा रहा है. 

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KYC की तर्ज पर बना है KYD 
स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय ने जिस तरह फाइनेंशियल ट्रांजैक्‍शन के लिए Know your Customer की सेवाएं होती हैं उसी तरह हेल्‍थ सेक्‍टर में Know your Doctor की सेवा की शुरूआत की गई है. इस सर्टिफिकेट को जारी करने के लिए हर राज्‍य सरकार को एक वेरिफॉयर की नियुक्ति करनी होगी या स्‍टेट मेडिकल काउंसिल की ओर से ये काम किया जाएगा. इन लोगों के जरिए ही इस सर्टिफिकेट को इश्‍यू किया जा सकेगा.  

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, देश में 10 लाख फर्जी डॉक्‍टर नीम हकीम काम कर रहे हैं. इनमें 400000 भारतीय चिकित्‍सा के डॉक्‍टर भी शामिल हैं. इस दिशा में नेशनल हेल्‍थ अथॉरिटी 30 मई को एक वर्कशॉप आयोजित करने जा रही है. इस वर्कशॉप में सभी चिकित्‍सा काउंसिल को इससे जुड़ी सभी जानकारियां दी जाएंगी. अथॉरिटी उन्‍हें जल्‍द से जल्‍द इस अभियान की शुरूआत करने से लेकर इसके फायदों के बारे में विस्‍तार से बताएगी. 

अब तक इतने डॉक्‍टरों का हो चुका है वेरिफिकेशन 
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, सरकार अभी तक इस अभियान के तहत 139000 डॉक्‍टरों का वेरिफिकेशन कर चुकी है, इन्‍हें ये सर्टिफिकेट दिया भी जा चुका है. यही नहीं नेशनल हेल्‍थ डिजिटल मिशन के अंतर्गत 2 लाख नर्सों को भी इसके तहत रजिस्‍टर्ड किया जा चुका है. सरकार के रजिस्‍टर में 76.56 प्रतिशत डॉक्‍टर प्राइवेट सेक्‍टर से हैं. इस बीच नेशनल हेल्‍थ अथॉरिटी इन दिनों डेंटिस्‍ट, नेशनल मेडिकल काउंसिल, और संबंधित पेशेवरों को रजिस्‍टर्ड कर रही है. सरकार का मकसद केवल फर्जी डॉक्‍टरों पर नकेल कसना ही नहीं बल्कि इस डेटा का इस्‍तेमाल पॉलिसी मेकिंग से लेकर डॉक्‍टरों की आयु वर्ग को भी पहचानने में की जाएगी. सरकार को इससे ये भी पता चलेगा कि किस स्‍ट्रीम में कितने डॉक्‍टर काम कर रहे हैं और कितने रिटायर होने वाले हैं, और कितने लोगों की भविष्‍य में जरूरत होगी. हालांकि इस बारे में नेशनल हेल्‍थ अथारिटी की ओर से  कोई जवाब नहीं दिया गया है. 


 


कोरोना वैक्सीन बनाने वाली कंपनी ने बताई खौफनाक सच्चाई, क्या आपको है कोई खतरा? 

एस्ट्राजेनेका ने अदालत में स्वीकार किया है कि उसकी कोरोना वैक्सीन से खतरनाक साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं.

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Tuesday, 30 April, 2024
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कोरोना महामारी से बचाव के लिए जिस वैक्सीन (Corona Vaccine) पर लोगों ने आंख मूंदकर भरोसा किया था, अब उसे बनाने वाली कंपनी ने कुछ ऐसा कह दिया है कि बवाल मच गया है. वैक्सीन लेने वाले तमाम तरह की चिंताओं में घिर गए हैं. दरअसल, ब्रिटेन की फार्मा कंपनी एस्ट्राजेनेका (AstraZeneca) ने अदालत के समक्ष स्वीकार किया है कि उसकी COVID-19 वैक्सीन से खतरनाक साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं. इसमें हार्ट अटैक, खून का थक्का जमना और थ्रॉम्बोसिस थ्रॉम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम आदि शामिल हैं. हालांकि, कंपनी ने यह भी कहा है कि ऐसा बहुत दुर्लभ मामलों में ही होगा. 

उसी फॉर्मूले का यहां भी इस्तेमाल 
एस्ट्राजेनेका ने कोवीशील्ड (Covishield) नाम से कोरोना वैक्सीन बनाई थी. यहां गौर करने वाली बात ये है कि एस्ट्राजेनेका के फॉर्मूले से ही भारत में सीरम इंस्टीट्यूट ने वैक्सीन बनाई थी. ऐसे में एस्ट्राजेनेका के इस खुलासे ने भारत में रहने वालों के चेहरे पर भी चिंता की लकीरें खींच दी हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इस ब्रिटिश फार्मा कंपनी ने माना है कि उसकी कोरोना वैक्सीन से कुछ मामलों में थ्रॉम्बोसिस थ्रॉम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम (TTS) हो सकता है. इस बीमारी से शरीर में खून के थक्के जम जाते हैं और प्लेटलेट्स की संख्या गिरने लगती है.

