इस साल अगस्त तक Arbitrage Fund कैटेगरी के म्यूचुअल फंडों में करीब 65,000 करोड़ रुपये का निवेश आया है.
म्यूचुअल फंड कई तरह के होते हैं और इन्हीं में एक कैटेगरी आर्बिट्राज फंड (Arbitrage Fund) की होती है. बता दें, इस साल आर्बिट्राज फंड में अगस्त में सिर्फ 2,372 करोड़ रुपये का निवेश आया. इसका मतलब आर्बिट्राज फंड में निवेश अगस्त के महीने में 80 प्रतिशत घट गया है. हालांकि, दूसरे हाइब्रिड म्यूचुअल फंडों में इस दौरान निवेश बढ़ा है. आर्बिट्राज फंड भी हाईब्रिड फंड की कैटेगरी में आता है. इस साल अगस्त तक आर्बिट्राज म्यूचुअल फंडों में करीब 65,000 करोड़ रुपये का निवेश आया है. तो आइए जानते हैं क्या होता है आर्बिट्राज फंड और इसमें कितना रिटर्न मिलता है?
क्या होता है आर्बिट्राज फंड?
आर्बिट्राज फंड (Arbitrage Fund) एक तरह का म्यूचुअल फंड है, जो अलग-अलग बाजारों में एक ही संपत्ति के मूल्य अंतर का फायदा उठाकर रिटर्न कमाता है. आर्बिट्रेज फंड में नकद और वायदा बाजार में एक साथ खरीद और बिक्री की जाती है. ये कम जोखिम वाला निवेश माना जाता है. आर्बिट्रेज फंड में सेबी के अनुसार कम से कम 65 प्रतिशत संपत्ति इक्विटी और इक्विटी से जुड़ी प्रतिभूतियों में होनी चाहिए. आर्बिट्राज फंड एक ही समय कैश मार्केट में शेयर खरीदते हैं और फ्यूचर्स मार्केट में उसे बेच देते हैं. एक्सपायरी पर वे अपनी पॉजिशन रिवर्स कर देते हैं. दोनों कीमतों के बीच का फर्क उनका मुनाफा होता है. लंबी अवधि में ऐसे फंडों का रिटर्न आम तौर पर मनी मार्केट में इंस्ट्रूमेंट्स की यील्ड जितना होता है.
इतना मिलता है औसत रिटर्न?
इस समय मार्केट में 28 आर्बिट्राज फंड हैं. इस कैटेगरी के फंडों का औसत रिटर्न बीते एक साल में 7.36 प्रतिशत रहा है. यह जानकारी वैल्यू रिसर्च के डेटा पर आधारित है. एक साल में (10 सितंबर, 2024 तक) सबसे ज्यादा रिटर्न कोटक इक्विटी आर्बिट्राज फंड ने दिया है, जबकि सबसे कम रिटर्न महिंद्रा मनुलाइफ आर्बिट्राज फंड ने दिया है.
आर्बिट्राज फंड पर कितना पड़ा टैक्स नियम में बदलाव का असर?
एक्सपर्ट्स के अनुसार सरकार के शॉर्ट टर्म कैपिटल गेंस (STCG) पर टैक्स बढ़ाने का असर आर्बिट्राज फंडों पर पड़ा है. सरकार ने जुलाई में पेश बजट में शेयरों और इक्विटी म्यूचुअल फंडों के शॉर्ट टर्म कैपिटल गेंस पर टैक्स 15 प्रतिशत से बढ़ाकर 20 प्रतिशत कर दिया है. टैक्स के लिहाज से आर्बिट्राज फंड इक्विटी फंड की कैटेगरी में आते हैं, क्योंकि ये अपना 65 प्रतिशत एसेट शेयरों में निवेश करते हैं. बैंकों के सेविंग्स अकाउंट के इंटरेस्ट के मुकाबले इनमें ज्यादा रिटर्न मिलता है. वहीं, टैक्स के मामले में यह कैटेगरी डेट फंडों के मुकाबले बेहतर है. डेट म्यूचुअल फंड के कैपिटल गेंस पर इनवेस्टर के टैक्स स्लैब के हिसाब से टैक्स लगता है. इस पर होल्डिंग पीरियड का असर नहीं पड़ता है.
इनके लिए आर्बिट्राज फंड बेहतर विकल्प
एक्सपर्ट्स का कहना है कि अगर आगे इंटरेस्ट रेट में कमी की जाती है तो आर्बिट्राज फंडों का रिटर्न घटेगा. बावजूद इसके टैक्स के लिहाज से डेट फंडों के मुकाबले आर्बिट्राज फंड बेहतर हैं, लेकिन इसके लिए इस फंड में अच्छे समय तक निवेश बनाए रखना होगा. हाई टैक्स स्लैब में आने वाले निवेशकों के लिए आर्बिट्राज फंड बेहतर विकल्प बना रहेगा.
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अगर आप कम समय के लिए पैसे निवेश करना चाहते हैं, तो म्यूचुअल फंड की Low Risk High Return वाली Debt Fund स्कीम एक बेहतर विकल्प हो सकती है.
