सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एक चेक बाउंस (Cheque Bounce) की सुनवाई करते हुए लोअर कोर्ट और आम लोगों के लिए एक सलाह दी है. इस सलाह को मानते हुए लोग कोर्ट आने के चक्कर से बच सकते हैं.
आजकल डिजिटल पेमेंट के चलते चेक के आदान-प्रदान का चलन कम हुआ है, लेकिन अभी भी कई मामलों में चेक बाउंस (Cheque Bounce) के चलते लोगों को कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटने पड़ते हैं. अगर आपका चेक बाउंस हुआ है, या आपको किसी ने चेक दिया और उसका पेमेंट क्लियर ही नहीं हुआ. तो आपको जानकारी होगी कि चेक बाउंस के मामलों में कितनी बार कोर्ट के चक्कर काटने पड़ते हैं. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने चेक बाउंस के ही एक मामले की सुनवाई के दौरान एक जबरदस्त सलाह दी है, जिसकी वजह से आप चेक बाउंस के मामले में कोर्ट के झंझट से बच सकते हैं. तो आइए जानते हैं सुप्रीम ने क्या सलाह ही है?
बड़ी संख्या में कोर्ट में लंबित पड़े चेक बाउंस के मामले
देश की विभन्न कोर्ट में चेक बाउंस से जुड़े मामले बड़ी संख्या में लंबित पड़े हैं. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने ‘गंभीर चिंता’ व्यक्त की है. ऐसे ही एक मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस ए. अमानुल्लाह की पीठ ने चेक बाउंस के मामलों के तेजी से निपटारे के लिए अपनी सलाह भी दी.
कोर्ट ने अभियुक्त की सजा को किया रद्द
जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस ए. अमानुल्लाह की पीठ ने चेक बाउंस मामले की सुनवाई के बाद मामले में अभियुक्त (Accused) पी. कुमारसामी नाम के एक व्यक्ति की सजा रद्द कर दी. पीठ ने अपने आब्जर्वेशन में पाया कि दोनों पक्षों के बीच चेक बाउंस के मामले में समझौता हो चुका है. वहीं, अभियुक्त की ओर से शिकायतकर्ता को 5.25 लाख रुपये का भुगतान किया जा चुका है.
सजा देने की जगह निपटान को दी जाए प्राथमिकता
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि देश की विभिन्न कोर्ट में चेक बाउंस से जुड़े मामले बड़ी संख्या में लंबित हैं. ये देश की न्यायिक व्यवस्था के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है. इसे ध्यान में रखते हुए इनका निपटान करने के तरीके को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, ना कि सजा देने के तरीके पर फोकस करना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालतों को कानून के दायरे में रहते हुए निपटान को बढ़ावा देने के लिए काम करना चाहिए, अगर दोनों पक्ष ऐसा करने के इच्छुक हैं. कोर्ट के अलावा दोनों पक्ष भी आपस में मिलकर चेक बाउंस जैसे मामलों का निपटान कर सकते हैं, जिससे कोर्ट आने से बचा जा सके.
इन सब मामलों में भी काम आएगी ये सलाह
सुप्रीम कोर्ट की ये सलाह सिर्फ चेक बाउंस के केस में ही नहीं बल्कि कानूनी तौर पर लिखे गए सभी तरह के वचन पत्रों में विवाद की स्थिति पैदा होने पर मामलों के निपटारे में काम आ सकती है. पीठ ने 11 जुलाई को जो आदेश पारित किया, उसमें ये भी कहा कि समझौता योग्य अपराध ऐसे होते हैं, जिनमें प्रतिद्वंद्वी पक्षों के बीच समझौता हो सकता है. हमें यह याद रखना होगा कि चेक का बाउंस होना एक रेग्युलेटरी क्राइम है जिसे केवल सार्वजनिक हित को देखते हुए अपराध की श्रेणी में लाया गया है, ताकि संबंधित नियमों की विश्वसनीयता सुनिश्चित की जा सके.
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सुप्रीम कोर्ट ने एक तरफ जहां दिल्ली शराब नीति घोटाले में केजरीवाल को राहत प्रदान की, वहीं दूसरी तरफ सीबीआई की जमकर क्लास भी लगाई.
दिल्ली के कथित शराब नीति घोटाले में अरविंद केजरीवाल को बड़ी राहत मिली है. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें 10 लाख के मुचलके पर जमानत दे दी है. हालांकि, दो जजों की पीठ इस मामले में एकराय नहीं है कि सीबीआई द्वारा केजरीवाल को गिरफ्तार करना सही था नहीं? एक तरफ जहां जस्टिस सूर्यकांत ने केजरीवाल की गिरफ्तारी को सही बताया. वहीं, जस्टिस भूईंया ने केजरीवाल की गिरफ्तारी की टाइमिंग पर सवाल उठाए.
पिंजरे में बंद तोता
केजरीवाल की याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए अदालत ने बहुत कुछ ऐसा कहा कि सीबीआई के चेहरे पर शिकन पड़ना लाजमी है. जस्टिस भूइयां ने कहा कि सीबीआई ने केजरीवाल को इसलिए गिरफ्तार किया कि ED के मामले मिली जमानत को विफल किया जा सके.
