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महंगाई के मौसम में बढ़ेगा EMI का बोझ या मिलेगी राहत, फैसला आज
रिजर्व बैंक ने पिछली बैठक में नीतिगत ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं किया था.
बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 10 months ago
महंगाई के मौसम में आप पर EMI का बोझ बढ़ेगा या राहत मिलेगी, इसका फैसला अब से कुछ देर बाद हो जाएगा. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee - MPC) की बैठक का आज आखिरी दिन है और इसके बाद बैठक में लिए फैसलों की घोषणा की जाएगी. आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास (Shaktikanta Das) अध्यक्षता में हो रही MPC की यह 43वीं बैठक 6 जून को शुरू हुई थी. इस बैठक में लिए गए फैसलों का आम आदमी की जेब पर सीधा असर पड़ेगा.
कई बार किया है इजाफा
माना जा रहा है कि RBI पिछली बैठक की तरह इस बार भी नीतिगत ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं करेगा. जिसका मतलब है कि अगर आपको राहत नहीं मिलेगी, तो जेब का बोझ भी नहीं बढ़ेगा. RBI पहले ही महंगाई के नाम पर कई बार कर्ज महंगा कर चुका है, जिसकी वजह से लोन लेने वालों पर EMI का बोझ काफी बढ़ चुका है. इसके साथ ही नए लोन भी महंगे हो गए हैं. बता दें कि RBI पर महंगाई को एक निश्चित सीमा के नीचे रखने की जिम्मेदारी होती है और इसके लिए वह (Repo Rate) में इजाफा करता रहता है.
इस तरह होता है असर
महंगाई के मोर्चे पर आंकड़ों में कुछ कमी आई है, इसलिए माना जा रहा है कि RBI रेपो रेट को 6.50 फीसदी पर यथावथ रख सकता है. RBI की छह सदस्यों वाली मौद्रिक नीति समिति इससे पहले की बैठक में भी रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया था. हाल ही में किए गए एक पोल में 64 अर्थशास्त्रियों ने उम्मीद जताई थी कि RBI की 6-8 जून की बैठक के समापन पर रेपो दर में कोई बदलाव नहीं करने का फैसला लेगा. रेपो रेट की बात करें तो यह वो दर होती है, जिस पर RBI बैंकों को लोन देता है. लिहाजा, जब इसमें इजाफा होता है, तो बैंक अपना कर्ज महंगा करके ग्राहकों से उसकी वसूली कर लेते हैं. वहीं, रिवर्स रेपो रेट वो दर होती है, जिस पर RBI बैंकों को रुपए रखने के लिए ब्याज देता है. गौरतलब है कि महंगाई को नियंत्रित करने के लिए रिजर्व बैंक ने मई 2022 से फरवरी 2023 के बीच रेपो रेट में 2.5 फीसदी का इजाफा किया था.
ये है RBI की जिम्मेदारी
मालूम ही कि RBI के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि उसे महंगाई को नियंत्रित करने में अपनी असफलता पर सरकार को स्पष्टीकरण देने पड़ा है. दरअसल, रिजर्व बैंक अधिनियम के तहत अगर महंगाई के लिए तय लक्ष्य को लगातार तीन तिमाहियों तक हासिल नहीं किया जाता, तो RBI को केंद्र सरकार के समक्ष स्पष्टीकरण देना होता है. मौद्रिक नीति रूपरेखा के 2016 में प्रभाव में आने के बाद से यह पहली बार हुआ है जब RBI को इस संबंध में केंद्र को रिपोर्ट भेजनी पड़ी. आरबीआई को केंद्र की तरफ से खुदरा महंगाई दो प्रतिशत घट-बढ़ के साथ चार प्रतिशत पर बनाए रखने की जिम्मेदारी मिली हुई है, लेकिन तमाम प्रयासों के बावजूद आरबीआई मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखने में नाकाम रहा है.
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