तमाम तरह की परेशानियों से जूझ रही बायजू नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल की खिंचाई की भी वजह बन गई. सुप्रीम कोर्ट ने बायजू से जुड़े मामले को लेकर NCLAT की जमकर क्लास लगाई.
एडटेक कंपनी बायजू और उसके फाउंडर बायजू रवींद्रन की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं. अब सुप्रीम कोर्ट से उनके लिए टेंशन बढ़ाने वाली खबर आई है. सर्वोच्च अदालत ने नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (NCLAT) के उस फैसले को लेकर चिंता जाहिर की है, जिसमें बायजू के खिलाफ इंसॉल्वेंसी की कार्यवाही बंद करने का निर्देश दिया गया है. अदालत ने कहा कि ट्रिब्यूनल के आदेश में विश्लेषण का अभाव है. साथ ही कोर्ट ने यह संकेत भी दिए कि मामला फिर से विचार के लिए NCLAT को भेजा जा सकता है.
अदालत ने कही ये बात
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ की बेंच ने इस मामले पर NCLAT के रवैये पर संदेह जताया. चीफ जस्टिस ने कहा कि NCLAT के आदेश की वजह केवल एक पैराग्राफ है. इसमें दिमाग का बिल्कुल इस्तेमाल नजर नहीं आता. ट्रिब्यूनल को फिर से अपना दिमाग लगाना चाहिए और मामले को नए सिरे से देखना चाहिए.
BCCI को ही क्यों चुना?
सर्वोच्च अदालत ने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) को 158 करोड़ रुपए का भुगतान करने और अन्य लेनदारों को 15000 करोड़ रुपए का बकाया चुकाने के लिए कदम न उठाने के लिए बायजू को भी आड़े हाथ लिया. कोर्ट ने कंपनी के प्रतिनिधियों से पूछा कि आपके ऊपर 15000 करोड़ रुपए का बकाया है. आपने बकाये के निपटारे के लिए केवल BCCI को ही क्यों चुना? इस दौरान, BCCI की तरफ से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत से NCLAT के फैसले को न पलटने का अनुरोध किया. इस पर अदालत ने कहा कि BCCI का क्लेम बायजू की कुल वित्तीय जिम्मेदारियों का एक छोटा सा हिस्सा है.
LLC ने लगाई है याचिका
चीफ जस्टिस ने कहा कि BCCI के पास 158 करोड़ रुपए की छोटी सी बकाया रकम है, बाकी लेनदारों का क्या होगा? उन्हें तमाम मुश्किलों से गुजरना होगा. बता दें कि बायजू की अमेरिकी फाइनेंशियल क्रेडिटर ग्लास ट्रस्ट कंपनी LLC ने नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल के उस फैसले को चुनौती दी है, जिसमें बायजू की पेरेंट कंपनी थिंक एंड लर्न प्राइवेट लिमिटेड के खिलाफ दिवाला कार्यवाही पर रोक लगा दी गई थी. NCLT ने BCCI की तरफ से दायर याचिका पर जून में इंसॉल्वेंसी रिजॉल्यूशन प्रक्रिया शुरू की थी, लेकिन बायजू और BCCI के बीच सेटलमेंट के बाद NCLAT ने इस कार्यवाही पर रोक लगा दी थी.
राजधानी के आसपास वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग के संशोधित नियम, 2024 अब लागू होंगे. ये नियम उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली की सरकारों के लिए अनिवार्य होंगे.
दिल्ली-एनसीआर में बढ़ते वायु प्रदूषण और जहरीली होती हवा एक गंभीर मुद्दा है. इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट भी लगातार नाराजगी जाहिर करते हुए केंद्र और राज्य दोनों ही सरकारों को फटकार लगाता रहा है. अब केंद्र सरकार ने पराली जलाने वालों पर सख्त एक्शन लेते हुए जुर्माने को दोगुना कर दिया है. अब अगर 5 एकड़ से ज्यादा की जमीन पर कोई भी पराली जलाता पाया गया तो उस पर 30 हजार रुपये तक का जुर्माना लगाया जाएगा.
