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भारतीय रत्न और आभूषण संस्थान को मिला नया CEO, इस शख्स को मिली जिम्मेदारी
जेम्स एंड ज्वेलरी को लेकर शिक्षण प्रशिक्षण देने वाला ये इंस्टीटयूट बीते कई वर्षों से काम कर रहा है. ये GJEPC की एक महत्वूपर्ण यूनिट है.
ललित नारायण कांडपाल 11 months ago
वाणिज्य मंत्रालय की संस्था GJEPC (Gem & Jewellery Export Promotion Council) के एक प्रोजेक्ट इंडियन इंस्टीटयूट ऑफ जेम एंड ज्वेलरी को अपना नया सीईओ मिल गया है. देबाशीष बिस्वास को नए सीईओ के तौर पर नियुक्त कर दिया गया है. देबाशीष के 31 वर्षों के प्रोफेशनल अनुभव में वो बीते 17 सालों से शिक्षण और प्रशिक्षण से जुड़े हुए हैं. देबाशीष विश्वास को रत्न और आभूषण निर्यात संवर्धन परिषद (GJEPC) के एक प्रोजेक्ट भारतीय रत्न और आभूषण संस्थान (IIGJ) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया है.
संस्था के देशभर में मौजूद हैं 6 शिक्षण संस्थान
रत्न एवं आभूषण के क्षेत्र शिक्षण प्रशिक्षण देने वाली इस संस्था के पूरे देश में पांच शिक्षण संस्थान हैं. जो स्नातक और स्नातकोत्तर छात्रों के लिए डिग्री, डिप्लोमा और प्रमाणन कार्यक्रम के साथ-साथ कॉर्पोरेट प्रशिक्षण प्रदान करते हैं. ये संस्था 1966 से काम कर रही GJEPC के अंतरर्गत काम करती है. ये वाणिज्य मंत्रालय के अंतर्गत निर्यात आधारित विकास को चलाने वाला शीर्ष संस्थान है. 2021-22 में भारतीय रत्न और आभूषण निर्यात 39.15 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जो भारत की जीडीपी में 7 प्रतिशत का योगदान देता है और लगभग 5 मिलियन लोगों को रोजगार देता है.
इससे पहले कई जिम्मेदारियों को निभा चुके हैं देबाशीष
देबाशीष बिस्वास जिन्हें इस संस्थान का सीईओ नियुक्त किया गया है वो इससे पहले राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में शिक्षा और प्रशिक्षण उद्योग में वीपी, कंट्री हेड और सीईओ के रूप में नेतृत्व की भूमिकाओं में 17 वर्षों तक काम कर चुके हैं और बैंकिंग, दूरसंचार, बीमा और मीडिया क्षेत्रों में 31 वर्षों का पेशेवर अनुभव रखते हैं. इससे पहले वो आईएमटी गाजियाबाद से जुड़े रह चुके हैं.
जेम्स एंड ज्वैलरी का कितना होता है निर्यात
भारत के निर्यात में जेम्स एंड ज्वैलरी का योगदान बेहद महत्वपूर्ण है. देश में अगर दिसंबर के आंकड़ों की बात करें तो इस साल पिछले साल के मुकाबले कम रहा है. पिछले साल भारत ने 2.9 बिलियन डॉलर का निर्यात किया था जबकि इस साल ये निर्यात 2.3 बिलियन तक आ गया है. वहीं दूसरी ओर अगर अप्रैल से दिसंबर तक के आंकड़ों पर नजर डालें तो उसमें भी मामूली कमी आई है. ये पिछले साल 28.8 अरब डॉलर था जो इस साल 28.6 अरब डॉलर रह गया था.
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