अधिकतर लोगों को पैसे निवेश करने के लिए फिक्स्ड डिपॉजिट (FD) का ऑप्शन चुनते हैं, क्योंकि एफडी एक सुरक्षित निवेश है. इसमें गारंटीड रिटर्न मिलता है और वो जब चाहें तब एफडी को तुड़वाकर अपने पास पैसों का इंतजाम कर सकते हैं. वहीं, अगर आप थोड़ा रिस्क ले सकते हैं, तो फिक्स्ड डिपॉजिट (FD) की जगह म्यूचुअल फंड्स के डेट फंड (Debt Fund) में निवेश करना आपके लिए एक बेहतर विकल्प हो सकता है. 2 से 3 साल की छोटी अवधि में आपको इस स्कीम में एफडी से बेहतर रिटर्न मिल सकता है. तो आइए आप इस स्कीम की पूरी जानकारी देते हैं.
क्या होता है डेट फंड?
डेट फंड्स में निवेशकों से लिया गया पैसा फिक्स्ड इनकम सिक्योरिटी में लगाया जाता है, जैसे बॉन्ड, गवर्नमेंट सिक्योरिटी, ट्रेजरी बिल और नॉन-कन्वर्टिबल डिबेंचर आदि, यानी डेट फंड का पैसा सुरक्षित जगह पर निवेश किया जाता है, इसलिए इसे Low Risk वाला फंड माना जाता है. डेट फंड को इक्विटी के मुकाबले ज्यादा सुरक्षित माना जाता है. इसमें लिक्विडिटी की भी कोई समस्या नहीं होती है यानी जब चाहें आप अपना पैसा निकाल सकते हैं. आमतौर पर डेट फंड की तय मैच्योरिटी डेट होती है.
एफडी के मुकाबले ज्यादा रिटर्न
अगर आप मुनाफे की नजर से देखें तो डेट फंड्स आपको एफडी के मुकाबले थोड़ा बेहतर रिटर्न दे सकते हैं. आमतौर पर 1 साल से 3 साल की एफडी पर आपको 6 प्रतिशत से 7 या 7.5 प्रतिशत तक का ब्याज मिलता है, लेकिन डेट फंड का रिटर्न 9 फीसदी के आसपास माना जाता है. ऐसे में आप डेट फंड में पैसा लगाकर ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं. हालांकि डेट फंड में निवेशक को इक्विटी जैसे ज्यादा रिटर्न की उम्मीद नहीं करनी चाहिए.
ये हैं टैक्स के नियम
Debt Funds से मुनाफे पर टैक्स का प्रावधान है. डेट फंड को 3 साल बाद भुनाने पर लांग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स (LTCG) लगता है. वहीं, 3 साल पहले निकालने पर शॉर्ट टर्म कैपिटल गेंस टैक्स (STCG) लगता है. गेन्स पर आपको इनकम टैक्स स्लैब के अनुसार टैक्स देना होगा. वहीं, एफडी की बात करें तो 5 साल की एफडी टैक्स फ्री होती है. इससे कम समय की एफडी पर आपको इनकम टैक्स देना पड़ता है.
(डिस्क्लेमर: म्यूचुअल फंड निवेश बाजार जोखिमों के अधीन हैं. यह खबर केवल आपको जानकारी देने के लिए लिखी गई है, BW हिन्दी आपको किसी भी तरह के निवेश की सलाह नहीं देता है. अगर आपको निवेश करना है तो पहले किसी एडवाइजर से परामर्श जरूर लें.)
Mutual Fund Lite ऐसे म्यूचुअल फंड्स के लिए एक आसान फ्रेमवर्क है, जो सिर्फ पैसिव स्कीम को मैनेज करेंगे.
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) म्यूचुअल फंड को बढ़ावा देने और बाजार में नए खिलाड़ियों के प्रवेश को आसान बनाने के लिए म्यूचुअल फंड लाइट (Mutual Fund Lite) शुरू करने की तैयारी में है. बोर्ड की इस पहल से मार्केट की लिक्विडिटी में भी सुधार आने की संभावना है. इससे इन्वेस्टमेंट के नए मौके भी सामने आएंगे. तो चलिए जानते हैं क्या है एमएफ लाइट और इससे क्या फायदा होगा?
क्या है MF Lite?
एमएफ लाइट ऐसे म्यूचुअल फंड्स के लिए एक आसान फ्रेमवर्क है, जो सिर्फ पैसिव स्कीम को ही मैनेज करेंगे. जैसे इंडेक्स फंड और एक्सचेंज ट्रेडेड फंड. एमएफ लाइट के तहत फंड हाउस जो सिर्फ पैसिव स्कीम पर ही फोकस करेंगे उन्हें नियमों के बोझ से राहत मिलेगी और उनकी लागत भी कम होगी.
इन्हें होगा फायदा
म्यूचुअल फंड लाइट का उद्देश्य म्यचूअल फंड इंडस्ट्री में नयी एंटिटी (कंपनी) को आसान बनाना, नई कंपनियों को प्रोत्साहित करना, नियमों की जिम्मेदारी कम करना, निवेश बढ़ाना, मार्केट में लिक्विडिटी बढ़ाना, इंवेस्टमेंट में डायवर्सिफिकेशन को सुविधाजनक बनाना और इनोवेशन को बढ़ावा देना है. नियमों को आसान किए जाने से इस स्पेस में कई ऐसे प्लेयर भी शामिल हो सकते हैं जो पहले एंट्री के मुश्किल होने की वजह से इस सेग्मेंट से दूर थे. इसके अलावा मौजूदा कंपनियां भी इसका फायदा उठा सकेंगी.