30,000 रुपये तक का लगेगा जुर्माना
भारत सरकार ने इस संबंध में एक गजट नोटिफिकेशन भी जारी किया है. इस नोटिफिकेशन में साफ कहा गया है कि अगर कोई 2 से 5 एकड़ तक में पराली जलाते पकड़ा जाएगा तो उस पर 10 हजार रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा. वहीं दूसरी तरफ 5 एकड़ से अधिक पर पराली जलाते पकड़े जाने पर 30 हजार रुपये का का जुर्माना लगाया जाएगा. इसके अलावा दो एकड़ से कम की जमीन पर अगर कोई पराली जलाता पाया गया तो ऐसे आरोपियों के खिलाफ 5 हजार रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा.
किन कानूनों के तहत किया गया बदलाव
बता दें कि केंद्र सरकार द्वारा ये नियम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग अधिनियम, 2021 (29 of 2021) के चलते बदले गए हैं. अधिनियम की धारा 25 की उप-धारा (2) के खंड (h) का हवाला देते हुए, केंद्र सरकार ने इन नियमों को संशोधित करते हुए "राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (पराली जलाने के लिए पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति का अधिरोपण, संग्रहण और उपयोग) संशोधन नियम, 2024" के रूप में पारित किया है.
दिल्ली में बद-से-बदतर होते हालात
बता दें कि दिवाली से पहले ही इस बार दिल्ली की हवा जहरीली हो गई थी, वहीं दिवाली के बाद तो हालत बद से बदतर हो गए हैं. गुरुवार को भी दिल्ली का औसत एक्यूआई 362 दर्ज किया गया. सीपीसीबी के अनुसार राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में सुबह 5:15 बजे तक औसत वायु गुणवत्ता सूचकांक 362 दर्ज किया गया, जो कि बेहद की खराब श्रेणी वाला सूचकांक माना जाता है.
PhonePe ने मद्रास हाई कोर्ट में Telegram के खिलाफ उसका नाम और लोगो का इस्तेमाल करके फर्जी चैनल बनाने की शिकायत दर्ज कराई है.
ऑनलाइन पेमेंट ऐप फोनपे (PhonePe) ने टेलीग्राम (Telegram) के खिलाफ मद्रास हाई कोर्ट में एक शिकायत दर्ज कराई है. इसे लेकर कोर्ट ने टेलीग्राम की जमकर फटकार लगाई है. दरअसल, फोनपे ने टेलीग्राम पर खिलाफ उसका नाम और लोगो का इस्तेमाल करके फर्जी चैनल बनाने का आरोप लगाया है. कोर्ट ने अब टेलीग्राम को ऐसे फर्जी चैनल ब्लॉक करने का आदेश दिया है. तो आइए जानते हैं क्या है ये पूरा मामला?
ये है पूरा मामला
फोन पे ने मद्रास हाई कोर्ट में शिकायत दर्ज की है कि कुछ लोग टेलीग्राम पर फर्जी चैनल बना रहे हैं. ऐसे में लोग रियल और फर्जी फोनपे ऐप में फर्क नहीं कर पा रहे हैं. यह चैनल फोनपे का नाम और लोगो का इस्तेमाल कर रहे हैं. इन चैनल के जरिए लोग लोगों को धोखा देकर उनसे पैसे हड़पा जा रहा है. फोनपे ने कोर्ट से इन चैनलों को बंद करने की मांग की. फोनपे ने यह भी कहा है कि टेलीग्राम की वजह से उसे वित्तीय तौर पर नुकसान हो रहा है, जिसकी वजह से लोगों को भरोसा ऑनलाइन पेमेंट से उठ सकता है.
कोर्ट ने टेलीग्राम को दिया ये आदेश
मद्रास हाई कोर्ट की सुनवाई के दौरान टेलीग्राम को जमकर फटकार लगाई गई है. वहीं, इस मामले में कोर्ट ने टेलीग्राम को आदेश दिया है कि वह फोनपे का नाम और लोगो का इस्तेमाल कर धोखाधड़ी करने वाले चैनलों को ब्लॉक और डिलीट करे. ये चैनल लोगों को धोखा देकर उनसे पैसे हड़प रहे थे. फोनपे ने कोर्ट में शिकायत की थी कि इन चैनलों की वजह से कंपनी और उसके यूजर्स को नुकसान हो रहा है.
फोनपे या यूजर की शिकातय पर टेलीग्राम करेगा कार्रवाई
टेलीग्राम ने कोर्ट को बताया कि वह ऐसे चैनलों को खुद से पहचान और ब्लॉक नहीं कर सकता, लेकिन कंपनी ने कोर्ट को आश्वासन दिया कि अगर फोनपे या कोई यूजर शिकायत करेगा, तो वह तुरंत संबंधित चैनल को ब्लॉक कर देगा. कोर्ट ने आदेश दिया कि अगर फोनपे को ऐसे कोई चैनल मिलते हैं, तो वह तुरंत टेलीग्राम को सूचित करे. इसके बाद टेलीग्राम को उस चैनल को ब्लॉक कर देगा.
