देश में तेजी से पनपती बुलडोजर संस्कृति पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है. अदालत ने स्पष्ट किया है कि किसी भी सूरत में घर नहीं ढहा सकते.
इधर, आरोप और उधर घर जमींदोज. यह नज़ारा देश में अब आम हो गया है. उत्तर प्रदेश से लेकर मध्य प्रदेश तक देश के कई राज्यों में सरकारी बुलडोजर अदालतों का काम कर रहा है. इस बुलडोजर संस्कृति पर अब सुप्रीम कोर्ट ने बेहद सख्त रुख अख्तियार किया है. सर्वोच्च अदालत ने साफ शब्दों में कहा है कि किसी भी सूरत में इमारत नहीं ढहाई जाएगी.
कोर्ट का कड़ा रुख
दरअसल, जमीयत उलेमा ए हिन्द की तरफ से अदालत में सरकार की बुलडोजर संस्कृति के खिलाफ याचिका दायर की गई हैं. शिकायतकर्ता का कहना है कि बदले की कार्रवाई के तहत बगैर नोटिस दिए घर गिराए जा रहे हैं. याचिका में यूपी, मध्यप्रदेश और राजस्थान में हाल में हुई बुलडोजर कार्रवाइयों का उल्लेख करते हुए अल्पसंख्यक समुदाय को टारगेट किए जाने का आरोप लगाया गया है. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख अख्तियार करते हुए स्पष्ट किया है कि अगर कोई व्यक्ति दोषी साबित हो भी जाए, तो भी इमारत नहीं ढहाई जाएगी.
17 को अगली सुनवाई
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने सुनवाई करते हुए कहा कि कोई आरोपी है, सिर्फ इसलिए एक घर को कैसे गिराया जा सकता है? अगर वह दोषी है, तो भी इसे नहीं गिराया जा सकता. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि म्युनिसिपल नियमों के मुताबिक ही नोटिस देकर अवैध निर्माण को ढहाई गई हैं. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम इस बारे में दिशानिर्देश बनाएंगे, जिसका सभी राज्य पालन करें. सुप्रीम कोर्ट इस मामले में अगली सुनवाई अब 17 सितंबर को करेगा.
लगातार सामने आए मामले
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि वो किसी भी अवैध संरचना को सुरक्षा नहीं प्रदान करेगा, जो सार्वजनिक सड़कों को अवरुद्ध कर रही हो. कोर्ट ने इस बारे में संबंधित पक्षों से सुझाव मांगे हैं. बता दें कि एमेनेस्टी इंटरनेशनल की फरवरी 2024 की रिपोर्ट बताती है कि अप्रैल 2022 से जून 2023 के बीच दिल्ली, असम, गुजरात, मध्यप्रदेश और यूपी में सांप्रदायिक हिंसा के बाद 128 संपत्तियों को जमींदोज किया गया. इतना ही नहीं, मध्यप्रदेश में एक आरोपी के पिता की संपत्ति पर बुलडोजर चलवा दिया गया. हाल ही में राजस्थान के उदयपुर में बच्चों के झगड़े में आरोपी के घर पर भी बुलडोजर चलाया गया था.
पूर्व क्रिकेटर मोहम्मद अजहरुद्दीन को प्रवर्तन निदेशालय ने समन भेजकर पूछताछ के लिए बुलाया है. अजहर आज ED के सामने पेश हो सकते हैं.
टीम इंडिया के पूर्व कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन (Mohammad Azharuddin) मुश्किल में पड़ गए हैं. हैदराबाद क्रिकेट एसोसिएशन (HCA) से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने उन्हें तलब किया है. अजहरुद्दीन सितंबर 2019 में HCA अध्यक्ष चुने गए थे और जून 2021 में उन्हें अपना पद छोड़ना पड़ा था. ED कांग्रेस नेता और पूर्व क्रिकेटर अजहरुद्दीन से आमने-सामने सवाल करना चाहती है, इसलिए उन्हें समन भेजा गया है. अजहर आज ED के समक्ष पेश हो सकते हैं.
पूर्व CEO ने की थी शिकायत
जानकारी के मुताबिक, हैदराबाद में राजीव गांधी क्रिकेट स्टेडियम के लिए डीजल जनरेटर, अग्निशमन प्रणाली और छतरियों की खरीद के लिए आवंटित धनराशि में करीब 20 करोड़ रुपए की की हेराफेरी हुई थी. प्रवर्तन निदेशालय ने हैदराबाद क्रिकेट एसोसिएशन के अधिकारियों के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग का केस दर्ज किया था. इसके अलावा, ED ने तेलंगाना में 9 स्थानों पर छापेमारी करके कई महत्वपूर्ण दस्तावेज और डिजिटल उपकरण बरामद किए थे. गौरतलब है कि HCA के CEO सुनीलकांत बोस ने इस मामले में अजहरुद्दीन के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायत की है.
