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एक्सपर्ट्स से जानिए कितना मुश्किल है लीनियर से सर्कुलर इकॉनमी बनने का सफर!
ऐसे में हमें पूरी तरह विकसित हो चुके और हमसे ज्यादा विकसित देशों में इस्तेमाल किए जाने वाले तरीकों के बारे में हमें जान लेना चाहिए.
बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 5 months ago
पर्यावरण अत्यंत महत्त्वपूर्ण है और इसे नुक्सान पहुंचाने के साथ-साथ इसके संरक्षण के लिए भी हम सब एक बराबर जिम्मेदार हैं. पर्यावरण को लेकर प्रमुख बिजनेस लीडर्स के नजरिये को समझने के लिए आज BW बिजनेसवर्ल्ड द्वारा मुंबई में सस्टेनेबल वर्ल्ड कॉन्क्लेव का आयोजन किया गया था. इसी कार्यक्रम के आयोजन के दौरान एक्सपर्ट्स से ये समझने की कोशिश की गई कि एक लीनियर इकॉनमी से सर्कुलर इकॉनमी बनने तक का सफर कितना मुश्किल है, इसके लिए क्या कोशिशें की जानी चाहिए? इस मुद्दे पार विभिन्न क्षेत्रों के बिजनेस लीडर्स ने अपने विचार प्रकट किये.
भारत के लिए अलग अभ्यास
भारत अभी भी एक विकासशील देश है और ऐसे में पूरी तरह विकसित हो चुके और हमसे ज्यादा विकसित देशों में इस्तेमाल किए जाने वाले तरीकों के बारे में हमें जान लेना चाहिए ताकि हम उन्हें अपना सकें. इस विषय पर अपने विचार प्रकट करते हुए हिंदुस्तान कोका कोला के हेड ऑफ सस्टेनेबिलिटी सुरजीत बोस कहते हैं कि भारतीय इकॉनमी काफी अलग है और इसीलिए दुनिया भर में अपनाए जा रहे विभिन्न तरीकों के बारे में सोचते हुए हमें व्यवहारिक रूप से भी सोच विचार करना चाहिए. सुरजीत के साथ ही योकोहामा ऑफ हाईवे टायर्स में ईवीपी के पद पर कार्यरत हर्षवर्धन ने भी इस विषय पर अपने विचार प्रकट किये और बताया कि टायर्स, जिन्हें रिसाइकिल करना सबसे मुश्किल होता है, उन्हें किस तरह से इस्तेमाल किया जा रहा है.
कपड़ों से दूषित होता वातावरण
योकोहामा एक जापानी ब्रैंड है और हर्षवर्धन बताते हैं कि जापानी लोग वातावरण को लेकर बहुत ही आगे हैं. इसके साथ ही वो बताते हैं कि बहुत से इस्तेमाल हो चुके टायरों को सड़क पर सुरक्षा में इस्तेमाल किया जाता है. इतना ही नहीं, अब तो ऐसी तकनीक भी है जो खराब हो चुके टायरों का इस्तेमाल सड़क बनाने में करती है. क्या आपने कभी सोचा है, जो कपड़े हम पहनते हैं, वो वातावरण को किस तरह नुक्सान पहुंचाते हैं? इस बारे में बताते हुए गोकलदास एक्सपोर्ट्स के चीफ ऑफ सस्टेनेबिलिटी प्रांजल गोस्वामी कहते हैं कि हर साल भारत में लगभग 15 मीट्रिक टन फाइबर का इस्तेमाल किया जाता है. और हर साल लगभग 100 बिलियन अंडरगारमेंट बनाए जाते हैं. इन 100 बिलियन में से केवल 1% ही रिसाईकल किये जाते हैं और बाकी के कपड़े वेस्ट हो जाते हैं.
बात सिर्फ वेस्ट मैनेजमेंट की नहीं
सर्कुलर इकॉनमी के विशाटी पर अपनी राय रखते हुए प्रांजल गोस्वामी कहते हैं कि सिर्फ वेस्ट मैनेजमेंट या फिर रिसाइकिलिंग के बारे में सोचना जरूरी नहीं है. चीजों को लाइफ साइकिल से जोड़ना, अपनी जीने की आदतों का हिस्सा बनाना भी जरूरी है. इसके साथ ही प्रांजल कहते हैं कि इंफ्रास्ट्रक्चर न होना, वित्त तक पहुंच न होना जैसी चुनौतियां भी भारत को याद रखनी चाहिए.
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