जस्टिस भूइंया ने यह भी कहा कि सीबीआई को दिखाना होगा कि वह पिंजरे में बंद तोता नहीं है.
धारणा बदलना ज़रूरी
न्यायाधीश भूइयां ने कहा कि किसी भी देश में धारणा मायने रखती है और सीबीआई को पिंजरे में बंद तोता होने वाली धारणा को दूर करना चाहिए. उसे यह दिखाना चाहिए कि वो पिंजरे में बंद तोता नहीं है. उन्होंने सवाल किया कि आखिर सीबीआई इस मामले में अचानक एक्टिव कैसे हो गई? जस्टिस भूइंया ने कहा कि CBI ने मार्च 2023 में केजरीवाल से पूछताछ की गई थी,लेकिन तब उन्हें गिरफ्तार करने की जरूरत महसूस नहीं हुई.
22 महीने बाद एक्टिव
उन्होंने आगे कहा कि केंद्रीय जांच एजेंसी ने अरविंद केजरीवाल को तब गिरफ्तार किया जब ईडी की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी गई. सीबीआई को 22 महीनों तक गिरफ्तारी की जरूरत महसूस नहीं हुई, लेकिन फिर अचानक वह एक्टिव हो गई और हिरासत की मांग करने लगी. जस्टिस भूईंया ने कहा कि सीबीआई द्वारा इस तरह की कार्रवाई गिरफ्तारी के समय पर गंभीर सवाल उठाती है. जांच एजेंसी ने गिरफ्तारी केवल ईडी मामले में दी गई जमानत को विफल करने के लिए की.
शर्तों के साथ मिली राहत
सुप्रीम कोर्ट की इन तल्ख टिप्पणियों से स्पष्ट है कि इस मामले में सीबीआई की कार्यप्रणाली अदालत को नागवार गुजरी है. ऐसे में सीबीआई को आगे बहुत सोच-समझकर कदम बढ़ाना होगा. वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल को राहत देते हुए कुछ शर्तें भी जोड़ी हैं. मसलन, केजरीवाल ना तो सचिवालय जा सकेंगे और ना ही किसी फाइल पर साइन कर पाएंगे. ऐसी ही शर्तें अदालत ने ED मामले में जमानत देते हुए भी लगाई थीं.
दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल को सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दे दी है.
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) के लिए आज बड़ा दिन है. कथित शराब नीति घोटाले में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दे दी है. CM केजरीवाल ने सीबीआई की तरफ से दर्ज भ्रष्टाचार के मामले में अपनी गिरफ्तारी के साथ ही निचली अदालत द्वारा जमानत से इनकार किए जाने को SC में चुनौती दी थी. अदालत ने केजरीवाल की गिरफ्तारी को सही ठहराया, लेकिन उनकी जमानत याचिका मंजूर कर ली.
सुरक्षित रखा था फैसला
जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ केजरीवाल की याचिका पर फैसला सुनाया. पीठ ने 5 सितंबर को सुनवाई के बाद अरविंद केजरीवाल की दोनों याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रख लिया था. कथित शराब नीति घोटाले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) के साथ ही सीबीआई ने भी केजरीवाल के खिलाफ केस दर्ज कराया है. सीबीआई ने इस दिल्ली के CM और आम आदमी पार्टी (आप) प्रमुख को 26 जून को गिरफ्तार किया था.
एक मामले में बेल
केजरीवाल ने हाई कोर्ट के 5 अगस्त के उस आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था, जिसमें कोर्ट ने भ्रष्टाचार के इस मामले में उनकी गिरफ्तारी को बरकरार रखा. हाई कोर्ट ने कहा था कि सीबीआई के पास केजरीवाल के खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं. शीर्ष अदालत ने 12 जुलाई को ED द्वारा दर्ज धनशोधन के मामले में केजरीवाल को अंतरिम जमानत दी थी, लेकिन सीबीआई के मामले के चलते वह जेल से बाहर नहीं आ पाए. सुनवाई के दौरान, अदालत ने कहा था कि केजरीवाल पहले ही काफी दिन जेल में रह चुके हैं, इसलिए ईडी मामले में उन्हें जमानत दी जा सकती है.
सीबीआई की दलील
केंद्रीय जांच एजेंसी (CBI) ने पहले अदालत से केजरीवाल से पूछताछ की अनुमति मांगी थी फिर वहीं उन्हें औपचारिक रूप से गिरफ्तार कर लिया था . सीबीआई ने अदालत को बताया था कि उसे केजरीवाल को गिरफ्तार क्यों करना पड़ पड़ा. जांच एजेंसी ने कहा था कि बतौर मुख्यमंत्री केजरीवाल उस कैबिनेट का हिस्सा थे जिसने विवादित नई शराब नीति को मंजूरी दी. दिल्ली की आबकारी नीति 2021-22 में कुछ खास लोगों को लाभ देने के लिए संशोधन किए गए. शराब के थोक विक्रेताओं के लिए प्रॉफिट मार्जिन 5% से बढ़ाकर 12 प्रतिशत कर दिया गया. सीबीआई की दलीलों को स्वीकार करते हुए हाई कोर्ट ने केजरीवाल की गिरफ्तारी को सही करार दिया था.
