सोसाइटी के रहवासियों ने पश्चिमांचल विद्युत वितरण निगम के फैसले के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया था
नोएडा के सेक्टर-74 स्थित सुपरटेक केपटाउन हाउसिंग सोसाइटी के रहवासियों को हाई कोर्ट से बड़ी राहत मिली है. कोर्ट ने मल्टी प्वाइंट कनेक्शन पर रोक लगा दी है. सोसाइटी के रहवासियों ने पश्चिमांचल विद्युत वितरण निगम के फैसले के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया था. मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने मल्टी प्वाइंट कनेक्शन पर रोक लगाने के आदेश दिया है.
बिल्डर को कर दिया था भुगतान
सोसाइटी के निवासी एडवोकेट नवीन दुबे ने बताया कि सुपरटेक केप टाउन में लगभग 8,000 फ्लैट हैं, जिनमें 5,000 परिवार रहते हैं. निवासियों ने सिंगल प्वाइंट कनेक्शन के नाम पर बिल्डर को पहले ही भुगतान कर दिया है. अब मल्टी प्वाइंट कनेक्शन लगाने के नाम पर पश्चिमांचल विद्युत निगम फिर से पैसे की मांग कर रहा था, जिसका रहवासियों ने विरोध किया था.
कोर्ट ने कही ये बात
एडवोकेट नवीन दुबे ने बताया कि पश्चिमांचल विद्युत निगम द्वारा एक कनेक्शन पर 20,720 रुपए की मांग की जा रही है, जबकि रेजिडेंट्स का कहना था कि यह गलत है, क्योंकि वे पहले ही बिल्डर को पैसा जमा कर चुके हैं. रहवासियों ने विद्युत निगम और बिल्डर की नीतियों के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया था, जहां से उन्हें राहत मिली है. हाई कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि अगर सोसायटी के निवासी मल्टी प्वाइंट कनेक्शन नहीं चाहते हैं तो उन्हें बाध्य नहीं किया जा सकता.
दिवालिया होने से पहले FTX दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा क्रिप्टोकरेंसी एक्सचेंज था और सैम दुनिया के बड़े रईसों में शुमार थे.
क्रिप्टोकरेंसी वर्ल्ड से एक बड़ी खबर सामने आई है. दिवालिया हो चुकी क्रिप्टोकरेंसी फर्म FTX के फाउंडर सैम बैंकमैन-फ्राइड (Sam Bankman-Fried) को अदालत ने 25 साल की सजा सुनाई है. उन्हें क्रिप्टो फ्रॉड के लिए दोषी करार दिया गया है. सैम बैंकमैन-फ्राइड पर आरोप था कि उन्होंने ग्राहकों का पैसा चुराया और निवेशकों को गुमराह किया. अमेरिकी अदालत ने सैम पर लगे आरोपों को सही मानते हुए उन्हें 25 साल के लिए जेल भेज दिया है.
इतनी बड़ी थी कंपनी
एक समय FTX दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी क्रिप्टो एक्सचेंज फर्म थी. कंपनी का मूल्य 32 अरब डॉलर था. डिजिटल एसेट एक्सचेंज एफटीएक्स के फाउंडर सैम दुनिया के बड़े रईसों में शुमार थे, उनकी कायमाबी के उदाहरण दिए जाते थे, लेकिन एक ही झटके में सबकुछ बदल गया. सैम को धोखाधड़ी और जालसाली के सभी सातों आरोपों में पिछले साल दोषी करार दिया गया है और उनकी सजा पर 28 मार्च, 2024 को फैसला सुनाया जाना था. कल आए फैसले में अदालत ने सैम को 25 साल जेल की सजा सुनाई है.
सजा देगी दूसरों को सबक
वहीं, बैंकमैन-फ़्राइड के परिवार ने एक बयान में कहा कि हम दुखी हैं और अपने बेटे के लिए लड़ना जारी रखेंगे. मैनहट्टन अमेरिकी अटॉर्नी डेमियन विलियम्स ने कहा कि सैमुअल बैंकमैन-फ्राइड ने इतिहास में दर्ज सबसे बड़ी वित्तीय धोखाधड़ी में से एक को अंजाम दिया, अपने ग्राहकों के 8 अरब डॉलर से अधिक की चोरी की. यह सजा न केवल बैंकमैन-फ्राइड को फिर से धोखाधड़ी करने से रोकेगी, बल्कि अन्य लोगों को भी स्पष्ट संदेश देगी कि वित्तीय अपराध उन्हें सीधे जेल की कालकोठरी तक ले जा सकते हैं.
हासिल किया था ये मुकाम
बैंकमैन-फ्राइड पर करीब 10 अरब डॉलर के कस्टमर फंड के गबन का आरोप लगा था. इसके अलावा, उन पर निवेशकों को धोखा देने और मनी लॉड्रिंग के भी आरोप थे. स्थानीय अदालत ने इन सभी आरोपों को सही पाते हुए उन्हें दोषी करार दिया है. बुरे दिन शुरू होने से पहले तक 31 साल के बैंकमैन-फ्राइड अरबपति थे. उनकी नेटवर्थ करीब 26 अरब डॉलर थी. वह अमेरिका के 41वें और दुनिया के 60वें सबसे धनवान व्यक्ति थे. क्रिप्टोकरेंसी एक्सचेंज FTX अब डूब चुका है और उसके फाउंडर बर्बाद हो चुके हैं.