कम लागत वाली पैसिव फंड स्कीम में निवेश का मौका
वहीं, मौजूदा एमएफ की पैसिव स्कीम और इनके साथ ही ऐसी स्कीम जो एमएफ लाइट रजिस्ट्रेशन के तहत लॉन्च की जा सकती हैं और इनके लिए नियमों को पालन करने में आसानी, डिस्क्लोजर और नियमों में राहत दी जाएगी. एमएफ लाइट की मदद से रिटेल निवेशकों को कम लागत वाली कई नई पैसिव फंड स्कीम में निवेश का मौका हासिल होगा. ऐसी कंपनियां अपने पैसिव फंड ऑपरेशन को एमएफ लाइट फ्रेमवर्क के तहत अलग कर सकेंगी. नए फ्रेमवर्क के तहत 2 अप्रोच अपनाए गए हैं, पहले के तहत एमएफ लाइट पंजीकरण के तहत केवल पैसिव स्कीम शुरू करने के इच्छुक एमएफ के लिए प्रवेश में आसानी और नियमों में राहत दी जाएगी इसे सेक्शन एक कहा गया है.
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पर्सनल लोन और क्रेडिट कार्ड दोनों ही अनसिक्योर्ड लोन हैं. क्रेडिट कार्ड से आसानी से बार-बार लोन लिया जा सकता है, लेकिन पर्सनल लोन बार बार लेना कठिन है.
अगर आपको कभी अचानक से पैसों की जरूरत पड़ जाए और कहीं से भी पैसों का इंतजाम नहीं हो रहा, तो आपके पास क्रेडिट कार्ड (Credit Card) और पर्सनल लोन (Personal Loan), ये दो बेहतर विकल्प होते हैं. क्रेडिट कार्ड और पर्सनल लोन, दोनों ही अनसिक्योर्ड लोन हैं. ऐसे में आपको ये जानकारी जरूर होनी चाहिए कि कब आपके लिए क्रेडिट कार्ड और कब पर्सनल लोन का इस्तेमाल करने में समझदारी है. तो चलिए इन दोनों के बीच अंतर को समझते हुए जानते हैं कि अचानक पैसों की जरूरत पड़ने पर कौन सा विकल्प इस्तेमाल करना बेहतर है?
क्रेडिट कार्ड और पर्सनल लोन में अंतर
1. क्रेडिट कार्ड से लोन लेने की स्थिति में आपका उस बैंक का कस्टमर होना जरूरी नहीं है, जबकि अगर आप पर्सनल लोन लेना चाहते हैं तो आपका उस बैंक में अकाउंट होना बहुत जरूरी है. तभी आप पर्सनल लोन के लिए अप्लाई कर सकते हैं.
2. क्रेडिट कार्ड में लोन की राशि का भुगतान करने के बाद आप उसी क्रेडिट कार्ड से कई बार लोन ले सकते हैं. वहीं, एक पर्सनल लोन लेने के बाद अगर आप दोबारा पर्सनल लोन लेना चाहते हैं, तो फिर से आपको इसके लिए अप्लाई करना होगा. उस समय एक बार फिर से आपका क्रेडिट स्कोर देखा जाएगा और सारे मापदंडों को परखा जाएगा. अगर आपका सिबिल स्कोर अच्छा होगा तो लोन दोबारा भी आपको आसानी से मिल जाएगा और इसकी ब्याज दर भी कम लग सकती है. लेकिन अगर क्रेडिट स्कोर अच्छा नहीं है, तो दोबारा पर्सनल लोन मिलने में मुश्किल हो सकती है. इसके अलावा बार-बार पर्सनल लोन लेने से आपके सिबिल स्कोर पर भी बुरा असर पड़ता है.
3. क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल पिछले कुछ समय में इसलिए भी तेजी से बढ़ा है क्योंकि इसमें लोन चुकाने के लिए आपको कुछ समय का ग्रेस पीरियड मिल जाता है. अगर इस ग्रेस पीरियड में लोन चुका दिया जाए तो लोन की रकम को बिना ब्याज के लौटा सकते हैं. पर्सनल लोन के साथ आपको ये विकल्प नहीं मिलता. पर्सनल लोन लेने के बाद अगले महीने से ही आपको ब्याज समेत ईएमआई चुकानी होती है.
4. पर्सनल लोन लेने के लिए आपको कुछ जरूरी डॉक्यूमेंट्स बैंक को देने होते हैं. आपकी सैलरी वगैरह के मापदंडों को परखा जाता है. इसके बाद ही आपका लोन अप्रूव होता है. जबकि क्रेडिट कार्ड के लिए बहुत ज्यादा फॉर्मेलिटीज की जरूरत नहीं होती है.
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5. क्रेडिट कार्ड के इस्तेमाल पर आपको रिवार्ड पॉइंट्स, गिफ्ट कार्ड्स , वाउचर्स, डिस्काउंट और कैशबैक के फायदे मिलते हैं. लेकिन पर्सनल लोन में आपको इस तरह के ऑफर्स नहीं मिलते हैं.
6. क्रेडिट कार्ड के अमाउंट को आप ग्रेस पीरियड में एक साथ चुका सकते हैं. इसके अलावा क्रेडिट कार्ड का लोन अमाउंट अगर ज्यादा हो तो आपको उसे ईएमआई में बदलवाने का भी ऑप्शन मिल जाता है. हालांकि इसके लिए आपको प्रोसेसिंग फीस, प्रीपेमेंट चार्ज और जीएसटी जैसे कई चार्ज देने पड़ते हैं. लेकिन पर्सनल लोन को एक निश्चित अवधि से पहले एकमुश्त रकम देकर बंद नहीं कराया जा सकता. अगर आप ऐसा करते हैं तो तमाम बैंक इसके लिए पेनल्टी वसूलते हैं.
