होम कुक्स को होटल के किचन में खाना बनाने का मौका मिलेगा. इससे आगरा घूमने आये ट्रैवलर्स कुछ नए तरीके के भोजन का भी आनंद भी उठा पायेंगे.
उत्तर प्रदेश के आगरा स्थित होटल डबलट्री बाय हिल्टन (Double Tree By Hilton) ने मंगलवार को होटल में ‘वीमन इन टेस्ट’ (Women in Taste) का आयोजन किया था. इस कार्यक्रम के जरिये होटल ने आगरा की महिलाओं को सशक्त बनाने का एक मंच प्रस्तुत किया है और इसमें आगरा के होम कुक्स ने अपनी कुकिंग स्किल का शानदार प्रदर्शन करने का मौका भी मिलेगा।
आगरा के लोकल खाने का आनंद उठा सकेंगे ट्रेवलर्स
होटल के एग्जीक्यूटिव शेफ अमित राणे ने Gourmet Club Of Agra की अध्यक्ष डॉक्टर रेणुका डंग (डायटिशियन) के साथ मिलकर आगरा के 12 होम कुक्स को शॉर्टलिस्ट किया है. इन होम कुक्स को होटल के किचन में खाना बनाने का मौका मिलेगा. इससे आगरा में घूमने आये ट्रैवलर्स देसी भोजन का आनंद भी उठा पायेंगे. इस मौके पर डॉक्टर रेणुका डांग ने बताया कि हम हर दिन एक होम कुक द्वारा तैयार किये गए दो या तीन पकवानों को बुफे में पेश करेंगे. यह एक 10 दिन लंबा कार्यक्रम होगा जिसे 15 मार्च से शुरू किया जाएगा. इसके साथ ही 25 मार्च को इस कार्यक्रम का फिनाले आयोजित होगा जिसमें रात 7:30 बजे आयोजित होने वाले डिनर में दस दिन में सिखाई गई रेसिपी के व्यंजन उपलब्ध करवाये जाएगे.
डॉ. डंग ने बिजनेस वर्ल्ड हिंदी के साथ इस अनोखे आयोजन के बारे में बात करते हुए बताया कि ये Lost & Healthy Recipes का बुफे होगा, जो अपने आप में अद्भुत है। इसमें पनीर की खीर, कटहल बिरयानी, काली कढ़ाई के करेले, मैंगो सेलैड ले लेकर सिंधी रेसिपीज का समावेश होगा।
प्रतिभा और कौशल का उत्सव है ‘वीमन इन टेस्ट’
इस अवसर पर होटल के मेनेजर श्याम कुमार ने कहा कि हम आगरा की महिलाओं के लिए कुछ खास करना चाहते थे जिसके लिए हम ‘वीमन इन टेस्ट’ कार्यक्रम के साथ सामने आये. यह एक विशेष कार्यक्रम है जिसे प्रतिभा और कौशल का उत्सव भी कहा जा सकता है. हम यहां चुनिन्दा महिलाओं को उनके खास पकवानों को कुक करने का मौका दे रहे हैं और इन पकवानों को नॉर्थ-27 के बुफे में परोसा जाएगा.
ये हैं स्पेशल 12 होम कुक्स
डॉक्टर रेणुका डंग के नेतृत्व में चुने गईं होम कुक्स के नाम कुछ इस प्रकार हैं – रिचा रल्ली, मानसी जुनेजा, हरलीन आहूजा, सिमरन अवतानी, अंजू बजाज, अंजू लालवानी, आशिमा गोयल, डॉक्टर वत्सला श्रीवास्तव, अंकिता मेहरोत्रा, सोनल गर्ग, ज्योति नय्यर और मीनल गुप्ता.
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शहीद कैप्टन अंशुमान सिंह के माता-पिता ने अपनी बहू पर गंभीर आरोप लगाए हैं. साथ ही उन्होंने सेना के नियम में बदलाव की भी मांग की है.
शहीद कैप्टन अंशुमान सिंह के घर में कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है. उनकी वाइफ ससुराल छोड़कर अपने मायके जा चुकी हैं. वह अपने साथ अंशुमान को मिले कीर्ति चक्र के साथ-साथ उनका कुछ सामान भी ले गई गई हैं. शहीद के माता-पिता बहू व्यवहार से बेहद आहात हैं. शहीद अंशुमान के पिता रवि प्रताप सिंह का यहां तक कहना है कि वह बेटे को मिले कीर्ति चक्र को ढंग से देख भी नहीं पाए हैं. पिछले साल 19 जुलाई को सियाचिन में कैप्टन अंशुमान सिंह शहीद हो गए थे. हाल ही में राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान उन्हें मरणोपरांत कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया. यह सम्मान उनकी पत्नी स्मृति और मां मंजू सिंह ने ग्रहण किया.
क्या केवल जीवनसाथी ही हक़दार?
राष्ट्रपति भवन में आयोजित कार्यक्रम के बाद अंशुमान की पत्नी का एक वीडियो भी सामने आया था, जिसमें उन्होंने बताया कि कैसे उनकी अंशुमान सिंह से मुलाकात हुई और शादी के पांच महीने बाद ही वह विधवा हो गईं. इस वीडियो को लेकर पूरा देश स्मृति को लेकर भावुक हो गया था, लेकिन अब जो कुछ सामने आया है उसने कई सवाल भी खड़े हैं. एक सवाल तो यही है कि क्या शहीद को मिलने वाले सम्मान और अनुग्रह राशि पर एकमात्र अधिकार केवल जीवनसाथी का ही होना चाहिए? अंशुमान के पिता का कहना है कि राष्ट्रपति ने मेरे बेटे की शहादत पर कीर्ति चक्र दिया, मगर मैं तो उसको एक बार छू भी नहीं पाया. स्मृति अंशुमान की फोटो एल्बम, कपड़े आदि के साथ कीर्ति चक्र को लेकर अपने घर गुरदासपुर चली गई है. इतना ही नहीं, शहीद बेटे के दस्तावेजों में दर्ज स्थायी पते को भी बदलवाकर गुरदासपुर का करवा दिया है. मैं चाहता हूं कि Next of Kin यानी निकटतम परिजन के नियमों में बदलाव किया जाए.
NOK का क्या है मतलब?
कैप्टन अंशुमान के पिता ने कहा कि मैं Next of Kin नियमों में बदलाव चाहता हूं, क्योंकि उनकी बहू स्मृति सिंह अब हमारे साथ नहीं रहती. उन्होंने यह भी कहा कि NOK के निर्धारित मापदंड ठीक नहीं हैं. रवि प्रताप ने इसे लेकर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी से भी बात की है. वैसे, ऐसा नहीं है कि अकेले अंशुमान के पिता ने ही यह मांग की है. इससे पहले, पहले भी कई शहीदों के परिजन इन नियमों में बदलाव की मांग कर चुके हैं. चलिए जानते हैं कि आखिर ये नियम क्या हैं. Next of Kin का मतलब संबंधित व्यक्ति के जीवनसाथी, निकटतम रिश्तेदार, परिवार के सदस्य या कानूनी अभिभावक से है. सेना में भर्ती होने पर संबंधित व्यक्ति के माता-पिता या अभिभावकों को NOK के रूप में नामांकित किया जाता है.