जस्टिस संजीव खन्ना को 2005 में दिल्ली हाईकोर्ट के एडिशनल जज के रूप में पदोन्नत किया गया और 2006 में वह स्थायी न्यायाधीश बन गए.
जस्टिस संजीव खन्ना ,चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ के उत्तराधिकारी होंगे. वह 11 नवंबर को भारत के 51वें चीफ जस्टिस का पदभार ग्रहण करेंगे. जस्टिस चंद्रचूड़ ने 8 नवंबर 2022 को चीफ जस्टिस के रूप में पदभार ग्रहण किया था, उनका कार्यकाल 10 नवंबर को खत्म हो रहा है. जस्टिस संजीव खन्ना का मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्यकाल 13 मई, 2025 को खत्म होगा. बता दें कि CJI धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ ने अपने उत्तराधिकारी के तौर पर जस्टिस संजीव खन्ना का नाम सुझाया था, जिस पर मुहर लग गई है.
सोशल मीडिया पर जानकारी
कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने इस संबंध में सोशल मीडिया पर जानकारी देते हुए बताया कि भारत के संविधान द्वारा प्रदत्त शक्ति का इस्तेमाल करते हुए, माननीय राष्ट्रपति ने भारत के माननीय प्रधान न्यायाधीश से परामर्श के बाद, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजीव खन्ना को देश के प्रधान न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करती हैं. वह 11 नवंबर, 2024 को पदभार ग्रहण करेंगे.
ऐसा रहा है करियर
जस्टिस संजीव खन्ना अपने कई फैसलों के लिए चर्चा में रहे हैं. जस्टिस खन्ना ने 1983 में दिल्ली बार काउंसिल में रजिस्ट्रेशन कराया था और यहीं से अपने कानूनी सफर की शुरुआत की थी. दिल्ली हाईकोर्ट का रुख करने से पहले जस्टिस खन्ना तीस हजारी स्थित जिला अदालतों में प्रैक्टिस करते थे. जस्टिस संजीव खन्ना ने संवैधानिक कानून, मध्यस्थता, कमर्शियल लॉ, कंपनी लॉ और आपराधिक कानून सहित कई अलग-अलग सेक्टर्स में प्रैक्टिस की है. उन्होंने आयकर विभाग के वरिष्ठ स्थायी वकील के तौर पर भी काम किया है. उन्हें 2005 में दिल्ली हाईकोर्ट के एडिशनल जज के रूप में पदोन्नत किया गया था और 2006 में वह स्थायी न्यायाधीश बन गए.
चर्चा में रहे कई फैसले
हाल ही में जस्टिस खन्ना तब सुर्खियों में आये थे, जब उन्होंने दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को अंतरिम जमानत दी थी. इस जमानत की बदौलत ही केजरीवाल लोकसभा चुनाव के दौरान प्रचार कर पाए थे. इसी तरह उन्होंने दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की जमानत से जुड़े मामले में कहा था कि पीएमएलए मामलों में देरी होना जमानत का एक बड़ा कारण हो सकता है. जस्टिस खन्ना पीएमएलए के कई प्रावधानों की समीक्षा करने वाली पीठ के अध्यक्ष भी हैं. इसके अलावा, जस्टिस खन्ना पांच न्यायाधीशों वाली उस पीठ का भी हिस्सा थे, जिसने चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक घोषित किया था. वह आर्टिकल 370 को निरस्त करने का फैसला बरकरार रखने वाली पीठ का भी हिस्सा थे.
बायजू रवींद्रन की मुश्किलें खत्म नहीं हो रही है. पिछले हफ्ते ही उन्होंने अपने निवेशकों को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा था कि कंपनी का वैल्यू अब जीरो हो चुका है.