रातोंरात हुए थे कंगाल
दिवालिया होने से पहले FTX दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा क्रिप्टोकरेंसी एक्सचेंज था. FTX ने नवंबर 2022 में खुद को दिवालिया घोषित कर दिया था. क्रिप्टो बाजार के लिए ये खबर किसी सदमे से कम नहीं थी. बैंकरप्सी के लिए आवेदन करने से एक दिन पहले सैम बैंकमैन-फ्राइड को तगड़ा झटका लगा था. वह रातोंरात कंगाल हो गए थे. एक दिन में उनकी नेटवर्थ में लगभग 94% की बड़ी गिरावट आई थी, जिससे उनकी संपत्ति घटकर 991.5 मिलियन डॉलर रह गई, जबकि वह 15.2 अरब डॉलर के मालिक थे. यह किसी भी अरबपति की संपत्ति में एक दिन में आने वाली यह सबसे बड़ी गिरावट थी. इसके बाद उन पर धोखाधड़ी के आरोपों में केस चला. बैंकमैन-फ्राइड ने कहा कि उन्होंने जानबूझकर ग्राहकों के धन का दुरुपयोग नहीं किया, लेकिन कोर्ट ने उनकी कोई दलील नहीं सुनी.
पूर्वांचल का डॉन मुख्तार अंसारी इस दुनिया से रुखसत हो गया है. जेल में बंद अंसारी की कार्डियक अरेस्ट से मौत हो गई है.
माफिया डॉन मुख्तार अंसारी (Mukhtar Ansari) की मौत हो गई है. यूपी की बांदा जेल में बंद अंसारी की कार्डियक अरेस्ट से गुरुवार रात दुर्गावती मेडिकल कॉलेज में मौत हो गई. मुख्तार को गंभीर हालत में अस्पताल लाया गया था, जहां डॉक्टरों ने उसे बचाने की कोशिश लेकिन सफल नहीं हो पाए. गाजीपुर में जन्मे मुख्तार अंसारी ने भले ही अपराध की दुनिया में अपनी पहचान बनाई, लेकिन उसके परिवार की अपनी एक अलग प्रतिष्ठा थी. मुख्तार के दादा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष और स्वतंत्रता सेनानी थे. मु्ख्तार अंसारी पर कई आपराधिक मुकदमे दर्ज थे और वो जेल से ही अपना गैंग चलाया करता था.
पांच बार विधायक भी रहा
मुख्तार अंसारी ने अपराध की दुनिया से राजनीति में भी एंट्री ली थी और पांच बार विधायक भी रहा. उसने तीन बार तो जेल में ही रहकर चुनाव जीता था. 2022 का विधानसभा चुनाव मुख्तार ने खुद नहीं लड़ा, बल्कि अपने बड़े बेटे अब्बास अंसारी को इस सीट से लड़वाया और जीत भी दिलवाई. अब्बास इस वक्त जेल में बंद है. जबकि मुख्तार की पत्नी शाइस्ती परवीन और छोटा बेटा उमर अंसारी फरारा चल रहे है. दोनों के ऊपर कई मुकदमे दर्ज हैं. मुख्तार अंसारी ने केवल यूपी ही नहीं बल्कि कई राज्यों में अपना नेटवर्क स्थापित किया था. मुंबई, गुजरात, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, बिहार, दिल्ली और मध्य प्रदेश तक उसके गैंग की पहुंच थी.
ऐसे फैलाया अपना नेटवर्क
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, मुख्तार अंसारी ने महाराष्ट्र में तेल के कारोबार में करीबी शूटर मुन्ना बजरंगी के बल पर दबदबा कायम किया था. 1994 से वर्ष 2016 तक पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में आतंक मचाने वाले गैंगस्टर जसविंदर सिंह राकी से माफिया मुख्तार अंसारी के रिश्ते जगजाहिर थे. रॉकी की मदद से मुख्तार ने पंजाब, हरियाण और राजस्थान में सक्रिय अपराधियों को अपने नेटवर्क में शामिल किया था. इसी तरह, पूर्वांचल के मछली बाजार पर भी मुख्तार गैंग ने सालों तक राज किया. यूपी में अंसारी का इतना खौफ था कि कोई उसके खिलाफ मुंह खोलने की हिम्मत नहीं कर पाता था. अपराध की दुनिया से अंसारी ने दौलत का पहाड़ खड़ा कर लिया था.
योगी सरकार ने तोड़ी कमर
मुख्तार अंसारी पांच बार विधायक रहा था. एक रिपोर्ट के अनुसार, उसने अपने चुनावी हलफनामे में बताया था कि उसकी नेटवर्थ 21 करोड़ रुपए है. हालांकि, ये केवल वो कमाई थी जिसका जिक्र उसने किया था, इसके अलावा भी उसने भी इतना कमाया था जिसकी जानकारी वो सार्वजनिक नहीं कर सकता था. यूपी में योगी सरकार बनने के बाद मुख्तार अंसारी के सही मायनों में बुरे दिनों की शुरुआत हुई. मुख्तार अंसारी गैंग के सदस्यों पर 150 से ज्यादा FIR दर्ज हुईं. मुख्तार की करीब 600 करोड़ की संपत्ति जब्त की गई और 2100 से अधिक के अवैध कारोबार को बंद किया गया. बीते 18 महीनों में उसे 8 मामलों में सजा हुई थी. कुछ मीडिया रिपोर्टस की मानें तो अंसारी के 186 सहयोगियों को योगी सरकार जेल भेज चुकी है.
प्रवर्तन निदेशालय ने कथित शराब घोटाले में अरविंद केजरीवाल को 21 मार्च को गिरफ्तार किया था.