कई लोगों की मौत का आरोप
एस्ट्राजेनेका पर आरोप है कि उसकी कोवीशील्ड से कई लोगों की मौत हुई थी. जबकि कई लोगों को गंभीर बीमारियों का सामना करना पड़ा. कंपनी के खिलाफ ब्रिटिश हाई कोर्ट में करीब 51 केस चल रहे हैं. पीड़ितों ने कंपनी से करीब 1 हजार करोड़ रुपए का हर्जाना मांगा है. अप्रैल 2021 में जेमी स्कॉट नामक शख्स ने कोवीशील्ड वैक्सीन लगवाई थी. इसके बाद उनकी हालत खराब होती चली गई. उनके दिमाग में खून का थक्का जम गया. इसके अलावा उनके ब्रेन में इंटर्नल ब्लीडिंग भी हुई.  

पहले मना किया, अब स्वीकारा
पिछले साल पीड़ित स्कॉट ने एस्ट्राजेनेका के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी. इसके बाद कंपनी ने स्कॉट के आरोपों के जवाब में दावा किया था कि उसकी वैक्सीन से TTS नहीं हो सकता. हालांकि, अब हाई कोर्ट में जमा किए दस्तावेजों में कंपनी अपने उस दावे से पलट गई है. एस्ट्राजेनेका ने स्वीकार किया है कि उसकी वैक्सीन, बहुत ही दुर्लभ मामलों में, TTS का कारण बन सकती है. वैक्सीन में किस चीज से यह बीमारी होती है, इसकी जानकारी फिलहाल कंपनी के पास भी नहीं है. इन दस्तावेजों के सामने आने के बाद स्कॉट के वकील का कहना है कि एस्ट्राजेनेका-ऑक्सफोर्ड की वैक्सीन में कई खामियां हैं. इसके असर को लेकर गलत जानकारी दी गई है.

ब्रिटेन में नहीं हो रहा इस्तेमाल
एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन को पहले पूरी तरह सुरक्षित करार दिया गया था. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) ने भी कहा था कि 18 साल या उससे अधिक उम्र वाले लोगों के लिए वैक्सीन सुरक्षित और असरदार है. इसकी लॉन्च के मौके पर ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने इसे ब्रिटिश साइंस के लिए एक बड़ी जीत बताया था. हालांकि, इस वैक्सीन का इस्तेमाल अब ब्रिटेन में नहीं हो रहा है. वहीं, मेडिसिन हेल्थकेयर प्रोडक्ट्स रेगुलेटरी (MHRA) के अनुसार, ब्रिटेन में 81 ऐसे मामले मिले हैं, जिनमें आशंका है कि वैक्सीन की वजह से खून के थक्के जमने से लोगों की मौत हो गई. बता दें कि एस्ट्राजेनेका ने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के साथ मिलकर कोवीशील्ड वैक्सीन तैयार की थी.


NATHEALTH के नए अध्यक्ष की हुई नियुक्ति, जानते हैं कौन है ये शख्स?

NATHEALTH के 10वें आरोग्य भारत शिखर सम्मेलन 2024 की वार्षिक बैठक में इसकी घोषणा की गई है.

Last Modified:
Friday, 12 April, 2024
NATHEALTH

भारतीय हेल्थकेयर इंडस्ट्री का प्रतिनिधित्व करने वाली सर्वोच्च संस्था NATHEALTH ने मैक्स हेल्थकेयर इंस्टीट्यूट लिमिटेड के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर अभय सोई को वित्त वर्ष 2024-25 के लिए अपना नया अध्यक्ष नियुक्त किया. है सोई वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान NATHEALTH के पूर्व अध्यक्ष डॉ. आशुतोष रघुवंशी की जगह कार्यभार ग्रहण करेंगे और संगठन को नए क्षितिज की ओर ले जाने की जिम्मेदारी संभालेंगे. 10वें NATHEALTH आरोग्य भारत शिखर सम्मेलन 2024 की वार्षिक बैठक में इसकी घोषणा की गई.