वित्तीय संकट का सामना कर रही है टेक्नोलॉजी बेस्ड एजुकेशन कंपनी बायजूस (Byju's) को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है. कोर्ट ने एसीएलएटी (NCLAT) के उस आदेश को रद्द कर दिया है जिसमें एसीएलएटी vs बायजूस और बीसीसीआई (BCCI) के बीच सेटलमेंट की इजाजत दे दी थी. इससे पहले 14 अगस्त, 2024 को मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एनसीएलएटी के आदेश पर रोक लगाया था जिसे अब सर्वाच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया है.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा, बायजूस और बीसीसीआई के बीच जो सेटलमेंट प्रोसेस को अपनाया गया है उसमें कई खामियां है. ये सेटलमेंट इंसोलवेंसी प्रोफेशनल पंकज श्रीवास्तव की मंजूरी के बगैर हुआ है जिन्हें एनसीएलएटी ने 16 जुलाई को कंपनी के कामकाज देखने के लिए नियुक्त किया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, हम मौजूदा अपील को स्वीकार करते हुए एनसीएलएटी के अगस्त 2024 में दिए आदेश को रद्द करते हैं. बायजूस को जिन अमेरिकी कर्जदाताओं के समूह ने कर्ज दिया था उन्होंने एनसीएलएटी के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.
BCCI ने बायजूस के खिलाफ दायर की थी याचिका
बायजूस के फाउंडर बायजू रवींद्रन के भाई रिजु रवींद्रन जो कंपनी के सबसे बड़े शेयरधारक हैं उन्होंने बीसीसीआई को 158 करोड़ रुपये का भुगतान कर स्पांसर डील से जुड़े विवाद को सेटल किया था. बीसीसीआई ने बायजूस के खिलाफ दिवालिया कानून के तहत कार्रवाई करने के लिए एनसीएलएटी में याचिका दायर किया था. बायजूस को कर्ज देनेवाली अमेरिकी लेंडर्स ग्लास ट्रस्ट कंपनी (GLAS Trust Company) ने बायजूस और बीसीसीआई के बीच सेटलमेंट का विरोध करते हुए अपने पैसे वापस करने की मांग कर रहे थे. अमेरिकी लेंडर्स ने बायजूस को 1.2 बिलियन डॉलर का कर्ज दिया था.
NCLT के निर्देशों का पालन करे Byju’s
सुप्रीम कोर्ट ने बीसीसीआई से सेटलमेंट में मिले रकम को ब्याज समेत बायजूस की पैरेंट कंपनी थींक एंड लर्न (Think And Learn) की कमिटी ऑफ क्रेडिटर्स के पास जमा कराने को कहा है. कोर्ट ने क्रेडिटर्स के समूह से इस पैसे को आगे की कार्रवाई तक एस्क्रो अकाउंट में रखने को कहा है साथ ही उन्हें एनसीएलएटी के आगे के निर्देशों का पालन करने को भी कहा है.
बहन और भाई के बीच संपत्ति ‘सरस्वती पावर एंड इंडस्ट्रीज’ के शेयरों को लेकर विवाद इतना बढ़ गया है कि भाई ने अदालत का दरवाजा खटखटाया है.
एक पूर्व मुख्यमंत्री के घर शेयरों को लेकर महाभारत हो रही है. बात इतनी बढ़ गई है कि मामला नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल(NCLT) तक पहुंच गया है. एक रिपोर्ट के अनुसार, आंध्र प्रदेश के पूर्व CM और वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष वाई एस जगनमोहन रेड्डी ने अपनी बहन वाईएस शर्मिला पर आरोप लगाया है कि शर्मिला ने ‘सरस्वती पावर एंड इंडस्ट्रीज’ के शेयर अपने और उनकी मां विजयम्मा के नाम पर अवैध रूप से स्थानांतरित किए हैं. जगनमोहन का दावा है कि सरस्वती पावर एंड इंडस्ट्रीज का स्वामित्व उनके और उनकी पत्नी भारती के पास है. अब भाई-बहन की इस लड़ाई के कानूनी रूप ले लिया है.
अगले महीने होगी सुनवाई
NCLT की हैदराबाद पीठ ने मामले की सुनवाईके लिए नवंबर की तारीख तय की है. अपनी याचिका में वाईएसआरसीपी अध्यक्ष ने कहा कि उन्होंने बहन शर्मिला के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे. जिसमें उन्होंने कहा था कि प्यार और स्नेह के कारण वह अपने और अपनी पत्नी के शेयरों को उपहार स्वरूप अपनी अलग हो चुकी बहन को हस्तांतरित कर देंगे, जो प्रवर्तन निदेशालय द्वारा कुर्की सहित कुछ संपत्तियों के संबंध में लंबित मामलों के अधीन होगा. हालांकि, बाद में उन्होंने समझौता रद्द करने की इच्छा जताई. पूर्व CM ने कहा कि यह कोई रहस्य नहीं है कि अब हमारे बीच अच्छे संबंध नहीं हैं और इस बदली हुई स्थिति को देखते हुए मैं समझौता ज्ञापन में जताई अपनी मूल इच्छा पर अमल करने का इरादा नहीं रखता हूं.