कथित शराब घोटाले में फंसे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) को कुछ राहत मिली है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, दिल्ली हाई कोर्ट ने केजरीवाल को मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने को लेकर दायर याचिका गुरुवार को खारिज कर दी. कोर्ट ने कहा कि यह राजनीतिक मामला है और इसमें न्यायिक दखल की जरूरत नहीं है. इस मामले में एक्टिंग चीफ जस्टिस मनमोहन और जस्टिस मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की बेंच ने सुनवाई करते हुए याचिका को खारिज कर दिया.
हम उन्हें गाइड नहीं कर सकते
आबकारी नीति से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने 21 मार्च को केजरीवाल को गिरफ्तार किया था. इसके बाद सामाजिक कार्यकर्ता सुरजीत सिंह यादव ने हाई कोर्ट में याचिका दायर करते हुए अरविंद केजरीवाल को CM की कुर्सी से हटाने की मांग की थी. याचिका पर आज सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि क्या न्यायपालिका के दखल की कोई गुंजाइश है? LG इसका परीक्षण कर रहे हैं, यह फिर राष्ट्रपति के सामने जाएगा. हम समझ सकते हैं कि कुछ राजनीतिक दिक्कतें हो सकती हैं, लेकिन हमें क्यों कोई आदेश पारित करना चाहिए? हम एलजी या राष्ट्रपति को गाइड नहीं कर सकते.
हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है
बेंच ने आगे कहा - याचिकाकर्ता यह दर्शाने में विफल रहा कि क्या केजरीवाल को मुख्यमंत्री बने रहने से रोकता है. यदि कोई संवैधानिक संकट है तो राष्ट्रपति या LG इस पर काम करेंगे. इसमें समय लग सकता है, लेकिन हमें विश्वास है कि वे इस पर फैसला करेंगे. हमें राजनीति में नहीं पड़ना चाहिए. हमें इस मामले में हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है और इसलिए याचिका खारिज की जाती है. इससे पहले, मनी लॉन्ड्रिंग मामले में ईडी द्वारा की गई मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया था.
दिल्ली हाई कोर्ट ने आयकर विभाग के एक्शन के खिलाफ कांग्रेस की याचिका को खारिज कर दिया है.
कांग्रेस (Congress) के लिए कुछ भी अच्छा नहीं चल रहा है. एक तरफ जहां लोकसभा चुनाव से पहले उसके नेता पाला बदलकर भाजपा का दामन थाम रहे हैं. वहीं, आर्थिक मोर्चे पर भी पार्टी की परेशानियां बढ़ती जा रही हैं. इस बीच, दिल्ली हाई कोर्ट से कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है. कोर्ट ने इनकम टैक्स विभाग द्वारा कांग्रेस के खिलाफ चार साल की अवधि के लिए टैक्स रिअसेसमेंट कार्यवाही शुरू करने को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी है. इसका मतलब है कि पार्टी को आयकर विभाग को 523 करोड़ रुपए का भुगतान करना होगा.
कार्यवाही शुरू करने के पर्याप्त सबूत
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, गुरुवार को हुई सुनवाई के बाद दिल्ली हाईकोर्ट ने कांग्रेस की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें साल 2017-18, 2018-19, 2019-20 और 2020-21 के लिए आयकर विभाग द्वारा 523 करोड़ रुपए की मांग को चुनौती दी गई थी. न्यायमूर्ति यशवन्त वर्मा और न्यायमूर्ति पुरूषेन्द्र कुमार कौरव की खंडपीठ ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि कांग्रेस के खातों में कई बेहिसाब लेनदेन थे. आयकर अधिकारियों के पास उनके पुनर्मूल्यांकन की कार्यवाही शुरू करने के लिए पर्याप्त सबूत मौजूद थे.
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पहले भी खारिज हुई थी याचिका
इससे पहले, दिल्ली हाईकोर्ट ने तीन साल के लिए आयकर विभाग की टैक्स पुनर्मूल्यांकन कार्यवाही के खिलाफ याचिका खारिज की थी. दरअसल, कांग्रेस पुनर्मूल्यांकन कार्यवाही का विरोध कर रही है. पार्टी के वकील अभिषेक सिंघवी ने हाल ही में कहा था कि टैक्स रिअसेसमेंट पर समयसीमा लागू होती है, लेकिन आयकर विभाग द्वारा ऐसा नहीं किया गया है. कर पुनर्मूल्यांकन कार्यवाही इनकम टैक्स कानून के प्रावधानों के विपरीत की जा रही है. वहीं, आयकर विभाग का दावा है कि किसी वैधानिक प्रावधान का कोई उल्लंघन नहीं किया गया है.
प्रचार के लिए भी नहीं हैं पैसे
अदालत ने आठ मार्च को आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण (ITAT) द्वारा पारित एक आदेश को बरकरार रखा था. इस आदेश में साल 2018-19 के लिए 100 करोड़ रुपए से अधिक के बकाया टैक्स वसूली के लिए कांग्रेस को जारी नोटिस पर रोक लगाने से इंकार किया गया था. दिल्ली हाई कोर्ट का ताजा फैसला कांग्रेस के लिए बड़े झटके के समान है. पार्टी लीडर पहले ही कह चुके हैं कि इनकम टैक्स विभाग द्वारा पार्टी का अकाउंट फ्रीज करने से उनके सामने आर्थिक समस्या उत्पन्न हो गई है. पार्टी के पास चुनाव प्रचार करने के भी पैसे नहीं हैं.
