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अमेरिकी बैंकिंग संकट से एशिया को हो रहा है फायदा, पर बना हुआ है खतरा!
एशिया-पैसिफिक क्षेत्र को जिन वजहों से प्रमुख रूप से फायदा हो रहा है उनमें एक बड़ा कारण मोनेटरी पॉलिसीयों का नर्म पड़ना भी है.
बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 year ago
इन्वेस्टर्स दावा कर रहे हैं कि चीन और एशियाई क्षेत्र के अन्य देशों की इकॉनोमिज विश्व में जारी वित्तीय मुसीबतों को बेहतर तरीके से हैंडल कर सकती हैं. इस वजह से अमेरिका में हुए बैंकिंग संकट के बाद पैसे का बहाव एशियन एसेट्स की तरफ बढ़ गया है. सिटी बैंक द्वारा ग्लोबल फाइनेंशियल मार्केटों की हालत पर की गयी एक जांच में सामने आया है कि, एशिया की फाइनेंशियल मार्केट्स अमेरिका से कम कसाव वाली हालत में हैं और ज्यादातर एशियन करेंसियों ने भी अमेरिकी डॉलर के खिलाफ बढ़त हासिल की है.
एशिया की बढ़ती रफ्तार
जापान के अलावा एशियन क्षेत्रों के फाइनेंशियल स्टॉक्स का एक इंडेक्स 10 मार्च के बाद से केवल बढ़त हासिल कर रहा है. 10 मार्च वही दिन है जब सिलिकॉन वैली बैंक गिर गया था. अगर इसकी तुलना अमेरिकी बैंकिंग इंडेक्स से की जाए तो पता चलता है कि इस दौरान अमेरिकी बैंकिंग इंडेक्स में 10% की गिरावट दर्ज की गयी है. सिटी बैंक के मैनेजिंग डायरेक्टर और एशिया-पैसिफिक क्षेत्र के प्रमुख Johanna Chua ने कहा कि, एशिया अभी भी अमेरिकी बैंकिंग संकट के प्रभावों से अछूता नजर आ रहा है. अमेरिका सम्बंधित स्लोडाउन का मतलब ये है कि अमेरिकी डॉलर में भी गिरावट देखने को मिलेगी. इससे एशिया में कैपिटल का फ्लो बढ़ सकता है.
एशिया को इन वजहों से हो रहा है फायदा
प्रमुख इकोनॉमिस्टों का मानना है कि, एशिया-पैसिफिक क्षेत्र को जिन वजहों से प्रमुख रूप से फायदा हो रहा है उनमें एक बड़ा कारण मोनेटरी पॉलिसीयों का नर्म पड़ना भी है. भारत, इंडोनेशिया, दक्षिणी कोरिया और ऑस्ट्रेलिया के केंद्रीय बैंकों द्वारा अपनी मोनेटरी पॉलिसी के कसाव को कम करने की वजह से ऐसा हो रहा है. कोविड के बाद फिर से अपनी मार्केट्स खुलने और मोनेटरी पॉलिसी को आसन बनाने के चलते चीन फिलहाल इन्वेस्टर्स के लिए प्रमुख आकर्षण बन रहा है.
चीन बन रहा है मुख्य आकर्षण
EPFR के ग्लोबल डाटा के अनुसार पिछले चार हफ्तों में इक्विटी फंड्स के उभरते हुए मार्केट में 5.5 बिलियन डॉलर्स का फंड आया है और इसमें एशिया प्रमुख रूप से आगे रहा है. इससे यह साबित हो जाता है कि एशिया इन्वेस्टर्स के लिए आकर्षण का केंद्र बन रहा है. इतना ही नहीं इन 5.5 बिलियन डॉलर्स में से 70% पैसा सिर्फ चीन को प्राप्त हुआ है. इसी दौरान विकसित हो चुकी मार्केट इक्विटीज में कमी देखने को मिली है और यहां से 8.6 बिलियन डॉलर्स का आउटफ्लो देखने को मिला है. विकसित मार्केटों में सबसे ज्यादा नुक्सान अमेरिकी मार्केट को हुआ है.
इन वजहों से हो रहा है एशिया को फायदा
फेडरल रिजर्व द्वारा लगातार बढ़ाए जा रहे इंटरेस्ट रेट पर रोक लगना, फाइनेंशियल स्टेबिलिटी के खतरों और धीमी पड़ती मांग जैसे कारणों से एशियाई मार्केटों को फायदा हो सकता है. इससे डॉलर कमजोर पड़ेगा जिससे एशिया पर बाहरी फाइनेंस का दबाव कम होगा और सेफ हेवन के तौर पर डॉलर की मांग कम हो जायेगी. इस हफ्ते एशियन डेवलपमेंट बैंक ने कहा कि, चीन की अध्यक्षता में एशिया की विकसित होती इकॉनोमिज, तेजी से विकास के रास्ते पर हैं और इस साल के साथ-साथ अगले साल भी महंगाई की रफ्तार धीमी होती जायेगी.
लेकिन अभी भी है खतरा
वापस से ठीक होती चीनी इकॉनमी अपने साथ-साथ पूरे क्षेत्र को ही फायदा पहुंचाएगी. इसके साथ ही एशियाई क्षेत्र को सप्लाई-चैन की विविधता से भी फायदा होगा. वस्तुओं की मांग बहुत तेजी से बढ़ेगी और कर्ज लेने की रफ्तार में भी कमी आएगी. अमेरिकी बैंकिंग संकट का मतलब यह भी है कि अमेरिका में इन्वेस्ट किया गया एशियाई टेक का पैसा भी अब धीरे-धीरे वापसी की तरफ बढ़ेगा. लेकिन फिर भी आगे खतरे मौजूद हैं. अमेरिका और चीन की खराब होती दोस्ती से हांगकांग और ताइवान जैसी जगहों पर इन्वेस्ट करने का संभावित ख़तरा बढ़ जाता है.
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