बहन पर लगाये ये आरोप
वाई एस जगनमोहन रेड्डी ने आगे कहा कि उनके पिता, पूर्व मुख्यमंत्री वाईएस राजशेखर रेड्डी द्वारा अर्जित संपत्ति और पैतृक संपत्तियों को परिवार के सदस्यों के बीच बांटा गया था. शर्मिला ने अपने भाई की भलाई की परवाह किए बिना कई ऐसे कार्य किए, जिससे उन्हें गहरा दुख पहुंचा और उन्होंने सार्वजनिक रूप से कई झूठे बयान भी दिए. गौरतलब है कि अपने भाई के साथ मतभेदों के चलते शर्मिला इस साल की शुरुआत में कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गई थीं. उन्हें पार्टी की आंध्र प्रदेश इकाई का अध्यक्ष बनाया गया है. शर्मिला ने मई में हुए लोकसभा चुनाव में कडपा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था, लेकिन वह हार गईं. 51 वर्षीय शर्मिला अपने भाई जगन से एक साल की छोटी हैं.
सद्गुरु जग्गी वासुदेव के ईशा फाउंडेशन पर लड़कियों को गुमराह करके रखने का आरोप लगाया जा रहा था. सुप्रीम कोर्ट ने आज इस मामले में ईशा फाउंडेशन के खिलाफ केस बंद कर दिया है.
सुप्रीम कोर्ट ने दो लड़कियों को बंधक बनाने के मामले में सद्गुरु जग्गी वासुदेव के ईशा फाउंडेशन के खिलाफ केस बंद कर दिया है. CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने शुक्रवार को कहा कि मद्रास हाईकोर्ट का ऐसी याचिका पर जांच के आदेश देना सही नहीं था. आश्रम में पुलिस का छापा भी गलत था. कोर्ट ने कहा कि लड़कियों के पिता की याचिका गलत है, क्योंकि दोनों लड़कियां बालिग हैं, जब वे आश्रम में गई तो उनकी उम्र 27 और 24 साल थी. वो अपनी मर्जी से आश्रम में रह रही हैं, कोर्ट ने यह भी कहा कि इस फैसले का असर सिर्फ इसी केस तक सीमित रहेगा.
सद्गुरु ने हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में दी थी चुनौती
बता दें कि फाउंडेशन के खिलाफ रिटायर्ड प्रोफेसर एस कामराज ने मद्रास हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी. कामराज ने हाईकोर्ट में दायर हैबियस कॉर्पस पिटीशन में आरोप लगाया था कि उनकी बेटियों लता और गीता को ईशा फाउंडेशन के आश्रम में बंधक बनाकर रखा गया है. इसके बाद हाईकोर्ट ने आश्रम के खिलाफ जांच का आदेश दिया था. मद्रास हाईकोर्ट ने 30 सितंबर को कहा था कि पुलिस ईशा फाउंडेशन से जुड़े सभी क्रिमिनल केसों की डिटेल पेश करे. अगले दिन 1 अक्टूबर को करीब 150 पुलिसकर्मी आश्रम में जांच करने पहुंचे थे. सद्गुरु ने हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने 3 अक्टूबर को मद्रास हाईकोर्ट के फाउंडेशन के खिलाफ पुलिस जांच के आदेश पर रोक लगाई थी.
CJI ने कामराज की दोनों बेटियों से की थी बात
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हम हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाएंगे. मामले पर टिप्पणी करते हुए चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि आप ऐसे संस्थान में पुलिसकर्मियों की फौज नहीं भेज सकते. हालांकि चीफ जस्टिस ने कहा कि वो चैंबर में ऑनलाइन मौजूद दोनों महिलाओं से बात करेंगे और उसके बाद आदेश पढ़ेंगे.
सीजेआई ने एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के रिटायर्ड प्रोफेसर एस कामराज की दोनों बेटियों से बात करने के बाद यह आदेश पारित किया था. कामराज की बेटियों ने फोन पर बातचीत के दौरान सीजेआई को बताया था कि वो अपनी मर्जी से आश्रम में रह रही हैं और अपनी मर्जी से आश्रम से बाहर आ जा सकती हैं.