भारत फोर्ज के चेयरमैन बाबा कल्याणी एक बार फिर से सुर्खियों में आ गए हैं. उनके भतीजे और भतीजी ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है.
भारत फोर्ज के चेयरमैन बाबा कल्याणी (Bharat Forge Chairman Baba Kalyani) के परिवार का प्रॉपर्टी विवाद अदालत तक पहुंच गया है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, नीलकंठ कल्याणी के पोते समीर हीरेमथ और पल्लवी स्वादि ने पारिवारिक संपत्ति के बंटवारे को लेकर अपने चाचा बाबा कल्याणी के खिलाफ पुणे सिविल कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. दोनों ने भारत फोर्ज और कल्याणी स्टील में हिस्सेदारी सहित पारिवारिक संपत्ति का नौवां हिस्सा मांगा है. बाबा की गिनती देश के सबसे अमीर लोगों में होती है. फोर्ब्स के अनुसार, उनकी नेटवर्थ 4 अरब डॉलर है.
इस बात की है आशंका
समीर हीरेमथ और पल्लवी स्वादि मुकदमा परिवार के पांच अन्य सदस्यों के खिलाफ भी दायर किया है, जिनमें उनकी मां सुगंधा हिरेमथ, भाई गौरीशंकर कल्याणी, उनके बच्चे शीतल कल्याणी एवं विराज कल्याणी और बाबा के बेटे अमित कल्याणी शामिल हैं. परिवार के पास पुणे, महाबलेश्वर और महाराष्ट्र में अन्य जगहों पर जमीनें हैं, जिनका मूल्य निर्धारण अभी नहीं किया जा सका है. कल्याणी ग्रुप की लिस्टेड कंपनियों का मार्केट कैप लगभग 62,834 करोड़ रुपए है. अपनी याचिका में समीर (50) और पल्लवी (48) ने कहा कि फरवरी 2023 में नीलकंठ कल्याणी की पत्नी की मृत्यु के बाद, बाबा समय-समय पर की गई Wishes और Writings को प्रभाव में लाने से बचते रहे हैं. वह इस बारे में चर्चा को भी तैयार नहीं हैं. ऐसे में आशंका है कि वह कल्याणी परिवार HUF की सभी संपत्तियों पर कब्जा कर लेंगे और उन्हें उनके शेयरों से वंचित कर देंगे.
विरासत में मिली संपत्ति
मुकदमे के मुताबिक, आवेदकों के परदादा अन्नप्पा कल्याणी एक किसान के साथ-साथ एक व्यापारी भी थे. अन्नप्पा के पास बड़ी चल और अचल संपत्ति थी, जो बाद में उनके एकमात्र बच्चे नीलकंठ को विरासत में मिली. फरवरी 1954 में नीलकंठ सभी संपत्तियों (अर्जित और निवेश) को हिंदू अविभाजित परिवार (HUF) यूनिट के तहत लेकर आए. 2011 में जब उनकी तबीयत बिगड़ने लगी तो उनके सबसे बड़े बेटे बाबा ने एचयूएफ के मामलों का प्रबंधन करना शुरू कर दिया. साल 2013 में नीलकंठ का निधन हो गया.
अकेले बाबा का हक नहीं
नीलकंठ के निधन के बाद बाबा ने समूह को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया. उदाहरण के लिए, कल्याणी ग्रुप की प्रमुख कंपनी भारत फोर्ज की स्थापना 1966 में नीलकंठ ने की थी, लेकिन बाबा के प्रयासों के चलते ही यह ऑटो और एयरोस्पेस कंपोनेंट निर्माता कंपनी आज 52,636 करोड़ रुपए के बाजार मूल्य वाली बन गई है. दायर मुकदमे में कहा गया है कि चूंकि सभी बिजनेस और निवेश फैमिली फंड से शुरू किए गए थे. लिहाजा, सभी बिजनेस और निवेश संयुक्त परिवार की संपत्ति थे और इसलिए बाबा को अकेले इसका अधिकार नहीं है.
इंटरनेशनल चैंबर ऑफ कॉमर्स के इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन ने ग्लोकल हेल्थकेयर सिस्टम्स को 110 मिलियन डॉलर का हर्जाना देने का आदेश दिया है. इस पर ग्लोकल ने अपना बयान जारी किया है.
इंटरनेशनल चैंबर ऑफ कॉमर्स के इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन (आईसीए) ने ग्लोकल (Glocal) हेल्थकेयर सिस्टम्स, उसके प्रमोटरों और अन्य को अपहेल्थ फ्राड केस में अनुबंध (Contract) के उल्लंघन के लिए जिम्मेदार ठहराया और उन्हें 110 मिलियन डॉलर का हर्जाना देने का आदेश दिया है. इस आदेश के बाद ग्लोकल ने भी अपनी सफाई में बयान जारी किया है.