शादी के बाद ऐसा नियम
शादी के बाद अधिकारी या जवान के माता-पिता के बजाए उसके जीवनसाथी का नाम उसके NOK के रूप में नामांकित किया जाता है. ऐसे में यदि सैन्यकर्मी को कुछ हो जाता है तो अनुग्रह राशि सहित तमाम सैन्य सुविधाएं NOK को मिलती हैं. अगर संबंधित जवान या अधिकारी शादीशुदा है तो सारी धनराशि उसकी पत्नी को दी जाती है. यदि उसने शादी नहीं की है, तो इस स्थिति में सभी लाभ मां-बाप को मिलते हैं. चूंकि अंशुमान सिंह शादीशुदा थे, इसलिए उनकी अनुग्रह राशि सहित सभी लाभ उनकी पत्नी स्मृति को मिलेंगे. रवि प्रताप सिंह चाहते हैं कि इन नियमों में बदलाव किए जाएं, ताकि शहीद की विधवा के साथ-साथ माता-पिता को भी अनुग्रह राशि आदि मदद मिल सके. हालांकि, एक रिपोर्ट बताती है कि कई राज्य सरकारों ने अपने स्तर पर शहीदों को दी जाने वाली आर्थिक मदद में इस तरह के बदलाव किए हैं.
अब हमारे पास क्या बचा?
अंशुमान सिंह की मां मंजू सिंह भी बहू के इस तरह घर छोड़कर चले जाने से दुखी हैं. उन्होंने कहा - हमारा बेटा शहीद हो गया और बहू कीर्ति चक्र लेकर मायके चली गई. अब हमारे पास क्या बचा है? उन्होंने आगे कहा कि हम बहू से बेहद प्यार करते थे. मेरी बेटी और बहू नोएडा में एक साथ रहती थीं. बहू को खाना आदि बनाना नहीं आता था, इसलिए मैंने अपनी बेटी को बहू के साथ नोएडा में रहने भेज दिया था. शुरुआती दौर में जब मेरा बेटा बाहर ड्यूटी पर रहा, तब 4 महीने मैं खुद बहु के साथ रही. बेटे के शहीद होने के बाद बहू तेरहवीं तक रहीं और उसके बाद चली गई. उन्होंने यह आरोप भी लगाया कि शहीद अंशुमान की पत्नी ने उनका मोबाइल नंबर भी ब्लॉक कर दिया है. हालांकि, इस पूरे मामले में शहीद की पत्नी का अब तक कोई बयान सामने नहीं आया है.
पुणे और मुंबई में बीते दिनों हुई घटनाओं से लोगों में सरकार के प्रति गुस्सा है. क्योंकि रसूखदरों से जुड़े मामलों में पूरा सिस्टम पंगु बन जाता है.
महाराष्ट्र में हिट-एंड-रन के मामले लगातार सामने आ रहे हैं. पुणे, मुंबई और अब नासिक . पुणे में एक रईसजादे ने दो युवाओं को अपनी लग्जरी कार से रौंद दिया. मुंबई में सत्ताधारी शिवसेना लीडर के लड़के ने BMW से एक महिला की जान ले डाली. नासिक में भी एक महिला को तेज रफ्तार कार ने मौत की नींद सुला दिया. नासिक में इस वारदात को अंजाम देने वाला कौन है, इसका पता अब तक नहीं चल पाया है. यदि आरोपी कोई सामान्य व्यक्ति होगा तो उसे शायद अपने कर्मों की सजा मिल जाए , लेकिन पुणे और मुंबई की तरह यदि उसका नाता भी किसी रसूखवाले परिवार से है, तो फिर इसकी संभावना कम है.
गरीब होने की मिल रही सजा
मुंबई के BMW कांड का आरोपी मिहिर शाह दुर्घटना के 72 घंटे बाद पुलिस की गिरफ्तार में आया है. माना जा रहा है कि रसूख के चलते पुलिस ने उसे ढूंढने की दिल से कोशिश नहीं करी, ताकि ब्लड टेस्ट में अल्कोहल का पता चलने की संभावना दम तोड़ दे. इस हादसे में जान गंवाने वालीं कावेरी नखवा का भी यही आरोप है. वह इस पूरे मामले में पुलिस-प्रशासन और सरकार की कार्यप्रणाली से बेहद नाराज हैं. प्रदीप नखवा का कहना है कि हमें गरीब होने की सजा मिल रही है, आखिर हमें न्याय दिलाने और समर्थन के लिए कौन आएगा? मिहिर के पिता राजेश शाह एकनाथ शिंदे गुट की शिवसेना के दिग्गज लीडर हैं.
हमारी मदद कौन करेगा?
नेता का बेटा मिहिर शाह ने स्कूटर से जा रहे कावेरी और प्रदीप को पीछे से टक्कर मारी थी. आरोपी कावेरी को काफी दूर तक घसीटता हुए ले गया. यदि वो कार रोक लेता तो शायद कावेरी की जान बच सकती थी. प्रदीप नखवा का कहना है कि वो मेरी पत्नी को कार से घसीटता ले गया. कोई भी वहां हमारी मदद को नहीं था.हम गरीब हैं, हमारी मदद के लिए कौन है? आज उसे जेल भेजा जाएगा. कल उसे अदालत में पेश करेंगे और फिर उसे बेल मिल जाएगी. यह लगातार मामला खिंचता रहेगा.
आपकी लाडली बहना मर गई
आंखों में आंसू लिए नखवा ने पूछा कि आखिर हमें केस लड़ने के लिए पैसा कहां से मिलेगा. हम आखिर वकील कहां से लाएंगे? हमारे लिए कौन है? नेता हमारी परवाह नहीं करते, उन्हें हमारी याद केवल वोट के लिए ही आती है. आरोपी नेता का बेटा है, उसके पास पैसा है लेकिन हमारे पास कुछ नहीं है. नेताओं के लिए पब्लिक केवल कचरा है. ये लोग लाडली बहना योजना की बात करते हैं, आपकी लाडली बहना मर गई है.
क्या मुख्यमंत्री मिलने आए?
प्रदीप ने सरकार से सवाल करते हुए पूछा कि क्या एकनाथ शिंदे हमसे मिलने आए. क्या देवेंद्र फडणवीस या अजित पवार ने हमारा हाल पूछा? उन्होंने आगे कहा कि मिहिर शाह को तीन दिन के बाद गिरफ्तार किया गया. आखिर वो छिपा क्यों था? तीन बाद क्या उसके ब्लड में अल्कोहल मिलेगा? अपनी पत्नी को खोने वाले प्रदीप ने जो सवाल किए हैं उसका जवाब किसी के पास नहीं है. उनकी आशंका भी काफी हद तक सही है. प्रदीप के जैसा ही दुख पुणे में अपने बच्चों को खोने वाले परिवारों का भी है. उन्हें भी अब तक न्याय नहीं मिला है.
पुणे में भी नहीं मिला न्याय
पुणे में नामी बिल्डर के नाबालिग बेटे ने शराब के नशे में दो युवाओं को मौत के घाट उतार दिया था. आरोपी को बचाने में पूरा सिस्टम जुट गया, लेकिन लोगों के आक्रोश के चलते कुछ कार्रवाई हुई. हालांकि, आरोपी की उम्र उसके लिए ढाल बनी और कानून का हवाला देते हुए उसे जमानत पर रिहा कर दिया गया. हाल ही में बॉम्बे हाई कोर्ट से पीड़ित परिवारों को बड़ा झटका देते हुए नाबालिग आरोपी को बेल दी है. दो जजों की बेंच ने कहा कि हादसा गंभीर था मगर हमारे हाथ बंधे हुए हैं. 2 लोगों की जान चली गई. यह बहुत ही दर्दनाक हादसा था ही, मगर बच्चा भी मेंटल ट्रॉमा में था. उसे कुछ समय दीजिए.
