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क्यों जरूरी है इंडो-रशिया पाइपलाइन, क्या होगा फायदा? जानें इस बड़े प्रोजेक्ट की हर छोटी बात 

ऐसा नहीं है कि इस प्रोजेक्ट का फायदा केवल भारत को ही होगा. रूस के लिए भी यह डील मुनाफे का सौदा साबित होगी.

उर्वी श्रीवास्तव 1 year ago

रूस-यूक्रेन युद्ध ने पूरी दुनिया को किसी न किसी रूप में प्रभावित किया है. पश्चिमी देशों के प्रतिबंध की वजह से जहां रूस का एनर्जी एक्सपोर्ट सीमित हो गया है. वहीं, इस वजह से यूरोप ऊर्जा संकट का सामना कर रहा है और सर्दियों में हालात काफी खराब हो सकते हैं. युद्ध से पहले तक यूरोप अपनी गैस संबंधी ज़रूरतों का 40% रूस से आयात करता था, जो अब घटकर 9 फीसदी रह गया है. यूरोप ने जहां अपनी ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिए दूसरे देशों का रुख किया है, वहीं रूस भी एशिया पर केंद्रित हो गया है.

जरूरी है रूस का साथ
हाल ही में SCO समिट के दौरान Power of Siberia 2 पर चर्चा हुई, जिसके तहत चीन को रूस और मंगोलिया से एनर्जी की सप्लाई की जानी है. साथ ही माना जा रहा है कि 2023 तक इससे रूस से भारत को 38 बिलियन क्यूबिक मीटर गैस की आपूर्ति की जाएगी. रूस का एनर्जी एक्सपोर्ट के मामले में एशिया पर फोकस करना, हर लिहाज से भारत के लिए फायदेमंद है. भारत तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था है, ऐसे में आने वाले समय में उसकी ऊर्जा ज़रूरतों में इजाफा होगा. अभी भारत की एनर्जी डिमांड 5.05 मिलियन बैरल प्रति दिन है, जो 2030 तक बढ़कर 10 मिलियन बैरल प्रति दिन हो सकती है. इसलिए हमें रूस के साथ की ज़रूरत पड़ेगी.

खर्च होंगे 25 बिलियन डॉलर 
इसके मद्देनजर भारत-रूस पाइपलाइन गेम चेंजर साबित हो सकती है. 2016 में भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन के दौरान इस बारे में एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए थे. जिसके तहत साइबेरिया से भारत तक पाइपलाइन पर एक संयुक्त अध्ययन किया जाना था. इस प्रोजेक्ट की अनुमानित लागत 25 बिलियन डॉलर है और पाइपलाइन लगभग 6000 किमी तक फैली होगी. भारत दुनिया में तेल के सबसे बड़े उपभोक्ताओं में से एक है. एक अनुमान के मुताबिक, 2040 तक हम अपनी तेल ज़रूरतों का 90 प्रतिशत आयात करेंगे. सरकार अब ऊर्जा सुरक्षा पर ध्यान केन्द्रित कर रही है. हम पहले से ही LNG डील्स, ऑयल एंड गैस स्पॉट मार्केट की खरीदारी और ऑयल एंड गैस फ़ील्ड्स के अधिग्रहण में लगे हुए हैं. 

क्या संभव है पाइपलाइन बिछाना?
अब सवाल ये उठता है कि क्या रूस से भारत तक पाइपलाइन संभव है? तो इसका जवाब है हां. तमाम कठनाइयों के बावजूद इस प्रोजेक्ट को अमल में लाया जा सकता है. वैसे इसका सबसे छोटा रूट हिमालय से हो सकता है, हालांकि, इलाके की जटिलता को देखते हुए, यह अच्छा विकल्प नहीं है. दूसरा रास्ता मध्य एशिया से होकर जाता है, लेकिन वो बहुत महंगा साबित होगा. तीसरा रूट है चीन के रास्ते उत्तर पूर्व में दाखिल होना. जिन देशों से इस पाइपलाइन के गुजरने की उम्मीद है, उनका भारत से किसी न किसी मुद्दे पर मतभेद या विवाद है. दूसरा बड़ा कारक लागत है. इंजीनियर्स इंडिया लिमिटेड के अनुसार, इसकी लागत 25 बिलियन डॉलर होगी. कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रांसपोर्टेशन कॉस्ट 4 डॉलर प्रति मीट्रिक मिलियन बिलियन थर्मल यूनिट (MMBTU) होगी. चूंकि, यह एकमुश्त निवेश है, इसलिए यह संभव हो सकता है.

लागत प्रभावी होगी पाइपलाइन 
यह पाइपलाइन भारत के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि क्योंकि परिवहन के अन्य साधनों की तुलना में यह लागत प्रभावी है. उदाहरण के लिए, पेट्रोलियम पाइपलाइन की मौजूदा लागत 54 पैसे प्रति टन प्रति किमी है. जबकि सड़क मार्ग का भाड़ा 5 रुपए प्रति टन प्रति किमी है. इस लिहाज से पाइपलाइन के माध्यम से प्राकृतिक गैस की आपूर्ति अहम भूमिका निभा सकती है. यह न केवल स्वच्छ है, बल्कि लागत प्रभावी जीवाश्म ईंधन भी है. यह भारत की खपत में प्राकृतिक गैस की हिस्सेदारी को 6 से बढ़ाकर 15 प्रतिशत करने के देश के लक्ष्य के अनुरूप भी है. यह 450GW अक्षय ऊर्जा के लक्ष्य को प्राप्त करने में मददगार हो सकती है.

रूस को भी होगा फायदा
हालांकि, ऐसा नहीं है कि इस प्रोजेक्ट का फायदा केवल भारत को ही होगा. रूस के लिए भी यह डील मुनाफे का सौदा साबित होगी. ऐसा इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि रूस ने केवल पिछले 3 महीनों में चीन और भारत को ऊर्जा बेचकर 24 अरब डॉलर कमाए हैं. दिलचस्प बात यह है कि भारत और रूस युद्ध से पहले से ही गैस का व्यापार करते रहे हैं. यह डील भारत में GAIL और रूस में Gazprom के बीच चल रही थी. गौर करने वाली बात ये है कि भारत अकेले इसी पाइपलाइन पर निर्भर नहीं है, वो Middle-East To India Deepwater Gas Pipeline को भी पुनर्जीवित करना चाहता है. वैसे, यदि रूस-भारत पाइपलाइन बिछाने के प्रोजेक्ट पर अमल हो जाता है, तो ईंधन की बढ़ती कीमतों से परेशान आम आदमी को भी कुछ राहत मिल सकती है.


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