इस मामले पर ग्लोकल की प्रतिक्रिया
ग्लोकल ने मध्यस्थता (Arbitration) आदेश को एकतरफा बताते हुए कहा है कि शिकागो, इलिनोइस में बैठे एक आईसीसी ट्रिब्यूनल ने मेसर्स ग्लोकल हेल्थकेयर सिस्टम्स प्राइवेट के खिलाफ एकतरफा और विकृत फैसले की सूचना दी है. यह सुलभ स्वास्थ्य सेवा का क्षेत्र और इसके शेयरधारक UpHealth Holdings Inc, UpHealth Inc and Avi Katz, Raluca Dinu, Martin S. Beck आदि द्वारा की गई आपराधिक धोखाधड़ी का मामला है, जिसे संबंधित अदालतों और जांच अधिकारियों दोनों ने सीधे स्वीकार कर लिया है. ग्लोकल या उसके प्रबंधन/शेयरधारकों द्वारा गलत बयानी का कोई सबूत नहीं मिलने पर, निजी न्यायाधिकरण अपहेल्थ होल्डिंग्स इंक को नियंत्रण खोने के दावे पर हर्जाना देने के लिए आगे बढ़ा, जिसे कभी भी स्थानांतरित नहीं किया गया था और न ही वैध रूप से स्थानांतरित किया जा सकता था, क्योंकि यह लेनदेन अपहेल्थ होल्डिंग्स इंक द्वारा गंभीर आपराधिक धोखाधड़ी का एक हिस्सा था. इसे बाद में स्वैच्छिक दिवालियापन के लिए दायर किया है और अमेरिका में एसईसी और भारत के जांच अधिकारियों द्वारा जांच की जा रही है.
ट्रिब्यूनल ने दिया ये कारण
ट्रिब्यूनल द्वारा दिया गया एकमात्र कारण यह है कि ग्लोकल और अन्य ने अपना केस पेश नहीं किया, इसलिए वे इस फैसले के लिए जिम्मेदार हैं. ग्लोकल ने हमेशा कहा है कि इस मामले में आपराधिक जांच की जरूरत है और इसमें ऐसे मुद्दे शामिल हैं, जो गैर-मध्यस्थता योग्य हैं. ऐसी कार्यवाहियों में भाग लेना कानूनी प्रक्रिया के हर सिद्धांत के विपरीत होगा.
ये है मामले से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारी
1. कंपनी के साथ-साथ इसके प्रमोटरों/शेयरधारकों की मध्यस्थता कार्यवाही में गैर-भागीदारी के बावजूद एकपक्षीय फैसला सुनाया गया.
2. मध्यस्थता न्यायाधिकरण को बिना किसी पूर्वाग्रह के मध्यस्थता के लिए संदर्भित मुद्दों पर संज्ञान लेने के लिए स्पष्ट कानूनी बाधा के बारे में बार-बार सूचित किया गया था, जो कि प्रत्यक्ष तौर पर गैर-मध्यस्थता योग्य थे. हालांकि, ट्रिब्यूनल अपने अधिकार क्षेत्र को दी गई चुनौती पर कोई भी प्रारंभिक निष्कर्ष जारी करने में विफल रहा, जो कि स्थापित कानूनी सिद्धांतों का सरासर उल्लंघन है. वहीं,नट्रिब्यूनल ने दावेदारों द्वारा की जा रही धोखाधड़ी और झूठी गवाही का सबूत देने वाले दस्तावेजों को पढ़ने से इनकार कर दिया और दस्तावेजी तथ्यों के विपरीत बयान दिए. ट्रिब्यूनल द्वारा जारी किया गया फैसला इस बात का सबूत है कि गंभीर धोखाधड़ी से जुड़े मामलों को निजी ट्रिब्यूनल की दया पर क्यों नहीं छोड़ा जा सकता है.
3. अपराधियों ने बेईमानी से और धोखाधड़ी से ग्लोकल के शेयरधारकों को शेयर खरीद समझौते में प्रवेश करने के लिए प्रेरित किया, यह अच्छी तरह से जानते हुए कि उनके पास समझौते के दायित्वों को पूरा करने का न तो इरादा था और न ही साधन थे और शेयर खरीद समझौते की आड़ में केवल इसका इस्तेमाल किया गया था इन समझौतों को बाद में ग्लोकल द्वारा समाप्त कर दिया गया और परिणामस्वरूप ग्लोकल में अपराधियों की बहुमत हिस्सेदारी भी रद्द कर दी गई है.
4. ग्लोकल ने अपने साथ हुई जटिल धोखाधड़ी के बारे में जानने के तुरंत बाद भारत में अधिकारियों को सतर्क किया और तुरंत डॉ. एवी काट्ज़, रालुका दीनू, मार्टिन सैमुअल, आर्थर बेक, रमेश बालकृष्णन, रंजिनी रामकृष्ण सहित मेसर्स अपहेल्थ इंक के प्रिंसिपलों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई. भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा के तहत इन अपराधों की पश्चिम बंगाल में सक्रिय जांच चल रही है.
5. जहां तक एफआईआर का सवाल है, जांच एजेंसी को आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ अमेरिका में इन व्यक्तियों की जांच के लिए पर्याप्त सबूत मिले हैं और उन्होंने अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को सौंप दी है.
6. भारत में एक सक्षम वाणिज्यिक अदालत ने भी अपराधियों द्वारा ग्लोकल के खिलाफ की गई धोखाधड़ी का एक स्पष्ट निष्कर्ष वापस कर दिया है. इस बारे में आईसीसी ट्रिब्यूनल को भी सूचित किया गया था, लेकिन इसे नजरअंदाज कर दिया गया.
7. ग्लोकल ने सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन, यूएसए (एसईसी) के पास अपहेल्थ इंक के खिलाफ आपराधिक प्रवर्तन कार्रवाई की मांग करते हुए एक शिकायत भी दर्ज की थी. एसईसी को सूचित किया गया था कि अपहेल्थ इंक ने 1934 के प्रतिभूति विनिमय अधिनियम की (i) धारा 10(बी), (ii) शीर्षक 15 यू.एस. कोड § 78जे (बी) और (iii) शीर्षक का उल्लंघन करते हुए असाधारण अनुपात की प्रतिभूति धोखाधड़ी की है. इसके अलावा, अपहेल्थ इंक ने सिक्योरिटीज और कमोडिटीज धोखाधड़ी भी की है, जिसके लिए टाइटल 18 यू.एस. कोड § 1348 के तहत कारावास की सजा हो सकती है.