फैसले से बिखरीं उम्मीदें
पुणे के कल्याणी नगर में 19 मई को शहर के नामी बिल्डर के नाबालिग बेटे ने अपनी तेज रफ्तार कार से मध्य प्रदेश के 2 आईटी पेशेवरों को मौत के घाट उतार दिया था. नाबालिग कार कथित तौर पर नशे में चला रहा था. किशोर न्याय बोर्ड के सदस्य एलएन दानवाड़े ने सड़क सुरक्षा पर 300 शब्दों का निबंध लिखने लिखने की शर्त के साथ आरोपी को जमानत दे दी गई, जिसे लेकर काफी बवाल मचा. लोगों के भारी दबाव के चलते पुलिस को भी इस मामले में सख्त एक्शन लेना पड़ा. पीड़ित परिवारों को उम्मीद जगी थी कि उन्हें न्याय मिलेगा. हालांकि, हाई कोर्ट के फैसले से उनकी उम्मीदें बिखर गई हैं. नाबालिग आरोपी के बिल्डर पिता विशाल अग्रवाल को भी जमानत चुकी है. हालांकि, उसे फिलहाल जेल में ही रहेगा क्योंकि वह घटना से संबंधित अन्य मामलों में भी आरोपी है. अग्रवाल पर अल्कोहल टेस्ट के लिए ब्लड सैंपल में हेरफेर करने और दुर्घटना का दोष लेने के लिए अपने ड्राइवर पर दबाव डालने का भी आरोप है.
हमारा दर्द क्यों नहीं दिखा?
पीड़ित परिवार अदालत के इस फैसले से आहत हैं. मृतक अनीश अवधिया की मां का कहना है कि जज साहब और पूरे सिस्टम को सिर्फ नाबालिग आरोपी की तकलीफ दिख रही है. हमारा दर्द क्यों नहीं दिख रहा? हम कोर्ट के इस फैसले से बेहद निराश हैं. हम नहीं चाहते कि आरोपी को फांसी हो, लेकिन इतनी सजा तो जरूर मिलनी चाहिए कि वो दोबारा ऐसी गलती न करे.उन्होंने आगे कहा कि नाबालिग आरोपी को रिहा नहीं करना चाहिए था. कोर्ट ने उसकी परेशानी देखकर उसे रिहा कर दिया, मगर हमारा क्या? उस नाबालिग के कारण दो घरों के चिराग बुझ गए. इस फैसले इ क्या हमें खुश होना चाहिए? पुणे कांड को लेकर भी लोगों में नेताओं, खासकर सरकार को लेकर नाराजगी है.
पिता की फ़रियाद नहीं सुनी
इसी तरह, कुछ साल पहले पुणे में इंजीनियर अभिषेक रॉय की मौत हो गई थी. मूलरूप से भोपाल निवासी अभिषेक के परिजनों ने हर दरवाजा खटखटाया, लेकिन उन्हें न्याय नहीं मिला. पुलिस ने मामले को रफादफा कर दिया, जबकि अभिषेक के पिता लगातार कहते रहे कि उनके बेटे का मर्डर हुआ है. पीड़ित परिवार ने महाराष्ट्र सरकार, मध्य प्रदेश सरकार से लेकर प्रधानमंत्री मोदी को भी पत्र लिखे मगर कोई जवाब नहीं आया. BW हिंदी से बातचीत में शरतचंद्र रॉय ने बताया कि पुणे के वाघोली में 2 जून 2014 को अभिषेक की हत्या कर दी गई थी. उन्होंने कुछ लोगों पर शक जाहिर किया किया था, लेकिन पुलिस ने उनकी एक नहीं सुनी. रॉय ने कहा कि न पुलिस ने उनकी सुनी और न ही सरकार ने. उन्होंने प्रदीप नखवा की बातों पर सहमति जताते हुए कहा कि नेताओं की नजर में आम जनता की जान का कोई मोल नहीं.
1 जून 2024 से वाहन चलाने के नियमों में बदलाव हो जाएगा. ये नियम सभी के ऊपर लागू कर दिए जाएंगे. इन नियमों का उल्लंघन करने पर भारी जुर्माना भरना पड़ सकता है.
अगर आप भी गाड़ी चलाते हैं तो आपके लिए ये बड़ी खबर हैं. केंद्रीय परिवहन विभाग की ओर से पूरे देश में ड्राइविंग लाइसेंस और ट्रैफिक से जुड़े नियमों में एक बड़ा बदलाव करने जा रहा है. जिसका आप पर सीधा असर होगा. इन नियमों का उल्लंघन करने पर आपको भारी जुर्माना भरना पड़ सकता है. इसके साथ ही आपकी परेशानी बढ़ सकती है. चलिए जानते हैं 1 जून 2024 से ट्रैफिक के जुड़े कौन-कौन से नियम बदल रहे हैं.
RTO की ओर से जारी किए जाएंगे नियम
सरकारी क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय (RTO) की ओर से नए नियम जारी किए जाएंगे. इसमें 1 जून 2024 से नए नियमों को लागू किया जाएगा. गाड़ी तेज गति से लेकर कम उम्र में चलाने तक में भारी जुर्माना देना होगा. नियमों के अनुसार अगर कोई तेज स्पीड में वाहन चलाता है तो उसको 1000 रुपये से 2000 रुपये का जुर्माना देना होगा.
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नाबालिग पर 25,000 का जुर्माना
वाहन चलाते समय ड्राइविंग लाइसेंस बेहद जरूरी हो गया है. नाबालिग के वाहन चलाने पर मोटा जुर्माना लगाया जाएगा. 18 साल से कम उम्र के लोग अगर वाहन चलाते पाए जाते हैं तो 25,000 रुपये तक जुर्माना भरना पड़ेगा. इसके अलावा वाहन मालिक का ड्राइविंग लाइसेंस भी रद्द हो सकता है. साथ ही नाबालिग को 25 साल की उम्र तक लाइसेंस भी नहीं दिया जाएगा. बता दें कि 18 साल की उम्र पूरी होने के बाद ही लाइसेंस जारी किया जाता है. वहीं 16 साल की उम्र पूरी होने पर 50 सीसी की क्षमता वाले मोटरसाइकिल को चलाने के लिए ड्राइविंग लाइसेंस लिया जा सकता है. इसके बाद 18 साल होने पर आप उस लाइसेंस को अपडेट करा सकते हैं.
किस पर लगेगा कितना जुर्माना
तेज रफ्तार से वाहन चलाने वालों पर 1000 रुपये से 2000 रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है. वहीं बिना लाइसेंस (Driving License) गाड़ी चलाने पर 500 रुपये का जुर्माना देना होगा. हेलमेट न पहनने पर 100 रुपये का जुर्माना भरना होगा. सीट बेल्ट न लगाने पर 100 रुपये का जुर्माना देना होगा.