सहकारी आंदोलन (Cooperative Movement) के जरिये देश-विदेश में नाम कमाने वाली अमूल को दिल्ली हाई कोर्ट से बड़ी राहत मिली है.
ट्रेडमार्क मामले में अमूल (Amul) को इटली की एक कंपनी के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट से बड़ी राहत मिली है. दरअसल, दिल्ली हाई कोर्ट ने भारत के सबसे बड़े डेयरी ब्रैंड अमूल की नकल करने के मामले में एक इतालवी कंपनी टेरे प्रिमिटिव (Terre Primitive) के खिलाफ फैसला सुनाया है. कोर्ट ने अमूल में पक्ष में फैसला सुनाते हुए इटली की कंपनी के खिलाफ निषेधाज्ञा आदेश पारित किया है. तो चलिए जानते हैं क्या है ये पूरा मामला?
इतालवी कंपनी ऐसे कर रही थी अमूल की नकल
कोर्ट ने अमूल को एक बड़े सीमा-पार ट्रेडमार्क उल्लंघन मामले (Cross-border trademark infringement case) में राहत दी है. दरअसल, इतालवी फर्म अमूल के मिलते जुलते नाम 'अमूलेटी' (Amuleti) ट्रेड मार्क के तहत कुकीज और चॉकलेट कवर्ड बिस्कुट बेच रही थी. यह अमूल के प्रसिद्ध ट्रेडमार्क से काफी मिलता-जुलता है, इसलिए इसके खिलाफ अमूल ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.
अमूल की विदेशों में भी है प्रसिद्धि
बता दें, गुजरात सहकारी दुग्ध विपणन संघ (GCMMF) अमूल (Amul) ब्रैंड नाम के तहत अपने डेयरी प्रोडक्ट्स का विपणन करता है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार अमूल ने अपने वकील अभिषेक सिंह के माध्यम से इतालवी कंपनी के खिलाफ ट्रेडमार्क मुकदमा दायर किया था. उनके वकील ने अदालत के समक्ष तर्क दिया कि अमूल न केवल भारत में एक घरेलू नाम है, बल्कि इसने सीमा-पार प्रतिष्ठा भी हासिल की है. अंतर्राष्ट्रीय फार्म कंप्रीजन नेटवर्क (International Farm Comparison Network) द्वारा 2020 में किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार अमूल शीर्ष डेयरी संगठन के रूप में दुनिया में 8वें स्थान पर है. उन्होंने कहा कि टेरे प्रिमिटिव ने स्पष्ट रूप से 'अमूल' की नकल की है. इसने अमूल के नाम में बस 'एति' (eti) शब्द जोड़ दिया और अपना ब्रैंड बना लिया. उन्होंने बताया कि इतालवी कंपनी अपने उत्पादों को अपनी वेबसाइट और फेसबुक और इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर उल्लंघनकारी चिह्न के तहत बढ़ावा दे रही है, जोकि अमूल के कई पंजीकरणों के समान ही वर्ग में आता है, इसलिए इस पर रोक लगाया जाना चाहिए.
हाई कोर्ट ने पारित किया निषेधाज्ञा आदेश
अमूल की ओर से पेश दलीलें सुनने के बाद दिल्ली हाई कोर्ट की न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा ने निषेधाज्ञा आदेश पारित किया. इसमें इतालवी फर्म को 'अमूल' के समान किसी भी चिह्न का उपयोग करने या उससे निपटने से रोक दिया गया. अदालत ने इतालवी फर्म को अपनी वेबसाइट से उत्पादों की सूची को तुरंत हटाने का भी निर्देश दिया और मेटा इंक को फेसबुक और इंस्टाग्राम खातों के यूआरएल को ब्लॉक/निलंबित/हटाने का आदेश दिया, जहां इतालवी कंपनी अपने उत्पादों का प्रचार कर रही थी.
हिंदीभाषी महिला से बदतमीजी करने और थप्पड़ मारने के आरोपी ऑटो ड्राइवर को बेंगलुरु पुलिस ने अरेस्ट कर लिया है.
कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु के एक बदतमीज ऑटोवाले को अब समझ आ गया होगा कि एक थप्पड़ की कीमत क्या होती है. आरोपी ऑटो ड्राइवर ने एक महिला यात्री राइड कैंसिल करने पर न केवल गलियां दीं बल्कि थप्पड़ भी रसीद कर दिया. महिला ने ऑटो वाले की इस हरकत को अपने मोबाइल में रिकॉर्ड कर लिया और यही उसके लिए आरोपी को सबक सिखाने का हथियार साबित हुआ.
पुलिस ने दर्ज किया केस
बेंगलुरु की मगदी रोड पुलिस ने ओला-बेस्ड ऑटो ड्राइवर R Muthuraj को गिरफ्तार कर लिया है. उसके ऊपर विभिन्न धाराओं में केस दर्ज किया है. आरोपी को थाने से जमानत नहीं मिलेगी. पुलिस का कहना है कि अपराध की गंभीरता को देखते हुए आरोपी को अदालत में पेश किया जाएगा और कोर्ट ने निर्णय लेगा कि उसे जमानत पर छोड़ना चाहिए या नहीं. बताया जा रहा है कि राइड कैंसिल करने पर आगबबूला हुए आरोपी को अब खुली हवा में सांस लेने के लिए 30 से 40 हजार रुपए खर्च करने होंगे.