3 मामलों में मिली है बेल
पिछले साल नवंबर में अदालत ने हैदराबाद क्रिकेट एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष मोहम्मद अजहरुद्दीन को पुलिस द्वारा दर्ज तीन अलग-अलग आपराधिक मामलों में अग्रिम जमानत दी थी. पुलिस ने अजहर सहित अन्य पर स्टेडियम के लिए क्रिकेट बॉल, जिम इक्विपमेंट और अग्निशमन यंत्र खरीदने में अनियमितता बरतने का आरोप लगाया है. उस समय कांग्रेस नेता के वकील ने दलील दी थी कि अजहर को केवल इसलिए आरोपी बनाया, क्योंकि वह संबंधित अवधि में एचसीए के अध्यक्ष थे. बता दें कि 61 साल के मोहम्मद अजहरुद्दीन पर मैच फिक्सिंग के आरोप भी लग चुके हैं.
NDTV मीडिया ग्रुप अब अडानी समूह के पास है. कुछ साल पहले अडानी ने NDTV का अधिग्रहण कर लिया था.
अडानी समूह के एनडीटीवी के अधिग्रहण से पहले केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) एक पुराने मामले में कंपनी के पूर्व निदेशक एवं प्रमोटर प्रणय रॉय और राधिका रॉय के खिलाफ शिकंजा कसने में लगी थी. लेकिन अब उसने इस मामले को बंद कर दिया है. CBI की तरफ से बताया गया है कि सबूतों के अभाव में उसने यह केस बंद कर दिया है. जांच एजेंसी का यह कदम प्रणय और राधिका रॉय के लिए बड़ी राहत है.
2017 में दर्ज हुई थी FIR
एनडीटीवी के पूर्व निदेशक एवं प्रमोटर प्रणय और राधिका रॉय के खिलाफ 2017 में आईसीआईसीआई बैंक को जानबूझकर 48 करोड़ से अधिक का नुकसान पहुंचाने का मामला दर्ज किया गया था. यह मामला 2009 में रॉय द्वारा आईसीआईसीआई बैंक से लिए गए 48 करोड़ रुपए के कथित बैंक लोन डिफॉल्ट से संबंधित था. सीबीआई ने अपनी FIR में बताया था कि प्रणय रॉय ने आरआरपीआर होल्डिंग्स प्राइवेट लिमिटेड नामक कंपनी के लिए लिए गए लोन को डिफॉल्ट किया.
ED ने भी कसा था शिकंजा
सीबीआई के केस दर्ज करने के बाद प्रवर्तन निदेशालय ने भी रॉय दंपत्ति पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया था. CBI ने क्वांटम सिक्योरिटीज लिमिटेड के संजय दत्त की शिकायत के आधार पर 2017 में FIR दर्ज की थी, जिसमें यह आरोप भी लगाया गया था कि आरआरपीआर होल्डिंग्स प्राइवेट लिमिटेड ने एनडीटीवी में 20% हिस्सेदारी हासिल करने के लिए इंडिया बुल्स प्राइवेट लिमिटेड से 500 करोड़ का कर्ज लिया था. अब सीबीआई का कहना है कि उसके पास प्रणय और राधिका रॉय के खिलाफ कोई सबूत नहीं हैं, लिहाजा केस को बंद किया जा रहा है. बता दें कि अडानी समूह ने 2022 में NDTV का अधिग्रहण किया था.
मद्रास हाई कोर्ट ने एक पिता की याचिका पर ईशा फाउंडेशन के सद्गुरु जग्गी वासुदेव से बेहद तल्ख सवाल पूछे हैं. याचिकाकर्ता का आरोप है कि उनकी बेटियों का ब्रेन वॉश किया गया है.
ईशा फाउंडेशन के सद्गुरु जग्गी वासुदेव पर मद्रास हाई कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी की है. कोर्ट ने पूछा है कि जब सद्गुरु की बेटी शादीशुदा है, तो वह दूसरी लड़कियों को सिर मुंडवाने, सांसरिक जीवन त्यागने और अपने योग केंद्रों में संन्यासी की तरह जीवन जीने के लिए क्यों प्रोत्साहित कर रहे हैं? दरअसल, कोयंबटूर की एक एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के रिटायर्ड प्रोफेसर एस कामराज ने हाई कोर्ट में याचिका दायर करके आरोप लगाया है कि उनकी दो पढ़ी-लिखी बेटियों का ब्रेनवॉश कर ईशा फाउंडेशन के योग केंद्र रखा गया है.
