स्कैम करने के तरीकों में बढ़ोत्तरी हो रही है और स्कैम करने वाले ज्यादा स्मार्ट होते जा रहे हैं, ऐसे में खुदका बचाव करना जरूरी है.
हममें से कितनी ही बार कोई न कोई किसी न किसी तरह के ऑनलाइन फ्रॉड या फिर किसी अन्य तरह की धोखाधड़ी का शिकार जरूर हुआ है? हममें से लगभग सभी को किसी ऐसे व्यक्ति से ईमेल प्राप्त हुआ है, जो हमारी मेल लिस्ट में नहीं है और वह विरासत के रूप में प्राप्त हुई लूट को हमारे साथ बांटना चाहता है. प्रोफेशनल अमेरिकी कुश्ती के मैनेजर बॉबी हेनान कहते हैं कि "पैसा तो पैसा ही है, चाहे आप इसे कमाएं या फिर धोखाधड़ी से प्राप्त करें" अंतर बस यह है कि हम पैसे को कमाते हैं और वे (घोटाला करने वाले लोग) इसे धोखाधड़ी से प्राप्त करते हैं. स्कैम विभिन्न रंगो के होते हैं और ये नौकरी घोटाले, ई-कॉमर्स घोटाले, नकली दोस्तों को कॉल करने जैसे घोटालों से लेकर फिशिंग घोटाले, मालवेयर घोटाले, पोंजी घोटाले, इन्वेस्टमेंट घोटाले, संपत्ति घोटाले तक फैले हुए हैं और यह लिस्ट कभी खत्म नहीं होती है. स्कैम करना धोखाधड़ी ही माना जाता है. भारत के केंद्रीय बैंक, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के आंकड़ों से पता चलता है कि साल 2021-22 में 60,414 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी की रिपोर्ट दर्ज करवाई गई थी और “पिछले 7 सालों में सामूहिक रूप से बैंक फ्रॉड की वजह से हर दिन 100 करोड़ रुपयों का नुकसान हुआ है” , माइक्रोसॉफ्ट 2021 ग्लोबल टेक सपोर्ट स्कैम रिसर्च रिपोर्ट को देखने पर पता चलता है कि 69% उपभोक्ताओं ने 2021 में किसी न किसी तरह के ऑनलाइन फ्रॉड का अनुभव किया है.
कैसे होते हैं घोटाले?
आखिर घोटालेबाज क्या करते हैं? उनके पास कई तरकीबें होती हैं और अक्सर इनमें हेरफेर करना, गलत बयान देना या फिर धोखा देना शामिल होता है. व्यक्तिगत बातचीत, फोन पर कॉल, ईमेल, टेक्स्ट मैसेज और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म, ये सभी विभिन्न तरीके हैं जो घोटाले के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं. फिशिंग, पहचान की चोरी, नकली वेबसाइट, लोगों को व्यक्तिगत जानकारी प्रकट करने या पैसे भेजने के लिए बरगलाना एवं अन्य इंटरनेट-आधारित योजनाएं वे उपकरण हैं जिनका वे इस्तेमाल करते हैं. स्कैम करने वाले लोग ज्यादा रिटर्न का वादा करके नकली निवेश के अवसर प्रदान कर सकते हैं. लेकिन वास्तव में, वादे के अनुसार पैसा निवेश करने का उनका कोई इरादा नहीं होता है. कभी-कभी पीड़ितों को बताया जाता है कि उन्होंने कोई ईनाम या लॉटरी जीती है, लेकिन उन्हें अपनी जीत का दावा करने के लिए शुल्क या किसी तरह के टैक्स का भुगतान करना पड़ता है, जो मौजूद नहीं है. रोमांस की कोई उम्र नहीं होती और ऑनलाइन, रोमांटिक रिश्ते पीड़ितों को आर्थिक रूप से धोखा देने के इरादे से बनाए जाते हैं. एडवांस में फीस लेना धोखाधड़ी का वह तरीका है जहां स्कैम करने वाला व्यक्ति, पीड़ितों से ऋण, नौकरी के अवसर या दान तक पहुंचने के लिए एडवांस फीस का भुगतान करने के लिए कहता है. व्यक्ति का फीस का भुगतान तो कर देता है लेकिन उसे सेवा कभी मिल नहीं पाती है.
टेक्नोलॉजी की मदद से घोटाले
उन सभी लोगों के लिए जो टेक्नोलॉजी से अच्छी तरह परिचित नहीं हैं, टेक-सपोर्ट स्कैम हैं, जहां स्कीम करने वाला व्यक्ति टेक्निकल सपोर्ट प्रदान करने वाले एजेंट के रूप में पेश करते हैं और दावा करते हैं कि पीड़ितों का कंप्यूटर या सोफ्टवेयर मालवेयर से संक्रमित है और उनसे अनावश्यक सेवाओं या सोफ्टवेयर के लिए शुल्क लेते हैं. चैरिटी स्कैम में घोटालेबाज खुद को एक धर्मार्थ संगठन बताते हैं और फर्जी कारणों के लिए दान मांगते हैं या बताए गए उद्देश्य के लिए धन का उपयोग करने के बजाय उसे अपनी जेब में डाल लेते हैं. क्या हमने पोंजी स्कैम के बारे में नहीं सुना है, जहां नए निवेशकों के पैसे का इस्तेमाल पहले के निवेशकों को रिटर्न देने के लिए किया जाता है, जिससे एक लाभदायक व्यवसाय का भ्रम पैदा होता है? निष्कर्ष के रूप में यह कहा जा सकता है कि योजना ध्वस्त हो गई जैसा कि एक प्रमुख फाइनेंसर और NASDAQ के पूर्व अध्यक्ष बर्नार्ड मैडॉफ (Bernard Madoff) के मामले में हुआ था.
बर्नार्ड मैडऑफ-सबसे बड़ा पोंजी स्कैम
दिसंबर 2008 में बर्नार्ड मैडऑफ को इतिहास की सबसे बड़ी पोंजी स्कीम चलाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. कई दशकों तक, उन्होंने धनी ग्राहकों को उनके निवेश पर लगातार, उच्च रिटर्न का वादा करके आकर्षित किया. हालांकि वह वास्तव में बिना किसी वैध निवेश गतिविधि के, पुराने निवेशकों को रिटर्न का भुगतान करने के लिए नए निवेशकों से प्राप्त धन का उपयोग कर रहे थे. उनका घोटाला तब सामने आया, जब 2008 के वित्तीय संकट के कारण निकासी की रिक्वेस्ट की बाढ़ आ गई, लेकिन वह इन रिक्वेस्ट को पूरा नहीं कर सके. उनकी योजना ने अंततः निवेशकों को अनुमानित 65 बिलियन डॉलर्स का चूना लगाया था. इससे कई हाई-प्रोफाइल व्यक्ति और धर्मार्थ संगठन प्रभावित हुए, और इस मामले का वित्तीय उद्योग पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा. मैडॉफ को अंततः साल 2009 में 150 साल जेल की सजा सुनाई गई, और 2021 में जेल में उनकी मृत्यु हो गई. उनके कई पीड़ित भी न्याय के बिना मर गए होंगे.
स्कैम के अन्य तरीके
प्रॉपर्टी स्कैम ऐसा ही एक दूसरा तरीका है. अस्तित्वहीन संपत्तियों पर एक व्यक्ति के पूरे जीवन की बचत नष्ट हो जाती है. किराये के घोटाले भी होते हैं जहां घोटालेबाज खुद को मकान मालिक या किराये के एजेंट के रूप में प्रस्तुत करते हैं, ऐसी संपत्तियों का विज्ञापन करते हैं जो असल में हैं ही नहीं या जिनके पास किराए पर लेने या बेचने का अधिकार नहीं है. इसके अलावा नौकरी घोटाले भी हैं. नौकरी की तलाश कर रहे कई लोगों को घोटालेबाज, नौकरी के अवसर प्रदान करते हैं जिससे उन्हें नौकरी की प्लेसमेंट सेवाओं, प्रशिक्षण या सामग्री के लिए भुगतान करने की आवश्यकता होती है. दुर्भाग्य से, उन्हें इनमें से कुछ भी नहीं मिल पाता.
घोटाला हो जाए तो क्या करें?
अब सवाल उठता है कि अगर घोटाला हो जाए तो हमें क्या करना चाहिए? जो कुछ खो गया है उसमें से कुछ वापस पाने और दूसरों को पीड़ित बनने से रोकने के लिए उपयुक्त अधिकारियों या संगठनों को इसकी रिपोर्ट करनी चाहिए. इलाज से रोकथाम बेहतर है, यह कहावत बार-बार दोहराई जाती है. यदि डील इतना अच्छी है कि इस पर विश्वास नहीं किया जा सकता, तो हो सकता है कि यह एक स्कैम है. सामान्य स्कैम की रणनीति के बारे में जागरूक रहे. साइबर अपराधी स्वचालित सोफ्टवेयर का उपयोग करते हैं जो नंबरों की बड़ी चोरी की गई सूचियों की जांच करता है. फोन का उत्तर देने पर आपका फोन नंबर सक्रिय के रूप में टैग हो जाएगा और आपको स्कैम के अधिक कोशिशें प्राप्त हो सकती हैं. जिस नंबर से आपको स्कैम की कॉल आये उस नंबर को ब्लॉक कर दीजिए.
कभी न करें ये काम
मैसेजिंग प्लेटफॉर्म के माध्यम से साझा किए गए लिंक पर क्लिक न करें. इसके बजाय, ब्राउजर के माध्यम से साइट की जांच करें. एक प्रमाणित वेबसाइट और उसके सिक्योर सॉकेट लेयर (SSL) प्रमाणपत्र की जांच करें, जिसका अर्थ है कि URL "http" के बजाय "https" से शुरू होगा. एंटी-वायरस सोफ्टवेयर इंस्टॉल करें. कोई भी प्रमाणित ऐप डाउनलोड करें, जो आने वाले SMS मैसेज और कॉल्स को ज्ञात स्कैम नंबरों की सूची के विरुद्ध जांचता है और मिलान होने पर उन्हें फिल्टर करता है. कभी भी थर्ड-पार्टी या संदिग्ध साइटों से ऐप डाउनलोड न करें.
स्कैम करने पर मिलेगी इतनी सजा
ऑनलाइन सुरक्षा उपायों की प्रैक्टिस से घोटालों का शिकार होने से बचने में मदद मिल सकती है. क्या आप जानते हैं, IPC की धारा 420 के तहत अपराध के लिए अधिकतम सजा एक साल तक की अवधि के लिए कारावास है जिसे आर्थिक दंड के साथ या उसके बिना सात साल तक बढ़ाया जा सकता है. लेकिन फिर, पीड़ित को इससे क्या फर्क पड़ता है? व्यक्तिगत जानकारी या धन की अनचाही रिक्वेस्ट्स को विशेष रूप से अज्ञात स्रोतों से निपटते समय सतर्क और सावधान रहना सबसे महत्वपूर्ण है.