Such behaviour is unacceptable
— alok kumar (@alokkumar6994) September 5, 2024
Few ppl like him give auto drivers community a bad name
Have informed the concerned to take appropriate action action https://t.co/pkq3kg79KF
हिंदी भाषी है पीड़िता
सोशल मीडिया पर घटना का वीडियो वायरल होने के बाद पुलिस हरकत में आई और आरोपी ऑटो ड्राइवर R Muthuraj को गिरफ्तार किया. आरोपी ने स्वीकार किया है महिला के राइड कैंसिल करने पर उसे गुस्सा आ गया था. हिंदी भाषी महिला ने ओला ऐप पर ऑटो बुक करने के बाद दूसरे कैंसिल कर दिया और फिर दूसरे ऑटो में बैठ गई. इस आरोपी बुरी तरह भड़क गया. उसने महिला को गंदी-गंदी गलियां दी, धमकी और और बाद में थप्पड़ मार दिया.
किसी की नहीं सुनी
महिला द्वारा पुलिस में शिकायत की चेतावनी का भी आरोपी पर कोई असर नहीं हुआ और वो बदसलूकी करता रहा. कुछ लोगों ने भी आरोपी को समझाने की कोशिश की, लेकिन उसने उन्हें अनसुना कर दिया. घटना के बाद महिला ने ‘ओला’ को टैग करते हुए ‘एक्स’ पर घटना की जानकारी दी. इसके बाद सिटीजंस मूवमेंट ईस्ट बेंगलुरु नाम के अकाउंट से ऑटो ड्राइवर की बदसलूकी के दो वीडियो पोस्ट किए गए. देखते ही देखते वीडियो इतने वायरल हो गए कि एडीजीपी आलोक कुमार ने संबंधित पुलिस अधिकारियों को ऑटो ड्राइवर के खिलाफ तत्काल कार्रवाई करने का निर्देश दिया.
रद्द होगा लाइसेंस
वहीं, खबर है कि बेंगलुरु रीजनल ट्रांसपोर्ट ऑफिस (RTO) भी आरोपों ऑटो ड्राइवर पर कार्रवाई की तैयारी कर रहा है. R Muthuraj का लाइसेंस और ऑटो का परमिट दोनों रद्द किया जा सकता है. पुलिस अधिकारियों का कहना है कि राइड कैंसिल होने पर R Muthuraj को महज 20-30 रुपए का नुकसान होता, लेकिन इस तरह का अभद्र व्यवहार करके उसने अपना बड़ा नुकसान कर लिया है. लीगल खर्च के नाम पर ही उसे 30 से 40 हजार रुपए का झटका लगेगा. बता दें कि कर्नाटक में हिंदी भाषियों के साथ इस तरह की घटनाएं आम हो गई हैं.
फाल्गुनी नायर की कंपनी नायका ने टाटा समूह की कंपनी टाटा क्लिक के सीईओ के खिलाफ अदालत में केस दर्ज किया है.
टाटा समूह और फैशन एवं ब्यूटी ब्रैंड नायका (Nykaa) आमने-सामने आ गए हैं. बात इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि मामला कोर्ट-कचहरी तक पहुंच गया है. नायका ने टाटा ग्रुप की कंपनी टाटा क्लिक (Tata Cliq) पर कॉन्ट्रैक्ट ब्रीच का आरोप लगाया है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, फाल्गुनी नायर (Falguni Nair) की इस कंपनी ने टाटा क्लिक के सीईओ गोपाल अस्थाना पर केस दायर किया है.
ये है पूरा मामला
अब ऐसा क्यों हुआ यह भी समझ लेते हैं. दरअसल, गोपाल अस्थाना टाटा क्लिक में आने से पहले नायका में चीफ बिजनेस ऑफिसर (CBO) थे. टाटा क्लिक भी फैशन से जुड़ी हुई है. नायका का आरोप है कि अस्थाना पर गोपनीयता भंग करने, मालिकाना डेटा के दुरुपयोग और इसके व्यवसाय को नुकसान पहुंचाने वाले काम किए हैं. आरोप यह भी है कि अस्थाना ने टाटा क्लिक में शामिल होने के लिए नायका के उन कई कर्मचारियों से संपर्क किया, जो पहले उनके अधीन काम करते थे.
मांगे इतने करोड़
नायका ने इस संबंध में बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर की है. अपनी याचिका में फाल्गुनी नायर की कंपनी ने दावा किया है कि उसने अस्थाना को लॉन्ग टर्म इन्सेंटिव और स्टॉक ऑप्शन सहित काफी पैसा दिया है. अस्थाना को एम्प्लॉयी स्टॉक ऑप्शन के रूप में मिले 19 करोड़, गुडविल और अन्य बिजनेस मेट्रिक्स के नुकसान के तौर पर 5 करोड़ रुपए वापस करना चाहिए.