ड्राइविंग लाइसेंस नियम में भी होगा बदलाव
नए नियम के अनुसार अब लोगों को अब ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने के लिए RTO के चक्कर नहीं लगाने होंगे. इसके लिए जिस ड्राइविंग स्कूल से गाड़ी चलाना सीख रहे हैं उससे बड़ी ही आसानी से लाइसेंस बनवा सकते हैं। इसके लिए ड्राइविंग सिखाने वाली संस्थाओं को सर्टिफिकेट दिया जाएगा. ड्राइविंग लाइसेंस के नए नियमों से फायदा ये होगा कि अब लोगों को लाइसेंस बनवाने के लिए RTO के आफिस नहीं जाना पड़ेगा. वे जिस सेंटर से ड्राइविंग सीख रहे हैं वहीं से लाइसेंस बनवा सकते हैं. इससे उनका समय भी बचेगा और परेशानी भी नहीं होगी.
ऑनलाइन ठग फर्जी टैक्स नोटिश भेजकर कई लागों को ठगी का शिकार बना रहे हैं. ऐसे में आपके लिए जरूरी है कि आप पहले ही पता कर लें आपको मिला ये नोटिस असली है या नकली है.
देशभर में साइबर फ्रॉड ऑनलाइन ठगी को रोकने के लिए कई तरह के प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन आए दिन यह ठग नए-नए तरीके से लोगों को ठगने का काम कर रहे हैं. लाख कोशिशों के बावजूद भी किसी न किसी रूप में लोगों को ठग रहे हैं और अब साइबर अपराधी ने लोगों को ठगने का नया रास्ता अपना लिया है. अब आयकर विभाग के नाम से फर्जी नोटिस भेजकर लोगों को ठगी का शिकार बना रहे हैं. उसके बाद वह उस व्यक्ति को फोन करके पैसे के लिए धमका रहे हैं.
लोगों को मिल रहे हैं फर्जी नोटिस
नोटिस आना कोई नई बात नहीं, लेकिन कहीं ये नोटिस नकली इनकम टैक्स का तो नहीं? हाल ही में कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जिसमें लोगों से इनकम टैक्स नोटिस को लेकर ठगी की जा रही है. मतलब लोगों के घरों पर नकली नोटिस भेजा जा रहा है. तो कहीं आपको भी तो नकली नोटिस नहीं आया है? अगर ऐसा है भी तो भी घबराने की जरूरत नहीं. अब आप आसानी से नकली नोटिस के बारे में पता लगा सकते हैं.
IT विभाग की साइट से करें चेक
कई बार इनकम टैक्स नोटिस (Income tax Notice) की कम जानकारी के चलते फ्रॉड करने वाले लोग टैक्सपेयर्स (Taxpayers) का फायदा उठा लेते हैं. फ्रॉड करने वाले आम जनता को फोन और मेल करके ठगी करते हैं. लेकिन, अब आप इनकम टैक्स विभाग की ई-फाइलिंग (e-filing) वेबसाइट पर इस बारे में आसानी से पता लगा सकते हैं.
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इन स्टेप्स को फॉलो करें
• स्टेप 1:- सबसे पहले इनकम टैक्स की वेबसाइट https://www.incometax.gov.in/iec/foportal/ पर जाएं.
• स्टेप 2:- यहां "Quick Links" पर क्लिक कर "Authenticate Notice/Order Issued by ITD" पर क्लिक करें.
• स्टेप 3:- PAN या DIN में से किसी एक तरीके से वेरिफिकेशन की प्रक्रिया को चुनें. PAN डालने की स्थिति में आपको डॉक्युमेंट टाइप (नोटिस, ऑर्डर), असेसमेंट ईयर, इश्यू डेट और मोबाइल आदि भरना होगा.
• स्टेप 4:- वहीं, DIN का विकल्प चुनने पर आपको नोटिस पर उपलब्ध DIN और OTP वेरिफिकेशन के लिए मोबाइल नंबर डालना होगा.
• स्टेप 5:- इसके बाद अगले स्टेप में OTP वेरिफाई कर Continue पर क्लिक करें.
• स्टेप 6:- इसके बाद टूल अपने आप कंफर्म कर देगा कि आपको मिला नोटिस असली या नकली है.
इस टूल की मदद से आप वेरिफाई कर सकते हैं कि आपको मिला टैक्स नोटिस या ऑर्डर इनकम टैक्स विभाग की ओर से ही जारी किया गया है या नहीं. इसमें टैक्स विभाग से मिले नोटिस, ऑर्डर, समन या दूसरे लेटर को वेरिफाई किया जा सकता है. इसके जरिए वेरिफिकेशन से आप आश्वस्त हो सकते हैं कि आपको दी गई सूचना फर्जी या असली है. खास बात है कि इस टूल के इस्तेमाल के लिए आपको टैक्स विभाग की वेबसाइट पर रजिस्टर होने की आवश्यकता भी नहीं है. ये एक प्री-लॉगिन सर्विस है, जिसका कोई भी इस्तेमाल कर सकता है.
इस टूल के फायदे
टैक्स विभाग की ओर से मिले इस टूल से आपको 3 बड़े फायदे होते हैं. पहला तो ये कि आप आश्वस्त हो सकते हैं कि आपको मिला नोटिस असली है या नकली. साथ ही आप किसी ऑनलाइन ठगी के शिकार होने बच सकते हैं. साथ ही इस टूल का इस्तेमाल हर कोई कर सकता है.
EPFO ने ऑटो क्लेम सॉल्यूशन लॉन्च किया है, जिसमें बगैर किसी मानवीय हस्तक्षेप के आईटी सिस्टम के जरिए ऑटोमैटिक तरीके से क्लेम को सेटल किया जाएगा.
अपने करोड़ों सदस्यों के आज ऑफ लिविंग (Ease Of Living) की बेहतरी के लिए ईपीएफओ (EPFO) ने शिक्षा, शादी और घर खरीदने के लिए एडवांस क्लेम (Advance Claim) के सेटलमेंट करने के लिए ऑटो-मोड सेटलमेंट (Auto-Mode Settlement) की सुविधा शुरू की है. EPFO ने ऑटो क्लोम सोल्यूशन लॉन्च किया है जिसमें बगैर किसी मानवीय हस्तक्षेप के आईटी सिस्टम के जरिए ऑटोमैटिक तरीके से क्लेम को सेटल किया जाएगा. बीमारी के इलाज के लिए एडवांस लेने के क्लेम केटलमेंट के लिए ऑटो मोड सुविधा को अप्रैल 2020 में शुरू किया गया था.
करोड़ों सदस्यों के लिए बड़ी सौगात
EPFO अपने करोड़ों सदस्यों के लिए बड़ी सौगात दी है. ईपीएफ योजना 1952 के तहत ईपीएफओ ने आवास, विवाह और शिक्षा के लिए ऑटो क्लेम सेटलमेंट सुविधा का दायरा बढ़ा दिया है. इतना ही नहीं, इसने ऑटो क्लेम सेटलमेंट की लिमिट भी मौजूदा 50,000 से दोगुनी करके 1,00,000 रुपये कर दी है. श्रम मंत्रालय ने सोमवार को यह जानकारी दी. वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान, EPFO ने लगभग 4.5 करोड़ क्लेम का निपटारा किया. इसमें 60 प्रतिशत (2.84 करोड़) से अधिक क्लेम अग्रिम दावे थे.