यह भी पढ़ें: अब DGCA ने दी पायलटों को इतने घंटे आराम देने की सलाह, इस घटना के बाद उठाया कदम
तमाम सरकारी प्रयासों के बावजूद डॉलर के मुकाबले रुपए की सेहत कमजोर होती जा रही है.
अमेरिकी डॉलर के मुकाबले हमारे रुपए (US Dollar Vs Indian Currency) की सेहत हमेशा से ही चर्चा का विषय रही है. पिछले कुछ दिनों से इसमें लगातार गिरावट आ रही है और इस गिरावट ने कई सवाल और आशंकाओं को जन्म दिया है. गुरुवार को रुपया अमेरिकी करेंसी के मुकाबले 83.34 पर बंद हुआ था. इसके बाद शुक्रवार को रुपया छह पैसे की गिरावट के साथ 83.40 प्रति डॉलर पहुंच गया. अब एक डॉलर की तुलना में हमारे रुपए की कीमत 83.31 हो गई है. रुपए का इस तरह लुढ़कना हम सबकी सेहत के लिए नुकसानदायक हो सकता है.
इस वजह से आई गिरावट
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इम्पोर्टर्स की डॉलर मांग बढ़ने और एशियाई करेंसियों में कमजोर रुख के चलते रुपए की विनिमय दर में गिरावट आई है. इसके अलावा, घरेलू शेयर बाजार में नरमी का असर भी हमारे रुपए की सेहत पर पड़ा है. रुपए के कमजोर होने का सबसे बड़ा असर आयात पर पड़ता है. जाहिर है, इससे दूसरे देशों से आयात किया जाने वाला सामान महंगा हो जाएगा. भारत अपनी तेल जरूरत का करीब 80 फीसदी तेल आयात करता है. ऐसे में रुपए के गिरने से कच्चे तेल के आयात का बिल बढ़ेगा. जब कच्चा तेल महंगा होता है, तो आप जानते ही हैं कि क्या होता है. हमारी तेल कंपनियां तुरंत इसका बोझ ग्राहकों पर डाल देती हैं. हालांकि, कच्चे तेल में नरमी का फायदा जनता को देना उन्हें नहीं आता. दूसरे शब्दों में कहें तो पेट्रोल-डीजल के दामों की आग फिर भड़क सकती है.
ये भी पढ़ें - कल बाजार में नहीं होगी Trading, किस वजह से बंद रहेगा Stock Market?
ऐसे होगा आप पर असर
भारत बड़ी संख्या में अन्य देशों से सामान आयात करता है. ऐसे में रुपए की कमजोरी से आयात महंगा हो जाएगा. क्रूड ऑयल, इलेक्ट्रॉनिक सामान सहित वे सभी वस्तुएं महंगी हो जाएंगी, जो बाहर से देश में आती हैं. कच्चा तेल महंगा होने से पेट्रोल-डीजल के दाम फिर बढ़ सकते हैं, ऐसे में खाने-पीने की चीज़ें और दूसरे ज़रूरी सामान महंगे हो जाएंगे. वैसे भी महंगाई का डीजल से सीधा कनेक्शन है. मतलब महंगाई से राहत मिलना तो दूर आने वाले दिनों में हालात और खराब हो सकते हैं. दूसरे शब्दों में कहें तो खर्चों को लेकर आपना गणित बिगड़ सकता है.
इस तरह गिरता गया रुपया
इसके अलावा, रुपया कमजोर होने से विदेशों में घूमना, पढ़ाई आदि के लिए भी जेब ज्यादा ढीली करनी होगी. अब जरा रुपए के गिरने की कहानी को आंकड़ों की जुबानी समझ लेते हैं. 29, मई 2014 को रुपया 58.93 था, इसके बाद 29, मई 2015 को 63.73, 30 मई, 2016 को 66.97, 30 मई, 2017, 64.66, 4 अक्टूबर, 2018 को 73.79, 10 मई, 2022 को 77.50, 10 जून, 2022 को 77.85 प्रति डॉलर और 24 नवंबर, 2023 को 83.40 प्रति डॉलर पर आ गया है.
निर्देशों में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि विदेशी बैंकों को इन निर्देशों के संदर्भ में ‘मानिए या स्पष्ट कीजिये’ दृष्टिकोण का पालन करना होगा
S. Ravi, The author is a practising chartered accountant and an independent director on many large public companies whose views and ideas have been instrumental in framing policy
विनियमित संस्थाओं (RE) द्वारा सूचना प्रौद्योगिकी गवर्नेंस, रिस्क, नियंत्रण और एश्योरेंस प्रैक्टिस पर नई एवं ज्यादा व्यापक मास्टर डायरेक्शन लागू की जाएंगी. ये नई डायरेक्शन क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के अलावा अनुसूचित कमर्शियल बैंकों, लघु वित्त बैंकों, भुगतान बैंकों के साथ-साथ टॉप, मिडल और उपरी सतहों पर मौजूद NBFC पर भी लागू की जायेंगी. 1 अप्रैल 2024 से देश भर में मौजूद वित्तीय संस्थान और क्रेडिट इन्फॉर्मेशन कंपनियां सर्कुलर के बजाय सूचना एवं प्रौद्योगिकी के नए नियमों के माध्यम से गवर्नेंस को ज्यादा सुविधाजनक बनाएंगे.
विदेशी बैंकों के लिए भी अच्छी खबर
अगर विदेशी बैंकों की बात करें तो, निर्देशों में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि विदेशी बैंकों को इन निर्देशों के संदर्भ में ‘मानिए या स्पष्ट कीजिये’ दृष्टिकोण का पालन करना होगा और उन्हें शाखा स्तर पर इस मास्टर में निर्दिष्ट बोर्ड या एग्जीक्यूटिव स्तर की समिति का गठन करने की आवश्यकता नहीं है. उन्हें इस मास्टर निर्देश के अनुपालन के लिए कार्यालय/मुख्य कार्यालय/क्षेत्रीय/क्षेत्रीय समितियों को नियंत्रित करने की छूट दी गई है. लेकिन केवल तब तक, जब तक निर्धारित समितियों के लिए उल्लिखित शासन दायित्वों एवं जिम्मेदारियों को पूरा किया जाता है. ग्राहकों के हितों की रक्षा के लिए मास्टर निर्देश में निदेशक मंडल, बोर्ड-स्तरीय समिति और इन विनियमित संस्थाओं के मैनेजमेंट की भूमिका को स्पष्ट रूप से रेखांकित किया गया है साथ ही यह IT गवर्नेंस से संबंधित जोखिमों, नियंत्रण और व्यवसायों की निरंतरता/आपदा रिकवरी प्रबंधन पर पहले से जारी दिशानिर्देशों, निर्देशों और सर्कुलर्स को इकट्ठा करने और उनमें बदलाव करने का काम भी करता है.
कानूनों और नियमों के अनुरूप होना चाहिए मास्टर डायरेक्शन
ये मास्टर निर्देश विनियमित संस्थाओं (RE) के लिए अपने संपूर्ण IT वातावरण (आपदा रिकवरी साइटों सहित) के परिचालन का लचीलापन सुनिश्चित करने के लिए अपनी सूचना प्रणाली और बुनियादी ढांचे के समर्थन हेतु के लिए एक मजबूत आईटी सेवा प्रबंधन ढांचा स्थापित करना अनिवार्य बनाता है. इसके अलावा यह डेटा माइग्रेशन के लिए एक व्यवस्थित प्रक्रिया निर्दिष्ट करने, डेटा इंटीग्रिटी, पूर्णता और स्थिरता सुनिश्चित करने वाली एक दस्तावेजी डेटा माइग्रेशन नीति की आवश्यकता पर भी जोर देता है. साइबर और आईटी धोखाधड़ी को ध्यान में रखते हुए RBI ने अपने मास्टर डायरेक्शन में आईटी अनुप्रयोगों के लिए आवश्यक ऑडिट और सिस्टम लॉगिंग क्षमता और ऑडिट ट्रेल्स प्रदान करने की क्षमता की आवश्यकता पर जोर दिया है. इसके अलावा, आईटी बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिए, RBI अपने निर्देश के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत मानकों को अपनाने की आवश्यकता पर जोर देता है, जिन्हें असुरक्षित नहीं माना जाता है और नियंत्रण लागू करने में शामिल कॉनफिगरेशन मौजूदा कानूनों और नियामक निर्देशों के अनुरूप होना चाहिए.
साइबर सुरक्षा भी होगी सुनिश्चित
हालांकि आईटी कार्य से संबंधित रणनीतियों और नीतियों का अनुमोदन बोर्ड के हाथों में है, लेकिन ये निर्देश CEO पर आईटी रणनीति की योजना और कार्यान्वयन पर प्रभावी निगरानी स्थापित करने के साथ-साथ साइबर सुरक्षा की स्थिति को सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी भी डालते हैं. विनियमित संस्थाएं मजबूत है और कुल मिलाकर, आईटी व्यवसाय संचालन में उत्पादकता, प्रभावशीलता और दक्षता में योगदान देती हैं. मास्टर निर्देश एक मुख्य सूचना सुरक्षा अधिकारी (CISO) को नामित करते हैं जो आईटी/साइबर सुरक्षा, अनुपालन और संबंधित नियामक दिशानिर्देशों को चलाने और विनियमित संस्थाओं की नीतियों को प्रशासित करने के लिए जिम्मेदार होगा. नियमों के अनुपालन के दृष्टिकोण से विनियमित संस्था को यह सुनिश्चित करना होगा कि मूल्यांकन किए गए जोखिम और भौतिकता के अनुपात में उचित विक्रेता जोखिम, मूल्यांकन प्रक्रिया और नियंत्रण स्थापित किए गए हैं. इसके अलावा, अनुप्रयोगों और सूचना प्रणालियों के बीच डेटा साझा करने को सक्षम बनाने के लिए एक एंटरप्राइज डेटा डिक्शनरी बनाए रखना भी विनियमित संस्थाओं की जिम्मेदारी होगी.
आवश्यक संरचना और प्रक्रियाएं
RBI ने इस मास्टर डायरेक्शन के माध्यम से, वित्तीय सेवाओं के क्षेत्र में IT के बुनियादी ढांचे की बढ़ती प्रासंगिकता को पहचानते हुए, प्रक्रियाओं, डेटा सुरक्षा और अखंडता, आपदा वसूली पर नजर रखने के लिए IT प्रणालियों और अनुप्रयोगों के अनिवार्य कार्यान्वयन और समीक्षा को विस्तृत किया गया है. ग्राहकों सहित विभिन्न हितधारकों के हितों की रक्षा के लिए प्रबंधन के साथ-साथ व्यवसाय की निरंतरता भी है. यह निर्देश आईटी रणनीतिक योजना, सेवा स्तर प्रबंधन (SLM), उत्पाद अनुमोदन और गुणवत्ता आश्वासन प्रक्रिया (नए आईटी-आधारित व्यावसायिक उत्पादों के लिए) जैसी कई प्रक्रियाओं और प्रक्रियाओं को अपनाने को अनिवार्य करता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि बैंकिंग क्षेत्र सुरक्षित उत्पाद और सेवाएं प्रदान करता है. अपने ग्राहकों को डिजिटलीकरण और बढ़ते खतरों के इस युग में, मास्टर डायरेक्शन बैंकिंग प्रणालियों को सुरक्षित बनाने के लिए आवश्यक संरचना और प्रक्रियाएं प्रदान करता है.