बड़ा नाम हैं अस्थाना
नायका ने कोर्ट से अनुरोध किया कि अस्थाना को टाटा क्लिक में अपने काम के लिए नायका के किसी भी व्यावसायिक डेटा का इस्तेमाल से रोका जाए. बता दें कि फैशन एवं रिटेल सेक्टर में गोपाल अस्थाना एक बड़ा नाम हैं. 1998 में उन्होंने शॉपर्स स्टॉप के साथ अपना करियर शुरू किया था. यहां उन्होंने विभिन्न पदों पर 21 साल से ज्यादा काम किया. नवंबर 2019 में उन्होंने नायका फैशन में सीबीओ की जिम्मेदारी संभाली. यहां 3 साल 8 महीने काम करने के बाद अस्थाना 2023 में टाटा के ईकॉमर्स वेंचर टाटा क्लिक का हिस्सा बन गए.
देश में तेजी से पनपती बुलडोजर संस्कृति पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है. अदालत ने स्पष्ट किया है कि किसी भी सूरत में घर नहीं ढहा सकते.
इधर, आरोप और उधर घर जमींदोज. यह नज़ारा देश में अब आम हो गया है. उत्तर प्रदेश से लेकर मध्य प्रदेश तक देश के कई राज्यों में सरकारी बुलडोजर अदालतों का काम कर रहा है. इस बुलडोजर संस्कृति पर अब सुप्रीम कोर्ट ने बेहद सख्त रुख अख्तियार किया है. सर्वोच्च अदालत ने साफ शब्दों में कहा है कि किसी भी सूरत में इमारत नहीं ढहाई जाएगी.
कोर्ट का कड़ा रुख
दरअसल, जमीयत उलेमा ए हिन्द की तरफ से अदालत में सरकार की बुलडोजर संस्कृति के खिलाफ याचिका दायर की गई हैं. शिकायतकर्ता का कहना है कि बदले की कार्रवाई के तहत बगैर नोटिस दिए घर गिराए जा रहे हैं. याचिका में यूपी, मध्यप्रदेश और राजस्थान में हाल में हुई बुलडोजर कार्रवाइयों का उल्लेख करते हुए अल्पसंख्यक समुदाय को टारगेट किए जाने का आरोप लगाया गया है. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख अख्तियार करते हुए स्पष्ट किया है कि अगर कोई व्यक्ति दोषी साबित हो भी जाए, तो भी इमारत नहीं ढहाई जाएगी.
17 को अगली सुनवाई
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने सुनवाई करते हुए कहा कि कोई आरोपी है, सिर्फ इसलिए एक घर को कैसे गिराया जा सकता है? अगर वह दोषी है, तो भी इसे नहीं गिराया जा सकता. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि म्युनिसिपल नियमों के मुताबिक ही नोटिस देकर अवैध निर्माण को ढहाई गई हैं. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम इस बारे में दिशानिर्देश बनाएंगे, जिसका सभी राज्य पालन करें. सुप्रीम कोर्ट इस मामले में अगली सुनवाई अब 17 सितंबर को करेगा.
लगातार सामने आए मामले
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि वो किसी भी अवैध संरचना को सुरक्षा नहीं प्रदान करेगा, जो सार्वजनिक सड़कों को अवरुद्ध कर रही हो. कोर्ट ने इस बारे में संबंधित पक्षों से सुझाव मांगे हैं. बता दें कि एमेनेस्टी इंटरनेशनल की फरवरी 2024 की रिपोर्ट बताती है कि अप्रैल 2022 से जून 2023 के बीच दिल्ली, असम, गुजरात, मध्यप्रदेश और यूपी में सांप्रदायिक हिंसा के बाद 128 संपत्तियों को जमींदोज किया गया. इतना ही नहीं, मध्यप्रदेश में एक आरोपी के पिता की संपत्ति पर बुलडोजर चलवा दिया गया. हाल ही में राजस्थान के उदयपुर में बच्चों के झगड़े में आरोपी के घर पर भी बुलडोजर चलाया गया था.
बाबा रामदेव एक नए मामले में फंस गए हैं. उनकी कंपनी के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है.
लगता है मुश्किलों ने बाबा रामदेव (Baba Ramdev) को परेशान करने का आसन सीख लिया है. अब बाबा फिर बड़ी परेशानी में फंस गए हैं. दिल्ली हाई कोर्ट ने रामदेव की कंपनी पतंजलि के खिलाफ कार्रवाई के अनुरोध पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है. दरअसल, पतंजलि के दिव्य दंत मंजन को शाकाहारी ब्रैंड के रूप में पेश करने के खिलाफ अदालत में याचिका दायर की गई है. याचिकाकर्ता का दावा है कि पतंजलि के इस उत्पाद में मछली का अर्क है, जो मांसाहारी है.
शाकाहारी उत्पाद नहीं
शिकायतकर्ता ने अपनी याचिका में कहा है कि बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि 'दिव्य दंत मंजन' को हरे रंग के डॉट के साथ बेचती है, जो दर्शाता है कि यह उत्पाद शाकाहारी है. लेकिन इस दंत प्रोडक्ट में मछली का अर्क शामिल है और वो मांसाहारी है. लिहाजा, कंपनी को दिव्य दंत मंजन को शाकाहारी बताकर बेचने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए.