क्रेडिट कार्ड या पर्सनल लोन, क्या है बेहतर विकल्प?
एक्सपर्ट्स के अनुसार क्रेडिट कार्ड से लोन लेना उस वक्त सही है, जब आपको एक छोटी अवधि के लिए छोटी राशि का लोन लेना हो क्योंकि आप इसे आसानी से ग्रेस पीरियड में चुका सकते हैं. अगर आपने बड़ी राशि क्रेडिट कार्ड के जरिए ले ली और उसे ग्रेस पीरियड में नहीं चुका पाए तो आपको भारी-भरकम ब्याज देना पड़ सकता है, जिसके कारण आप कर्ज के जाल में भी उलझ सकते हैं, इसलिए अगर आपको एक बड़ी राशि की जरूरत हो और कहीं से पैसों का इंतजाम न हो, तो क्रेडिट कार्ड की बजाय पर्सनल लोन का विकल्प चुनने में समझदारी है. इसमें लोन चुकाने के लिए आपको ज्यादा समय मिल जाता है. इससे ईएमआई भी छोटी हो जाती है और आप आसानी से इसे चुका सकते हैं.
आयकर (Income Tax) विभाग ने विवाद समाधान योजना ‘विवाद से विश्वास 2.0’ को अधिसूचित किया है.
अगर आप भी एक टैक्सपेयर हैं, तो ये खबर आपके काम की है. दरअसल, आयकर (Income Tax) विभाग ने विवाद समाधान योजना ‘विवाद से विश्वास 2.0’ (Vivad Se Vishwas Scheme) को अधिसूचित किया है. यह योजना 31 दिसंबर, 2024 या उससे पहले घोषणा पत्र दाखिल करने वाले करदाताओं के लिए काफी फायदेमंद हैं. आइए जानते हैं ये योजना क्या है और इससे टैक्सपेयर्स को कैसे फायदा होगा?
क्या है विवाद समाधान योजना?
इस योजना के तहत करदाताओं को अपने लंबित आयकर मामलों को निपटाने का एक मौका दिया जाता है, ताकि वे कानूनी लड़ाई और जुर्माने से बच सकें. विवाद से विश्वास 2.0 स्कीम 31 दिसंबर, 2024 को या उससे पहले घोषणा पत्र दाखिल करने वाले टैक्सपेयर्स के लिए उसके बाद दाखिल करने वालों की तुलना में कम निपटान राशि की पेशकश करती है.
कब लागू होगी योजना?
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण में आयकर विवादों के मामले में लंबित अपीलों को हल करने के लिए प्रत्यक्ष कर ‘विवाद से विश्वास’ योजना 2024 की घोषणा की थी. यह योजना 1 अक्टूबर, 2024 से लागू होगी. इसके अलावा सरकार की ओर से योजना को सक्षम करने के लिए नियम और प्रपत्र भी अधिसूचित किए गए हैं.
चार अलग अलग फॉर्म किए गए अधिसूचित
केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने एक बयान में कहा कि इस योजना में ‘पुराने अपीलकर्ता’ की तुलना में ‘नए अपीलकर्ता’ के लिए कम निपटान राशि का प्रावधान है. इस योजना में 31 दिसंबर 2024 या उससे पहले घोषणा दाखिल करने वाले टैक्सपेयर्स के लिए उसके बाद दाखिल करने वालों की तुलना में कम निपटान राशि का प्रावधान है. इसके लिए चार अलग-अलग फॉर्म अधिसूचित किए गए हैं.
1. फॉर्म-1: घोषणाकर्ता द्वारा घोषणा और वचनबद्धता दाखिल करने के लिए प्रपत्र.
2. फॉर्म-2: निर्दिष्ट प्राधिकारी द्वारा जारी किए जाने वाले प्रमाणपत्र के लिए प्रपत्र.
3. फॉर्म-3: घोषणाकर्ता द्वारा भुगतान की सूचना के लिए प्रपत्र.
4. फॉर्म-4: निर्दिष्ट प्राधिकारी द्वारा कर बकाया के पूर्ण और अंतिम निपटान के लिए आदेश.
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ऐसे दाखिल के जाएंगे फॉर्म
योजना में यह भी प्रावधान है कि प्रत्येक विवाद के लिए फॉर्म-1 अलग से दाखिल किया जाएगा, बशर्ते कि जहां अपीलकर्ता और आयकर प्राधिकारी दोनों ने एक ही आदेश के संबंध में अपील दाखिल की हो, ऐसे मामले में एकल फॉर्म-1 दाखिल किया जाएगा. वहीं, भुगतान की सूचना फॉर्म-3 में दी जानी है और इसे अपील, आपत्ति, आवेदन, रिट याचिका, विशेष अनुमति याचिका या दावे को वापस लेने के प्रमाण के साथ निर्दिष्ट प्राधिकारी को प्रस्तुत किया जाना है. फॉर्म-1 और फॉर्म-3 को घोषणाकर्ता द्वारा इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्रस्तुत किया जाएगा. ये फॉर्म आयकर विभाग के ई-फाइलिंग पोर्टल पर उपलब्ध कराए जाएंगे. यह योजना मुकदमेबाजी को कम करने की दिशा में एक कदम है.
एक से ज्यदा क्रेडिट कार्ड रखने के फायदे होने के साथ कुछ नुकसान भी होते हैं. अगरआपने कुछ चीजों का ध्यान नहीं रखा तो आपका CIBIL Score खराब हो सकता है.
