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मुश्किलों के भंवर में फंसी Go First इस यूएस फर्म से लड़ेगी कानूनी जंग
Go First का कहना है कि उसके पास न पैसा है और न विमान उड़ाने के लिए तेल. लिहाजा, वो ऑपरेशन जारी रखने की स्थिति में नहीं है.
बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 year ago
बजट एयरलाइन Go First मुश्किलों के ऐसे भंवर में फंस गई है कि वहां से जल्द निकलना मुश्किल है. कंपनी ने अपने हाल के लिए अमेरिकी कंपनी प्रैट एंड व्हिटनी को जिम्मेदार ठहराया है. प्रैट एंड व्हिटनी विमानों के इंजन बनाती है और इस मामले में दुनिया की लीडिंग कंपनी है. गो फर्स्ट का कहना है कि अमेरिकी फर्म ने ऑर्डर के मुताबिक इंजन नहीं दिए, जिसके चलते उसके बेड़े के 50% विमानों का परिचालन ठप रहा. यानी वो उड़ान भरने की स्थिति में नहीं रहे. जब ज्यादा विमान उड़ेंगे ही नहीं, तो कमाई कैसे होगी. अब Go First इसके लिए प्रैट एंड व्हिटनी के साथ कानूनी जंग करने वाली है.
अलग-अलग ज्यूरिडिक्शन में केस
Go First का कहना है कि प्रैट एंड व्हिटनी को उसके नुकसान की भरपाई करनी होगी. वाडिया समूह की एयरलाइन अलग-अलग ज्यूरिडिक्शन में अमेरिकी फर्म के खिलाफ केस दर्ज करेगी और 1.1 अरब डॉलर, यानी करीब 8990 करोड़ रुपए हर्जाने की मांग करेगी. Go First का आरोप है कि Pratt & Whitney (P&W) की तरफ से सप्लाई लगातार प्रभावित रही. उसे 27 अप्रैल, 2023 तक कम से कम 10 स्पेयर लीज्ड इंजन और 10 अतिरिक्त इंजन देने को कहा गया था, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया. इतना ही नहीं. उसकी ओर से भेजे जा रहे इंजनों के विफल होने की संख्या बढ़ती रही. नतीजतन उड़ानें बंद करनी पड़ीं. एक रिपोर्ट के मुताबिक, गो फर्स्ट के बेड़े में लगभग 90% प्रैट एंड व्हिटनी के इंजन वाले A320 नियो विमान हैं. स्पेयर पार्ट्स की अनुपलब्धता और P&W की ओर से रेट्रो फिटेड इंजनों की आपूर्ति में देरी के कारण कई विमानों को सेवा से बाहर करना पड़ा था.
इस तरह कैलकुलेट किया हर्जाना
गो फर्स्ट के सीईओ Kaushik Khona के मुताबिक, प्रैट एंड व्हिटनी के खराब इंजन की वजह से 20,000 दिन से ज्यादा की उड़ानें नहीं हो सकीं. क्योंकि हमारे विमान हवा में उड़ने की बजाए खराब इंजन के चलते जमीन पर थे. इसके चलते कंपनी को हर दिन 55,000 डॉलर का नुकसान उठाना पड़ा. इसी को ध्यान में रखते हुए हमने 1.1 अरब डॉलर के हर्जाने की मांग की है. उन्होंने बताया कि कंपनी दुनियाभर के कई ज्यूरिडिक्शन में प्रैट एंड व्हिटनी के खिलाफ केस दर्ज कर हर्जाने की मांग करेगी. इसमें कुछ केस अमेरिका, जर्मनी, जापान, यूरोप और सिंगापुर में किए जाएंगे.
फंड जुटाने की कोशिश जारी
Kaushik Khona ने यह भी कहा कि एयरलाइन के प्रमोटर वाडिया समूह पूंजी जुटाने के लिए बाहरी स्रोतों से बातचीत कर रहा है, लेकिन फिलहाल हम इसकी चर्चा मौजूदा लेंडर्स से नहीं कर सकते. सीईओ ने कहा कि वाडिया समूह एयरलाइन बचाने के लिए प्रतिबद्ध है और उसने दिवाला फाइलिंग से ठीक पहले अप्रैल के आखिरी 10 दिनों में 290 करोड़ रुपए की नई इक्विटी जुटाई थी. बता दें कि पिछले हफ्ते कंपनी ने नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) में वॉलेंटरी इनसॉल्वेंसी प्रॉसीडिंग के लिए एप्लिकेशन दी थी. Go First का कहना है कि उसके पास न पैसा है और न विमान उड़ाने के लिए तेल. लिहाजा, वो ऑपरेशन जारी रखने की स्थिति में नहीं है.
ऐसे बिगड़ती गई स्थिति
गो फर्स्ट भारत की पांचवीं सबसे बड़ी एयरलाइन है. कंपनी धीरे-धीरे विस्तार की रणनीति पर आगे बढ़ रही थी. 2020 तक उसकी आर्थिक सेहत लगातार ठीक बनी हुई थी. लेकिन कोरोना संकट और प्रैट एंड व्हिटनी से इंजनों की आपूर्ति समय पर नहीं मिलने के चलते उसकी सेहत खराब होती गई. गो फर्स्ट को बकाया राशि का भुगतान नहीं करने के चलते लीज पर लिए गए विमानों को वापस करना पड़ा. कंपनी की बिगड़ती स्थिति को देखते हुए ईंधन कंपनियों ने उसे कैश एंड कैरी वाले वर्ग में रख दिया. जिसका मतलब है हर दिन उड़ान के लिए ईंधन का भुगतान, जो कंपनी के लिए मुमकिन नहीं था.
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