NATHEALTH की नई टीम का गठन

अभय सोई की नई टीम में मेट्रोपोलिस हेल्थकेयर की प्रमोटर और एमडी अमीरा शाह सीनियर वाइस प्रेसिडेंट और अपोलो हॉस्पिटल्स ग्रुप की ज्वाइंट मैनेजिंग डायरेक्टर डॉ. संगीता रेड्डी वाइस प्रेसिडेंट के रूप में शामिल हुई हैं. वहीं मैनेजिंग डायरेक्टर के रूप में डॉ. ओम प्रकाश मनचंदा, कोषाध्यक्ष के रूप में डॉ. लाल पैथलैब्स और सेकेट्री के रूप में हेल्थियम मेडटेक के सीईओ और एमडी अनीश बाफना ने अपनी जिम्मेदारी संभाली. उद्योग जगत के दिग्गजों की यह टीम भारत भर में स्वास्थ्य सेवा की पहुंच और गुणवत्ता को आगे बढ़ाने के NATHEALTH के मिशन को आगे बढ़ाएगी.

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हेल्थकेयर इकोसिस्टम को और मजबूत करेंगे

NATHEALTH के अध्यक्ष के रूप में अपनी नियुक्ति पर बोलते हुए मैक्स हेल्थकेयर इंस्टीट्यूट लिमिटेड के अध्यक्ष और मैनेजिंग डायरेक्टर अभय सोई ने कहा कि विशेष रूप से स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र के लिए इस परिवर्तनकारी समय के दौरान NATHEALTH के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी मिलना एक सौभाग्य की बात है. प्रधानमंत्री की सभी के स्वास्थ्य के प्रति दृढ़ प्रतिबद्धता और 2047 तक विकसित भारत के उनके विजन को हम साकार करने की कोशिश करेंगे. NATHEALTH सरकार के साथ साझेदारी करके यह सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा जिससे माननीय प्रधानमंत्री का विजन साकार हो. अध्यक्ष के रूप में यह सुनिश्चित करने का प्रयास करूंगा कि NATHEALTH एक ऐसा हेल्थकेयर इकोसिस्टम बनाने के अपने प्रयासों को जारी रखेगा जो समावेशी, इनोवेटिव और गुणवत्ता से पूर्ण हो.

हेल्थकेयर सिस्टम को देंगे नया आकार

मेट्रोपोलिस हेल्थकेयर की प्रमोटर और एमडी अमीरा शाह और NATHEALTH की सीनियर वाइस प्रेसिडेंट अमीरा शाह ने इस मौके पर कहा कि हमारे देश के हेल्थकेयर सिस्टम नया आकार देने के लिए इस अनुभवी टीम के साथ जुड़ना सम्मान की बात है. मुझे फिर से यह जिम्मेदारी सौंपने के लिए NATHEALTH का आभार व्यक्त करती हूं और ट्रांसफॉर्मेशन और इंपैक्टफुल इस यात्रा का बेसब्री से इंतजार कर रही हूं. वहीं अपोलो हॉस्पिटल ग्रुप की ज्वाइंट मैनेजिंग डायरेक्टर डॉ. संगीता रेड्डी और NATHEALTH की वाइस प्रेसिडेंट डॉ. संगीता रेड्डी ने कहा कि हम भारत में स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में एक नए युग की शुरुआत का स्वागत कर रहे हैं, मुझे NATHEALTH की उपाध्यक्ष के रूप में शामिल होने पर बहुत गर्व महसूस हो रहा है. 
 


नौकरी देने को लेकर हेल्‍थकेयर सेक्‍टर में हुआ इजाफा, इतने फीसदी लोगों के आए अच्‍छे दिन 

आंकड़ा बता रहा है कि सांगठनिक स्‍तर में 44 प्रतिशत लोगों को एंट्री लेवल पर हायर किया गया,35 प्रतिशत लोगों को मिड लेवल पर हायर किया गया, ये वो लोग थे जिनमें 5 से 10 साल का काम का अनुभव था.

Last Modified:
Monday, 01 April, 2024
Healthcare

देश में भले ही बेराजगारी का मुद्दा आए दिन सुनाई देता हो लेकिन अगर हेल्‍थकेयर सेक्‍टर में पिछले साल 2023 में नौकरी देने के प्रतिशत पर नजर डालें तो उसमें इजाफा हुआ है. सीआईईएल एचआर के आंकड़ों के अनुसार 2023 में हेल्‍थकेयर सेक्‍टर में पैदा होने वाली नौकरियों में 9 प्रतिशत का इजाफा देखने को मिला है. सबसे दिलचस्‍प बात ये है कि सबसे ज्‍यादा जॉब सेल्‍स और बिजनेस डेवलपमेंट में देखने को मिली हैं.