आजकल लोग रिवॉर्ड, डिस्काउंट और आकर्षक ऑफर्स के लिए क्रेडिट कार्ड (Credit Card) का इस्तेमाल करने लगे हैं. वहीं, कुछ लोग ऐसे हैं, जोकि एक से ज्यादा क्रेडिट कार्ड रखते हैं. उनका मानना है कि इससे उनकी क्रेडिट लिमिट (Credit Limit) ज्यादा होती है, जिससे वह ढेर सारी शॉपिंग कर सकते हैं. हालांकि, कई बार ज्यादा क्रेडिट कार्ड होने की वजह से कुछ ऐसी चीजें हो जाती हैं, कि लोगों का सिबिल स्कोर (Cibil Score) प्रभावित होता है. तो चलिए जानते हैं ऐसी 5 चीजें, जिन्हें आपको ध्यान रखना चाहिए.
1. ड्यू डेट रखें याद
अगर आपके पास कई सारे क्रेडिट कार्ड हैं तो उनके बिल की ड्यू डेट भी अलग अलग हो सकती हैं. ऐसे में आपको सभी की ड्यू डेट याद रखनी जरूरी है, वरना कोई भी डेट मिस हुई तो आप पर लेट फीस लग सकती है और आपका सिबिल बिगड़ सकता है.
2. क्रेडिट यूटिलाइजेशन रेश्यो का रखें ध्यान
क्रेडिट कार्ड इस्तेमाल के दौरान आपको क्रेडिट यूटिलाइजेशन रेश्यो का पूरा ध्यान रखना चाहिए. इसके तहत आपको अपने कार्ड की लिमिट का 30 प्रतिशत से अधिक इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, वरना आपका सिबिल प्रभावित हो सकता है. अधिक क्रेडिट कार्ड होने पर सबकी लिमिट याद रख पाना मुश्किल होता है, जो आपके लिए दिक्कत का सबब बन सकता है.
3. सालाना फीस को भी याद रखें
अगर आपके पास कई सारे क्रेडिट कार्ड हैं और उन पर आपको सालाना फीस भी चुकानी पड़ रही है तो इस तरह आपको बहुत सारे पैसे तो एनुअल फीस में ही खर्च करने पड़ेंगे. ऐसे में आपको कुछ क्रेडिट कार्ड बंद करने पर विचार करना चाहिए, ताकि आपके ऊपर पड़ने वाला बोझ कम हो सके.
4. मिनिमम ड्यू के चक्कर में ना पड़ें
कई बार लोग क्रेडिट कार्ड में मिनिमम ड्यू देखकर सोचते हैं कि वह इतना ही पैसा चुका देंगे तो काम चल जाएगा. बता दें कि ऐसे में आप सिर्फ कार्ड इस्तेमाल करते रह सकते हैं. आपके बिल पर आपको ब्याज तो चुकाना ही होगा. तो हमेशा अपने क्रेडिट कार्ड का पूरा बिल भुगतान करें.
5. रिवॉर्ड प्वाइंट्स यूटिलाइज करते रहें
लोग क्रेडिट कार्ड इसीलिए लेते हैं, ताकि उस पर मिलने वाले ढेर सारे रिवॉर्ड प्वाइंट्स का इस्तेमाल कर सकें. लेकिन अगर आपके पास बहुत सारे क्रेडिट कार्ड हैं तो रिवॉर्ड प्वाइंट्स को ट्रैक करते रहना मुश्किल हो जाता है. वहीं क्रेडिट कार्ड्स में कुछ रिवॉर्ड प्वाइंट्स ऐसे भी होते हैं, जो एक तय समय के बाद एक्सपायर हो जाते हैं, तो आपको उन्हें लगातार मॉनिटर करना जरूरी होता है और यूटिलाइज करते रहना चाहिए.
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इस समय कई म्यूचुअल फंड कंपनियों के NFO खुले हुए हैं, लॉन्ग टर्म के लिए एनएफओ में निवेश एक अच्छा विकल्प हो सकता है.
शेयर मार्केट में निवेश करना काफी जोखिम भरा होता है. ऐसे में कई लोग शेयर बाजार की जगह म्यूचुअल फंड्स में निवेश करना पसंद करते हैं, क्योंकि इसमें कम जोखिम और अच्छा रिटर्न मिलता है. वहीं अगर आप लंबे समय के लिए निवेश करना चाहते हैं, तो आप म्यूचुअल फंड्स के न्यू फंड ऑफर (NFO) में निवेश कर सकते हैं. इस समय कई म्यूचुअल फंड कंपनियों के NFO खुले हुए हैं. तो चलिए जानते हैं ये एनएफओ क्या है और इसमें निवेश कैसे किया जाता है?
क्या होता है एनएफओ?
न्यू फंड ऑफर (NFO) म्यूचुअल फंड की किसी भी नई स्कीम में निवेश का यह पहला तरीका होता है. जिस प्रकार कोई कंपनी शेयर बाजार में आईपीओ के जरिए पहली बार शेयर बेचती है, यह भी लगभग इसी प्रकार है. एनएफओ के जरिए कोई म्यूचुअल फंड कंपनी यानी एसेट मैनेजमेंट कंपनी निवेशकों को किसी नई स्कीम में पहली बार यूनिट बेचती है. इसकी एक समय सीमा होती है. ठीक उसी प्रकार जैसे किसी आईपीओ में बोली लगाने की समय सीमा होती है. एनएफओ की अवधि के दौरान जो निवेशक इसमें निवेश करना चाहते हैं, उस म्यूचुअल फंड स्कीम की यूनिट को फेस वैल्यू पर खरीद सकते हैं.