यह भी पढ़ें: आप Israel-Hamas War के पीछे मौजूद सीक्रेट पाइपलाइन के बारे में जानते हैं?
Israel-Hamas War को लेकर मीडिया द्वारा सुनाई गई कहानी को तो लोगों ने मान लिया है पर क्या आपको युद्ध की हकीकत पता है?
Levina Neythiri, रणनीतिक मामलों की एक्सपर्ट एवं रक्षा विशेषज्ञ
हमास के आतंकवादियों ने कैसे इजराइल-गाजा (Israel-Gaza) सीमा पर मौजूद नेगेव रेगिस्तान में एक रेव पार्टी पर हमला किया और सैकड़ों निर्दोष लोगों को मारकर, कई लोगों को बंधक बना लिया, ये कहानी तो सभी लोगों को पता है. लेकिन क्या आप इजराइल-हमास युद्ध (Israel Hamas War) के पीछे मौजूद प्रमुख कारण को जानते हैं? गाजा पट्टी के करीब मौजूद नेगेव रेगिस्तान के विशाल विस्तार से होकर एक गुप्त तेल पाइपलाइन गुजरती है, जो न केवल इजराइल राज्य के लिए एक जीवन रेखा है, बल्कि सुएज नहर (Suez Canal) की संभावित प्रतिद्वंद्वी भी है. सुएज नहर यूरोप और एशिया के बीच मौजूद केवल दो ट्रांजिट पॉइंट्स में से एक है और एशिया से हर दिन अरबों डॉलर मूल्य का कच्चा तेल ले जाने वाली शिपिंग लाइनें भी इसी नहर से होकर जाती हैं. 158 मील लंबी ये पाइपलाइन, लाल सागर पर मौजूद इजरायली तट को देश की तेल रिफाइनरियों से जोड़ती है. आमतौर पर, कुछ ऐसा जो इजरायली अर्थव्यवस्था को मजबूत कर सकता है, वह हमास और हौथिस जैसे आतंकवादी समूहों के लिए एक कैंसरग्रस्त घाव की तरह है, जो अब इजरायल में पाइपलाइन को बंद कर पाने वाले बिंदुओं को अपना लक्ष्य बना रहे हैं.
कौन करता है इस पाइपलाइन की देखरेख?
इस पाइपलाइन को इजराइल की सरकारी कंपनी इलियट एशकेलोन पाइपलाइन कंपनी (EAPC) के द्वारा नियंत्रित किया जाता है. कुछ सालों पहले तक यह इजरायल का सबसे बड़ा राष्ट्रीय रहस्य था लेकिन एक घातक तेल रिसाव की बदौलत इसका खुलासा हो गया. फिर भी पूरी संभावना है कि भविष्य में EAPC दुनिया की अग्रणी तेल परिवहन प्रणाली बन जाएगी. ये इजराइल को सिर्फ तेल की आपूर्ति नहीं करती है, बल्कि मध्य पूर्व से यूरोप और एशिया के अधिकांश हिस्सों में अरबों बैरल तेल को सुरक्षित रूप से ले जाने में भी इसकी भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण है. सऊदी के सबसे बड़े अंग्रेजी अखबार, द अरब न्यूज ने जून 2021 की एक समाचार रिपोर्ट ने सुझाव दिया कि UAE (संयुक्त अरब अमीरात) ने अक्टूबर 2020 में इजरायल की सरकारी कंपनी के साथ एक समझौता करने के बाद इजरायली पाइपलाइन के माध्यम से यूरोप में तेल पहुंचाना शुरू कर दिया है. इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया था कि 2021 में अमीराती जहाजों द्वारा देश के दक्षिणी हिस्से में इलियट बंदरगाह (वर्तमान में हमास के भारी हमलों का सामना कर रहे क्षेत्र) पर तेल ले जाना शुरू कर दिया था. इसके बाद इजरायली सार्वजनिक प्रसारक ने इलियट-एशकेलोन पाइपलाइन से जुड़े तेल टैंकरों की तस्वीरें भी दिखाई थीं, जिनमें पाइपलाइन के द्वारा तेल की आपूर्ति हो रही थी. सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) ने इस महीने इस्लामिक-अरब शिखर सम्मेलन में टेल-अवीव के साथ सभी राजनयिक और आर्थिक संबंधों को खत्म करने और अरब हवाई क्षेत्र में इजराइल के विमानों को प्रवेश देने से इनकार करने के प्रस्ताव को रोक दिया था. इस प्रस्ताव में यह भी कहा गया था कि तेल का उत्पादन करने वाले मध्य पूर्वी देशों को गाजा में युद्धविराम की स्थिति प्राप्त करने के लिए "साधन के रूप में तेल का उपयोग करने की धमकी देनी चाहिए".
हमास का हमला- पागलपन में इस्तेमाल किया गया तरीका
यूरोप जाने वाले ईरानी जहाज, लाल सागर के किनारे इजराइल के सबसे दक्षिणी सिरे पर स्थित इलियट बंदरगाह तक तेल पहुंचाएंगे. वहां से तेल को उत्तरी गाजा के सिरे से लगभग 5 किलोमीटर उत्तर में भूमध्यसागरीय तट पर स्थित एक शहर अश्कलोन तक पहुंचाया जाता था. पाइपलाइन का मार्ग सिनाई द्वीप से होकर गुजरता है, जो 200 किलोमीटर चौड़ा है, जो इसे प्रभावी रूप से मिस्र की सुएज नहर से अलग करता है. हालांकि 1979 में ईरानी क्रांति के साथ यह कोलैबरेशन समाप्त हो गया, जिसने इजराइल और ईरान के बीच गतिशीलता को काफी हद तक बदलकर रख दिया था. क्रांति के बाद, ईरान और इजराइल कट्टर विरोधी बन गए. फिर भी, क्रांति के बाद कुछ समय के लिए, इजराइल ने विवेकपूर्वक ईरानी तेल को पाइपलाइन के माध्यम से प्रवाहित करने की अनुमति दी.
EAPC ने खींचा लोगों का ध्यान
2014 में जब पाइपलाइन के टूटने से इजराइल में सबसे खराब पर्यावरणीय संकट पैदा हुआ तब EAPC कुछ समय के लिए कुछ लोगों का ध्यान खींचने में कामयाब रही थी. संयुक्त अरब अमीरात, इजराइल और बहरीन से जुड़े अब्राहम समझौते पर हस्ताक्षर होने तक EAPC पाइपलाइन फिर से अस्पष्टता में बदल गई थी. इसके बाद, EAPC तेल पाइपलाइन के संबंध में इजराइल और यूएई के बीच चर्चा हुई, जो लाल सागर को भूमध्य सागर से जोड़ती है. इजरायली अधिकारियों ने विशेष रूप से इस पाइपलाइन के संचालन के संबंध में उच्च स्तर की गोपनीयता बनाए रखी. इन ट्रेड कॉरिडोर्स का महत्व आर्थिक जीवन शक्ति से कहीं अधिक है. वे अक्सर भविष्य के संघर्षों और कभी-कभी युद्ध की धुरी के रूप में काम करते हैं. ऐतिहासिक उदाहरण के तौर पर आप ये समझिये कि जैसे सोवियत-अफगान संघर्ष, अजरबैजान और आर्मेनिया के बीच लंबे समय से चली आ रही प्रतिद्वंद्विता और रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे तनाव, और इजराइल-हमास युद्ध (Israel Hamas War), सभी असाधारण महत्व वाले इन ट्रेड कॉरिडोर्स में घटित हुए. इनमें से अधिकांश कॉरिडोर्स, दुनिया भर में मौजूद 7 चोक पॉइंट्स को पार करते हैं. युद्ध और संघर्षों को समझने के लिए केवल मतभेद वाले पक्षों की सतही स्तर की धारणा से परे जाने की आवश्यकता है. सैन्य रणनीतिक बनाने वालों और भू-राजनीतिक विश्लेषकों की नजर में यह भूगोल और उनमें मौजूद व्यापारिक हितों का मिश्रण है जो अक्सर युद्ध को बढ़ावा देता है. अंतर्राष्ट्रीय साजिशों और भू-राजनीति की दुनिया ऐसी कहानियों से भरी पड़ी है जो अक्सर सतह के नीचे छिपी रहती हैं और सामने आने का इंतजार करती हैं. इस हमले के पीछे की रणनीति क्या है और बेखौफ आतंकी किसके हाथ में खेल रहे हैं? ईरान, कतर, रूस और चीन, इजरायल की तेल पाइपलाइन और उसकी इलियट परियोजना को नष्ट होते देख सबसे ज्यादा खुश होंगे, क्योंकि इसके अस्तित्व से ही इन देशों को मुख्य रूप से क्षेत्रीय कॉरिडोर्स पर नियंत्रण स्थापित करने के युद्ध का खतरा है.
EAPC कैसे बदल सकती है तेल परिवहन का परिदृश्य?
EAPC की प्रतिदिन क्षमता 600,000 बैरल जितनी प्रभावशाली है और इसके साथ ही एक विशाल भंडारण स्थान भी है जो लगभग 23 मिलियन बैरल को इकट्ठा करने में सक्षम है. अब आप इसकी तुलना इसके पड़ोसी सुएज नहर से करें. खाड़ी से यूरोप तक पहुंचाए जाने वाले तेल का एक महत्वपूर्ण हिस्सा या तो सुएज नहर या मिस्र की सुमेद पाइपलाइन के माध्यम से गुजरता है, जिसकी क्षमता 2.5 मिलियन बैरल प्रतिदिन है. सम्मिलित पाइपलाइन की क्षमता EAPC की व्यापक क्षमताओं का लगभग 1/10वां हिस्सा है. EAPC की बहुत सी असाधारण विशेषताओं में से एक VLCC (Very Large Crude Corridor) नामक विशाल सुपरटैंकरों को संभालने की क्षमता में निहित है, जो 2 मिलियन बैरल तक पेट्रोलियम परिवहन करने में सक्षम हैं. इसके उलट 150 साल पहले बनाई गई सुएज नहर (Suez Canal) अपनी गहराई और चौड़ाई से जुड़ी सीमाओं से जूझ रही है, जो इसे वीएलसीसी की केवल आधी क्षमता के साथ सुएजमैक्स के रूप में पहचाने जाने वाले जहाजों को समायोजित करने तक सीमित है. परिणामस्वरूप सुएज नहर से परंपरागत रूप से दो जहाजों को किराए पर लेने वाले तेल व्यापारियों को इजराइल के माध्यम से भेजे जाने वाले एक वीएलसीसी जहाज के लिए भुगतान करना पड़ता है. सुएज के माध्यम से एकतरफा शुल्क अनुमानित $300,000 से $400,000 तक बढ़ने के साथ-साथ EAPC पाइपलाइन अपने ग्राहकों को लागत पर पर्याप्त लाभ प्रदान कर सकती है. कुछ समय पहले तक उत्तरी इजराइल में मौजूद एशकेलोन में में डॉकिंग करने वाले जहाजों को GCC बंदरगाहों तक पहुंचने से रोक दिया गया था, जिससे EAPC की ग्राहक शिपिंग कंपनियों को अपनी पहचान छिपाने के लिए कई पंजीकरण और अन्य युक्तियों सहित विस्तृत रणनीति अपनाने के लिए प्रेरित किया गया था. यही एक कारण है कि इजराइल ने कभी भी EAPC के बारे में बहुत अधिक जानकारी साझा नहीं की, जिससे उसके ग्राहकों को नुकसान होता.