यह बेंच कर रही है सुनवाई
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार रिटायर्ड प्रोफेस की हेबियस कॉर्पस (बंदी प्रत्यक्षीकरण) याचिका पर सुनवाई के दौरान, जस्टिस एसएम सुब्रह्मण्यम और जस्टिस वी शिवागणनम की बेंच ने सद्गुरु से पूछा कि वह युवतियों को संन्यास के तौर-तरीके अपनाने को क्यों कह रहे हैं? बेंच ने कहा कि जब सद्गुरु की अपनी बेटी शादीशुदा है और अच्छा जीवन व्यतीत रही है, तो वह अन्य युवतियों को सिर मुंडवाने, सांसरिक जीवन त्यागने और अपने योग केंद्रों में संन्यासी की तरह जीवन जीने के लिए क्यों प्रोत्साहित कर रहे हैं?
मामले की जांच का फैसला
याचिकाकर्ता का कहना है कि उनकी दोनों बेटियों की उम्र 42 और 39 साल है. उनका ब्रेनवॉश करके ईशा फाउंडेशन के योग केंद्र रखा गया है. हालांकि, कोर्ट में मौजूद दोनों युवतियां ने कहा कि वे कोयंबटूर के योग केंद्र में अपनी मर्जी से रह रही हैं और उन्हें किसी ने बंदी नहीं बनाया है. मद्रास हाई कोर्ट ने युवतियों से कुछ देर तक बातचीत करने के बाद इस मुद्दे की आगे जांच करने का फैसला किया है.
हमसे पूर्ण न्याय की उम्मीद
हाई कोर्ट के जांच के फैसले पर ईशा फाउंडेशन के वकील ने कहा कि कोर्ट इस मामले का दायरा नहीं बढ़ा सकती. इस पर जस्टिस सुब्रमण्यम ने जवाब दिया कि संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत रिट क्षेत्राधिकार का इस्तेमाल करते हुए अदालत से पूर्ण न्याय की उम्मीद की जाती है और मामले की तह तक जाना बेहद जरूरी है. हाई कोर्ट ने कहा कि अदालत को मामले के संबंध में कुछ शक हैं. हम जानना चाहते हैं कि एक शख्स जिसने अपनी बेटी की शादी कर दी, वह दूसरों की बेटियों को अपना सिर मुंडवाने और संन्यासियों का जीवन जीने के लिए प्रोत्साहित क्यों कर रहा है?
क्या यह पाप नहीं है?
सुनवाई के दौरान जब दोनों युवतियों ने अपना बयान देने की मांग की तो बेंच ने उनसे पूछा कि आप आध्यात्म के मार्ग पर चलने की बात कह रही हैं. क्या अपने माता-पिता के नजरअंदाज करना पाप नहीं है? भक्ति का मूल यह है कि सभी से प्यार करो और किसी से नफरत न करो, लेकिन हम आपमें अपने परिजनों के लिए नफरत देख रहे हैं. आप उन्हें सम्मान देकर बात तक नहीं कर रही हैं. वहीं, याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट को बताया कि ईशा फाउंडेशन के खिलाफ कई आपराधिक मामले चल रहे हैं और हाल ही में वहां काम कर रहे एक डॉक्टर के खिलाफ पॉक्सो एक्ट में केस दर्ज हुआ है.
नर्क जैसी हुई जिंदगी
रिटायर्ड प्रोफेसर एस कामराज ने अपनी याचिका में कहा है कि उनकी बेटी ने ब्रिटेन से एमटेक की डिग्री हासिल की और अच्छी सैलरी कमा रही थी. 2007 में उसने ब्रिटेन के ही एक व्यक्ति से शादी की, लेकिन 2008 में तलाक के बाद उसने ईशा फाउंडेशन के योग केंद्र में हिस्सा लेना शुरू किया. उसको देखकर छोटी बेटी भी योग केंद्र में रहने लगी. उन्होंने आगे कहा कि जब से बेटियों ने हमें छोड़ा है, हमारी जिंदगी नर्क जैसी हो गई है. प्रोफेसर ने आरोप लगाते हुए कहा कि योग केंद्र में उनकी बेटियों को कुछ ऐसा दिया जा रहा था, जिससे उनकी सोचने-समझने की शक्ति खत्म हो गई.