यहां लगाया जाता है निवेशकों से जुटाया फंड
आईपीओ की तरह एनएफओ की तरफ भी निवेशकों का आकर्षण धीरे-धीरे बढ़ रहा है. इसे देखते हुए कई म्यूचुअल फंड कंपनियां अपने एनएफओ लेकर आ रही हैं. एनएफओ का उद्देश्य निवेश करने के लिए निवेशकों से फंड जुटाना है. इस फंड का इस्तेमाल किसी स्पेसिफिक एसेट क्लास या सेक्टर निवेश के तौर पर किया जाता है.
आपके पास अभी इन एनएफओ में निवेश का मौका
1. Bandhan Business Cycle Fund, इसकी ड्यूरेशन 24 सितंबर तक है और ये
इक्विटी थिमैटिक कैटेगरी का है. इसमें आप कम से कम 1000 रुपये और इसके बाद कितना भी निवेश कर सकते हैं. इसमें एसआईपी की भी सुविधा है. इसका लॉक इन पीरियड कुछ नहीं है.
2. SBI Nifty 500 Index Fund, इसकी ड्यूरेशन 24 सितंबर तक है और ये इक्विटी फ्लेक्सी कैप कैटेगरी का है. इसमें कम से कम 5000 रुपये का निवेश और इसके बाद कितना भी निवेश आप कर सकते हैं. इसमें भी एसआईपी की सुविधा है. इसमें भी लॉक इन पीरियड नहीं है.
3. Nippon India Nifty 500, इसकी ड्यूरेशन 25 सितंबर तक है और ये इक्विटी फ्लेक्सी कैप कैटेगरी का है. इसमें भी कम से कम 1000 रुपये का निवेश है. इसमें एनआईपी की भी सुविधा है. इसका भी लॉक इन पीरियड नहीं है.
4. HDFC Nifty LargeMidcap 250 Index Fund, इसकी ड्यूरेशन 20 सितंबर से 4 अक्टूबर तक है. ये इक्विटी लार्ज एंड मिडकैप कैटेगरी से है. इसमें आप कम से कम 100 रुपये का निवेश कर सकते हैं इसका भी लॉक इन पीरियड कुछ नहीं है.
डिस्क्लेमर: (ये खबर केवल आपको जानकारी देने के उद्देश्य से लिखी गई है. BW हिंदी आपको किसी भी तरह के निवेश की सलाह नहीं देता है. शेयर मार्केट और म्यूचुअल फंड्स बाजार जोखिमों के अधीन है, ऐसे में आप कहीं भी निवेश का निर्णय लेने से पहले किसी विशेषज्ञ से परामर्श जरूर कर लें.)
SBI अमृत कलश एफडी स्कीम में निवेश करने पर सामान्य ग्राहकों को अधिकतम 7.10 प्रतिशत जबकि सीनियर सिटीजन ग्राहकों को 7.60 प्रतिशत तक ब्याज मिल रहा है.
भारतीय ग्राहकों के लिए निवेश का सबसे पसंदीदा विकल्प फिक्स्ड डिपॉजिट (FD) है. अगर आप भी किसी एफडी स्कीम में निवेश करने का मन बना रहे हैं, तो यह खबर आपके बड़े काम की है. दरअसल, देश के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक (SBI) की पॉपुलर एफडी स्कीम अमृत कलश (Amrit Kalash) इस महीने बंद होने वाली है. इस स्पेशल एफडी स्कीम में ग्राहकों को अधिकतम 7.60 प्रतिशत तक ब्याज मिलता है. आप भी इस स्कीम में निवेश करके अच्छा रिटर्न हासिलकर सकते हैं. तो चलिए जानते हैं आप कब तक इसमें निवेश कर सकते हैं और आपको कितना फायदा होगा?
30 सितंबर है निवेश की आखिरी तारीख
30 सितंबर, 2024 को एसबीआई अमृत कलश एफडी स्कीम ग्राहकों के लिए बंद हो जाएगी. एसबीआई ने अमृत कलश स्कीम की पापुलैरिटी को देखते हुए कई बार इसकी डेडलाइन को भी आगे बढ़ाया है. बता दें कि एसबीआई ने पहली बार अमृत कलश एफडी स्कीम को 12 अप्रैल 2023 को लॉन्च किया था. एसबीआई ने 23 जून, 2023 को इसकी डेडलाइन को बढ़ाकर 31, दिसंबर 2023 कर दिया था. बाद में बैंक ने फिर इसे बढ़ाकर 31 मार्च, 2024 कर दिया था. इसके बाद बैंक ने इस स्पेशल एफडी स्कीम की डेडलाइन को बढ़ाते हुए 30 सितंबर, 2024 तक कर दिया था.
इस 400 दिन की एफडी में मिलता है 7.60 प्रतिशत तक ब्याज
एसबीआई अमृत कलश 400 दिन की एक एफडी स्कीम है, जिसमें निवेश करने पर सामान्य ग्राहकों को अधिकतम 7.10 प्रतिशत और सीनियर सिटीजन ग्राहकों को 7.60 प्रतिशत तक ब्याज मिलता है. इस स्कीम के तहत ग्राहक अधिकतम 2 करोड़ रुपये तक की राशि जमा कर सकते हैं.
ऐसे खुलवाएं इस स्कीम में खाता
1. सबसे पहले एसबीआई अमृत कलश एफडी स्कीम में इन्वेस्ट करने के लिए ग्राहक अपने नजदीकी किसी भी शाखा में जा सकते हैं.