इजराइल ने मुआवजा देने से किया इनकार
EAPC के आसपास गोपनीयता के इस जटिल जाल को एक और वजह से जिम्मेदार ठहराया जा सकता है. इजराइल अपने मुनाफे को ईरान के साथ साझा करता है. 2015 में, एक स्विस अदालत ने फैसला सुनाया कि इजराइल EAPC पाइपलाइन से होने वाले मुनाफे के हिस्से के रूप में ईरान को लगभग 1.1 बिलियन डॉलर का भुगतान करने के लिए बाध्य था. हालांकि, इजराइल ने इस मुआवजे के फैसले का पालन करने से इनकार कर दिया. इजराइल के प्रतिरोध का कारण समझना मुश्किल नहीं है. मौजूदा ईरानी शासन ने इजराइल के साथ सहयोग करने से इनकार कर दिया है जिससे निकट भविष्य में शांति और लाभ के बंटवारे की उम्मीद नहीं की जा सकती है.
क्षेत्रीय नियंत्रण की लड़ाई
वैश्विक भू-राजनीति के जटिल जाल में सात महत्वपूर्ण समुद्री चोक पॉइंट मौजूद हैं जो दुनिया के रणनीतिक परिदृश्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. ये चोक पॉइंट, अक्सर संकीर्ण मार्ग, बड़े क्षेत्रों के बीच महत्वपूर्ण कनेक्टर के रूप में काम करते हैं और इन्हें आमतौर पर जलडमरूमध्य या नहर के रूप में जाना जाता है, जिसके माध्यम से बड़ी मात्रा में समुद्री यातायात प्रभावित होता है. ध्यान देने योग्य बात ये है कि इनमें से तीन महत्वपूर्ण चोक पॉइंट मध्य पूर्व में स्थित हैं, जो इस क्षेत्र की बारहमासी चुनौतियों में जटिलता की एक अतिरिक्त परत जोड़ते हैं. इससे साफ हो जाता है कि मध्य-पूर्व (Middle East) में लगातार उथल-पुथल क्यों देखी जाती है. मध्य-पूर्व की जटिल भू-राजनीतिक गतिशीलता तब स्पष्ट हो जाती है जब कोई इसके भौगोलिक परिदृश्य पर करीब से नजर डालता है. मध्य पूर्व में चोक पॉइंट की तिकड़ी, अर्थात् सुएज नहर, बाब अल मंडेब और होर्मज संकरी राह मौजूद है. ये सभी चोक पॉइंट अंतर्राष्ट्रीय आपूर्ति श्रृंखला और माल के समुद्री परिवहन में लिंचपिन के रूप में काम करते हैं. इनमें से दो चोक पॉइंट इजराइल के ठीक बगल में हैं और एक थोड़ा दूर UAE के पास मौजूद है. उल्लेखनीय रूप से, तकनीकी प्रगति वाले इस युग में भी लगभग 80% वैश्विक व्यापार समुद्री शिपिंग मार्गों पर ही निर्भर है. यह तथ्य ऊपर सूचीबद्ध चोक बिंदुओं के महत्व को दर्शाता है. 2020 में सुएज नहर में व्यवधान के बावजूद, मिस्र के सुएज नहर आर्थिक क्षेत्र ने अक्टूबर में चाइना एनर्जी के साथ 6.75 बिलियन डॉलर का एक समझौता पूरा किया था. इसके साथ ही कतर ने मिस्र की अर्थव्यवस्था में 5 अरब डॉलर के बड़े निवेश का वादा किया है. यहाँ ध्यान देने वाली बात ये है कि मिस्र ने अपने हालिया इतिहास में शायद ही कभी इतना बड़ा विदेशी निवेश देखा है. सुएज नहर के संचालन में किसी भी प्रकार की अप्रत्याशित जटिलताओं या असफलताओं की स्थिति में चीन और कतर को बिना किसी संदेह के नतीजों का खामियाजा भुगतना पड़ेगा. सुएज नहर में कारोबार का नुकसान इन दोनों देशों को नुकसान पहुंचाएगा. हाल के दशकों में, मिस्र और इजराइल ने उल्लेखनीय स्तर का सहयोग विकसित किया है और इनकी बदौलत क्षेत्र की भू-राजनीति पर महत्वपूर्ण परिणाम हुए हैं. ईस्टर्न मेडिटेरेनियन पाइपलाइन कंपनी (EAPC) की परिचालन क्षमता में सक्रियता इस साझेदारी को खतरे में डाल देगी. यह प्रयास विवाद से रहित नहीं है, क्योंकि यह सुएज नहर के माध्यम से किए जाने वाले मिस्र के आकर्षक व्यापार का लगभग 10-12% हिस्सा छीनने के लिए तैयार है. संभावित प्रभाव मिस्र की सीमाओं से परे तक फैलते हैं, जिससे चीन और कतर सहित तीसरे पक्ष के हितधारकों के लिए चिंताएं बढ़ जाती हैं.
इजराइल के लिए नाजुक है स्थिति
अपने पड़ोसी देश इजिप्ट के साथ नाजुक राजनयिक संबंध का त्याग किए बिना इजराइल को इस चुनौती से निपटने की जरूरत है जिसकी वजह से यह स्थिति और ज्यादा जटिल हो गई है. यह इजराइल की ओर से एक संतुलन अधिनियम की मांग करता है, क्योंकि इजराइल क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखने के साथ-साथ अपनी ऊर्जा को भी सुरक्षित करना चाहता है. EAPC के पास अजरबैजान और कजाकिस्तान जैसे उत्पादकों द्वारा भेजे गए जहाजों से अश्कलोन में उतारे गए तेल को अकाबा की खाड़ी में तैनात टैंकरों तक पहुंचाने की जबरदस्त क्षमता मौजूद है. ये टैंकर चीन, दक्षिण कोरिया और एशिया के विभिन्न अन्य क्षेत्रों सहित दूरगामी गंतव्यों के लिए नियत हैं. इस गतिशीलता का महत्व न केवल ऊर्जा व्यापार में बल्कि इसके भू-राजनीतिक निहितार्थों में भी निहित है. अजरबैजान, इजराइल के साथ अपने बहुमुखी संबंधों के कारण खड़ा है, जिसमें व्यापार और सैन्य सहयोग दोनों ही शामिल हैं. यह बंधन रणनीतिक रूप से लाभकारी होते हुए भी, क्षेत्र में भू-राजनीतिक परिदृश्य को जटिल बनाता है. इसके विपरीत, अजरबैजान के ऐतिहासिक प्रतिद्वंद्वी, आर्मेनिया को ईरान का समर्थन प्राप्त है, जो मुख्य रूप से उनके लंबे समय से चले आ रहे संबंधों और व्यापार संबंधों की वजह से उपजा है. आर्मेनिया और अजरबैजान दोनों अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन कॉरिडोर (INSTC) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जो रूस को अजरबैजान के माध्यम से ईरान से जोड़ता है और यह भारत तक फैला हुआ है, जिससे एशिया के अन्य हिस्सों में माल के परिवहन की सुविधा मिलती है. यहां इस बात को ध्यान में रखना जरूरी है कि रूस दुनिया में सबसे अधिक स्वीकृत देश है और ईरान, प्रतिबंधों के मुकाबले थोड़ा बेहतर प्रदर्शन करता है, जिससे INSTC का संरक्षण उनके लिए सर्वोपरि हो जाता है. इन जटिल भू-राजनीतिक हालातों की पृष्ठभूमि में हम भारत-मध्य पूर्व-यूरोप कॉरिडोर (IMEU) के उद्भव को देखते हैं. यह गलियारा भारत, मध्य पूर्व और यूरोप के बीच व्यापार और कनेक्टिविटी को बढ़ावा देता है. इस समीकरण में मध्य पूर्व खंड काफी हद तक इजराइल, संयुक्त अरब अमीरात (UAE) और सऊदी अरब जैसे प्रमुख खिलाड़ियों तक ही सीमित है. IMEC, INSTC का रणनीतिक प्रतिद्वंद्वी बनने की ओर आगे बढ़ रहा है, जिससे क्षेत्रीय तनाव और ज्यादा बढ़ जाएगा. यह भू-राजनीतिक शतरंज की बिसात हमें ध्यान दिलाती है कि कैसे अजरबैजान और आर्मेनिया जैसे संघर्ष पूरे महाद्वीपों में गूंजते हैं, और इजराइल-हमास युद्ध से जुड़े हुए हैं. मध्य पूर्व में चल रहा इजराइल-हमास संघर्ष, क्षेत्रीय तनाव और वैश्विक भू-राजनीति के बीच जटिल अंतर्संबंध का प्रतीक है जहां हर कदम के परिणाम अंतरराष्ट्रीय संबंधों के जटिल ताने-बाने में फैल जाते हैं.
निष्कर्ष में क्या कहा जा सकता है?
वर्तमान परिदृश्य में, इलियट और एशकेलॉन पाइपलाइन को बाधित करने की ईरान की क्षमता पर खतरा मंडरा रहा है. यदि ईरान इलियट और एशकेलॉन पाइपलाइन को नुकसान पहुंचाने में कामयाब हो जाता है, तो वह EAPC के माध्यम से अपने व्यापार के नुकसान का बदला ले पायेगा जिससे इजराइल, संयुक्त अरब अमीरात (UAE) और सऊदी अरब सहित प्रमुख खिलाड़ियों के सामने चुनौतियां बढ़ जाएंगी. इसके साथ ही, इजराइल-हमास संघर्ष संयुक्त राज्य अमेरिका को कमजोर करने में कामयाब रहा है. अमेरिका की नौसैनिक संपत्ति, सेंटकॉम (सेंट्रल कमांड) क्षेत्र में महत्वपूर्ण एकाग्रता के साथ मध्य पूर्व को कवर करती है. यह रणनीतिक पुनर्गठन, संयुक्त राज्य अमेरिका को अन्य वैश्विक चिंताओं, विशेष रूप से यूक्रेन, पर इजराइल के लिए अपने समर्थन को प्राथमिकता देने के लिए मजबूर करता है. फोकस में यह बदलाव रूस के हितों के अनुरूप है, जिससे उसे स्थिति का लाभ उठाने की अनुमति मिलती है. अराजकता की इस स्थिति में कतर और चीन नामक दो अपेक्षाकृत शांत लेकिन प्रभावशाली देश भी हैं, जो महत्वपूर्ण नतीजों के लिए तैयार हैं. यदि EAPC अपनी अधिकतम परिचालन क्षमता प्राप्त कर लेता है तो सुएज नहर में उनके पर्याप्त निवेश पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. इस व्यवधान के आर्थिक प्रभाव कई उद्योगों पर पड़ सकते हैं और मौजूदा भू-राजनीतिक गतिशीलता को और तेज कर सकते हैं. मीडिया के आख्यानों द्वारा इजराइल-हमास युद्ध को एक सभ्यतागत संघर्ष में बदल दिया गया है, लेकिन क्या ऐसा है? यह व्यावसायिक हित हैं जिन्हें प्रत्येक खिलाड़ी सुरक्षित रखने का प्रयास कर रहा है. यह युद्ध कॉरिडोर्स का युद्ध है.
