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मोदी सरकार के किस विभाग में देरी से चल रहे सबसे अधिक प्रोजेक्ट्स? जवाब चौंकाने वाला
इसका जवाब जानते ही आप चौंक सकते हैं, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इसी विभाग में सबसे तेजी से काम हो रहा है.
बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो 1 year ago
नई दिल्ली: मोदी सरकार के किस विभाग में देरी से चल रहे हैं सबसे अधिक प्रोजेक्ट्स? इसका जवाब जानते ही आप चौंक सकते हैं, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इसी विभाग में सबसे तेजी से काम हो रहा है. हम बात कर रहे हैं सड़क परिवहन एवं राजमार्ग क्षेत्र की. जी हां, एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार, सड़क परिवहन एवं राजमार्ग क्षेत्र में सबसे अधिक 300 परियोजनाएं देरी से चल रही हैं. इसके बाद 119 परियोजनाओं की देरी के साथ रेलवे दूसरे स्थान पर और 90 परियोजनाओं की देरी के साथ पेट्रोलियम क्षेत्र तीसरे स्थान पर है.
सड़क परिवहन एवं राजमार्ग की कितनी परियोजनाएं
रिपोर्ट के अनुसार, बुनियादी ढांचा क्षेत्र में सड़क परिवहन एवं राजमार्ग से संबंधित 825 परियोजनाओं में 300 परियोजनाएं देरी से चल रही हैं. रेलवे की अभी 173 परियोजनाएं चल रही हैं, जिसमें 119 परियोजाएं देरी से आगे बढ़ रही हैं. पेट्रोलियम क्षेत्र की 142 परियोजनाओं में 90 परियोजाओं में देरी हो रही है.
सबसे देरी वाली परियोजना कौन सी
रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय नाभिकीय विद्युत निगम लिमिटेड (भाविनी) द्वारा निर्मित 500 मेगावाट का प्रोटोटाइप फास्ट ब्रीडर रिएक्टर सबसे विलंबित परियोजना है. इसमें 168 महीने की देरी हुई है. आपको बता दें कि सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय 150 करोड़ रुपये या इससे अधिक की लागत वाली बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की निगरानी करता है.
दूसरी सबसे विलंबित परियोजना का नाम
दूसरी सबसे विलंबित परियोजना NHPC की पार्वती-2 जलविद्युत परियोजना है, जिसमें 162 महीने की देरी हुई है. तीसरी सबसे विलंबित परियोजना NHPC की सुबनसिरी लोअर हाइड्रो इलेक्ट्रिक परियोजना है, जिसमें 155 महीने की देरी हुई है.
रिपोर्ट में और क्या कहा गया
रिपोर्ट में सड़क परिवहन और राजमार्ग क्षेत्र के बारे में कहा गया है कि 825 परियोजनाओं की स्वीकृति के वक्त कुल मूल लागत 4,90,792.42 करोड़ रुपये थी. बाद में ये बढ़कर 5,37,163.29 करोड़ रुपये होने का अनुमान है. देरी के कारण इस क्षेत्र की परियोजनाओं की लागत करीब 9.4 प्रतिशत बढ़ गई.
रेलवे परियोजनाओं की लागत कितनी बढ़ी
इसी तरह रेलवे की 173 परियोजनाओं की कुल मूल लागत 3,72,761.45 करोड़ रुपये थी, जो बाद में बढ़कर 6,12,578.9 करोड़ रुपये हो गई. यानी देरी की वजह से इन परियोजनाओं की लागत 64.3 प्रतिशत बढ़ गई. पेट्रोलियम क्षेत्र की 142 परियोजनाओं की कुल मूल लागत 3,73,333.65 करोड़ रुपये थी, जो बढ़कर 3,93,008.38 करोड़ रुपये हो गई.
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