गलत ब्रांडिंग का आरोप
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, जस्टिस संजीव नरूला ने वकील यतिन शर्मा की याचिका पर केंद्र सरकार, भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) के साथ-साथ पतंजलि, दिव्य फार्मेसी, योग गुरु बाबा रामदेव और अन्यों को नोटिस जारी किया है. याचिकाकर्ता का कहना है कि कानून में किसी दवा को शाकाहारी या मांसाहारी घोषित करने का प्रावधान नहीं है, लेकिन दिव्य दंत मंजन की पैकेजिंग पर गलत ढंग से हरा डॉट दर्शाना औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम में गलत ब्रांडिंग के तहत आता है. इस मामले की अगली सुनवाई नवंबर में होगी.
धार्मिक विश्वास के खिलाफ
याचिकाकर्ता का कहना है कि पतंजलि के उत्पाद में समुद्र फेन (सीपिया ऑफिसिनेलिस) है, जो मछली के अर्क से प्राप्त होता है. ऐसे में इस उत्पाद को शाकाहारी बताना, ऐसे लोगों के धार्मिक विश्वास और आस्था के खिलाफ जो केवल शाकाहारी सामग्री/उत्पादों का उपभोग करते हैं. गौरतलब है कि पतंजलि को लेकर रामदेव पिछले कुछ समय से अदालतों की फटकार का सामना कर रहे हैं. पतंजलि आयुर्वेद के भ्रामक विज्ञापन को लेकर उन्हें सुप्रीम कोर्ट ने कई बार लताड़ लगाई थी. बाबा रामदेव और उनके सहयोगी बालकृष्ण को कोर्ट में पेश होकर माफी तक मांगनी पड़ गई थी.
बॉम्बे हाई कोर्ट ने ट्रेडमार्क उल्लंघन के एक मामले में पुणे स्थित बर्गर किंग रेस्तरां पर ब्रैंड का नाम इस्तेमाल करने पर रोक लगा दी.
अगर आप बर्गर किंग (Burger King) के आउटलेट में जाकर बर्गर खाते हैं, तो ये खबर आपके इंटरस्ट की हो सकती है. दरअसल, ‘बर्गर किंग' नाम को लेकर अमेरिकी की दिग्गज फास्ट-फूड कंपनी और पुणे में बर्गर की एक फेमस दुकान के बीच चले आ रहे मुकदमे में हाईकोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाया है. बॉम्बे हाई कोर्ट ने रेस्तरां को 'बर्गर किंग' नाम का उपयोग करने की अनुमति देने वाले पुणे ट्रायल कोर्ट के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी है. आइए जानते हैं ये पूरा मामला क्या है और अब कोर्ट ने इसमें क्या फैसला सुनाया है?
पुणे ट्रायल कोर्ट के खिलाफ हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया
पिछले हफ्ते बर्गर किंग ने बॉम्बे हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की थी. इस याचिका में कंपनी ने पुणे के ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी. दरअसल, पुणे ट्रायल कोर्ट ने पुणे स्थित बर्गर किंग रेस्तरां के खिलाफ ट्रेडमार्क उल्लंघन का आरोप वाले मुकदमे को खारिज कर दिया था और रेस्तरां को बर्गर किंग नाम का इस्तेमाल करने की अनुमति दे दी थी. ऐसे में जिला अदालत से मुकदमा खारिज होने के बाद बर्गर किंग ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.
बॉम्बे हाई कोर्ट ने लगाई रोक
अमेरिकी फास्टफूड कंपनी बर्गर किंग की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने सोमवार को पुणे स्थित बर्गर किंग नाम के एक रेस्तरां पर ब्रैंड का नाम इस्तेमाल करने पर रोक लगा दी है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार बर्गर किंग की याचिका पर न्यायमूर्ति एएस. चंदुरकर और न्यायमूर्ति राजेश पाटिल की खंडपीठ ने सोमवार यानी 26 अगस्त 2024 को कहा कि कोर्ट 6 सितंबर को कंपनी की अर्जी पर सुनवाई करेगी और तब तक रेस्तरां ब्रैंड के नाम का इस्तेमाल नहीं करेगा. कंपनी ने रेस्तरां के खिलाफ अंतरिम निषेधाज्ञा की मांग की अर्जी दी है. वहीं, कंपनी ने कहा कि रेस्तरां भी "बर्गर किंग" नाम का इस्तेमाल कर रहा है, जिससे कंपनी को कारोबार में नुकसान के साथ उसकी प्रतिष्ठा को भी नुकसान पहुंच रहा है.
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2011 में दायर में हुआ था मुकदमा
बर्गर किंग कॉरपोरेशन ने साल 2011 में पुणे अदालत में मुकदमा दायर किया था. इस मुकदमें में कंपनी ने कहा था कि पुणे का एक रेस्तरां "बर्गर किंग" नाम का इस्तेमाल कर रहा है, जबकि भारत में बर्गर किंग आउटलेट की शुरूआत करने से भी पहले अमेरिकी में बर्गर किंग कंपनी खुल गई थी. पुणे कोर्ट के अंतरिम आदेश के बाद अब कंपनी ने हाई कोर्ट में आवेदन दिया है..