यह भी पढ़ें: कौन हैं वो 'अपने', जिन्होंने Sam Altman को उनकी ही कंपनी से कर दिया बाहर?
सहारा ग्रुप की 4 कोऑपरेटिव सोसाइटी में लाखों निवेशकों ने पैसा लगाया था, जिसके मिलने आस कुछ समय पहले ही जगी है.
सहारा समूह (Sahara Group) के प्रमुख सुब्रत रॉय (Subrata Roy) के निधन के बाद यह सवाल खड़ा हो गया है कि क्या सहारा के लाखों निवेशकों को उनका पैसा वापस मिलेगा? सुब्रत रॉय का मंगलवार की रात मुंबई के एक अस्पताल में निधन हो गया. वह पिछले काफी समय से बीमार चल रहे थे. लाखों निवेशकों ने सहारा समूह की चार कंपनियों में अपनी गाढ़ी कमाई जमा कराई थी. सालों के इंतजार के बाद अब उन्हें अपना पैसा वापस मिलने की उम्मीद जगी थी. ऐसे में सुब्रत रॉय का दुनिया से जाना, उनके मन में कई सवालों को जन्म दे रहा है. जिसमें से सबसे बड़ा तो यही है कि कहीं उनका पैसा डूब तो नहीं जाएगा?
प्रभावित नहीं होगी प्रक्रिया
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें, तो सुब्रत रॉय सहारा के निधन से रिफंड की प्रक्रिय प्रभावित नहीं होगी. केंद्र सरकार ने हाल ही में सहारा के निवेशकों को उनका अटका पैसा वापस दिलाने के लिए एक पोर्टल लॉन्च किया था, जिसकी मदद से निवेशकों को उनकी निवेश राशि वापस लौटाई जा रही है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि सहाराश्री की मौत से इस रिफंड प्रक्रिया पर कोई असर नहीं पड़ेगा. यानी निवेशकों को बिल्कुल भी घबराने की जरूरत नहीं है.
ये भी पढ़ें - नहीं रहे Subrata Roy: एक चाहत ने सबकुछ दिलाया, दूसरी में सबकुछ गंवा दिया
ऐसे मिल रहा है पैसा
सुप्रीम कोर्ट ने 2012 में सहारा निवेशकों को राहत देते हुए उनके पैसे ब्याज सहित वापस करने का आदेश दिया था. सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के लाभ करीब 3 करोड़ निवेशकों को मिलेगा. अदालत के आदेश के बाद केंद्र सरकार ने कुछ वक्त पहले सहारा रिफंड पोर्टल https://mocrefund.crcs.gov.in/ लॉन्च किया था. इस पोर्टल के जरिए सहारा के निवेशकों को उनका पैसा लौटाया जा रहा है.
इस तरह करें आवेदन
सहारा ग्रुप की 4 कोऑपरेटिव सोसाइटी में लाखों निवेशकों का पैसा अटका है. यदि आप भी इन निवेशकों में शामिल हैं, तो 'सहारा रिफंड पोर्टल' के जरिए रिफंड के लिए आवेदन कर सकते हैं. रिफंड के लिए निवेशकों को केवल ऑनलाइन ही क्लेम करना होगा. इसके लिए जरूरी कागजात और रसीद अपलोड करनी होगी. वैरिफिकेशन के बाद निवेशकों को उनका पैसा मिल जाएगा. सरकार निवेशकों को किश्तों में पैसा वापस कर रही है. यदि निवेशक को किसी भी प्रकार की कोई परेशानी आती है, तो इसके लिए टोल फ्री नंबरों (1800 103 6891 / 1800 103 6893) पर संपर्क किया जा सकता है.
महादेव ऐप को लेकर भाजपा और कांग्रेस में जुबानी जंग चल रही है. दोनोज एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं.
'महादेव बेटिंग ऐप' (Mahadev Betting App) को लेकर इस समय घमासान मचा हुआ है. ये ऐप सियासी जंग का हथियार भी बन गया है, जिसका छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव (Chhattisgarh Assembly Election 2023) से पहले भाजपा और कांग्रेस जमकर इस्तेमाल कर रहे हैं. इस बीच, केंद्र सरकार ने इस महादेव ऐप सहित 22 अवैध एप्लीकेशन और वेबसाइट्स पर बैन लगा दिया है. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि आखिर Mahadev App क्या है और इसे चलाने वाले कौन हैं?
कौन है इस खेल का मास्टरमाइंड?
महादेव बेटिंग ऐप ऑनलाइन सट्टेबाजी के लिए तैयार की गई एक एप्लीकेशन है, जिस पर यूजर्स कार्ड, पोकर आदि गेम खेलते थे. आरोप है कि इसकी मदद से लोग क्रिकेट, बैडमिंटन, फुटबॉल जैसे खेलों के अलावा चुनाव पर भी सट्टेबाजी करते थे. ED यानी प्रवर्तन निदेशालय ने अपनी जांच में पाया है कि ऐप से जुड़े सबसे ज्यादा खाते छत्तीसगढ़ में खुले हैं. इसके बाद से BJP और Congress में इसे लेकर जुबानी जंग छिड़ गई है. कुछ समय पहले ED ने महादेव ऐप से जुड़े 39 ठिकानों पर छापेमारी कर 417 करोड़ रुपए के शेयर और दूसरे एसेट्स बरामद किए थे. इस ऐप को सौरभ चंद्राकार (Saurabh Chandrakar) अपने साथियों के साथ मिलकर चलाता था.
आख़िरकार केंद्र सरकार को होश आया और उसने ‘महादेव ऐप’ पर बैन लगाने का फ़ैसला किया.
— Bhupesh Baghel (@bhupeshbaghel) November 5, 2023
मैं कई महीनों से सवाल पूछ रहा हूं कि सट्टा खिलाने वाले इस ऐप पर केंद्र सरकार बंद क्यों नहीं रही है. मैंने तो यहां तक कहा था कि शायद 28 प्रतिशत जीएसटी के लालच में प्रतिबंध नहीं लग रहा है या फिर…
गिरफ्तार क्यों नहीं हुआ चंद्राकार?
सौरभ चंद्राकार और उसका पार्टनर रवि उप्पल फिलहाल दुबई में हैं, इसलिए उन्हें गिरफ्तार नहीं किया जा सका है. दोनों दुबई से ही सट्टेबाजी संचालित कर रहे थे. कुछ वक्त पहले सौरभ चंद्राकार का नाम एकदम से सुर्खियों में आ गया था, वजह Mahadev App नहीं बल्कि उसकी शाही शादी थी. शाही इसलिए क्योंकि इस शादी में पानी की तरह पैसा बहाया गया था. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, सौरभ चंद्राकार ने अपनी शादी पर 200 करोड़ रुपए खर्च किए थे और वो भी कैश में. जबकि स्टील किंग लक्ष्मी मित्तल (Lakshmi Mittal) ने अपनी बेटी की 240 करोड़ रुपए खर्च किए थे, यानी सौरभ ने खर्चे के मामले में स्टील किंग की बराबरी कर डाली थी.
प्राइवेट जेट का हुआ था इस्तेमाल
ED की जांच में यह सामने आया है कि महादेव बेटिंग ऐप ने प्रमोटर सौरभ चंद्राकार ने दुबई में धूमधाम से शादी रचाई थी. इस शादी पर उसने करीब 200 करोड़ रुपए खर्च किए थे. नागपुर से अपने रिश्तेदारों और सिलेब्रिटीज दुबई लाने के लिए उसने प्राइवेट जेट का इंतजाम किया था. सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात ये है कि शादी का अधिकांश खर्चा उसने कैश में किया. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि सौरभ के पास कितनी दौलत होगी.
मूल रूप से छत्तीसगढ़ के भिलाई का रहने वाले सौरभ ने दुबई को अपना ठिकाना बनाया है. वहीं से वो ऑनलाइन सट्टे का गिरोह चलाता रहा है. उसने सट्टेबाजी से हुई कमाई का एक बड़ा हिस्सा भारतीय शेयर बाजार में निवेश कर रखा है. .
हवाला के जरिए कैश में पेमेंट
सौरभ चंद्राकर की शादी इसी साल UAE के छठे सबसे बड़े शहर आरएके में हुई थी. उसने अपनी शादी के लिए वेडिंग प्लानर को 120 करोड़ रुपए का भुगतान किया था. सौरभ ने नागपुर से अपने रिश्तेदारों दुबई लाने के लिए प्राइवेट जेट भेजे थे. बताया तो यह भी जा रहा है कि शादी में परफॉर्म करने के लिए बॉलीवुड की सिलेब्रिटीज को भी बुलाया गया था और इसके लिए सारा भुगतान हवाला के जरिए कैश में किया गया. ED के मुताबिक, डिजिटल सबूतों से पता चला है कि हवाला के जरिए 112 करोड़ रुपए योगेश बापट की इवेंट मैनेजमेंट कंपनी आर-1 इवेंट्स प्राइवेट लिमिटेड को दिए गए. इसी तरह होटल बुकिंग के लिए 42 करोड़ रुपए का पेमेंट यूएई की करेंसी में किया गया था.
जहां सरकार द्वारा प्रदूषण को कम करने के लिए उठाये गए कदम जरूरी हैं, वहीं इन फैसलों के परिणामों को जान लेना भी जरूरी है.
दिल्ली में हवा की क्वालिटी (Delhi AQI) बेहद खराब होती जा रही है और दिन प्रतिदिन प्रदूषण का स्तर बढ़ता ही जा रहा है. शहर के कुछ हिस्सों में तो AQI 436 अंकों तक पहुंच गया है और हवा में मौजूद PM 2.5 कणों की संख्या 390 अंकों तक जा पहुंची है. जहां एक तरफ इतनी जहरीली हवा की वजह से स्वास्थ्य से संबंधित बहुत सी समस्याएं हो सकती हैं वहीँ, दूसरी तरफ प्रदूषण पर रोकथाम की कोशिश के लिए सरकार लगातार कोशिश कर रही है.