8. ऐसे न्यायाधिकरण द्वारा जारी किया गया कोई भी फैसला अमान्य है.
9. कंपनी ने भारत के सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीशों सहित प्रतिष्ठित दिग्गजों से कानूनी राय और प्रमुख वैश्विक फोरेंसिक सलाहकारों से फोरेंसिक राय प्राप्त की है. कंपनी इस तरह के दोषपूर्ण, निरर्थक और गैर-स्थायी पुरस्कार के प्रवर्तन के किसी भी और हर तरीके का विरोध करने के लिए प्रतिबद्ध है. अन्य मामले जिन पर ट्रिब्यूनल अपनी राय दे रहा है, जिनमें अपहेल्थ होल्डिंग्स द्वारा धोखाधड़ी से प्राप्त शेयर भी शामिल हैं, जो भारतीय न्यायालयों का विषय है और उक्त अतिरिक्त शेयरों को कोर्ट की टिप्पणियों और फोरेंसिक और कानूनी रिपोर्टों के विधिवत प्राप्त होने के बाद ग्लोकल बोर्ड द्वारा पहले ही रद्द कर दिया गया है.
10. कंपनी उक्त संस्थाओं के खिलाफ नुकसान का दावा दायर करने की प्रक्रिया में भी है. शुरुआती अनुमानों के आधार पर इसकी मात्रा 500 मिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक होने की संभावना है.
पतंजलि आयुर्वेद के भ्रामक विज्ञापन के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बाबा रामदेव से अदालत में हाजिर होने को कहा है.
सुप्रीम कोर्ट ने बाबा रामदेव (Baba Ramdev) और आचार्य बालकृष्ण (Acharya Balakrishna) को अवमानना का नोटिस जारी किया है. कोर्ट ने दोनों से दो सप्ताह बाद व्यक्तिगत तौर पर अदालत में हाजिर होने का आदेश दिया है. पतंजलि आयुर्वेद के कथित भ्रामक विज्ञापन को लेकर चल रही मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण को व्यक्तिगत तौर पर कोर्ट में उपस्थित होना पड़ेगा.
पहले लगी थी फटकार
पिछले महीने सुनवाई के दौरान, जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की खंडपीठ भ्रामक विज्ञापन को लेकर पतंजलि को जमकर फटकार लगाई थी. जस्टिस अमानुल्लाह ने पतंजलि के वकील से सवाल किया कि था कोर्ट के आदेश के बावजूद आपने भ्रामक विज्ञापन छपवाने की हिम्मत कैसे की? जस्टिस अहसानुद्दीन ने कहा था - हमारे आदेश के बाद भी आपमें यह विज्ञापन लाने की हिम्मत की है. मैं प्रिंटआउट लेकर आया हूं. हम आज बेहद सख्त आदेश पारित करने जा रहे हैं. इस विज्ञापन को देखिए, आप कैसे कह सकते हैं कि हर बीमारी ठीक कर देंगे? हमारी चेतावनी के बावजूद आप विज्ञापन जारी करके कह रहे हैं कि हमारी दवाएं रसायन आधारित दवाओं से बेहतर हैं.
IMA ने लगाई है याचिका
दरअसल, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने पतंजलि के खिलाफ याचिका दायर की है. IMA ने बाबा की कंपनी पर आधुनिक चिकित्सा प्रणालियों के खिलाफ भ्रामक दावे और विज्ञापन प्राकशित करने का आरोप लगाया है. इसके बाद अदालत ने पतंजलि को हिदायत देते हुए कहा था कि वो विज्ञापन प्रकाशित न करवाए, लेकिन इसके बावजूद कंपनी की तरफ से विज्ञापन प्रकाशित करवाए गए. IMA का कहना है कि बाबा रामदेव ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी प्रेस कांफ्रेंस काके डॉक्टरों पर दुष्प्रचार का आरोप लगाया था. इसके अलावा, रोक के बावजूद विज्ञापन प्रकाशित करवाए गए, जो सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन है.
फोटो से फंस गए बाबा
कोर्ट की सख्ती के बाद पतंजलि आयुर्वेद ने अदालत को अंडरटेकिंग दी थी, लेकिन इसके बावजूद विज्ञापन छपवाया. इस पर नाराजगी जाहिर करते हुए पीठ ने रामदेव और पतंजलि आयुर्वेद के मैनेजिंग डायरेक्टर बालकृष्ण से जवाब मांगा था. जवाब नहीं मिलने पर कोर्ट ने दोनों को व्यक्तिगत रूप से हाजिर होने का आदेश दिया है. साथ ही अवमानना का नोटिस भी थमा दिया है. दरअसल, पतंजलि के विज्ञापनों में बाबा रामदेव की तस्वीर भी लगी थी. लिहाजा अदालत ने उन्हें भी पार्टी बनाया और पूछा कि उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही क्यों न की जाए?
Flipkart ने एक ग्राहक के iPhone का ऑर्डर रद्द कर दिया था. इस पर जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (DCDRC) मुंबई ने कंपनी को हर्जाना भरने के आदेश दिए है.