बताया जा रहा है कि सलमान खान के करीबी NCP लीडर बाबा सिद्दीकी की हत्या के बाद लॉरेंस बिश्नोई गैंग के निशाने पर कई नेता और सेलेब्रिटी भी हैं.
बाबा सिद्दीकी की हत्या के बाद लॉरेंस बिश्नोई गैंग के निशाने पर कॉमेडियन मुनव्वर फारूकी हैं. एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि हाल ही जब मुनव्वर दिल्ली में आयोजित एक इवेंट में गए थे, तो उनके पीछे-पीछे बिश्नोई गैंग के दो शूटर्स भी वहां पहुंच गए थे. हालांकि, पुलिस की मुस्तैदी के चलते वो अपने मंसूबों में कामयाब नहीं हो पाए. बता दें कि बिश्नोई गैंग ने एक कथित सोशल मीडिया पोस्ट में बाबा सिद्दीकी की हत्या की जिम्मेदारी लेते हुए कहा है कि जो सलमान का दोस्त वो हमारा दुश्मन.
दहशत में हैं सभी
NCP लीडर बाबा सिद्दीकी की हत्या के बाद सलमान खान से जुड़े लोगों में डर का माहौल है. इस बीच, एक रिपोर्ट में बताया गया है कि लॉरेंस बिश्नोई गैंग की हिटलिस्ट में सलमान खान के अलावा मुनव्वर फारूकी सहित कई नेता और सेलेब्रिटी का नाम भी हैं. रिपोर्ट में दावा किया गया है कि सितंबर में इस गैंग ने कॉमेडियन मुनव्वर फारूकी को निशाना बनाने की कोशिश की थी. मुनव्वर इवेंट में हिस्सा लेने के लिए मुंबई से दिल्ली गए थे. वह जिस फ्लाइट में थे, उसमें लॉरेंस बिश्नोई के दो शूटर्स भी मौजूद थे.
एक ही होटल में थे ठहरे
दोनों शूटर्स ने दक्षिणी दिल्ली के उसी होटल में एक कमरा बुक कराया था, जिसमें मुनव्वर भी रुके थे. दरअसल, दिल्ली पुलिस टीम बिजनेसमैन के मर्डर के सिलसिले में उन शूटर्स की पहले से तलाश में थी. दिल्ली पुलिस टीम को जब खबर लगी कि शूटर्स उस होटल में हैं, तो वहां रेड डाली गई. दरअसल, मुनव्वर फारूकी को पहले धमकी मिल चुकी थी. मुनव्वर बिग बॉस 17 के विनर रहे हैं, जिसे सलमान खान होस्ट करते हैं.
पूर्व क्रिकेटर मोहम्मद अजहरुद्दीन को प्रवर्तन निदेशालय ने समन भेजकर पूछताछ के लिए बुलाया है. अजहर आज ED के सामने पेश हो सकते हैं.
टीम इंडिया के पूर्व कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन (Mohammad Azharuddin) मुश्किल में पड़ गए हैं. हैदराबाद क्रिकेट एसोसिएशन (HCA) से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने उन्हें तलब किया है. अजहरुद्दीन सितंबर 2019 में HCA अध्यक्ष चुने गए थे और जून 2021 में उन्हें अपना पद छोड़ना पड़ा था. ED कांग्रेस नेता और पूर्व क्रिकेटर अजहरुद्दीन से आमने-सामने सवाल करना चाहती है, इसलिए उन्हें समन भेजा गया है. अजहर आज ED के समक्ष पेश हो सकते हैं.
पूर्व CEO ने की थी शिकायत
जानकारी के मुताबिक, हैदराबाद में राजीव गांधी क्रिकेट स्टेडियम के लिए डीजल जनरेटर, अग्निशमन प्रणाली और छतरियों की खरीद के लिए आवंटित धनराशि में करीब 20 करोड़ रुपए की की हेराफेरी हुई थी. प्रवर्तन निदेशालय ने हैदराबाद क्रिकेट एसोसिएशन के अधिकारियों के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग का केस दर्ज किया था. इसके अलावा, ED ने तेलंगाना में 9 स्थानों पर छापेमारी करके कई महत्वपूर्ण दस्तावेज और डिजिटल उपकरण बरामद किए थे. गौरतलब है कि HCA के CEO सुनीलकांत बोस ने इस मामले में अजहरुद्दीन के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायत की है.