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने एक लैब रिपोर्ट के आधार पर आरोप लगाया है कि पिछली सरकार के कार्यकाल में पशु चर्बी युक्त घी का इस्तेमाल प्रसाद के लड्डू बनाने में हुआ था.
तिरुपति लड्डू विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने आज आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की जमकर खिंचाई की. सर्वोच्च अदालत ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा है कि संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों से उम्मीद की जाती है कि वह भगवान को राजनीति से दूर रखेंगे. अदालत तिरुपति मंदिर में प्रसाद स्वरूप मिलने वाले लड्डुओं में पशु चर्बी के आरोपों से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है.
रिपोर्ट भी स्पष्ट नहीं है
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने सोमवार को सुनवाई के दौरान आंध्र प्रदेश के चीफ मिनिस्टर को आड़े हाथ लिया. बेंच ने कहा कि जब आप (मुख्यमंत्री) संवैधानिक पद पर होते हैं, तो हम उम्मीद करते हैं कि आप भगवान को राजनीति से दूर रखेंगे. यदि आपने पहले ही जांच के आदेश दे दिए थे, तो प्रेस के पास जाने की क्या जरूरत थी? लैब की रिपोर्ट जुलाई में आई, जबकि आपका बयान सितंबर में और रिपोर्ट भी एकदम स्पष्ट नहीं थी.
...तो प्रेस में क्यों गए?
शीर्ष न्यायालय ने आगे कहा कि लैब की रिपोर्ट से संकेत मिले हैं कि जिस घी की जांच की गई है, वो रिजेक्ट किया हुआ घी था. SC ने आंध्र सरकार से पूछा कि क्या मानकों पर खरे नहीं उतरे घी का इस्तेमाल प्रसाद में किया जा रहा था? इस पर राज्य सरकार के प्रतिनिधि ने कहा कि मामले की जांच चल रही है. यह जवाब सुनने के बाद शीर्ष अदालत ने कहा कि तो तत्काल प्रेस के पास जाने की क्या जरूरत थी?
सरकार से मांगा सबूत
अदालत ने जब राज्य सरकार से इसका सबूत मांगा कि लड्डू में इस्तेमाल हो रहा घी खऱाब था, तो आंध्र के वकील सिद्धार्थ लूथरा ने जवाब दिया कि लोगों ने शिकायत की थी लड्डू का स्वाद ठीक नहीं है. इस पर अदालत ने कहा कि जनता को इसकी जानकारी नहीं थी, आपने इसे लेकर बयान दिया है. कोर्ट ने यह भी कहा कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि प्रसादम में पशु चर्बी युक्त दूषित घी का इस्तेमाल हुआ था.
नायडू ने लगाया है आरोप
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि प्रथम दृष्टया फिलहाल यह बताने के लिए कुछ भी नहीं है कि सैंपल के लिए लिया गया घी लड्डुओं में भी इस्तेमाल हुआ था. कोर्ट ने कहा कि सैंपल में सोयाबीन का तेल भी हो सकता है. यहां यह दिखाने के लिए क्या है कि घी में किस चीज का इस्तेमाल हुआ था? मामले की अगली सुनवाई 3 अक्तूबर को होगी. बता दें कि आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने एक लैब रिपोर्ट के आधार पर आरोप लगाया है कि पिछली सरकार के कार्यकाल में पशु चर्बी युक्त घी का इस्तेमाल प्रसाद के लड्डू बनाने में हुआ था.
केंद्रीय जांच एजेंसी ने कॉक्स एंड किंग्स से जुड़े मामले की जांच मुंबई पुलिस ने अपने हाथों में के की है. साथ ही एजेंसी ने कुछ लोगों के खिलाफ केस भी दर्ज किया है.
ट्रेवल कंपनी कॉक्स एंड किंग्स (Cox & Kings) के प्रमोटर्स और डायरेक्टर्स पर केंद्रीय जांच एजेंसी (CBI) ने शिकंजा कस लिया है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, CBI ने उनके खिलाफ 525 करोड़ रुपए की बैंक ऋण धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया है. जांच एजेंसी ने ऐसा प्राइवेट सेक्टर के Yes Bank की शिकायत के आधार पर किया है. इसी के साथ सीबीआई ने मुंबई पुलिस से जांच का जिम्मा अपने हाथ में ले लिया है.
