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डेट फंड को लेकर सरकार के इस फैसले से कितनी बदलेगी तस्वीर?
वित्त विधेयक 2023-24 को पास करने के साथ वैसे तो कई प्रावधान किए हैं लेकिन सरकार ने डेट फंड को लेकर जो किया है उसकी सभी लोग चर्चा कर रहे हैं.
बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 year ago
केन्द्र सरकार ने वित्त विधेयक 23-24 को पास कर दिया है. इस विधेयक में सरकार ने एक बड़ा प्रावधान किया है जिसके अनुसार अब डेट फंड को लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स से बाहर कर दिया गया है. इसके अलावा सरकार ने इसे इंडेक्सेशन के फायदे से भी बाहर कर दिया है. जानकारों का मानना है कि सरकार ने ये कदम कई तरह की परिसिथतियों को ध्यान में रखते हुए उठाया है. वो मानते हैं कि ये कदम पीएसयू बैंकों के दबाव में उठाया गया है.
आखिर क्या होते हैं डेट फंड
इसे समझाते हुए सीनियर सीए संजय गुप्ता कहते हैं कि दरअसल मौजूदा समय में होता ये है कि कई म्यूचुअल फंड इक्विटी बाजार में निवेश करते हैं. जहां से उन्हें कभी ज्यादा तो कभी कम फायदा होता है. लेकिन डेट फंड वो फंड होते हैं जो हमेशा ऐसी जगहों पर निवेश करते हैं जहां से एक तय रिटर्न तो आता ही है. जैसे गवर्मेंट सिक्योरिटीज, पब्लिक सेक्टर और दूसरे क्षेत्र यहां से आने वाले रिटर्न पर कोई बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है. इन्हीं को डेट फंड कहते हैं.
आखिर पहले क्या थी व्यवस्था
दरअसल डेट फंड में निवेश करने वालों को फायदा अभी तक ये होता था कि 3 साल की होल्डिंग पर इनको इंडेक्सेशन का फायदा मिल जाता था. इसे आप ऐसे समझिए कि अगर आपने 31 मार्च से पहले निवेश किया तो तीन साल तक आपको तीन इंडेक्सेशन का फायदा मिल जाता था. इंडेक्सेशन एक दर है जिसे सरकार हर साल घोषित करती है जिसके आपके निवेश की कॉस्ट मल्टीप्लाई हो जाती है. 1000 के निवेश पर अगर तीन साल बाद मान लीजिए मुझे 1300 रुपये मिलता है तो 1200 तो मेरी कॉस्ट निकल जाएगी मुझे सिर्फ 100 रुपये पर ही टैक्स देना पड़ेगा. उसमें भी लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन देना पड़ता था जो 20 प्रतिशत था. जबकि अगर इसी पैसे को एफडी किया जाता था तो वहां ज्यादा टैक्स के कारण कम पैसा हाथ में आता था. बैंकों का ये कहना था कि हमें भी म्यूचुअल फंड के पास लाया जाए ताकि हमें भी ज्यादा फंड मिल सकें. ऐसे में सभी HNI इसी डेट फंड निवेश करते हैं क्योंकि उन्हें यहां ज्यादा फायदा मिलता है.
अब सरकार ने क्या किया
अब सरकार ने इसे लॉन्ग टर्म कैपिटल फंड और इंडेक्सेशन से बाहर कर दिया है. अब इससे जितनी भी इनकम होगी उसे आपकी नार्मल टैक्स रेट से भुगतान करना होगा. अगर 1000 के निवेश पर आपको 1300 मिले तो आपको पूरे 300 पर टैक्स देना होगा. पहले 100 पर लगता था और वो भी 20 प्रतिशत के हिसाब से लगता था. लेकिन अब 300 पर लगेगा.
अब क्या कहते हैं एक्सपर्ट
वहीं आईसीएआई के पूर्व अध्यक्ष और टैक्स एक्सपर्ट वेद जैन का मानना है कि ये पीएसयू बैंकों के दबाव का परिणाम हो सकता है, जो इनके कारण प्रतिस्पर्धा में आ रहे थे और जमा वृद्धि में कठिनाइयों का सामना कर रहे थे. ये म्युचुअल फंड फिक्स्ड डिपॉजिट रिटर्न से बेहतर पेशकश कर रहे थे क्योंकि इन म्युचुअल फंडों द्वारा निर्णय लेने की गति तेज थी. म्यूचुअल फंड प्रबंधकों द्वारा निगरानी और नियंत्रण भी बेहतर तरीके से हो रहा था. रिटर्न भी बेहतर था क्योंकि ये फंड कॉरपोरेट्स के लिए फंड मुहैया करा रहे थे. जो या तो बैंकों से फंड नहीं जुटा पा रहे थे या पीएसयू बैंकों की उच्च प्रशासनिक और जोखिम लागत के कारण इन बैंकों द्वारा वसूल की जा रही ब्याज दर से अधिक थी. इसके विपरीत निजी बैंक पहले अपनी प्रशासनिक दक्षता और लागत बचत के कारण प्रतिस्पर्धी दर पर अग्रिम उधार देने में सक्षम थे दूसरे किसी भी मामले में इन ऋण म्युचुअल फंडों के साथ सहज थे क्योंकि ये सभी निजी बैंक अपने स्वयं के ऋण म्युचुअल फंड से चला रहे थे और उनका प्रबंधन कर रहे थे.
सीनियर सीए संजय गुप्ता कहते हैं कि सरकार का ये कदम उन्हें कोई बहुत अच्छा कदम तो नहीं लगता है. सरकार ने केवल टैक्स पैरीटी मुहैया कराई है. अगर दुनियाभर में देखा जाए तो डेट फंड बहुत ज्यादा है जबकि हिंदुस्तान में बहुत कम ही हैं. अरबों खरबों रुपये डेट फंड के अंदर मैनेज किए जाते हैं तो हमें एसेट क्लास को बहुत क्लोज नहीं करना चाहिए. जो एसेट क्लास कई सालों से चली आ रही है हम उसे कंट्रोल करने के लिए कदम उठाए जा सकते हैं लेकिन उसे क्लोज करने के लिए कदम नहीं उठाने चाहिए.
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