2. इसके बाद खाता खुलवाने के लिए आपको डॉक्यूमेंट के तौर पर आधार कार्ड, पैन कार्ड, पासपोर्ट साइज फोटो, मोबाइल नंबर और ईमेल आईडी की जरूरत पड़ेगी.
3. इसके बाद बैंक से आपको इस स्कीम के लिए एक फॉर्म मिलेगा, जिसे भरने के बाद ही आपका खाता खुल जाएगा.
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NBFC और Small Finance Banks के साथ साझेदारी में Bharti Airtel अपनी डिजिटल यूनिट Airtel Finance के अंतर्गत अपने ग्राहकों के लिए FD की सुविधा शुरू करने जा रही है.
अगर आप एयरटेल यूजर हैं या एयरटेल में स्विच करने की प्लानिंग कर रहे हैं, तो ये खबर आपके लिए बहुत काम की है. दरअसल, भारती एयरटेल (Bharti Airtel) ने अपनी डिजिटल यूनिट एयरटेल फाइनेंस (Airtel Finance) के अंतर्गत फिक्स्ड डिपॉजिट मार्केटप्लेस (FD) शुरू करने की घोषणा की है. कंपनी ने इसके लिए प्रमुख गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC) और लघु वित्त बैंकों (Small Finance Banks) के साथ साझेदारी की है. इस एफडी में निवेशकों को काफी अच्छा रिटर्न मिलने वाला है. तो चलिए जानते हैं इस एफडी में निवेशकों को कैसे और कितना ब्याज मिलेगा?
मिलेगा 9.1 प्रतिशत तक ब्याज
कंपनी के अनुसार यह फिक्स्ड डिपॉजिट ‘मार्केटप्लेस’ है, जहां मियादी जमा ली जा सकेगी और उसे भुनाया जा सकेगा. इस प्लेटफॉर्म पर निवेशकों को 9.1 प्रतिशत की दर से सालाना ब्याज मिलेगा.
इसके लिए एयरटेल फाइनेंस ने उत्कर्ष स्मॉल फाइनेंस बैंक, शिवालिक बैंक, सूर्योदय स्मॉल फाइनेंस बैंक और श्रीराम फाइनेंस सहित कई लघु वित्त बैंकों और एनबीएफसी के साथ साझेदारी की है. इस साझेदारी से ग्राहकों को ज्यादा ब्याज दर पर निश्चित रिटर्न प्राप्त करने में मदद मिलेगी.
यहां मिलेगी एफडी की सुविधा
ग्राहकों को एफडी की सुविधा एयरटेल के ‘थैंक्स’ ऐप पर मिलेगी. एयरटेल फाइनेंस के जरिए यूजर्स आसानी से एफडी कर सकेंगे और मैच्योरिटी पर पैसे भी निकाल सकेंगे. एयरटेल थैंक्स ऐप पर यूजर्स को एफडी के अलग-अलग विकल्प और निश्चित रिटर्न मिलेगा. साथी ही ग्राहकों को पूरी तरह से पारदर्शी और निर्बाध डिजिटल सेवा मिलेगी.
इतने रुपये के निवेश के साथ शुरू कर सकते हैं एफडी
कंपनी के अनुसार उन्होंने इस एफडी सेवा के लिए अच्छे बैंकों के साथ साझेदारी की है. एयरटेल थैंक्स ऐप मंच पर ग्राहक 1,000 रुपये के न्यूनतम निवेश के साथ नया बैंक खाता खोले बिना सीधे फिक्स्ड डिपॉजिट की सुविधा प्राप्त कर सकते हैं. इसके अलावा कंपनी सात दिन के बाद किसी भी समय निकासी के साथ एफडी विकल्प भी प्रदान कर रही है. इससे उसे उम्मीद है कि ‘लॉक-इन’ और नकदी को लेकर ग्राहकों की सभी चिंताएं दूर हो जाएंगी.
बैंक ऑफ इंडिया (BoI) ने एक नई फिक्स्ड डिपॉजिट (FD) स्कीम शुरू की है. इस एफडी में बैंक अपने निवेशकों को सबसे ज्यादा ब्याज ऑफर कर रहा है.
अगर आपका खाता बैंक ऑफ इंडिया (BoI) में है या आप फिक्स्ड डिपॉजिट (FD) में निवेश करने की प्लानिंग कर रहे हैं, तो ये खबर आपके काम की हो सकती है. दरअसल, बैंक ऑफ इंडिया ने एक नई एफडी स्कीम लॉन्च की है. बैंक अपनी इस नई स्कीम में सबसे ज्यादा ब्याज दर ऑफर कर रहा है. इसके अलावा बैंक ने अपनी सभी एफडी की ब्याज दरों में भी बदलाव किया है. तो आइए जानते हैं बैंक की ये नई एफडी कौन-सी है और इसमें आपको कितना फायदा होगा?
क्या है FD की नई स्कीम?
बैंक ऑफ इंडिया (BoI) ने एफडी की नई स्कीम शुरू की है, जिसका नाम स्टार धन वृद्धि (Star Dhan Vriddhi) है. इस स्कीम में बैंक निवेशकों को सबसे ज्यादा ब्याज ऑफर कर रहा है. यह स्कीम 333 दिनों की है. इसमें सामान्य निवेशकों को 7.25 प्रतिशत की दर से ब्याज दिया जाएगा. वहीं, सीनियर सिटिजंस और सुपर सीनियर सिटिजंस को मिलने वाला ब्याज सामान्य लोगों को मिलने वाले ब्याज से कुछ ज्यादा होगा. इस स्कीम में निवेश पर सीनियर सिटिजंस को 7.75 प्रतिशत और सुपर सीनियर सिटिजंस को 7.90 प्रतिशत ब्याज मिलेगा.