यहां से हुई बर्गर किंग नाम की लड़ाई की शुरुआत
ये पूरा मामला 2008 का है, जब अमेरिकी कंपनी ने अपने पिछले वैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए एक चेतावनी जारी की थी. अमेरिकी कंपनी को पता चला था कि पुणे स्थित "बर्गर किंग" रेस्तरां जो अनाहिता और शापूर ईरानी का था, उन्होंने ट्रेडमार्क के लिए आवेदन दायर किया हुआ है. 2009 में अमेरिकी कंपनी ने कैंप और कोरेगांवपार्क में स्थित पुणे के भोजनालयों के मालिकों को नोटिस भेजा, लेकिन उन्होंने इसका विरोध किया और अमेरिकी कंपनिय कंपनियों के कानूनी अधिकारों को नकार दिया. ईरानी दंपती ने दावा किया था कि वह 1989 से अपनी एक दुकान चला रहे हैं और 1992 से बर्गर किंग नाम का उपयोग कर रहे हैं. पत्नी और पति ने कहा कि उन्हें अमेरिकी दिग्गज कंपनी के अस्तित्व के बारे में भी पता नहीं था.
प्रवर्तन निदेशालय और सीबीआई को बड़ा झटका लगा है. सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली शराब घोटाले से जुड़े एक मामले में BRS लीडर के. कविता को जमानत दे दी है.
दिल्ली के कथित शराब घोटाले से जुड़े एक मामले में के. कविता (K Kavitha) को सुप्रीम कोर्ट ने 'सुप्रीम' राहत प्रदान की है. अदालत ने आज यानी मंगलवार को भारत राष्ट्र समिति (BRS) लीडर के. कविता को ईडी और सीबीआई द्वारा दर्ज केस में जमानत दे दी. कोर्ट ने दोनों केस में 10-10 लाख रुपए के बॉन्ड पर उन्हें जमानत दी है. जमानत की शर्तों के तहत BRS लीडर को अपना पासपोर्ट निचली अदालत के पास जमा करना होगा.
5 महीने से जेल में बंद
दिल्ली शराब घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) और सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टीगेशन (CBI) ने के. कविता के खिलाफ केस दर्ज किया है. सुप्रीम कोर्ट ने BRS लीडर की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि कविता पांच महीने से जेल में बंद हैं. केस में 493 गवाह और 50000 दस्तावेज हैं. ऐसे में जल्द ट्रायल पूरा होने की उम्मीद नहीं है. कानून में महिलाओं के लिए जमानत के संबंध में विशेष बर्ताव का प्रावधान है. इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के जमानत ना देने के फैसला को रद्द कर दिया.
साक्ष्य पेश करें एजेंसियां
इस दौरान कोर्ट ने ED और सीबीआई से कहा कि वे शराब घोटाले में कविता की संलिप्तता सिद्ध करने के लिए साक्ष्य पेश करें. कविता की पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने इस तर्क के साथ जमानत मांगी कि पहले ही दो जांच एजेंसियों ने उनके मुवक्किल के खिलाफ जांच पूरी कर ली है. अदालत ने इस दलील को स्वीकार करते हुए कविता को बेल पर मुहर लगा दी. बता दें कि के. कविता को इसी साल मार्च में ED ने गिरफ्तार किया था. इसके बाद सीबीआई ने भी उन्हें गिरफ्तार कर लिया था.
कैसे सामने आया नाम?
के. कविता तेलंगाना के पूर्व मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव की बेटी हैं. दिल्ली के कथित शराब घोटाले से उनके कनेक्शन को लेकर ईडी का दावा है कि कविता शराब कारोबारियों की 'साउथ ग्रुप' लॉबी से कनेक्टेड हैं. इस ग्रुप ने दिल्ली सरकार की 2021-22 की शराब नीति (एक्साइज पॉलिसी) में बड़ी भूमिका निभाई थी. जांच एजेंसी का दावा है कि शराब घोटाले के आरोपी विजय नायर को कथित रूप से 100 करोड़ रुपए की रिश्वत साउथ ग्रुप से ही मिली थी, जिसे संबंधित लोगों उपलब्ध कराया गया. ईडी हैदराबाद के कारोबारी अरुण रामचंद्रन पिल्लई और कविता का आमना-सामना भी करवा चुकी है. पिल्लई को कविता का करीबी माना जाता है. एक रिपोर्ट के अनुसार, अरुण रामचंद्रन ने पूछताछ में बताया था कि कविता और आम आदमी पार्टी के बीच एक समझौता हुआ था, जिसके तहत 100 करोड़ रुपए का लेन-देन हुआ और कविता की कंपनी 'इंडोस्पिरिट्स' को दिल्ली के शराब कारोबार में एंट्री मिली.
क्या है 'साउथ ग्रुप'?
पिछले साल फरवरी में CBI ने बुचीबाबू गोरंतला नामक व्यक्ति को इस मामले में गिरफ्तार किया था. ED ने भी बुचीबाबू से का बयान दर्ज किया था. माना जाता है कि बुचीबाबू कविता का अकाउंट संभाला करता था. ED के मुताबिक, 'साउथ ग्रुप' दक्षिण के राजनेताओं, कारोबारियों और नौकरशाहों का समूह है. इसमें सरथ रेड्डी, एम. श्रीनिवासुलु रेड्डी, उनके बेटे राघव मगुंटा और कविता शामिल हैं. जबकि इस ग्रुप का प्रतिनिधित्व अरुण पिल्लई, अभिषेक बोइनपल्ली और बुचीबाबू ने किया था, तीनों को ही शराब घोटाले में गिरफ्तार किया जा चुका है. ED ने इस मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल , दिल्ली के पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया और आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह को भी गिरफ्तार किया था. सिसोदिया और संजय सिंह को पहले ही जमानत मिल चुकी है.