इनके खिलाफ चल रही जांच
मुंबई पुलिस कॉक्स एंड किंग्स, उसके प्रमोटरों/निदेशकों अजय अजीत पीटर केरकर, उषा केरकर, सीएफओ अनिल खंडेलवाल और निदेशकों महालिंगा नारायणन एवं पेसी पटेल के खिलाफ मामले की जांच कर रही थी. अब यह काम सीबीआई करेंगी. जांच एजेंसी ने केंद्र के माध्यम से महाराष्ट्र सरकार से निर्देश मिलने पर संबंधित व्यक्तियों के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के प्रावधानों के अलावा धोखाधड़ी, जालसाजी और आपराधिक कदाचार से संबंधित धाराओं में मामला दर्ज किया है.
लोन के लिए रिकॉर्ड में हेराफेरी
आरोप है कि कॉक्स एंड किंग्स ने यस बैंक से ऋण सुविधा प्राप्त करने के लिए रिकॉर्ड में हेराफेरी की थी. मुंबई पुलिस की आर्थिक आपराधिक शाखा ने ग्लोबल टूर एंड ट्रेवल कंपनी कॉक्स एंड किंग्स के मालिक अजय पीटर केरकर के करीबी सहयोगी अजीप पी मेनन को अप्रैल में गिरफ्तार किया था. यह कार्रवाई यस बैंक से धोखाधड़ी मामले में हुई थी. अजीप पी मेनन की गिराफ्तरी 9 अप्रैल को केरल के कोचीन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से हुई थी.
तमाम तरह की परेशानियों से जूझ रही बायजू नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल की खिंचाई की भी वजह बन गई. सुप्रीम कोर्ट ने बायजू से जुड़े मामले को लेकर NCLAT की जमकर क्लास लगाई.
एडटेक कंपनी बायजू और उसके फाउंडर बायजू रवींद्रन की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं. अब सुप्रीम कोर्ट से उनके लिए टेंशन बढ़ाने वाली खबर आई है. सर्वोच्च अदालत ने नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (NCLAT) के उस फैसले को लेकर चिंता जाहिर की है, जिसमें बायजू के खिलाफ इंसॉल्वेंसी की कार्यवाही बंद करने का निर्देश दिया गया है. अदालत ने कहा कि ट्रिब्यूनल के आदेश में विश्लेषण का अभाव है. साथ ही कोर्ट ने यह संकेत भी दिए कि मामला फिर से विचार के लिए NCLAT को भेजा जा सकता है.
अदालत ने कही ये बात
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ की बेंच ने इस मामले पर NCLAT के रवैये पर संदेह जताया. चीफ जस्टिस ने कहा कि NCLAT के आदेश की वजह केवल एक पैराग्राफ है. इसमें दिमाग का बिल्कुल इस्तेमाल नजर नहीं आता. ट्रिब्यूनल को फिर से अपना दिमाग लगाना चाहिए और मामले को नए सिरे से देखना चाहिए.
BCCI को ही क्यों चुना?
सर्वोच्च अदालत ने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) को 158 करोड़ रुपए का भुगतान करने और अन्य लेनदारों को 15000 करोड़ रुपए का बकाया चुकाने के लिए कदम न उठाने के लिए बायजू को भी आड़े हाथ लिया. कोर्ट ने कंपनी के प्रतिनिधियों से पूछा कि आपके ऊपर 15000 करोड़ रुपए का बकाया है. आपने बकाये के निपटारे के लिए केवल BCCI को ही क्यों चुना? इस दौरान, BCCI की तरफ से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत से NCLAT के फैसले को न पलटने का अनुरोध किया. इस पर अदालत ने कहा कि BCCI का क्लेम बायजू की कुल वित्तीय जिम्मेदारियों का एक छोटा सा हिस्सा है.
LLC ने लगाई है याचिका
चीफ जस्टिस ने कहा कि BCCI के पास 158 करोड़ रुपए की छोटी सी बकाया रकम है, बाकी लेनदारों का क्या होगा? उन्हें तमाम मुश्किलों से गुजरना होगा. बता दें कि बायजू की अमेरिकी फाइनेंशियल क्रेडिटर ग्लास ट्रस्ट कंपनी LLC ने नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल के उस फैसले को चुनौती दी है, जिसमें बायजू की पेरेंट कंपनी थिंक एंड लर्न प्राइवेट लिमिटेड के खिलाफ दिवाला कार्यवाही पर रोक लगा दी गई थी. NCLT ने BCCI की तरफ से दायर याचिका पर जून में इंसॉल्वेंसी रिजॉल्यूशन प्रक्रिया शुरू की थी, लेकिन बायजू और BCCI के बीच सेटलमेंट के बाद NCLAT ने इस कार्यवाही पर रोक लगा दी थी.