क्‍या कहते हैं सर्वे के आंकड़े? 
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, रिपोर्ट कहती है कि हेल्‍थकेयर के जिन विभागों में सबसे ज्‍यादा लोगों की डिमांड रही उनमें डेवऑप्‍स इंजीनियर, मोबाइल ऐप डेवलपर,फुल स्‍टैक डेवलपर, डेटा साइंटिस्‍ट और डेटा इंजीनियर शामिल हैं. आईटी और इंजीनियरिंग क्षेत्र में सॉफ्टवेयर डेवलपर, सॉफ्टवेयर इंजीनियर, प्रोडक्‍ट मैनेजर, और एआई इंजीनियर जैसे पदों पर सबसे ज्‍यादा लोगों को नियुक्ति मिली. इसी तरह, बिजनेस डेवलपमेंट मैनेजर और कॉर्पोरेट सेल्स मैनेजर, बिजनेस डेवलपमेंट और सेल्स डोमेन में, मांग वाले प्रमुख पदों में सेल्स मैनेजर, शामिल हैं. 

क्‍या बोले कंपनी के सीईओ? 
आंकड़े जुटाने वाली सीआईईएल एचआर के सीईओ, आदित्य नारायण मिश्रा ने कहा ने इसे लेकर कहा कि सोशियो इकोनॉमिक बदलावों के बीच मरीजों की देखभाल, मैन्‍युफैक्‍चरिंग और रिसर्च के क्षेत्र में हमारे द्वारा दी जा रही सेवाओं के चलते टेक्‍नोलॉजी का क्षेत्र तेजी से बढ़ रहा है. इसमें पिछले साल में लगातार बढ़ोतरी हुई है. फंडिग की कमी के बीच नियुक्तिओं में बढ़ोतरी हुई है. इस क्षेत्र में और प्रतिभाओं को आकर्षित करने के लिए जरूरी है कि कुछ रणनीतिक बदलाव किए जाएं. 

किस लेवल पर कितनी हुई हायरिंग 
अगर अलग-अलग स्‍तर पर होने वाली हायरिंग में ये देखें कि आखिर किस स्‍तर पर कितने लोगों को जॉब मिला तो उसमें दिलचस्‍प आंकड़ा सामने आता है. आंकड़ा बता रहा है कि सांगठनिक स्‍तर में 44 प्रतिशत लोगों को एंट्री लेवल पर हायर किया गया,35 प्रतिशत लोगों को मिड लेवल पर हायर किया गया, ये वो लोग थे जिनमें 5 से 10 साल का काम का अनुभव था. जबकि अनुभवी लोगों को 21 प्रतिशत हायर किया गया, इनमें 10 से 30 साल के अनुभव वाले लोग शामिल थे. 

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आज से महंगी हो गई हैं ये 800 दवाएं, जानते हैं क्‍या है इसकी वजह? 

इससे पहले 2022 में भी दवाओं की कीमत में इजाफा हुआ था. उस वक्‍त भी दवाओं की कीमत में 10 से 12 प्रतिशत तक का इजाफा हुआ था. 

Last Modified:
Monday, 01 April, 2024
medicine

देशभर में आज यानी 1 अप्रैल से 800 दवाओं की कीमत में इजाफा हो गया है. सरकार की ओर से होल सेल प्राइस इंडेक्‍स में बदलाव के कारण कीमतों में बढ़ोतरी हो रही है. इस बदलाव के कारण दवाओं की कीमत में 10 से 12 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो सकती है. कीमतों में बढ़ोतरी का असर कुछ जरूरी दवाओं में भी देखने को मिलेगा जिन्‍हें आप रोजमर्रा की बीमारी में इस्‍तेमाल करते हैं. 

क्‍यों हुआ है ये इजाफा ? 
दरअसल सरकार की ओर से आवश्‍यक दवा सूची में 0.55 प्रतिशत का इजाफा हुआ है. समझने वाली बात ये है कि सरकार साल में एक बार ही दवाओं की कीमत में इजाफा कर सकती है. इससे पहले 2022 में भी दवाओं की कीमत में 10 से 12 प्रतिशत तक इजाफा किया गया था. अगर रोजमर्रा की दवाओं पर नजर डालें तो पैरासिटामॉल की कीमत में 100 प्रतिशत से ज्‍यादा का इजाफा हुआ है. जबकि एक्‍सीसिएंट के दामों में 18 से 262 प्रतिशत तक बढ़े हैं. सिर्फ यही नहीं कई और दवाओं की कीमत में भी इजाफा हुआ है. 

किन किन दवाओं में हुआ है इजाफा? 
जिन दवाओं की कीमत में इजाफा हुआ है उनमें पैरासिटामोल, एजिथ्रोमाइसिन जैसी दवाएं जो सबसे ज्‍यादा इस्‍तेमाल होती हैं. इसके अतिरिक्‍त एनीमिया विरोधी दवाएं विटामिन और आयरन जैसी दवाएं शामिल हैं. कोविड 19 में इस्‍तेमाल होने वाली दवाओं के दामों में भी इजाफा हुआ है. ग्लिसरीन और प्रोपलीन, ग्‍लाइकोल, सिरप सहित सॉल्‍वैंट्स में 263 प्रतिशत और 80 प्रतिशत का इजाफा हुआ है. अगर पेनिसिलीन जी की कीमतों में हुए इजाफे पर नजर डालें तों वो 175 प्रतिशत तक महंगा हुई हैं. 