फ्लिपकार्ट (Flipkart) को अपने एक ग्राहक के आइफोन (iPhone) का आर्डर मनमाने तरीके से रद्द करना काफी महंगा पड़ गया है. ग्राहक की शिकायत पर जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (DCDRC) ने फ्लिपकार्ट को अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिस के तहत दोषी पाया है. आयोग ने आदेश दिया कि फ्लिपकार्ट उस ग्राहक को 10,000 रुपये का भुगतान करे, जिसके आइफोन के आर्डर को रद्द किया गया था.
ग्राहक को मिलेगा मुआवजा
जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (DCDRC) मुंबई ने पिछले महीने पारित आदेश में कहा कि अतिरिक्त लाभ कमाने के लिए फ्लिपकार्ट ने जानबूझकर आर्डर को रद्द किया गया था. यह विस्तृत आदेश रविवार को उपलब्ध कराया गया है. आयोग ने कहा कि हालांकि ग्राहक को रिफंड मिल गया था, लेकिन ऑर्डर को मनमाने तरीके से रद्द करने के कारण ग्राहक को हुई मानसिक पीड़ा के लिए उसे मुआवजा मिलना चाहिए.
ग्राहक ने कहा, उसका मानसिक उत्पीड़न हुआ
दादर निवासी शिकायतकर्ता ने बताया था कि उसने 10 जुलाई 2022 को Flipkart से iPhone आर्डर किया और क्रेडिट कार्ड से 39,628 रुपये का भुगतान किया. फोन को 12 जुलाई को पहुंचाया जाना था, लेकिन छह दिन बाद ई-कॉमर्स कंपनी फ्लिपकार्ट से आर्डर रद्द किए जाने का एसएमएस मिला. संपर्क करने पर कंपनी ने बताया कि डिलीवरी ब्वाय ने फोन पहुंचाने के कई प्रयास किए थे, लेकिन वह उपलब्ध नहीं थे, इसलिए आर्डर रद्द कर दिया गया. शिकायतकर्ता ने कहा कि आर्डर रद्द होने से उसका मानसिक उत्पीड़न हुआ है.
फ्लिपकार्ट का जवाब
फ्लिपकार्ट ने अपने लिखित जवाब में कहा कि शिकायतकर्ता ने उसे उत्पाद का विक्रेता माना, जबकि उनकी कंपनी केवल मध्यस्थ के रूप में ऑनलाइन प्लेटफार्म पर काम करती हैं. प्लेटफार्म पर सभी उत्पाद थर्ड पार्टी विक्रेताओं द्वारा बेचे और आपूर्ति किए जाते हैं. इस मामले में विक्रेता इंटरनेशनल वैल्यू रिटेल प्राइवेट लिमिटेड कंपनी थी. इस पूरे लेन-देन में उनकी कोई भूमिका नहीं थी. फ्लिपकार्ट ने दावा किया कि उसने विक्रेता को शिकायत के बारे में सूचित किया था. विक्रेता ने कहा कि डिलीवरी ब्वाय ने पते पर फोन पहुंचाने के कई प्रयास किए थे, लेकिन शिकायतकर्ता नहीं मिला, इसलिए ऑर्डर रद्द करके उसे पैसा रिफंड कर दिया गया.
फ्लिपकार्ट ने स्वीकारा ऑर्डर हुआ था रद्द
आयोग ने कहा कि ई-कॉमर्स कंपनी द्वारा आर्डर को एकतरफा तरीके से रद कर दिया गया था. फ्लिपकार्ट ने अपने या विक्रेता द्वारा फोन पहुंचाने के कई प्रयासों के बारे में किए गए दावे को लेकर कोई साक्ष्य नहीं दिए. आयोग ने कहा कि फ्लिपकार्ट ने स्वीकारा है कि आर्डर रद्द कर दिया गया था और शिकायतकर्ता को नया आर्डर देने के लिए कहा गया था.
ये था ऑर्डर रद्द करने का कारण
आरोप है कि iPhone की लागत लगभग 7,000 रुपये बढ़ गई थी, इसलिए कंपनी ने ऑर्डर रद्द कर दिया था. इसके बाद शिकायतकर्ता को नया ऑर्डर देने के लिए कहा गया था. आयोग ने बताया कि फ्लिपकार्ट ने अतिरिक्त लाभ कमाने के लिए जानबूझकर ऐसा किया था, जो अनुचित और प्रतिबंधात्मक व्यापार प्रथाओं के बराबर है. आयोग ने फ्लिपकार्ट को शिकायतकर्ता को हुए मानसिक उत्पीड़न के मुआवजे के रूप में 10,000 रुपये भुगतान करने का आदेश दिया.
शेयर बाजार में अडानी समूह की कंपनी अडानी पावर के शेयर लाल निशान पर कारोबार कर रहे हैं.
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से अडानी समूह (Adani Power) को बड़ा झटका लगा है. अदालत ने समूह की कंपनी 'अडानी पावर' (Adani Power) के उस आवेदन पर विचार करने से मना कर दिया, जिसमें विलंब से भुगतान अधिभार (LPS) की मांग की गई थी. इतना ही नहीं, सर्वोच्च अदालत ने कंपनी पर 50,000 रुपए का जुर्माना भी लगाया गया है. वहीं, कोर्ट के इस फैसले का असर अडानी पावर के शेयरों आर दिखाई दे रहा है. कंपनी के शेयर सप्ताह के पहले कारोबारी दिन गिरावट के साथ कारोबार कर रहे हैं.