अन्य एफडी में भी बदली ब्याज दर
नई एफडी स्कीम लॉन्ट करने के साथ ही बैंक ने अपनी सभी एफडी की ब्याज दरों में भी बदलाव किया है. इस बदलाव के बाद बैंक 3 करोड़ रुपये तक की एफडी पर 3 से 7.25 प्रतिशत की दर पर ब्याज देगा. वहीं, सीनियर सिटिजंस को मिलने वाली ब्याज दर कुछ ज्यादा रहेगी. बैंक 7 दिन से लेकर 10 साल तक की एफडी ऑफर कर रहा है. ऐसे में 7 दिन से 1 साल तक की एफडी पर 3 से 6.80 प्रतिशत की दर से ब्याज ऑफर किया जा रहा है. 1 साल से 2 साल तक 6.80 प्रतिशत, 2 से 3 साल तक 6.75 प्रतिशत, 3 से 5 साल तक 6.50 प्रतिशत, 5 से 10 साल तक 6 प्रतिशत की दर से ब्याज ऑफर किया जा रहा है.
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सीनियर सिटिजंस को मिलेगा ज्यादा ब्याज
बैंक सीनियर सिटिजंस को सामान्य निवेशकों के मुकाबले ज्यादा ब्याज दे रहा है. ऐसे में उन्हें 7 दिन से 1 साल तक की एफडी पर 3 से 6.5 प्रतिशत, 1 साल से 2 साल तक 7.30 प्रतिशत, 2 से 3 साल तक 7.25 प्रतिशत, 3 से 5 साल तक 7.25 प्रतिशत, 5 से 10 साल तक 6.75 प्रतिशत की दर से ब्याज ऑफर किया जा रहा है.
सुपर सीनियर सिटिजंस के लिए इतना ब्याज
बैंक सुपर सीनियर सिटिजंस को कुछ एफडी में सबसे ज्यादा ब्याज दे रहा है, जैसे उन्हें 7 दिन से 1 साल तक 3 से 6.65 प्रतिशत, 1 साल से 2 साल तक 7.45 प्रतिशत, 2 से 3 साल तक 7.45 से 7.40 प्रतिशत, 3 से 5 साल तक 7.40 प्रतिशत, 5 से 10 साल तक 6.9 प्रतिशत की दर से ब्याज ऑफर किया जा रहा है.
एचडीएफसी बैंक (HDFC Bank) ने अपने लोन की ब्याज दरों में बढ़ोतरी की है. बैंक ने अलग-अलग अवधि के लिए ब्याज दर बढ़ा दी हैं.
अगर आपका खाता एचडीएफडी बैंक (HDFC Bank) में है और आप बैंक से लोन लेने की प्लानिंग कर रहे हैं, तो ये खबर आपके लिए बहुत जरूरी है. दरअसल, एचडीएफसी बैंक से लोन पर अब आपको पहले से ज्यादा कीमत चुकानी होगी. बैंक ने अपने लोन की ब्याज दरों (Interest Rate) में बढ़ोतरी कर दी है, जोकि 8 सितंबर से लागू भी हो गई हैं. तो आइए जानते हैं कि ये ब्याज दर क्यों और कितनी बढ़ गई हैं?
बैंक ने दी ये जानकारी
एचडीएफसी बैंक ने ब्याज दर में बढ़ोतरी को लेकर अपनी ऑफिशियल वेबसाइट पर जानकारी शेयर की है. वेबसाइट के अनुसार बैंक ने तीन महीने की अवधि के लिए मार्जिनल कॉस्ट ऑफ लेंडिंग रेट्स (MCLR) में पांच बेसिस पॉइन्ट्स की बढ़त की है. हालांकि यह दरें अलग-अलग अवधि के लिए बढ़ाई गई है.
ये हैं नई ब्याज दरें
एचडीएफसी बैंक की एमसीएलआर ब्याज दरें अब 9.10 प्रतिशत से लेकर 9.45 प्रतिशत तक हो गई है. तीन महीने के अवधि के अलावा बैंक ने किसी भी अन्य लोन दरों में बदलाव नहीं किया है. ओवरनाइट के लिए बैंक 9.10 प्रतिशत और एक महीने के लिए 9.15 प्रतिशत की दर पर लोन मुहैया कर रहा है. तीन महीने की अवधि पर बैंक ने 9.25 प्रतिशत से 9.30 प्रतिशत तक 5 बीपीएस की बढ़त की है. छह महीने की एमसीएलआर 9.40 प्रतिशत है. बैंक ने एक साल की एमसीएलआर को बढ़ाकर 9.45 प्रतिशत कर दिया है. वहीं, दो और तीन साल की एमसीएलआर 9.45 प्रतिशत हो गई है.
क्या है एमसीएलआर?
बैंक अपने लोन पर ग्राहकों से जो न्यूनतम ब्याज दर चार्ज करता है, उसे मार्जिनल कॉस्ट ऑफ लेंडिंग रेट्स (MCLR) कहते हैं. एमसीएलआर में किसी तरह के बदलाव का असर कार लोन, एजुकेशन लोन और होम लोन जैसे तमाम लोन की EMI पर पड़ा है. बैंक के इस फैसले के बाद ग्राहकों को सभी तरह के लोन अब ज्यादा रकम चुकानी होगी.
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