3 मामलों में मिली है बेल
पिछले साल नवंबर में अदालत ने हैदराबाद क्रिकेट एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष मोहम्मद अजहरुद्दीन को पुलिस द्वारा दर्ज तीन अलग-अलग आपराधिक मामलों में अग्रिम जमानत दी थी. पुलिस ने अजहर सहित अन्य पर स्टेडियम के लिए क्रिकेट बॉल, जिम इक्विपमेंट और अग्निशमन यंत्र खरीदने में अनियमितता बरतने का आरोप लगाया है. उस समय कांग्रेस नेता के वकील ने दलील दी थी कि अजहर को केवल इसलिए आरोपी बनाया, क्योंकि वह संबंधित अवधि में एचसीए के अध्यक्ष थे. बता दें कि 61 साल के मोहम्मद अजहरुद्दीन पर मैच फिक्सिंग के आरोप भी लग चुके हैं.
NDTV मीडिया ग्रुप अब अडानी समूह के पास है. कुछ साल पहले अडानी ने NDTV का अधिग्रहण कर लिया था.
अडानी समूह के एनडीटीवी के अधिग्रहण से पहले केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) एक पुराने मामले में कंपनी के पूर्व निदेशक एवं प्रमोटर प्रणय रॉय और राधिका रॉय के खिलाफ शिकंजा कसने में लगी थी. लेकिन अब उसने इस मामले को बंद कर दिया है. CBI की तरफ से बताया गया है कि सबूतों के अभाव में उसने यह केस बंद कर दिया है. जांच एजेंसी का यह कदम प्रणय और राधिका रॉय के लिए बड़ी राहत है.
2017 में दर्ज हुई थी FIR
एनडीटीवी के पूर्व निदेशक एवं प्रमोटर प्रणय और राधिका रॉय के खिलाफ 2017 में आईसीआईसीआई बैंक को जानबूझकर 48 करोड़ से अधिक का नुकसान पहुंचाने का मामला दर्ज किया गया था. यह मामला 2009 में रॉय द्वारा आईसीआईसीआई बैंक से लिए गए 48 करोड़ रुपए के कथित बैंक लोन डिफॉल्ट से संबंधित था. सीबीआई ने अपनी FIR में बताया था कि प्रणय रॉय ने आरआरपीआर होल्डिंग्स प्राइवेट लिमिटेड नामक कंपनी के लिए लिए गए लोन को डिफॉल्ट किया.
ED ने भी कसा था शिकंजा
सीबीआई के केस दर्ज करने के बाद प्रवर्तन निदेशालय ने भी रॉय दंपत्ति पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया था. CBI ने क्वांटम सिक्योरिटीज लिमिटेड के संजय दत्त की शिकायत के आधार पर 2017 में FIR दर्ज की थी, जिसमें यह आरोप भी लगाया गया था कि आरआरपीआर होल्डिंग्स प्राइवेट लिमिटेड ने एनडीटीवी में 20% हिस्सेदारी हासिल करने के लिए इंडिया बुल्स प्राइवेट लिमिटेड से 500 करोड़ का कर्ज लिया था. अब सीबीआई का कहना है कि उसके पास प्रणय और राधिका रॉय के खिलाफ कोई सबूत नहीं हैं, लिहाजा केस को बंद किया जा रहा है. बता दें कि अडानी समूह ने 2022 में NDTV का अधिग्रहण किया था.
मद्रास हाई कोर्ट ने एक पिता की याचिका पर ईशा फाउंडेशन के सद्गुरु जग्गी वासुदेव से बेहद तल्ख सवाल पूछे हैं. याचिकाकर्ता का आरोप है कि उनकी बेटियों का ब्रेन वॉश किया गया है.
ईशा फाउंडेशन के सद्गुरु जग्गी वासुदेव पर मद्रास हाई कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी की है. कोर्ट ने पूछा है कि जब सद्गुरु की बेटी शादीशुदा है, तो वह दूसरी लड़कियों को सिर मुंडवाने, सांसरिक जीवन त्यागने और अपने योग केंद्रों में संन्यासी की तरह जीवन जीने के लिए क्यों प्रोत्साहित कर रहे हैं? दरअसल, कोयंबटूर की एक एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के रिटायर्ड प्रोफेसर एस कामराज ने हाई कोर्ट में याचिका दायर करके आरोप लगाया है कि उनकी दो पढ़ी-लिखी बेटियों का ब्रेनवॉश कर ईशा फाउंडेशन के योग केंद्र रखा गया है.