Delhi AQI की हालत गंभीर सरकार ने लिया ये फैसला
दिल्ली में बढ़ते हुए प्रदूषण की वजह से हवा की क्वालिटी (Delhi AQI) और ज्यादा खराब होती जा रही है और सरकार के सामने यह चुनौती भयावह रूप लेती जा रही है. हवा में लगातार बढ़ते प्रदूषण के कणों की वजह से शहर के लोगों को सांस से संबंधित समस्याएं हो सकती हैं और इसी चुनौती से निपटने के लिए सरकार द्वारा विभिन्न प्रकार के कदम उठाये जा रहे हैं. लगातार पानी का छिड़काव किया जा रहा है, शहर में निर्माण कार्यों पर रोक लगा दी गई है, गाड़ियों पर सख्ती की जा रही है और दिवाली के पटाखों पर रोक पहले ही लगाई जा चुकी है. जहां एक तरफ सरकार द्वारा प्रदूषण को कम करने के लिए उठाये जाने वाले कदम जरूरी हैं, वहीं इन फैसलों के परिणामों को जान लेना भी जरूरी है.
Delhi AQI और GRAP
दिल्ली की बिगड़ती हुई हवा की क्वालिटी (Delhi AQI) में एक काफी बड़ी भूमिका निर्माणाधीन इमारतों की भी है. केंद्र सरकार के प्रदूषण नियंत्रण पैनल ने हाल ही में गाइडलाइन जारी की और कहा कि दिल्ली सहित राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्रों में भी गैर-आवश्यक निर्माण कार्यों पर रोक लगाई जाए. इतना ही नहीं, सरकार ने दिल्ली समेत राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्रों में डीजल से चलने वाले ट्रकों के प्रवेश पर भी रोक लगा दी है. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि यह सभी फैसले GRAP (ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान) के स्टेज 3 के तहत लिए जा रहे हैं. केंद्रीय सरकार द्वारा सर्दियों के मौसम में हवा प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए एक रणनीति तैयार की गई है और इसे GRAP के नाम से जाना जाता है. ये रणनीति हर साल सर्दियों के मौसम में लागू की जाती है.
अपना घर मिलने में होगी देर
जैसा कि हमने ऊपर बताया कि दिल्ली में गैर आवश्यक निर्माण कार्यों पर रोक लगा दी गई है, लेकिन इस फैसले से सबसे बड़ा नुक्सान ये हो सकता है कि दिल्ली में निर्माणाधीन हाउसिंग प्रोजेक्ट्स में देरी हो सकती है और इसका नुक्सान रियल एस्टेट डेवलपर्स के साथ-साथ अपने घर में शिफ्ट होने का इन्तजार कर रहे लोगों को भी हो सकता है. कन्फेडरेशन ऑफ रियल एस्टेट डेवलपर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (CREDAI) - नेशनल के प्रेसिडेंट और गौड़ ग्रुप (Gaur Group) के CMD मनोज गौड़ कहते हैं कि रियल एस्टेट क्षेत्र बढ़ते प्रदूषण (Delhi AQI) को रोकने के लिए अधिकारियों के प्रयासों का पूरा समर्थन करता है, लेकिन इसमें कुछ अड़चनें भी हैं. उन्होंने कहा कि एक महीने के कंस्ट्रक्शन बैन से प्रोजेक्ट पूरा होने में लगभग दो से तीन महीनों की देरी हो सकती है. रियल एस्टेट सेक्टर (Real Estate) इस कदम से चिंतित है, क्योंकि लागत में वृद्धि हो सकती है और श्रमिकों की आजीविका भी प्रभावित हो सकती है. उन्होंने कहा कि इन चुनौतियों के बावजूद डेवलपर्स प्रदूषण को कम करने के लिए नियमित रूप से पानी छिड़कने और एंटी-स्मॉग मशीनें लगाने जैसे उपाय सक्रिय रूप से करते हैं.
मजदूरों पर भी पड़ेगा असर
काउंटी ग्रुप (County Group) के डायरेक्टर अमित मोदी ने कहा, GRAP-3 लागू होने के बाद कंस्ट्रक्शन पर बुरा असर पड़ता है और कंस्ट्रक्शन का काम शुरू नहीं हो पाता. इस विषय पर अमित मोदी आगे कहते हैं कि GRAP-3 लागू होने के बाद निश्चित रूप से कंस्ट्रक्शन पर बुरा असर पड़ेगा और विकास की रफ्तार धीमी पड़ जाएगी. पहले ही देरी से चल रही हाउसिंग प्रोजेक्ट्स (Housing Projects) में और देरी होगी. इसके साथ ही अमित मोदी ने सरकार से GRAP-3 के साथ सरकार द्वारा रियायत देने की मांग भी की है. मिगसन (Migson) के मैनेजिंग डायरेक्टर यश मिगलानी ने कहा, हम पहले से ही अपनी कंस्ट्रक्शन गतिविधियों से प्रदूषण को (Delhi AQI) कम करने के संभावित तरीकों का पालन कर रहे हैं, जिसमें एंटी स्मोक गन्स, छिड़काव तंत्र, ग्रीन नेट्स जैसे कदम शामिल हैं. सरकार द्वारा जारी किए गए ऐसे आदेशों से न केवल मजदूरों की दैनिक मजदूरी पर असर पड़ेगा, बल्कि प्रोजेक्ट्स की समय सीमा भी पटरी से उतर सकती है और देरी हो सकती है.
इन गाड़ियों को लेकर सड़क पर निकले तो हो जाएगा चालान
विभिन्न फैसलों के बीच आज हवा की क्वालिटी (Delhi AQI) की देख-रेख करने वाली संस्था ने एक अन्य महत्त्वपूर्ण फैसला लिया है. CAQM (केंद्रीय हवा क्वालिटी प्रबंधन कमीशन) ने दिल्ली समेत सभी राज्यों को आदेश दिया है कि दिल्ली समेत गुरुग्राम, फरीदाबाद, गाजियाबाद, गौतम बुद्ध नगर क्षेत्रों में चलने वाले BS 3 पेट्रोल और BS 4 डीजल वाहनों पर रोक लगा दी है. पब्लिक ट्रांसपोर्ट की अतिरिक्त मांग से निपटने के लिए आज से दिल्ली मेट्रो 20 अतिरिक्त ट्रिप भी लगाएगी. आपको बता दें कि दिल्ली मेट्रो फिलहाल 40 अतिरिक्त ट्रिप भी लगा रही है. अगर आप भी सड़क पर गाड़ियों के पेट्रोल वाले BS 3 मॉडल या डीजल से चलने वाले BS 4 मॉडल को लेकर निकल रहे हैं तो आपका चालान हो सकता है और आपकी गाडी भी जब्त की जा सकती है.
यह भी पढ़ें: बुरा वक्त इसे ही कहते हैं, कल तक बड़े रईसों में थे शुमार; अब जेल में कटेंगी रातें!
दक्षिण भारत के चर्चित कारोबारियों में शुमार मुरुगप्पा फैमिली ने एक बयान जारी कर बताया है कि आपसी विवाद को सुलझा लिया गया है.
देश के सबसे पुराने कारोबारी घरानों में शुमार मुरुगप्पा परिवार (Murugappa Family) में चल रहा आपसी विवाद निपट गया है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, फैमिली ने एक बयान जारी करते बताया है कि संपत्ति को लेकर चल रहा पारिवारिक विवाद आपसी सहमति से सुलझा लिया गया है. समझौते के तहत परिवार के सदस्य कानूनी प्रक्रिया वापस लेंगे. इस पारिवारिक समझौते में कोई लिस्टेड कंपनी हिस्सेदार नहीं है. बता दें कि पिछले कई सालों से इस फैमिली में प्रॉपर्टी को लेकर कानूनी विवाद चल रहा था.
6 साल बाद बनी सहमति
दक्षिण भारत के चर्चित कारोबारियों में शुमार मुरुगप्पा परिवार (Murugappa Family) में छह सालों के विवाद के बाद आखिरकार सहमति बनी है. मुरुगप्पा ग्रुप इंजीनियरिंग, प्लांटेशन, कृषि उत्पाद, चीनी, रसायन, बायो-उत्पाद, बीमा एवं वित्तीय सेवाओं आदि में शामिल है. इसके साथ ही ग्रुप का नौ लिस्टेड कंपनियों पर भी नियंत्रण है. कुछ समय पहले ही Murugappa Group की कंपनी के शेयर से चंद महीनों में ही लोगों का पैसा डबल कर दिया था. समूह के मालिक एमवी मुरुगप्पन (MV Murugappan) की मृत्यु के बाद कारोबार के बंटवारे को लेकर परिवार में कानूनी जंग शुरू हो गई थी. करीब 6 साल तक विवाद चलता रहा और अब जाकर सहमति बन पाई है.
ऐसे उलझा था मामला
Murugappa Group की ओर से जारी एक संयुक्त बयान में कहा गया है कि दिवंगत एमवी मुरुगप्पन के पारिवारिक शाखा सदस्य आपसी विवादों और मतभेदों को सुलझाने पर सहमत हो गए हैं. वल्ली अरुणाचलम और वेल्लाची मुरुगप्पन के अलावा परिवार के बाकी सदस्य भी इसके लिए तैयार हैं. गौरतलब है कि एमवी मुरुगप्पन का 19 सितंबर, 2017 को निधन हो गया था. इसके कुछ समय बाद परिवार के सदस्यों में कारोबार के बंटवारे को लेकर विवाद शुरू हो गया. इस पूरे विवाद की शुरुआत एमवी मुरुगप्पन की अमेरिका में रहने वाली सबसे बड़ी बेटी वल्ली अरुणाचलम की एक डिमांड से शुरू हुई थी. दरअसल, अरुणाचलम ने समूह की होल्डिंग कंपनी के बोर्ड में जगह की मांग की थी, लेकिन मुरुगप्पा परिवार के अन्य सदस्य इसके लिए तैयार नहीं थे. यहीं से बात बिगड़ती चली गई और मामला अदालत पहुंच गया.
क्या थी अरुणाचलम की डिमांड?
वल्ली अरुणाचलम ने समूह के प्रमोटर्स लैंगिक भेदभाव का आरोप लगाया था. उन्होंने कहा था कि प्रमोटर्स महिलाओं के पारिवारिक व्यवसाय में आने के खिलाफ हैं. अरुणाचलम ने कहा था कि जब बोर्ड में पद लेने की बात आती है तो उनके और उनकी बहन वेल्लाची मुरुगप्पन के साथ भेदभाव किया जाता है. इसके विपरीत बहुत कम योग्यता और अनुभव वाले पुरुषों को बोर्ड का हिस्सा बनाया गया है. उन्होंने अपनी मांग को लेकर अदालत का दरवाजा खटखटाया था, जिसके बाद से एकदम से समूह सुर्खियों में आ गया था. अभी यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि क्या वल्ली अरुणाचलम और उनकी बहन को बोर्ड में शामिल किया जाएगा या नहीं.
कितना बड़ा है समूह?