शिक्षा, शादी हाउसिंग के लिए ऑटो एडवांस सुविधा
वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान जितने एडवांस क्लेम सेटल किए गए उसमें 89.52 लाख ऐसे क्लेम थे जिसे ऑटो-मोड के तहत सेटल किया गया. इज ऑफ लिविंग के तहत सुविधा प्रदान करने के लिए ऑटो क्लेम की सुविधा को ईपीएफ स्कीम 1952 के अंडर पारा 68K ( शिक्षा और शादी के लिए) और 68B (हाउसिंग) के लिए भी एक्सटेंड कर दिया गया है. ऑटो क्लेम मोड के तहत रकम को बढ़ाकर 50,000 रुपये से बढ़ाकर 1 लाख रुपये कर दिया गया है जिससे लाखों ईपीएफओ मेंबर्स को लाभ होगा.
ऑनलाइन होगा ऑटो सेटलमेंट
ऑटो सेटलमेंट का ये प्रोसेस आईटी सिस्टम के जरिए होगा. KYC, योग्यता और बैंक वैलिडेशन के जरिए किया जाने वाले क्लेम आईटी टूल्स के जरिए ऑटोमैटिक तरीके से प्रोसेस होगा. इस सुविधा के चलते एडवांस के लिए क्लेम सेटलमेंट में लगने वाला समय 10 दिनों से घटकर 3 से 4 दिनों में पूरा कर लिया जाएगा.
रिटर्न या रिजेक्ट नहीं होगा क्लेम
अगर कोई एडवांस के लिए क्लेम सेटलमेंट आईटी सिस्टम से नहीं होता है तो उसे वापस या खारिज नहीं किया जाएगा. बल्कि इसे क्लेम को दूसरे लेवल पर स्क्रूटनी और अप्रूवल के माध्यम से सेटल किया जाएगा. ऑटो-मोड सेटलमेंट सुविधा के विस्तार से हाउसिंग, शादी या शिक्षा के लिए ऑटो क्लेम की सुविधा के चलते छोटी अवधि के भीतर मेंबर्स को फंड उपलब्ध कराया जा सकेगा.
मोबाइल रिचार्ज को लेकर एक नई रिपोर्ट सामने आई है. इसमें दावा किया गया है कि लोकसभा चुनाव से पहले रिचार्ज की कीमत में बढ़ोत्तरी हो सकती है. ऐसे में यूजर्स को बड़ा झटका लग सकता है.
लोकसभा चुनाव बाद देश के करोड़ों लोग अपनी जेब ढीली करने को तैयार रहें. मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनियों ने टैरिफ बढ़ाने की पूरी तैयारी कर ली है. इसका सीधा मतलब है कि चुनावों के बाद मोबाइल रिचार्ज कराना महंगा हो जाएगा. कंपनियों ने इसकी पूरी तैयारी भी कर ली है और यह भी तय कर लिया है कि इस बार कितना पैसा बढ़ाया जाए.
टैरिफ में हो सकती है 20-25% तक की बढ़ोतरी
बोफा सिक्योरिटीज की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस साल लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद, 4 जून से भारतीय टेलीकॉम सेक्टर में टैरिफ में 20-25% तक की बढ़ोतरी हो सकती है. पहले अनुमानों में केवल 10-15% की वृद्धि की उम्मीद थी. रिपोर्ट का कहना है कि इससे कंपनियों के कैश फ्लो में सुधार होगा और वे हाई मार्जिन वाले ब्रॉडबैंड और एंटरप्राइज/डेटा सेवाओं को बढ़ावा दे सकेंगी. BofA के अनुसार, दूरसंचार कंपनियों द्वारा टैरिफ में 20-25% की बढ़ोतरी के बाद जब उपभोक्ता इस वृद्धि के हिसाब से ढल जाएंगे, तो भारतीय टेलीकॉम कंपनियां 5G में अपने निवेश की भरपाई के लिए एक साल के भीतर फिर से कीमतें बढ़ा सकती हैं.
वोडाफोन-आइडिया को होगा ज्यादा फायदा
बोफा सिक्योरिटीज का मानना है कि प्योर टेलीकॉम कंपनी के रूप में, वोडाफोन आइडिया टैरिफ बढ़ोतरी का सबसे ज्यादा फायदा उठा सकता है, उनकी रिपोर्ट के अनुसार, अगर प्रति यूजर औसत राजस्व (ARPU) में 5% की बढ़ोतरी होती है, तो कंपनी की प्रति शेयर आय (EPS) में 12% तक का इजाफा हो सकता है. हालांकि, बोफा अभी भी वोडाफोन आइडिया के शेयर को खरीदने की सलाह नहीं दे रहा है. उनकी राय है कि फिलहाल कंपनी के स्पेक्ट्रम पेमेंट को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है. उन्हें वित्त वर्ष 2025-26 (FY26) के बाद इस स्थिति में सुधार आने पर ही राय बनाने में सहूलियत होगी.
एयरटेल भी उठा सकता टैरिफ बढ़ोत्तरी का फायदा
भारती एयरटेल के लिए भी बोफा ने वित्त वर्ष 2025-26 के EPS अनुमान में 5-6% की बढ़ोतरी का अनुमान लगाया है. जिससे साफ होता है कि कि कंपनी अपने ग्राहकों से मोटा पैसा वसूलने वाली है. हालांकि, रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि उच्च मूल्यह्रास (higher depreciation) और परिशोधन (amortization) के कारण रिलायंस इंडस्ट्रीज (RIL) के लिए EPS अनुमान में 2-3% की कमी की संभावना है.
Jio का आ सकता है IPO
टेलीकॉम कंपनियां अभी भारतीय बाजार में कोई खास हलचल नहीं मचा रही हैं. लेकिन, रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (RIL) की टेलीकॉम ब्रांच, रिलायंस जियो, के जल्द ही IPO लाने की चर्चा है. जैसा कि RIL मैनेजमेंट ने पहले संकेत दिया था, यह कदम बाजार को काफी प्रभावित कर सकता है. ब्रोकरेज फर्मों का मानना है कि रिलायंस जियो का IPO दूरसंचार क्षेत्र में एक अहम इवेंट हो सकता है, जिसपर निश्चित रूप से नजर रखनी चाहिए. बोफा सिक्योरिटीज के विश्लेषक टेलीकॉम कंपनियों द्वारा कीमतें बढ़ाने के बारे में आशावादी हैं। उन्हें लगता है कि सभी कंपनियां इसमें शामिल होंगी, क्योंकि सीमित विकल्पों और डेटा सेवाओं की लोकप्रियता के कारण उपभोक्ता 20-25% की बढ़ोतरी को संभाल सकते हैं.
कमाई के नए रास्ते तलाशने में जुटी कंपनियां
बोफा सिक्योरिटीज के विश्लेषकों का मानना है कि टेलीकॉम कंपनियां सिर्फ मोबाइल नेटवर्क से आगे बढ़ रही हैं. उनकी रिपोर्ट के अनुसार, भारती एयरटेल और रिलायंस इंडस्ट्रीज (RIL) आने वाले समय में फाइबर ब्रॉडबैंड, एंटरप्राइज सेवाएं, डेटा सेंटर और डिजिटल कारोबारों पर ज्यादा ध्यान देंगी. दरअसल, ये सभी कारोबार ज़्यादा मुनाफा देने वाले हैं. इससे इन कंपनियों को न सिर्फ मोबाइल नेटवर्क से होने वाली कमाई में विविधता लाने में मदद मिलेगी, बल्कि नए क्षेत्रों में भी विकास के रास्ते खुलेंगे.