क्या है शराब घोटाला?
दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने 17 नवंबर 2021 को एक्साइज पॉलिसी 2021-22 लागू की थी. नई नीति के तहत, सरकार शराब कारोबार से बाहर आ गई और पूरी दुकानें निजी हाथों में सौंप दी गईं. सरकार का दावा था कि नई शराब नीति से माफिया राज पूरी तरह खत्म हो जाएगा और उसके रिवेन्यु में बढ़ोतरी होगी. हालांकि, ये नीति शुरू से ही विवादों में रही. जब बवाल ज्यादा बढ़ गया तो 28 जुलाई 2022 को केजरीवाल सरकार ने इसे रद्द करने का फैसला लिया. इस कथित शराब घोटाले का खुलासा 8 जुलाई 2022 को दिल्ली के तत्कालीन मुख्य सचिव नरेश कुमार की रिपोर्ट से हुआ था. तब से अब तक ED और सीबीआई इस मामले में कार्रवाई कर रही हैं.
टेलीग्राम के सीईओ और संस्थापक पवेल डुरोव को पेरिस के बॉर्गेट हवाई अड्डे पर अरेस्ट किया गया है. जानिए कौन हैं पवेल डुरोव.
टेलीग्राम मैसेजिंग ऐप के फाउंडर एवं सीईओ पावेल डुरोव को फ्रांस को पेरिस के बाहर स्थित बार्गेट एयरपोर्ट पर गिरफ्तार कर लिया गया. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक डुरोव के खिलाफ पहले से ही वारंट जारी था और जब वह अपने प्राइवेट जेट से फ्रांस पहुंचे तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. फ्रांस में टेलीग्राम पर कंटेंट मॉडरेशन में कमी बरतने का आरोप लगा है और फ्रांस पुलिस ने दावा किया है कि उनके प्लेटफॉर्म के जरिए कई गैर कानूनी कार्य जैसे ड्रग तस्करी, यौन शोषण संबंधित सामग्री साझा करना और मनी लॉड्रिंग जैसे कई कार्यों को अंजाम दिया जा रहा था. इसी मामले में अब फ्रांस पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया है.
20 साल की हो सकती है सजा
टेलीग्राम ने अभी तक स्थिति पर कोई टिप्पणी नहीं की है. वहीं, फ्रांसीसी आंतरिक मंत्रालय और पुलिस ने भी चुप्पी बरती है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, डुरोव को अजरबैजान से विमान से आने के बाद गिरफ्तार किया गया था. डुरोव के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट केवल फ्रांस की धरती पर ही वैध था. गिरफ्तारी से बचने के लिए अरबपति व्यवसायी ने आमतौर पर फ्रांस और यूरोप यात्रा से दूरी बरत रहे थे. फिलहाल, यह पता नहीं चला है कि वह फ्रांस में किसलिए उतरने थे. उनके खिलाफ आतंकवाद, मादक पदार्थों की आपूर्ति, धोखाधड़ी, मनी लॉण्ड्रिंग और अन्य आरोप हैं. मीडिया ने दावा किया कि डुरोव को इन आरोपों में 20 साल तक की जेल हो सकती है.
कौन हैं Pavel Durov?
पावेल डुरोव (Pavel Durov) रूस में जन्मे हैं. 39 वर्षीय डुरोव मैसेजिंग ऐप टेलीग्राम के संस्थापक और मालिक के रूप में जाने जाते हैं. डूरोव की संपत्ति फोर्ब्स द्वारा 15.5 बिलियन डॉलर आंकी गई थी उन्होंने 2014 में रूस छोड़ दिया था, क्योंकि उन्होंने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म (VKontakte social media platform) पर विपक्षी समुदायों को बंद करने की सरकार की मांग को मानने से इनकार कर दिया था. बाद में पावेल डुरोव ने इसे बेच दिया था, रूसी और फ्रांसीसी मीडिया का कहना है कि डुरोव 2021 में फ्रांसीसी नागरिक बन गए, उन्होंने 2017 में खुद को और टेलीग्राम को दुबई में शिफ्ट कर दिया था.
डुरोव के पास कितनी संपत्ति?
फोर्ब्स ने डुरोव की संपत्ति 15.5 अरब डॉलर आंकी है. डुरोव ने अप्रैल में अमेरिकी पत्रकार टकर कार्लसन के साथ एक साक्षात्कार में रूस से बाहर निकलने और कंपनी के लिए घर की तलाश के बारे में बताया. इसमें बर्लिन, लंदन, सिंगापुर और सैन फ्रांसिस्को में काम करना शामिल था, उन्होंने कहा था कि वह किसी से आदेश लेने के बजाय स्वतंत्र रहना पसंद करेंगे. इसी साक्षात्कार में डुरोव ने कहा कि पैसे या बिटकॉइन के अलावा उनके पास रीयल एस्टेट, जेट या याट जैसी कोई बड़ी संपत्ति नहीं है, क्योंकि वह आजाद रहना चाहते हैं.