Murugappa Group की बात करें, तो इसमें 11 सूचीबद्ध संस्थाएं हैं. जिनके नाम कार्बोरंडम यूनिवर्सल लिमिटेड, चोलामंडलम इन्वेस्टमेंट एंड फाइनेंस कंपनी लिमिटेड, कोरोमंडल इंजीनियरिंग कंपनी लिमिटेड, कोरोमंडल इंटरनेशनल लिमिटेड, EID पैरी (इंडिया) लिमिटेड और ट्यूब इन्वेस्टमेंट्स ऑफ इंडिया लिमिटेड हैं. कुछ समय पहले तक समूह की मार्केट वैल्यू 74,200 करोड़ रुपए थी. समूह वर्तमान में दुनियाभर के अलग-अलग बाजारों में 29 बिजनेस संचालित करता है. मौजूदा समय में इसकी 40 देशों में उपस्थिति है और 73,000 से अधिक कर्मचारी इसमें काम करते हैं. मुरुगप्पन ग्रुप का व्यवसाय कृषि, इंजीनियरिंग और वित्तीय सेवाओं से लेकर चाय, रबर, पॉलिमर कपड़े, यात्रा समाधान और निर्माण जैसे सेक्टर्स में फैला हुआ है.
कहां से हुई थी शुरुआत?
मुरुगप्पा समूह की 1900 में म्यांमार में हुई थी और इसका मुख्यलय चेन्नई में था. उस दौर में समूह पैसा उधार देने का काम किया करता था. दीवान बहादुर ए एम मुरुगप्पा चेट्टियार 1900 में साहूकार और बैंकिंग व्यवसाय की स्थापना के साथ Murugappa Group की नींव रखी थी. हालांकि, 1930 के दशक में समूह अपने बिजनेस को भारत ले आया. इसके बाद समूह ने अलग-अलग सेक्टर्स में संभावनाएं तलाशना शुरू किया और देखते ही देखते देश के बड़े कारोबारी समूहों में शुमार हो गया. 1954 में कार्बोरंडम यूनिवर्सल लिमिटेड की स्थापना की गई. आज समूह विभिन्न क्षेत्रों में सफलता के साथ आगे बढ़ रहा है. हालांकि, प्रॉपर्टी विवाद ने उसकी छवि को प्रभावित जरूर किया है.
इजरायल-हमास युद्ध के बीच भारत के लिए कतर से भी टेंशन वाली खबर आ गई है. यदि कतर से तनाव बढ़ता है, तो कारोबारी रिश्ते प्रभावित हो सकते हैं.
भारत इस समय मुश्किल दौर से गुजर रहा है. एक तरफ इजरायल-हमास युद्ध (Israel-Hamas War) ने उसकी टेंशन बढ़ाई हुई है. वहीं, अब कतर (Qatar) भी उसके लिए परेशानी बन रहा है. भारत के इजरायल के साथ-साथ कतर से भी कारोबारी संबंध है. इजरायल-हमास जंग का असर भारत के शेयर बाजार पर देखने को मिल रहा है. विदेशी निवेशक बिकवाल बने हुए हैं और बाजार लगातार गोते लगा रहा है. एक रिपोर्ट बताती है कि बाजार में गिरावट के कारण महज 6 दिनों में ही निवेशकों के 20 लाख करोड़ रुपए डूब गए हैं. बात केवल शेयर बाजार तक ही सीमित नहीं है, इस जंग ने कच्चे तेल की कीमत के भड़कने की आशंका को जन्म दिया है. यदि युद्ध में ईरान जैसे दूसरे देश भी शामिल होते हैं, तो हालात काफी खराब हो जाएंगे.
अच्छे रहे हैं दोनों के संबंध
उधर, कतर की एक अदालत ने 8 पूर्व भारतीय नौसैनिकों को मौत की सजा सुनाई है. इन भारतीयों को अगस्त 2022 में गिरफ्तार किया गया था. आरोप के स्पष्ट रूप से खुलासा किए बिना ही उन्हें मौत की सजा सुना दी गई है. भारत कतर से आई इस खबर से पूरी तरह हैरान है, क्योंकि दोनों देशों के रिश्ते काफी अच्छे रहे हैं. इस मुस्लिम देश ने कई मौकों पर भारत का साथ दिया है और भारत भी समय-समय पर उसकी मदद करता रहा है. चूंकि ये मामला बेहद गंभीर है, इसलिए इसके परिणाम भी बेहद गंभीर हो सकते हैं. एक्सपर्ट्स मानते हैं कि दोनों देशों के बीच तनाव का असर कारोबार पर भी पड़ सकता है.
कौन, क्या मंगवाता है?
भारत और कतर कुछ मामलों में एक-दूसरे पर निर्भर हैं. भारत अपने कुल LNG आयात का 40 से 50 फीसदी कतर से मंगाता है. जबकि कतर के कुल एलएनजी निर्यात में भारत की 15% हिस्सेदारी है. कतर के लिए भारत एक करीबी कारोबारी दोस्त रहा है. साल 2016 में कतर ने भारत के लिए LNG के दाम में 50% से अधिक की कटौती की थी. भारत कतर से नैचुरल गैस, इथेनॉल, LPG, उर्वरक, रसायन-पेट्रोकेमिकल्स, प्लास्टिक और एल्युमीनियम आदि खरीदता है. वहीं कतर भारत से प्रमुख तौर पर अनाज, सब्जियां, तांबा, लोहा और इस्पात, निर्माण सामग्री, प्लास्टिक उत्पाद, कपड़े गारमेंट्स मंगवाता है. खासतौर पर कतर के लिए भारत का गेहूं महत्वपूर्ण है.
ऐसा रहा है आयात-निर्यात
दोनों देशों के बीच कारोबार की बात करें, तो वित्त वर्ष 2021-22 में यह 15.3 अरब डॉलर था. एक रिपोर्ट बताती है कि 2021 में, भारत ने कतर को 1.85 बिलियन डॉलर का निर्यात किया था. भारत द्वारा कतर भेजे गए मुख्य उत्पादों में आभूषण (115 मिलियन डॉलर), चावल (97.5 मिलियन डॉलर) और रिफाइंड पेट्रोलियम (86.6 मिलियन डॉलर) शामिल थे. पिछले कुछ सालों में कतर को भारत का निर्यात 17.3% की वार्षिक दर से बढ़ा है. इसी तरह, 2021 में कतर ने भारत को 10.3 अरब डॉलर से ज्यादा का निर्यात किया. इसमें मुख्य तौर पर पेट्रोलियम गैस (7.52 अरब डॉलर), क्रूड पेट्रोलियम (766 मिलियन डॉलर), और हैलोजेनेटेड हाइड्रोकार्बन (458 मिलियन डॉलर) शामिल थे. पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत को कतर का निर्यात 19.8% की वार्षिक दर से बढ़ा है.
कतर में हमारी कई कंपनियां
कतर में कई भारतीय कंपनियां भी कारोबार कर रही हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार, 6000 से अधिक छोटी-बड़ी भारतीय कंपनियां कतर में मौजूद हैं. कतर के इंफ्रास्टक्चर, कम्युनिकेशन, टेक्नॉलिजी और एनर्जी सेक्टर में भारतीय कंपनियों का दबदबा है. दूसरी तरफ, कतर की कई कंपनियों का भारत में भी निवेश है. कतर के सॉवरेन वेल्थ फंड 'कतर इन्वेस्टमेंट अथॉरिटी' ने मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस रिटेल में निवेश किया है. ऐसे में यदि दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ता है, तो कारोबार के प्रभावित होने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता. इसके अलावा, कतर में रहने वाले भारतीयों को भी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है. कतर की 29 लाख आबादी में से 7.5 लाख भारतीय हैं.
Israel से हमारा कारोबार
दूसरी ओर इजरायल और हमास की जंग भारत की टेंशन बढ़ा रही है. एशिया में इजरायल के लिए भारत तीसरा सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर है. उसकी कंपनियों ने यहां निवेश किया हुआ है, जिसके युद्ध लंबा खिंचने की स्थिति में प्रभावित होने से इंकार नहीं किया जा सकता. भारत के कुल व्यापारिक निर्यात में इजरायल की हिस्सेदारी 1.8% है. इजरायल भारत से लगभग 5.5 से 6 बिलियन डॉलर के परिष्कृत पेट्रोलियम उत्पाद (Refined Petroleum Products) खरीदता है. वित्तवर्ष 23 में, इजराइल को भारत का कुल निर्यात 8.4 बिलियन डॉलर था. जबकि आयात 2.3 बिलियन डॉलर रहा. इस तरह, दोनों देशों के बीच करीब 10 बिलियन डॉलर का कारोबार होता है.
बढ़ जाएंगे नुकसान के आंकड़े
इजरायल भारत से परिष्कृत पेट्रोलियम उत्पादों के साथ-साथ ज्लैवरी, कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स और इंजीनियरिंग से जुड़े प्रोडक्ट्स मंगाता है. जबकि भारत मोती, हीरे, डिफेंस मशीनरी, पेट्रोलियम ऑयल्स, फर्टिलाइजर्स और इलेक्ट्रॉनिक्स कंपोनेंट आदि आयात करता है. एक रिपोर्ट बताती है कि अप्रैल 2000 से मार्च 2023 के दौरान, भारत में इजरायल का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश यानी FDI 284.96 मिलियन अमेरिकी डॉलर था. कई भारतीय कंपनियों ने भी इजरायल में बड़ा निवेश किया हुआ है. भले ही अभी ज्यादा असर नजर नहीं आ रहा, लेकिन यदि युद्ध जल्द खत्म नहीं होता तो नुकसान के आंकड़े दिखाई देने शुरू हो जाएंगे.
यहां भी होगा नुकसान
इजरायल के साथ-साथ भारत के फिलिस्तीन के साथ भी व्यापारिक रिश्ते हैं. हालांकि, भारत और फिलिस्तीन के बीच व्यापार इजरायल के जरिए होता है. 2020 में भारत-फिलिस्तीन ट्रेड वॉल्यूम करीब 67.77 मिलियन डॉलर था. भारत से वहां मार्बल और ग्रेनाइट, सीमेंट, बासमती चावल, मेडिकल एवं सर्जिकल इंस्ट्रूमेंट्स आदि जाता है. जबकि भारत ताजा और सूखे खजूर, बेस मेटल्स से बनी वस्तुएं इम्पोर्ट करता है. युद्ध बढ़ने की स्थिति में भारत के फिलिस्तीन के साथ आयात-निर्यात पर भी असर पड़ेगा. वहीं, भारतीय एक्सपोर्ट्स को आशंका है कि युद्ध जारी रहने पर उन्हें इजरायल भेजे जाने वाले माल के लिए ज्यादा इंश्योरेंस प्रीमियम और बढ़ी हुई शिपिंग कॉस्ट वहन करनी पड़ेगी. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार विशेषज्ञों का कहना है कि ये युद्ध घरेलू निर्यातकों के मुनाफे को कम कर सकता है और अगर युद्ध जल्द नहीं थमता को ट्रेड वॉल्यूम का प्रभावित होना भी लाजमी है. इसलिए भारत चाहेगा कि युद्ध की ये आग जल्द शांत हो जाए.