महंगाई पर क्‍या बोली दवा कंपनियां 
दवा कंपनियों की ओर से दाम बढ़ाने के लिए सरकार से इजाजत मांगी जाती है. दवा कंपनियों का तर्क है कि दवाओं में इस्‍तेमाल होने वाले सामान के दामों में इजाफा होने के कारण लागत में इजाफा हो रहा था. लेकिन अब दाम बढ़ने के बाद उनको बड़ी राहत मिली है. 

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ISRO चीफ को Aditya-L1 की लॉन्च पर मिली थी 'बुरी खबर', फिर भी हंसते-हंसते पूरा किया मिशन

ISRO चीफ एस सोमनाथ को कैंसर है. चंद्नयान 3 के बाद उन्हें यह बात पता चली, जिसके बाद उन्होंने चेन्नई के एक अस्पताल से इलाज कराया और अब वो ठीक हो गए हैं.

Last Modified:
Monday, 04 March, 2024
isro s somnath

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) चीफ एस सोमनाथ को कैंसर है. इस बात का खुलासा उन्होंने एक मीडिया रिपोर्ट में किया है. एस सोमनाथ ने कहा है कि चंद्रयान-3 मिशन के दौरान भी उन्हें कुछ स्वास्थ्य समस्याएं थी, लेकिन तब इस बात का पता नहीं था, कि उन्हें कैंसर है. उन्होंने बाद में जांच कराई, जिसमें पता चला कि उनके पेट में कैंसर है. उन्होंने चेन्नई के एक अस्पताल में कैंसर का इलाज कराना शुरू कर दिया था. उनके परिवार वाले भी काफी परेशान हो गए थे. उनकी कीमोथैरेपी चलती रही और अब वो ठीक हो गए हैं.उन्हें आदित्य एल 1 की लांच के दिन इसका पता चला था, जिसके बाद उन्होंने परिवार को इसकी जानकारी दी.

Aditya l1  मिशन के दिन पता चली बीमारी
एस सोमनाथ ने बताया कि चंद्रयान-3 मिशन के दौरान उन्हें कुछ स्वास्थ्य समस्याएं थी, लेकिन यह जानकारी नहीं थी कि उन्हें कैंसर है। इसके बाद Aditya l1  मिशन के दिन वह अपनी रूटीन जांच के लिए अस्पताल गए थे. उसी दिन जांच में पता चला कि उनके पेट में कैंसर है, लेकिन उन्होंने अपना मिशन पूरा किया. इसके बाद उन्होंने चेन्नई के एक अस्पताल में कैंसर का इलाज कराना शुरू कर दिया था. उनके परिवार वाले भी काफी परेशान हो गए थे। उनकी कीमोथैरेपी चलती रही और वो ठीक हो गए. फिलहाल उनकी दवाइयां चल रही है.

चंद्रयान -3 मिशन के दौरान भी हुई थी स्वास्थ्य समस्या

एस सोमनाथ ने बताया कि चंद्रयान-3 मिशन के दौरान उन्हें कुछ स्वास्थ्य समस्याएं थी, लेकिन उन्हें इस बात का पता नहीं था कि मुझे कैंसर है। जांच में पता चला कि उनके पेट में कैंसर है। उन्होंने चेन्नई के एक अस्पताल में कैंसर का इलाज कराना शुरू कर दिया था। उनके परिवार वाले भी काफी परेशान हो गए थे। उनकी कीमोथैरेपी चलती रही और वो ठीक हो गए।उन्होंने कहा कि जिस दिन Aditya l1 मिशन अंतरिक्ष में लॉन्च हुआ था, उसी दिन उन्हें इस बात की जानकारी मिली, लेकिन उन्होंने बिना घबराए या परेशान हुए मिशन को पूरा किया. वो रूटीन चेकअप के लिए अस्पताल गए थे, तभी उन्हें इस बात की जानकारी मिली थी।

जेनेटिक बीमारी निकला कैंसर
एस सोमनाथ नेबताया कि Aditya l1 मिशन की सफल लॉन्चिंग के बाद उन्होंने पेट का स्कैन कराया. तब इसका पता चला था. इसके बाद अधिक जांच और इलाज के लिए वो चेन्नई गए. कुछ ही दिन में वहां कैंसर की पुष्टि भी हो गई. तब उन्हें पता चला कि यह बीमारी उन्हें जेनेटिकली है. इसके बाद सोमनाथ ने सर्जरी कराई और उसके बाद उनकी कीमोथेरेपी हुई. अब वह ठीक हैं.
 