देश जैसे-जैसे डिजिटल हो रहा है वैसे ही ऑनलाइन फाइनेंशियल फ्रॉड के केस तेजी से बढ़ रहे हैं. ऐसे स्थिति में आपको इस तकनीक का इस्तेमाल करना चाहिए.
देश में बढ़ते फाइनेंशियल फ्रॉड को कम करने के लिए कई उपाय किये जा रहे हैं. ग्राहकों को और अधिक वित्तीय सुरक्षा देने, उनके लेनदेन की सुरक्षा को बढ़ाने के लिए वाणिज्यिक बैंक वेरिफिकेशन के लिए आईरिस स्कैन (Iris Scan) के विकल्प का इस्तेमाल किया जा सकता है. ये विकल्प खास तौर पर वरिष्ठ नागरिकों की सहायता के लिए लाया जा रहा है. उम्र बढ़ने के कारण बुजुर्गों की उंगलियों के निशान भी अलग हो जाते हैं. जिसके कारण वेरिफिकेशन में परेशानी का सामना करना पड़ता है.
Iris Scan स्थापित करने की तैयारी में SBI?
देश में पब्लिक सेक्टर का सबसे बड़ा बैंक SBI भी आईरिस स्कैन के विकल्पों की तलाश कर रहा है. पिछले साल ही भारतीय स्टेट बैंक ने इस बारे में कहा था कि वे अपने ग्राहकों और वरिष्ठ पेंशन भोगियों के लिए सीएसपी केन्द्रों पर आईरिस स्कैनर स्थापित करने के विकल्पों की तलाश कर रहे हैं. बता दें कि एक्सिस बैंक देश का पहला बैंक है, जिसने आईरिस प्रमाणीकरण सुविधा की शुरुआत की. बैंक ने अगस्त, 2018 में आधार आधारित आईरिस स्कैन के विकल्प की शुरुआत की थी.
भारत में लोग बड़ी संख्या में डिजिटल लेन-देन कर रहे हैं. इसके बावजूद सिक्योरिटी इशूज में कोई कमी नहीं आई है. शिक्षा की कमी और ऑनलाइन पेमेंट के बारे में जानकारी कम होने के कारण अधिकांश लोग ऑनलाइन धोखाधड़ी का शिकार हो जाते हैं. ऑनलाइन धोखाधड़ी से लोग सबसे ज्यादा शिकार हो रहे हैं. हालांकि, थोड़ी सावधानी से इससे आसानी से बचा जा सकता है. ये हैं कुछ प्रमुख कारण जिनके माध्यम से फाइनेंशियल फ्रॉड हो रहा है.
स्क्रीन शेयरिंग फ्रॉड- लोग अक्सर जल्दबाजी में धोखेबाज द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करते हैं और रिमोट एक्सेस/स्क्रीन शेयरिंग ऐप इंस्टॉल कर लेते हैंय जैसे ही आप उन्हें एक्सेस देते हैं, स्कैमर्स संवेदनशील जानकारी जैसे ओटीपी, सेव किए गए पासवर्ड, बैंकिंग क्रेडेंशियल आदि प्राप्त करके काम पर लग जाते हैं.
UPI फ्रॉड- भारत में सबसे ज्यादा ऑनलाइन लेन-देन UPI के जरिए होता है. ऐसे में स्कैमर्स अशिक्षित और ऑनलाइन पेमेंट की जानकारी कम रखने वाले यूजर्स को अपना शिकार बनाते हैं. UPI यूजर को स्कैमर अक्सर ऐसे मैसेज भेजते हैं, जिसमें उन्हें शानदार डील ऑफर की जाती है. इसके बाद वह थोड़ी बातचीत करते हैं और फिर पूछते हैं कि क्या वे ऑनलाइन पेमेंट करके प्रोडक्ट को बुक कर सकते हैं? इसके बाद यूजर खुशी -खुशी उनको पेमेंट करने लिए राजी हो जाते हैं और स्कैमर्स के जाल में फंस जाते हैं.
क्यूआर कोड से फ्रॉड- क्यूआर कोड स्कैम ने भारत में अपनी जगह बना ली है क्योंकि अधिकांश लोग अपने स्मार्टफोन से ऑनलाइन पेमेंट करते वक्त क्यूआर कोड का उपयोग करते हैं. ज्यादातर स्कैमर्स ग्राहकों को संपर्क करके उनसे क्यूआर कोड को स्कैन करने के लिए कहते हैं. स्कैमर्स लोगों को उनके फोन पर बैंकिंग एप्लिकेशन का उपयोग करने के लिए आश्वस्त करते हैं और जैसे ही यूजर कोड को स्कैन करते हैं उनके अकाउंट से स्कैमर पैसे चुरा लेते हैं.
सर्च इंजन रिजल्ट में हेरफेर- बहुत से लोग अपने बैंकों, बीमा कंपनियों और व्यापारियों के कॉन्टैक्ट डिटेल प्राप्त करने के लिए सर्ज इंजन का सहारा लेते हैं. आमतौर पर यह बहुत अच्छे से काम करता है, लेकिन कभी-कभी, धोखेबाज SEO जैसी तकनीकों का उपयोग करके वास्तविक वेबसाइट में हेरफेर किए गए क्रेडेंशियल्स को रैंक कर देते हैं जिससे ग्राहक असली बैंक वेबसाइट के बजाय फर्जी वेबसाइट पर पहुंच जाते हैं और वहां नंबर ले लेते हैं.
फिशिंग स्कैम- स्कैमर्स संस्थाओं से मिलती-जुलती वेबसाइट बनाकर यूजर्स को बरगला सकते हैं. ऑनलाइन ट्रांजेक्श और ई-कॉमर्स के नए ग्राहक ऐसी वेबसाइटों की पहचान करने और लेनदेन को पूरा करने में विफल हो सकते हैं. मैसेजिंग ऐप और सोशल मीडिया पर ऐसी वेबसाइटों का URL मिलना आम बात है. इसके अलावा स्कैमर यूजर्स को SMS ब्रॉडकास्ट करने के लिए बल्क मैसेजिंग सेवाओं का भी उपयोग करते हैं.
क्या है जामताड़ा मॉडल?
झारखंड के जामताड़ा ज़िले में होने वाले अपराधों को 'जामताड़ा मॉडल' कहा जाता है. इस साइबर स्कैम में, अपराधी खुद को सरकारी अधिकारी बताकर लोगों से पैसे ऐंठते हैं. जामताड़ा मॉडल अब कई जगहों पर फैल गया है. बिहार के छह ज़िलों में साइबर अपराधी सक्रिय हैं. राजस्थान, हरियाणा, और उत्तर प्रदेश की सीमाओं पर बसे तीन ज़िलों का त्रिकोण भी अब 'नया जामताड़ा' बनता जा रहा है.
यूजर्स को भी रहना होगा जागरुक
देश जैसे जैसे डिजिटल (Digital) हो रहा है वैसे ही ऑनलाइन फाइनेंशियल फ्रॉड (Online Financial Fraud ) के केस तेजी से बढ़ रहे हैं. ऐसे स्थिति में अगर आप भी इस तरह की ऑनलाइन ठगी (online fraud) के शिकार हो जाते हैं तो आपको पता होना चाहिए कि क्या करना है. ऐसी स्थिति में घबराने की बजाय कुछ जरूरी कदम उठा कर आप अपने पैसे वापस पा सकते हैं.