सुप्रीम कोर्ट ने चाइल्ड पोर्नोग्राफी के मामले में बड़ा फैसला सुनाते हुए मद्रास और केरल हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया है.
चाइल्ड पोर्नोग्राफी (Child Pornography) को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने आज यानी सोमवार को बड़ा फैसला सुनाया है. सर्वोच्च अदालत ने स्पष्ट किया है कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी स्टोर करना और देखना POCSO एवं IT एक्ट के तहत अपराध है. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पादरीवाला की बेंच ने मद्रास हाईकोर्ट के उस फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि यदि कोई चाइल्ड पोर्नोग्राफी डाउनलोड करता है और देखता है तो यह तब तक अपराध नहीं, जब तक कि उसकी नीयत इसे प्रसारित करने की ना हो.
इनकी याचिका पर फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में केरल हाईकोर्ट के फैसले को भी पलट दिया . केरल हाईकोर्ट ने 13 सितंबर 2023 को कहा था कि यदि कोई व्यक्ति अश्लील फोटो या वीडियो देख रहा है तो यह अपराध नहीं है, लेकिन यदि दूसरे को दिखा रहा है तो ज़रूर यह गैरकानूनी होगा. केरल हाईकोर्ट के फैसले के आधार पर ही मद्रास हाईकोर्ट ने 11 जनवरी को चाइल्ड पोर्नोग्राफी के केस में एक आरोपी को बरी किया था. इसके खिलाफ गैर सरकारी संगठन 'जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन अलायंस' और 'बचपन बचाओ आंदोलन' ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी. कोर्ट ने 12 अगस्त को फैसला सुरक्षित रख लिया था.
केंद्र को दी यह सलाह
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को सलाह दी है कि POCSO एक्ट में चाइल्ड पोर्नोग्राफ की जगह 'चाइल्ड सेक्शुअली अब्यूजिव एंड एक्सप्लोइटेटिव मटीरियल(CSEAM) लिखा जाना चाहिए. कोर्ट ने कहा है कि शब्दों में बदलाव करके भी समाज और न्याय व्यवस्था का ऐसे मामलों की गंभीरता की ओर ध्यान दिलाया जा सकता है. अदालत ने आग कहा कि तकनीकी वास्तविकता और बच्चों की कानूनी सुरक्षा के बीच बैलेंस बनाना जरूरी है.
क्या कहता है कानून?
भारत में पोर्न को लेकर कानून की बात करें, तो ऑनलाइन पोर्न देखना गैर-कानूनी नहीं है, लेकिन इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट 2000 में पोर्न वीडियो बनाने, उसे पब्लिश और सर्कुलेट करने को अपराध करार दिया गया है. IT एक्ट की धारा 67 और 67A में इस तरह के अपराध करने वालों को 3 साल की सजा के साथ 5 लाख तक जुर्माने का प्रावधान है. वहीं, चाइल्ड पोर्नोग्राफी में POCSO कानून के तहत कार्रवाई होती है. पोर्न वीडियो का वैश्विक बाजार काफी बड़ा है और भारत में भी इसमें तेजी आई है.
छठे नंबर पर भारत
वेबसाइट ‘पोर्न हब’ की मानें तो भारतीय औसतन एक बार में पोर्न वेबसाइट पर 8 मिनट से ज्यादा बिताते हैं. पोर्न वीडियो देखने वाले 44% यूजर्स की उम्र 18 से 24 साल है. वहीं, 2021 में आई एक रिपोर्ट में बताया गया था कि दुनिया में सबसे ज्यादा पोर्न देखने के मामले में भारत छठे स्थान पर है. पोर्न देखने के मामले में पहला नंबर पाकिस्तान का बताया जाता है.
WhatsApp पर अपडेट मिलने से ज्यादा से ज्यादा वकीलों की कोर्ट तक पहुंच बढ़ेगी. साथ ही दूर दराज रहने वाले लोगों को भी कोर्ट कार्यवाही की सूचना मिल सकेगी.
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने डिजिटलीकरण की ओर बढ़ते हुए कोर्ट में लंबित मुकदमों का अपडेट देने के लिए एक व्हाट्सऐप (WhatsApp) नंबर जारी किया है. सुप्रीम कोर्ट द्वारा व्हाट्सऐप मैसेज के जरिए वकीलों और पक्षधरों को वाद सूची, केस दाखिल करने और सुनवाई के लिए सूचीबद्ध होने की जानकारी दी जाएगी. तो आइए जानते हैं सुप्रीम कोर्ट का ये व्हाट्सऐप नंबर क्या है और इसके क्या फायदे हैं?