मिशन गगनयान के लिए तैयार भारत

एस सोमनाथ ने बताया कि कुछ दिनों पहले गगनयान मिशन में शामिल चार एस्ट्रोनॉट्स के नाम का एलान हुआ. बतौर एस्ट्रोनॉट्स ग्रुप कमांडर प्रशांत बालकृष्णन नायर, अंगद प्रताप, अजीत कृष्णन, विंग कमांडर शुभांशु शुक्ला स्पेस में जाएंगे. ये चारों भारतीय वायु सेना के टेस्ट पायलट हैं. इस मिशन के लिए चारों ने रूस जाकर ट्रेनिंग की है. इन चारों की फिलहाल एस्ट्रोनॉट ट्रेनिंग फैसिलिटी में ट्रेनिंग चल रही है. मिशन गगनयान मिशन का टेस्ट व्हीकल की सफल लॉन्चिंग हो चुकी है.

 


माता-पिता मूकबिधर, लेकिन इलाज के बाद अब बोल सकेगी नौ महीने की मासूम, कोशिश हुई कामयाब

ईएनटी एक्सपर्ट्स ने गुरुग्राम निवासी बच्ची मन्नत के कानों की सफल कॉक्लियर इम्प्लांट सर्जरी कर उसे सुनने व बोलने की क्षमता का उपहार देकर नया जीवनदान दिया है. 

Last Modified:
Friday, 01 March, 2024
sarvodaya hospital team

गुरुग्राम में रहने वाली एक नौ महीने की बच्ची की सफल कॉक्लियर इम्प्लांट सर्जरी कर उसे सुनने और बोलने की क्षमता का उपहार मिला है. नौ महीने की मन्नत जन्म से ही सुन नहीं सकती थी. उसकी मां खुशी व पिता कृष्णा और बुआ भी बचपन से ही मूक और बधिर (Dumb and Deaf) हैं, ऐसे में जेनेटिक कारणों से उसे भी यह समस्या आई, लेकिन उसकी दादी संतोष के प्रयास और आशा के चलते आज उसे एक नया जीवन मिल गया है. अब बच्ची सुनकर प्रति क्रिया भी देती है और बोलने का प्रयास भी करती है.

छह माह की उम्र में परिवार को पता चली बच्ची की समस्या
मन्नत का जन्म 7 मार्च 2023 में हुआ. मन्नत की दादी संतोष ने बताया कि वह छह महीने की थी, जब उन्हें यह अंदेशा हुआ कि मन्नत भी अपने माता पिता की तरह सुन और बोल नहीं सकती. वो घर पर कोई भी आवाज या शोर होने पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देती थी. वह न आवाज पहचानती, न कुछ सुनकर मुड़ के देखती, अचानक कुछ सुन कर चौंकने जैसी प्रतिक्रिया भी नहीं देती थी. उन्होंने सोचा कि मन्नत के माता पिता भी मूक बधिर हैं, ऐसे में वह इसे कैसे पालेंगे. उन्होंने इस पर विचार करते हुए बिना देरी किए डाक्टरों से संपर्क किया, ताकि वो जल्द सुनने और बोलने लगे. उन्होंने पहले एक स्थानीय ऑडियोलॉजिस्ट की स्क्रीनिंग कराई, जिसके बाद उसे आगे की जांच के लिए सर्वोदय अस्पताल रेफर किया गया.

20 दिन के ईलाज की प्रकिया के बाद सुनने लगी बच्ची

सर्वोदय अस्पताल के विषेषज्ञों ने बिहेवियरल ऑब्जर्वेशन ऑडियोमेट्री (बीओए), टिम्पैनोमेट्री, ऑडिटरी ब्रेनस्टेम रिस्पॉन्स (एबीआर), और ऑडिटरी स्टेडी-स्टेट रिस्पॉन्स (एएसएसआर) सहित विभिन्न जांचों से मन्नत में बधिरता की पुष्टि की. इसके बाद इनर ईयर, ऑडिटरी नर्व, और उसके आसपास  में संरचनात्मक असामान्यताओं का पता लगाने के लिए टेम्पोरल बोन के सीटी और एमआरआई स्कैन जैसे इमेजिंग अध्ययन भी किए गए. बच्ची के अंदर बधिरता की गंभीरता को देखते हुए अस्पताल के ईएनटी और कॉक्लियर इम्प्लांट के डायरेक्टर और हेड डॉ. रवि भाटिया ने कॉक्लियर इम्प्लांट सर्जरी की सलाह दी. डॉ. भाटिया ने बताया कि मन्नत में सामान्य इंट्राऑपरेटिव प्रतिक्रियाओं के साथ 28 दिसंबर 2024 को उसकी सर्जरी सफल रही और कोई दिक्कत नहीं हुई। मन्नत तेज़ी से रिकवर हुई और अगले दिन उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी गई।

