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संकट में फंसी टाटा स्टील को कैसे बचाया था सर दोराबजी टाटा ने, पढ़ें पूरी कहानी
टाटा समूह की छवि एक ऐसी कारोबारी समूह की है, जहां कर्मचारियों के हित, सुविधाओं का सबसे ज्यादा ध्यान रखा जाता है. इसकी नींव एक तरह से सर दोराबजी टाटा ने ही रखी थी.
बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 year ago
टाटा समूह (Tata Group) की कंपनी टाटा स्टील पंजाब में 2600 करोड़ का नया प्लांट खोलने जा रही है. सालाना 0.75 मिलियन टन स्टील उत्पादन की क्षमता वाले इस प्लांट में बड़े पैमाने पर युवाओं को नौकरी दी जाएगी. टाटा स्टील का कारोबार आज 5 महाद्वीपों के 26 देशों में फैला है और यह दुनिया की 10वीं सबसे बड़ी स्टील उत्पादक कंपनी है. टाटा समूह की यह कंपनी लगातार तरक्की करती जा रही है, लेकिन एक समय ऐसा भी था जब कंपनी आर्थिक बदहाली की कगार पर पहुंच गई थी और उसे बचाने के लिए सर दोराबजी टाटा ने अपनी सारी संपत्ति गिरवी रख दी थी.
औद्योगिक क्रांति की नींव रखी
जमशेदजी टाटा के बेटे सर दोराबजी टाटा (Dorabji Tata) का जन्म आज ही के दिन यानी 27 अगस्त को हुआ था. वह टाटा समूह के चेयरमैन थे. उन्होंने अपने पिता के सपनों को पूरा करते हुए भारत में औद्योगिक क्रांति की नींव रखी थी. देश का पहला स्टील संयंत्र स्थापित करने का गौरव उन्हें ही प्राप्त है. उनकी कंपनी को टिस्को (अब टाटा स्टील) को उस दौर में भी कर्मचारियों के लिए आदर्श कंपनी के रूप में देखा जाता था.
कर्मचारियों के हित का ख्याल
मौजूदा वक्त में टाटा समूह की छवि एक ऐसी कारोबारी समूह की है, जहां कर्मचारियों के हित, सुविधाओं का सबसे ज्यादा ध्यान रखा जाता है. कर्मचारियों की समस्याओं को मानवीय दृष्टिकोण से देखा जाता है. इसकी नींव एक तरह से सर दोराबजी टाटा ने ही रखी. उन्होंने कर्मचारियों के लिए 8 घंटे की ड्यूटी, फ्री मेडिकल ट्रीटमेंट, पेड लीव, कर्मचारी भविष्य निधि और महिला कर्मचारियों के लिए मातृत्व अवकाश जैसी सुविधाओं की शुरुआत की. जिसे बाद में भारत सरकार ने कानून के रूप में पूरे देश में प्रभावी किया.
जुबली डायमंड भी गिरवी रखा
टाटा स्टील (टिस्को) की स्थापना 1907 में हुई. सब कुछ अच्छा चल रहा था, लेकिन 1920 के दशक में, कंपनी वित्तीय संकट में घिर गई. सर दोराबजी टाटा ने कंपनी को इस भंवर से निकालने की लाख कोशिश की, लेकिन स्थिति सुधरने के बजाए बिगड़ती गई. उन्हें कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा था. ऐसे में दोराबजी टाटा और उनकी पत्नी मेहरबाई टाटा ने अपनी सारी संपत्ति और यहां तक की उन्होंने कंपनी को बचाने के लिए बेशकीमती जुबली डायमंड भी गिरवी रख दिया.
आज है एक अलग पहचान
सर दोराबजी टाटा की पत्नी मेहरबाई टाटा को जुबली डायमंड बहुत प्रिय था, यह उन्हें दोराबजी टाटा ने ही दिया था. 245 कैरेट का जुबली हीरा कोहिनूर से दोगुना बड़ा था. लेडी मेहरबाई टाटा इसे विशेष आयोजनों में पहना करती थीं, लेकिन जब बात कंपनी को बचाने की आई, तो उन्होंने उसे भी गिरवी रखने के लिए दे दिया. इस तरह टाटा स्टील वित्तीय संकट से बाहर निकल सकी और इसके बाद कंपनी लगातार आगे बढ़ती रही. आज टाटा स्टील की पूरी दुनिया में एक अलग पहचान है.
खिलाड़ियों का खर्चा खुद उठाया
सर दोराबजी टाटा ने खुद को केवल बिज़नेस तक ही सीमित नहीं रखा. उन्होंने समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझा और उसे निभाया. उन्होंने कैंसर हॉस्पिटल बनवाया. कम ही लोग जानते हैं कि टाटा की कोशिशों की बदौलत ही भारत के छह खिलाड़ियों की टीम 1920 के एंटवर्प ओलंपिक में हिस्सा लेने पहुंची थी. इनमें से तीन खिलाड़ियों का खर्चा उन्होंने खुद उठाया था. ब्रिटिश इंडिया में दोराबजी टाटा के औद्योगिक योगदान के लिए साल 1910 में उन्हें नाइट की उपाधि से सम्मानित किया गया था. साल 1931 में मेहरबाई टाटा और 1932 में दोराबजी टाटा इस दुनिया को अलविदा कह गए थे.
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