अगर आपके पास वोटर आईडी कार्ड नहीं है तो भी आप मतदान कर सकेंगे. इसके लिए आपको इन 11 जरूरी दस्तावेजों में से किसी एक को मतदान केंद्र में दिखाना होगा. फिर आप आसानी से मतदान कर सकेंगे.
लोकसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को होना है. मतदाताओं में भी इसको लेकर खासा उत्साह है. वहीं, कुछ लोग ऐसे भी हो सकते हैं जिनका वोटर आईडी कार्ड (Voter ID Card) अपडेट होकर न आया हो या फिर गुम हो गया हो. उन मतदाताओं की चिंता का निवारण निर्वाचन आयोग (Elections Commission) ने कर दिया है. निर्वाचन आयोग का कहना है कि बना वोटर आईडी कार्ड के भी वोट डाला जा सकता है बशर्ते मतदाता के पास कुछ अन्य जरूरी आईडी कार्ड मौजूद हों. आइए जानते हैं वे कौन से दस्तावेज हैं, जिसके माध्यम से भी वोट डाला जा सकता है.
इन दस्तावेज से भी कर सकेंगे मतदान
चुनाव आयोग के मुताबिक, अगर कोई मतदान केंद्र पर वोटर आईडी कार्ड ले जाना भूल गया है, तब भी वो चुनाव में हिस्सा ले सकता है. नियमों के अनुसार, मतदान केंद्र पर वोटर आईडी के अलावा और भी ऐसे दस्तावेज हैं जिनको दिखाकर वोट करने की अनुमति मिल जाती है. ये दस्तावेज हैं-
- पासपोर्ट
- ड्राइविंग लाइसेंस
- अगर आप सेंट्रल और स्टेट गवर्नमेंट के कर्मचारी हैं या फिर, PSUs और पब्लिक लिमिटेड कंपनी में काम कर रहे हैं तो कंपनी की फोटो आईडी के आधार पर भी मतदान किया जा सकता है
- PAN कार्ड
- आधार कार्ड
- पोस्ट ऑफिस और बैंक द्वारा जारी किया गया पासबुक
- MGNREGA जॉब कार्ड
- लेबर मिनिस्ट्री द्वारा जारी किया गया हेल्थ इंश्योरेंस कार्ड
- पेंशन कार्ड जिसपर आपकी फोटो लगी हो और अटेस्टेड हो
- नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर (NPR) द्वारा जारी स्मार्ट कार्ड
- सांसद या विधायक की तरफ से जारी आधिकारिक पहचानपत्र
इसमें ध्यान देने वाली बात ये है कि अगर आपके पास वोटर आईडी कार्ड, आधार कार्ड या कोई भी वाजिब पहचान पत्र है लेकिन आपका नाम वोटर लिस्ट में नहीं है, तो आप वोट नहीं दे सकते हैं. वोटर लिस्ट में नाम चेक करने के लिए आप चुनाव आयोग की एसएमएस सर्विस का इस्तेमाल कर सकते हैं. इसमें आपको ‘ ECI (अपना EPIC नंबर)’ लिखकर 1950 नंबर पर एसएमएस भेजना होता है.
चुनाव आयोग की अधिसूचना जारी होने के बाद चुनाव पर हुए खर्च, लोगों की धारणा, अनुभव और अनुमान के आधार पर यह चुनाव में खर्च की गई कुल राशि का आकलन किया है.
18वीं लोकसभा चुनाव के लिए पहले चरण का चुनाव कल से शुरू हो रहा है. पहले चरण का मतदान 21 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (UT) में फैले 102 चुनाव क्षेत्रों में होगा. सभी राजनीतिक दलों ने सत्ता का सुख पाने के लिए जोर-आजमाइश के साथ वो सभी पैतरें अपना रहे हैं, जिससे मतदाताओं को रिझा सकें. इसके लिए उम्मीदवार से लेकर पार्टी स्तर पर भी खूब पैसे उड़ाए जा रहे हैं. बड़े राजनीतिक दल जहां मीडिया, सोशल मीडिया में विज्ञापन देने के साथ पारंपरिक तरीके से प्रचार कर करोंड़ों रुपये खर्च कर रहे हैं. जिसकी वजह से हर चुनाव में खर्च का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है. लोकसभा चुनाव में राजनीतिक दलों और सरकारी खर्चों का छोटे राज्यों के बजट के बराबर पहुंच जाता है.
कई गुना बढ़ा चुनावी खर्चा
1952 में हुए पहले चुनाव से लेकर 2019 के लोकसभा चुनाव तक चुनावी खर्च कई गुना बढ़ चुका है. चुनाव आयोग के मुताबिक, 1952 में हुए देश के पहले चुनाव में 10.5 करोड़ रुपये खर्च हुए थे, जबकि 2014 के लोकसभा चुनाव में यह खर्च बढ़कर 3,870.3 करोड़ रुपये पहुंच गया. गैर लाभकारी संगठन सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज (CMS) की एक स्टडी के मुताबिक, 2019 के लोकसभा चुनाव में 55,000-60,000 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे. वहीं, 2024 में यह खर्च बढ़कर 1.20 लाख करोड़ रुपये हो सकता है.
2024 में खर्च हो सकते हैं 1.20 लाख करोड़
2024 लोकसभा चुनाव 7 चरणों में हो रहे हैं. इस चुनाव में धुआंधार खर्च प्रचार से लेकर विभिन्न गतिविधियों में किए जा रहे हैं. पिछले चुनाव में खर्च हुए आंकड़ों से पता चल रहा है कि इस बार का चुनाव खर्च 1.20 लाख करोड़ रुपये से अधिक पहुंच सकता है. भाजपा से लेकर कांग्रेस करोड़ों रुपये का विज्ञापन दे रही है. वहीं, स्टार प्रचारकों पर भी करोड़ों रुपये खर्च हो रहे हैं. बड़े-बड़े नेता हेलिकॉप्टर और हवाई जहाज से पहुंचकर जनसभा को संबोधित कर रहे हैं. वहीं, इस बार करीब 96.8 करोड़ मतदाता देश में हैं, जो प्रधानमंत्री चुनेंगे.
2019 में 9000 करोड़ रुपये हुए खर्च
भारतीय जनता पार्टी ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में 2019 में लोकसभा चुनाव लड़ा और 303 सीटें जीतीं. इस बार नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री चुने गए, लेकिन चुनावी खर्च में बेहताशा वृद्धि हो गई. इस चुनाव में 9000 करोड़ रुपये खर्च किए गए. जोकि पिछले चुनाव के अपेक्षा लगभग तीन गुना अधिक था. इस चुनाव में 90 करोड़ मतदाता थे, जिसमें से 67.4 फीसद ने मतदान किया था. इस चुनाव में एक वोटर पर करीब 100 रुपये खर्च हुए.
क्या होती है खर्च की सीमा
चुनाव में खर्च की सीमा उस राशि को कहते हैं, जो उम्मीदवार चुनाव अभियान में वैध रूप से खर्च कर सकता है. इसमें पब्लिक मीटिंग, रैली, विज्ञापन, पोस्टर- बैनर और वाहन पर होने वाला खर्च शामिल है. चुनाव खत्म होने के 30 दिन के अंदर सभी उम्मीदवारों को खर्च का विवरण चुनाव आयोग को देना होता है. ऐसा करना जरूरी है.