सर्जरी के तुरंत बाद ही बच्ची ने आवाज पर प्रति क्रिया देनी की शुरू
परिवार के बताया कि मन्नत ने सर्जरी के तुरंत ऑडिटरी प्रतिक्रियाएं दिखानी शुरू की और तीन सप्ताह की एक्टिवेशन अवधि के बाद उसने आवाजों पर काफी रेस्पांस करना शुरू कर दिया. उसने बड़बड़ाना भी शुरू कर दिया। अगले एक साल तक मन्नत को कॉक्लियर इम्प्लांट फंक्शन का आंकलन करने के लिए नियमित मॉनिटर किया जाएगा.

बच्ची की सर्जरी का पूरा खर्च एक संस्था ने उठाया
डाक्टरों के अनुसार इस सर्जरी का खर्च करीब 10 लाख रुपये तक आता है, लेकिन मन्नत का पूरा ईलाज फ्री में हुआ. द हंस फाउंडेशन ने परिवार की कमजोर आर्थिक स्थिति को देखते हुए पूरे सर्जिकल खर्च की जिम्मेदारी खुद उठाई. 


भारत में प्रति लाख में से 291 बच्चे जन्म से मूक व बधिर पैदा होते हैं

अस्पताल के मेडिकल एडमिनिस्ट्रेटर डा. सौरभ गहलोत ने बताया कि माता-पिता को अक्सर अपने बच्चों में सुनने की क्षमता में कमी के शुरुआती लक्षणों पर ध्यान नहीं देते हैं. इस कारण से बच्चे को सही उम्र में जरूरत अनुसार सर्जरी नहीं मिल पाती है. आज भी भारत में प्रति लाख में से 291 बच्चे जन्म से मूक व बधिर पैदा होते हैं,  जिसमें से सिर्फ एक तिहाई को ही सही समय पर सही इलाज मिल पाता है. ऐसे में माता पिता को सलाह है कि वह जितना जल्द हो सके बच्चों को ईलाज कराएं ताकि वह जल्द बोलनाव सुनना शुरू कर दें. 
 
 


AI से सिर्फ इनवेस्टिगेशन ही नहीं बल्कि प्रोडक्टिविटी को भी बढ़ा या जा सकता है. 

डॉक्‍टर हर्ष महाजन ने कहा कि मेरा मानना है कि रेडियोलॉजिस्‍ट जो आज काम कर रहे हैं उनसे बेहतर वो काम कर पाएंगे जो रेडियोलॉजिस्‍ट एआई के साथ काम करेंगे.

बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो by
Published - Saturday, 24 February, 2024
Last Modified:
Saturday, 24 February, 2024
BW Healthcare

BW Healthcare के Heathcare Excellence Summit And Awards में आयोजित हुए एक पैनल डिस्‍कशन में इस क्षेत्र के कई नामी लोगों ने भाग लिया. एआई की भूमिका को लेकर जहां कुछ लोगों ने कहा कि इससे मेडिकल जगत में रेवोल्‍यूशन आने की उम्‍मीद है वहीं दूसरी ओर कुछ एक्‍सपर्ट प्रीवेंटिव और प्रीडिक्टिव केयर को लेकर अपनी बात कही. लेकिन सभी ने हेलथकेयर में एआई की भूमिका को अहम बताया. इस पैनल में जहां महाजन इमेजिंग के फाउंडर और सीईओ डॉ. हर्ष महाजन, फुजीफिल्‍म इंडिया के सीनियर वीपी चंद्रशेखर सिब्‍बल और  Agilas Diagnostic के CEO & MD आनंद के शामिल हुए. 

एआई रेडियोलॉजी से संभव है कई काम 
महाजन इमेजिंग के फाउंडर और सीईओ डॉ. हर्ष महाजन ने कहा कि आज दुनिया के सभी हिस्‍सों में दिखाई दे रहा है. अहम बात ये है कि रेडियोलॉजी तीन दशक पहले से डिजिटल हो गई थीउन्‍होंने कहा कि मैं आपको बताना चाहूंगा कि 2018 में लैंडसेट में भारत में सबसे पहले एआई को लेकर जो स्‍टडी सामने आई थी उसमें हमारे ग्रुप की बड़ी भूमिका थी.