यह बेंच कर रही है सुनवाई
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार रिटायर्ड प्रोफेस की हेबियस कॉर्पस (बंदी प्रत्यक्षीकरण) याचिका पर सुनवाई के दौरान, जस्टिस एसएम सुब्रह्मण्यम और जस्टिस वी शिवागणनम की बेंच ने सद्गुरु से पूछा कि वह युवतियों को संन्यास के तौर-तरीके अपनाने को क्यों कह रहे हैं? बेंच ने कहा कि जब सद्गुरु की अपनी बेटी शादीशुदा है और अच्छा जीवन व्यतीत रही है, तो वह अन्य युवतियों को सिर मुंडवाने, सांसरिक जीवन त्यागने और अपने योग केंद्रों में संन्यासी की तरह जीवन जीने के लिए क्यों प्रोत्साहित कर रहे हैं?
मामले की जांच का फैसला
याचिकाकर्ता का कहना है कि उनकी दोनों बेटियों की उम्र 42 और 39 साल है. उनका ब्रेनवॉश करके ईशा फाउंडेशन के योग केंद्र रखा गया है. हालांकि, कोर्ट में मौजूद दोनों युवतियां ने कहा कि वे कोयंबटूर के योग केंद्र में अपनी मर्जी से रह रही हैं और उन्हें किसी ने बंदी नहीं बनाया है. मद्रास हाई कोर्ट ने युवतियों से कुछ देर तक बातचीत करने के बाद इस मुद्दे की आगे जांच करने का फैसला किया है.
हमसे पूर्ण न्याय की उम्मीद
हाई कोर्ट के जांच के फैसले पर ईशा फाउंडेशन के वकील ने कहा कि कोर्ट इस मामले का दायरा नहीं बढ़ा सकती. इस पर जस्टिस सुब्रमण्यम ने जवाब दिया कि संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत रिट क्षेत्राधिकार का इस्तेमाल करते हुए अदालत से पूर्ण न्याय की उम्मीद की जाती है और मामले की तह तक जाना बेहद जरूरी है. हाई कोर्ट ने कहा कि अदालत को मामले के संबंध में कुछ शक हैं. हम जानना चाहते हैं कि एक शख्स जिसने अपनी बेटी की शादी कर दी, वह दूसरों की बेटियों को अपना सिर मुंडवाने और संन्यासियों का जीवन जीने के लिए प्रोत्साहित क्यों कर रहा है?
क्या यह पाप नहीं है?
सुनवाई के दौरान जब दोनों युवतियों ने अपना बयान देने की मांग की तो बेंच ने उनसे पूछा कि आप आध्यात्म के मार्ग पर चलने की बात कह रही हैं. क्या अपने माता-पिता के नजरअंदाज करना पाप नहीं है? भक्ति का मूल यह है कि सभी से प्यार करो और किसी से नफरत न करो, लेकिन हम आपमें अपने परिजनों के लिए नफरत देख रहे हैं. आप उन्हें सम्मान देकर बात तक नहीं कर रही हैं. वहीं, याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट को बताया कि ईशा फाउंडेशन के खिलाफ कई आपराधिक मामले चल रहे हैं और हाल ही में वहां काम कर रहे एक डॉक्टर के खिलाफ पॉक्सो एक्ट में केस दर्ज हुआ है.
नर्क जैसी हुई जिंदगी
रिटायर्ड प्रोफेसर एस कामराज ने अपनी याचिका में कहा है कि उनकी बेटी ने ब्रिटेन से एमटेक की डिग्री हासिल की और अच्छी सैलरी कमा रही थी. 2007 में उसने ब्रिटेन के ही एक व्यक्ति से शादी की, लेकिन 2008 में तलाक के बाद उसने ईशा फाउंडेशन के योग केंद्र में हिस्सा लेना शुरू किया. उसको देखकर छोटी बेटी भी योग केंद्र में रहने लगी. उन्होंने आगे कहा कि जब से बेटियों ने हमें छोड़ा है, हमारी जिंदगी नर्क जैसी हो गई है. प्रोफेसर ने आरोप लगाते हुए कहा कि योग केंद्र में उनकी बेटियों को कुछ ऐसा दिया जा रहा था, जिससे उनकी सोचने-समझने की शक्ति खत्म हो गई.