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जानिए आखिर क्या होता है ई-फ्यूल ? क्या यही बनेगा फ्यूचर फ्यूल
भारत सहित दुनिया के सभी देश मौजूदा समय में अपने वहां होने वाले एमिशन को नेट जीरो पर लाने को लेकर काम कर रहे हैं. ऐसे में ये ई-फ्यूल इसमें बड़ा मददगार साबित हो सकता है.
बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 year ago
दुनियाभर में जिस तरह से डीजल और पेट्रोल के दामों में इजाफा हो रहा है उससे एक बात तो साफ हो गई है कि भविष्य में ये ईंधन नहीं चल पायेगा. इसीलिए दुनिया के सभी देश अलग-अलग तरह के ईंधन पर काम कर रहे हैं. एक ओर जहां ईवी को लेकर तेजी से काम चल रहा है वहीं दूसरी ओर इन दिनों ई-फ्यूल को लेकर भी चर्चा जोरों पर है. आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि आखिर ये ई-फ्यूल होता क्या है और क्या भविष्य में आप इसी ई-फ्यूल का इस्तेमाल करेंगे.
क्या होता है ई-फ्यूल
ई-फ्यूल के भविष्य पर चर्चा करने से पहले जरूरी ये है कि हम ये जानें कि आखिर ये ई-फ्यूल होता क्या है. ई-फ्यूल दरअसल रिन्यूएबल एनर्जी, हवा, और पानी से मिलकर बनने वाला एक तरह का फ्यूल है. रिन्युएबल या डिकार्बनाइज इलेक्ट्रीसिटी से पैदा होने वाले गैस या लिक्विड फ्यूल को ई-फ्यूल कहा जाता है. जैसे ई-मिथेन, ई-कैरोसिन, और ई-मेथेनॉल को ई-फ्यूल कहा जाता है. हम आपको बताते चलें कि रिन्युएबल एनर्जी वो है जो कभी खत्म नहीं होती है. इसे आप ऐसे भी समझ सकते हैं कि ई-फ्यूल एक तरह का हाईड्रोकार्बन है जिसे रिन्युएबल एनर्जी का इस्तेमाल करके पानी में हाईड्रोजन और आक्सीजन को अलग किया जाता है. उसके बाद हाईड्रोजन को कार्बन डाई आक्साइड में अलग किया जाता है. हवा से छनने के बाद ये मेथेनॉल में बदल जाता है उसके बाद मेथेनॉल में एक्सॉनमाबिल लाइसेंस तकनीक का इस्तेमाल करके उसे गैसोलीन में बदला जाता है. यही ई-फ्यूल की प्रक्रिया है.
दो तरह का होता है ई-फ्यूल
ई-फ्यूल दो तरह का होता है. पहला गैस ई-फ्यूल होता है और दूसरा लिक्विड ई-फ्यूल होता है. गैस ई-फ्यूल के अंदर रिन्युएबल हाईड्रोजन से पैदा होने वाला लिक्विड, H2 और ई-मिथेन से पैदा होने वाले e-GNL में शामिल होता है़. लिक्विड ई-फ्यूल, इसमें ई मिथेनॉल और ई क्रूड जैसे ई-फ्यूल शामिल हैं. इनको सिंथेटिक क्रूड ऑयल भी कहा जाता है. ये ई कैरोसिन और ई डीजल से पैदा होता है.
दुनिया के सभी देश कर रहे हैं इसपर काम
इसे फ्युचर का डीजल पेट्रोल इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि इसमें जीरो एमिशन होता है. दुनिया के कई देशों के साथ भारत ने भी अपने वहां होने वाले एमिशन को नेट जीरो पर लाने का लक्ष्य निर्धारित किया है. भारत का अनुमान है कि इसके लिए उसे हजारों अरब डॉलर की जरूरत होगी. ये एक तरह का बिजली पानी और हवा से मिलकर बनने वाला ई-फ्यूल है. इसलिए दुनिया का कोई भी देश इसे बनाने में पीछे नहीं रहना चाहता है.
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