Tea Exporter में बेचैनी
इजरायल-हमास युद्ध ने भारत के Tea Exporter की परेशानी भी बढ़ा दी है. इस युद्ध में ईरान के शामिल होने की संभावना लगातार बढ़ती जा रही है. यदि ऐसा होता है, तो चाय निर्यात बुरी तरह प्रभावित हो सकता है. ईरान मुख्य रूप से भारत के लिए एक परंपरागत चाय बाजार है. असम से ईरान सबसे ज्यादा चाय भेजी जाती है. भारतीय चाय निर्यातक पूरे मामले पर नजर बनाए हुए हैं. वह जल्दी से जल्दी ऑर्डर पूरा करने की कोशिश में हैं, लेकिन साथ ही भुगतान को लेकर आशंकित हैं. उन्हें इस बात का भी डर है कि युद्ध के चलते माल की आवाजाही में कोई दिक्कत न हो जाए. एक्सपर्ट्स का कहना है कि चाय निर्यातकों के लिए यह समय घबराहट वाला है. ईरान हमारी चाय का बड़ा खरीदार है. अगर वहां हालात बिगड़ते हैं, तो सप्लाई प्रभावित होना लाजमी है. इसके अलावा, निर्यातकों का पेमेंट भी अटक सकता है. इसलिए वो यही चाहते हैं कि इजरायल और हमास के युद्ध की आंच ईरान तक न पहुंचे. वैसे, जनवरी-दिसंबर 2022 के दौरान भारत ने सबसे ज्यादा चाय का निर्यात संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) को किया था. UAE को 4.23 करोड़ किलोग्राम चाय भेजी गई थी. इसी तरह, रूस को 4.11 करोड़ किलोग्राम और ईरान में 2.16 करोड़ किलोग्राम चाय का निर्यात हुआ.
पिछले कुछ दिनों से शेयर बाजार में गिरावट देखने को मिल रही है. सोमवार को भी बाजार बड़ी गिरावट के साथ बंद हुआ था.
फेस्टिवल सीजन में जहां हर तरफ खुशी का माहौल है. वहीं, शेयर बाजार (Stock Market) में निवेश करने वालों की आंखों में आंसू हैं. पिछले कुछ दिनों से मार्केट में गिरावट का दौर चल रहा है. सोमवार को बाजार ने इतना गहरा गोता लगाया कि निवेशकों के एक ही झटके में 7.59 लाख करोड़ डूब गए. आज यानी 24 अक्टूबर को स्टॉक मार्केट बंद है, इसलिए गिरावट थमती है या नहीं ये कल ही पता चल पाएगा. एक रिपोर्ट बताती है कि गिरावट के लगातार 4 सत्रों में BSE सेंसेक्स 1,925 अंक और NSE निफ्टी लगभग 530 अंक टूट चुका है.
इजरायल-हमास युद्ध भी वजह
बाजार में लगातार आ रही गिरावट से यह सवाल लाजमी हो जाता है कि आखिर इसकी वजह क्या है? मार्केट को कई फैक्टर्स प्रभावित करते हैं, इसलिए गिरावट की कोई एक वजह नहीं हो सकती है. एक्सपर्ट्स मानते हैं कि इजरायल-हमास युद्ध के चलते निवेशकों में अनिश्चितता का माहौल है. दरअसल, इस जंग का दायरा बढ़ने की आशंका बढ़ गई है. यदि ईरान जैसे दूसरे देश इसका हिस्सा बनते हैं, तो दुनिया के कारोबार पर काफी बुरा असर पड़ सकता है. ऐसे में निवेशक ज्यादा जोखिम मोल लेना नहीं चाहते. इसके अलावा, अमेरिकी फेड रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में और इजाफे की संभावना भी निवेशकों को प्रभावित कर रही है.
कच्चा तेल बिगाड़ रहा तेल
वहीं, कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों ने भी बाजार के मिजाज बिगाड़ दिया है. क्रूड ऑयल 90 डॉलर प्रति बैरल के ऊपर ट्रेड कर रहा है. ब्रेंट क्रूड 0.04 प्रतिशत चढ़कर 92.18 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच चुका है और इसके 100 डॉलर के ऊपर जाने का अनुमान है. इसके अलावा, विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा बिकवाली भी जारी है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अक्टूबर में विदेशी निवेशक भारतीय बाजार से अब तक 12 हजार करोड़ से ज्यादा की बिकवाली कर चुके हैं. हमारे शेयर बाजार की चाल काफी हद तक विदेशी निवेशकों के रुख पर निर्भर करती है. जब वो खरीदारी करते हैं, तो बाजार चढ़ता है और उनके पैसा निकालते ही मार्केट धड़ाम हो जाता है.
डॉलर की मजबूती भी कारण
एक्सपर्ट्स के मुताबिक, अमेरिकी डॉलर इंडेक्स पिछले एक सप्ताह से 105 अंक से ऊपर चल रहा है, जिससे दुनियाभर की मुद्राओं में गिरावट देखने को मिली है. भारतीय रुपया भी डॉलर की मजबूती से प्रभावित हुआ है और इसका असर बाजार पर नजर आ रहा है. कुछ कंपनियों के दूसरी तिमाही के नतीजे भी उम्मीद के अनुरूप नहीं रहे हैं, जिसके निवेशकों की उनके प्रति धारणा पर असर पड़ा है.
केरल के विझिंजम ट्रांसशिपमेंट कंटेनर पोर्ट पर पहला कार्गो कैरियर 'जेन हुआ 15' रविवार को पहुंच गया है. यह देश का अपनी तरह का पहला बंदरगाह है.
केरल के विझिंजम ट्रांसशिपमेंट कंटेनर पोर्ट (Vizhinjam Port) पर हैवी कार्गो कैरियर 'जेन हुआ 15' पहुंच चुका है. दुनिया के सबसे बड़े जहाजों में शामिल ये कार्गो पूर्वी चीन सागर से भारत आया है और विझिंजम पोर्ट पहुंचने वाला पहला कार्गो कैरियर है. Zhen Hua 15 का केरल के इस पोर्ट पर आना इसलिए बड़ी बात है, क्योंकि इसके बाद भारत दुनिया के सबसे बड़े कंटेनर जहाजों के रूट पर आ गया है. अब तक दुनिया के कुछ बड़े कंटेनर शिप भारत नहीं आ पाते थे, क्योंकि ऐसे जहाजों को संभालने के लिए देश के बंदरगाह पर्याप्त गहरे नहीं थे.
Adani के लिए भी बड़ी बात
विझिंजम पोर्ट अडानी ग्रुप (Adani Group) द्वारा विकसित किया गया है और इसका संचालन अडानी पोर्ट्स (Adani Ports) करती है, इसलिए ये केरल के साथ-साथ अडानी ग्रुप के लिए भी बड़ी बात है. एक्सपर्ट्स मानते हैं कि ट्रांसशिपमेंट क्षमताओं और प्रमुख शिपिंग रूट्स के नजदीक होने के कारण, यह केरल के इंफ्रास्ट्रक्चर और डेवलपमेंट के लिए एक गेम-चेंजर साबित हो सकता है. इस पोर्ट का लक्ष्य सालाना 10 लाख कंटेनरों को संभालना है, जो सिंगापुर को भी पीछे छोड़ देगा. जाहिर है, इससे स्थानीय स्तर पर रोजगार बढ़ेगा और निवेश भी आकर्षित होगा.
भारत को मिलेगी एडवांटेज
Vizhinjam Port भारत को चीन के प्रभुत्व वाले अंतरराष्ट्रीय समुद्री व्यापार का एक बड़ा हिस्सा प्राप्त करने में मदद करेगा. इसके अलावा, यह देश में आने-जाने वाले कार्गो के लिए लॉजिस्टिक लागत कम करेगा, जिससे भारत को मैन्युफैक्चरिंग हब बनने में भी मदद मिलेगी. इसके अस्तित्व में आने से पहले तक कुछ बड़े शिप भारत की जगह कोलंबो, दुबई और सिंगापुर जैसे पड़ोसी बंदरगाहों पर डॉकिंग कर रहे थे. इससे भारत को नुकसान हो रहा था. एक रिपोर्ट बताती है कि इंटरनेशनल रूट्स के नजदीक बड़े जहाजों के लिए पोर्ट न होने के चलते भारतीय पोर्ट्स को करीब 220 मिलियन डॉलर के रिवेन्यु लॉस का सामना करना पड़ रहा था.
The inaugural vessel 'Zhen Hua 15' is set to dock at Vizhinjam International Port, India's premier mother port, on October 15th. Boasting container transhipment capabilities and proximity to major shipping routes, it's a game-changer for Kerala's infrastructure and development.… pic.twitter.com/0lOVn5EsiU
— Pinarayi Vijayan (@pinarayivijayan) October 14, 2023
अडानी के पास 13 बंदरगाह
Zhen Hua 15 चीन से 15 अगस्त को रवाना हुआ था. इस जहाज को 4 अक्टूबर को ही भारत पहुंचना था, लेकिन खराब मौसम के चलते ऐसा नहीं हो सका और यह 15 अक्टूबर को केरल के पोर्ट पहुंचा. यह बंदरगाह 2015 से निर्माणधीन था. जेन हुआ 15 के बाद 3 और बड़े जहाज जल्द ही गौतम अडानी की कंपनी द्वारा संचालित इस पोर्ट पर पहुंच सकते हैं. अडानी पोर्ट्स इस समय 13 बंदरगाहों का संचालन कर रही है, इसमें विझिंजम पोर्ट के साथ-साथ टूना टर्मिनल, मुंद्रा पोर्ट, गंगावरम पोर्ट, दाहेज पोर्ट, हजीरा पोर्ट, कृष्णापटनम पोर्ट, मोरमुगाओ पोर्ट, कट्टुपल्ली पोर्ट, धामरा पोर्ट, एन्नोर टर्मिनल, कराईकल पोर्ट और दिघी पोर्ट शामिल हैं.
विझिंजम पोर्ट में क्या है खास?
विझिंजम की सबसे खास बात ये है कि यह पोर्ट अंतरराष्ट्रीय पूर्व-पश्चिम शिपिंग मार्ग से केवल 18 किलोमीटर की दूर है, जो पश्चिमी एशिया, यूरोप, अफ्रीका और दुनिया के सुदूर पूर्वी क्षेत्रों को जोड़ता है. मौजूदा समय में बड़े जहाजों को शिपमेंट लेकर श्रीलंका स्थित कोलंबो पोर्ट जाना पड़ता है, जो अंतरराष्ट्रीय मार्ग से 50 किलोमीटर की दूरी पर है. अब विझिंजम पोर्ट आने में अब उनका समय और लागत दोनों बचेगी. विझिंजम पोर्ट की गहराई 20 मीटर है. यहां करीब 400 मीटर लंबे और 16 मीटर ड्राफ्ट वाले शिप आ सकते हैं. इस लिहाज से यह भारत का सबसे गहरा कंटेनर ट्रांसशिपमेंट पोर्ट बन गया है.
कितनी लागत में हुआ तैयार?
विझिंजम पोर्ट को अनुमानित 7,700 करोड़ रुपए की लागत से विकसित किया जा रहा है. जिसमें केरल सरकार 4,600 करोड़ और केंद्र सरकार 860 करोड़ वहन करेगी. इसके अलावा, अडानी समूह 2,240 करोड़ रुपए खर्च कर रहा है. अडाणी पोर्ट्स के पास 40 साल तक इस बंदरगाह को संचालित करने का अधिकार है, जिसे 20 साल तक बढ़ाया भी जा सकता है.