JVVN से जुड़ा है मामला
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अडानी पावर को फटकार लगाते हुए न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस और न्यायमूर्ति संजय कुमार की खंडपीठ ने कहा कि LPS के लिए अलग-अलग आवेदन कंपनी द्वारा अपनाया गया उचित कानूनी सहारा नहीं है. अडानी पावर की ओर से जयपुर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड से LPS के रूप में 1,300 करोड़ रुपए से अधिक की मांग की गई थी. कंपनी ने साथ ही तर्क दिया गया कि अगस्त 2020 के फैसले में जो निर्णय लिया गया था, वह कानून में बदलाव और वहन लागत के मुआवजे पर था, जो 28 जनवरी को JVVN के साथ हस्ताक्षरित बिजली खरीद समझौते (PPA) के तहत देर से भुगतान अधिभार (PLS) से अलग था.
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इतना लुढ़क गए शेयर
अडानी पावर की याचिका पर सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने कहा कि LPS के लिए अलग-अलग आवेदन कंपनी द्वारा अपनाया गया उचित कानूनी सहारा नहीं है. इसके साथ ही कोर्ट ने आवेदन को खारिज कर दिया. उधर, कंपनी के शेयरों की बात करें, तो दोपहर डेढ़ बजे तक Adani Power के शेयर एक प्रतिशत से ज्यादा के नुकसान के साथ 525 रुपए पर ट्रेड कर रहे थे. बीते पांच दिनों में कंपनी के शेयर 5.41% लुढ़क गए हैं. जबकि एक महीने में यह आंकड़ा 7.51% रहा है. इस साल अब तक अडानी पावर के शेयर महज 0.33% बढ़त ही हासिल कर पाए हैं.
इलेक्टोरल बॉन्ड मामले में सुप्रीम कोर्ट पहले भी स्टेट बैंक ऑफ को लताड़ लगा चुका है.
इलेक्टोरल बॉन्ड (Electoral Bonds) मामले में भारतीय स्टेट बैंक (SBI) को फिर से अदालत की फटकार मिली है. सुप्रीम कोर्ट ने यूनिक नंबर की जानकारी न देने के लिए SBI की खिंचाई करते हुए कहा कि बैंक जानकारी के खुलासे को लेकर सेलेक्टिव नहीं हो सकता. कोर्ट ने आगे कहा कि एसबीआई को हर हाल में पूरी जानकारी प्रदान करनी होगी. पिछली सुनवाई में अदालत ने SBI को इलेक्टोरल बॉन्ड के यूनिक नंबर उजागर करने के लिए 18 मार्च का समय दिया था.
ऐसा रवैया है आपका
चुनावी चंदे के खुलासे से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश (CJI) की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ ने कहा कि एसबीआई से अपेक्षा की गई थी कि वह इलेक्टोरल बॉन्ड के संबंध में हर संभावित विवरण देगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ है. पीठ ने आगे कहा - आपका रवैया कुछ ऐसा है कि जब तक हम आपको जानकारी देने के लिए न कहें, आप नहीं देंगे. इस मामले में एसबीआई को चयनात्मक नहीं होना चाहिए. बैंक को निष्पक्ष और अदालत के प्रति स्पष्टवादी होना चाहिए.
देना होगा हलफनामा
सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई को बॉन्ड का नंबर मुहैया कराने का निर्देश दिया है. अदालत ने कहा कि बैंक को गुरुवार शाम 5 बजे तक हलफनामा दाखिल करना होगा, जिसमें इस बात का जिक्र करना होगा कि उसके पास इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी कोई जानकारी अब बची नहीं है. मामले की सुनवाई के दौरान, CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने एसबीआई से कहा कि कोई भी जनकारी छिपाई नहीं जा सकती. इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी हर एक जानकारी सार्वजनिक करनी ही होगी. कोर्ट ने बैंक को 21 मार्च को हलफनामा दाखिला करने का निर्देश दिया है.
इस तरफ फंसा एसबीआई
अदालत ने कहा कि हमारे आदेश स्पष्ट थे, SBI को बॉन्ड से जुड़ी हर जानकारी मुहैया करानी थी. बॉन्ड को खरीदने और भुनाने के संबंध में पूरा विवरण उपलब्ध कराया जाना चाहिए थे, चुनावी बॉन्ड नंबरों या अल्फा न्यूमेरिक नंबरों का विवरण शामिल है. बता दें कि प्रशांत भूषण और कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट का ध्यान यूनिक नंबर की तरफ दिलाते हुए कहा था कि एसबीआई ने यूनिक नंबर मुहैया नहीं कराया है, इस कारण बहुत सी बातों का पता नहीं चल पाएगा. इसके बाद अदालत ने बैंक से पूरी जानकारी देने को कहा, लेकिन SBI अब तक आदेश पर अमल नहीं कर पाया है.
क्या होता है ये नंबर?
सुप्रीम कोर्ट ने SBI को जिस यूनिक नंबर का खुलासा करने का निर्देश दिया है, वो हर इलेक्टोरल बॉन्ड पर अंकित होता है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, एसबीआई जो इलेक्टोरल बॉन्ड जारी करता है, उस पर अलग-अलग नंबर दर्ज होते हैं. इन नंबरों को केवल अल्ट्रावायलेट किरण यानी यूवी लाइट्स में ही देखा जा सकता है. ये नंबर अंग्रेजी वर्णमाला के अक्षरों और नंबरों से मिलकर बने (अल्फान्यूमेरिक) होते हैं. इस नंबर से पता चलता है कि कोई खास बॉन्ड किसने और किसके लिए खरीदा था. दूसरे शब्दों में कहें तो अगर इसका खुलासा हो जाता है, तो यह पता चल जाएगा कि किस कंपनी, संस्था या व्यक्ति ने किस राजनीतिक पार्टी को कितना चंदा दिया है.