डॉक्‍टर महाजन ने कहा कि मेरा मानना है कि रेडियोलॉजिस्‍ट जो आज काम कर रहे हैं उनसे बेहतर वो काम कर पाएंगे जो रेडियोलॉजिस्‍ट एआई के साथ काम करेंगे. उन्‍होंने कहा कि हाल ही में हॉवर्ड यूनिवर्सिटी की रिसर्च सामने आई थी जिसमें कहा गया था एआई चेस्‍ट एक्‍सरे की मिस्‍ड फाइडिंग का भी पता लगाने में सक्षम है. उस स्‍टडी को बड़े लेवल पर किया गया था. इससे सिर्फ फाइडिंग को ही बेहतर नहीं बनाया जा सकता है बल्कि प्रोडक्टिविटी को भी बढ़ाया जा सकता है.आज अगर हम एक दिन में 30 से 35 एमआरआई कर रहे हैं तो एआई के आने के बाद वो केवल एक असिस्‍टेंट की तरह ही काम करेगा. सिर्फ यही नहीं उम्‍मीद ये भी रहेगी कि कभी मेरे व्‍यस्‍त समय में मेरे काम को शेयर करेगा. 

मास स्‍क्रीनिंग से बदल रही है तस्‍वीर 
फुजीफिल्‍म इंडिया के सीनियर वीपी चंद्रशेखर सिब्‍बल ने कहा कि आज अगर किसी भी चीज की स्‍क्रीनिंग करनी है तो उसके लिए एआई एक अहम साधन बन रहा है. आज कई तरह की स्‍क्रीनिंग इसके जरिए हो रही है. आज इसके जरिए जो भी फाइडिंग हो रही है अब वो भले ही कैल्शियम लेवल की जांच हो, अब वो भले ही ब्रेस्‍ट इंवेस्टिगेशन हो, हम देश में मास स्‍क्रीनिंग कर रहे हैं.

हमारी वैन्‍स जा रही हैं और एक्‍सरे कर रहे हैं. देख रहे हैं कि उनमें किसी तरह का इनफेक्‍शन है या नहीं. भारत जैसे देश के लिए ये एक बहुत बड़ी चीज है. उन्‍होंने कहा कि मुझे लगता है कि एआई इस पूरे सेक्‍टर में रेवोल्‍यूशन लाने वाला है. बहुत सारे डेवलपमेंट हो रहे हैं, विशेषतौर पर स्‍क्रीनिंग के मामले में कई विकास हो रहे हैं. भारत जैसे देश में सबसे ज्‍यादा समस्‍या इस बात की है कि हमारे वहां कैंसर उस वक्‍त डिटेक्‍ट होता है जब वो तीसरे या चौथे स्‍टेज में होता है. जबकि जापान और यूएस जैसे देशों में एक रेग्‍यूलर स्‍क्रीनिंग का सिस्‍टम होता है. इसके कारण वो अर्ली स्‍टेज में डिटेक्‍ट हो जाता है और उसका इलाज शुरू हो जाता है. इससे उसका नंबर कम हो जाता है. 

प्रीवेंटिव और प्रीडिक्टिव टेस्टिंग दोनों अलग-अलग हैं
Agilas Diagnostic के CEO & MD Anand K ने कहा कि अगर हम प्रीवेंटिव टेस्‍टिंग की बात करें तो आज वो भारत की कुल पैथोलॉजी जांच का 20 प्रतिशत है. ये सालाना 14 से 15 प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ भी रही है. ये इंडस्‍ट्री का तेजी से बढ़ने वाला सेगमेंट है. अगर हम प्रीवेंटिव टेस्टिंग और प्रीडेक्टिव टेस्टिंग की बात करें तो दोनों में अंतर है. आज भारत में प्रीवेंटिंव टेस्टिग हो रही है.

प्रीवेंटिव टेस्टिंग वो होती है जो एक हेल्‍थी आदमी की होती है और किसी आदमी के अंदर बीमारी की जांच के लिए की जाती है. लेकिन जहां तक बात एआई जनरेटिव डिटेक्‍शन की बात है तो उसमें हम लोग बीमारी को लेकर एक अलग अप्रोच से काम करते हैं. हालांकि अभी ये बहुत दूर है. इसलिए जीनोमिक्‍स एक बड़ी भूमिका निभाता है. हाल ही में प्रीडिक्‍टिव एक्‍शन को लेकर अभी भी कई तरह की आशंकांए हैं. हाल ही में सामने आई एक स्‍टडी निकलकर सामने आई जिसमें बताया गया कि आखिर 8 में से एक आदमी पर जब इसकी जांच हुई लोगों की जब प्रीडिक्टिव जांच हुई तो पता चला कि उनमें कुछ परेशान है, इस तरीके से उनके इलाज को और आसानी से करने में काफी मदद मिली.