पार्टियों के लिए नहीं है खर्च की सीमा
चुनाव में कोई राजनीतिक दल कितना खर्च कर सकता है, इसकी तो कोई सीमा नहीं है, लेकिन लोकसभा चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों के लिए यह राशि 95 लाख रुपये तय की गई है. इसी तरह विधानसभा चुनाव में एक प्रत्याशी 40 लाख रुपये तक खर्च कर सकता है. कुछ छोटे राज्यों और केंद्र शासित क्षेत्रों में लोकसभा प्रत्याशी के लिए खर्च की सीमा 75 लाख रुपये और विधानसभा प्रत्याशी के लिए खर्च की सीमा 28 लाख रुपये है.
आज हम आपके ऐसे डॉक्टर के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्होंने नशे को खत्म करने का बीड़ा उठाया है. जो लोग नशे की आदत से छुटकारा चाहते हैं लोग उन्हें अपना मसीहा मानते हैं
किसी भी तरह के नशे की लत (Addiction) नुकसानदायक ही होती है. नशे से छुटकारा पाना भी लगभग सभी लोग चाहते हैं, लेकिन यह आसान काम नहीं है क्योंकि जो व्यक्ति नशे का आदी है, उसका शरीर उसे इसकी इजाजत ही नहीं देता. नशा छोड़ने की कोशिश करने पर शरीर पर ऐसे-ऐसे आफ्टर इफेक्ट दिखते हैं कि व्यक्ति फिर से नशे की ओर मुड़ जाता है. लेकिन आज हम आपके ऐसे डॉक्टर के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्होंने नशे को खत्म करने का बीड़ा उठाया है. जो लोग नशे की आदत से छुटकारा चाहते हैं लोग उन्हें अपना मसीहा मानते हैं. इनके द्वारा अविष्कृत मेडिसिन के सेवन से सिगरेट शराब तथा हर प्रकार की ड्रग्स बहुत ही आसानी से छोड़ी जा सकती है.
घर बैठे मंगा सकते हैं मेडिसिन
ऐसी अद्वितीय औषधि के आविष्कारक और कोई नहीं डॉक्टर मोहम्मद शोएब खान है. जितनी विचित्र इनकी औषधि है उतनी ही विचित्र इनका किसी व्यक्ति के डायग्नोसिस का तरीका भी है. यह मेडिसिन मोबाइल फोन अथवा इंटरनेट के द्वारा विश्व के किसी भी कोने में ऑडर कर इस्तेमाल की जा सकती है. नशे से पीड़ित व्यक्ति को केवल उनकी वेबसाइट www.nashamukti.com , www.de-addiction.com अथवा www.deaddiction.in के चैट रूम में लॉग इन करना पड़ता है या फिर मोबाइल 9868742743, 09211456256 अथवा 9411453526 पर कॉल करना पड़ता है.
कैसे किया जाता है इलाज?
चैट रूम में चैट करते समय अथवा मोबाइल पर कॉल करते समय नशे से पीड़ित व्यक्ति को अपनी पसंद की सिगरेट पीने, गुटका खाने अथवा शराब सूंघने को कहा जाता है इसके साथ ही डिटॉक्सिन मेडिसिन की उनमें ट्रांसमिट की जाती है. इस मेडिसिन के प्रभाव से सिगरेट, गुटखा फीके लगने लगते हैं तथा शराब की बदबू धीमी लगने लगती है. जिस मेडिसिन से ऐसा होता है वहीं नशे से पीड़ित व्यक्ति को खाने को दी जाती है जिससे नशा 1 दिन में छूट जाता हैं लेकिन शराब के लिए 2 माह का कोर्स आवश्यक है. ड्रग्स के केस में पीड़ित व्यक्ति को बिना ड्रग्स लिए दर्द होने के समय टेस्टिंग की जाती है तथा 10 मिनट में दर्द दूर होने पर मेडिसिन दी जाती है जिससे 4 दिन में ड्रग्स छूट जाती है लेकिन फिर भी 3 मास का कोर्स करना अनिवार्य होता है.
25,000 पीड़ित व्यक्तियों का किया इलाज
डॉ. मुहम्मद शोएब खान बताते हैं कि नशे के सेवन से शरीर का वोल्टेज तथा आवेश ग्रहण करने की क्षमता बढ़ जाती है. मेडिसिन से उसे आवश्यक स्थान पर लाया जाता है. वह कहते हैं कि पिछले 30 वर्षों में उन्होंने विभिन्न प्रकार के लगभग 25,000 पीड़ित व्यक्तियों का सफलता पूर्वक उपचार किया हैं. उनके द्वारा स्वास्थ्य लाभ पाने वाले लोगों में दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति एम एस ए सिद्दीकी, रिटायर एअर वाइस मार्शल अरविंद डाल्या, एस्कॉर्ट हॉस्पिटल के सीनियर कंसल्टेंट डॉ. रमेश चांदना, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के निदेशक अबरार अहमद, फिल्म निर्माता कुंवर विक्रम सिंह इत्यादि है तथा वह रिलायंस इंडस्ट्री के साथ मिलकर भी कई लोगों का उपचार कर चुके हैं.
दवा का नहीं है कोई साइड इफेक्ट
डॉ. खान का दावा है कि उनकी दवा का न तो कोई साइड इफेक्ट है और न ही इसकी अपनी कोई लत है. मेडिसिन नशे के प्रति घृणा भी उत्पन्न करती है और नशीले पदार्थों से शरीर को हुए नुकसान की भरपाई भी करती है. वर्तमान में डॉ. खान हौज रानी मालवीय नगर नई दिल्ली में अपना क्लिनिक चला रहे हैं और उनके पास प्रतिदिन तीन से चार मरीज आते हैं. अपनी नई आविष्कृत दवाओं के साथ क्लिनिकल परीक्षण के लिए उनका आवेदन सेंट्रल काउंसिल फॉर रिसर्च इन होम्योपैथी में लगभग 25 वर्षों से लंबित है.
सरकार इस दवा के इस्तेमाल की दे मंजूरी
वह नशे के प्रभावी उपचार के प्रति उदासीनता के लिए सरकार को सीधे तौर पर दोषी ठहराते हैं. अगर सरकार ने उनके अभियान को संरक्षण दिया होता, तो ये नशे को खत्म करने में बहुत कारगर साबित होती. इसके साथ ही डॉक्टर का कहना है कि मैं चाहता हूं कि मेरी दवा का क्लिनिकल परीक्षण किया जाए और अगर नशे को खत्म करने में प्रभावी पाया जाता है, तो इस मेडिसिन को भारत सरकार द्वारा अस्पतालों में इस्तेमाल किया जाना चाहिए.
(डिस्क्लेमर: उपरोक्त लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के हैं. ये विचार पब्लिशिंग हाउस के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं न ही उन्हें दर्शाते है.लेखक यह लेख अपनी व्यक्तिगत क्षमता में लिख रहा है. उनका उद्देश्य किसी भी एजेंसी या संस्था के आधिकारिक विचारों, दृष्टिकोणों या नीतियों का प्रतिनिधित्व करना नहीं है और न ही ऐसा माना जाना चाहिए.)