सुप्रीम कोर्ट में सबसे ज्यादा मामले लंबित
सुप्रीम कोर्ट की ओर से अपने 75वें वर्ष में व्हाट्सऐप मैसेजिंग सेवाओं को आइटी सर्विस के साथ एकीकृत करके न्याय तक पहुंच को मजबूत करने की नयी पहल की गई है. बता दें, देश की कोर्ट में इस रिकॉर्ड मामले न्याय के लिए लंबित हैं, जिसमें सबसे ज्यादा मामले सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं. ऐसे में कोर्ट ने वादी और प्रतिवादी की सहूलियत के लिए व्हाट्सऐप के जरिए लंबित मुकदमों की अपडेट की जानकारी देने की सुविधा शुरू की है.
क्या है सुप्रीम कोर्ट का व्हाट्सऐप नंबर?
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार सुप्रीम कोर्ट का आधिकारिक व्हाट्सऐप नंबर 87687676 है. इस नंबर पर एकतरफा सूचनाएं मिलेंगी. इस पर कोई संदेश या काल नहीं की जा सकती. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि यह सुविधा हमारे रोजाना के कामकाज और आदतों में महत्वपूर्ण बदलाव लाएगी और इससे कागज बचाने में काफी मदद मिलेगी.
ऐसे मिलेगी मुकदमों की सूचना
सुप्रीम कोर्ट के व्हाट्सऐप नंबर से अब वकीलों को केस दाखिल होने के बारे में ऑटोमेटेड मैसेज मिलेगा. इसके अलावा वकीलों को वाद सूची भी मोबाइल पर उपलब्ध होगी. वाद सूची का मतलब है कि कोर्ट में सुनवाई के लिए उस दिन लगे मुकदमों की सूची.
इससे क्या फायदा होगा?
सुप्रीम कोर्ट के अनुसार इससे और अधिक वकीलों की सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच बढ़ेगी साथ ही दूर दराज रहने वाले लोगों को भी कोर्ट कार्यवाही की सूचना मिल सकेगी. इसका बड़ा प्रभाव होगा और इससे कागज की बचत के साथ धरती को संरक्षित करने में मदद मिलेगी. वहीं, केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री भी ई-कोर्ट को बढ़ावा दे रहे हैं, ताकि लोगों की न्याय तक पहुंच सुलभ हो. बता दें, केंद्र सरकार ने ई-कोर्ट परियोजना के लिए 7000 करोड़ रुपये मंजूर किए हैं.
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सुप्रीम कोर्ट ने एक तरफ जहां दिल्ली शराब नीति घोटाले में केजरीवाल को राहत प्रदान की, वहीं दूसरी तरफ सीबीआई की जमकर क्लास भी लगाई.
दिल्ली के कथित शराब नीति घोटाले में अरविंद केजरीवाल को बड़ी राहत मिली है. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें 10 लाख के मुचलके पर जमानत दे दी है. हालांकि, दो जजों की पीठ इस मामले में एकराय नहीं है कि सीबीआई द्वारा केजरीवाल को गिरफ्तार करना सही था नहीं? एक तरफ जहां जस्टिस सूर्यकांत ने केजरीवाल की गिरफ्तारी को सही बताया. वहीं, जस्टिस भूईंया ने केजरीवाल की गिरफ्तारी की टाइमिंग पर सवाल उठाए.
पिंजरे में बंद तोता
केजरीवाल की याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए अदालत ने बहुत कुछ ऐसा कहा कि सीबीआई के चेहरे पर शिकन पड़ना लाजमी है. जस्टिस भूइयां ने कहा कि सीबीआई ने केजरीवाल को इसलिए गिरफ्तार किया कि ED के मामले मिली जमानत को विफल किया जा सके.
जस्टिस भूइंया ने यह भी कहा कि सीबीआई को दिखाना होगा कि वह पिंजरे में बंद तोता नहीं है.
धारणा बदलना ज़रूरी
न्यायाधीश भूइयां ने कहा कि किसी भी देश में धारणा मायने रखती है और सीबीआई को पिंजरे में बंद तोता होने वाली धारणा को दूर करना चाहिए. उसे यह दिखाना चाहिए कि वो पिंजरे में बंद तोता नहीं है. उन्होंने सवाल किया कि आखिर सीबीआई इस मामले में अचानक एक्टिव कैसे हो गई? जस्टिस भूइंया ने कहा कि CBI ने मार्च 2023 में केजरीवाल से पूछताछ की गई थी,लेकिन तब उन्हें गिरफ्तार करने की जरूरत महसूस नहीं हुई.
22 महीने बाद एक्टिव
उन्होंने आगे कहा कि केंद्रीय जांच एजेंसी ने अरविंद केजरीवाल को तब गिरफ्तार किया जब ईडी की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी गई. सीबीआई को 22 महीनों तक गिरफ्तारी की जरूरत महसूस नहीं हुई, लेकिन फिर अचानक वह एक्टिव हो गई और हिरासत की मांग करने लगी. जस्टिस भूईंया ने कहा कि सीबीआई द्वारा इस तरह की कार्रवाई गिरफ्तारी के समय पर गंभीर सवाल उठाती है. जांच एजेंसी ने गिरफ्तारी केवल ईडी मामले में दी गई जमानत को विफल करने के लिए की.
शर्तों के साथ मिली राहत
सुप्रीम कोर्ट की इन तल्ख टिप्पणियों से स्पष्ट है कि इस मामले में सीबीआई की कार्यप्रणाली अदालत को नागवार गुजरी है. ऐसे में सीबीआई को आगे बहुत सोच-समझकर कदम बढ़ाना होगा. वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल को राहत देते हुए कुछ शर्तें भी जोड़ी हैं. मसलन, केजरीवाल ना तो सचिवालय जा सकेंगे और ना ही किसी फाइल पर साइन कर पाएंगे. ऐसी ही शर्तें अदालत ने ED मामले में जमानत देते हुए भी लगाई थीं.
दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल को सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दे दी है.
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) के लिए आज बड़ा दिन है. कथित शराब नीति घोटाले में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दे दी है. CM केजरीवाल ने सीबीआई की तरफ से दर्ज भ्रष्टाचार के मामले में अपनी गिरफ्तारी के साथ ही निचली अदालत द्वारा जमानत से इनकार किए जाने को SC में चुनौती दी थी. अदालत ने केजरीवाल की गिरफ्तारी को सही ठहराया, लेकिन उनकी जमानत याचिका मंजूर कर ली.
सुरक्षित रखा था फैसला
जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ केजरीवाल की याचिका पर फैसला सुनाया. पीठ ने 5 सितंबर को सुनवाई के बाद अरविंद केजरीवाल की दोनों याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रख लिया था. कथित शराब नीति घोटाले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) के साथ ही सीबीआई ने भी केजरीवाल के खिलाफ केस दर्ज कराया है. सीबीआई ने इस दिल्ली के CM और आम आदमी पार्टी (आप) प्रमुख को 26 जून को गिरफ्तार किया था.
एक मामले में बेल
केजरीवाल ने हाई कोर्ट के 5 अगस्त के उस आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था, जिसमें कोर्ट ने भ्रष्टाचार के इस मामले में उनकी गिरफ्तारी को बरकरार रखा. हाई कोर्ट ने कहा था कि सीबीआई के पास केजरीवाल के खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं. शीर्ष अदालत ने 12 जुलाई को ED द्वारा दर्ज धनशोधन के मामले में केजरीवाल को अंतरिम जमानत दी थी, लेकिन सीबीआई के मामले के चलते वह जेल से बाहर नहीं आ पाए. सुनवाई के दौरान, अदालत ने कहा था कि केजरीवाल पहले ही काफी दिन जेल में रह चुके हैं, इसलिए ईडी मामले में उन्हें जमानत दी जा सकती है.
सीबीआई की दलील
केंद्रीय जांच एजेंसी (CBI) ने पहले अदालत से केजरीवाल से पूछताछ की अनुमति मांगी थी फिर वहीं उन्हें औपचारिक रूप से गिरफ्तार कर लिया था . सीबीआई ने अदालत को बताया था कि उसे केजरीवाल को गिरफ्तार क्यों करना पड़ पड़ा. जांच एजेंसी ने कहा था कि बतौर मुख्यमंत्री केजरीवाल उस कैबिनेट का हिस्सा थे जिसने विवादित नई शराब नीति को मंजूरी दी. दिल्ली की आबकारी नीति 2021-22 में कुछ खास लोगों को लाभ देने के लिए संशोधन किए गए. शराब के थोक विक्रेताओं के लिए प्रॉफिट मार्जिन 5% से बढ़ाकर 12 प्रतिशत कर दिया गया. सीबीआई की दलीलों को स्वीकार करते हुए हाई कोर्ट ने केजरीवाल की गिरफ्तारी को सही करार दिया था.